रविवार, 3 अगस्त 2008

एटीएम - एनी-टाईम-मगजमारी !!

क्या यार, ये एटीएम हैं या एनी-टाईम-मगजमारी......ये भी हमें अकसर बहुत ही नाज़ुक समय में धोखा दे जाते हैं। इस लिये मुझे तो ये मगजमारी के केन्द्र ज़्यादा लगने लगे हैं।

इन मगजमारी केन्द्रों पर जा कर मुझे तो अकसर निराशा ही हाथ लगती है। शायद 10 फीसदी मौकों पर ही मैं इन के थ्रू पैसा निकालने में सफल होता हूं।

एक बार जब मैं बार एक ऐसे ही एटीएम( मगजमारी केन्द्र) पर चक्कर लगा लगा कर परेशान हो गया तो मैंने मैनेजर से मिल कर इन मशीनों के डाउन-टाईम के किसी लॉग के बारे में जानना चाहा। मैं यह जानना चाह रहा था कि एक महीने के दौरान यह जो आपकी एटीएम मशीन किन्हीं भी कारणों की वजह से खराब रहती है, क्या इस का कोई रिकार्ड मेनटेन किया जाता है क्या ...( लॉग-बुक) , तो उस ने भी मुझे अच्छा खासा टरका दिया कि हां, हां, यह सारा रिकार्ड तो हैड-आफिस में रखा ही होता है। मैं सारा माजरा समझ गया।

अभी लिखते लिखते एक बात ध्यान में और भी आ रही है कि यार, आप सब हिंदी ब्लोगिंग करने वाले ज़्यादा मुश्किल हिंदी मत लिखा करें। सीधी-सादी बोल चाल वाली भाषा लिखा करें.....कईं बार जब किसी मुश्किल शब्द से भिड़ना पड़ता है तो बाकी की पोस्ट पढ़ने में ही कंटाला आता है। मैं समझता हूं कि हम लोगों का काम है हिंदी को बढ़ावा देना.....ज़्यादा संभ्रांत हिंदी लिख कर हम कौन सा हिंदी को पिछले 60 वर्षों में आगे बढ़ा पाये हैं....हमें आम आदमी की, अनपढ़ आदमी वाली हिंदी लिखनी होगी जिसे रिक्शे वाला भी समझे , कुली भी समझे और पनवाड़ी भी समझ ले। मुझे खुद हिंदी के बड़े बड़े शब्द देख कर बहुत डर लगता है। खास कर जिन टैक्नीकल शब्दों के नाम हिंदी में बहुत मुश्किल हैं, उन्हें तो देवनागरी लिपि में ही लिख के छुट्टी करनी चाहिये। शायद मैं कहीं हिंगलिश की बात तो नहीं कर रहा......अगर हमारी भाषा आम आदमी की होगी तो उसे भी लिखने की प्रेरणा मिलेगी।

हां, तो उस एनी टाईम मगजमारी मशीनों की बात चल रही थी। मेरा तो भई इन के साथ अनुभव बेहद बेकार रहा है....लोगों के अनुभवों की भी दासतानें सुनता रहता हूं लेकिन अभी तो अपनी ही बात करूंगा।

हां, तो मैंने भी शौक शौक में शायद एक बिलकुल बेहूदा से स्टेट्स-सिंबल के रूप में दो-तीन बैंकों के एटीएम ले रखे हैं जिन में से एक तो पिछले एक महीने से गुम है.....इसी उम्मीद से रिपोर्ट नहीं लिखवाई कि इस कमबख्त को दोबारा बनवाना भी अच्छा खासा मुश्किल काम है....शायद कहीं पड़ा मिल ही जाए।

आज सुबह मुझे कुछ पैसे ज़रूरी चाहिये थे। घर के पास एक एटीएम पर गया.....दो तीन बार ट्राय किया....बार बार यही आया कि transaction declined..... ! कईं बार मेरे जैसे बंदे को यह भी वहम हो जाता है कि कहीं मेरे एटीएम से बाहर निकलने पर ही यह मशीन नोट न उगल दे। खैर, जब मेरे पीछे जैंटलमेन ने भी यह बताया कि पैसे नहीं निकल रहे तो तसल्ली हुई कि ठीक है, इस मशीन में पिछले सैंकड़ों मौकों की तरह इस बार भी धोखा दे दिया।

बरसात में भीगते हुये मैं उसी बैंक के एक दूसरे एटीएम जो कि चार-पांच किलोमीटर दूर था वहां पहुंच गया, लेकिन वहां पर भी निराशा ही हाथ लगी।

मैंने सोचा चलो स्कूटर पर चलते चलते भीग तो चुका ही हूं अब तीसरा एटीएम भी ट्राई कर लिया जाये ..जो कि वहां से तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर था। लेकिन वहां पर भी कुछ हाथ नहीं लगा।

ये एटीएम के सालाना हम से कुछ पैसे लिये जाते हैं...तो क्या ये consumer protection act के दायरे में नहीं आते ?....मुझे लगता तो है कि ये ज़रूर आते होंगे....आदमी को पैसों की ज़रूरत है, लेकिन उसे ठीक मौके पर एटीएम से पैसे नहीं मिलते तो क्या यह सर्विसिज़ की कमी नहीं है ? ....मुझे लगता तो है कि यह कमी है लेकिन अब अकेला आदमी कहां कहां मगजमारी करे।

हां, इन मगजमारी सैंटरों के साथ हुये मेरे दर्जनों अनुभवों ने तो मुझे सिखा दिया है कि यार, इन पर कभी भी ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा मत करो......इन्होंने मुझे तो ऐन मौके पर बहुत बार धोखा दिया है। कईं बार तो रेलवे स्टेशन पर भी मेरे साथ यह हो चुका है।

तो इसलिये इस से यही सीख मैंने ली है कि जेब में अच्छे-खासे पैसे हर समय रहने चाहिये....क्योंकि इन मगजमारी केन्द्रों का तो कोई भरोसा ही नहीं है।

मुझे यह समझ में यह नहीं आता कि कंप्यूटर के क्षेत्र में इतनी तरक्की होने के बावजूद भी किसी एटीएम में कैश खत्म होने पर इस के बारे में सूचना स्क्रीन पर क्यों नहीं आ जाती....कैश खत्म होने पर भी सैंकड़ों लोग अगली सुबह तक उस मशीन से मगजमारी करते रहते हैं और यह सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक अगली सुबह बड़ा-बाबू आकर उस मशीन में नोट नहीं ठूंस देता।

और हां, एक बार और भी है कि हम लोग बहुत तरक्की कर चुके हैं....मुझे कैसे पता चला ?.....बस, सुनी सुनाई बात कर रहा हूं....तो ऐसे में आखिर क्यों कईं बार हम लोग मीडिया में रिपोर्ट पढ़ते हैं कि फलां-फलां एटीएम से कुछ नोट नकली निकले।

इन्हीं कारणों से मुझे तो यही ठीक लगता है कि जब बैंक खुला हुया हो तभी ही atm पैसे निकलवाने चाहिये......वरना बाद में तो बहुत झिक-झिक हो जाती होगी अगर नकली नोट वगैरा निकल आता होगा तो ।

एटीएम के बाहर लिखा भी रहता है कि एक समय में एक ही आदमी अंदर जायेगा लेकिन आम तौर पर एटीएम के अंदर कईं कईं लोग घुस जाते हैं......बिलकुल एसीडी बूथ जैसा माहौल ही बनता जा रहा है।

पिछली बार मैंने दो-बार एक एटीएम से पैसे निकलवाये तो मुझे मेरे साथ खड़ा एक जैंटलमैन कहने लगा कि ....अब बस करो, कैश खत्म हो जायेगा।

आज यमुनानगर में इतनी उमस है कि क्या बताऊं....ऐसे में इस एटीएम की बात और कितनी खींचूं ......इतना ही कह कर विराम लेना चाह रहा हूं कि हमारे एटीएम सिस्टम के साथ कुछ ज़्यादा ही गड़बड़ है........कहीं बैंकों ने इन्हें भी तो एक स्टेटस सिंबल की तरह ही तो नहीं खोल दिया और अब ये माथा-पच्ची एवं मगजमारी के अड्डे बन चुके हैं। बेचारे अनपढ़ लोगों की हालत तो इन जगहों पर और भी दयनीय होती है.....उन्हें तो कईं बार यही लगता है कि उन का पैसा मशीन में ही फंसा रह गया है।

जो भी हो, मेरा तो एक्सपीरियैंस इन के साथ काफी खराब ही रहा। trasaction declined ....भला क्यों भई , कोई खैरात बांट रहे हो क्या ??