कुछ किताबें के कवर देख कर हम लोग उसे खरीदने पर मजबूर हो जाते हैं....मेरे साथ तो ऐसा अकसर होता ही है ...महंगी महंगी किताब खरीदते वक्त मुझे बस अपने दिल को यह तसल्ली देनी होती है कि मैं समझूंगा कि मैंने कुछ पिज़ा खा लिए ....जो कि मैं कभी खाता नहीं ...
खैर, यह किताब हाथ में आई तो इसे झट से पढ़ने की तमन्ना भी जाग उठी....जैसा कि हम सब के साथ होता है मैंने भी इस के लेखक के बारे में पढ़ा, और उन बीस लोगों की फेहरिस्त देखी जिन की हत्याओं ने दुनिया को ही बदल कर रख दिया...
किताब तो बाद में पढ़नी थी ...लेकिन जिस बात ने मुझे सब से ज़्यादा हैरान-परेशान किया वह यह थी कि उन बीस हस्तियों में मैंने १४ लोगों के नाम ही कभी नहीं सुने थे ...है कि नहीं हैरानी वाली बात....साठ साल की उम्र होते होते कुछ तो पढ़ते ही रहे हैं लेकिन फिर भी सामान्य ज्ञान इतना कमज़ोर ....सच में थोड़ी डिप्रेशन भी हुई कि जिन बीस लोगों की हत्याओं ने दुनिया में तहलका मचा दिया, उन में से तुम्हें ७० फीसदी का नाम तक नहीं पता, अपने आप से इतना तो कहना ही पड़ा।
और एक रोचक बात सुनिए ...जिन छः लोगों के नाम मैंने सुन रखे थे ...मुझे बिल्कुल भनक तक न थी उन में से दो की हत्या की गई थी ...इन में लार्ड माउंटबेटन और किंग लूथर का नाम मैं लेना चाहूंगा...इतनी बड़ी हस्तियां और हमें (नहीं, मुझे) इन के बारे में कुछ खास पता ही नहीं। जब से यह वाट्सएप आया है पिछले सात-आठ सालों में लेडी माउंटबेटन के साथ चाचा नेहरू की तस्वीरें तो वाट्सएप विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी चलाने वाले बार बार शेयर करते रहते हैं लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कभी कि माउंटबेटन की हत्या एक बम विस्फोट में १९७९ में हुई थी ...और उसी किताब से पता चला कि माउंटबेटन की हत्या के बाद भारत में एक हफ्ते का शोक रखा गया था ...उस में यह भी पढ़ा कि माउंटबेटन से हिंदोस्तान को पाकिस्तान और भारत में बांटने की गलती हो गई ....हैरानी तो मुझे भी बडी़ हुई कि ऐसी गलती हुई तो हुई कैसे ...खास कर के उस के बारे में, उस की बैकग्राउंड के बारे में पढ़ कर मुझे भी बड़ा अजीब सा लगा कि बस इसे एक गलती कह कर ही बात को रफा-दफा किया जाए...लाखों लोगों ने जाने गंवाई, बेघर हुए ...और आज तक लोग उस गलती का खमियाजा भुगत रहे हैं ...खैर, चलिए...अब पछताए होत क्या, जब चिढ़िया चुग गई खेत..
मार्टिन लूथर के बारे में भी पढ़ना है ...लिंकन के बारे में तो पहले ही से पढ़ा हुआ है ...भला इंसान था ...आप को भी याद होगा उसने जो चिट्ठी अपने बेटे के अध्यापक को लिखी थी .....बहुत ही नेक बंदा था ...इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बारे में पढ़ा ....इन दोनों की हत्याएं तो हमें बड़े अच्छे से याद हैं...और उन के बाद होने वाला घटनाक्रम भी। राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या की पूरी जानकारी आज पहली बार हासिल हुई ...और इस लिस्ट में कैनेडी नाम का एक और इंसान था, उस के बारे में पता चला कि वह भी कैनेडी का भाई ही था ...वह भी राजनीति में आगे आ रहा था ...उसे भी राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या (१९६३) के पांच बरस बाद १९६८ में मौत के घाट उतार दिया गया...
वैसे तो हम जितना भी पढ़-लिख लें, जितना भी ज्ञान अर्जित कर लें, हमारा ज्ञान दुनिया के ज्ञान के समक्ष एक रेत के कण के बराबर भी नहीं है ...यह बात बिल्कुल सच है ....लेकिन हमें ऐसे ही कभी कभी ऐसा महसूस होने लगता है कि हम तो सब कुछ जानते हैं...ऐसा नहीं है ...मुझे भी अकसर किताबें पढ़ते पढ़ते ही यह अहसास होता है कि मैं कितना कम पढ़ा-लिखा हूं ...मुझे किसी ने पूछा कि आप फिक्शन पढ़ते हैं या नॉन-फिक्शन ....मैंने कहा मुझे जो भी किताब अच्छी लगे, मैं उसे पढ़ना चाहता हूं ....हिंदी-इंगलिश-पंजाबी में पढ़ता हूं अकसर ...गुज़ारे लायक उर्दू भी पढ़ लेता हूं ....किंडल होते हए भी किताब तो भई हाथ में थाम कर ही अच्छा लगता है ...
इस किताब में दर्ज अहम जानकारीयां किसी अगली पोस्ट में शेयर करूंगा... वैसे तो नाम अब आप के पास हैं, गूगल कर के भी खुद भी ऑन-लाइन पढ़ सकते हैं...
वैसे एक बात और है ...ख्याल अगर खुद के कमज़ोर सामान्य ज्ञान का आ रहा है तो बात यह भी याद आ रही है कि हम कितना दुनियावी वैभव, शानो-शौकत के पीछे भागते भागते हांफते रहते हैं, एक तरह से हलकान हुए रहते हैं और इधर दुनिया के गिने-चुने बीस लोगों की हत्या हो गई और मेरे जैसे पढ़े-लिखे कहलाने वाले तक को भी उन में से अधिकांश के नाम ही न पता थे ....सच में सब कुछ कितना क्षणिक है, कितना क्षण-भंगुर है ....लेकिन इत्ती सी बात ही हमारे पल्ले इतनी आसानी से कहां पड़ती है ...😂