शनिवार, 9 अप्रैल 2016

साहिब नज़र रखना..मौला नज़र रखना

तीन साल पहले हम लोग जब किराये का कोई घर देख रहे थे तो लखनऊ के बंगला बाज़ार को अच्छे से जान गये थे..हम लोग अपने रेस्ट-हाउस से निकलते कार में...और लखनऊ की बड़ी बड़ी सडकों पर नित्यप्रतिदिन गुम हो जाते..दो तीन दिन में हमें यह पता चल गया कि वापिस कैसे लौटना है...हमें यह पता चल गया कि बंगला बाज़ार से हमारा रेस्ट-हाउस नज़दीक ही है ..और इस बाज़ार से वहां जाने का रास्ता मालूम हो चुका था...

इसलिए हम कभी भी किसी से वापिसी का रास्ता पूछते और वह पूछता कि कहां जाना है, हम उससे बंगला बाज़ार का नाम ले लेते... यह सिलसिला १५ दिन तक चलता रहा...

बंगला बाज़ार लखनऊ का एक मशहूर बाज़ार है...कितना बड़ा होगा?...एक किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ होगा...सड़की भी कोई खास चौड़ी नहीं है, लेकिन encroachment तो अब एक आम ही बात हो ही गई है... इतने से बाज़ार में एक पुरानी मस्जिद है, कईं पुराने मंदिर भी हैं..सभी लोग मिल जुल कर सभी त्योहार मनाते हैं.. लेकिन बाज़ार में भीड़ अब बहुत होने लगी है ...सब कुछ मिल जाता है वहां....टमाटर से टैप तक...समोसे से वाहिद बिरयानी तक...


इस तरह के एक बाज़ार के एक किनारे पर अचानक एक दिन अगर कोई ट्रक इस हालत में दिखे पूरी तरह से पलटा हुआ तो देख कर कोई भी सकपका जाए....आज सुबह मुझे यह ट्रक इस हालत में दिखा...मैं भी एक मिनट के लिए रूक गया...फोटो खींचने की गुस्ताखी कर ली.. उस ट्रक के पास जाकर किसी से बात करनी की इच्छा नहीं हुई...इस तरह के हालात में हम किसी की कुछ भी मदद करने की स्थिति में नहीं होती, बिना वजह बार बार परेशान लोगों के ज़ख्म कुरेदना बहुत बुरी बात है .. उस समय तो बस उन के हालात सुधरने की प्रार्थना-याचना करते ही बनती है ..


इस तरह के मंजर अकसर हमें बड़ी सड़कों पर शहर के बाहर हाई-वे आदि पर कभी कभी दिख जाते हैं..ईश्वर कृपा करें, सभी सुरक्षित अपने घर पहुंचा करें...लेकिन एक बाज़ार के बीचों बीच इस तरह का हादसा आज शायद पहली बार ही दिखा था.. मैं अपने आप से पूछता हूं कि उस समय मैं कहीं जाने में लेट हो रहा था, कहीं मैं इसलिए तो वहां नहीं रूका...कुछ न भी किसी के लिए कर सके किसी हालत में दो शब्द सहानुभूति के कहने में से कुछ नहीं लगता!..यह मैं अपने आप से कह रहा हूं। 


कोई कह रहा था कि ओव्हरलोडेड था... कोई कुछ...एक तरफ़ से आवाज़ आई कि ड्राईवर क्लीनर तो खत्म हो गये होंगे... तभी दूसरे ने कहा...नहीं, नहीं, दोनों सलामत हैं....इत्मीनान हुआ यह सुन कर कि चलिए जानी नुकसान तो नहीं हुआ...हर चीज़ की भरपाई हो जाती है .....लेिकन इंसानी जान की बहुत कीमत है ...हर इंसान की कीमत उस से परिवार से पूछनी चाहिए...एक बंदे के ठीक ठाक वापिस लौटने का इंतज़ार कईं कईं ज़िंदगीयां कर रही होती हैं ...और एक जान से कईं लोगों की जान अटकी होती है ...रोटी के लिए ही नहीं, अपनेपन का रिश्ते..

मुझे हमेशा से इन ट्रक ड्राईवरों की लाइफ से बड़ी सहानुभूति और सम्मान है ...कितना कठिन जीवन है .. घर से दूर, बीवी ,बच्चों, मां-बाप सारे कुनबे से दूर .. तरह तरह के अनुभव ..किसी चीज़ का कोई ठिकाना नहीं....

इस समय मौका तो बिल्कुल भी नही है कि यहां पर कोई गाना लगाया जाए ..लेिकन पंजाब का एक बेहद प्रसिद्ध गीत याद आ गया जो इन ट्रक ड्राईवरों की ज़िंदगी की एक छोटी सी झांकी पेश करती है ...मुटियार (ट्रक ड्राईवर की पत्नी) को उस की सहेलियां चिढ़ा रही हैं कि इतना फिक्र करते करते तू तो पगला सी गयी है ...मुटियार आगे से अपने पति को याद करते हुए सोचती है कि उस की तो जैसे लंबे लंबे रूटों से याराना हो गया है ..बेहद पापुलर गीत, बेहद सुंदर ढंग से शूट किया हुआ ...और पम्मी बाई की तो बात ही क्या करें, वह तो पंजाब के दिलों पे राज़ करता ही है.....पम्मी बाई जी वह हैं जो इस वीडियो में ड्राईवर का रोल अदा कर रहे हैं...पंजाब में साफ़ सुथरे सभ्याचारक सामाजिक गीत बनाने के लिए इन का नाम बडे़ सम्मान के साथ लिया जाता है ...

१९८६ से १९८८ तक मैं होस्टल में था ..और मुझे सभी कहते थे कि मुझे ट्रक ड्राईवरों वाले गाने बडे़ पसंद हैं...इसी तरह के गाने बजते रहते थे मेरे टेपरिकार्डर से .. कैसेटें थीं दस बीस... अच्छे यही लगते थे, कारण यही था कि यह जीवन की बात करते हैं, उत्सव की बात करते हैं, किसी का हाथ थाम कर उसे उठाने की बात करते हैं....फिर भी कुछ लोगों का रवैया इन ड्राईवरों के प्रति उतना बढ़िया होता नहीं जितना होना चाहिए...

पता नहीं महलों वाले कुछ लोग सड़क के लोगों से जलते क्यों हैं....आईए इसे समझने की कोशिश करते  हैं ३५ साल पुराने आशा फिल्म के इस गीत से...इस फिल्म का नायक जितेन्दर भी एक ट्रक ड्राईवर ही था...