रविवार, 14 फ़रवरी 2016

लखनऊ के कला शिल्प मेले की एक रिपोर्ट


कला शिल्प मेले में घूमते हुए मुझे जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की यह बात बार बार याद आ रही थी...

बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो..
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे

शिक्षा व्यवस्था में तो लोचा है ही बेशक...हर बात से हम वाकिफ़ हैं ...ज़रूरत है थ्री-इडिएट्स जैसी फिल्मों की जो शायद बच्चों और मां-बाप का नज़रिया बदल सकें कि सिर्फ़ आईआईटी और आई आई एम की डिग्री से कुछ ज़्यादा होता नहीं है ...और वह भी कौन सा सभी पा ही लेते हैं...लेकिन इस दौड़ के चर्चे हम ने खूब सुने...कैसे बच्चों को छठी कक्षा से ही किसी आईआईटी की कोचिंग इंस्टीच्यूट में भेजा जाने लगता है..वहां से गाड़ी आती है.. उस का दोपहर में सुस्ताना..पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना बंद...बस गजब की टेंशन ...हर तरफ़ घर में...चार साल बाद शहर के किसी स्कूल में  नाम लिखवा कर कोटा के कोचिंग इंस्टीच्यूट में रवाना कर दिया जायेगा..  बस अपने शहर में तो नाम के लिए ही दाखिला ले लिया है ..कमबख्त प्लस टू भी तो पास करना है .. अपना शहर है, ऊंची पहुंच वाला बापू लोकल स्कूल को मैनेज कर लेगा, बच्चे, तू तो बस कोटा में मन लगा. 

अब यह सब कितना हास्यास्पद लगने लगा है...छठी क्यों, नर्सरी से ही उसे आईआईटी जैसी संस्थाओं में प्रवेश के लिए थोड़ा थोड़ा करते रहना चाहिए... वैसे भी अब उस इंगलिश एक्सप्रेशन का फैशन चल रहा है... Catch them young!
स्कूल कालेजों मे केवल और केवल पीसीएम और बॉयो ही पढ़ाए जाने चाहिए...ये भाषाएं...हिस्ट्री-ज्योग्राफी, नागरिक-शास्त्र ...ये विषय हम लोगों के लिए नहीं हैं भाई, यह सब तो हम पहले ही से जानते हैं...आगे चल के कहीं काम नहीं आते, ऐसी सोच हो जाती है बच्चों की मैट्रिक कक्षाओं तक पहुंचते पहुंचते। 

हिस्ट्री के मास्टर साब ने Crops & Trees को इस तरह से चित्रित करना सिखा दिया था..बस, उन का सिखाया तो यही याद है.
दूसरों की क्या बात करें, मैं अपनी बात ही कर लूं.. अपने प्रोफैशन के अल्प ज्ञान के अलावा मुझे कुछ नहीं आता...यहां तक कि दुनियादारी की भी समझ नहीं है.... I'm not even worldly-wise! ...हिस्ट्री -ज्योग्राफी का ज्ञान बस इतना कि मैं उसे बच्चों की नोटबुक के एक पन्ने पर लिख डालूं, ज्योग्राफी सच में बिल्कुल जीरो...और तो और ललित कलाओं और भारत की प्राचीन कला-संस्कृति का ज्ञान लगभग शून्य... let me pass the buck a little...ड्राईंग टीचर ऐसे मिले जिन्होंने इतने बरसों तक सेब, केला, नाशपती, और गांव के एक झोंपड़े के आगे कुछ सिखाया ही नहीं...वह तो भला हो ज्योग्राफी के टीचर चौहान साहब का कि उस से पेड़ों और फसलों की आकृति बनानी सीख ली..उसे ही ड्राईंग में इस्तेमाल कर लिया करता हूं अभी तक...


इस तरह की विद्याएं हम लोग स्कूल कालेज में ही ग्रहण कर सकते हैं...यार, कम से कम इन विधाओं को एप्रिशिएट करना तो आना चाहिए...नहीं तो बिल्कुल गंवारों जैसी हालत हो जाती है। उस के बाद तो हम लोग बस किताबें इक्ट्ठा ही कर सकते हैं...पढ़ने-पढ़ाने की किसी फ़ुर्सत रहती है ...यह किताब मैंने पंद्रह दिन पहले खरीदी थी कि इसे रोज़ाना थोड़ा थोड़ा पढूंगा...लेकिन अभी तक इसे खोल के देखा भी नहीं...

व्यवस्था की बिल्कुल थोड़ी पोल खोलने के बाद अब आते हैं लखनऊ के कला शिल्प मेले पर...यह मेला लखनऊ यूनिवर्सिटी के आर्ट्स एंड क्राफ्ट कालेज में १३ से १७ तारीख तक लगा है...कल वहां जाने का अवसर मिला...पिछले साल भी वहां जाना अच्छा लगा था। 

बहुत कर लिया बोर आप को अपनी सब बक-बक से....अब कला मेले को देखते हैं...
 One the graffiti with a great message I ever came across

मेले के अंदर जाते ही यह graffiti दिख गई...मन खुश हो गया...जैसा कि वह मेरे मन की बात कह रहा हो... वाट्सएप पर शेयर की तुरंत और बेटों को कहा कि यह तो कोई तुम लोगों जैसा ही लग रहा है मुझे...

  अरे भईया..ऑल इज़ वेल 

थोड़ी दूर जाने पर ही कालेज के स्कल्पटर विभाग के बाहर लॉन में यह मंजर दिखा...यह सब नारियल के कवर से बना हुआ दिखा... इसे देख कर सब लोग अपना अपना कयास लगा रहे थे, मैंने भी वही किया... पास ही गुजर रहे कालेज ने छात्रों ने भी कुछ बताया तो ...लेिकन मुद्दा वही लगा...राजनीति का ..किस्सा कुर्सी का... राजा और प्रजा के बीच की बातें...एक उत्तम कृति। 
आज की अखबार से पता चला कि यह 'सत्ता की भूख' का चित्रण है

आगे चलते चलते अन्य विभागों में भी बहुत कुछ दिखा...जिन्हें मेरे लिए समझना मुश्किल था..शायद समझने की ज़रूरत भी नहीं होती आर्टिस्ट के काम को ...इन की महानता का अहसास करना होता है बस। 
प्रिंसीपल कक्ष के बाहर एक छात्र द्वारा तैयार किया गया यह फैनूस 

कला प्रेमी छात्रों ने इस तरह के सूखे-गिरते-संभलते पेढ़ों का भी श्रृंगार कर रखा था..उत्सव में उन की भागीदारी सुनिश्चित की हो जैसे!  

  टी-पार्टी 

सूतली और बटनों से तैयार यह कृत्ति

पतझड़ का मंज़र कुछ यूं दिखा...जंगल में मंगल करने का हुनर


 वेलेंटाइन डे स्पेशल मेरी तरफ़ से ..




ग्रामीण जीवन का एक दृश्य 
शेल्फी प्वाईंट कुछ इस तरह से तैयार किया गया था छात्राओं द्वारा 

यह सफ़ेद इम्पोर्टेड गाड़ी यहां कैसे पहुंच गई?...मैंने भी ऐसा ही सोचा था... जब तक मैंने इसे हाथ से छू नहीं लिया..यह सारी गाड़ी थर्मोकोल से बनाई गई है...लाजवाब कृति...बाकी सब कुछ एक दम परफेक्ट है...स्टीयरिंग व्हील, सीटें .....बस, एक थोड़ी सी कमी खली ...आप इस में बैठ नहीं सकते.... great art work!


F



अब चलते हैं उस तरफ़ जिधर जा कर मुझे चंडीगढ़ के रॉक गार्डन और उस के सृजनकर्ता नेक राम जी का ध्यान आ गया...ऐसा क्यों हुआ, अभी बताऊंगा...पहले आप इन तस्वीरों को देखिए.. 









 खिंच गई मेरी फोटू भी 

कालेज के छात्र प्रशांत तिवारी ने अपने तीन चार सहपाठियों के साथ मिल कर इसे तीन चार दिन में यह शक्ल दी है ...मैंने इस की बहुत सराहना की और विज़िटर बुक में रॉक गार्डन याद दिलाने की बात लिखी... और यह भी लिखा कि इसे देख कर बहुत से लोगों को शायद कचरे से ऐसी बेहतरीन कृतियां बनाने की प्रेरणा मिले... कचरा?...जी हां, कचरा-कबाड़ इधर उधर फैंकने से कहीं बेहतर होगा अगर ऐसा होने लगे...

बिल्कुल पास जा कर ही पता चलता है कि यह कलाकृति प्लास्टिक के छोटे गिलासों से (जो जमीन पर छोटे छोटे गुंबद दिख रहे हैं) और जो मेन कृति है (जिस के साथ प्रशांत ने मेरी फोटू खींचनी चाही) वह थर्मोकोल के गिलासों से तैयार की गई है....  really a great artwork! मैंने अभी अभी अखबार देखी है इस रिपोर्ट को लिखते हुए तो इस के बारे में और भी पता चला है..

(इसे अच्छे से पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए)

इन संस्थानों के छात्र-छात्राएं बहुत ही क्रिएटिव हैं...कबाड़ की बात हो रही थी तो आगे देखिए इन बच्चों ने फ्यूज़ हुई ट्यूबों के कबाड़ से क्या बना दिया...मैंने उस के अंदर झांका तो मुझे लगा जैसे गहरा कुआं हो ...लेकिन बाद में समझ आया कि यह सब ground level पर ही है.. ट्यूबों की चहारदीवारी के अंदर ग्राउंड पर शीशे लगे हैं जिस की वजह से एक गहरे खड्ढे का भ्रम पैदा होता है... 


ट्यूब लाइटों के कबाड़ से ही कर दिया कमाल


मैं जो यहां पर इस कला मेले का वर्णन कर रहा हूं ..शायद मैं एक दो प्रतिशत ही आप तक पहुंच पा रहा हूं...definitely these art works are beyond words!  



इन सब को समझने का मेरे जैसे कला के अनपढ़ के पास हुनर नहीं है....लेिकन यह मंज़र बहुत सुंदर लग रहा था...यह जो धुआं निकल रहा है...यह ज़मीन के नीचे मिट्टी की छोटी मटकियां दबाई गई हैं...जिन में धूप जल रहा है ..उस के अंदर लगे बल्ब की वजह से यह दृश्य दिख रहा है..

इसी ग्राउंड में एक जगह शाम के समय बसंत उत्सव चल रहा था...मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह को नृत्य के रूप में पेश किया गया.....बेहतरीन प्रस्तुति...

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ईदगाह को इस तरह से पेश किया गया. 

ईदगाह कहानी तो आप सब ने ज़रूर पढ़ी होगी....अगर नहीं तो कोई बात नहीं, आप को अभी लिंक दे रहे हैं...देखिएगा...must watch...


थक गया यार....आज रविवार के चार घंटे तो इस रिपोर्ट को तैयार करने में निकल गये...परवाह नहीं, अगर आप लखनऊ में रहते हैं और इसे पढ़ कर आप को भी वहां जाने की तमन्ना हो जाए...यह मेला १७ तारीख तक चलेगा।
 ओ के ...  गुड़ मार्निंग... Have fun! ..Enjoy your Sunday! आर्ट एंड क्राफ्ट कालेज बड़ी आसानी से डालीगंज ब्रिज से और हनुमान सेतु की तरफ़ से भी पहुंचा जा सकता है...Try to spend sometime there and stay chilled like the boy in the above graffiti!


शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

आई झूम के बसंत ...झूमो संग संग में

आज ऐसे ही ध्यान आ रहा था कि अब तो त्योहारों का पता-ठिकाना भी बहुत बार मीडिया वालों से ही चलता है...वैसे तो सरकारी छुट्टी से भी बहुत से त्योहारों का पता चल जाता है.. आज भी बसंत पंचमी थी...ऐसे ही पता चल तो गया था..लेकिन हमारी छुट्टी नहीं थी....बसंत कैसे मनाई?....बस, आज सुबह पीली कमीज़ पहन ली..

बचपन में बसंत पंचमी के दिन हम सब के लिए पीले कपड़े पहनना बिल्कुल ज़रूरी हुआ करता था...छुट्टी तो पक्का रहती ही थी...पता नहीं पिछले कुछ बरसों से देख रहा हूं छु्टटी नहीं हो रही ..लेकिन जहां तक मुझे ध्यान है पंजाब में हमेशा इस दिन छुट्टी रहती ही है.. शायद अलग अलग जगहों पर त्योहारों का महत्व भी कम-ज़्यादा होता होगा... यह बात तो है।

हां, बसंत पर्व की बात चल रही थी..उस दिन हम पीले रंग के मीठे चावल और कुछ खास व्यंजन खाते थे, सारा आकाश पतंगों से भरा हुआ होता था...और अपनी अपनी छतों पर सब चढ़ जाते थे...और हां, लाउडस्पीकर पर ऊंची ऊची आवाज़ में फिल्मी गीत चला करते थे..यह तो थी हमारी बसंत।


और इन पर जोर जोर से बजते वे गीत...मैं जट्ट यमला पगला दीवाना ....

 मैं इसी फोटो को ही तो ढूंढ रहा था... 
सुबह मां कुछ कह रही थीं बसंत के बारे में ...अपने जमाने की बसंत के बारे में...मां मीरपुर (जम्मू कश्मीर..POK) की रहने वाली हैं..वहीं पर जन्म हुआ, वहीं पढ़ाई हुई...१९४७ में जम्मू आ गये...बता रही थीं कि हमारे समय में तो बसंत के दिन बहुत बड़ा मेला लगता था.. पीर नाभन मेला...पहाड़ पर लगने वाला यह मेला था.. सब लड़कियां मिल कर वहां जातीं...बड़ा अच्छा लगता...बसंत पंचमी के कईं दिन पहले मां बताती हैं कि लड़कियां दुपट्टों पर गुलाबी और पीला रंग करना शुरू कर देती थीं....और एक मजेदार बात, खरबूज और तरबूज के बीज को पीला रंग कर उसे माला में पिरो कर पहना करते थे...मेले से वापिस आते समय हम मालटे खूब खाया करते थे जो अंदर से बिल्कुल लाल हुआ करते थे...मालटे का नाम सुनते मुझे भी याद आया...यह तो हम भी खाते ही थे बचपन में, अब कहां गये मालटे?....अब तो कीनू ही दिखता है हर जगह .. मां के लिए बसंत पंचमी का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन इन की सगाई हुई थी।

मीरपुर का रघुनाथ मंदिर 
अपनी अपनी यादें ...अपना अपना सरमाया....मीरपुर को याद करके वह भावुक हो जाती हैं..मीरपुर के रघुनाथ मंदिर को बहुत याद करती हैं...गूगल बाबा से देखा तो यह मंदिर दिख गया..

आज भी जब दोपहर में मैंने किसी रेडियो चैनल पर यह गीत सुना ...आई झूम के बसंत ..झूमो संग संग में... तो बहुत अच्छा लगा..ध्यान आया कि बहुत से राष्ट्रीय पर्व एवं त्योहार ऐसे हैं जिन के लिए हिंदी फिल्मी गीत सेट हैं...याद करिए रक्षा बंधन के दिन सुबह सुबह बजने वाला ...बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है... और इसी तरह के गीत हर पर्व के लिए...हर जश्न के लिए...हम इन फिल्मी गीतकारों के हमेशा कर्ज़दार रहेंगे...

मैंने जब यह गीत सुना तो मुझे नहीं पता था कि यह उपकार फिल्म का है... मैं इसे भूल चुका था शायद....अब साल मेें एक बार ही अगर इस तरह के गीत सुनने को मिल गया तो मिल गया....मिस हो गया....तो गया... ऐसे में इन गीतों की याद कहीं धीरे धीरे धुंधली न हो जाए......वैसे ऐसा हो नहीं सकता...क्योंकि ये गीत हमारी संवेदनाएं परदे पर उकेर रहे हैं...ये केवल गीत ही नहीं है...



यह गीत सुनने के बाद मुझे ऐसा ध्यान आया कि क्या बसंत पंचमी के थीम पर केवल यही गीत है ..तभी एक और सुपरहिट गीत लगभग २० साल पुराना याद आ गया...रुत आ गई रे..रुत आ गई रे....यहां पतंगबाजी के साथ साथ इसे सिखाने की भी क्लास लगी हुई है, check this out! Another master piece from the great, versatile actor, Nandita Das.



बस, आज इस पोस्ट के लिए इतना ही....जल्दी फिर मिलते हैं... Happy Basant Panchmi...

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

वाट्सएप ज्ञान नशा.. 11.2.16

आज मुझे कोई ऐसी तस्वीर वाट्सएप पर नहीं मिली जिसे शेयर करने की मुझे इच्छा हुई हो ...हां, एक तस्वीर मैंने कल एक मेले में खींची थी..उसे ही यहां शेयर कर देता हूं....मुझे इसे देखते ही ध्यान आया कि हम लोग जुगाड़ करने में कितने एक्सपर्ट हैं... आप का क्या ख्याल है?

यह मैसेज तो पिछले कईं दिनों से इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा है.... मैंने सोचा सब से पहले इसे ही शेयर कर के छुट्टी करूं.. 

वैलेंटाइन डे पर वन विभाग का नया  मेसेज-.
पेड़ों से भी उतना ही प्यार करो,
जितना पेड़ों के नीचे करते हो!!

और यह जो मैसेज अभी आप देखेंगे ..इसे देखते ही आप को अपने स्कूल के दिन याद आ जायेंगे...मुझे तो आ गये..हम भी इसी तरह के जुगाड़ लगा लगा के रट्टे लगा लगा के पास हो जाया करते थे.. मुझे कभी नहीं लगा कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था.. बस घऱ आकर नियमित पढ़ने-लिखने की, क्लास से कभी भी छुट्टी न करने की और अपने गुरुजनों का हमेशा सम्मान करने के कुछ अच्छे संस्कार अपने पेरेन्ट्स से मिले जिन्होंने बहुत मदद की... हां, इस तरह के जुगाड़ बहुत करते थे..और कईं बार कुछ अजीब अजीब किस्म के जुगाड़ ताकि कुछ पाठ याद हो जाएं...यह लिखते हुए मुझे हाल ही में रिलीज़ हुई हिंदी फिल्म चॉक एंड डस्टर का ध्यान आ गया....मैंने किसी पोस्ट में लिखा भी था, इसे अवश्य देखिएगा.....इस में शबाना आज़मी भी बच्चों को रोचक ढंग से पढ़ाने के लिए इस तरह के फार्मूले का इस्तेमाल करती हैं... 
बच्चों को राज्यों के नाम याद रखने में परेशानी होती है । इसके समाधान के लिए एक छोटा सा प्रयास किया है । राज्यों के लिए एक  पंक्ति बनाई है । जिसके एक वर्ण से एक राज्य बनता है । शायद अध्यापक साथियों को ये प्रयास पसन्द आए -राज्यों के लिए पंक्ति-
"  मित्र  अतरा मुझसे कहता है मैं अपने छ: बागों में आम की उपज उगाऊ" ।
मि-मिजोरम त्र -त्रिपुरा 
अ - असम  त- तमिलनाडू रा-राजस्थान 
मु -मणिपुर झ - झारखंड से - सिक्किम
क -केरल ह -हरियाणा ते - तेलंगाना
है - हिमाचल
में - मेघालय
अ - अरूणाचल प - प. बंगाल ने - नागालैंड
छः - छत्तीसगढ
बा - बिहार गों -गोवा
में - मध्यप्रदेश 
आ - आंध्रप्रदेश म - महाराष्ट्र 
की -कर्नाटक
उ - उत्तराखंड प - पंजाब ज - जम्मू - कश्मीर
उ - उड़ीसा गा - गुजरात उ- उत्तरप्रदेश
(अपने आप से  पूछिएगा ज़रूर कि क्या आप को भारत के सभी राज्यों के नाम याद हैं...अगर नहीं, तो आप भी इस फार्मूले को याद कर लीजिए)  

  एक वाट्सएप मैसेज यह भी िमला ...आज का ज्ञान ...हंसा देगा आप को भी .. सही पकड़ा इसने कर्मचारियों को ... 
आज का ज्ञान-
जिंदगी बस 2 दिन की है...
एक तो शनिवार और एक रविवार.....
बाकी दिन तो ऐसा लगता है कि जलील होने के लिए पैदा हुए हैं।
                             -एक कर्मचारी

यदि कोई ATM CARD समेत आपका अपहरण कर ले तो विरोध मत कीजिए ।  अपहर्ता की इच्छानुसार ATM मशीन  मेँ कार्ड डालिए । आपका कोड वर्ड रिवर्स मेँ डायल कीजिए । जैसे यदि आपका कोड 1234 की जगह 4321 डायल कीजिए । ऐसा करने पर ATM खतरे को भाँपकर पैसा तो निकालेगा..लेकिन आधा ATM मशीन  में फँसा रह जायेगा । इसी बीच मेँ ATM मशीन खतरे को भाँपकर बैंक और नजदीकी पुलिस स्टेशन को सूचित कर देगा और साथ ही ATM का डोर ऑटो लॉक हो जाएगा । इस तरह बगैर अपहर्ता को भनक लगे आप सुरक्षित बच जाएँगे । ATM मेँ पहले से ही सिक्योरिटी मैकेनिजम है जिसकी जानकारी बहुत कम लोगोँ को है । 
(हम कैसे मान लेंगे कि आज के आधुनिक लुटेरे ये बातें नहीं जानते होंगे, ज़्यादातर एटीएम अब अंदर फंसने वाले हैं ही नहीं, बस स्वाईप कर के बाहर निकालने वाले हैं... और एटीएम का डोर ऑटो लॉक हो जायेगा...शायद कभी कभी लॉक होने वाला एटीएम दिख जाता है... वरना तो सब खुल्लम खुल्ला पड़ा रहता है.....वैसे भी ऐसे किस्से कम ही होते हैं कि पहले किसी का कोई अपहरण कर के उसे एटीएम में लेकर जायेगा....चलिए, फिर भी देख लिया, पढ़ लिया...आगे शेयर क्या करें इसे?....  इस सारे प्रकरण में अपहरणकर्त्ता को बड़ा अनाड़ी सा बताया गया है... वे तो तमंचे से नीचे बात नहीं करते और आप इतने मीठे मीठे जुगाड़ लगा रहे हैं उसे फंसाने के लिए!) 

आज सुरेश बाबू ने भी यह ज्ञान बांट दिया .....बढ़िया लगा... आज की पोस्ट का शीर्षक भी इस में दर्ज वाट्सएप नशे वाली बात से प्रेरित है.. 
गुजरी हुई ज़िंदगी को कभी याद न कर, तकदीर में जो लिखा है उसकी फरियाद न कर 
जो होगा वो होकर रहेगा तू कल की फिक्र में अपनी आज की हंसी बरबाद न कर.. 
हंस मरते हुए भी गाता है मोर नाचते हुए भी रोता है 
यह ज़िंदगी का फंडा है बॉस,  दुःखों वाली रात नींद नहीं आती और खुशी वाली रात कौन सोता है!
लफ्ज़ ही एक ऐसी चीज़ है जिस की वजह से इंसान  
या तो दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता है.. 
ज़िंदगी की कशमकश में वैसे तो मैं काफ़ी बिज़ी हूं लेकिन 
वक्त का बहाना बना कर अपनों को भूल जाना मुझे आज भी नहीं आता.
जहां यार न याद आए वो तन्हाई किस काम की..बिगड़े रिश्ते न बनें तो खुदाई किस काम की  
बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है..पर जहां से अपना दोस्त न दिखे वो ऊंचाई किस काम की.. 
नशा मोहब्बत का हो, शराब का हो या वाट्सएप का हो, होश तो तीनों में खो जाते हैं... 
फ़र्क सिर्फ इतना है .. 
शराब सुला देती है .. मोहब्बत रुला देती है और वाट्सएप यारों की याद दिला देती है...

ब्लॉग की पोस्ट लिखने में खासा समय लगता है...कर लेता हूं यह काम क्योंकि अच्छा लगता है...वैसे अकसर मुझे प्रतिक्रिया ९९ प्रतिशत लोगों से मिलती नहीं, न ही मैं इस की कभी अपेक्षा ही करता हूं...अपनी डायरी लिख लेता हूं बस, और है क्या...बस, पोस्ट शेयर करने का चस्का २००७ के दिनों से ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के दिनों से लगा हुआ है ...जहां पर बलॉग्स की पोस्ट तुरंत शेयर हो जाया करती थी। 

और शायद जिन्हें यह पोस्ट वाट्सएप पर मिलती हो उन्हें कभी लगता हो कि मैं एक एक को अलग से इस का लिंक भेजता हूं...नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता ...भयंकर बोरिंग काम... मैंने तो एक ब्रॉडकास्ट लिस्ट बनाई है वाट्सएप पर .. मेरे फोन में जितने भी नंबर स्टोर हैं, सब को अपने आप इस ब्लॉग-पोस्ट का लिंक चला जाता है, इतनी सी बात है.....रही प्रतिक्रिया की बात, कुछ पुराने दोस्त कभी कभी कुछ कह देते हैं ...वह मेरे लिए काफ़ी है... और कभी कभी कहीं से जब कोई सुधि पाठक वाट्सएप पर इस तरह का संदेश भेज देता है तो लगता है जैसे कोई बड़ा अवार्ड मिल गया हो...शायद उस से भी ज़्यादा... फिर पहले से बेहतर करने की इच्छा जाग जाती है....यह साधना है ...जैसे कोई भी काम है...वैसे यह भी है ...

इसी बात पर कल एक सुधि पाठक से यह संदेश मिला....अच्छा लगा... 


यह स्क्रीन-शॉट है, आप से शायद पढ़ा नहीं जायेगा...मैं उस पाठक के संदेश को यहां लिख देता हूं... 

"आपका ब्लॉग बेहतरीन है कंटेंट के नजरिये से   …. हिंदी में  ऐसा कंटेंट कहीं और उपलब्ध नहीं है  … शायद 2011 से आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ  …. निशांत मिश्रा जी के ब्लॉग hindizen से आपके ब्लॉग का लिंक मिला था  …. फिर तो आपको पढ़ कर कुछ ही दिनों में स्वयं आधा डेंटिस्ट हो गया था  … अपने घर पर , दोस्तों सबको आपकी पोस्ट प्रिंट आउट निकलवा कर पढवाई थी   … आपकी पोस्ट्स ने मुझे दांतों को लेकर काफी सजग कर दिया था  …. आपको ढेर सारी शुभ कामनायें डॉक्टर साहेब  …. बस आप ऐसे मुस्कराहट बांटते रहे   … आप एक बार गुडगाँव भी आये थे गूगल के इवेंट में  …. उस में मैं भी आया था   … आप से मिलना मिस हो गया " .....

अब आगे क्या लिखूं... लिखने विखने को थोड़ा विराम दूं.. एक वीडियो दिखाता हूं जो मेरे पुराने अजीज दोस्त डा बेदी जी ने सुबह भेजा था... अच्छा लगा ..यहां देखिए... just for a short duration!  


मुझे भी नहीं पता ये कौन भक्त लोग हैं..लेकिन लगता है कि जैसे ISKCON संस्था के श्रद्धालु हैं ... ठीक है, सभी अपने अपने तरीके से भक्ति कर रहे हैं, इन की भी भक्ति की परवाज़ देख कर बहुत अच्छा लगा... इच्छा हुई कि मैं भी इन के जश्न में शामिल हो जाऊं.......but then, who is stopping me? वैसे इन का जोश देख कर मुझे आज पता चल गया कि बाबा रामदेव के Acrobatics की टक्कर में भी कुछ भक्त हैं अभी इस देश में...

 लेकिन आज का दिन अच्छा धार्मिक आध्यात्मिक रंग में रंगा रहा.. सुबह यह वीडियो देखी... और दिन में हमारे अस्पताल के कुछ साथी जो द्वारकाधीश और सोमनाथ मंदिर हो कर आए हैं...उन्होंने अपना यात्रावर्णन सुनाया और वहां का प्रसाद दिया.. सोमनाथ का नाम आते ही मुझे सब से पहले इतिहास पढ़ने के वे दिन याद आ गये ....सोमनाथ पर कब,कितनी बार... और किस ने हमला किया ... यह सब रट रट के फिर कहीं जाकर इतिहास-भूगोल से पीछा छूटा था....इन श्रद्धालुओं का वर्णऩ सुन कर मेरे मन में भी इन जगहों पर जाने की इच्छा प्रबल हो गई है...देखते हैं, कब जाएंगे...शायद रिटायरमैंट का इंतज़ार करेंगे ...  अगर तब तक  घुटनों ने  जवाब नहीं दिया तो ......वैसे थोड़ी थोड़ी शुरूआत तो हो चुकी है... i know! How foolishly do we keep on postponing our little pleasures of life!

जाते जाते अभी अभी मुझे गाना भी तो आप तक पहुंचाना है...तो आज का गीत यह है .. आज दोपहर में विविध भारती पर जब यह गीत बज रहा था तो मुझे अचानक ध्यान आया कि यह गीत तो पता नहीं जैसे मैंने बहुत ही बरसों बाद सुना हो... आज उसे ही लगा देते हैं... मुझे नहीं पता था कि यह किस फिल्म का है, गाने का मूड क्या है, और कौन से सिनेस्टार हैं इसमें ...लेिकन अपना यू-ट्यूब ताऊ है न....हमारा काम आसान करने वाला .. भूल भुलईयां तेरी अक्खियां सईंयां रस्ता भूल गई मैं....आज से बीस साल पहले यह गीत रेडियो-दूरदर्शन पर खूब बजा करता था.. 







बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

वाट्सएप ज्ञान बहार १०.२.१६

कुछ समय पहले वाट्सएप पर यह मैसेज मिला...पहले कहीं पढ़ा था, लेकिन भूल चुका था, अभी फिर से याद आ गया..आप भी पढ़िए..

आदमी की सोच और नसीहत समय समय पर बदलती रहती है।
चाय में मक्खी गिरे तो चाय फेक देते हैं ।
देशी घी में गिरे जाये तो मक्खी को फेक देते हैं।

अभी मैं एक गीत बजा रहा हूं...मुझे अकसर Blogger Meets के दौरान पूछा जाता है कि आप को इतने पुराने पुराने गीत कैसे याद रहते हैं...इस का जवाब यही है कि ये गीत वे हैं जिन्हें सुनते सुनते हम बड़े हुए..यह टीवी से पहले वाले जमाने की बाते हैं...अपनी अपनी आदते हैं, मैं कभी भी रेडियो या टेपरिकार्डर लगाए बिना पढ़ाई करने भी नहीं बैठ पाता था...अब याद नहीं मैं कैसे मल्टीटॉस्किंग कर लेता था...लेिकन है सच...मैं आज भी नियमित रेडियो सुनता हूं ... i always feel that radio (now FM) is a great way of staying connected with our people! 

आज भी जब वाट्सएप पर जब जीवन जीने के कुछ टिप्स धड़ाधड़ मिले तो इन्हें पढ़ते हुए मेरा ध्यान सब से पहले जीने की राह के इस गीत की तरफ़ चला गया....पता नहीं दोस्तो सैंकड़ों या हज़ारों बार इसे सुना होगा... मैं तो ऐसा भी सोचता हूं कि शायद पुराने गीतकारों ने हमारे व्यक्तित्व के िवकास को भी --अच्छा या बुरा, यह पता नहीं, लेकिन प्रभावित किया तो होगा...संवेदनाओं को तो अवश्य झंकृत किया ही होगा....मैं भी आखिर क्यों इस तरह की  डिप्लोमेटिक भाषा लिखने लगा...होगा ..होगा...सीधे से क्यों नहीं कह देता कि बेशक जाने अनजाने में ही सही, हमारी शख्शियत इन सब गीतों से ढलती चली गई...मेरा तो ऐसा पक्का विश्वास है...हम लोग कभी किसी सत्संग में तो बचपन या युवावस्था में जाते नहीं थे, बस ये सब खूब सुन लिया करते थे.....वैसे कुछ कुछ बातें तो बिल्कुल सत्संग के सिलेबस से मेल खाती हुआ करती थीं पुराने गीतों में... यह भी मेरा एक फेवरेट गीत है .... हमेशा से... चेंज बस यही आया है कि पहले हम लोग स्कूल कालेज के जमाने में इन गीतों में कही बातों पर ध्यान नहीं देते थे इतना ....अब ज़्यादा ध्यान इन में ब्यां जीवन की सच्चाईयों की तरफ़ जाता है..


हां तो अब बारी है उन जीवन के टिप्स को शेयर करने की...तीन मैसेज आए हैं..इन के बीच बीच में मैं कुछ वीडियो भी शेयर कर रहा हूं जो आज वाट्सएप पर मिले....बीच बीच में इन्हें भी एम्बेड कर रहा हूं ...बिल्कुल वाट्सएप वाली फील देने के लिए...

जीवन जीने के टिप्स-1

गोमाता के दूध में, रुई भिगाओ आप
चूर्ण फिटकरी बांधिए, मिटे आंख का ताप

पानी में गुड डालिए, बित जाए जब रात
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात

धनिया की पत्ती मसल,बूंद नैन में डार
दुखती अँखियां ठीक हों,पल लागे दो-चार ।

ऊर्जा मिलती है बहुत,पिएं गुनगुना नीर
कब्ज खतम हो, पेट की मिट जाए हर पीर

सुबह-सुबह पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप ।

ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार

सूर्य किरण, नेचुरल हवा, भोजन से स्पर्श
हेल्थ बनावें आपका, पग-पग देवें हर्ष 

भोजन करें जमीन पर, अल्थी पल्थी मार
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार

सुबह-सुबह फल जूस लो, दुपहर लस्सी-छांस
सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश

दही उडद की दाल सँग, प्याज दूध के संग
जो खाएं इक साथ में, जीवन हो बदरंग

सुबह-दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार
तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार

भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार
डाक्टर, ओझा, वैद्य की, लुट जाए बाजार

देश, भेष, मौसम यथा, हो जैसा परिवेश
वैसा भोजन कीजिये, कहते सखा सुरेश

इन बातों को मान कर, जो करता उत्कर्ष
जीवन में पग-पग मिले, उस प्राणी को हर्ष
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सब से पहले तो यह वीडियो उस जवान का है जिसे सियाचिन ग्लेशियर से निकाला गया ...आज का दिन उस की सलामती की दुआ करने में ही निकला....जाको राखे साईंयां वाली कहावत बार बार याद आती रही..

जीवन जीने के टिप्स--2
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घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर ।

अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास
पानी पीजै बैठकर,  कभी न आवें पास ।

रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय
कसम राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय

सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश
भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुरेश

देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल
अपच, आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल

टूथपेस्ट-ब्रश छोडकर, हर दिन दोनो जून
दांत करें मजबूत यदि, करिएगा दातून

हल्दी तुरत लगाइए, अगर काट ले श्वान
खतम करे ये जहर को, कह गै कवि सुजान

मिश्री, गुड, शहद, ये हैं गुण की खान
पर सफेद शक्कर सखा, समझो जहर समान

चुंबक का उपयोग कर, ये है दवा सटीक
हड्डी टूटी हो अगर, अल्प समय में ठीक ।

दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ

हँसना, रोना, छींकना, भूख, प्यास या प्यार
क्रोध, जम्हाई रोकना, समझो बंटाढार

सत्तर रोगों कोे करे, चूना हमसे दूर
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर

यदि सरसों के तेल में, पग नाखून डुबाय
खुजली, लाली, जलन सब, नैनों से गुमि जाय

आलू का रस अरु शहद, हल्दी पीस लगाव
अल्प समय में ठीक हों, जलन, फँफोले, घाव

भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ 
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड

जो भोजन के साथ ही ,पीता रहता नीर
रोग एक सौ तीन हों, फुट जाए तकदीर

पानी करके गुनगुना, मेथी देव भिगाय
सुबह चबाकर नीर पी, रक्तचाप सुधराय

मूंगफली, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल

नम्बर वन सेंधा नमक, काला नमक सु जान
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान

मैदे से बिस्कुट बने, रोके हर उत्कर्ष
इसे न खावें रोक जो, हुए न चौदह वर्ष ।।
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इसे देखकर शायद हम सब को लगेगा कि यह हम ही हैं...मुझे तो अपने लिए ऐसा ही लगा...हम लोग मोबाइल में अकसर इतने ही तल्लीन हो जाया करते हैं कि हमें आस पास चल रही हरकतों का पता ही नहीं चलता....ऐसे लगा जैसे यह वीडियो हम सब को एक आईना दिखा रहा हो... 

जीवन जीने के टिप्स-3
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तेल वनस्पति खाइके, चर्बी लियो बढाइ
घेरा कोलस्टाल तो, आज रहे चिल्लाइ

जो जस्ता के पात्र का, करता है उपयोग
आमंत्रित करता सदा ,वह अडतालीस रोग ।

फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर

चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति

नींबू पानी का सदा, करता जो उपयोग
पास नहीं आते कभी, यकृति-आंत के रोग

दूषित पानी जो पिए, बिगडे उसका पेट
ऐसे जल को समझिए, सौ रोगों का गेट

रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय

भोजन करके खाइए, सौंफ, और गुड, पान
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान

लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान

हृदय रोग, खांसी और आंव करें बदनाम
दो अनार खाएं सदा, बनते बिगडे काम

चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खाव
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगाव

सौ वर्षों तक वह जिए, लेत नाक से सांस
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास

मूली खाओ हर दिवस, करे रोग का नाश
गैस और पाईल्स का, मिट जाए संत्रास ।

जब भी लघु शंका करें, खडे रहे यदि यार
इससे हड्डी रीढ की, होती है बेकार

सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान

हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान 
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान

अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर

तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग
मिट जाते हर उम्र में, तन के सारे रोग

मछली के संग दूध या, दूध-चाय, नमकीन
चर्म रोग के साथ में, रोग बुलाते तीन

बर्गर, गुटखा, सुरा अरु कोक, सुअर का मांस
जो हरदम सेवन करे, बने गले का फाँस

ध्यान रखें ये बात तो, मिट जाएं हर क्लेश
डाक्टर, ओझा, वैद्य से, रखते दूर.   🚩

Disclaimer.. मैं इन जीवन जीने की टिप्स में से कुछ से इत्तेफाक रखता हूं ..कुछ से बिल्कुल नहीं..(इस पर कभी विस्तार से बात करेंगे) .आप भी अपने विवेकानुसार इन पर अमल करिएगा...मैंने इन्हें शेयर इसलिए किया क्योंकि सेहत संबंधी संदेश पहुंचाने का यह दोहों वाला जरिया अच्छा लगा।


यह वीडियो देख कर मैं यही सोच रहा था कि हम हिंदोस्तानियों से भी ज़्यादा लोग जुगाड़बाड़ हैं....सच में! हम तो छोटे मोटे जुगाड़ कर के ही खुश हो लिया करते हैं..

जाते जाते एक वीडियो शेयर कर रहा हूं मुनव्वर राना साब का ...लखनऊ में रहते हुए इस महान शायर को सुनने का बहुत बार मौका मिला...आज यह शख्स गम में हैं...कल इन की मां का इंतकाल हो गया है ...मुझे इस वीडियो का लिंक मेरे बेटे ने भेजा है ...सुनिएगा...May his mother rest in peace!



कुछ तस्वीरें भी मिलीं आज वाट्सएप पर जिन्हें यहां पेस्ट करना लाज़मी है... 






यह बात केवल ढोंगी बाबाओं पर लागू हो सकती है!


मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

वाट्सएप ज्ञान सुरभि ..9.2.16

कल वाट्सएप में ये मैसेज मिले जिन्हें इस पोस्ट में शामिल कर रहा हूं.....लेिकन हैरानगी हुई कि टैक्स्ट में कोई भी ऐसा मैसेज वाट्सएप में नहीं दिखा जिसे इस पोस्ट में शामिल करने की मेरी इच्छा हुई हो...सब पुराना माल...दूसरों का मज़ाक उड़ाते, अजीब से ... जिन्हें एक बार पढ़ कर लगा कि काश! ये अभी के अभी भूल जाएं...

लेकिन ये फोटो यहां शामिल करने की इच्छा हुई..









और ये वीडियो भी वाट्सएप पर ही मिले हैं... 

सत्संग में यह गीत अकसर सुनने को मिलता है... रुह की असली खुराक

निदा फ़ाज़ली साहब के बारे में विविध भारती के उद्घोषक युनूस खान का लेख रेडियोवाणी पर दिख गया आज सुबह सुबह...पढ़ कर अच्छा लगा ..आप भी यहां इसे पढ़ सकते हैं.. मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन!

 रेडियोवाणी की इसी पोस्ट से पता चला कि यह सुपर-डुपर फिल्मी गीत..अजनबी कौन हो तुम..जब से तुम्हें देखा है ....यह भी निदा फ़ाज़ली साहब का दिया हुआ तोहफ़ा है....मुझे जैसे ही यह पता चला, मैं इसे सुनने बैठ गया..(फिल्म- स्वीकार किया मैंने)...

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

निदा फ़ाज़ली साब को विनम्र श्रद्धांजलि


आज बाद दोपहर टीवी से पता चला कि निदा फ़ाज़ली साब नहीं रहे ...मन बहुत दुःखी हुआ...मुझे इन की शायरी बहुत पसंद है ...बिल्कुल जीवन से जुड़ी हुआ रोज़मर्रा की बातें जो किसी की भी समझ में आसानी से आ जाती हैं और उसे उद्वेलित भी करती हैं... अभी आठ दस दिन पहले ही तो निदा फ़ाज़ली साहब लखनऊ महोत्सव में अपनी शायरी का जलवा बिखेर कर गये हैं....मुझे हमेशा यह मलाल रहेगा कि मैं उस दिन उस प्रोग्राम में शिरकत नहीं कर पाया...मुझे इस की खबर ही नहीं था दरअसल।

मैं याद कर रहा था कि मैंने शायद १५ वर्ष पहले इन का वह शेयर कहीं पढ़ा था...मन को छू गया था...फिर किसी बुक प्रदर्शनी में इन की एक किताब हाथ लग गई थी... उसे भी पढ़ना एक सुखद अनुभव था।

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए 
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए

अब तो इंटरनेट पर यू-ट्यूब पर इन की शेयरो-शायरी के एक से बढ़ के एक वीडियो हैं ...बस, अब तो बड़ा मसला फुर्सत का है...शायद आज के इंसान को यही मयस्सर नहीं।

इन की बातें हमेशा ध्यान में रहेंगी... quite thought provoking and inspirational indeed!


दुनिया जिसे कहते हैं मिट्टी का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है


कभी कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को खुद नहीं समझे औरों को समझाया है


कोई मिला तो हाथ मिलाया, कहीं गए तो बात की
घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है


अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाए
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए

मुझे कुछ महीने पहले शेयरो शायरी -- inspirational- पढ़ने और लिखने का शौक चढ़ गया था....लिखना?...मतलब शायर की ही बात को अपनी नोटबुक में नोट कर लेने का शौक ..ताकि फ़ुर्सत के लम्हों में रेडियो सुनते हुए मैं उस का लुत्फ़ बार बार उठा सकूं....वह काम अभी तक तो हो नहीं पाया, बहरहाल वह शौक भी कुछ दिनों के बाद अपने आप ही ठंडा पड़ गया...अभी ध्यान आया तो स्टडी से इस नोटबुक को ढूंढा ...इस में जो निदा फाज़ली साहब के शेयर मैंने लिखे हुए हैं, यहां पेस्ट कर रहा हूं ...










अभी मैं यह लिख रहा हूं और मेरे कानों में किसी टीवी चैनल पर इन के बारे में चल रहे किसी प्रोग्राम की आवाज़ पड़ रही है ...इन्होंने ने हमें बेहतरीन हिंदी गीतों का भी तोहफ़ा दिया है.. अभी यह गीत बज रहा था इन्हीं का लिखा हुआ...याद आ रहा है हमारे कालेज के दौर का एक सुपर डुपर गीत...महीने में कईं कईं बार यह चित्रहार में दिख जाया करता था..



गीत तो इन के बहुत से हैं ..एक से एक बेहतरीन...आज दोपहर में सरफरोश का यह गीत भी बार बार बजाया जा रहा था ...फ़ाज़ली साब का ही लिखा हुआ...



ऐसे महान् फनकार कभी मरते नहीं हैं...जब तक कायनात रहेगी ये अपने अल्फ़ाज़ के माध्यम से दुनिया में जीवित रहेंगे और कईं पीढ़ियों को सही रास्ता दिखाते रहेंगे.....इन्हें विनम्र श्रद्धांजलि..... May his soul rest in peace!