शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

एच पी वी (HPV) टीकाकरण के बारे में बात स्पष्ट होनी चाहिए

आज भी एक न्यूज़-रिपोर्ट में दिखा कि अमेरिका में किस तरह से तरूणावस्था में एचपीवी वैक्सीन कम लोगों को लगाये जाने पर चिंता प्रकट हो रही है। इस न्यूज़-रिपोर्ट का लिंक यहां दिए दे रहा हूं..

Safe and effective vaccine that prevents cancer continues to be underutilized

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि केवल ५७ प्रतिशत युवतियां जो तरूणावस्था में हैं और ३५ प्रतिशत तरूण युवक ही ऐसे हैं जिन्होंने एक या अधिक खुराकें इस वैक्सीन की ली हैं।

मुझे भी बड़ी हैरानी हुई ये आंकड़े देख के.....पहली बात तो वहां के आंकड़ों में कुछ संदेह नहीं है..... लेकिन इतने युवकों युवतियां को यह इंजैक्शन लगना शुरू हो चुका है, यह एक सुखद सूचना थी।

अभी भी हमारे देश में इस इंजैक्शन के बारे में स्थिति कोई साफ़ है नहीं। इतने वर्ष हो गये इस पर चर्चा ही हो रही है। मुझे याद है मैंने ३-४ वर्ष पहले एक महिला रोग विशेषज्ञ से पूछा था कि  इस वैक्सीन के बारे में क्या रिस्पांस है...ह्यूमन पैपीलोमा वॉयरस संक्रमण के संदर्भ में--- तो उस ने झट से कह तो दिया था......यह समस्या बाहर देशों की ही है।

लेकिन मैं उस के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ। कईं बार मीडिया में इतने वर्षों से दिखता रहता है कि युवतियों पर इस वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं। फिर कुछ आने लगा कि क्लीनिक ट्रायल इस तरह से नहीं किये जाने चाहिए। जो भी है, अभी तक स्थिति कुछ भी स्पष्ट है नहीं।

अभी कुछ ही सप्ताह पहले एक मंत्रालय ने कुछ महिला रोग विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की ताकि वे इस तरह के इंजैक्शन के बारे में मैडीकल लिटरेचर का गहन अध्ययन कर के इस तरह के टीकाकरण के बारे में अपनी राय कायम कर सकें। पता नहीं क्या हुआ उस कमेटी का।

मुझे ऐसा लगता है कि इस तरह की अलग अलग कमेटियां बनाने से कहीं ज़्यादा बेहतर होगा कि इंडियल काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च संस्था जैसा शीर्ष संस्थान देश के चुन हुए संस्थानों से एवं देश के जाने माने विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करे ताकि वे अपनी ठोस सिफारिशें तैयार कर सकें जिन्हें बिना किसी संदेह के लागू किया जा सके।

बहुत बार कईं टीकों के बारे में आता रहता है कि कुछ टीके ऐसे हैं जो लोग अफोर्ड कर सकते हैं वे अपने खर्च पर लगवा लें, लेकिन इस तरह की टीके के बारे में मेरा विचार यही है कि अगर विशेषज्ञों का समूह यह तय करे कि इस तरह का टीकाकरण देश के युवकों-युवतियों का भी होना चाहिए तो फिर इसे कैसे भी राष्ट्रीय टीकाकरण पालिसी में ही शामिल कर लिया जाए ताकि सारे युवा वर्ग को इस का लाभ मिल सके।

सब से पहले तो यही ज़रूरी है कि इस टीके के बारे में स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट होनी चाहिए.....पता नहीं इतना समय क्यों लग रहा है। और इस में इंडियन काउंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च, एम्स, पीजीआई जैसे संस्थानों के विशेषज्ञों की विशेष भूमिका रहेगी। 

गल्तियां करने से नहीं, दोहराने से परहेज़ करें...

एक बार एक इंगलिश की कहावत कहीं पढ़ी थी कि गल्तियां करने से नहीं डरें, जितनी मरजी करते जाएं, होता है जब हम काम करते हैं तो गल्तियां तो होती ही हैं, लेकिन बस ध्यान यही होना चाहिए की एक ही गलती फिर से रिपीट न होने पाए। बस एक कोशिश रहनी चाहिए, ऐसी है।

हम लोग भी आए दिन गल्तियां करते ही हैं, जैसे कि सफ़र के दौरान खाना खा के बीमार होने की गलती, लेकिन फिर भी कुछ गल्तियां करने से शायद हम अपने आप को रोक नहीं पाते। हमें पता है कि बाज़ार का खाना मेरे सेहत के लिए ठीक नहीं है, लेकिन फिर भी मजबूरी वश (मरता क्या न करता वाली बात) कभी कभी खाना पड़ता है, न चाहते हुए भी, और फिर बीमार होने के लिए तैयार रहना ही पड़ता है।

हर गलती से हम लोग कुछ न कुछ सीखते जाते हैं। कुछ दिन पहले हमने बंबई से लखनऊ रेलगाड़ी से वापिस लौटना था, वैसे तो बढ़िया गाड़ीयां हैं इस रूट पर... पुष्पक एक्सप्रैस जैसी.. जो २३-२४ घंटे लेती हैं। वहां से चलने का और यहां लखनऊ में पहुंचने का टाइम भी सुविधाजनक है।

जब मैं रिज़र्वेशन करवाने गया.. तो देखा कि बाकी गाड़ीयों में तो वेटिंग लिस्ट थी, और एक होलीडे स्पेशल गाड़ी थी जिसमें समय ज़्यादा लगता है, लंबे रूट से, मथुरा से होती हुई, भारत दर्शन करवाती हुई लखनऊ पहुंचती है और ३२-३३ घंटे लगते हैं...यानि कि सामान्य गाड़ी से १० घंटे ज्यादा.......चूंकि रिज़र्वेशन मिल रही थी, ले तो ली....लेकिन उस गाड़ी से इतना लंबा सफ़र करना बहुत कठिन लगा।

इस सफ़र से यही सीखा कि आगे से सफ़र न करना मंजूर है, लेकिन इस तरह के इतने बड़े लंबे रूट से यात्रा करना बड़ा टेढ़ा काम लगा। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है .....मैं तो शायद इस से एक सबक ले चुका हूं......लेकिन अनुभव तो तभी सफल होगा जब इस तरह की गल्ती को कभी दोहराया न जाए।

एक गलती और.....कल मुझे दिल्ली जाना था। चार बजे बाद दोपहर किसी के साथ मीटिंग थी। सोचा सुबह एक गाड़ी पकड़ कर चलूंगा और दोपहर २ बजे के करीब वहां पहुंच जाऊंगा। लेकिन पुष्पक एक्सप्रैस सुबह ५.२५ पकड़ने के लिए घर से सुबह पौने पांच बजे चला ...और गाड़ी दिल्ली पहुंचते पहुंचते २ घंटे लेट हो गई और मैं चार बजे नई दिल्ली स्टेशन से पहले शिवाजी ब्रिज पर ही उतर गया और वहां से आटो पकड़ कर अपनी मीटिंग वाली जगह पर पहुंच गया।

तो दूसरी गलती जो मैंने व्यक्तिगत तौर पर की कि दिल्ली जाने के लिए सुबह की गाड़ी पकड़ी.......इस तरह की गाड़ी की यात्रा सुबह के समय इतनी बोरिंग होती है, इस का अंदाज़ा कोई भी लगा सकता है। इसलिए कल ही यह निर्णय लिया कि सामान्तयः सुबह की गाड़ी में इतना लंबा सफ़र नहीं करूंगा चाहे उस के लिए कितना भी नुकसान हो जाए।
देखता हूं इन दोनों गलतियों को दोहराने में कितना समय बच पाता हूं।

वैसे एक गलती जो मैंने पिछले कितने ही वर्षों से नहीं दोहराई ...वह यह है कि मैं सफ़र के दौरान चाय नहीं पीता, वह चाय मेरे हलक से नीचे ही नहीं उतरती। शायद पिछले कुछ सालों में एक दो घूंट भर लिये हों, वह भी सिरदर्द से बचने के लिए ...वरना इस तरह की चाय से तो मेरी तो तौबा। 

17 साल के लड़के के 232 दांत

आज अभी बीबीसी की साइट पर इस खबर पर नज़र पड़ी कि बंबई में डाक्टरों ने एक १७ साल के लड़के के मुंह से २३२ दांत निकाले।

मैंने भी इस तरह की खबर पहली बार ही देखी है। यह लड़का किसी गांव में रहता था, एक महीने पहले उसे जबड़े में बहुत ज़्यादा दर्द हुआ। उस के पिता उसे इस डर से बंबई लेकर आ गये कि कहीं कैंसर ही न हो।

इस खबर के बारे में आप अधिक जानकारी इस लिंक पर क्लिक कर के बीबीसी की साइट पर देख सकते हैं। अभी भी लड़के के मुंह में २८ दांत बचे हैं।

India Doctors remove 232 teeth from boy's mouth

यहां यह बताना ज़रूरी होगा कि यह सब एक ट्यूमर की वजह से हुआ.....लेकिन यह ट्यूमर बिनाईन होता है, अब बिनाईन को कैसे बताऊं.....बस आप यही जान लें कि इस तरह की ट्यूमर खतरनाक नहीं होता, यह शरीर के दूसरे अंगों में फैलता नहीं है, और इस से सामान्यतः जान भी नहीं जाती। लेकिन लड़के की तो २३२ दांत उखड़वाने के बाद जान में जान आई होगी।

ईश्वर सब को सेहतमंद रखे।


शनिवार, 12 जुलाई 2014

आप की पर्सनल एमरजैंसी किट..

अकसर हम लोग यात्रा पर जाने से पहले अपनी दवाईयों की एमरजैंसी किट को इतना महत्व नहीं देते। लेकिन फिर जब अचानक इन में से कुछ की ज़रूरत पड़ती है तो अपनी गलती का अहसास होता है।
हर व्यक्ति को पता होता है कि उसे एमरजैंसी में किन किन दवाईयों आदि की ज़रूरत पड़ सकती है।
चलिए अपनी उदाहरण लेता हूं. मैं कुछ दिनों के लिए बंबई आया हुआ था, आज लौट रहा हूं। परसों रात को अचानक रात एक-दो बजे मेरे पेट में बहुत ज़ोर का दर्द होने लगा और साथ में शरीर दुःखने लगा और बुखार जैसा लग रहा था। दो बार बिल्कुल वॉटरी स्टूल्स भी हुए।

समझ में नहीं आया कि ऐसा तो कुछ खाया भी नहीं..अकसर खाने में अपनी तरफ़ से थोड़ी एहतियात ही बरतते हैं। बहरहाल, मेरे पास उस समय Norflox 400 mg की एक टेबलेट पड़ी थी, मैंने तुरंत ले ली और साथ में Tab Zupar (Ibuprofen and Paracetamol combination) ली, उस के बाद कोई मोशन नहीं आई ..लेकिन अगले दिन सारा दिन बदन दुखता रहा और बुखार जैसा लगता रहा। इसलिए मैंने Norflox-TZ का तीन दिन का कोर्स करना ही ठीक समझा।वैसे मैं यहां अपने ब्लॉग में दवाईयों के ट्रेड नेम नहीं लिखता लेकिन कुछेक का नाम तो लिखना ही पड़ता है जिन्हें अपने ऊपर अाजमाया हो।

आज अच्छा लग रहा है।

अकसर हम लोग इस तरफ़ कभी ध्यान नहीं देते कि सफ़र में जाते समय या बाहर कहीं जाते वक्त दो चार दवाईयां लेकर चलना चाहिए।

सफर के दौरान सिर दुःखना या फिर एसिडिटी जैसे लक्षण मुझे अकसर हो जाते हैं। मुझे याद है कि एक बार हम लोग दिल्ली से फिरोज़पुर जा रहे थे.. रास्ते में सिर दर्द शुरू हो गया ..भटिंडा पहुंचने पर मुझे इतना सिर दर्द हुआ कि मेरे में चलने की बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी लेकिन फिर भी मैं अपनी मां और तीन-चार साल के बेटे को प्लेटफार्म पर छोड़ कर बाहर एक डिस्परिन की टेबलेट लेने गया।

मैं लगभग पिछले कईं वर्षों से बाहर चाय नहीं पीता.....जब से यह मिलावटी दूध वूध के किस्से सुनने में आने लगे हैं, इसलिए कईं बार थोड़ा विदड्रायल सा होने की वजह से सिर दुःखता है सफर के दौरान या फिर एसिडिटी हो जाती है, इसलिए एसिडिटी के लिए भी ओमीप्राज़ोल कैप्सूल जैसी दवाईयां अपने साथ रखता हूं।

बस यही लिखना चाह रहा था आज इस पोस्ट में कि अपने साथ दो-चार दवाईयां जिन की हमें अकसर ज़रूरत पड़ती है लेकर ही चलना चाहिए। आप का क्या ख्याल है। रात के समय अकसर कैमिस्ट की दुकानें बंद होती हैं, दिक्कत होती है।