शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

मुंह का कैंसर एक ५२ वर्ष की महिला में...

आज देर शाम मैंने एक साईकिल रिपेयर वाले दुकानदार से किसी का पता पूछा तो मैंने नोटिस किया कि वह दांतों पर कुछ घिस रहा था...मैंने यही अनुमान लगाया कि यह तंबाकू ही होगा।

मैंने उसे इतना तो कहा ही कि यह ठीक नहीं होता मुंह में घिसना....भयंकर बीमारी हो सकती है। उसने पड़ोस के एक डाक्टर का नाम लेते हुए कहा कि मुझे तो इन्हीं डाक्टर साहब ने ही यह इस्तेमाल करने की सलाह दी है...उस ने मुझे बताया कि डा साहब तो मेरी जान बचा चुके हैं...एक दिन उन्होंने मुझे कहा कि तुम पांच रूपये बीड़ी के बंडल पर इस्तेमाल कर के धुएं में उड़ा देते हो....लेकिन यही काम तुम एक रूपये में इस मंजन से भी हासिल कर सकते हैं...बस, उस को अंदर मत लेना, थूक दिया करो। मुझे उसने दिखाया कि वह पाउच गुल मंजन का है जो एक एक रूपये में और तीन रूपये में बिकता है।

उस के बात से लग रहा था कि वह झूठ नहीं बोल रहा था.....लेकिन जिस तरह से अपने व्ययसन में डाक्टर को घसीट रहा था, लग रहा था कि बंडल मार रहा है।

मैंने उसे फिर से कहा कि यह बहुत नुकसान करता है लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि वह मेरी बात नहीं मानेगा।

उस के साथ बात करते करते मुझे एक ५०-५२ वर्ष की महिला का ध्यान आ गया...यह महिला मेरे पास कुछ सप्ताह पहले आई थी कि मुंह में कुछ ज़ख्म है १५ दिन से ..गांव में खूब दवा करी है, लेकिन कुछ आराम नहीं आ रहा..मैंने मुंह में झांकने से पहले ऐसे ही सरसरी पूछ लिया कि तंबाकू का इस्तेमाल करते हो...तो उसने बताया कि वह पिछले पांच सालों से गुटखा चबाती है ..चार पांच पैकेट और साथ में दिन में दो बार गुल मंजन का इस्तेमाल करती रही है, अब १५ दिनों से सब बंद कर दिया है...जब से यह घाव हो गया है।

घाव तो पहले से हो होगा, इस महिला ने ध्यान नहीं किया होगा...लेिकन मुझे पूरा संदेह था कि यह कैंसर का घाव ही है.....लेकिन वह अकेली आई थी...उसे कैसे बताया जाए ...मैंने उस पति के साथ आने को कहा ....अब बॉयोप्सी से ही पता चल पाएगा कि मेरा अनुमान गलत है या नहीं, लेकिन मुझे पता है कि मेरा अनुमान ठीक है।

बड़ा दुःख होता है कईं बार जब कोई हंसता खेलता मरीज आप के पास आए....एक ऐसी तकलीफ़ लेकर जिसे वह बिल्कुल छोटा मोटा समझता है ...लेकिन डाक्टर की जब उस तकलीफ़ पर निगाह पड़ती है...

उस दिन उस मरीज़ को बिल्कुल भी डराये बिना इतना तो समझा ही दिया जाता है ..इधर उधर की बातों से ...कि वह इस घाव का तुरंत उपचार करवाए....क्योंकि अगर १० मिनट इस तरह के मरीज़ के साथ नहीं बिताए जाएंगे तो बहुत बार ऐसा भी हो सकता है कि वह लौट कर ही न आए...यूं ही किसी नीम-हकीम के चक्कर में भी पड़ सकता है, जिस से रोग बढ़ जाता है।

वैसे अगर शुरूआती दौर में मुंह का कैंसर दिख जाए तो इलाज काफ़ी हद तक सफल हो सकता है।

जो भी हो, तंबाकू-गुटखा-पानमसाले, ज़र्दे, पान, तंबाकू वाले मंजन से होने वाले मुंह के कैंसर के किसी भी मरीज़ को देखना बेहद दुःखद होता है.......हर ऐसे मरीज़ को देख कर लगता है कि यह चिकित्सा क्षेत्र की नाकामयाबी है कि हम लोग उस मरीज़ तक कुछ महीने या साल पहले नहीं पहुंच पाए.....और उसे ये सब आदतें छोड़ने के लिए प्रेरित नहीं कर पाए..

अफसोसजनक......बहुत अफसोसजनक!

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

ज्योतिष परामर्श ५०० रूपये में...

५ जुलाई २०१५ (रविवार)
रात आठ बजे
बंबई-पुणे एक्सप्रेसवे
स्थान...लोणावला

परसों रात लोणावला में जैसे ही हम लोग खाना खाने के लिए एक जगह पर रूके तो मेरा ध्यान उस रेस्टरां के पीछे बैठे एक ज्योतिषि टाइप बंदे पर गया...

ज्योतिष विद्या के बारे में मैं अपने विचार आप से साझा कर लूं पहले....मैं मानता हूं कि यह विद्या बहुत महान् है...लेकिन बस भविष्य और अतीत का पता करने के लिए....होनी अटल है, उसे बदला नहीं जा सकता...केवल ईश्वर ही चाहे तो होनी को बदला जा सकता है या फिर अमर-अकबर-एंथोनी।

ज्योतिष विद्या एक बहुत वैज्ञानिक विषय है, लोगों ने इस में पीएचडी भी की हुई है..लेकिन इस विद्या को जब कुछ ऐरे-गैरे इस्तेमाल करने लग जाते हैं....लोगों के भय को भुनाने के लिए तो मुझे अजीब सा लगता है।

जहां तक मेरी बात है, मैं और सारा परिवार ...  हम होनी अटल है वाली बात पर विश्वास करते हैं....इसलिए ज्योतिषों के पास कभी नहीं गए।

हां, तो उस ज्योतिषी जैसे पुरोहित दिखने वाले बंदे को देख कर मुझे जिज्ञासा हुई और मैं अपनी टेबल से उठ कर बाहर उस की तरफ़ चलने लगा...मैं उस का बोर्ड देख रहा था...तभी एक युवक आया (जिस की तस्वीर आप इस दूसरी फोटो में देख रहे हैं) ...उसने ज्योतिषी से पूछा कि क्या यह काम फ्री में होता है।



ज्योतिषी ने तुरंत जवाब दिया.. क्या कोई भी काम फ्री होता है!. वैसे तो मेरी फीस ११०० रूपये है, चूंकि आप मेहमान हैं, आप के लिए ५०० रूपये।

यह सुन कर वह युवक थोड़ा हंसने लगा...कहने लगा...ज़्यादा है। तो ज्योतिषी ने कहा...ज्यादा तो नहीं है, लेकिन अभी आप का अपना हाल जानने का योग नहीं है, तभी तो आप को यह रकम ज़्यादा लग रही है।

यह सुन कर युवक ने लगता है प्रेसटीज इश्यू बना लिया.....कहने लगा कि नहीं, ज्यादा तो क्या है! और झट से उस के सामने कुर्सी पर बैठ गया। मुझे भी उस ने कहा कि आप भी बैठ जाइए...लेकिन मेरी भटूरे चने की प्लेट आ चुकी थी, इसलिए मुझे उसे लपेटना भी जरूरी था। वैसे भी किसी की गोपनीय बातों से अपुन को क्या लेना-देना। लेकिन वह बंद ज्योतिष को यह ज़रूर कह रहा था कि जल्दी करिए महाराज, मेरे बच्चे खाना खा लेंगे तो मुझे जल्दी बंबई निकलना है।

मैं दूर से देख रहा था ...लगभग पांच सात मिनट तक वह ज्योतिष उस से बातचीत करता रहा....उस युवक ने ५०० रूपये का नोट निकाल कर उसे थमाया, प्रणाम किया और अपने बच्चों के पास लौट आया।

मैंने देखा कि मेरे वहां बैठे बैठे दो और लोगों ने अपना भविष्य जान लिया...

मैं यही सोच रहा था कि किस जगह पर बैठ कर कोई आदमी अपना धंधा कर रहा है, यही अहम् बात है....

मुझे यही बात बार बार कचोट रही है कि शारीरिक परिश्रण करने वाला मजदूर, रिक्शा चलाने वाला या कहीं किसी फैक्ट्री में काम करने वाला इंसान सारा दिन मेहनत करता है, पसीना बहाता है ......तो कहीं जाकर उसे तीस-चार सौ रूपये नसीब होते हैं।

यह भी सोच रहा हूं कि आज का इंसान डरा हुआ है.....वह भविष्य के बारे में जानने को बेहद आतुर है.....और इसी आतुरता को कैश करने के लिए लोग तैयार बैठे हैं।

लेकिन एक बात माननी पड़ेगी, ज्योतिषी महाराज का पहनावा बिल्कुल फिल्मों में दिखाए जाने वाले ज्योतिषियों की तरह का ही था...मुझे तो वही वक्त फिल्म का ज्योतिषी याद आ जाता है....जो बलराज साहनी को कहता है कि होनी अटल है, इंसान के हाथ में कुछ भी नहीं है, कईं बार चाय की प्याली और मुंह में भी फासला तय नहीं हो पाता.....बलराज साहनी मूड में है...कहता है, क्या बात करते हो पंडित, चाय की प्याली उठाता है और कहता है ...यह रही प्याली और य.........ह..................लेिकन जैसे ही उसे उठाता है एक भयानक भूचाल आ जाता है और सब कुछ स्वाह हो जाता है......बाकी कहानी तो आप जानते ही हैं.....

शनिवार, 4 जुलाई 2015

पंजाब की जानी मानी थियेटर पर्सनेलिटि....गुरशरण भाजी

पिछले हफ्ते की बात होगी..हमारी बाई अपने साथ अपने बेटे को लाई थी...यही चार पांच साल का होगा...मैं लेपटाप पर काम कर रहा था...मेरे पास बैठ कर खुश होता रहा....शायद हैरान भी...जैसे सभी बच्चे होते हैं...दो चार मिनट में बोर हो गया....चुपचाप बैठ गया...मुझे उस की चुप्पी अच्छी नहीं लगी...मैंने रिमोट पकड़ा और कहा कि चलो, यार, तुम टीवी देखो....मैं अभी कार्टून नेकवर्क चेनल ढूंढ ही रहा था कि श्रीमति जी ने उस से पूछा...क्या देखोगे?....
तारक मेहता ...उस का जवाब सुन कर हम दंग रह गये। यह तो उस बच्चे की बात थी....मेरा बेटा भी जब टीवी लगाता है शायद पिछले कईं सालों से तो सब से पहले तो तारक मेहता का उल्टा चश्मा ही लगता है। 

मैं अकसर सोचता हूं कि हम ने बच्चों के taste कैसे कर दिए हैं...तारक मेहता देखने में कोई बुराई नहीं है, पारिवारिक सा ही सीरियल है, लेकिन उस की ओव्हरडोज़ हो रही है...सोचने वाली बात है कि बच्चों के िलए बहुत से बेहतर विकल्प हैं जिन के बारे में अकसर बच्चे तो क्या, मां-बाप तक नहीं जानते, अगर जानते भी हैं तो शायद ही उन्हें कभी देखते हों!

आज दोपहर मैं फ्री था..ऐसे ही रिमोट से खेल रहा था कि अचानक पंजाब की इस महान् शख्शियत के दर्शन हो गए. इन का नाम सरदार गुरशरण सिंह जी है...गुरशरण भाजी....जब मैंने गूगल किया तो यह पेज दिख गया.

डी डी भारती पर भी मैंने बाकी का प्रोग्राम पूरा देखा..यहां यह बताना चाहूंगा कि यह पंजाब की एक महान् शख्शियत हैं...इन्होंने विभिन्न सामाजिक विषयों पर जगह जगह जाकर नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया। 

मुझे याद है १९८१ में जब मैं अमृतसर के सरकारी डेंटल कॉलेज में प्रथम वर्ष का छात्र था तो भी इन्होंने वहां एक नाटक का मंचन किया था...जहां तक मुझे ध्यान में आ रहा है उस का विषय भी राष्ट्रीय एकता को ही समर्पित था। 

आज अफसोस है कि मैं इन का पूरा कार्यक्रम नहीं देख सका....लेकिन जितना भी देखा बहुत अच्छा लगा, इस तरह के दिल से कुछ करने वाले विरले ही होते हैं। 

आप का मन भी यह सुन कर गदगद हो जाएगा िक यह अपने चार पांच आर्टिस्टों की टीम के साथ कार में ही निकल पड़ते थे...नाटक करने के लिए....कार के अंदर ही जाते जाते रिहर्सल हो जाया करती थी....और एक आर्टिस्ट इस प्रोग्राम में बता रही थीं कि बिना किसी तरह के मेक-अप के ही बिना ही अकसर उन के नाटक हो जाया करते थे...अगर वे किसी जगह पर जा रहे हैं और लेट हो रहे हैं तो वहां पहुंचते ही तुरंत बिना चाय-पानी की परवाह किए बिना पहले नाटक मंचन का काम संपन्न करते थे और बाकी सब बातें बाद में देखी जाती थीं। 

१९९० के आसपास की बात है....मैं अपने बड़े भाई के विशेष मित्र संजीव गौड़ को ढूंढ रहा था...चंडीगढ़ में...वे इंडियन एक्सप्रेस में स्पैशल कारसपोंडेंट थे.... पंजाब में गड़बड़ी के दिनों में उन पर जानलेवा हमला हुआ था...वह बाल बाल बचे थे...सुनील गोड़ स्टेटसमेन पेपर में भी सीनियर पद पर रहे थे....

जी हां, मिल गये...कहते हैं न ढूंढने से तो भगवान का भी साक्षात्कार हो जाता है, उस दिन संजीव गौड़ को चंड़ीगढ़ में मिल कर बहुत खुशी हुई थी...उन की मां जी से भी मिले......वे अमृतसर में हमारे घर के ही बिल्कुल पास रहते थे और हमारे पारिवारिक संबंध थे...हम बहुत बार एक दूसरे के यहां आते जाते रहते थे...मैं कईं बार संजीव गौड़ के साथ सिनेमा भी गया था....एक बार भाई कहीं बाहर था, मुझे अच्छे से याद है मैं रोटी,कपड़ा और मकान फिल्म उन्हीं के साथ ही देख कर आया था...१९७० के शुरूआती सालों की बात है। 

उस दिन संजीव गौड़ से मिल कर बहुत खुशी हुई...उन्हें मुझ से भी ज़्यादा खुशी हुई थी...आंटी भी मिली थीं...
आप सोच रहे होंगे कि गुरशरण भाजी का नाम लेते लेते मैं यह संजीव गौड़ की बात कैसे करने लग गया....हां, तो दोस्तो, उस दिन मुझे पता चला कि संजीव गौड़ की श्रीमति जी जो पेशे से डाक्टर हैं, वे गुरशरण भाजी की बेटी हैं....मुझे अच्छे से याद है २५ वर्ष पहले का वह दिन ...जब हम लोग बैठ कर उस दिन गुरशरण सिंह के महान् कामों की चर्चा करते रहे थे। 

आज भी जब मैंने टीवी पर गुरशरण भाजी को देखा तो मैंने अपने कालेज के साथियों के ग्रुप वालों को व्हाट्सएप पर मैसेज तो किया ....कि आप सभी लोग अभी डी डी भारती लगाइए...और साथ में गुरशऱण भाजी की एक फोटो भी भेजी जो टीवी पर दिख रही थी। 

१९९० के तुरंत बाद मैं बंबई चला गया सर्विस के सिलसिले में.....कोई संपर्क नहीं रहा.....अभी चार पांच साल पहले चंड़ीगढ़ में जाकर उन के बारे में पता किया लेकिन कुछ पता नहीं चला.....लेकिन एक बात मैं यहां अवश्य कहना चाहूंगा कि गुरशरण भाजी के दामाद संजीव गौड़ भी एक विलक्षण शख्शियत के मालिक थे....हर समय पढ़ने लिखने के शौकीन....खुशमिजाज और यारों के यार। 

मैं सोच रहा हूं कि अभी डी डी भारती के यू-ट्यूब चैनल पर देखूंगा.....अकसर उस चैनल पर डी डी भारती पर प्रसारित हो चुके प्रोग्राम दिख जाते हैं....पता नहीं हम लोग सरकारी चैनलों पर रोज़ाना कितने बेहतरीन कार्यक्रम मिस कर देते हैं......तारक मेहता, कामेडी सर्कस के चक्कर में......दोस्तो, जब बच्चों को इंजीनियरिंग, मैडीकल या कोई भी उच्च शिक्षा दिलाने की बात आती है तो हम सरकारी कालेजों में दाखिले के कितने आतुर दिखते हैं.....लेकिन वही बच्चे जब उन कालेजों से बिल्कुल तुच्छ फीस से कोर्स कर लेते हैं, उन्हें सात समंदर पार भागने की जल्दी होती है.....मोटी कमाई के चक्कर में......आज मुझे सुबह विचार आ रहा था कि सरकारी कालेजों को सभी छात्रों से यह बांड भरवाना चाहिए कि वे लोग १० साल तक देश नहीं छोड़ सकते.....बांड वांड तो होते होंग, कागज़ों का पेट तो टनाटन भरा ही जाता होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन उस का कढ़ाई से पालन भी होना चाहिए....

लेिकन यह क्या, सरकारी टी वी चैनल की बात करते करते मैं कहां से कहां पहुंच गया.......विषय ही बदल दिया......कोई बात नहीं, यहीं पर पूर्ण विराम लगाता है..