शनिवार, 4 जुलाई 2015

मुस्कुराते आइए मुस्कुराते जाइए....

सत्संग में महात्मा जी जब प्रवचन शुरू करते हैं तो हर बार अपने आशीर्वचन इस बात से शुरू करते हैं.. आने जाने का सब से बढ़िया तरीका है यही .... मुस्कुराते आइए, मुस्कुराते जाइए....और अपनी वाणी को विराम भी यही बात कह कर देते हैं....उन्हीं के मुखारबिंद से वही शब्द बार बार सुनना बिल्कुल एक बूस्टर डोज़ सा काम करता है।

मेरी टेबल पर एक स्लोग्न रखा हुआ है....किसी विश्व-विख्यात चिकित्सक ने कहा है ....हंसना एक ऐसी चिकित्सा है जो अब तक सब से कारगार सिद्ध हुई है...और सदैव इतनी ही कारगार रहेगी।

तीन चार दिन पहले मुझे मेरा एक मरीज़ राममूर्ति आया...बात करते करते ऐसे ही कोई बात हुई कि वह ठहाके लगाने लगा....फिर उसने हंसते हंसते कहा कि डाक्टर साहब, भगवान और डाक्टर ही ऐसे लोग हैं जो किसी को हंसा सकते हैं। उसने अपनी बात फिर से दोहराई.....मैं भी उस की बात पर मुस्कुरा दिया.....लेकिन मैं उस की बात से पूर्णतयः सहमत नहीं हूं....हंसी के बहाने तो हर तरफ़ धरे पड़े हैं....आप के चेहरे पर मुस्कान की इंतज़ार कर रहे हैं.......इसलिए हमें हर पल इस सर्वव्यापी परमपिता परमात्मा से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि यह हर बंदे के नसीब में खुश रहना, मुस्कुराना...खिलखिलाना लिख दे .....और वह भी पक्की पेन्सिल के साथ!

हम लोग हंसने-मुस्कुराने के कितने मैसेज देखते-पढ़ते रहते हैं ...तीस चालीस साल पहले हमें एक ही मैसेज का पता था...Smile..it increases your face value!

मैंने कुछ साल पहले कहीं पढ़ा था जिसे पढ़ कर मुझे हैरानी भी बहुत हुई थी कि इत्ती सी बात की तरफ़ कैसे ध्यान ही नहीं गया....यही लिखा था कि कोई भी मुस्कुराता चेहरा ऐसा नहीं दिखा जो खूबसूरत न हो!!

सत्संग में यह सुंदर वचन अकसर कानों में पड़ जाते हैं....दो बंदों को जोड़ने का सब से छोटा रास्ता भी एक मुस्कान ही है।

अभी मैं बाज़ार में गया तो मुझे एक युवा कि टी-शर्ट पर मुस्कान के बारे में कुछ दिखा....मैंने हंसते हुए कहा कि मुझे इस स्लोग्न की फोटो लेनी होगी...हंसते हंसते उसने कहा.....sure!

अभी अभी अपने कालेज के दौर के दोस्त मनोज गोयल ने भी ऐसा ही मैसेज भेजा....


 अच्छा, तो दोस्तो, सब के लिए यही प्रार्थना करते हैं कि सब को हंसते-खिलखिलाने के मौके निरंतर मिलते रहें......यह हवा पानी जितनी ही बड़ी ज़रूरत है!

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

दो पंछी दो तिनके कहो ले के चले हैं कहां!

आज मैं बंबई में था...मैंने बहुत अरसे बाद जब एक कंपनी के गेट से एक फिएट कार निकलते देखी तो मैंने झट से अपने मोबाइल कैमरे को तैयार किया कि इस के बाहर निकलते ही इस की फोटो लेता हूं...

मैंने बहुत अरसे बाद तो फिएट तो देखी थी पहली बात, दूसरी बात यह कि इतनी पुरानी फिएट को इतनी अच्छी और साफ़ सुथरी हालत में भी बहुत समय बाद देखा था..इस से पता चलता है कि जिस सेठ की यह कार है उसे इस से कितना लगाव होगा!

जब मैंने इस कार की फोटो अपने कालेज के साथियों को व्हाट्सएप पर भेजी तो एक साथी ने करनाल से लिखा कि उसने १९९५ में पहली फिएट कार खरीदी ...मैंने पूछा कि अभी भी है, तो कहने लगा कि घर के लोग नाराज़ ही रहे, लेिकन उसने भी उस फिएट को पांच बरस तक चला कर ही दम लिया।

फिएट कार की मेरी यादें १९७०-७२ के आस पास की हैं, जब मेरे चाचा अपनी फिएट पर आते थे तो मैं कितना समय उस को देखता ही रहता था....उन के एक हाथ में सिगरेट होता था और फिएट में एक एश-ट्रे भी हुआ करती थी.

होता है यार, होता है....लोगों को अपने पुराने स्कूटरों से भी कितना लगाव होता है! मैंने १९९० में एलएमए खरीदा था, अभी भी रखा हुआ है...चलता कम ही है, अब एक्टिवा ही चलता है ज़्यादा, लेिकन कभी कभी जब रोड़ पर लम्बरेटा स्कूटर दिख जाता है तो भी बहुत अच्छा लगता है.....परसों ही मैंने एक बजाज स्कूटर देखा लखनऊ में ....उस के मालिक ने भी उसे बड़ी अच्छी हालत में रखा हुआ था। 

हर पुरानी कार, स्कूटर या साईकिल के साथ हमारी बहुत सी यादें जुड़ी होती हैं, है कि नहीं, कुछ हम लोग किसी के साथ शेयर कर लेते हैं, कुछ हमारे अंदर ही रहती हैं!

मुझे कभी कभी स्कूटर पर भी चलना बहुत भाता है और लगता है लोगों से मेरी यह छोटी सी खुशी देखी नहीं जाती, मुझे अकसर ही कोई न कोई टोक देता है...डाक्टर साहब, आप स्कूटर पर...अच्छे नहीं लगते। कोई करीबी तो मुझे मेरी पोस्ट की याद दिला देता है। लेिकन यार मैंने भी इतने साल से इस मामले में किसी की नहीं सुनी .......मुझे स्कूटर पर चलने में बहुत आनंद आता है, जिधर से मरजी निकल जाइए, जिधर मरजी पार्क कर दीजिए, जहां चाहा रूक गये...आस पास की जगह देख ली, किसी से बात कर ली.....मजा आता है। किसी शहर को देखने-समझने-फील करने का मौका स्कूटर-साईकिल जैसी सवारी पर ही मिल सकता है। 

लेकिन एक बात मैं अकसर कहता हूं कि अगर मुझे इस तरह कि फिएट मिल जाए तो मैं बस उस पर ही चला करूंगा, मुझे इस तरह की फिएट इतनी पसंद है। 

हां, बंबई की बात करें तो मुझे यहां पर सब्जियां देख कर बड़ी हैरानगी होती है.....बेरंग, एक ही तरह की, एक ही साइज़ की...जैसे वे भी किसी फैक्टरी में ही तैयार हुई हों...१० साल बंबई में रहने के बाद आज से पंद्रह बरस पहले जब बंबई छोड़ा था तो उस के पीछे कुछ ऐसे ऐसे कारण भी थे कि हम लोग यहां कि सब्जी नहीं खा पाते थे....कुछ स्वाद ही नहीं आता था..

आप के िलए यहां मिलने वाली सब्जियों की तस्वीरें चस्पा किए दे रहा हूं ...आज सुबह जो दिखीं...
इन सब्जियों को देख कर लगा कि ये भी किसी फैक्ट्री की ही पैदावार हैं

इतनी लंबी२ लोबिया की फली आज पहली बार देखीं
अच्छा, आप को भी लग रहा होगा कि बाकी बातें तो ठीक हैं, लेकिन तुम ने यह पंछी और तिनके वाला शीर्षक क्यों दे दिया आज....इस का कारण जानने के लिए आप को यह गीत सुंदर गीत सुनना होगा....जिस में फिएट कार का भी एक अहम् किरदार है....