गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

युवतियों के यौन-अंगों को विकृत करने का घोर निंदनीय रिवाज

मैं जब जिह्वा की, होठों की एवं नेवल-पियरसिंग के बारे में पढ़ता सुनता था तो अजीब सा लगता था क्योंकि इस तरह की बॉडी-पार्ट्स की पियरसिंग के अकसर कंप्लीकेशन्स होते ही हैं। मैंने बहुत अरसा पहले कुछ पढ़ा तो यह भी था कि कुछ आदिवासी क्षेत्रों में किस तरह से महिलायों के यौन-अंगों की वे लोग "तथाकथित सुरक्षा" करते हैं।

कल मैं विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर यौन-रोगों की एक फैक्ट-फाइल देख रहा था तो मुझे इस तरह की सामग्री के बारे में पढ़ कर बेहद दुःख हुआ कि दुनिया में कहीं कहीं इस तरह का घिनौना एवं अमानवीय रिवाज भी है जिस के अंतर्गत छोटी छोटी बच्चियों के यौन-अंगों को ही विकृत/बिगाड़ दिया जाता है।

Female genital Mutilation (महिलाओं के यौन-अंगों को विकृत करने से अभिप्रायः है कि महिलाओं के यौन अंगों को किसी भी मैडीकल कारण के बिना विकृत कर देना या उसे चोट पंहुचाना।



इस से बच्चियों में एवं महिलायों में तरह तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे कि भारी रक्त स्राव, पेशाब करते समय तकलीफ़ और बाद में शिशु के जन्म के समय में होने वाले रिस्की हालात और यहां तक कि नवजात शिशुओं की मौत। इस से तो बांझपन भी हो सकता है।

एक अनुमान के अनुसार विश्व भर में लगभग 10 करोड़ से 14 करोड़ लड़कियां एवं महिलायें बिना किसी दोष के अपने यौन अंगों के विकृत किये जाने के बुरे परिणाम भुगत रही हैं। और यह विकृत करने का घिनौना काम छोटी छोटी बच्चियों से लेकर 15 साल की उम्र तक किया जाता है। इस अमानवीय प्रथा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़कियों एवं महिलायों के मानव अधिकारों को उल्लंघन माना गया है।

इस काम को अंजाम कौन देता है ? -- इसे पारंपरिक सुन्नत करने वालों (traditional circumcisers) द्वारा संपन्न किया जाता है। और अब तो इसे अधिकतर हैल्थ-केयर प्रोवाइडरों (यह तो नहीं लिखा हुआ कि ये कैसी सेहत देने वाले हैं!!) द्वारा ही किया जाता है।

The practice is most common in the western, eastern and north-eastern region of africa, in some countries in Asia and the Middle East, and among certain immigrant communities in North america and Europe.

इस तरह से यौन अंगों को विकृत करने के लिये आखिर किया क्या जाता है -- इस अमानवीय रिवाज के लिये बच्चियों के य़ौन-अंगों से क्लाईटोरिस (clitoris) को आंशिक तौर पर या पूरे तौर पर निकाल ही दिया जाता है। क्लाईटोरिस फीमेल यौन-अंगों का एक बिल्कुल छोटा सा एवं अत्यंत संवेदनशील भाग होता है। कुछ केसों में योनि (vagina) के आसपास की मांस की परतें ही काट कर निकाल दी जाती हैं --- removal of the labia minora with or without the removal of the labial majora ---the labia are "the lips" that surround the vagina.

और यह घिनौनापन कुछ केसों में योनि के मुख (vaginal opening) को काट-फाड़ के और टांके वांके लगा कर छोटा करने तक पहुंच जाता है और साथ में क्लाईटोरिस को निकाल दिया जाता है या कायम रखा जाता है।
यह सब करने के क्या क्या कारण हैं -----इस सिरफिरेपन के सिरफिरे कारण तो मुझ से लिखते ही नहीं बन रहे ----अगर आप पढ़ना चाहें तो ऊपर जो मैंने लिंक दिया है वहां जाकर देख लें। यह भी कैसा रिवाज है कि किसी के स्वस्थ अंगों को बिगाड़ दिया जाये ताकि उन में काम-इच्छा की कमी रहे और वे "नाजायज़" संबंधों से बची रह सकें और अपने कौमार्य को सहेज कर रख सकें । अमानवीय !!!!

और सुनिये, यह जो योनि-द्वार को संकरा करने की बात हुई उसे संभोग से पहले एवं शिशु के जन्म के समय काट कर खुला कर दिया जाता है और बाद में फिर टांक दिया जाता है जैसे कि औरत न हो गई --- कोई मशीन हो गई। और यह काटना और टांकना कईं कईं बार होने से महिलायों में कईं तरह के और भी रिस्क बढ़ जाते हैं।

केवल अफ्रीका में ही 10 साल एवं उस से ऊपर की उम्र की लगभग 9.2 करोड़ बच्चियों में यह विकृत करने वाला काम किया जा चुका है।

निःसंदेह महिलायों से भेदभाव (कितना छोटा शब्द लगता है इस घिनौने काम के लिए) की यह कितनी बड़ी उदाहरण है।

इस के बारे में लिखते मुझे ध्यान आ रहा था कुछ महीने पहले अंग्रेज़ी के एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट का जिस में बताया गया था कि किस तरह धनाढ्य़ वर्ग की कुछ महिलायों द्वारा vaginoplasty करवाई जा रही है, और बहुत सा पैसा खर्च कर के अपने वक्ष-स्थल को उन्नत (breast augmentation) करवाया जाता है। योनि पर उम्र के प्रभाव को खत्म करने के लिये या फिर शिशु के जन्म के बाद उसे पहले जैसी स्थिति में लाने के लिये vaginoplasty का सहारा लिया जाने लगा है।

कितना कंटरास्ट है ---एक तरफ़ पकी उम्र में vaginoplasty एवं breast augmentation की स्कीमें और दूसरी तरफ़ छोटी छोटी अबोध बच्चियों के अबोध अंगों को बिना किसी कसूर के कांट-फांट कर के बिगाड़ा जा रहा है। मुझे लग रहा है कि यह शब्द लिखना कांट-खांट कितना आसान है लेकिन जिन बच्चियों पर यह कहर ढहता होगा हम उन की मनोस्थिति की तो कल्पना भी कहां कर पाएंगे ?

मैं लगभग तीन दशकों से मैडीकल प्रोफैशन के साथ जुड़ा हूं लेकिन इस तरह की बात आज पहली बार सुनी है-----शायद आप भी पहली बार सुन रहे होंगे। क्या आप इस के बारे में ऐसा कुछ कर सकते हैं जिस से इस स्थिति में कुछ सुधार हो सके ----छोटी छोटी बच्चियां, युवतियां इस घिनौने रिवाज की शिकार होने से बच सकें। आमीन................क्यों बहुत बार दुआ भी बहुत काम करती है!!

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

ज्यादा पका हुआ मीट बढ़ा देता है ब्लैडर कैंसर का रिस्क

यह तो हम सब जानते ही हैं कि कम पका हुआ (undercooked meat) मीट खाने से फूड-प्वाईज़निंग के साथ ही साथ अन्य कईं तरह की बीमारियां होने का भी रिस्क रहता है।

लेकिन ज़्यादा पका हुआ मीट भी क्या सेफ़ है! -- इस से मूत्राशय का कैंसर होने का खतरा दोगुना हो जाता है। अमेरिका में एक स्टडी जिसे 1700 लोगों पर किया गया और जो 12 साल तक चली है उस के बाद चिकित्सा वैज्ञानिकों ने ये परिणाम दुनिया के सामने रखे हैं। यहां तक कि बहुत ज़्यादा मीट खाने से भी यह रिस्क बढ़ जाता है।

वैसे तो यह रिस्क तली हुई मछली एवं चिकन खाने से भी बढ़ जाता है।

मीट को फ्राई करने से, इस की ग्रिलिंग एवं बारबीक्यूइंग करने से कैंसर पैदा करने वाले कुछ रासायन पैदा हो जाते हैं जिन्हें हीटरोसाईक्लिक एमीनज़ (heterocyclic amines) कहा जाता है जो कि मूत्राशय का कैंसर उत्पन्न करने के लिये विलेन का काम करते हैं। इस स्टडी ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे खान-पान का कैंसर से कितना गहरा संबंध है।

वैसे तो धूम्रपान भी मूत्राशय के कैंसर के लिये सब से महत्वपूर्ण कारण है जिस से सीधे तौर पर तंबाकू का त्याग करने से बचा जा सकता है।

सोमवार, 19 अप्रैल 2010

रोज़ाना आ रही है यौन रोगों की सुनामी

यौन रोग ( सैक्सुयली ट्रांसमिटेड इंफैक्शन्ज़) के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि बैक्टीरियल एस.टी.डी के लगभग 10 लाख नये केस रोज़ाना हो जाते हैं।

इन के बारे में छोटी छोटी बातें हैं जो कि अकसर आम आदमी ठीक से समझ नहीं पाता या शायद उसे कभी इस के बारे में ढंग से बताया ही नहीं जाता। कारण कुछ भी हो इन तकलीफ़ों के बारे में बहुत सी भ्रांतियां हैं।

इन के बारे में हम लोग कितनी भी चर्चा कर लें ---लेकिन सोलह आने सच्चाई यह है कि इन तकलीफ़ों का सब से बड़ा कारण है --ये तरह तरह की यौन-विकृतियां। आपने देखा है कि अकसर अब अखबारों में, चैनलों पर गैंग-रेप की खबरें दिखती हैं। तरह तरह की ग्रुप्स हैं, क्लबें हैं......अखबारों में इस इस तरह के इश्तिहार दिखते हैं कि यह यकीन मानना ही होगा कि अब जहां तक हमारी कल्पना शक्ति पहुंच सकती है वह सब कुछ कहीं न कहीं हो रहा है।

अकसर यही समझा जाता है कि संभोग करने से ही यौन-रोग एक पार्टनर से दूसरे पार्टनर को फैलते हैं लेकिन ऐसा नहीं है यौन-रोग चुंबन से भी और शरीर से निकले वाले अन्य द्वव्यों (secretions) से भी फैलते हैं।

अकसर लेखों में लिखा जाता है कि आप अपने पार्टनर के प्रति वफ़ादार रहें और साथ में यह भी कहीं कहीं लिखा होता है कि जहां ज़रूरत हो वहां पर कंडोम का इस्तेमाल भी ज़रूर करें।

मुझे लगता है कि पढ़े-लिखे लोगों में कैजुएल सैक्स का डर तो है लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहिये। और कम पढ़े लिखे लोग और घरों से बाहर दूर-दराज नगरों में रहने वालों लोगों में तो जोखिम और भी है।

पता नहीं क्यों सैक्स के बारे में हम लोग अपने घर में अपने बच्चों के साथ खुल के बात क्यों नहीं करते ---अगर बाप अपने बेटे को और मां अपनी बेटी को समझा के रखे तो यौन रोगों से बचे रहने में काफ़ी मदद मिल सकती है।

यह जो आज पोर्नोग्राफी खुले आम बिक रही है --- इस ने भी सारी दुनिया के सीधे सादे लोगों की ज़िंदगी में आग सी लगा दी है। उस का तजुर्बा करने की ललक कुछ लोगों में जाग उठती है। वे यह भूल जाते हैं ये तो पोर्न-स्टार हैं ---कलाकर हैं ---- और यह भी तो नहीं पता कि ये किन किन भयानक बीमारियों से ग्रस्त हैं। क्योंकि यौन रोगों से ग्रस्त रोग अकसर देखने में स्वस्थ दिखते हैं

और कितनी भी कोई सावधानियां बरत ले, यह यौन-विक़तियों वाला खेल तो आग से खेलने के समान है ही। पिछले कुछ दिनों से मैं कुछ रिपोर्ट देख रहा हूं कि अमेरिका जैसे अमीर देश में भी यौन रोगों के केस बहुत तेज़ी से  बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में इन यौन रोगों का दंश सब से ज़्यादा महिलायें सहती हैं। अकसर पुरूष लोग अपनी इस तरह की तकलीफ़ों को बताते नहीं ----बस यूं ही सब कुछ चलता रहता है और बीमारी आगे फैल जाती है। वैसे तो कुछ यौन रोगों के इलाज का तो नियम ही यही है कि मर्द-औरत का इलाज एक साथ हो -----ताकि बीमारी का पूरा सफाया हो सके।

यह इतना पेचीदा विषय है कि जब भी मैं इस के ऊपर लिखने लगता हूं तो यही लगता है कि कहां से शूरू करूं ------बस, ऐसे ही जो मन में आता है लिख देता हूं। लेकिन एक बात तो तय है कि अकसर जो छोटे मोटे यौन रोग दिखते हैं जिन की वजह से यौनांगों पर छोटे छोटे घाव से हो जाते हैं ऐसे रोग इन घावों की वजह से एच-आई-व्ही संक्रमण जैसे रोगों को भी निमंत्रण दे देते हैं। 

कोई समाधान तो हो कि आदमी का ध्यान बस इन सब में ही गड़े रहने से बचा रहे ----कोशिश की जाए की बच्चों को बचपने से ही अच्छे अच्छे संस्कार दिये जाएं ---और यह नियमित तौर पर किसी सत्संग में जुड़े रहने के बिना संभव नहीं है। और बच्चों को शारीरिक परिश्रम करने की आदत डाली जाए ---- सात्विक खाना खाएं और जिस कमाई से यह सब आ रहा है वह भी इमानदारी की हो , और बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार रखा जाए ताकि आप उन की अवस्था के अनुसार ये सब मुद्दे उन के साथ डिस्कस भी कर सकें और वे भी अपना दिल की बातें आप से बांटने में संकोच न करें---- I think that's the only survival kit for saving the younger generation from being swept by this notorious hurricane of sexual perversions ----pre-marital sex, extra-marital affairs, group sex, swaps, sex parties and so on and so forth --------- as I say one's imagination is the limit, really !!!