शनिवार, 1 अप्रैल 2017

पंजाबी फिल्मों का अमिताभ बच्चन ....सतीश कौल

पिछले कुछ अरसे से मैं टीवी पर अमिताभ बच्चन के विज्ञापन बार बार देख कर उतना ही ऊब गया जितना आप साउथ की हिंदी में डब की गई फिल्मों को देख कर पक जाते हैं....

मैंने फेसबुक पर एक स्टेट्स टाइप भी कर लिया कि अगर हो सके तो ऐसा नियम ही बना देना चाहिए की सभी विज्ञापनों में अमिताभ बच्चन ही काम करेंगे...एक तरह से व्यंग्यबाण की तरह।

पता नहीं आज कल मेरे फेसबुक में कुछ गड़बड़ सी है ...मुझ से वह स्टेट्स हो नहीं पाया...

आज सुबह कुछ ऐसा हुआ कि मुझे लगा कि ठीक ही हुआ...नहीं तो मुझे उसे डिलीट करना पड़ता ... क्योंकि आज मुझे एक बार फिर आभास हुआ कि जब तक बल्ला चल रहा है तो ठीक ही तो है...अगर बच्चन साहब को काम मिल रहा है इस उम्र में भी और वे एक्टिव हैं अभी भी कुछ शारीरिक परेशानियों के बावजूद भी ...तो अच्छी बात है...


आज सुबह मेरी एक ३५-४० साल पुराने मित्र से पर व्हाट्सएप पर बात हो रही थी...मैं उस का नाम नहीं लिखना चाहता यहां पर और वह किस शहर में रहते हैं, मैं यह लिखना ठीक नहीं लगता..क्योंकि यह एक हस्ती की बात है ...दोस्त ने लिखा कि वह कुछ दिन पहले हमारे ज़माने के एक पंजाबी फिल्मों के एक सुपरहिट हीरो सतीश कौल से एक वृद्ध आश्रम में मिले ...वह मित्र अकसर वृद्ध आश्रम में जाते रहते हैं....दोस्त ने बताया कि जैसे ही उन्होंने सतीश कौल जी को थाली में खाना परोसा और साथ में ५०० रूपये का नोट थमाया तो उन की बेटी ने पूछ लिया कि कौन हैं ये। दोस्त ने जवाब दिया कि यह हमारे दौर के पंजाबी फिल्मों के शाहरूख खान हैं...

उन की इस बात से सतीश कौल की इस तंगहाली के बारे में जान कर हैरत हुई...सुबह से ध्यान बार बार उस तरफ जाता रहा कि हम लोग कैसे स्कूल-कालेज के दिनों में उन की पंजाबी फिल्मों के दीवाने हुआ करते थे...

सुबह से अब तक यू-ट्यूब पर उन के बारे में देखा-उन के मुंह से सुना भी ...उन की कुछ फिल्मों के गीत भी सुने-देखे....एक जगह बता रहे थे कि पहले हम लोग काम के दीवाने थे, २२-२२ घंटे काम किया करते थे...भविष्य की चिंता नहीं करी....१५००० हजा़र रूपये एक पंजाबी फिल्म करने के मिलते थे...कमाई पंजाब में करते थे और खर्च बंबई में करते थे, ऐसे में कहां कुछ बच पाता....बस, ऐसे ही दिवालिया हो गये ...


यह पोस्ट किसी महान् कलाकार की ज़िंदगी को चटापट बना कर पेश करने का कोई प्रयास नहीं है ...लेकिन एक सच्चाई है कि लोगों की यादाश्त बहुत कच्ची है, वे झट से सब कुछ भुला देते हैं....हर बंदे को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है...ऐसे में मुझे लगता है कि अमिताभ या फिर अन्य बुज़ुर्ग कलाकार अपनी आमदनी का कुछ भी बढ़िया जुगाड़ कर रखते हैं तो अच्छी ही बात है ...वरना हम कितने ही वयोवृद्ध बेहतरीन कलाकारों के आखिर दिनों में तंगहाली के किस्से सुनते रहते हैं...मुझे अभी एके हंगल साहब के आखिरी दिन भी याद आ रहे हैं....

सतीश कौल साहब की कुछ फिल्मों के नाम मैं यहां लिख रहा हूं.... लच्छी, रूप शौकीनन दा, मोरनी, रानो, जट पंजाबी, जीजा साली, पटोला, सस्सी पुन्नू, पींगां प्यार दीयां, यार गरीबां दा, धी रानी, यारा औ दिलदारा, वेहड़ा लंबड़ा दा....इन में से अधिकांश फिल्में अब यू-ट्यूब पर पड़ी हुई हैं ...लेेकिन इन के गीत अलग से नहीं दिखे यू-ट्यूब पर ...हों भी कैसे, आज की पीढ़ी को जब यह ही नहीं पता कि सतीश कौल कौन है तो कौन अपलोड़ करेगा उस बेहतरीन युग के पंजाबी गीतों को यू-ट्यूब पर...

मेरे पास पंजाबी गीतों की अच्छी कलेक्शन है ....बड़ी मेहनत से कईँ सालों के प्रयास से यह कलेक्शन की है ...बहुत समय से सोच रहा था कि इन को यू-ट्यूब पर अपलोड़ करूंगा ...लेकिन बस ऐसे ही समय नहीं मिलता, जब समय मिलता है तो थक जाते हैं....बस, ऐसे ही ख्याली पुलाव पका पका के ही टाइम को धक्के दिये जा रहे हैं...

हां, अपनी इंटरव्यू में वे रफी साहब की बड़ी तारीफ करते हैं ...एक फिल्म आई थी सस्सी पुुुन्नू ..जिस का एक गीत था...असीं अल्हड़पुणे विच ऐवें अखियां ला बैठे....दिल बेकदरां नाल ला कर कदर गवा बैठे ....(हम तो ऐसे ही बेवकूफी में ही दिल लगा बैठे और जिसे हमारी कद्र भी नहीं थी, उस के साथ दिल लगा कर अपनी कद्र भी गंवा बैठे...)


लगी वाले कदे वी ना सोंदे, ते तेरी किवें अख लग गई... (जिन को ईश्क का रोग लग जाता है, उन को तो नींद नहीं आती, लेकिन तू कैसे सो गई...) ..इस गीत के बारे में सतीश कौल बताते हैं कि रफी साहब ने यह गीत गाने से पहले पूछा कि यह गीत किस पर फिल्माया जाना है, तो जब उन्हें पता चला कि सतीश कौल ...तो उन्होंने कहा ..ठीक है....क्योंकि इस गीत में तरह तरह के इमोशनल हाव भाव हैं...और कौल ने बताया कि जब रफी साहब ने वह फिल्म देखी तो इतने खुश हुए कि कौल को ५००० रूपये का इनाम दिया कि तुमने मेरे गीत में जान भर दी...



एक बात और यहां लिखना चाहता हूं कि ये सारी पंजाबी गीत वे हैं जो अकसर हमें आए दिन शाम के समय जालंधर रेडियो स्टेशन से प्रसारित होने वाले पंजाबी प्रोग्राम में तो सुनते ही थे ...७ से ८ बजे तक शाम में और फिर बाद में जब १९७५ के आसपास टीवी आया तो पंजाबी चित्रहार में भी हम ये गीत सुनते-देखते बड़े हुए...


एक बात और भी है कि यू-ट्यूब पर अगर आप पुरानी फिल्में देखेंगे तो बहुत खुश होंगे ...ये उस समय के पंजाब की रूह का आइना हैं...

वैसे हर शै की तरह पंजाब भी बदल रहा है ....नशे-पत्ते की गिरफ्त में है, लोग राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं वहां भी....सब घालमेल है.....सतीश कौल साहब को ढ़ेरों शुभकामनाओं के साथ इस पोस्ट को बंद कर रहा हूं....उस दोस्त का शुक्रिया जिसने आज का दिन सतीश कौल को याद करने का एक बहाना दे दिया....