शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

हिंदी फिल्मी गीतों जादू.....


बिल्कुल जादू ही दोस्तो, पता नहीं कैसे बांध लेते हैं ये लोगों को दशकों तक.....एक फिल्म जो हिट हो जाती है या एक गाना जो सुपरहिट हो जाता है , क्या वो अपने आप में अजूबा नहीं है।
अभी चंद मिनट पहले मैं हरे रामा हरे कृष्णा का वही सुपर-डुपर गीत सुन कर झूम रहा था......नहीं, नहीं...खुल कर नहीं, इतनी मेरे जैसे बुझदिल की कहां हिम्मत, इसलिए केवल मन ही मन झूम रहा था और इसे लिखने वाले, इसे गाने वाले, इसे संगीत देने वाले, इसे फिल्म में फिल्माने वाले , इस में सहयोग देने वाले सैंकड़ों लोगों --स्पाट ब्वाय तक और उस सारे यूनिट को बारबार चाय पिला पिला कर चुस्त -दुरूस्ट रखने वाले किसी गुमनाम माई के लाल की दाद दिए बिना न रह सका। यही सोच रहा था जब कोई महान कृति बन कर हमारे सामने आती है तो हमें उस को बनाने के पीछे हर उस गुमनाम बंदे के प्रति नतमस्तकहोनाही चाहिए जिस की भी उस में भूमिका रही।
दोस्तो, यह हिंदी फिल्मों का , हिंदी फिल्मी गानों का भी हमारी लाइफ में कितना बड़ा रोल है, मैं इस के बारे में अकसर बड़ा सोचता हूं । पता है ऐसा क्यों है....क्योंकि ये हमारी सभी भावनाओं को दर्शाती हैं...ज़रा आप यह सोच कर देखिए कि हमारी कौन सी मानसिक स्थिति है जो इन फिल्मों में चित्रित नहीं है, तभी तो हमें दिन में कईं बार ये फिल्मे, इन के गोल्डन गाने याद आते रहते हैं, रास्ता दिखाते रहते हैं।
दोस्तो, क्या कोई भी बंदा जिस को रोटी फिल्म का वह गीत याद है कि .......जिस ने पाप न किया हो, जो पापी न हो, .....वो ही पहला पत्थर मारे......और किस तरह फिल्म में दिखाई गई सारी पब्लिक उस तिरस्कृत महिला को मारने के लिए सारे पत्थर नीचे फैंक देती है.....क्या ऐसा बंदा जिस की स्मृति में यह गाना घर चुका है, क्या वह बंदा किसे के ऊपर कोई अत्याचार कर सकता है, मैं तो समझता हूं ...कभी नहीं, और अगर वोह करता भी है तो मेरी नज़र में बेहद घटिया हरकत करता है।
दोस्तो, फिल्में हमें रास्ता दिखाने में आखिर कहां चूकती हैं.। जिस गाने की मैं पहले चर्चा कर रहा था , हरे रामा हरे कृष्णा फिलम के गीत की......उसमें केवल आप हिप्पीयों को ही न देखें, उस की कुछ लाइनें ये भी हैं.....
गोरे हों या काले,
अपने हैं सारे,
यहां कोई नहीं गैर......
और, हम कितनी दशकों से यह सब सुन रहे हैं, क्या हम ने ज़ीनत अमान जी की इस बात के बारे में भी कभी सोचने की कोशिश की..........लगता तो नहीं , अगर ऐसा होता तो, परसों रात को आजतक चैनल पर आसाम में आदिवासियों पर हो रहे घोर अत्याचार की तस्वीरें देख कर मेरे का शरमसार न होना पड़ता.....दोस्तो, उन खुदा के बंदों को रूईँ की तरह पीटा जा रहा था.....अच्छा , तो दोस्तो, अब यहां थोड़ा सा विराम लेता हूं क्योंकि मुझे भी तो एक हिंदोस्तानी होने के नाते शरम से सिर मुझे भी तो घोर शर्मिंदगी से अपने सिर झुकाने की रस्म-अदायिगी करनी है। आप क्या सोच रहे हैं.....इतना मत सोचा करो.... तकलीफ़ हो जाएगी, दोस्तो। मेरा क्या है, मैं तो थोडा़ आदत से मजबूर हूं।