रविवार, 28 जून 2015

यह लखनऊ की सरज़मीं ..२८.६.१५

अपराधी बेखौफ़ -- रिटायर अधिकारी के घर १ करोड़ का डाका

शुक्रवार रात नकाबपोश १० डकैतों ने रिटायर डिप्टी कमिश्नर (फूड) रामपलट पाण्डेय (६८) के घर धावा बोला और लगभग एक करोड़ रूपये की नकदी-जेवर लूट कर फरार हो गए। बदमाश डेढ़ घंटे तक घर में करते रहे लूटपाट।

असलहे से लैस बदमाशों ने गेट पर सो रहे मजदूर के हाथ पैर बांध कर बगल के प्लॉट में फेंक दिया। बंगले में दाखिल हुए बदमाशों ने रामपलट, उनकी पत्नी और बच्चों के हाथ-पांव बांध दिए। 

बदमाशों ने अलमारी व लॉकर तोड़कर २० लाख रूपये, २०० यू एस डॉलर, ७० लाख रूपये से अधिक के जेवर बैग में भर लिए। डकैत अपने साथ छह लाख रूपये कीमत की विदेशी रिवाल्वर भी ले गए। 

रामपलट ने बताया कि एक बदमाश ने उनसे कहा कि --अंकल-आंटी डरो नहीं, हम रूपये ले जाएंगे..चुप रहोगे तो कुछ नहीं करेंगे। 

जनेश्वर पार्क के लिए स्पेशल बस आज से 

अब प्रत्येक रविवार को गोमतीनगर स्थित जनेश्वर मिश्र पार्क के लिए सिटी बसें चलेंगी। १६ स्पेशल बसें शहर के नौ मुख्य बस स्टाप से हर घंटे रवाना होंगी। बसों का संचालन सुबह ११ से रात आठ बजे तक होगा। बस का किराया न्यूनतम १५ वे अधिकतम ३५ रूपये होगा। उस पार्क में जाने के लिए आटो टेम्पो की सुविधा नहीं है। इस वजह से आम जनता की सुविधा के लिए विशेष सिटी बसें चलेंगी। 
                     इस लिंक को भी देखिए...जनेश्वर पार्क से बढ़िया पार्क नहीं देखा। 

इमामबाड़े में पर्यटकों के पहनावे पर एतराज

बड़ा इमामबाड़ा २२ दिन बाद शनिवार को पर्यटकों के लिए खुल गया। लेकिन महिला पर्यटकों के पहनावे को लेकर तनातनी हो गई। विरोध कर रहे लोगों का तर्क था कि इमामबाडा इबादतगाह है। यहां कम कपड़ों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। उस पर वहां मौजूद गाइडों में नोकझोंक हुई। विदेशी महिला पर्यटक समेत अन्य ऐसी महिलाओं जिनके कपड़ों पर आपत्ति थी उन्हें मुख्य परिसर में जाने से रोक दिया। 

एसटीएफ ने केजीएमयू से दो डॉक्टरों को उठाया

मध्य प्रदेश के व्यापम् (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) घोटाला की जड़ें केजीएमयू में गहरी जमी हुई हैं। इस घोटाले में शामिल होने के आरोप में साल्वरों की तलाश में एमपी एसटीएफ ने दो डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है। एक डॉक्टर को तो पुलिस ने केजीएमयू के हॉस्टल मे दबोचा। आनन-फानन में डॉक्टर को हॉस्टल से बेदखल कर दिया गया है। 

अब डिवाइडरों पर फर्राटा भरेंगी साइकिल 

बडे पैमाने पर सड़क के बीच में डिवाइडर पर साइकिल ट्रैक बनाने की तैयारी है। सबसे ज्यादा साइकिल ट्रैक एलडीए कालोनियों में बनाए जाएंगे। गोमतीनगर में साइकिल ट्रैक बनाने के लिए ३० करोड़ रुपए स्वीकृत।

शनिवार, 27 जून 2015

यह लखनऊ की सरज़मीं...27जून 2015

हैवानियत - मोबाइल चोरी के शक में किशोर की हत्या 
निशांतगंज में कल दोपहर कपड़ा कारोबारी ने मोबाइल चोरी के आरोप में १४ वर्षीय गगन को प्रताड़ित करने के बाद फांसी पर  लटका दिया।

बच्चे जानेंगे पापा दफ्तर में काम करते या नहीं
जनता को परेशान करने व काम में लापरवाह एलडीए अफसरों की पोल-पट्टी अब सार्वजनिक की जाएगी। मकसद उन्हें शर्मसार करना है। ऐसे अफसरों की सूचा अखबारों में प्रकाशित कराई जाएगी। उनके घरों में भी पत्र भेजा जाएगा ताकि उनके बच्चे व घर वाले भी उनकी हकीकत जान सकें।

लोहिया में मोटापे का इलाज आज से
 मोटापे से परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। ऑपरेशन के लिए निजी संस्थानों में मोटी रकम भी खर्च नहीं करनी पड़ेगी। ऐसे लोगों के िलए गोमतीनगर स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में बेरियाट्रिक सर्जरी क्लीनिक शुरू की है। प्रत्येक शनिवार को क्लीनिक का संचालन हो रहा है।

जालसाजी कर एटीएम कार्ड से खरीदारी की
एटीएम कार्ड खराब होने का झांसा देकर जालसाजों ने रेलवे कर्मी अजीश पाल से उनका पासवर्ड पूछा। अगले ही पल जालसाजों ने उनके खाते से १० हज़ार रूपये की ऑनलाइन खरीदारी कर डाली। मोबाइल पर मैसेज आते ही अजीत भागकर बैंक पहुंचे और कार्ड बंद करवाया।

थूकने वालों का नाम भी नोटिस बोर्ड पर लगेगा
एलडीए में पान व पानमसाला खाकर थूकने वाले कर्मचारियों के नाम व फोटो भी एलडीए के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किए जाएंगे। एलडीए की न्यू बिल्डिंग में इस सम्बंध में बड़ा बड़ा नोटिस बोर्ड भी लगा दिया है। सभी जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। जो लोग पान या फिर पान मसाला खाकर थूकेंगे वह सीसीटीवी से पकड़े जाएंगे।

शुक्रवार, 26 जून 2015

नशा शराब में होता तो झूमती बोतल...


आज वैसे भी नशाबंदी दिवस है...इसलिए इस विषय पर लिखने से पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि इस पोस्ट में जितने भी हिंदी फिल्मी गीत हैं, वे सभी बस मन बहलाने के लिए हैं..वैसे मेरे यह लिखने की कोई ज़रूरत नहीं, सुधि पाठक हैं।
शीर्षक भी जो मेरे मन को अच्छा लगा, टिका दिया है।


कुछ अरसा पहले से एक फोटो व्हाट्सएप पर खूब दिख रही थी ...एक तरफ खुशवंत सिंह और दूसरी तरफ़ एक वयोवृद्ध योगाचार्य की फोटो..नीचे लिखे था खुशवंत सिंह उस योगाचार्य से ज़्यादा उम्र भोग कर परलोक सिधारे, इस का निष्कर्ष यही निकाला गया था कि शराब पीने वाले ज़्यादा जीते हैं.

मैं इस बेतुके तर्क से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं.

कुछ दिन पहले एक व्हाट्सएप ग्रुप पर एक तस्वीर भी दिखी ...उन का नाम लिखा था.. ध्यान नहीं दिया..बस यही लिखा था कि इन की उम्र १११ साल की है..और इन्हें तस्वीर में एक व्हिस्की की बोतल के साथ दिखाया गया था। फोटो में बड़े खुशमिजाज लगे...चलिए आप को भी इन के दर्शन करवाए देते हैं...



कल मैं लखनऊ से बाहर था ...मैं सुबह टहलने निकला तो मुझे इंडियन एक्सप्रेस अखबार ही मिली...मैंने उसे पढ़ा तो एक बुज़ुर्ग जिन की उम्र १११ साल की थी उन के दाह-संस्कार के बारे में कुछ अलग सी बात पता चली जिसे मैंने रेस्ट-हाउस में ही एक कागज़ पर लिख कर शेयर कर दिया...


चलिए, जिस गीत का मैंने इस पर्ची में उल्लेख किया है, उसे ही लगाते हैं...


स्कूल जाने की उम्र में जब यह फिल्म देखी तो यह गीत मुझे बहुत पसंद आया था....तब म्यूज़िक की वजह से और अब लिरिक्स के लिए भी यह गीत बढ़िया लगता है।

अच्छा, मैं कल यही सोचता रहा कि इस तरह की खबर जो अखबार में छप गई...इससे तो गलत मैसेज भी लोगों में पहुंच सकता है...पीने वालों को तो वैसे भी पीने का बहाना चाहिए..



आज सुबह वापिस लखनऊ पहुंचा तो ध्यान कल वाली खबर पर ही जा रहा था..बुज़ुर्ग सरदार नाज़र सिहं की तरफ़ ही ...मैंने ऐसे ही व्हाट्सएप पर अपने दोस्तों से शेयर किया कि उन पर कुछ लिखने का मन हो रहा है .....चंद ही मिनट के बाद एक मित्र ने जब उन की फोटो शेयर की तो मुझे ध्यान आया कि यह तो वही फोटो है, जिसे कुछ दिन पहले देखा था..लेिकन फिर जब दोस्तों के साथ गुफ्तगू चली तो सरदार नाज़र सिंह जी के बारे में कुछ पहलू और उजागर हुए।

एक मित्र ने बताया कि यह शराब तो इन की शख्शियत का एक बिल्कुल छोटा सा पहलू है...ये १०७ की उम्र तक बागबानी करते रहे हैं, जिस दिन इन्होंने शरीर त्यागा उस दिन भी यह गुरूद्वारे में मत्था टेक कर आए थे.... और एक बात मित्र ने लिखी कि इतनी लंबी उम्र तक जीना एक बहुत ही सुंदर और संयमित जीवनशैली का ही परिणाम हो सकता है। मैं उस की बात से बिल्कुल सहमत हूं।

मैं भी मानता हूं कि इन्होने जीवन को बहुत खुशी खुशी जिया होगा....

आज मुझे यह लगा कि इस तरह की तस्वीर इन की और इन के बारे में इस तरह की खबर अखबार में छपना भी कुछ लोगों को गलत संदेश दे जायेगा। मैं जानता हूं उत्तर भारत के लोगों को ...मुझे लगता है कि अब अगर कोई उन्हें दारू वारू पीने से रोकेगा तो वह इन्हीं बुज़ुर्ग की उदाहरण दिया करेंगे........लेकिन यह उदाहरण दिया जाना बिल्कुल गलत होगा....कारण, हम उन के बारे में उतना ही जानते हैं जितना हमें मीडिया ने या सोशल मीडिया ने परोस दिया.....क्या पता उन की जीवनशैली कितनी बढ़िया रही होगी, कितना सच्चा-सुच्चा जीवन जिया होगा.....रही बात फोटो की, तो दोस्तो, आज बाज़ारवाद है, इस तरह की फोटो किसी की भी खींचनी-खिंचवानी या फिर इस तरह की खबर को अखबारों में छाप देना कौन सी बड़ी बात है.... आखिर कंपनियों ने अपनी शराब भी बेचनी है।

जाते जाते वही बात की शराब खराब चीज तो है......मैं बिल्कुल भी प्रवचन की मूड में नहीं हूं.....न ही मैं इस के लिए क्वालीफाईड हूं.....हां, सात साल पहले एक लेख ज़रूर लिखा था....यह रहा उस का लिंक....थोडी थोडी पिया करो...

बात वही हलवाई की मिठाई वाली, मुझे बिल्कुल याद नहीं,मैंने उस में क्या लिखा था, क्या नहीं, बस अपनी एक प्रोफैसर के बारे में िलखा था कि किस तरह से उन का एक लेक्चर सुन कर मैंने मन बना लिया कि इस दारू को कभी नहीं छूना।

लेिकन दारू वाले गाने सुनने में तो कोई बुराई नहीं.....चलिए, फिर से सुनते हैं..



शनिवार, 20 जून 2015

हमारी बीमार शिक्षा व्यवस्था....

मैं अकसर लोगों से ईमानदारी से यह शेयर करता हूं ..कि मैंने भी इंटर तक फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ी है ... लेकिन अगर आज के दौर में पढ़ाई जाने वाली फिजिक्स-कैमिस्ट्री का पेपर मेरे को दे दिया जाए तो मुझे या तो शून्य मिलेगा या फिर दो तीन नंबर मैं शायद कैमिस्ट्री में ले पाऊं...पूरी सच्चाई से यह बात कर रहा हूं...अकसर मैं बेटे के बोर्ड के पेपर देख कर सारी केलकुलेशन करने के बाद ही इस तरह का ब्यान दिया करता था.

जो है सो है, सच्चाई मानने में कभी हिचकिचाहट हुई नहीं, जब से लिखने लगा हूं उस के बाद तो बिल्कुल भी नहीं...

आज बाद दोपहर बेटे के स्कूल में एक फंक्शन था...उसे भी सम्मानित किया जाना था....उस ने बहुत अच्छा किया है बोर्ड एग्ज़ाम में...४ बजे का टाइम था.. आज सुबह से थोड़ा सा सिर और गर्दन में दर्द हो रहा था...टेबलेट भी ली, लेकिन कुछ खास फर्क पड़ा नहीं...मुझे वहां जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं हो रही थी, मैंने बेटे को कहा कि मम्मी के साथ हो आए....लेिकन उस के चेहरे की तरफ़ देखा तो जाने का मन बनाया....फिर भी हिम्मत नहीं हुई...बेटे ने कहा, पापा, पर्ची डालते हैं......दोस्तो, यकीन मानिए हम ज़िंदगी के बहुत से फैसले पर्ची डाल कर करते हैं....यहां तक कि उसने इंजीनियरिंग करनी है या बॉयोलॉजी, यह निर्णय भी पर्ची डाल कर किया गया था।

पर्ची डाली, यैस या नो....पर्ची का फैसला था नो......लेकिन मैंने नो के बावजूद भी तुरंत कपड़े डाले और हम लोग रवाना हो गये।

वहां का वातावरण ऐसा था कि चंद मिनटों में ही मैं एकदम फिट हो गया...सिर दर्द गायब, गर्दन की ऐंठन भी पता ही नहीं चला कब ठीक हो गई।

मुझे वहां बैठे बैठे यही विचार आ रहा था कि हमारी शिक्षा व्यवस्था भी कितनी बीमार है.....ऊपर मैंने अपनी उदाहरण तो दर्ज कर ही दी है....अब इन बच्चों के जगह जगह एन्ट्रेंस एग्ज़ाम होंगे......सीबीएसई ने एक बार ले िलया न तो उस पर भरोसा कर लो, नहीं तो उस के बाद होने वाले किसी एक राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रवेश परीक्षा पर भरोसा कर लो.......उस के अनुसार सारे देश की संस्थाएं अपनी सीटें भर लें।

सभी छात्रों के लिए भी यह कितना आरामदायक होगा.......अब दर्जनों टेस्ट हैं, हर जगह इन की फीसें, तरह तरह की औपचारिकताएँ, फिर परीक्षाएं...फिर इंतज़ार, फिर काउंसलिंग......बच्चों के साथ साथ मां बाप की भी अच्छी खासी रेल बन जाती है।

इतने सारे टेस्ट देख कर यही लगने लगता है कि शायद इन को एक दूसरे के टेस्ट पर भरोसा ही नहीं है...इतना अविश्वास का वातावरण तो है ही .....वैसे हरेक ने अपनी दुकान भी तो चलानी है।

प्लस टू और कोचिंग ......ये तो जैसे एक दूसरे के पूरक बन गये हैं.....अगर आपने प्लस टू की बोर्ड की परीक्षा में ९९ प्रतिशत भी ले लिए अपने बलबूते पर.....लेिकन अगर आपने कोचिंग नहीं की.......तो आप लगभग यह मान ही लें कि आप किसी प्रवेश परीक्षा में अच्छा कर ही नहीं पाएंगे।

यह बड़ी बदकिस्मती है ......कोई ऐसा नियम बन जाए कि प्लस-टू की परीक्षा खत्म ही कर दो.......दसवीं के बाद कह दो बच्चों को कहीं से भी पढ़ो. .दो साल बाद तुम लोगों की परीक्षा होगी.....तब तक कोचिंग करो...जहां चाहो, पढ़ो....कुछ भी करो.....बस, पेपर आप लोगों का दो साल बाद होगा।

जितना मजाक आज की तारीख में प्लस-टू का बन रहा है, उतना तो कभी न था....लोग कोटा, दिल्ली, चंडीगढ़ जा कर कोचिंग करते हैं, छोटे शहरों में डम्मी एडमिशन ले लेते हैं.....ताकि प्लस टू के पेपर दे सकें, लेिकन कोचिंग अागे की प्रवेश परीक्षाओं के लिए होती है......मेरे घर के सामने एक छठी कक्षा का लड़का पड़ता है....एक दिन फिट्जी की वेन में बैठ रहा था....मुझे पता चला कि उसने छठी से ही फिट्जी की कोचिंग शुरू कर दी है...यह कोचिंग आठवीं और नवीं कक्षा से तो बहुत से लोग करने लगे हैं।

मुझे शिकायत है इस तरह के परीक्षा के पेटर्न से जो इस तरह की कोचिंग को बढ़ावा देते हैं....इस से आर्थिक तौर पर मेधावी छात्र-छात्राओं के भविष्य पर आंच आती है.....बहुत से लोग जो इस तरह की एक एक लाख की कोचिंग ज्वाइन नहीं कर पाते...वे इंटेलीजेंट होते हुए भी इन परीक्षाओं में पीछे रह जाते हैं......

कौन बदलेगा यार इस व्यवस्था को.....किसी को को आवाज़ उठानी होगी.......इस सड़न को कौन खत्म करेगा.....मुझे भी नहीं पता......लेकिन इस का इलाज होना ज़रूरी है!

 बस हम यही मान कर चुप हो जाते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बीमार है, बहुत बीमार है...अब इस का इलाज हो जाना चाहिए......इंत्हा हो चुकी है। मुझे तो यही लगने लगा है कि अगर कुछ सजग बच्चे, उन के मां-बाप कोर्ट कचहरी नहीं जाएं तो घोर अनर्थ हो जाए.....पेपरों में जालसाजी, धोखाधड़ी करने वाले दिनप्रतिदिन तेज़-तर्रार होते जा रहे हैं...कंपीटिशन बढ़ता जा रहा है...

पता नहीं कुछ और होगा कि नहीं होगा, मैं अपने दिल की बातें िलख कर हल्का महसूस कर रहा हूं...जो भी हो, दोस्तो, बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी!



देश को कहीं ले ही न डूबे चाटुकारिता

एक रोज़ मैं लखनऊ से कानपुर ऐसे ही घूमने के मूड में जा रहा था...एसी डिब्बे में मैं ऊपर वाली सीट पर था और नीचे दो दोस्त आपस में जो बातें कर रहे थे, मेरे कानों में पड़ रही थीं...मुझे नींद आते आते रह गई..मुझे लगा आज उन बातों को अपने पाठकों से शेयर करूं।

एक दोस्त ने कहा कि यार, यह चाटुकारिता बड़ी कुत्ती चीज़ है...शायद ये दोनों एक ही दफ्तर में काम करते होंगे..उन की बातों से ऐसा ही लग रहा था।

मैं अब लेख में आगे यह नहीं लिखूंगा िक उस ने कहा, दूसरे ने यह जवाब दिया...बस, उन की बातें लिखूंगा।

उन का एक साथी मिस्टर ....एक नंबर का चापलूस है....जो उस का काम है, वह बिल्कुल नहीं करता, बस सारा दिन बॉस की चापलूसी के चक्कर में उस के पास ही जा कर बैठा रहता है....वही नहीं, दो तीन और भी इसी तरह के बंदे हैं जो भी चाटुकारिता स्पेशलिस्ट हैं...बस, अपनी सीट का काम कुछ नहीं, पब्लिक जाए भाड़ में, एक सूत्री कार्यक्रम कि अपने बॉस को खुश रखो, उस की गलत-सही बात में हां में हां मिलाओ....न भी हंसी आए तो भी ऐसे नाटक करो कि उस की सेन्स ऑफ ह्यूमर से बढ़िया किसी की है ही नहीं, उस जैसा प्रशासक है ही नहीं।

कोफ्त होती है यार ऐसे लोगों से उन दोनों में से एक ने कहा.....तो दूसरे ने कहा कि तू करता रह कोफ्त, इसी चक्कर में लखनऊ और कानपुर के चक्कर काटता रहता है, हर दो साल बाद तेरा तबादला हो जाता है, सारी पब्लिक तेरे काम की इतनी प्रशंसा करती है, तेरी साफ-सुथरी इमेज है लेकिन बस तू बॉस की चापलूसी का गुर नहीं सीख पाया, इसलिए जो तीन चार चाटुकार साथी हैं वे कुछ भी उस कान के कच्चे बॉस को तेरे बारे में कहते रहते हैं कि यह तो अकडू है, वैसा है ....और बस।

वैसे दोनों हैरान थे कि किस तरह से लोग अपने काम धंधे को छोड़ कर बस चाटुकारिता के बलबूते अपना टाइम पास करते रहते हैं। एक कहने लगा कि यार हमें तो किसी की इस तरह की चापलूसी करने के नाम ही से उल्टी सी होने लगती है। अपने काम में ध्यान दो, और क्या....

फिर बात करने लगे कि जो जो लोग बॉस के परले दर्जे के चाटुकार हैं, उन के तबादले ही नहीं होते......वहीं टिके रहते हैं, और मजे की बात एक कह रहा था कि किस तरह से फलां फलां का तबादला बार बार इसलिए रूक जाता है कि बॉस सरेआम कहता फिरता है कि उस के दफ्तर को तो उस ने ही संभाल रखा है...और जो बॉस के ऊपर वाले हैं, वे यही सोच कर डर जाते हैं कि अगर यह बंदा इतना ही सक्षम है, कहीं इसे यहां से हिलाने-डुलाने में काठमांडू जैसे झटके यहां भी न आ जाएं।

मुझे उन दोस्तों की बातों में यथार्थवाद की महक आ रही थी....पाठको, आप लोग अपने अपने दफ्तर में भी झांक कर देखिए...कहीं आप को भी इस तरह के चापलूस दिखते हैं..

यह देश की बहुत बड़ी समस्या है। हमें बिना वजह वा-वाही लूटने की एक लत सी लग गई है.....जो चाटुकार का आर्ट सीख गया, वे अपनी बॉडी-लेंग्वेज से इस तरह के झुड्डू दिखने लगते हैं ...और इसी झुड्डूपने की आड़ में वे ऐसे ऐसे काम अंजाम दे जाते हैं....लेिकन उन की तरफ़ उंगली कौन उठाए, अगर कभी उंगली उठती भी है तो उसे मरोड़ कर नीचे कर दिया जाता है.

मैं लेटा लेटा यही सोच रहा था कि नौकरी में चापलूसी करना एक फुलटाइम काम है......ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप थोड़ी थोड़ी चापलूसी कर लें, थोड़ा थोड़ा काम कर लें, यही बात तो उस में से एक कह रहा था कि हमें तो अपना काम करते हुए पानी पीने तक की फुर्सत नहीं मिलती, और इन चाटुकारों के चाय के दो-तीन दौर लंच से पहले हो जाते हैं..

बस करता हूं ...मैं किन चक्करों में पड़ गया.... उन दोस्तों की बातें ही शेयर करने लग गया......जब वे लोग कानपुर पर उतरे तो मैं अपने आप से यही पूछ रहा था कि उन की बातों में दम था कुछ!...मुझे लगा जैसे वे किसी भी दफ्तर की बातें शेयर कर रहे थे..वैसे नीचे से लेकर ऊपर तक यही समस्या है....मंत्रियों की बात कर लें तो जिस के समीकरण ऊपर तक ठीक हैं, वह कुछ भी कर लें, आंच न आएगी..

वैसे पंजाबी भाषा में हम लोग चापलूसी और चाटुकारिता को बड़ी आसानी से ब्यां कर लेते हैं....  XXXगुलामी...सॉरी मैं पूरी नहीं लिख सकता...यह अब एक सामान्य शब्द बन गया है जब हम कहते हैं कि यार, उस को छोड़. वह तो XXXगुलामी के चक्कर में पड़ा रहता है। एक दूसरा छोटा शब्द भी है...TC..... यह भी पंजाबी का ही है.

सीरियस सी बात लिखने के बाद मुझे हिंदी फिल्म के गीत की डोज़ चाहिए ही होती है.....सोचता हूं आज क्या सुनूं....चलिए, वही गीत चलाते हैं जिसने खूब धूम मचाई है...हम लोगों ने भी कुछ दिन पहले थियेटर में इसे देखा...ठीक ठीक लगी .....लेकिन इस गीत का संगीत बढ़िया है...मुझे अच्छा लगता है...



शुक्रवार, 19 जून 2015

एक शाम लखनऊ के दिलकुशा गार्डन के नाम...

आज शाम लखनऊ के दिलकुशां गार्डन जाने का अवसर मिला...यह गार्डन लखनऊ छावनी क्षेत्र में है...अकसर यह नाम बहुत बार सुना करते थे...दिलकुशा कोठी, दिलकुशा बाग, दिलकुशा कॉलोनी....यह छावनी का एक बहुत पॉश एरिया है।

यह बाग भारत सरकार का एक protected monument है...Archaeological Survey of India (ASI) इस की देखभाल करता है..बड़े अच्छे से इसे मेन्टेन किया हुआ है।

चौकीदार बता रहा था कि अंग्रेज़ लोग यहां ज़्यादा आते हैं यह सब देखने।

वैसे तो मैं इस पोस्ट में यहां जो तस्वीरें अपलोड कर रहा हूं उस से आप को सारी जानकारी मिल ही जाएगी...मेरे कहने के लिए कुछ खास है नहीं...ये सभी तस्वीरें वहां पर ही ली गई हैं।

हम लोग जब वहां गये तो हमें इस के बारे में कुछ भी अंदाज़ा नहीं था कि यह है क्या!..केयरटेकर ने बताया कि नवाब वाजिद अली शाह ने इस को बनाया था और इस जगह को नवाब की सेना के लिए शिकारगाह के लिए इस्तेमाल किया जाता था...शायद उसने यही शब्द ही बोला था...आस पास जंगल हुआ करता था ...सिपाही शिकार करने जब आते थे तो यहां दिलखुश करने के लिए ठहरा करते थे....इसलिए इस का नाम दिलकुशा पड़ गया।

उसने सामने इशारा करते बताया कि यहां पर घोड़ों के रखने की भी जगह है और पीछे एक महल है।

यह पूछने पर कि इन कमरों में छत क्यों नहीं है ...उसने बताया कि नवाब को यहां से निकाल देने के बाद ..१९ वीं सदी में ब्रिटिश यहां रहने लगे ... जब उन को यहां से खदेड़ा गया तो ये छते तोड़नी पड़ीं....बताने लगा कि इन्हें बिल्कुल उसी हालत में ही सहेज कर रखा गया है.

जितना उसे पता था, उसने बता दिया...वैसे जो इन शिलाओं पर लिखा गया है, उसे हम लोग ज़्यादा विश्वसनीय मान सकते हैं.....आप इन्हें भी ज़रूर पढ़िए...और तो क्या लिखूं अब इस टॉपिक के बारे में....












दिलकुशा कोठी ..

यह लखनऊ की सरज़मीं...





गुरुवार, 18 जून 2015

"हे भगवान! हमारे अरविंद को सलामत रखना"..

अभी एक महीना ही तो हुआ है ...जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाया और राजनीतिकों की तस्वीरें सरकारी विज्ञापनों पर दिखाने पर रोक लगा दी...अब सरकारी विज्ञापनों में नहीं दिखा करेंगे राजनीतिक..

अब तो इन विज्ञापनों में अकसर प्रधानमंत्री मोदी की सुंदर सुंदर नये नये कपड़ों में तस्वीरें दिखती हैं अकसर...ठीक है, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन हो रहा है।

ये पत्रकार लोगों की भी निगाहें बड़ी पैनी होती हैं....कल रात मैं किसी चेनल पर देख रहा था कि दिल्ली के एक मेट्रो स्टेशन के बाहर यूपी के मुख्यमंत्री की तस्वीर यूपी सरकार के किसी विज्ञापन पर चस्पा थी...बस, पत्रकार क्लास ले रहे थे कि दिल्ली क्षेत्र में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने तो विज्ञापनों से अपनी सारी तस्वीरें हटा ली हैं, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश की तस्वीर.....ऐसे और वैसे ...and all that!

कल दोपहर मैं टीवी पर ऐसे ही चैनल बदल बदल कर अपने मतलब का कुछ ढूंढ रहा था..अचानक एक जगह पर बिल्कुल घर घर की कहानी जैसा कुछ स्टफ सा दिखा.....यकीन मानिए, मुझे लगा कि यह कोई नया ड्रामा शुरू होने वाला होगा उस चैनल पर ..उस की झलक दिखा रहे होंगे...लेिकन कुछ समय बाद पता चला कि यह तो दिल्ली सरकार का विज्ञापन है..

आज भी दोपहर में वही विज्ञापन फिर दिख गया...बड़ा अनयुजुएल सा विज्ञापन है...emotional cords को कहानीनुमा अंदाज़ में टच करने वाला...जर्नलिस्टिक भाषा में हम इसे Slice of life! का नाम देते हैं..

मुद्दा यहां यह नहीं है कि विज्ञापन कितना बढ़िया था या नहीं था, बात केवल इतनी सी है कि इस तरह के विज्ञापनों को भी इन चैनलों पर चलाने में भी तो सरकारी खजाने से पैसा जाता ही होगा....इस विज्ञापन को देख कर यही लगता है जैसे यह अरविंद का ही विज्ञापन है... एक गृहिणी का यह कहना ...हे भगवान, हमारे अरविंद को सलामत रखना... हास्यास्पद सा ही लगा मुझे तो कम से कम।

लखनऊ में भी रेडियो सुनते सुनते अचानक विज्ञापन बजने लगते हैं... जिस में कईं बार उद्घोषिका कहती हैं...धन्यवाद है मुख्यमंत्री जी। अखिलेश जी ने यह किया, वह किया.....सरकारी विज्ञापनों में उन की तारीफ़ें.....बहुत अच्छा है, अखिलेश अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इन में इस्तेमाल होने वाले भाषा बिल्कुल भी जर्नलिस्टिक नहीं होती, न ही हो सकती है, क्योंकि ये विज्ञापन होते हैं....पत्रकार कभी भी किसी की साइड नहीं लेता।






 हमारे अरविंद सलामत रहें वाला विज्ञापन तो मैंने अभी यू-ट्यूब पर देखा ....अभी अभी किसी ने अपलोड किया था..आप भी देखिए और अपनी राय से अवगत करवाईएगा मुझे...संवाद तो तभी ठीक रहता है जब मैं कोई बात करूं तो उस पर आप की टिप्पणी भी तो मुझ तक पहुंचे......ऐसे ही मैं अपने ही राग कितने समय तक अलापता रहूंगा...



और बच्चे को भी पता चल जाता है कि कौन कितना खरा है ...एक पत्रकार है ...विनोद शर्मा....अकसर टीवी पर होने वाली चर्चाओं में दिखते हैं......दो दिन पहले ललित मोदी पर हो रहे रवीश के प्रोग्राम में एक चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि कांग्रेस और बीजेपी वाले दोनों चाहते हैं कि ललित मोदी वहीं रहे जहां वह अभी है क्योंकि ........। वह मुझे याद नहीं कि क्या कहा...शायद यही कहा कि इन दोनों ने अपने अपने पाले को बचाना है!!
विनोद शर्मा की बात में हमेशा दम रहता है..

सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिकों की तस्वीरों पर तो रोक लग गई...अब देखते हैं अगली जनहित याचिका क्या इस बात पर भी कभी होगी कि सरकारों को इतने महंगे महंगे विज्ञापन देने से परहेज करना चाहिए...after all it is tax payer's money!

इतनी भारी भरकम बातें जब मैं करने लगता हूं न तो मैं पाठकों की क्या कहूं, मैं खुद ही उकता जाता हूं.....इसलिए जाते जाते सुबह रेडियो पर सुना एक गीत ...शायद मैंने बहुत बरसों बाद सुना था...आप के लिए बजा रहा हूं...सुनिए..सुबह तो रेडियो पर सुना था, अभी अभी वीडियो देखा है....आप भी देखिए.... कैसे करूं प्रेम की मैं बात, ना बाबा ना बाबा....पिछवाड़े बुड्ढा खांसता....(फिल्म अनिता).....lovely music!!