शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

तेज़ाब से मौत नहीं होती, तेज़ाब हर पल मारता है...भाग १

कितने हादसे हो गये, छोटी छोटी बच्चियों की ज़िंदगीयां खराब कर डालीं इन तेज़ाब फैंकने वाले हैवानों ने।
दस दिन पहले की बात है मुझे अजमेर स्टेशन पर कुछ काम था, मैं बाहर निकला तो मुझे कुछ किताबें खरीदनी थीं, किसी ने बताया कि सामने ही चूड़ी बाज़ार है, बस वहां से बाएं मुड़ेंगे तो किताबों की दुकानें आ जाएंगी।
मैं जिस रास्ते से जा रहा था तो मैं एक दो दुकानों को देख कर हैरान रह गया कि वहां पर एसिड दुकान के बाहर रखा पड़ा था, बोतलों में --पीले रंग का तेज़ाब...वैसे तो कोई खास बात नहीं, एसिड खरीदना वैसे कौन सा इतना मुश्किल काम रहा है, कोई भी जा कर ले आए। लेकिन जिस तरह से बोतलें तैयार कर उसे दुकान के बाहर रख छोड़ा गया था, उसे देख कर मुझे किसी शरारत, दुर्घटना के अंदेशे का ध्यान आ गया।
कितना घिनौना और पाशविक काम है किसी ठीक ठाक बंदे पर तेज़ाब फैंक कर उस की ज़िंदगी को नर्क बना देना।
९जुलाई २०१३ का दैनिक भास्कर (जयपुर) देख कर आस बंधी ....
बगैर कानून िबक रहा है तेज़ाब, सुप्रीम कोर्ट में अहम् सुनवाई आज..... सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह एसिड बेचने के कायदे तय करे। वरना कोर्ट इसकी बिक्री पर ही रोक लगा देगी। 
भास्कर में संपादकीय भी उस दिन था -- तबाही रोकने के लिए तेज़ाब पर ही रोक लगानी चाहिए......
जब पूर्व प्रधानमंत्री एच डी दैवेगोड़ा की पत्नी चेन्नमा पर तेज़ाब फेंका गया तो सारा राष्ट्र भौंचक रह गया था। बारह वर्ष हुए उस वारदात को। उन की पुत्रवधु भी इस हमले का शिकार हुई थी। मामला पारिवारिक कलह का था। हमलावर उन का भतीजा लोकेश था। पूजा कर हरदनहल्ली के शिव मंदिर से बाहर निकली थीं चेन्नमा। लोकेश के हाथ में एक बाल्टी थी। ऊपर पूजा के फूल सजे थे। नीचे तेज़ाब भरा था। वही फैंका। पुलिस को कोई शक न हो सका।
कोई हथियार इतना सस्ता, इतनी आसानी से मिलने वाला और इतनी सरलता से हमले में काम आने वाला हो ही नहीं सकता जितना कि तेजाब। और कोई दूसरा हथियार जिस्म और इंसानियत की ऐसी तबाही नहीं ला सकता, जितना कि तेज़ाब। क्योंकि इसे सुरक्षाकर्मी, स्कैनर, मैटल डिटेक्टर पकड़ ही नही ंसकता, सीसीटीवी भी नहीं।
तेज़ाब से मौत नहीं होती, तेज़ाब हर पल मारता है। 
तेज़ाब फैंकने वाले किस कदर हैवान होते हैं, इसका सबसे हैरान कर देने वाला वाक्या ईरान का अमीना केस है। चलिए इस के बारे में अगली पोस्ट में बात करते हैं।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

और आर टी आई यूज़र कैसे बन गया एक्टिविस्ट

अमृतसर जाने का मौका मिला -- स्कूल का दोस्त रमेश -- लंबे समय तक हम लोग गप्पबाजी करते रहे। उसे सूचना के अधिकार कानून के बारे में काफी जानकारी है .. अकसर वह मेरे  साथ अपने अनुभव शेयर करता रहता है।
एक बहुत ही अजीब सी बात उस से पता चली कि उस के बहुत से काम रूकने लगे हैं...अपने विभाग में भी उस के काम नहीं हो रहे -- कारण वही चूतिया सा एक संकीर्णता मानसिकता को दर्शाता हुआ कारण कि वह बहुत आरटीआई लगाता है।
और बताने लगा कि उसी के विभाग के बॉस ही उस के बारे में यह बात फैलाने लगे हैं -- कह रहा था कि सारे एक जैसे नहीं है लेकिन हर विभाग में एक दो तो होते हैं जो ......गुलामी (समझ गये कि नहीं) में एक दम फिट होते हैं ..बताने लगा कि वही लोग उस के बारे में कुछ लोगों को हर वक्त कहते रहते हैं कि यह आर टी आई करता है।
जब उस ने अचानक यह कहा कि क्या आरटीआई लगाना किसी को गाली देना है  तो मुझे एक बार तो उस की बात सुन कर झटका सा लगा कि यह ऐसा क्यों कह रहा है। लेकिन वह भी अपनी धुन का पक्का है ...बताने लगा कि ये लोग तरह तरह की च..चालाकी( अभी भी नहीं समझे, धत्त तेरे की..) करके उस के इरादों से उसे डगमगा नहीं सकते।
मैं भी टकटकी लगा कर उस  की बातें सुन रहा था ...बड़ा अजीब सा लग रहा था कि अगर कोई आरटीआई पूछ रहा है तो यह भी उस का एक अधिकार है जो वह इस्तेमाल कर रहा है, इस से जो डर रहा है वह क्यों डर रहा है, वह कईं किस्से बताने लगा।
उस ने मुझे कईं किस्से सुनाए जहां पर उस के बहुत से काम बनते बनते बिगड़ गए, केवल इसलिए कि उस से पहले उस की आरटीआई के चर्चे उस काम करने वाले बंदे तक पहुंचा दिए गये ---और वह उस चश्मे वाले बंदे का नाम भी मुझे बताने लगा .. दोस्त मिले थे बहुत दिनों बाद और बाद में उस ने उस के बारे में क्या क्या बताया, वह मैं यहां नहीं लिख सकता।
अच्छा एक और बात, रमेश ने जितने भी आरटीआई आवेदन लगाए अपने लिए ही लगाए .... अपनी सर्विस के बारे में कुछ पूछना क्या कोई ज़ुर्म करने जैसा है, नहीं ना तो फिर वह यही प्रश्न मेरे से पूछने लगा कि फिर आरटीआई के नाम से ही कुछ लोगों की ....ने क्यों लगती है, इस का सीधा मतलब है कि यह अपने आप में एक सक्षम हथियार है।
बहरहाल, हमारी डिस्कशन तो लंबी चलती है जिस में मैंने भी अपने आरटीआई अनुभव सांझे किये ... कुछ सुना बहुत कुछ सुनाया ...लेकिन अंत में एक बात अच्छे से समझ में आ गई ---जिन कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों के कारण ऐसा बढ़िया कानून बन गया उन को कोटि कोटि नमन....
पूरन के ढाबे पर खाने का लुत्फ़ उठाते उठाते उस ने मुझे एक बात ज़रूर कह दी .... कहने लगा कि यार आज की तारीख नोट कर लेना .. मैं पूछा क्या मतलब .... बताने लगा कि पहले तो वह था आरटीआई यूज़र लेकिन आज से एक आरटीआई एक्टिविस्ट तैयार हो गया.........शायद मैं उस की बात समझ नहीं पाता .. उस ने खुलासा किया कि वह अब दूसरों के लिए अर्थात् समाज की भलाई के लिए इस कानून का उपयोग करेगा।
मैं उस की बातें सुना जा रहा था ..सुने जा रहा था ...... और बहुत कुछ अपने आप से भी पूछ रहा था ....बाकी फिर ...
संगति का असर देखिए -- मैंने भी वापिस आते ही अपने इस आरटीआई  ब्लॉग को खोला और इसे संवारने में लग गया हूं ...कोशिश करूंगा कि इस पर निरंतर लिखूं ... और पूरी इमानदारी से लिखूं ..अभी समझ नहीं पा रहा हूं कि इसे हिंदी में ही रहने दूं या फिर इंगलिश में आरटीआई पर लिखना शुरू करूं ...........लेकिन मैं उस दोस्त की बातों से इतना प्रभावित हुआ हूं कि मुझे भी लगता है कि मैं भी आर टी आई यूज़र से पदोन्नत हो कर ..................     कुछ नहीं यार, कुछ नहीं ... यह गीत सुनिए  जिस का ध्यान आ गया .... समझने वाले तो समझ ही जाएंगे ...............