बुधवार, 9 मार्च 2016

जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो...

न्यायपालिका की तरफ़ ध्यान बहुत बार जाता है ... अखबार पढ़ते हुए भी, खबरें सुनते देखते हुए..आज भी जब यह खबर दिखी कि सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच ने यह पूछा कि धूम्रपान से कैंसर होता है इस का क्या प्रूफ है?...उत्सुकता हुई खबर पूरी पढ़ने की .. जजों ने आगे कहा कि कुछ लोग धूम्रपान नहीं करते और उन्हें कैंसर अपनी चपेट में ले लेता है..और कुछ सिगरेट-बीड़ी पीने वाले जीवन पर्यंत हट्टे-कट्टे रहते हैं।

इस बात को इधर ही छोड़ते हैं...इसे इतना तूल देना ठीक है...सच्चाई हम सब जानते हैं।

न्यायपालिका की याद पिछले दिनों भी याद आई जब कन्हैया को कुछ वकीलों ने कोर्ट में ही दबोच लिया... बड़ा अजीब लगा..अजीब ही नहीं, इस बात की जितनी निंदा की जाए कम है।

और याद है जिस दिन कन्हैया को घसीटने-धकेलने की वारदात हुई उसी दिन या अगले दिन ही एक बेवकूफ का प्राणी किसी चैनल पर बार बार यही कह रहा था कि जब कन्हैया को वकीलों ने पकड़ा हुआ था, तो वह बड़ा विवश, डरा-सहमा लग रहा था, उस बंदे की बेवकूफी पर मैं आहत हुआ...भई, अगर तेरे को इतने लोग पकड़ लेंगे तो पट्ठे तेरा भी यही हाल होगा!

उन्हीं दिनों काजल कुमार जी के कार्टून भी कुछ इसी अंदाज़ में दिखे ...


कोर्ट-कचहरी की महानता का ध्यान अकसर रोज़ उस समय भी आता है जब अखबार के हर पन्ने से नेताओं के फोटो गायब दिखते हैं...सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले से सब कुछ कितना सहज हो गया है...केवल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति और एक दो अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की ही फोटो सरकारी विज्ञापनों में छप पाएगी। बहुत ही बढ़िया निर्णय है ...

बस करता हूं ..बोर हो जाएंगे आप या हो चुके होंगे... याद मुझे न्यायपालिका की तब भी आती है जब बीच बाज़ार किसी रिक्शेवाले या आटोवाले को पिटता देखता हूं...कारण कुछ भी हो, जब कानून है तो कानून को अपना काम करने दो..

कल भी बाद दोपहर मैं विधानसभा के पास ही गुज़र रहा था ... अचानक देखा कि कुछ लोग इक्ट्ठे हए हैं..और एक २०-२२ वर्ष के युवक पर अपना गुस्सा निकाल चुके थे... यह जनाक्रोश है, भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, जिस का मन चाहे आ कर दो हाथ जमा जाए...यह निंदनीय है ...ज़ुर्म कुछ भी हो, पुलिस है, कानून है ...और वैसे भी इतना पीट कर कौन सा उस बंदे को आप छोड़ने वाले हैं, उसे फिर भी पुिलस के हवाले तो कर ही देते हैं....है कि नहीं, तो फिर बिना वजह इतनी भड़ास क्यों....

क्या लिखूं, थोड़ी जल्दी है, आज गूगल ने यहां ताज होटल में एक सेमीनार में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है, वहां के लिए निकल रहा हूं...आप से शेयर करूंगा वहां जो भी सीखने को मिला... लेकिन यह जो अकेले को देख कर भीड़ का उस पर टूट पड़ना मुझे बहुत दुःखी करता है.....और जब तक कानून अपना काम नहीं कर लेता, मैं हर बार अपने आप को तराजू के हल्के पलड़े वाले की तरफ़ ही अपने आप को खड़ा पाता हूं.....पराजित, उपेक्षित, शोषित, बिना आवाज़ वाले किसी भी बंदे के साथ...इस का परिणाम कुछ भी होता हो, परवाह नहीं!

गुज़रात दंगों की एक तस्वीर 
वैसे भी जब भी मैं इस तरह की बेकाबू भीड़ देखता हूं, तब तब मुझे गुजरात के दंगों के एक शिकार की याद आ जाती है..अभी भी मैंने gujarat riots photo victim लिख कर गूगल किया तो यह तस्वीर तुरंत सामने आ गई... इस तस्वीर ने बहुत तहलका मचाया था। आप इस का नाम जानना चाहते हैं?..क्यों भई क्यों?.... इक इंसान है, क्या इतना काफी नहीं है!

एक बात अपने आप को भी निरंतर याद दिलाता रहता हूं एक गाना सुन के और आप सब को याद दिला लेना चाहता हूं कि कभी भी किसी भीड़ का हिस्सा बनने को मन करे तो इस बात का ध्यान ज़रूर कर लीजिएगा...आप भी मेरी तरह चुपचाप वहां से निकल लेंगे... इसे सुनिएगा ज़रूर....नसीहत पर भी ध्यान दीजिएगा।






रविवार, 6 मार्च 2016

अच्छा तो यह है धतूरा ...

हमारी कालोनी के बाहर सब्जी मंडी लगती है ..रविवार के दिन...उधर से गुजर रहे थे तो एक दुकानदार ने अलग तरह की सब्जी रखी हुई थी...मैंने पहले भी इस ब्लॉग पर लिखा है कि मैंने लखनऊ में आकर बहुत सी नईं नईं सब्जियां देखी हैं और खाई भी हैं...

धतूरा ...
मैं भी आदत से मजबूर... जिज्ञासा का क्या करता?...पूछ ही लिया...भैया जी, यह कौन सी सब्जी है?...मेरी बात सुन कर वह तो हंस पड़ा और उस की एक ग्राहक मेरे मुंह को ताकने लगी....तब भैया जी ने खुलासा किया.. यह धतूरा है।

उसी समय मेरे मन में यह विचार आया कि धतूरा तो कुछ गड़बड़ चीज होती है ... सुनते हैं कि यह नशा है... शायद यह कोई और धतूरा होगा जो इस तरह से िबक रहा है। 

उस दुकानदार ने बताया कि यह जहर है, अगर इन दो को आप खा लेंगे तो दो दिन उठ नहीं पाएंगे... यह खाने की चीज नहीं है, यह पूजा की चीज़ है। 

कल शिवरात्रि है ..भोले बाबा की पूजा के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता है .. 


आगे बताने लगा कि दस रूपये में पूजा के लिए एक धतूरा, बेल पत्र और बेर दे रहे हैं.. कल २१ रूपये में भी नहीं मिलेगा...गांव में ढूंढ कर लाते हैं... यहां बिकेगा तो ठीक, वरना अभी ५०० रूपये के १०० धतूरे के हिसाब से ये अभी कोई ले जायेगा...

धतूरा ऐसे बिक रहा है ...हैरानगी हुई .. मुझे नहीं पता कि यह ऐसे बिक सकता है कि नहीं, लेकिन वही बात है ...यह१२५ करोड़ लोगों का देश, अलग अलग आस्थाएं, अलग अलग विश्वास....इस देश को चलाना भी एक चुनौती ही है , हम लोग अपनी अपनी ओपीडी ही ठीक से चला कर खुश हो लेते हैं...indeed a great challenge...

शिवरात्रि की मेरी यादें ...बस यही हैं, एक तो यह गीत जो ऊपर लगा दिया है ...दूसरा यह कि मेरे पिता जी वैसे तो आस्तिक नहीं थे, दुनियावी दृष्टि से इधर उधर बिल्कुल भटकते नहीं थे, भ्रांतियों से कोई लेना देना न था ..लेिकन एक बेहतरीन शख्स थे... full of humane qualities... धर्म के नाम पर उन्हें शिवरात्रि के दिन शिव जी का ब्याह सुनना बहुत अच्छा लगता था... ज़रूर सुनते थे .. The biggest lesson taught to us by our father is...All humans are equal and always be kind to the person who is less fortunate than you!

और शिवरात्रि की याद यह कि होस्टल में एक बार इस मौके पर किसी ने भांग के पकौड़े खिला दिये थे ..बहुत से छात्र अस्पताल में दाखिल हो गये थे.. और एक दुःखद याद कि १९८६ या १९८७ के आसपास अमृतसर के भाईयां शिवाले में शिवरात्रि के दिन एक बहुत बड़ा धमाका हुआ था...वे आतंकवाद के दिन थे..यह शिवाला हमारे होस्टल से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर था.. 

कैलाश खेर का यह गीत याद आ गया... दो साल पहले इसे कैलाश खेर के एक लाइव प्रोग्राम में सुना था..प्रोग्राम के बाद जिस गर्मजोशी से कैलाश खेर से मेरी बात हुई...बेटे ने बाद में मुझे पूछा कि क्या वह आप को पहले से जानते हैं?...मैं क्या जवाब देता, हंस कर टाल गया। याद है उस प्रोग्राम में लोग झूम रहे थे कैलाश खेर के साथ....

हर तस्वीर कुछ कहती है, अगर हम सुनने की परवाह करें तो ..

यह बात मैं बहुत बरस पहले समझ गया था... एक बहुत मशहूर कहावत है कि एक एक तस्वीर १००० शब्दों के बराबर है ..एक ज़माने में जब मैं online story-telling के कोर्स पे कोर्स किए जा रहा था तो यह बात बात बार बार सुनने को मिलती थी अकसर...और उन्हीं दिनों यह भी समझ में आ गया कि यह १००० शब्दों वाली बात तो है ही, इस के साथ साथ हर तस्वीर बोलती भी है...हम से कुछ चीख चीख कर कहना चाहती है ...थोड़ी फुर्सत तो निकालइए...

मेरे शौक भी कुछ कुछ दिनों बाद बदल जाते हैं.... कुछ भी नया देखता हूं..ट्राई करने की कोशिश तो करता ही हूं...just experimentation!

पिछले कुछ महीनों के दौरान शेयरो-शायरी का शौक चढ़ गया था... खूब पढ़ा बड़े बड़े शायरों को ... और उन के खूबसूरत विचारों के पोस्टर बना कर शेयर भी बहुत किया...एक दिन अचानक लगा, यह तो कोई बात नहीं हुई..उन्होंने जो बात कहने थी, वे कह गये, उन के अपने अनुभव थे, वे दर्ज़ कर गये ...लेिकन हमारे (मेरे) पास जो अपने हर तरह के अनुभवों को पिटारा है उन का आचार डालें?.... वे किस काम के?

मैं हरेक को अपने विचारों को, अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने के लिए प्रेरित किया करता हूं...इस के लिए कोई बहुत बड़ा बुद्धिजीवी भी होने की या दिखाने की भी ज़रूरत बिल्कुल नहीं है, पहले बचपन में हम लोग स्क्रैप-बुक में कुछ भी लिख लिया करते थे, फिर डायरी लिखनी शुरू की... एक ब्लॉग भी शुरू किया ...डायरी की तरह का ही ...मेरी स्लेट के नाम से ...बहुत समय तक वह खुला रहा लेकिन एक दिन पता नहीं क्या सूझी उसे पर्सनल कर दिया....

आप जो भी लिख रहे हैं, यह कहां ज़रूरी है कि उसे कोई पढ़े ... पढ़े तो अच्छा, न पढ़े तो और भी अच्छा...लिख तो आप अपने लिए रहे हैं.. क्योंकि आप को अच्छा लगता है .. आप हल्कापन महसूस करते हैं लिखने के बाद...बात इतना मासूम सा कारण है!

पिछले कुछ दिनों से मुझे अपने अनुभवों के आधार पर Quotes लिखने को शौक लग गया है ...जिन तस्वीरों के ऊपर ये जो Quotes लिखे हुए हैं ये भी मेरे द्वारा ही खींची गई हैं.. अच्छा लगता है, पहले कभी कभी मैं दूसरों के Quotes कापी कर लिया करता था, वह सिलसिला कैसे टूटा अभी बताता हूं, पहले आप कुछ Picture Quotes देखिएगा जो मैंने पिछले कुछ दिनों में बनाए हैं... बड़ा आसान है .. आप के पास कोई भी तस्वीर है, उस के बारे में कुछ भी कहने से शुरूआत तो कर के देखिए... शुरू शुरू में थोड़ा शायद पक जाएं, लेकिन फिर अच्छा लगने लगता है... कोशिश करिएगा... शेयर करना हो तो करिए, नहीं तो अपने पास ही रखे रखिए छुपा के दबा के, मैं तो वैसे शेयर करने में विश्वास करता हूं..




















 इन तस्वीरों को यहां पेस्ट करते समय एक तस्वीर मेरे स्कूल के मैगजीन की भी दिख गई...१९७७ के समय की ...अमृतसर शहर की ४०० वीं जयंती के विषय पर स्कूल की पत्रिका प्रकाशित हुई थी...मैंने भी उस समय कुछ लिखा था इंगलिश में...समाचार-पत्रों में प्रकाशित मेरे लेखों का मुझे कुछ पता नहीं कि वे कहां हैं ..अभी हैं भी या नहीं, लेिकन स्कूल के मैग्जीन में छपे ये लेख तो स्पेशल हैं ही ...


बस, यही कह कर इस पोस्ट को बंद करूंगा कि आप सब से भी यही अनुरोध है कि कंटेंट में नयापन लाने की कोशिश करिए... जो भी मन में है कापी में लिखना शुरू करिए, डायरी लिखिए, अगर ऑन-लाइन अपना ब्लॉग लिखना चाहते हैं तो शुरूआत तो करिए...कोई मुश्किल हो तो बिंदास मुझे भी िलख सकते हैं (drparveenchopra@gmail.com)..

हां, मैंने कैसे अचानक ये Quotes लिखने शुरू कर दिए.... मैंने बताया न कि मैं पहले दूसरे लोगों के Quotes वाट्सएप पर शेयर कर दिया करता था ... जब भी मेरी मां जी को यह मिलता..उसे वाट्सएप पर पढ़ती या मेरी किसी डॉयरी में मेरे द्वारा लिखा हुआ देखती तो मुझे अकसर पूछती हैं .... ऐह तू लिखया? ( क्या यह तुमने िलखा है?).... जब मैं कुछ बार यह कह कर के ऊब सा गया कि नहीं, किसी और ने कहा है, बस लिखा मैंने हैं........मेरी यही प्रेरणा रही कि अपनी बात, अपने अल्फ़ाज़ में रखते हैं, अपने ज़िंदगी के पन्नों के बारे में लिखते हैं......बस, अब यही सोचा है कि अपने अनुभव की ही बात करेंगे, वरना चुप रहेंगे....आप का क्या ख्याल है?

मेरी पसंद का एक गीत सुनते हैं...इस के याद रहने का एक और भी कारण है... कुछ साल पहले मुझे सर्जरी के लिए आप्रेशन थियेटर में ले जाया गया...किसी प्राईव्हेट अस्पताल में जयपुर में...लेिकन अंदर टीम भी एफ.एम की शौकीन ...मुझे अच्छे से याद है कि एनेस्थिसिया दिए जाने से पहले उस आप्रेशन थियेटर में यही गीत बज रहा था...



बुधवार, 2 मार्च 2016

चाइनीज़ मंझा इतना खतरनाक है आज जाना

खबरों में तो पढ़ लिया करते थे कि पतंगबाजी के चक्कर में चाइनीज़ मंझा की वजह से यह हादसा हो गया, वह हो गया..लेकिन खबरें तो खबरें ही होती हैं न, शायद कभी इस के बारे में सोचा नहीं, शायद पतंगबाजी का शौक नहीं यह भी कारण हो सकता है..

लेकिन जब कोई चीज़ आप अपनी आंखों से देख लेते हैं (बिल्कुल ब्रह्मज्ञान की तरह!) ..तो उस पर यकीं हो जाता है।

आज मेरे पास एक मरीज़ आया तो उस के साथ उस की बिल्कुल छोटी सी बच्ची थी..यही तीन चार साल की रही होगी...थोड़ा दूर खड़ी थी...दूर से देखने पर मुझे ऐसा लगा जैसे कि उसे कोई चमड़ी की तकलीफ़ होगी...

लेिकन उस के पिता ने तुरंत बताया कि नहीं, यह तो इस का माथा चाईनीज़ मांझे की वजह से कट गया था...

चाईनीज़ मांझे से कटने के बीस दिन बाद यह हालत है..टांके खुल गये हैं
बीस दिन पहले ये लोग मोटरसाईकिल पर आ रहे थे..यह बच्ची अपने पिता के आगे बैठी हुई थी कि अचानक एक डोर के अटकने से यह हादसा हो गया... वही जिसे चाईनीज़ मंझा कहते हैं..

तुरंत रक्त बहने लगा... बहुत ज़्यादा ... सभी कपड़े खून से लथपथ हो गये... तुरंत इसे अस्पताल ले जाया लगा...जहां इसे १२ टांके लगे .. हफ्ते बाद टांके खुल गये... आज इस के माथे की यह स्थिति है जिस की फोटो मैंने यहां लगाई है।

मैं जब इस बच्ची के माथे की फोटो लेने लगा तो इस के पिता ने बताया कि सर, इस की फोटो तो मैंने तुरंत खींच कर मुख्यमंत्री के ट्विटर हैंडल पर भेज दी थी...जी, आप बिल्कुल ठीक पढ़ रहे हैं ...एक बाप द्वारा इस तरह के दुःखद हादसे की खबर तुरंत मुख्यमंत्री को टवीट कर दी गई कि इस तरह की हानिकारक उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

मैं मन ही मन इस आदमी की जागरूकता की प्रशंसा कर रहा था...मुझे वह भी ध्यान आ रहा था कि लोगों ने किस तरह से रेल मंत्री को टवीट किया और रेल यात्रा के दौरान ही उन की परेशानियां भी दूर हो गईं..मीडिया में पिछले दिनों खूब आया...किसी यात्री के पास डाक्टर हाजिर हो गया, किसी के पास दवाईयां, किसी शिशु के कोच में दूध पहुंच गया, तो किसी महिला यात्री को उस का खोया पर्स मिल गया...

जब आप इस तरह की चोट के बारे में सुनते हैं तो यकीन नहीं न होता कि एक डोर के कटने से कुछ इस तरह का हो गया को बारह टांके लगवाने की नौबत आ पहुंची हो ..मैं जब अपने ही बचपन की याद करता हूं तो डोर से ज़्यादा से ज़्यादा क्या होता था अंगुली पर छोटी मोटी खरोंच आ जाती थी...बस....लेकिन यह जो बारह टांके वाली बात तो मेरे सामने थी...मैं आज पहली बार इस तरह की किसी चोट को देख रहा था...

तभी उस के पिता ने कहा कि सर, मेरे मोबाइल में कुछ फोटो तो थीं लेिकन बच्ची और उस की मां उसे बार बार देख कर परेशान हो जाया करती थीं, इसलिए मैंने डिलीट कर दीं...लेिकन एक फोटो जो मैंने अपनी भाई को व्हाट्सएप पर भेजी थी, उसे देखता हूं, अगर है तो उसे आप को भेजता हूं ... शेयर-इट पर....उसने वह तस्वीर तुरंत मुझे भेजी जिसे मैं यहां लगा रहा हूं....

मैं उस तस्वीर को देख कर हैरान रह गया कि एक मांझे की वजह से इस तरह से भयानक चोट भी आ सकती है। ठीक ही सुनते हैं कि किसी का गला कट गया इसी तरह के मांझे की वजह से ..अखबार में आती रहती हैं खबरें...यह जो आप इस तस्वीर में देख रहे हैं यह तस्वीर अस्पताल आने के बाद की है... जब टांके लगवाने के लिए इस के बाल काट दिये जा चुके थे..

टांके लगने से पहले की तस्वीर से आप को इस भयानक चोट का अंदाज़ा होगा
यकीनन बच्ची ने बड़ा कष्ट सहा होगा इस चोट की वजह से... यह इस ज़ख्म की तस्वीर से ही पता चलता है .. मैं इन फोटो को यहां लगा भी इसलिए रहा हूं ताकि इस के बारे में जागरूकता और अधिक पैदा की जा सके.... और लोग यकीन करने लगें की हां, चाईनीज़ मांझा काट देता है....यह आदमी मुझे बता रहा था कि इस मांझे को अगर कोई हाथ से काटना चाहे तो उस का हाथ बुरी तरह से कट जाता है, डोर नहीं टूटती.. इसे केवल ब्लेड और चाकू से ही काटा जा सकता है....

मैं यही सोच रहा था उस से बात करता हुआ कि मांझा न हुआ, रामपुरी चक्कू हो गया...दफा करो यार, इस पतंगबाजी के शौक को जिस से पता ही नहीं कौन कट जाए, अगर पेन्च लगाने वाला बच गया तो पता नहीं कौन राहगीर कहां कट जाए....आप कल्पना कीजिए कि अगर यह मांझा इस बच्ची के माथे की बजाए इस की आंखों पे आ जाता या गले पर ....कितने भयंकर परिणाम निकल सकते थे...बच गई यह बच्ची, शुक्र है।

प्रतिबंध की बात कर ली जाए...सुनते तो रहते हैं कि प्रतिबंध लगा हुआ है ...लेिकन उस के बारे में मेरा यह विचार है क प्रतिबंध तो वैसे बहुत ही चीज़ों पर लगा हुआ है लेकिन फिर भी धड़ल्ले से बिकती रहती हैं.. ऐसे में यार सरकार क्या क्या करे, नागरिकों की भी तो कोई जिम्मेदारी है कि नहीं, कम से कम इतनी तो है ही कि इस तरह का लेख पढ़ कर बच्चों को कभी भी इस तरह की डोर खरीदवाने के लिए न जाएं...बड़ा प्रश्न यही है कि डोर चाईनीज़ है या देशी, इस का भेद कैसे पाएंगे......मुझे इस का बिल्कुल भी अनुभव नहीं है लेकिन कौन दुकानदार चाईनीज़ मांझा कह के बेचता होगा....अकसर सुना है कि इन चाइनीज़ चीज़ों में मोटी कमाई होती है, इसलिए ये बिकती भी खूब हैं।

शायद कोई पाठक यह भी सोच रहा होगा कि तुम तो बात कर रहे हो मांझा न खरीदने की, न इस से पतंगबाजी करने की, लेिकन बच्ची का क्या कसूर.... मैं भी यही सोच रहा हूं सुबह से .......but then it is life!....केवल हम नहीं करते यह सब कुछ, इसलिए हम अपने आप को सुरक्षित महसूस कर लें, यह बात नहीं है, हम सब को एक जुट हो कर इन जानलेवा चीज़ों का बहिष्कार करना होगा...न ही खरीदें, न ही इस्तेमाल करें और आस पास भी इस के बारे में एक अभियान शुरू करिए। क्या ख्याल है?..

इन चीज़ों के बारे में ढिंढोरा पीटना होगा...वैसे मैंने भी तो वही किया है ...बस, इतना आग्रह है कि इसे आगे भी शेयर अवश्य करिएगा... वैसे मैं किसी पोस्ट को आगे शेयर करने के लिए कभी कहता नहीं हूं....क्योंकि मैं भी तब तक किसी बात को आगे शेयर नहीं करता जब तक मैं उस की प्रामाणिकता से संतुष्ट नहीं हो जाऊं। लेिकन यह मसला ही ऐसा है कि इस के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता फैलाए जाने की ज़रूरत है...

 इसे देख कर अगर कुछ याद आया हो तो हाथ खड़े करिए..
मांझे की बात हुई, डोर की हुई...हम लोग पंजाबी में इसे डोर कहते हैं ... आप को ज़रूर पता होगा कि डोर नाम की एक बेहतरीन हिंदी फिल्म भी है ... one of my favourites ... I recommend it to you...please watch it ...अगर डीवीडी नहीं भी मिले तो यू-ट्यूब पर ही मिल जाएगी...देखिएगा इसे ..जैसे इस बच्ची के पिता ने हौसला दिखाया ..टवीट हैंडल इस्तेमाल करने का इस तरह की सिचुएशन में भी ...यह फिल्म भी एक लड़की की हिम्मत की ही बात करती है ....मुझे अभी इस का यह गीत ध्यान में आ रहा है... सुनिएगा... लिरिक्स पर ध्यान दीजिए....



नकल का इलाज काश इतना आसान होता!

सुबह उठ कर रेडियोसिटी एफ एम ऑन किया तो यह बढ़िया सा गीत चल रहा था...यही बात तो मैंने सत्संग ही से समझी है और इसे पक्का करने ही तो वहां जाता हूं ...

"जिस को ढूंढे बाहर-बाहर... वो बैठा है भीतर छुप के 
तेरे अंदर एक समंदर, क्यों ढूंढे तुबके तुबके...
अकल के परदे पीछे कर दे, घूंघट के पट खोल..."


यह गाना बज ही रहा था कि आज के पेपर में एक तस्वीर पर नज़र पड़ गई...अंडरवियर पहन कर कुछ युवा जमीन पर बैठ कर कुछ लिख रहे थे..थोड़ा अजीब सा लगा ...लेकिन फिर ध्यान आया कि होगा, किसी पुलिस या फौज की भर्ती की शारीरिक दक्षता का टेस्ट चल रहा होगा...और नीचे बैठ कर कुछ नाम पता लिख रहे होंगे अपना..



लेकिन ऐसा नहीं था, जब पूरी खबर पढ़ी तो बहुत दुःख हुआ... इस तस्वीर में जो युवा आप को दिख रहे हैं वे फौज में भर्ती के लिए अपनी लिखित परीक्षा दे रहे हैं...

नकल रोकने के लिए यह कैसी व्यवस्था हो गई...कोई बात नहीं, मैंने तो खबर आप तक पहुंचानी थी, इस तरह से परीक्षा लेने वालों की अब क्लास लगेगी.....और ज़रूर लगनी भी चाहिए।


यह तो मैं नहीं कहूंगा कि यह मानव अधिकारों का हनन है ....शायद ऐसा लिखना एक एक्टिविस्ट की भाषा ज़्यादा लगती हो....लेकिन नामकरण आप कर लें, आराम से बैठ कर पेपर लिखने के एक अधिकार का हनन तो है ही यह।


इस के बाद इस पेपर के संपादकीय पर नज़र पड़ गई जिस में संपादक महोदय ने नकल का इलाज सुझाया है...इसे आप भी इस लिंक पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं...बात सही कही गई है।


कल परीक्षाएं शुरू हुई हैं ...स्कूलों विश्वविद्यालयों की ... आज की अखबार में छाई हुई हैं उन की खबरें.. एक झलक देखना चाहेंगे तो देखिए...



इस के बाद जैसे ही अंग्रेज़ी का पेपर उठाया, उस में भी पेपर देते वक्त जिस तरह से छात्रों को ज़मीन पर नीचे बैठे देखा ...दुःख हुआ...पहली तो बात यह कि शायद आज के युग में सभी लोग नीचे इतना समय बैठ ही नहीं पाते...सत्संग में मुझे एक डेढ़ घंटा बैठना पड़ता है तो मुझे नानी याद आ जाती है...मैं मन ही मन सोचने लगता हूं कि अब हो गया न यार, कब खत्म होगा यह...दो िमनट भी ऊपर हो जाएं तो आस पास देखने लगता हूं...हम शायद ही यह कल्पना कर पाएं कि इस तरह से बैठ कर लिखना कितना कठिन होता होगा.. और वह भी एक महत्वपूर्ण परीक्षा जिस के नतीजों पर इन छात्रों का भविष्य टिका रहता है ..लिखना तो मुश्किल है ही ....क्या इस तरह से बैठ कर दिमाग भी चल पाता होगा... इसे यथार्थ के धरातल पर ताकिए....

नीचे बैठने के बिल्कुल कोरे कोरे से आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक कारण मैं भी जानता हूं लेकिन सच्चाई यह भी है कि एक छात्र तो इस तरह से अमानवीय स्थिति (इस शब्द का इस्तेमाल कर लूं, यहां अब कुछ भी लिखने से पहले इजाजत लेनी पड़ती है...) या निंदनीय स्थिति कह लूं...जो भी आप को ठीक लगे... में बैठ कर परीक्षा दे रहा है और दूसरा एक खुशकिस्मत छात्र किसी बड़े स्कूल के वातानुकूलित हाल में बैठा अपना पर्चा लिख रहा है ... न ही पहले वाले छात्र को ग्रेस मार्क्स दिए जाएंगे, न ही परीक्षा जांचने वाले को यह दिखेगा कि पर्चा लिखते समय उस के पास बैठने के लिए डेस्क-बेंच था भी कि नहीं, और न ही परीक्षा फल पर ही इस बाबत कोई एंट्री ही होगी....कम से कम एक प्रावधान तो किए जाए कि उत्तर पुस्तिका के बाहर वाले पन्ने पर यह लिखना अनिवार्य कर दें कि परीक्षा बेंच पर बैठ कर दी थी या नीचे ज़मीन पर ... 



हम अपने समय भी बात करते हैं तो हम भी कोई धर्मात्मा थोड़े न थे....जब मैंने पिछले साल अपने बेटे को कहा कि यार, साथ वाले से पूछ लेते इत्ती सी बात तो उसने मुझे हड़का दिया था... मैंने उसे इस लेख में लिखा था लगभग एक साल पहले ....अभी याद आया तो लिंक दे रहा हूं...नकल तो मैंने भी की थी ..(इस पर क्लिक कर के आप इसे पढ़ सकते हैं) ...

हम लोगों के ज़माने में तो पहले हम सब लोग परीक्षा से पहले अपने अपने बेंच चेक करते थे कि ज़्यादा हिल-जुल तो नहीं रहा...अगर ऐसा होता तो हम चेंज करवा लिया करते... और शायद कुछ छात्र अपने डेस्क पर कुछ कुछ लिखने का थोड़ा बहुत पास होने लायक जुगाड़ कर लिया करते थे... चलिए राज़ की बात को राज़ ही रहने देते हैं! लेकिन जब कभी सीटिंग अरेंजमेंट ऐन परीक्षा से पहले बदल दिया जाता तो उन्हें बहुत परेशानी हुआ करती थी..

आगे क्या लिखूं....यह टॉपिक ऐसा है ..जितना लिखेंगे उतना ही कम है...बात बस इतनी है कि कम से कम कोई परीक्षा लेते समय प्रबंधकों को छात्रों की सुविधा का ध्यान तो रखना ही चाहिए... वैसे तो सभी बहुत समझदार हैं, और समझदार को इशारा ही काफ़ी होता है..

विषय बहुत सीरियस हो गया...तस्वीरें देख कर मुझे पता है आप को भी गुस्सा तो आ रहा होगा..... don't worry...आज अखबार में आ गया है, कल से कुछ बदलाव तो ज़रूर होगा...तब तक आप इस पंजाबी गीत को सुन कर मन थोड़ा हल्का कर लें...

हज़ारों पंजाबी गीत सुनने के बाद मैंने यह पाया कि सुखबीर के इस गीत की एनर्जी कुछ ऐसी है कि जो आदमी मन से बीमार है यह उसे भी एक बार तो उछलने पर मजबूर कर दे... पंद्रह बीस साल से गीत चल रहा है ..देखता हूं कि पार्टियों में किस तरह से यह जश्न का माहौल बना देता है ... याद है कुछ साल मैंने यू-ट्यूब पर एक मराठी वेश-भूषा में दिखने वाली अधेड़ महिला को इस की धुन पर डांस करते देखा ...आज भी उस वीडियो को आप के िलेए फिर से ढूंढा.... इस महिला को डांस में से १० से १० मार्क्स....पूरे मन से कर रही हैं यह डांस....मुझे तो एक बार ऐसे लगा कि यह शायद पंजाबी भाषा को समझती हों, लेकिन फिर ध्यान आया कि संगीत की, जश्न की, नृत्य की भी क्या कोई भाषा होती है ....यह लोगों को जोड़ देता है, उन के चेहरों पर खुशियां लाता है ... मस्त कर देता है सब को ...मुझे भी इस गीत के लिरिक्स और संगीत बहुत पसंद है ...सुनिए आप भी ..