शुक्रवार, 18 मार्च 2016

माल्या के मायाजाल से हमें क्या लेना देना...

पिछले दिनों मुझे मेरा आयकर जोड़ने की तरफ़ इतना ध्यान नहीं था, जितना यह पता करने में मन बेचैन था कि आखिर किन किन बैंकों के करोड़ों निकल गये...है कि नहीं बिना वजह अपने दिमाग पर जोर देने वाली बात... माल्या के मायाजाल से मुझे क्या लेना देना...यह बहुत बड़ी खेल है, मंजे खिलाड़ियों के बस का है यह सब ...आम आदमी के तो छोटा मोटा हज़ारों का लोन लेने में जूते घिस जाते हैं ...इतनी औपचारिकताएं, यह लाओ, वो लाओ. यह गवाही, वह कागज़ात, इतनी फोटो...आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड.

दो िदन पहले मुझे माल्या की बहुत याद आ रही थी..मैं यही सोच रहा था कि उस बंदे ने इतना बड़ा काम कैसे कर लिया...यहां मुझे तो बैंक में इंक्म टैक्स जमा करवाना था, पानी बरस रहा था, उस बंदे ने मेरा ऐसा इंटरव्यू लिया ..कहां का खाता है, आप कहां रहते हो, यह इंक्म टैक्म इस ब्रांच से पहली बार भर रहे हो...बस, वह जैसे मुझसे यह जाना चाह रहा हो कि मेरे पास इस समय क्या नहीं है। आखिर सवाल में मैं पकड़ लिया गया, जैसे ही उसने पूछा कि पैन कार्ड है, मैंने कहा, इस समय तो नहीं है...उस ने बस उसी आफिस आफिस सीरियल की तरज पर कह दिया ..नहीं हो पायेगा तब तो। मैंने कहा कि भाई, सीबीएस ब्रांचें हैं आज कल... पैन दिया तो ही खाता खुला ...

ऩहीं, वह नहीं माना.. मैंने कहा, अच्छा मैं लेकर आता हूं...उसे उस में भी तकलीफ़, कहां रहते हो, मैंने कहा ..यहां से पांच मिनट की दूरी है, आ जाऊंगा...कहने लगा, ले आओ, देखते हैं, अगर टाइम हुआ तब तक तो .....मैं गया, पैन ढूंढा, कापी करवाई, उस के पास पहुंचा, उस ने पैन की तरफ़ देखा भी नहीं, साथ बैठी अपनी एक महिला कुलीग की तरफ़ मुझे भेज दिया कि इन का भी टैक्स भरना है।

हो गया, लेकिन फिजूल की धौड-धूप ...पता नहीं मुझे तो अब बैंक के नाम से ही डर लगने लगा है...कापी अपडेट करवानी हो तो आटोमैटिक प्रिंटिंग मशीन या तो ठीक नहीं होती, या तो उस में पासबुक फंस जाती है, दो तीन बार मेरे साथ हो चुका है, नहीं तो पासबुक प्रिंट करने वाला प्रिंटर खराब चल रहा है, अगर वह ठीक है तो नेटवर्क नहीं है, अगर नेटवर्क है तो स्लो है, अगर सब कुछ है तो आज उस सीट पर कोई है ही नहीं...और भी कईं तरह के पचड़े हैं, मुझे तो बैंक जाने में ही बड़ा आलस आता है ..मजबूरी होती है, पांच छः महीने में एक बार तो जाना ही पड़ता है ...वरना एटीएम बढ़िया है...

हां, तो बात तो माल्या साहेब की हो रही थी, बीच में मैं अपने संस्मरण कहां से ले आया?...तीन दिन पहले मुझे पता चला कि एक लिस्ट आई है पेपर में बैंकों की लिस्ट के साथ कि किस किस बैंक ने कितने कितने करोड़ कर्ज दिया...

कल फिर से पेपर में यह देखा तो इत्मीनान हुआ.... अपनी आंखों से देख कर ... स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इस लिस्ट में टॉप कर रहा है, इसने माल्या को १६०० करोड़ का उधार दे दिया। इस सूचि में टोटल १७ बैंक हैं जिन्होंने ५०- ६०-१५०-३००-४००-५००-६००-८००करोड़ का कर्ज़ माल्या साहेब को दे दिया..

सोशल मीडिया पर लोग खूब मजे ले रहे हैं..लिख रहें हैं लोग कि जो किसान बेचारे हज़ारों का कर्ज़ लेते हैं, न चुका पाने की दशा में फंदे पर झूल जाते हैं.. ऐसे में उन्हें माल्या से ट्रेनिंग दिलवानी चाहिए कि बैंकों के भारी कर्ज़ के बावजूद भी अपना वजूद कैसे बनाए रखा जाए... जब माल्या साहेब गये तो कुछ दिनों बाद पेपर में आया कि वह कह रहे हैं कि मैं न भागा हूं न भगोड़ा हूं, दो तीन दिन बाद पेपर से पता चला कि वे कह रहे हैं कि अभी हालात मेरे लिए वापिस लौटने के लिए मुफ़ीद नहीं हैं, फिर पता चला कि वे ईडी के सामने पेशी के लिए टाइम मांग रहे हैं, कल केन्द्रीय मंत्री ने डिक्लेयर कर दिया है कि पाई पाई ले लेंगे ...आज अभी टीवी बता रहा है कि ईडी (प्रवर्त्तन निदेशालय) ने २ अप्रैल तक माल्या को हाज़िर होने की मोहलत दे दी है ...अब वही बात है ..सन्नी दयोल का वह डॉयलाग .. तारीख पे तारीख ... तारीख पे तारीख...अब इस केस में यह सिलसिला चलता रहेगा..


हां, इस सब पर मुझे ब्लाग लिखने का ध्यान पता है कैसे आया ?.... कल की एक अखबार के पहले पन्ने पर एक फुल पेज विज्ञापन है ...स्टेटबैंक ऑफ इंडिया का .. पता नहीं यह कोई डैमेज कंट्रोल एक्सरसाईज़ है या क्या है, मुझे नहीं पता... एसीबाई कह रहा है कि 50 लाख फेसबुक फोलोअर हो गये हैं और अभी भी जुड़ रहे हैं.. और अपने आप को इस विषय में विश्व में प्रथम स्थान पर डिक्लेयर कर रहा है ....नीचे बड़ा सा हैडिंग है .. डिजिटल इंडिया का बैंक...

लेकिन मैं इस से ज़रा भी इंप्रेस नहीं हुआ...डिजिटल इंडिया का बैंक तो है, निःसंदेह ... जहां कुछ भी काम करने के लिए इस तरह का टोकन मिलता है ...और अगर बारी निकल गई तो निकल गई...फिर से ऐसा ही टोकन लीजिए...लेिकन बात सोचने लायक या छानबीन लायक यह है कि इतनी मुश्तैदी और इतने कड़कपन के बावजूद इतना बड़ा लोन - 1600 करोड़ का कोई ले कर चला गया...और वसूली का अभी तो कुछ अता पता नहीं ..कल निलामी थी माल्या की 200 करोड़ रूपये की एक किंगफिशर इमारत की बंबई में ...किसी ने बोली में भाग ही नही लिया....लोग क्या करें, उन के पास पहले ही से बहुत पचड़े हैं, कौन समझदार आदमी इस तरह के लफड़े वाले सौदे में पड़ना चाहेगा..
एसबीआई के पचास लाख फॉलोअर कुछ खास कहां हैं वैसे भी...  मेरे जैसे बिल्कुल रद्दी लेखक के गूगल प्लस फॉलोवर की संख्या ही अढ़ाई लाख के करीब हो चुकी है ...आप स्वयं इसे इस लिंक पर जाकर चैक कर सकते हैं..

कुछ बातें न कहने में अच्छी लगती हैं न लिखने में ...  लेिकन समझते हम सब हैं कि क्या हुआ होगा और आगे क्या होगा...पूरी समझ रखता है देश का हर नागरिक...

जाते जाते ध्यान आ रहा है ..माल्या साहेब को पार्टी शार्टी में बड़ी दिलचस्पी है ..खूब महंगी, हाई फाई वाली पार्टीयां ..वैसे एक छोटी मोटी पार्टी यहां भी तो चल रही है .. काका जी की बात में दम तो है ...







गुरुवार, 17 मार्च 2016

लोहे वाले नमक के बारे में आप का क्या ख्याल है?

दो दिन पहले हिंदी के अखबार के पहले पन्ने के आधे हिस्से में  टाटा के लोहे वाले नमक का विज्ञापन पसरा हुआ था..खुशी हुई कि ऐसा नमक भी मिलने लगा है ..वैसे टीवी में तो विज्ञापन आ ही रहे हैं...

टाटा कंपनी है, इसलिए गुणवत्ता के बारे में तो कोई चिंता करने की बात ही नहीं, टाटा के नमक का नाम आते ही याद आ जाता है वह विज्ञापन...नमक हो टाटा का, टाटा नमक..

इस तरह से नमक की आयोडीन, आयरन जैसी तत्वों से फोर्टीफिकेशन बहुत आधुनिक तकनीक से किया जाता है, टाटा कंपनी कभी अपने किसी भी प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर समझौता नहीं करती ..वैसे भी इस तरह की तकनीक डिवेल्प करने में नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूट्रीशन का पूरा सहयोग रहा है। 

निःसंदेह यह एक बहुत बड़ा कदम है देश में लोगों की रक्त की कमी (एनीमिया) से जूझने का। मुझे बहुत खुशी है कि शुरूआत हुई है...इस के साथ साथ लोगों को बहुत सी बातें समझाने की ज़रूरत है ...विशेषकर यह बात कि बस, यह लोहे वाला नमक कोई जादू ही न कर देगा...इस के लिए अपने खान पान के चुनाव का भी ध्यान देना होगा...मेरा इशारा महंगे खाद्य-पदार्थों की तरफ़ नहीं है, बस जंक फूड, फास्ट फूड को त्याग कर पौष्टिक खाने को अपनाने की बात है ..तभी तो रक्त बनेगा।

मैंने पिछले चार दिन से इस विषय पर जो रिसर्च की उस के मुताबिक अभी जनता को इस के बहुत से पहलूओं के बारे में बताया जाना बहुत ज़रूरी है.. पता नहीं इतने दिनों से मीडिया में कुछ दिखा क्यों नहीं इस विषय पर ..शायद इसलिए कि यह प्रोडक्ट वैसे तो बड़े शहरों में २०१३ से ही चल रहा है, मुझे इस की जानकारी नहीं थी, नेट से ही पता चला...

मुझे मेरे एक प्रश्न का जवाब क्लियर कहीं नहीं मिला...इस कंपनी की हेल्पलाइन पर फोन भी किया लेकिन बात नहीं हो पाई, मैडीकल कालेज के एक प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष को ई-मेल से भी पूछा.... अभी जवाब नहीं आया...सब से विश्वसनीय साईट्स भी खंगाल लीं...लेकिन इस विषय पर कुछ नहीं दिखा कि अगर कोई व्यक्ति है जिस का हीमोग्लोबिन सामान्य है, क्या वह इस तरह के फोर्टीफाईड नमक (fortified with iron and iodine)का इस्तेमाल कर सकता है..प्रामाणिक जानकारी नहीं मिली मुझे अभी तक। 


लोहे वाले टाटा नमक के विज्ञापन में इस बार की तरफ़ विशेष ध्यान आकर्षित किया जा रहा है कि इसे दस ग्राम खाने से रोज़ाना आप की ऑयरन (लोहे) की दिन भर की ज़रूरत का आधा हिस्सा आप को मिल जायेगा...

बात यह विचार करने योग्य है कि एक परिवार में जिन लोगों का एचबी स्तर ठीक है, नार्मल है, इस का मतलब वे आॉयरन ठीक ठीक मात्रा में पहले ही से ले रहे होंगे, तभी तो सब कुछ दूरूस्त है...अब अगर ऊपर से यह नमक में मौजूद ऑयरन भी उन्हें मिलने लगेगा तो क्या शरीर में इस से कोई हानि तो नहीं होने लगेगी, ऑयरन शरीर के विभिन्न अंगों में जमने तो नहीं लगेगा....कुछ शारीरिक तकलीफ़ें हैं जो शरीर में ऑयरन की मात्रा ज़रूरत से ज़्यादा होने पर भी हो जाती हैं. 
निःसंदेह अधिकतर महिलाओं, बच्चों, किशोरावस्था में, युवावस्था में, गर्भवती महिलाओं में, स्तनपान करवाने वाली माताओं के लिए इस तरह का प्रोड्क्ट एक तोहफे जैसा है...और कैसे भी बिना किसी किंतु-परंतु के उन्हें तो इसे इस्तेमाल करना शुरू कर ही देना चाहिए, एक बार अपने चिकित्सक से पूछ कर। 
कोई यह तर्क भी दे सकता है घर में इतने सारे लोगों के लिए अगर यह प्रोड्क्ट इतना बढ़िया है तो हरिये का क्या, वह अपना अलग नमक इस्तेमाल कर ले, मैंने भी ऐसे सोचा है, लेकिन यह यथार्थ नहीं हैं, जिस तरह से देश में खाना तैयार होता है, यह संभव नहीं होगा कि "मर्द" के लिए अलग खाना बने अलग नमक के साथ, यह हो नहीं पायेगा...न तो इतनी अवेयरनैस ही है, और न ही इतना झंझट हो पायेगा...होगा वही कि अगर कहीं से यह सुगबुगाहट भी हो गई कि यह तो हरिया के लिए ठीक नहीं है, तो न चाहते हुए भी फिर यह नमक घर में आया ही नहीं करेगा...क्योंकि देश में   आम तौर पर सब से कीमती जान घर के "मर्द" की ही मानी जाती है...साथ में बेटों की (छोटे मर्द)...बाकी सब लोग तो जैसे तैसे काम चला ही लेते हैं..

इसलिए मेरे विचार में जल्दी से इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए...मैं अपने स्तर पर भी कोशिश करूंगा, मैडीकल कालेज के प्रोफैसर से मिलूंगा... इस के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने के बाद आप के पास वापिस आऊंगा.. आप भी अपने स्तर पर इस का जवाब ढूंढिएगा...प्रश्न ज़रूरी है ...आप की सेहत का मसला है, कहीं यह भी न हो कि जानकारी के अभाव में लोग बाग इसे ज़्यादा इसलिए खाने लगें कि यह लोहे वाला है ...और इसी चक्कर में ब्लड-प्रेशर का स्तर बढऩे लग जाए।
कंपनी की साइट पर ही FAQs में एक प्रश्न है कि क्या यह साल्ट केवल आयरन की कमी वालों के लिए ही है , इस का जवाब यह दिया गया है कि चूंकि हम इस का इस्तेमाल रोज़ाना कुकिंग के लिए कर सकते हैं तो इसे बच्चों को भी दिया जा सकता है जो सब्जियां खाना पसंद नहीं करते और न ही ऑयरन के सप्लीमैंट्स ही लेते हैं...

आने वाले दिनों में बहुत सी बातें क्लियर हो जाएंगी...लेकिन जो प्रश्न मैंने आप के समक्ष रखा है, उसे ध्यान में रखते हुए ही कोई निर्णय लीजिए..तब तक आप यह कर सकते हैं कि घर में कम रक्त की कमी से परेशान बाशिंदों को तो इसे इस्तेमाल करने की सलाह दे ही दें....मैंने टाटा प्लस की साइट पर भी इस प्रश्न का जवाब ढूंढना चाहा तो वे भी इस बात का गोलमोल जवाब दे रहे हैं...ऊपर देखिए स्क्रीनशॉट...आप इस लिंक पर जा कर इस प्रोडक्ट के बारे में अधिक जानकारी पा सकते हैं...  इस तरह के नमक के स्वाद के बारे में और कुछ अन्य ज़रूरी जानकारी भी यहां आप को मिल जायेगी...

मैं भी कैसी ऊट-पटांग नमकीन, कसैली बातें लेकर बैठ गया ..होली के सीजन में, वह भी लखनऊ शहर में ...जब बातें गुजिया, गुलाल, फूलों और रंगों की होनी चाहिए..बस....





टहलना तो बस एक बहाना होता है शायद!

शुरूआत करते हैं जह्ान्वी के इस बेहतरीन डायलाग से ... शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है, अगर यही जीना है तो मरना क्या है...मुझे यह डॉयलाग बहुत पसंद है...अनेकों बार सुन चुका हूं और सुनता रहता हूं ...जैसा आधुिनक जीवन का सार सिमट कर रख दिया हो इसमें...आप भी सुनिए....


यह तो था विद्या बालन का विचार ...मेरा आज का विचार यह है कि टहलना तो बस एक बहाना है, तन मन चुस्त दुरूस्त रखने के साथ साथ टहलने के दौरान हमें बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है, आज प्रातःकाल भ्रमण करते हुए यही ध्यान आ रहा था कि सुबह सवेरे जब हम लोग प्रकृति की गोद में आते हैं तो मानो यह भी अपने सारे खज़ाने खोल देती है ...

जितनी चाहो जिस तरह की चाहो प्रेरणा बटोर लीजिए, जोश भर लीजिए, जीवन जीने की कला और दूसरों को खुश रखने का हुनर सीख लीजिए।

मैं अकसर यह शेयर करता हूं अगर आप रोज़ रोज़ एक ही उद्यान में भी जाते हैं तो परवाह नहीं, बस जाते रहिए, हर दिन आप को कुछ नया दिखता है, कुछ नये नये अनुभव होते हैं ...बहुत कुछ रोमांचित घट रहा होता है हर तरफ़। आप को क्या ऐसा नहीं लगता!

एक बार जो आपसे और शेयर करनी है कि जहां तक हो सके तो हमें  इन जगहों पर बिना एफ एम या एयरफोन्स के ही जाना चाहिए...मैं अकसर उद्यान में टहलते हुए एफएम पर फिल्मी गीत सुनना पसंद करता हूं ...आवाज़ धीमी रखता हूं ..एयरफोन्स का इस्तेमाल नहीं करता...बहुत वर्ष किया...जब लगने लगा कि थोड़ा थोड़ा ऊंचा सुनने लगा हूं तो यह शौक छोड़ दिया...हां, तो मैं कह रहा था कि एफएम सुनते हुए टहलता हूं...लेकिन विचार यह आ रहा था कि यह एफएम वाला शौक पूरा करने के लिए तो पूरा दिन है ...जितना हो सके, उस नैसर्गिक वातावरण के साथ मिलने की, उस के साथ जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए...सुबह तो कोशिश भी नहीं करनी पड़ती, यह स्वतः ही हो जाता है।

पार्क के गेट पर लोग योगाभ्यास का आनंद लेते हुए

मैं भी आज एफएम नहीं ले कर गया...तो मुझे भी बहुत अच्छा लगा... सब से पहले तो देखा कि पार्क के बाहर ही लोग योग क्रिया में रमे हुए थे...अंदर जाते जाते किसी ज्ञानी की एक बात कान में पड़ गई... कि आदमी भी जानवरों से ही सब कुछ सीखता है, परिंदों की उड़ान से सीख ली और हवाई जहाज बन गया...हाथी से सीख ली तो जेसीबी मशीन बन गई....
हमारे दौर की विद्या देवी 

आगे चलने पर आज ये पेड़ खूब दिखे...इन पर लगे ये हरे हरे फल हैं या फूल हैं ...पता नहीं लेिकन इस पेड़ की पत्तियों की यादें ढ़ेरों हैं बचपन की ...यही तो पेड़ है जिस की पत्ती हम लोग कापी-किताब में रख कर सोच लिया करते थे कि अब विद्या देवी हमारे पास है, सब कुछ याद भी हो जायेगा और परीक्षा परिणाम भी बढ़िया आयेगा...हर दौर की अपनी बातें, अपनी भ्रांतियां...innocent, foolish childhood myths!
बुजुर्गों के ठहाके ...दिल खोल लै यारां नाल नहीं ते डाक्टर खोलनगे औज़ारां नाल 
मुझे टहलते हुए अच्छा लग रहा था जब मैं बहुत से लोगों को अपने अपने कामों में मस्त हुआ देख रहा था, कुछ बुजुर्ग अपने ग्रुप में योग करते करते हास्य-योग्य कर रहे थे ....मुस्कान और हंसी भी बड़ी संक्रामक होती है।

इस पार्क में जगह जगह प्लेटफार्म भी बने हुए हैं जहां पर बैठ कर भी लोग योगाभ्यास करते रहते हैं।
यहां प्राणायाम् चल रहा है 
कहीं कोई दंपति प्राणायाम् करता दिखा.... कोई बुज़ुर्ग ध्यान मुद्रा में बैठा जल्दी से अपना परलोक सुधारने की फिराक में लगा दिखा। महान् देश के लोगों की सभी आस्थाओं, धारणाओं को सादर नमन।
मुझे आज सुबह जल्दी उठने का इनाम यह नज़ारा मिला ...थैंक गॉड
हां, कुछ यार दोस्त, खूब हंसते हंसते अपने मोबाइल से फिल्मी गीत सुनते हुए टहल रहे थे...अचानक जैसे ही यह गीत बजा ...थोड़ा रेशम लगता है, थोड़ा शीशा लगता है ... तो उन में से एक दोस्त ने चुटकी ली.....अच्छा, थोड़ा रेशम लगता है .........अच्छा....बस, फिर से उन के ठहाके।
ऐसे माहौल में शेल्फी भी ठीक ठाक आ जाती है ...एक और फायदा 
सुबह सुबह का वातावरण अलग ही होता है ...मैंने अचानक आसमान की तरफ़ देखा तो मुझे यह स्वर्णिम नज़ारा दिखा..चंद मिनटों के लिए ही रहा ..

सुबह सुबह ऐसे में टहलने से हमें किसी की खुशी में खुश होने की भी सीख मिलती हैं , वरना सत्संग में यह भी तो समझाते हैं कि आज का मानव दूसरे की खुशी से नाखुश है...उदास है ... और एक बात संक्रामक हंसी से याद आ गई ...

मैं सत्संग में सुनता हूं अकसर कि एक बार एक गुरु ने अपने दो शिष्यों को १००-१०० फूल दिए और उन्हें बांटने के लिए कहा ...शर्त यही रखी कि जो हंसता हुआ दिखे ... उसे ही एक फूल देना है....शाम के वक्त दोनों लौट आए, एक के पास सभी फूल वैसे के वैसे और दूसरे को झोला खाली ....जो चेला सारे फूल वापिस ले कर लौट आया, उन ने पूछने पर बताया कि बाबा, दुनिया है ही इतनी खराब, सारे के सारे उदासी में जिए जा रहे हैं, सुबह से शाम हो गई , मुझे तो कोई भी मुस्कुराता नहीं दिखा...

चलिए अब दूसरे की बारी आई....उसने कहा ... कि बाबा, लोग इतने अच्छे हैं, मैं जिसे भी मिला, मैं उसे देख कर जैसे ही मुस्कुराता, वह भी खुल कर मुस्कुरा देता..और मैं झोले में से गुलाब निकाल कर उसे थमा देता....गुरू जी, मेरे फूल तो एक घंटे में ही खत्म हो गये....मुझे तो यही लग रहा था कि मुझे और भी बहुत से फूल लेकर चलना चाहिए था।

सीख क्या मिलती है इस प्रसंग से, हम सब जानते ही हैं, हंसिए खुल कर हंसिए, और दुनिया आप के साथ हंसेगी...बांटिए, खुशियां बांटिए, मदर टेरेसा ने एक बार कहा था कि आप जिस से भी मुलाकात करो, उसे आप से मिलकर बेहतर महसूस करना चाहिए।
सूर्योदय का मनोरम नज़ारा...काश, बचपन में सूर्य नमस्कार ही सीख लिया होता..
मुझे लगता है हम सब का यही प्रयास होना चाहिए....लेकिन इस के लिए पहले हमें अपने अाप को तो खुश रखना सीखना होगा कि नहीं, just being at ease with ourselves....और सुबह का टहलने इन ढ़ेरों खुशियों को बटोरने का एक बहाना है ...पंक्षियों की चटचहाहट, ठंड़ी हवाएं, खुशगवार फिज़ाएं, हरियाली, खिलखिलाते फूल.....omg... बस करता हूं कहीं कवि ही न बन जाऊं...वरना दिक्कत यह हो जायेगी कि थोड़ा बहुत जितना भी काम का बचा हुआ हूं वह भी नहीं बच पाएगा।

हमारी कॉलोनी की सड़कों पर पसरा सन्नाटा 
मुझे अपनी हाउसिंग सोसायटी में टहलने का मन नहीं होता ...बिल्कुल सुनसान सन्नाटे वाली सड़कें...कंक्रीट का एक जंगल सा ..हरियाली तो है वैसे ..लेिकन फिर भी यह एक हमेशा सैकेंड ऑप्शन ही रहता है मेरे लिए...क्योंकि जैसा मैंने पहले ही कहा है कि टहलना तो बस एक बहाना है, उस दौरान हमें अपने रूह की खुराक भी इक्ट्ठा करनी होती है ...यह सब स्वतः होने लगता है...और फिर हम ने देखना है कि कैसे हम उस एनर्जी से अपने आस पास के वातावरण को अभिसिंचित कर सकते हैं, दिन भर ....यह भी प्रभु कृपा से अपने आप ही होने लगता है....

जाते जाते कल सत्संग में स्टेज पर विराजमान महात्मा ने एक बात समझाई ....जितना प्राप्त है, पर्याप्त है... हम ने नोट कर ली उसी समय, कागज़ पर तो हो गई, काश, हम लोगों के दिल में भी बस जाए यह बात...सहज जीवन का मूल-मंत्र....

एक बात और .....When you are good to others, you are best to yourself!  (यह पोस्टर मैंने विशेष तौर पर बनवाया था औरर होस्टल में अपने कमरे में टांगा हुआ था)....पढ़ते ही मजा आ जाता था...

बस, अब इजाजत लेने की बारी है ....हां, उन दोस्तों वाला गीत तो सुनते जाइए...थोड़ा रेशम लगता है .....

दरअसल मैंने भी यह गीत आज मुद्दतों बाद सुना...अभी देखा तो झट से याद आ गया कि यह तो ज्योति फिल्म का गीत है ...कालेज के पहले साल में देखी थी यह फिल्म --१९८१ की एक सुपर-डुपर हिट फिल्म...


मंगलवार, 15 मार्च 2016

लखनऊ के साईकिल ट्रैक..अच्छे लगते हैं!

आज सुबह कोई भजन-नुमा गीत नहीं सुना....थोड़ा नीरस लग रहा है, अभी सुन लेते हैं.. अभी यह याद आ रहा है ...

आज सुबह सात बजे के करीब साईकिल चलाने निकला तो मैंने देखा कि घर के आस पास ही कुछ दिनों में ही साईकिल ट्रैक बन कर तैयार हैं...it was a pleasant surprise!...शायद इस तऱफ़ कुछ दिनों के बाद निकला था..

लखनऊ में एक काम आज कर ज़ोरों शोरों से हो रहा है मैट्रो रेल का और दूसरा साईकिल ट्रैक बनाने का काम.. शहर में जगह जगह पर ट्रैक बनते देख रहा हूं पिछले कुछ अरसे से। 

यहां हर एरिया के ट्रैक की कुछ विशेषताएं हैं जो मैंने नोटिस की हैं...एक व्ही आई पी एरिया है ..बंदरिया बाग .. इस तरफ़ मुख्यमंत्री का आवास है .. पास ही राज भवन है ..राज्यपाल का आवास है... इस तरफ़ जो साईकिल ट्रैक हैं, वे भी बहुत बढ़िया हैं...अच्छे से रंग बिरंगे पेन्ट से पुते हुए हैं..देखने में ही बड़े आकर्षक लगते हैं...कहीं कहीं स्वास्थ्य संबंधी संदेश भी देखने को मिलते हैं..साईकिल पर चलने की प्रेरणा देते,  मैंने उस एरिया के साईकिल ट्रैक की तस्वीरें एक बार खींची तो थीं..लेकिन अब पता नहीं कहां हैं। 

लखनऊ का एक पॉश एरिया है गोमती नगर...कुछ महीने पहले मैंने देखा था कि वहां पर भी साईकिल ट्रैक बन रहे हैं ..लेकिन यहां पर कुछ ट्रैक सड़क के बीचों बीच डिवाईडर की जगह पर बनते दिखे... वह कोई इश्यू नहीं है .. लेिकन मैंने देखा कि जो ट्रैक कुछ तैयार भी हो चुके थे, उस के रास्ते में लोगों ने कुछ न कुछ अवरोध पैदा कर रखे थे...


बदलाव हमेशा कष्टदायक होता है लोगों के लिए...लेकिन बेहतरी के लिए बदलाव तो प्रकृित का अटल नियम है ही। ये सब शुरूआती मुश्किलें हैं, जैसे ही ये ट्रैक अच्छे से तैयार हो जाएंगे, लोग अपने अपने रास्ते को क्लियर करवा ही लेंगे, उस की चिंता नहीं है। 

वैसे भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी साईकिल चलाने के शौकीन हैं...बहुत बार विभिन्न समारोहों में इन्हें साईकिल पर देखा है ... ऐसे में लखनऊ में बहुत से साईकिल ट्रैक एक साथ तैयार हो रहे हैं, यह कोई हैरानगी की बात नहीं...इस पहल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। 

हां, तो मैं अपने पड़ोस वाले साईकिल ट्रैक की बात कर रहा था... मैंने देखा कि साईकिल ट्रैक जहां तैयार हैं वहां पर साईकिल चलाने वाले उस के अंदर न चल कर, बाहर चले जा रहे थे...थोड़ा आगे चलने पर समझ में आया कि ट्रैक चाहे तैयार हैं, लेिकन मलबा या दूसरे तरह के अवरोधों की वजह से लोग उस के अंदर चल नही पा रहे हैं, कुछ कुछ जगहों पर तो निर्माण कार्य चल रहा है.. कुछ जगहों पर कुछ दुकानदारों ने अपना सामान उस जगह में सरका दिया है.. मुझे लगता है कि प्रशासन जल्दी ही इस को क्लियर करवा ही लेगा...यह कोई बड़ी बात नहीं है। 

मैं साईकिल पर चलता हुआ यही सोच रहा था कि पता नहीं यह ट्रैक कैसे बनाते होंगे ..क्योंकि इस तरह की चौड़ी सपाट सड़कों पर तो इन्हें बनाने में कोई दिक्कत है ही नहीं...मैं थोड़ा सा ही आगे चला तो मुझे पता चला कि इस की क्या प्रक्रिया है ...पहले खड्ढा खोदा जाता है, उस के बाद एक सीमेंट से तैयार की गई इस आकार की सिल्ली को उस में फिट कर दिया जाता है ...


आगे देखा तो पता चला कि एक ट्रक से सिल्लियां उतर रही थीं.. यानि कि यह काम ज़ोरों शोरों पर चालू है। एक जगह कोई खबर यह भी पढ़ी थी कि लखनऊ में देश का सब से बड़ा साईकिल ट्रैक बनेगा....बहुत अच्छी बात है ...

एक साईकिल सवार भी अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगा, बहुत से लोग (मेरे जैसे) जो peak hours के दौरान साईकिल को सड़क पर ले जाने में डरते हैं, वे भी साईकिल पर निकला करेंगे ... बच्चे स्कूल जाने के लिए साईकिलों पर निकला करेंगे ..यह सब सोच कर के ही बहुत अच्छा लगता है..! वरना तो हम बिना किसी शारीरिक श्रम के फैलते जा रहे हैं.. एक अच्छी बात आज की टाइम्स ऑफ इंडिया की ग्रैफिटि में लिखी मिली ...पढ़ कर आप को भी अच्छा लगेगा...

मैं इस ब्लाग में बहुत बार अपने साईकिल प्रेम का इज़हार कर चुका हूं...बहुत पसंद है साईकिल से चलना, ऐसे ही बिना वजह साईकिल पर नईं नईं जगहें देखने निकल जाना... यह मैं सन् २००० से कर रहा हूं...बड़ा आलसी जीव हूं, बीच में कईं बार महीनों की छुट्टी भी कर लेता हूं ...कारण बताऊं या बहाना शेयर कर दूं?...साईकिल में हवा नहीं है, अब बाज़ार से भरवाने का झंझट ...क्योंकि अब इतने समझदार हो चले हैं कि खुद भरने में शर्म लगती है ..

३०-४० मिनट भी आप साईकिल रोज़ चलाएंगे तो बहुत तरोताज़ा महसूस करेंगे....आजमा के देखिए... कितना अच्छा हो कि अगर लखनऊ शहर से प्रेरणा लेकर देश के अन्य शहरों में भी इस तरह के ट्रैक तैयार होने लगें...सच में मज़ा आ जायेगा...win-win situation...सेहत बढ़िया रहेगी,  जनता जनार्दन की भी और पर्यावरण की भी। 

एक बात शेयर करनी थी...मुझे याद है बात अमृतसर शहर की है ..हम स्कूल में थे ..यही चौथी-पांचवी कक्षा में रहे होंगे...हमारी कालोनी के ग्राउंड में इस तरह के आयोजन हुआ करते थे कि कोई साईकिल सात दिन निरंतर चलायेगा ... साईकिल पर ही सब शारीरिक क्रियाएं ..खाना, पीना, सुस्ताना ...सब कुछ। यह भी देखने वाला मंज़र हुआ करता था... हम तो जब फ्री हुआ करते थे, वह नज़ारा देखने चले जाया करते थे... शोर फिल्म आई थी उन्हीं दिनों...उस का यह गीत भी बिल्कुल वही नज़ारा दिखा रहा है .......दिखा तो रहा ही है, बहुत ही बातें हमारे काम की भी बता रहा है अगर हम इन्हें इस्तेमाल करना चाहें तो ... मुझे यह गीत बहुत पसंद हैं..इसे सुनते ही मैं ४० साल पुराने दिनों की मधुर यादों में खो जाता हूं....आप भी सुनेंगे?
जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम... 

सोमवार, 14 मार्च 2016

फ़क़त एक लाल मिर्ची ने कैसे ले ली एक बच्ची की जान !






पहले तो इस बात का यकीं ही नहीं हुआ..ऐसे लगा जैसे मुझे पढ़ने में कुछ गलती लगी हो..लेिकन फिर से पढ़ा आज की टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर छपी इस पहली खबर को ..दो साल की बच्ची ने एक लाल मिर्ची को खा लिया और इसी चक्कर में उस की जान चली गई....बहुत दुःखद, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण।


छोटे बच्चों के लिए हम लोग अपने स्विच बोर्ड चाइल्ड-प्रूफ कर लेते हैं.. मैंने कुछ रिपोर्टज़ देखीं कि छोटे बच्चों ने गेम्स में डलने वाले छोटे गोलाकार सेलों को निगल लिया...पेरेन्ट्स को आगाह तो करते ही हैं कि जिन रिमोट्स में भी छोटे गोलाकार सेल पड़ते हैं, उन्हें बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाए, दवाईयों के बारे में तो कहते ही हैं...हां, दवाईयों से एक बात याद आई, कल से नईं बात पता चली पेपर से कि जिन दवाईयों की स्ट्रिप्स पर लाल लाइन लगी हो, उन्हें आप को बिना डाक्टर की सलाह के लेना ही नहीं है... उत्सुकता हुई, घर मे कुछ दवाईयां थीं, देखा उन पर लाल लाइन लगी हुई थी, इस बात का हमें आगे प्रचार करना चाहिए।


आगे से लाल लकीर का आप भी ध्यान रखिएगा.. इस संदेश को आगे भी पहुंचाइएगा
हां, मैं कह रहा था कि छोटी छोटी बातों के लिए छोटे बच्चों के पेरेन्ट्स को सावधान तो करते ही हैं लेिकन अब तो पेरेन्ट्स अपने आप बच्चों को इस लाल मिर्ची से भी दूर रखना होगा..

हां, तो दिल्ली में रहने वाली इस दो वर्ष की बच्ची के साथ यह हुआ कि इसने गलती से एक लाल मिर्ची को काट लिया....ज्यादा से ज्यादा होता, मुंह जलता या आंखों से पानी आता. थोड़ी शक्कर खाने से ठीक हो जाता, लेकिन नहीं, इस बच्ची की तो सांस लेने की प्रक्रिया ही फेल हो गई ...चिकित्सीय मदद के बावजूद वह चल बसी।

आल इंडिया मैडीकल इंस्टीच्यूट दिल्ली में इस बच्ची के शव की जांच (आटोप्सी) से पाया गया कि उस की सांस की नली में पेट के द्रव्य ( gastric juices) चले गये... जिस की वजह से उस की सांस लेने की प्रक्रिया बंद हो गई। दरअसल इस बच्ची को मिर्ची खाने के बाद उल्टीयां आने लगीं और बस, उसी दौरान उल्टी का कुछ हिस्सा सांस की नली में पहुंच गया...डाक्टरों की कोशिश के बावजूद बच्ची २४ घंटों में ही चल बसी।

यह वाकया तो कुछ महीने पहले का है, लेकिन यह मैडीको-लीगल जर्नल में अभी छपा है ..

ध्यान रखिए भई आप जिन के छोटे बच्चे हैं, मेरे जैसे बड़ों को भी यह समझना बहुत ज़रूरी है कि खाने के वक्त बातें नहीं करनी होतीं, चुपचाप खाना खाइए...वरना यह खतरा उस दौरान भी बना ही रहता है...कितनी बार तो हमारे साथ ही होता रहता है...कुछ बात बार बार दोहराने लायक होती हैं, शायद हमारे मन में बस जाएं....जैसे जहां शोच, वहां शोचालय के बारे में  विद्या बालन की डांट-डपट हम सुन सुन कर कुछ सुधरने लगे हैं..काकी, क्या करूं अब लोग तो सुनते नहीं, मक्खियां को ही कहना पड़ेगा कि इन के खाने पे मत बैठो।



 दूसरी खबर जो पहले ही पन्ने पर छपी है और परसों से टीवी पर बीसियों बार देख-सुन-समझ चुके हैं कि संघ वाले अब खाकी निक्कर की जगह भूरे रंग की पतलून पहना करेंगे....बहुत अच्छा ...मुझे समझ यह नहीं आया कि इस में ऐसी क्या बात है कि जो कि पेपर के पहले पन्ने पर इसे छापा गया और वह भी तस्वीर के साथ... तस्वीरों के बारे में भी पेपर वालों की दाद देनी पड़ेगी, पता नहीं क्या क्या इन्होंने अपने आर्काइव्ज़ ने सहेज रखा है, बच के रहना चाहिए..

पहले पन्ने पर एक खबर यह भी िदखी कि रेलवे अब कंबल को प्रत्येक इस्तेमाल के बाद साफ़ किया करेगी....लिखा है उस में किस तरह से नये डिजाईन के कंबल आएंगे...अभी कुछ गाड़ियों में ही इसे शुरू किया जायेगा... इसी चक्कर में मुझे आज सुबह आठ-दस साल पहली लिखी एक ब्लॉग-पोस्ट का ध्यान आ गया.. उसे आप के लिए ढूंढ ही लिया..

अब इस कंबल के बारे में भी सोचना पड़ेगा क्या! (इस पर क्लिक कर के इसे देख सकते हैं, अगर चाहें तो)..

मेरे विचार में अभी के लिए इतना ही काफ़ी है, मैं भी उठूं ...कुछ काम धंधे की फिक्र करूं....ये बातें तो चलती ही रहेंगी,..बिना सिर-पैर की, आगे से आगे... फिर मिलते हैं ...शाम में कुछ गप्पबाजी करेंगे...   till then, take care... may you stay away from Monday Blues!



शनिवार, 12 मार्च 2016

रेलवे एग्ज्यूकेटिव हेल्थ चेक अप कैंप लखनऊ में


आज उत्तर रेलवे चिकित्सा विभाग की और से लखनऊ मंडल के मंडल रेल प्रबंधक श्री ए के लाहोटी की प्रेरणा से, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा अर्चना गुप्ता के कुशल मार्गदर्शन एवं  फिजिशियन डा.अमरेन्द्र कुमार एवं उन के साथ अस्पताल की सारी टीम के सहयोग से एक एग्ज़ीक्यूटिव हेल्थ चेक-अप प्रोग्राम आयोजित किया गया... इसे लखनऊ उत्तर रेलवे की ऑफीसर्ज़ क्लब में रखा गया था।


यह हेल्थ चेक-अप कैंप रेलवे के अधिकारियों एवं उन के परिवारजनों के लिए आयोजित किया गया था.. जिस का थीम ही यही था...Health at your doorstep - आप स्वस्थ, रेल स्वस्थ।

उत्तर रेलवे अन्य कर्मचारियों के लिए भी नियमित हेल्थ चैक-अप कैंप दफ्तरों में, हेल्थ यूनिटों में और विभिन्न रेल कारखानों में इस तरह के हेल्थ चैक-अप आयोजित करती रहती है ...मुझे ध्यान आ रहा कि जून २०१५ में तो रेल मंत्रालय की एक बेहतरीन पहल के अंतर्गत देश भर में रेलवे स्टेशनों पर भी रेल कर्मचारियों, परिवारों एवं यात्रियों के लिए भी इस तरह के हेल्थ कैंप लगाए गये थे....इस के साथ साथ स्वच्छता अभियान भी चलता रहा।
(बाएं से)..डा अर्चना गुप्ता, सीएमएस, श्रीमति ओझा, श्रीमति लाहोटी, डीआर एम श्री लाहोटी, एडीआरएम श्री ओझा 
डी आर एम श्री अनिल लाहोटी नियमित हेल्थ चेकअप के लिए सभी को प्रेरित करते हुए 
मंडल रेल प्रबंधक श्री ए के लाहोटी उद्घाटन समारोह के गेस्ट ऑफ ऑनर थे... उन्होंने आने वाले सभी अधिकारियों एवं परिवारों को साल में एक दिन हेल्थ चेकअप करवाने के लिए प्रेरित किया क्योंकि अगर रेलवे से जुड़े अधिकारी सेहतमंद रहेंगे तो ही रेलें भी स्वस्थ रह पाएंगी.. सही बात है रेलों के उत्तम परिचालन के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि सभी सेहतमंद रहें। उन्होंने यह भी इच्छा व्यक्त की कि इस तरह के आयोजन हर वर्ष होने चाहिए..
श्रीमति मीनू लाहोटी अध्यक्षा उ रे महिला कल्याण संगठन लखनऊ अपने विचार रखते हुए 
श्रीमति मीनू लाहोटी, अध्यक्षा, उत्तर रेलवे महिला कल्याण संगठन द्वारा इस चेक-अप कैंप का उद्घाटन किया गया..
उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोग वार्षिक चैक-अप के लिए हज़ारों रूपये खर्च करते हैं लेिकन फिर भी उन पैकेजों की अपनी कुछ न कुछ सीमाएं होती हैं लेिकन यह एक ऐसा बढ़िया आयोजन हो रहा है कि सभी विशेषज्ञ एवं अन्य सेहतकर्मी आप के पास आये हैं इसी उद्देश्य के साथ कि आप स्वस्थ, रेल स्वस्थ ...इस का पूरा फायदा उठाना चाहिए।
डा अर्चना गुप्ता, सी एम एस अपनी बात रखते हुए....इन के साथ खड़े हैं डा अमरेन्द्र 
उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के चिकित्सा विभाग की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक,  श्रीमति अर्चना गुप्ता ने भी आने वाले सभी अधिकारियों एवं उन के परिवार का स्वागत किया .. और इस तरह के आयोजन के उद्देश्य के बारे में बताया कि रेल अधिकारी हमेशा काम में व्यस्त रहते हैं, अपने लिए, परिवार के लिए उतना समय नहीं निकाल पाते, अपनी सेहत के प्रति तो इतना ध्यान दिया ही नहीं जाता ...और जब नियमित चेक-अप की बात आती है तो सब से बड़ी चुनौती यही होती है अकसर लोगों के लिए कि अलग अगल तरह के िवशेषज्ञों से मिलना, तरह तरह के टेस्ट करवाना, देखा जायेगा फिर कभी ...लेकिन अब उस का भी समाधान इस तरह के बेहतरीन आयोजन के रूप में निकाल लिया गया है।

डा कमल किशोर पैथोलॉजिस्ट लैब स्टाफ का उत्साहवर्धन करते हुए..
उस के बाद आने वाले सभी लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया...सब से पहले जो लोग खाली पेट आये हुए थे, उन्होंने अपने रक्त का सैंपल दिया ..जो लोग खाली पेट नहीं भी थे, उन के भी रक्त का सेंपल लिया गया...इस से उन के विभिन्न टेस्ट किए जायेंगे जैसे कि हीमोग्लोबिन, ब्लड-ग्रुप, ब्लड-शूगर (खाली पेस्ट या रेंडम, जैसा भी मरीज रहा हो), लिपिड प्रोफाइल, थॉयरायड फंक्शन टेस्ट आदि।
   रक्त की जांच के लिए यहां पूरी सावधानी एवं स्वच्छता से सैंपल लिए गये 
लैब के सभी कामों को डा कमल किशोर,  पैथालाजिस्ट उत्तर रेलवे देख रहे थे ..

कान नाक गला रोग विशेषज्ञ डा ह्यंकी
ईनटी रोग विशेषज्ञ डा ह्यंकी ने ईएनटी रोगों के लिए रोगों की जांच की और उन का मार्गदर्शन किया कि वे सामान्य ईएनटी रोगों से कैसे बच सकते हैं।
दंत चिकित्सक
दंत रोग चिकित्सक (इस पोस्ट के लेखक) ने मुंह के रोगों की जांच की ... और उचित मार्गदर्शन किया..कैसा अनुभव रहा, किस तरह की तकलीफ़ें पाई गईं, इस के लिए एक अलग पोस्ट लिखूंगा..


हड़्डी रोग विशेषज्ञ डा रस्तोगी 
बीएमडी काउंटर 

हड्डी रोग विशेषज्ञ डा रस्तोगी ने लोगों की जांच की और मैंने देखा कि वे लोगों को विभिन्न हड्डी रोग के रोगों से बचने के लिए नियमित व्यायाम के साथ साथ कुछ विशेष एक्सरसाईज़ भी बता रहे थे। एक काउंटर आने वालों की BMD ..Bone Mineral Density चैक करने के लिए भी था, पैर के तलवे की तरफ़ एक सेंसर ऱखते ही कंप्यूटर पर रीडिंग आ रही थी...मैंने भी यह टेस्ट करवाया ..


आंखों के विशेषज्ञ डा हक ने आंखों का निरीक्षण किया, चश्मे की ज़रूरत के लिए भी प्रारंभिक जांच की, और आंखों के अंदरूनी हिस्से (फंडस) की भी जांच की । 

 सीएमएस डा गुप्ता, डा रितु सिंह महिलाओं का मार्गदर्शन करते हुए
डा उर्मी सरकार जो कि शिशुरोग विशेषज्ञ हैं, उन्होंने बच्चों को देखा और डा रितु सिंह जो महिला रोग विशेषज्ञ हैं उन्होंने डा अर्चना गुप्ता की कुशल देख रेख में महिलाओं को उन के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के बारे में उचित सलाह दी। शायद मैं यहां यह लिखना भूल गया कि डा अर्चणा गुप्ता जो कि उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक  हैं, वे एक कुशल हेल्थ एडमिनिस्ट्रेटर के साथ साथ एक प्रतिष्ठित एवं बेहद अनुभवी महिला रोग विशेषज्ञ हैं।
बच्चों और उन के पेरेन्ट्स ने शिशु रोग विशेषज्ञ डा उर्मी सरकार को खूब व्यस्त रखा 
 डा सुमित और डा महिमा घोष ने फिजिशियन मोर्चा संभाले रखा ..
कैंप में फिज़िशियन वाला कोना डा अमरेन्द्र की देख रेख में उन के सहयोगियों डा सुमीत सहगल और महिला डा. महिमा घोष की निरंतर मेहनत की वजह से खूब व्यस्त रहा। ईसीजी तक की सुविधा भी कैंप के दौरान उपलब्ध थी.. ईसीजी को फिजिशियन तुरंत देख कर उचित सलाह दे रहे थे। वजन करने की मशीनें भी थीं।
इस अनुभवी टीम ने डिजीटल ईसीजी पर अपनी सेवाएं दीं...
मैंने एक अधिकारी की कैंप वाले पर्चे पर एक अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट देखी तो पता चला कि जिन लोगों को इस तरह के टेस्ट की ज़रूरत थी, उन का इस तरह का टैस्ट भी आज ही अस्पताल में करवा दिया गया....निःसंदेह एक बहुत अच्छी पहल, वरना होता ऐसा है कुछ बार कि टेस्ट वाले दिन तो मरीज भी जोश में होते है, एक दूसरे से प्ररेणा लेते हुए सब कुछ एक साथ हो जाता है, वरना कुछ दिनों बाद फिर वही समय नहीं है, फिर देख लेंगे, अभी कोई तकलीफ़ नहीं है, इस तरह के बहाने हम अपने आप ही से करने लगते हैं, है कि नहीं?

सर्जन भी इस कैंप का हिस्सा थे... जो सर्जीकल परामर्श दे रहे थे..



एक बात जो बहुत प्रशंसनीय लगी वह यह थी कि सारे कैंप के दौरान एक ऑडियोविजुएल के द्वारा जीवनशैली से संबंधित कुछ न कुछ अच्छी बातें लोगों को बताई जाती रही...और वे बड़े प्रभावशाली विजुएल्स लग रहे थे..यह एक कंपनी के सहयोग से किया गया था। आने वाले सभी अधिकारियों एवं परिवारीजनों ने इन ऑडियोविजुएल्स को देखने में बड़ी रुचि ली।

नॉन मैडीकल लोगों की बात तो कर ली, डाक्टरों ने कुछ कुछ जांच करवाने में अपनी रूचि दिखाई...मेरे जैसे लोगों पर तो वह कहावत बिल्कुल फिट बैठती है कि पर-उपदेश कुशल बहुतेरे....लोगों को नियमित जांच के लिए हमेशा प्रेरित किया करता हूं ...लेकिन अपनी जांच टालता रहता हूं...आप हैरान होंगे कि मैंने अपनी पिछली जांच २००७ में करवाई थीं. ...बस ऐसे ही टालमटोल करता रहा ...लेिकन आज इतना बढ़िया आयोजन देख कर मुझे लगा कि बहती गंगा में मैं भी हाथ धो ही लूं....मैंने भी इतने वर्षों बाद अपनी जांच करवाई...यह बहुत ज़रूरी तो है ही ..

मैंने यह पोस्ट क्यूं लिखी है और मैं इस के अनुभव मैं आप से इसलिए बांटना चाहता हूं कि शायद कुछ लोग इसे पढ़ कर अपने नियमित चेक-अप के लिए प्रेरित हो जाएं... और दूसरा यह कि इस तरह के बेहतरीन आयोजन - बिल्कुल एक परफेक्ट हेल्थ कैंप नियमित होते रहने चाहिए....हर महीने इस तरह के कैंप कहीं न कहीं, किसी कार्यस्थल पर या किसी रेलवे स्टेशन या किसी रेल कारखाने, यार्ड, हेल्थ यूनिट में होते रहने चाहिए... मेरा यही सुझाव है .. और मैं तो इस तरह के प्रोग्रामों के िलए सदैव तत्पर हूं..

ऊब गये होंगे आप इतनी लंबी रिपोर्ट पढ़ के ... कोई बात नहीं, इस की भरपाई मैं ज्वार भाटा फिल्म का एक सुपर-डुपर हिट अपना पसंदीदा गीत सुना कर किए देता हूं... मेरे लिए यह एक भजन के समान है...मैं इसे कितनी भी बार सुन लूं ..बिल्कुल भी नहीं ऊबता... आप भी सुनिए... वैसे सेहतमंद रहने के बहुत से फंडे तो इस गीत में भी हैं...मैं तो इसे सुनते ही मस्त हो जाता हूं..