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बुधवार, 2 अप्रैल 2008

अच्छा तो अब तस्वीरें ही करेंगी अपना काम !!



यह जो न्यूज़-रिपोर्ट आप देख रहे हैं यह 20 मार्च के समाचार-पत्र में छपी थी। इस में यह खबर सुन कर बहुत खुशी हुई थी कि अब तो जून 24,2008 से सिगरेट, बीड़ी एवं तंबाकू के पैकटों पर तसवीर के रूप में भी चेतावनी हुया करेगी और इस चेतावनी के द्वारा पैकेट का 40प्रतिशत हिस्सा कवर किया जायेगा।
बाकी की न्यूज़-रिपोर्ट या तो आप पहले ही पढ़ चुके होंगे , नहीं तो अब पढ़ ही लेंगे। कुछ ज़्यादा डिटेल्स तो अभी इस कानून की मुझे पता नहीं हैं.......लेकिन फिर भी मैं तो बस इस न्यूज़ रिपोर्ट की उस एक बात की तरफ आप सब का ध्यान खींचना चाह रहा हूं जिस में यह कहा गया है कि हर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी को अंग्रज़ी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में स्पैसीफाई कर लिया गया है ......और दो से ज्यादा भाषायें एक पैकेट के ऊपर नहीं लिखी जायेंगी।
अब मैं यही सोच रहा हूं कि क्या इन दोनों भाषाओं में देश की राष्ट्रभाषा भी कहीं शामिल है या नहीं !.....क्योंकि मेरे विचार में अगर च्वाइस एक क्षेत्रीय भाषा की हो और एक दूसरी भाषा की , तो केवल और केवल हिंदी को ही तरजीह मिलनी चाहिये। इस का कारण केवल इतना ही है कि हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो सारे देशवासियों को एक सुंदर माला में पिरो कर रखती है। अगर इन पैकेटों पर कम से कम एक चेतावनी हिंदी में लिखी होगी तो इस देश का बशिंदा चाहे वह कहीं का भी वासी हो रोज़ी-रोटी के लिये कहीं भी बसा हुया हो तो भी एक चेतावनी हिंदी में होने की वजह से उसे सारी बात सही तरह से समझ में आ जायेगी।
नहीं तो आप एक कल्पना कीजिये कि पंजाब में बिक रही बीड़ी के पैकेटों पर अगर एक चेतावनी तो अंग्रेज़ी में होगी और दूसरी पंजाबी (गुरमुखी लिपि) में लिखी होगी तो उन हज़ारों लाखों लोगों पर इस का कितना प्रभाव पड़ पायेगा जो दूसरे प्रांतों से आकर यहां बसे हुये हैं। सीधी बात यह है कि हिंदी को हमें याद रखना ही होगा....अगर कहीं हिंदी भूल गये तो बस हो गया इस चेतावनी का सारा काम चौपट ! जो भी हो, अभी तो इस के बारे में विस्त्तृत जानकारी हमें भी पता नहीं है। आशा है कि इन बातों का़ ध्यान रखा जायेगा।
पता नहीं, यह तंबाकू भी क्या बला है कि जिस के ऊपर इतने सारे संसाधन खप जाते हैं लेकिन फिर भी जब तक लोग इस तंबाकू के सभी रूपों को अपनी ज़िंदगी से बाहर नहीं करेंगे तब तक कुछ भी होने वाला नहीं है....चाहे जितने भी बड़े बड़े हास्पीटल खुल जायें, जितने भी बड़े बड़े कैंसर हास्पीटल खुल जायें, तंबाकू की वजह से होने वाली सांस की तकलीफ़ों से जूझने के लिये चाहे दुनिया के जितने बड़े से बड़े डाक्टर इक्ट्ठे कर लिये जायें....इन से कुछ नहीं होगा.......रोज़ाना हास्पीटलों में तंबाकू से हुई बर्बादी की मुंह बोलती तस्वीरें देख देख कर अब तो मैं भी थक सा गया हूं। सोच रहा हूं कि पंजाब में अकसर यह कहावत बड़ी मशहूर है कि अगर किसी का घर तबाह करना हो तो उस के बेटे को शराब की लत लगा दो,.....मैं तो सोचता हूं कि इतनी भी मेहनत करने की क्या ज़रूरत है.......शौक शौक में उसे सिगरेट-बीड़ी के ही चंगुल में फंसा दो, समझो काम हो गया !
अकसर सोचता हूं कि बाहर के देशों में तो सैकेंड-हैंड स्मोक का रोना इतना रोया जा रहा है लेकिन हम पहले फर्स्ट हैंड स्मोक का रोना रोने से तो फारिग हो लें, सैकेंड-हैंड स्मोक के बारे में सोचने की अभी किसे फुर्सत है !!!

रविवार, 17 फ़रवरी 2008

वैधानिक चेतावनी का ढोंग.......!

“ यह तम्बाकू चबाने में खुशज़ायका है और बेजरर है। दांतों को पायरिया से बचाता है। मुंह में खुशबू पैदा करता है।” एक पाउच पर यह लिखा हुया है तो कोई दूसरा पाउच चीख-चीख कर यह कह रहा है…… “फिल्टर तम्बाकू पाउच अपने होंठ के बीच में रखें और चैन से मज़ा लें( चबायें नहीं)”। ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं कि किस तरह से इन विनाशकारी उत्पादों की मशहूरी की जाती है। काश, उस के साथ यह भी लिखा होता कि होंठ के बीच में रखें और फिर होंठ के भयानक कैंसर से बच कर दिखायें।

मैंने लगभग 65 -70 पान-मसालों, गुटखों एवं तम्बाकू के पाउचों का अध्ययन किया है...जिन में से केवल चार-पांच तंबाकू के पाउचों पर वैधानिक चेतावनी हिंदी में लिखी पाई। कितने अफसोस की बात है कि इस विशाल देश में जहां बहुत ही कम लोग अंग्रेज़ी जानते हैं , वहां इतनी बड़ी जानकारी जिन का उनकी सेहत से सीधा संबंध है अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध करवाई जा रही है। क्या इस तरफ़ किसी एऩजीओ का ध्यान नहीं गया ?....शायद आप मेरी बात से सहमत होंगे कि इस तरह की चेतावनी इस देश में केवल अंग्रेज़ी में ही लगा देने से कुछ होने वाला नहीं है।

चलिए, एक बात यह भी मान लें कि क्या ग्राहक को वैसे नहीं पता कि इस तरह के सभी उत्पाद उस की सेहत के साथ उत्पात ही मचाते हैं। लेकिन जब वैधानिक चेतावनी का प्रावधान है तो फिर ये कंपनियां आखिर क्यों इस की धज्जियां उड़ाने पर उतारू हैं। क्यों नहीं लिखतीं यही बात ये हिंदी में ...जब कि कईं पाउचों पर तो इन का ट्रेड-नेम तो आठ-दस भारतीय भाषाओं में भी लिखा होता है। अंदर की बात तो यही है कि ये नहीं चाहतीं कि ग्राहक यह सब पढ़ सके, समझ सके........क्या पता कभी उस पर लिखी चेतावनी अगर उस की भाषा( कम से कम राष्ट्रीय भाषा में )में ही हो तो वह इसे पढ़ कर इसे छोड़ने के लिए ही मन बना ले या किसी अनपढ़ बंदे को उस का प्राइमरी कक्षा में पढ़ रहा बच्चा जब इस चेतावनी के बारे में हिंदी में पढ़ कर सुनाए तो.......। लेकिन इन सब से इन कंपनियों को क्या लेना देना.....भाड़ में जाये लोगों की सेहत, इन का पाउच एक रूपये में बिक गया तो बस इन का मिशन पूरा हो गया।

एक तंबाकू के उत्पाद के ऊपर तो यह भी लिखा था कि इसे गोल्ड-मैडल मिला हुया है....अब यह पता नहीं किस सिरफिरे ने इस तरह के उत्पाद को गोल्ड-मैडल देने की हिमाकत की होगी जो कि हर साल करोड़ों कीमती जानें लील लेता है।

इस तरह के कईं प्रोडक्ट्स पर एक स्क्वेयर के अंदर एक हरा सा बिंदु देख कर दुःख भी हुया और हंसी भी आई। कंपनी यह चिल्ला रही है कि यह शाकाहारी है...लेकिन ज़हर शाकाहारी हो या मांसाहारी इस से आखिर फर्क क्या पड़ता है।
इतने सारे प्रोड्क्ट्स पर इस चेतावनी को देखने पर यही पाया है कि इस में भी बहुत से लूप-होल्स हैं..... इस चेतावनी को पैकिंग पर बहुत ही छोटे से साइज़ में लिखा होता है और वह भी अंग्रेज़ी में, सब के सब पान-मसाले गुटखे के पैकेटों पर इन्ग्रिडिऐन्ट्स को ही हमेशा मैंने छोटे-छोटे फोंट में अंग्रेज़ी में ही लिखे पाया। बस, सीधी सी बात यह है कि इनके ये उत्पादक यह चाहते हैं कि किसी तरह से ग्राहक कुछ पढ़ ही न पाये ।

और यह एक उत्पादक ने तो यह लिखवाया हुया है कि 100% शुद्ध देशी गुटखा....अब इस को कौन समझाये कि तू काहे इतना शुद्धता के लिए परेशान हो रहा है। इस से क्या ज़हर का असर कम हो जायेगा। और एक मजेदार बात और भी है कि बहुत से पाउचों पर उन के मालिकों की सूट-टाई गाड़े हुए फोटो देख कर बहुत अजीब लगता है कि अमां, तुम काम कौन सा कर रहे हो और फिर भी लाइम-लाइट में रहने के इतने लालायित क्यों हो भई।
लाइम-लाइट में तो वैसे भी यह रह ही लेते हैं...किसी बड़े समारोह को स्पोंसर कर के, या किसी धार्मिक समारोह में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेकर ये बेगुनाहों को अंधी गली में धकेलने से कमाये हुये पाप की गठड़ी थोड़ी हल्की करने की कोशिश कर के मन को क्षणिक तसल्ली दे लेते हैं।

लेकिन मैं यह सब चीख चीख कर क्यों परेशान हो रहा हूं......क्यों कि चीखना मेरा कर्म है......क्या पता किसी एक के भी मन को मेरी बात लग जाये और क्या पता इस केस में भी स्नो-बॉल इफैक्ट हो जाये। इँशा-अल्लाह.........आप भी लगे हाथों कह ही दें......आमीन !!!!

सोमवार, 21 जनवरी 2008

आसमान से गिरे खजूर में अटके वाली बात याद दिलाती यह सिगरेट छुड़वाने वाली टेबलेट !


धूम्रपान से निजात पाने के लिए एक करामाती दवा आज कल अमेरिका, ब्रिटेन एवआस्ट्रेलिया में चल रही है। धूम्रपान विऱोधी खेमे में एक क्रांति सी ला देने वाली इस टेबलेट को अमेरिका एवं ब्रिटेन में 62 से ज्यादा मृत्यु के केसों के साथ जोड़ा गया है और मन में आत्महत्या जैसे विचारों एवं डिप्रेशन( अवसाद) के हज़ारों केसों में इसे ही जिम्मेदार ठहराया गया है।
यह टेबलेट मस्तिष्क में निकोटीन रिसेप्टरस को ही ब्लाक कर देती है ( This revolutionary pill blocks nicotine receptors in the brain) और पिछले एक साल में हज़ारों मरीज़ों में इस के दुष्परिणाम पाने जाने के बावजूद धूम्रपान विरोधी संगठन इस का समर्थन कर रहे हैं।
यह टेबलेट 26 देशों में बिक रही है। अमेरिका में 450 लाख लोग धूम्रपान करते हैं और इन में से प्रत्येक वर्ष 70फीसदी लोग धूम्रपान छोड़ना चाहते हैं । हर सिगरेट पीने वाला जब इसे छोड़ना चाहता है तो यह काम अपने ही ढंग से करता है और औसतन 8 से 11 बार इसे छोड़ने की कोशिश करता है।
इस टेबलेट को बनाने वाली कंपनी को अब इस के संभावित साइड-इफैक्टस के बारे में चेतावनी को और भी अच्छे से , पैकिंग की और भी प्रोमिनैंट जगह पर लगाने का निर्णय लेना पड़ा है।
चलो, अच्छा है वहां पर विभिन्न नियंत्रणों के रहते कंपनी को यह तो फैसला तो करना पड़ा----हमारे यहां जैसे थोड़ी ही बात है जहां पर तंबाकू उत्पादों पर ही वैधानिक चेतावनी कुछ इस तरह से दी गई होती है कि बस वे वैधानिक फार्मैलिटि ही पूरी करती दिखती हैं, बाकी कुछ नहीं....भाषा भी ज्यादातर अंग्रेजी जो देश की अधिकांश जनता न पढ़ सकती है, न समझ ही सकती है। और तो और वैधानिक चेतावनी भी कुछ इस तरह से लिखी गई होती है कि उसे कोई अगर मुश्किल से देख भी ले तो पढ़ न पाए। तंबाकू युक्त पान-मसालों एवं ज़र्दा का भी यही हाल है। बाकी सारी बात हिंदी में, लेकिन चेतावनी अकसर अंग्रेज़ी ही में होती है।
यह क्या आप किस सोच में पड़ गए........देखिए, किसी दूसरे के तजुर्बे से भी हम अगर कुछ सीख ले लेते हैं तो बहुत अच्छा है। अब तो छोड़ दो, दोस्तो, इस स्मोकिंग को न छोड़ने के बहाने---किसी टेबलेट की इंतजार न करें.....अगर अमेरिका के ठुकरा दिए जाने के बाद वह हमारे यहां आ भी जाएगी तो क्या है......आप उस के खतरनाक परिणाम अभी से ही जान चुके हो।
तो, क्या करें ?----अभी भी मेरे कुछ कहने को कुछ बचा है क्या----तो, फैंक दीजिए उस कैंसर स्टिक को जो आप हाथ में थामे हुए हैं.......Truly speaking, friends, this is very much a cancer-stick !!..इतने साल हो गए प्रोफैशन में.....लेकिन कितने लोगों ने नशा-विरोधी केंद्रों की मदद से इस लत को लात मारी होगी.....कुछ न ही कहूं तो ठीक है, आप सब भी सारी बात जानते हैं। कितने लोगों ने उस निकोटीन च्यूईँग गम को चबाने से इस आदत से निजात पाई होगी, अब क्या कहूं.......बार-बार मेरा मुंह मत खुलवाओ, दोस्तो, आप सब इन बातों के बारे में जानते हैं।
तो , तंबाकू किस को छोड़ते देखा है------केवल उन मन के मजबूत बंदों को जिन को दिल से इस शैतान से नफरत हो जाती है, और वे अचानक एक दिन ठोस फैसला कर लेते हैं कि अब नहीं.......आप अगर सिगरेट पीते हैं तो आप भी क्यों नहीं ऐसा ही करते ....एक झटके में छोड़ दीजिए......यकीन मानिए कुछ नहीं होगा.....अमेरिका वालों के पास अगर चमत्कारी गोली है , तो अपने यहां भी उस से हज़ारों गुणा ज्यादा चमत्कारी योग है, प्राणायाम है, जो आपकी इस शुभ काम में मदद कर सकता है, लेकिन आप एक बार मन बनाएं तो। हां, कुछ लोगों को इस आदत को छोड़ने पर कुछ दिनों के लिए बदन-दर्द, थोडा़ बुखार सा हो सकता है लेकिन उस के लिए तो छोटी-मोटी गोलियां हैं न, और आप का फैमिली डाक्टर है। अब , इतना तो सहना ही पड़ेगा ---अब अगर किसी ने चाय ही छोड़नी है तो उसे यह सब कुछ दिन सहना ही पड़ता है , और आप की तो इस कैंसर स्टिक छोड़ने से दुनिया ही बदल जाने वाली है।
जाते जाते एक बात, अगर कोई बंधु इस तंबाकू की लत की वजह से कोई भयंकर रोग लग जाने पर डाक्टर के कहने पर इस आदत को मजबूरी में बाय-बाय कहता है,तो मेरे विचार में यह कोई बहादुरी नहीं—
सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या हुया.......................
Please stay away from smoking and people who are smoking…..because second-hand smoke is also very bad for our health. There was a news that some country has banned smoking in cars……….काश, इस देश की बसों में बीड़ी फूंकनी भी लोग बंद कर दें....इस से वे दूसरे लोगों की सेहत को भी कितना नुकसान पहुंचाते हैं, इस बात को हम क्यों नहीं लेते इतना सीरियस्ली ?

मंगलवार, 15 जनवरी 2008

तंबाकू की लत से जुड़े कुछ मिथक....



कुछ दिन पहले जब मैं मुंबई के लोकल स्टेशनों के बाहर सुबह-सवेरे कुछ महिलाओं एवं बच्चों को दांतों पर मेशरी (जला हुया तंबाकू) घिसते हुए देख कर यही सोच रहा था कि यद्यपि यह भयंकर आदत मुंह के कैंसर को निमंत्रण देने के बराबर ही तो है, फिर भी जब हम विश्व तंबाकू मुक्ति दिवस मनाते हैं, तो उस अभियान में यह लोग केंद्र-बिंदु क्यों नहीं बन पाते। तम्बाकू पीना, चबाना, मुंह में लगाना या किसी भी रूप में प्रयोग करना नई महामारी को खुला निमंत्रण दिए जा रहा है और हम अपने अधिकतर संसाधन लोगों को केवल सिगरेट के दुष्परिणामों से वाकिफ़ करवाने में ही लगा देते हैं.........लेकिन समय की मांग है कि इस के साथ-साथ देश में व्याप्त तंबाकू प्रयोग से संबंधित विभिन्न मिथकों को तोड़ा जाए !!
बीड़ी सिगरेट से कम हानिकारक ?----
यह बिल्कुल गलत सोच है। बीड़ी भी कम से कम सिगरेट के जितनी तो घातक है ही। इस को सिगरेट की तुलना में चार से पांच गुणा लोग पीते हैं। एक ग्राम तंबाकू से औसतन एक सिगरेट तैयार होती है लेकिन इतना तंबाकू 3या 4 बीड़ीयां बनाने के काम आता है।
बीड़ी का आधा वज़न तो उस तेंदू के पत्ते का ही होता है जिस में तम्बाकू लपेटा जाता है। इतनी कम मात्रा में तम्बाकू होते हुए और अपना छोटा आकार होते हुए भी एक बीड़ी कम से कम भारत में बने एक सिगरेट के समान टार तथा निकोटीन उगल देती है, जब कि कार्बनमोनोआक्साइड तथा अन्य विषैले रसायनों की मात्रा तो बीड़ी में सिगरेट की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है।
हुक्का पीना....कोई बात ही नहीं.....यह तो सब से सुरक्षित है ही !---रीयली ???-----हुक्के के कश में निकोटीन की मात्रा थोड़ी कम होती है क्योंकि इस में धुआं लम्बी नली व पानी में से छन कर आता है, लेकिन कार्बन-मोनोआक्साईड तथा कैंसर पैदा करने की क्षमता में कमी नहीं होती है। हुक्के में तंबाकू की मात्रा ज्यादा होती है जिससे शरीर में निकोटीन की मात्रा, ज्यादा देर तक हुक्का पीने के कारण बीड़ी सिगरेट के बराबर ही हानि पहुंचाती है।
यार, पिछले बीस-तीस साल से तो ज़र्दा-धूम्रपान का मज़ा लूट रहे हैं, अब क्या खाक होगा !----- ज़र्दा एवं धूम्रपान से होने वाली बीमारियों का शुरू शुरू में तो कुछ पता चलता नहीं है, इन का पता तब ही लगता है जब कोई लाइलाज बीमारी हो जाती है। लेकिन यह ही पता नहीं होता कि किस को यह लाइलाज बीमारी पांच वर्ष ज़र्दा-धूम्रपान के सेवन के बाद होगी या तीस वर्ष के बाद। चलिए, एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं--- अपने मकान के पिछवाड़े में बार-बार भरने वाले बरसात के पानी को यदि आप न देख पायें तो नींव में जाने वाले इस पानी के खतरे का अहसास आप को नहीं होगा। इस का पता तो तभी चलेगा जब इससे मकान की दीवार में दरार आ जाए या मकान गिर जाए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। ज़र्दा-धूम्रपान एक प्रकार से बार-बार पिछवाड़े में भरने वाले पानी के समान है।
रोगों को मिल गई खान,
जिसने किया ज़र्दा-धूम्रपान !!
पान-मसाला, ज़र्दा मुंह को बस थोड़ा तरोताज़ाही ही तो करता है, और है क्या, काहे की टेंशन मोल लें ?-
दोस्तो, पिछले दो-तीन दशकों से तो हमारे देश में तंबाकू खाने की लत बहुत ही बढ़ गई है। पान-सुपारी-चूना वगैरह के साथ तंबाकू मिलाकर उसे चबाने की अथवा गालों के अंदर या जीभ के नीचे या फिर होठों के पीछे दबा कर रखने की बुरी आदत शहरी एवं ग्रामीण दोनों वर्गों में बहुत ज्यादा देखने को मिलती है। पान-मसालों या तंबाकू युक्त गुटखा के उत्पादों का आकर्षण तो बस बढ़ता ही जा रहा है। इन को तो विज्ञापनों की मदद से कुछ इस तरह से पेश किया जाता है कि ये तो मात्र माउथ-फ्रेशनर ही तो हैं !!—लेकिन ये लतें भी धूम्रपान जितनी ही नुकसानदायक हैं।
इन के प्रयोग से मुंह की कोमल त्वचा सूखी, खुरदरी तथा झुर्रीदार बन जाती है। मरीज का मुंह धीरे-धीरे खुलना बंद हो जाता है और उस व्यक्ति की गरम, ठंडा, तीखा, खट्टा सहन करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। इस स्थिति को ही सब-म्यूकस फाईब्रोसिस कहा जाता है और यह मुंह में होने वाले कैंसर के लिए खतरे की घंटी ही है।
अब, देखा जाए तो देश में तंबाकू की रोकथाम के कायदे-कानून तो काफी हैं...लेकिन, दोस्तो, बात फिर वहीं आकर खत्म होती है कि कायदे, कानून कितने भी बन जाएं, लेकिन फैसला तो केवल और केवल आप के मन का ही है कि आप स्वास्थ्य चाहते हैं या तंबाकू-----अफसोस, आप दोनों को नहीं चुन सकते। बस, कोई भी फैसला लेते समय ज़रा ये पंक्तियां ध्यान में रखिएगा तो बेहतर होगा....
ज़र्दा-धूम्रपान की लत जो डाली,देह रह गई बस हड्डीवाली !!

2 comments:

Gyandutt Pandey said...
कोई केन्सर अस्पताल का एक भ्रमण कर ले और मुंह के केन्सर के रोगियों की तादाद और व्यथा देखले तो तम्बाकू से वितृष्णा हो जाये - चाहे उसका सेवन किसी भी तरीके से हो।
Dr.Parveen Chopra said...
पांडे जी, आप बिलकुल सही फरमा रहे हैं। मुंह के कैंसर के रोगियों की मौत निसंदेह बेहद खौफनाक होती है।
पांडे जी, समय समय पर आप के द्वारा दिए गए प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

खुद मोल खरीदा जाने वाला एक शैतान ...


कुछ समय पहले एक 17वर्षीय किशोर से मिलने का मौका मिला जो अपने पिता के साथ मेरे पास मुंह के छालों के इलाज के लिए आया था। उस के मुंह के अंदर एक नज़र मारने मात्र से पता चला कि उस के मुंह के अंदर एक गाल पर सफेद, झुर्रीदार दाग एवं एक ज़ख्म है। उसे इस के बारे में न तो कुछ पता ही था और न ही उसे इस की कोई तकलीफ ही थी। सीधी सी बात है कि जब उसे यह ही नहीं पता था कि गाल के ऊपर ऐसा-वैसा कुछ है तो कितने समय से यह है, यह पूछने का तो सवाल ही न उठता था। दोस्तो, इस अवस्था तो ओरल-ल्यूकोप्लेकिया (oral leukoplakia) कहा जाता है ----यह मुंह के कैंसर की कैंसर पूर्व-अवस्था (प्री-कैंसर) है। अगर किसी भी रूप में तंबाकू का उपभोग इस अवस्था में भी छोड़ दिया जाए तो स्थिति के आसानी से काबू आने के काफी चांस होते हैं। लेकिन सोचने वाली बात तो यही है दोस्तो कि तंबाकू छोड़ने के लिए इस अवस्था में पहुंचने तक आखिर इंतजार ही क्यों किया जाए ?--- इस अवस्था में पहुंचने पर भी अगर तंबाकू, गुटखे, पानमसाले एवं पान से मोह बना रहे तो यह प्री-कैंसर की अवस्था मुख कैंसर का रूप भी धारण कर सकती है।

हां, तो मैं उस 17वर्षीय लड़के की बात कर रहा था, लेकिन वह लड़का तो यह मानने को तैयार ही न था कि उसने कभी भी तंबाकू को किसी भी रूप में इस्तेमाल किया है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ल्यूकोप्लेकिया की यह अवस्था सामान्यतयः इन खतरनाक उत्पादों के सेवन के बिना तो हो ही नहीं सकती। बार-बार एक ही बात पूछने पर लड़के ने आखिर बता ही दिया कि वह पिछले पांच वर्षों से तंबाकू-चूने का सेवन कर रहा है। उसने झट से अपनी जेब से तंबाकू-चूने का पाउच भी निकाल कर बाहर मेरी टेबल पर रख दिया।

शायद यह पढ़ कर आप भी सकते में आ गये होंगे लेकिन चौंकाने वाला कड़वा सत्य यही है कि अब छोटी उम्र में भी इस तरह की समस्या एक विकराल रूप धारण किए जा रही है। किशोरावस्था में ही इन रोगों की प्रारंभिक अवस्थाएं दिखना चिकित्सकों के लिए दुःखद चुनौती तो है , इस के साथ ही साथ समाज के लिए भी यह खतरे की घंटी है।

पिछले लगभग दो दशकों से मुंह के कैंसर से ग्रस्त रोगियों को अकाल मृत्यु का ग्रास बनते देख रहा हूं। हमारे देश में मुंह के कैंसर के रोगियों की संख्या बहुत ज्यादा है। इन में से अधिकांश के पीछे एक ही शैतान है---विलेन नं1---अर्थात् किसी भी रूप में तंबाकू का उपयोग। यह अकसर देखने में आया है कि लोग अकसर सिगरेट को ही ज्यादा बुरा समझते हैं जब कि वास्तविकता यह है कि स्मोकलैस तंबाकू( जिस के कश तो न खींचे जाएं, लेकिन जिसे चबाया जाए, गाल के अंदर रख कर चूसा जाए, गुटखा, ऩसवार, मसूड़ों के ऊपर लगाए जाने वाले तंबाकू वाले मंजन....लिस्ट काफी लंबी है) के भी सभी रूप बेहद घातक हैं।

आप इस विडंबना की तरफ भी गौर कीजिए - शरीर के अंदरूनी हिस्सों की तुलना में मसूड़े, गाल के अंदरूनी हिस्से, होंठ, जिह्वा, तालू ....ये सब शरीर के वे भाग हैं जिन में होने वाले किसी भी घाव अथवा बदलाव को बड़ी आसानी से प्रारंभिक अवस्था में ही देखा जा सकता है, फिर भी मुख-कैंसर के अधिकांश मरीज़ इस बीमारी के काफी उग्र रूप धारण कर लेने पर ही विशेषज्ञ के पास जाते हैं, लेकिन तब तक अकसर काफी देर हो चुकी होती है। जो मरीज मुंह में ल्यूकोप्लेकिया होने के बावजूद भी तंबाकू की गिरफ्त में हैं, दोस्तो, इसे हम धीरे-धीरे की जाने वाली आत्महत्या नहीं तो और क्या कहें ?--वैसे तो हमें नियमित रूप से स्वयं भी घर पर अपने मुख के अंदरूनी हिस्सों को शीशे में कभी-कभार जरूर देखते रहना चाहिए ताकि किसी तरह के बदलाव अथवा घाव को तुरंत पकड़ा जा सके।

दोस्तो, एक तो वैसे ही हमारे द्वारा किए जा रहे प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के फलस्वरूप जल,वायु एवं खाध्य पदार्थों के प्रदूषण के बारे में तो हम सब को पता ही है, ऊपर से तंबाकू एवं शराब जैसे मादक पदार्थों को जले पर नमक छिड़कने के लिए खरीद कर हम अपनी ज़िंदगी से आखिर क्यों खिलवाड़ करते हैं !!---तंबाकू के तो , दोस्तो, सभी रूप ही घातक हैं, इस के सभी उत्पाद केवल उत्पात ही मचाते हैं। यहां तक कि हुक्का पीना भी खतरे से खाली नहीं है। समझदारी इसी में ही है कि हम इन सब वस्तुओं से मीलों दूर रहें , सीधा-सादा संतुलित आहार लें जिस में हरी-पत्तेदार सब्जियां एवं मौसमी फल भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो।

हमारे देश में तो बहुत से लोग तंबाकू-चूने एवं गुटखे को होठों या गाल के अंदर दबा लेते हैं जहां से धीरे धीरे इस का रस चूसते रहते हैं। जिन लोगों को तंबाकू चबाने के इलावा शराब पीने की भी आदत है, उन में तो मुख-कैंसर होने की और भी ज्यादा संभावना रहती है। कुछ लोग तो इस तंबाकू-चूने के मिश्रण को रात में भी मुंह में दबा कर सो जाते हैं। बम्बई के टाटा हास्पीटल के एक पूर्व निर्देशक, डा.राव साहब, एक बार कह रहे थे कि अगर लोग रात को सोने से पहले अपने दांत साफ करने की आदत ही डाल लें तो भी मुंह के कैंसर के रोगियों की संख्या में भारी गिरावट आ जाएगी----इस का कारण यह है कि एक बार रात में सोने से पहले अपना मुंह साफ कर लेने के पश्चात तंबाकू-चूने अथवा गुटखे को मुंह में दबाने की भला किसे इच्छा होगी !! कितनी सही बात है !!!

गुरुवार, 20 दिसंबर 2007

काश, किसी तरह भी इस लत को लात पड़ जाये !

किसी तरह भी अगर हम इस तंबाकू, गुटखे एवं पान-मसालों की लत को करारी लात मार दें न..........
एक डाक्टर होने के नाते नित-प्रतिदिन तंबाकू, गुटखे एवं पान-मसालों द्वारा किए जा रहे विनाश के केस देखता रहता हूं- और दुःखी होता रहता हूं। मुझे दुःख इस बात का ज्यादा होता है कि इस लत से होने वाली सारी भयकंर बीमारियों से कितनी आसानी से बचा जा सकता है- बस अगर हम लोग यह ठान लें कि इस लत को लात मारनी ही है। अब आप तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन कर रहे उस बेचारे (बेचारा न कहूं तो और फिर क्या कहूं दोस्तो) बंदे की मानसिक स्थिति की आप कल्पना कीजिए जब वह किसी डाक्टर के पास मुंह में एक घाव को दिखाने के लिए जाए और डाक्टर को उस घाव को देखते ही मुंह के कैंसर का संदेह हो जाए। यही हो रहा है---- यकीन माऩिये, ये सभी तंबाकू मिले पदार्थ मानव जाति की सेहत से खिलवाड़(इस से भयंकर शब्द मुझे कोई सूझ नहीं रहा है) ही कर रहे हैं।
प्रिंट मीडिया में आप भी तो इन सब के विज्ञापन अकसर देखते ही रहते होंगे- इन के विज्ञापनकर्ता भी क्या शातिर-दिमाग होते हैं, इस का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य संबंधी वैधानिक चेतावनी का पाखंड पूरा किया जाता है लेकिन इस का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि इस कम से कम लोग ही पढ़ पाएं। इस का फांट इतना छोटा होता है, इस को इतने अजीब से ढंग से छापा जाता है, अजीब से हाशिये में रखा जाता है कि कोई इसे पढ़ने की अच्छी खासी ज़हमत उठाए तो ही इसे वह देख पाएगा। यह सब देख कर मुझे बड़ी फ्रस्ट्रेशन होती है कि यार हम लोग इतने पढ.-लिख कर अपने ही बंदों को न तो बीड़ी बुझाने के लिए ही मना पाए और न ही उन्हें पान मसाले की आदत को हमेशा के लिए थूकना ही सिखा पाए। कहीं यह हम लोगों का ही फेल्यर ही तो नहीं है--- ऐसा विचार अकसर मुझे परेशान करता रहता है।
मीडिया की बात चल रही है तो एक और बात निकली कि जब देश में फिल्मों में सिगरेट बीड़ी पीते हुए कलाकार दिखाने पर मनाही की बात चली तो जो हंगामा हुया उस के बारे में आप सब जानते हैं, दोस्तो। बात छोटी नहीं है, एक छोटा बच्चा दिन में कईं बार विभिन्न कलाकारों को कश पर कश खींचते देखेगा तो क्या उस के कोमल मन पर कुछ छाप रह नहीं जाएगी --जरूर रह जाएगी - क्योंकि आज कल, दोस्तो, बच्चों के रोल-माडल यही लोग बन गए हैं। कुछ कह रहे हैं कि ऐसे तो फिल्मों में पान खाते हुए भी दिखाना बंद करना होगा-- निःसंदेह सादा पान सुपारी वाला अथवा तंबाकू वाला दोनों सेहत के लिए हानिकारक हैं - फिर भी इस बात को फिल्मों के दृश्यों तक खींचना बाल की खाल निकालने के बराबर होगा। इन रोल-माडलों की हम बात ही क्या करें, ये तो किसी समारोह में जा कर लाल फीता काटते हुए प्लास्टिक मुस्कान बिखेरने का एक करोड़ रूपया ऐँठ लेते हैं।
सीधी सी बात है कि तंबाकू एवं जिन भी वस्तुओं में तंबाकू का उपयोग किया जाता है ( कुछ मंजनों एवं पेस्टों में भी तंबाकू मिला होता है--ध्यान कीजिए) उन का सेवन करना आत्मघात के बराबर ही है। तो चलें, थोड़ी इस के बारे में जानकारी फैलाएं - जब एक बंदा भी इस लत को लात मारता है न, तो उस बंदे से जुड़े बीसियों लोगों की ज़िंदगी में भी अच्छे के लिए एक बदलाव आता है। आप मानते है न ऐसा होता है ? वैसे जाते जाते आज की ही एक बात ध्यान में आ रही है- आज दोपहर मैं याहू आंसर्स में स्वास्थ्य से संबंधित प्रश्नों के उत्तर लिख रहा था तो एक अमेरिकी लड़के का एक प्रश्न था ---कि मेरे मुंह में घाव है , लेकिन इस के बावजूद भी क्या मैं नसवार की पोटली मुंह में रख सकता हूं ( वहां पर इस तरह के सूखे तंबाकू का युवाओं में बड़ा फैशन है) और साथ में उस ने यह भी रिक्वेस्ट की थी कि कृपया मुझे इस तरह के उत्तर मत दीजिए कि इस से मुंह का कैंसर होता है,इस से यह होता है , इस से वह होता है, ----तो दोस्तो ...मैंने भी उस के प्रश्न का जवाब कुछ इस तरह से ही देना ठीक समझा .................Dear, you already know the answer to your question, so good luck. At this juncture I dont have much to say to you except wishing you all the best !!!

उभरने ही नहीं देतीं,
ये बेमाइगियां दिल की ,
नहीं तो कौन सा कतरा है,
जो दरिया हो नहीं सकता............