सोमवार, 25 जुलाई 2011

जाको राखे साईंयां मार सके न कोई ....

अखबार में छपी कुछ कुछ खबरें ऐसी होती हैं जिन पर नज़र ऐसी टिक जाती हैं कि वहां से उठने का नाम ही नहीं लेतीं.... आज भी एक ऐसी खबर ही दिख गई। सात साल के बच्चे की बाएं हाथ की बाजू लिफ्ट में आने से कोहनी (टखना) तक कट जाती है, वह छठी मंजिल पर इस कटी हुई बाजू को उठा कर अपनी दादी के पास जाता है और सारा किस्सा सुनाता है।

तब तक अड़ोसी-पड़ोसियों का भी लांता लग जाता है और एक पड़ोसी उस कटी हुई बाजू को कूड़ेदान में फैंक देता है ...लेकिन बच्चा झट से उसे वहां से उठा लेता है। उसे पास ही के एक अस्पताल में लेकर जाया जाता है जहां बच्चा डाक्टर से उस बाजू को जोड़ने की बात कहता है। लो जी, बच्चे की बात में कैसा जादू, यह कैसे पूरी न हो .......उस बाजू को माइक्रो-सर्जरी के द्वारा चिकित्सकों ने वापिस जोड़ दिया।

हिम्मत देनी पड़ेगी इस सात साल के बच्चे की जिस ने इतनी हिम्मत दिखाई जो हम जैसे बड़ों को भी सबक सिखा दे ...हम कैसे छोटी मोटी तकलीफ़ में ही अपना धैर्य खोने से लगते हैं कि हाय, मर गये,लुट गये, तबाह हो गये, अब क्या होगा...............क्या होगा, जो होगा, अच्छा ही होगा, होनी को भी कोई रोक पाया है क्या!

अब इस बच्चे की हिम्मत की दाद दें तो उस चार साल को भूलने की हिमाकत कैसे कर दें जो चार घंटे तक एक नदी की लहरों से झूझता रहा ... उस माई के लाल ने हिम्मत नहीं हारी ... आखिर उसे बचा ही लिया गया। हिम्मते मरदां, मददे खुदा .....कोई शक ?


बच्चों को हर साल वीरता पुरस्कार मिलते हैं, क्या हम यह आशा कर सकते हैं कि ऐसा ज़ज़्बा रखने वाले बच्चों का नाम भी उस सूची में इस बार शामिल होगा, हम तो दुआ ही कर सकते हैं!

जब इन हादसों का ध्यान आता है तो इंदोर के निकट पातालपानी वाला वह दिल दहला देने वाला हादसा याद आ जाता है ...कुछ दिन पहले एक ही परिवार के पांच सदस्य किस तरह से एक झरने में कुछ ही लम्हों में सब के देखते ही देखते बह गये .... बस उन के किनारे तक पहुंचने में चंद लम्हों की ही दूरी थी... काश!!!!!
Source : Child carries severed hand to doctor