शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

क्या आप के पास अपनी जन्म-पत्री है?...

आज कल एचआईएमएस सिस्टम में मरीज़ों की दवाई लिखने के लिए उसकी सेहत से जुड़ी बहुत सी बातें इस ऑन-लाइन सिस्टम में लिखनी पड़ती हैं....क्या कहते हैं हम उसे....इलेक्ट्रोनिक मेेडीकल रिकार्ड ---इस से उस का ईएमआर तैयार होता रहता है ....

लेकिन यह सब लिखते हुए मुझे कोई मरीज़ बीच में बार बार डिस्टर्ब करता है तो मैं अकसर उसे कहता हूं ...यार, दो मिनट ठंड रखो, इस वक्त मैं तुम्हारी सेहत की जन्म-पत्री लिख रहा हूं ...जैसे पहले पंडित बनाते थे न जन्म-पत्री, वैसी अब हम भी सेहत-पत्री बनाने लगे हैं....दो मिनट बाद बात करता हूं....

इत्ती सी बात ही से वह थोड़ा हंसने-मुस्कुराने लगता है और बेकार में बोझिल हो रहा माहौल थोड़ा हल्का-फुल्का हो जाता है ...


जन्म-पत्री का ख्याल मुझे आज अचानक नहीं आया....परसों मैं एक ऐंटीक शॉप पर कुछ नई चीज़ें देख रहा था ...नहीं, नई चीज़ें मैंने गलत लिख दिया ....ऐंटीक शॉप में चीज़ें तो सारी पुरानी होती है, पुरानी से भी ढेर पुरानी, पुश्तैनी कहिए या बाबा आदम के ज़माने की कहिए ..कुछ भी कहिए... मुझे उस दिन वहां दो जन्म-पत्रियां दिख गईं....बस, आज उन के बारे में लिखने की इच्छा हो उठी...

जन्म-पत्री को पंजाबी में क्या कहते हैं....? नहीं पता तो भी कोई बात नहीं, मैंने कौन सा सही जवाब के लिए कोई इनाम रखा है ....जी हां, पंजाबी में इसे टेवा कहते हैं....यह बच्चे के जन्म के बाद बनवाया जाता है ....वैसे तो कभी भी बनवाया जा सकता है, अगर जन्म की तारीख और वक्त सही से याद हो ...

हमारे घर में कभी इन सब चीज़ों पर किसी ने विश्वास नहीं किया...सीधे सीधे कहूं तो इन लोगों के पास इस तरह की बातों पर गंवाने के लिए पैसे ही न थे ( मेरे माता-पिता का और आगे हमारा भी इन सब में कुछ भरोसा है नहीं....)...इसलिए हम लोग बचपन ही से इन सब भ्रमों से दूर ही रहे ....(वैसे यह भ्रम नहीं है, बात में उस के बारे में लिखूंगा)....

हम जब बड़े हो गए, स्कूल कॉलेज जाने लगे तो अगर कोई मेरी माता जी से हमारी सही जन्मतिथि और समय के बारे में पूछता तो उन के वही जवाब....हां, इस का तो मुझे याद है ...चीन के साथ हमारी लड़ाई वाले दिन थे....और नवरात्रोत्सव के दिन थे ...

और साथ में हंसते हुए यह भी ज़रूर कह देतीं कि हमें अपनी होश नहीं होती थी ...कुछ दिनों बाद जब याद आता कि कमेटी में जा कर नवजात शिशु का नाम दर्ज करवाना है तो ऐसे ही जा कर अंदाज़े से कोई भी तारीख लिखवा आते थे ...कईं बार तो उस की भी ज़रूरत नहीं होती थी, जब स्कूल की कच्ची-पक्की क्लास में दाखिला लेने जाते और बच्चे की सेहत, कद-काठी, समझ-बूझ देख कर मास्टर जी को जितनी उम्र ठीक लगती, वही टिका दी जाती ....

चलिए, हर वक्त के लोगों की अपनी मजबूरियां होती हैं, अपने मुद्दे होते हैं, इस पर कोई टिप्पणी करना भी हिमाकत होगी....

ज़ाहिर है, जब सब कुछ अंदाज़े से ही हो रहा था तो जन्म-पत्री बनाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था ....लेकिन इस अंदाज़े वाली बात से एक बात याद आ गई ...जब मेरी उम्र 30-40 बरस की थी तो मेरी मां ने एक बार मुझे बताया था कि दरअसल मैं तो एक और बच्चा चाहती ही नहीं थी। और इस काम के लिए मुझे आस-पड़ोस की सहेलियों ने जो भी खाने के लिए दवाईयां कहीं, मैं खाती रही, जो टोटके करने को कहतीं, मैं करती रहीं.....लेकिन इस का कोई नतीजा न निकला....ऐसे ही चार पांच महीने बीत गए.....फिर एक नेक पड़ोसन मिसिज़ कोल ने मां को समझाया ....बहन जी, अब बस करो.....होने दो। तब बात मेरी माता जी की समझ में आ गई.....(थैंक्यू,कोल आंटी जी, आपने तो मेरे को बचा लिया.... 😃.....वैसे वह कोल आंटी हमें बहुत प्यार करती थीं....बहुत प्यारी, नेक औरत ....लेकिन अभी हम स्कूल ही में थे कि स्तन-कैंसर से वह चल बसी थीं....बहुत बुरा लगा था....😌)....मुझे उन के कान में लटकने वाले झुमके बहुत अच्छे लगते थे ....मैं अब जब कभी अनुपम खेर की मां जी को सोशल मीडिया पर देखता हूं तो मुझे उन की याद आ जाती है....(वह भी कश्मीर की हैं, वैसे ही ज़ेवर पहनती हैं और कोल आंटी के जैसे ही बातें करती हैं)....

मां, इस बात से सब को सचेत किया करती थीं कि पहले कितनी अज्ञानता थी और अब गर्भावस्था में लोग एक दर्दनिवारक टिकिया लेने से पहले भी अपने डाक्टर से पूछते हैं....अच्छी बात है। 

हां, तो जन्म-पत्री बनवाने या न बनवाने की बात चल रही थी .....सब से पहला ज़िक्र इस का हमने 1972 के आस पास सुना....हुआ यूं कि मेरा बड़ा भाई प्री-मैडीकल में पढ़ रहा था ...बहुत इंटेलीजेंट....मैट्रिक की बोर्ड की परीक्षा में 100 में से 100 लाने वाला ....लेकिन उन दिनों उस का ध्यान खेल-कूद में कुछ ज़्यादा रहने लगा....खेल कर उसे खुशी मिलती ....लेकिन उस दौर में मां-बाप अपनी जगह सच्चे थे जो इस कहावत पर विश्वास करते थे .....पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे, कूदोगे होगे खराब। 

पढ़ाई अच्छे से करने का एक ही मक़सद होता था कि डाक्टर या इंजीनियर बनने पर नौकरी मिल जाएगी....(मेरा भी बीडीएस में एडमिशन बस इसी मक़सद से हुआ था कि कोर्स करने पर नौकरी लग जाएगी)....यह उस दौर के लोगों की सोच पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं है, जैसे देश-वक्त के हालात थे, वो जैसा सोचते थे ....अपनी एवेयरनेस और अपने संसाधनों के मुताबिक बिल्कुल सही ही सोचते थे ....

हां, मैंने लिखा कि मेरे बड़े भाई का मन पढ़ाई में लग नहीं रहा था ...तो एक बार हम जब नानी के पास अंबाला गए तो उसने उस का भी एक हल मेरी माता जी के सामने रखा। अंबाला छावनी में एक पंड़ित के पास ले गईं ...जिसने हिसाब किताब लगा कर बताया कि उस युवक पर साडे़-सत्ती (पंजाबी में साड़-सत्ती कहंदे ने)...है...पता नहीं, यह सुन कर मेरी मां और नानी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई ....उसने कुछ उपाय बताया तो इन की जान में जान आई ....मुझे याद है हम लोग उस के नुस्खे को लेकर अमृतसर अपने घर चले गए....और याद है वह सामान इक्ट्ठा करने के चक्कर में घर में सब की हवा टाईट हो गई ....पता नहीं सात तरह के अनाज और भी पता नहीं कितना कितना अलग अलग मंहगा सामान जमा कर के किसी को दान में देना था ....

उपाय करना था ...सो किया ....

लेकिन .....उस का कुछ नतीजा निकला नहीं....

खैर, यह एक ऐपीसोड पहला और आखिरी है मेरे परिवार में जब हम लोगों ने इस तरह का कुछ उपाय-वॉय किया ....उस के बाद कभी हम लोग कभी इन सब चक्करों में पड़े नहीं.....

चलिए, पढ़ाई-लिखाई हो गई.....अब हम बहन-भाईयों की ब्याह-शादी का वक्त आया.....संयोगवश जिन परिवारों से नाते जुड़े वे भी जन्म-पत्री आदि में भरोसा न करने वाले थे .....और आगे बच्चों के भी न कभी टेवे बनवाए, न पत्रियां...

अभी मुझे लिखते लिखते ख्याल आया कि आज से शायद 25-30 बरस पहले की बात है, जब एक बात मुझे बड़ी अजीब लगती थी कि टेवा (जन्म-पत्री) अब कंप्यूटर पर भी बनने लगी है...किसी भी कंप्यूटर वाली दुकान से बन जाती है ....जो बचा खुचा भरोसा था वह इस कंप्यूटर वाली बात से चला गया।

हां, अभी तो राशि-फल का ख्याल आ रहा है ...जो अखबार में सप्ताह में एक दिन आता था कि फलां फलां राशि का  अगला सप्ताह कैसे बीतने वाला है ....रोमांचक लगता ....अच्छा लिखा होता तो मन खुश हो जाता....बिल्कुल रेलवे स्टेशन पर वज़न करने वाली मशीन पर लिखे संदेश की तरह ....जिसमें सब कुछ चंगा ही चंगा लिखा होता....खैर, 2007 में मैं एक ऐसे सत्संग से जुड़ा कि मैंने इस राशि-फल को पढ़ना भी बंद कर दिया ....और अभी भी नहीं पढ़ता हूं....

अब, एक बात और ....

यह जो मैंने लिखा कि हम लोग या मैं इन सब ज्योतिष-विद्या में, नक्षत्रों में विश्वास नही ं करते ....तो क्या इस से इस विद्या की अहमियत कम हो जाती है ...बस मैंने कह दिया ...और यह बात पक्की हो गई.....

नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है .....हम सब जानते हैं कि ज्योतिष-विद्या हो या नक्षत्रों का ज्ञान हो, ये सब विज्ञान है ...एक दम खरा विज्ञान ....लेकिन सीधी सपाट बात यह भी है कि इस विद्या को हम लोग समझ ही नहीं पाए,....या समझना ही नहीं चाहते हैं....बहुत से कारण है, बहुत सी स्वार्थी शक्तियां हैं जिन्होंने इस विद्या को जनमानस तक पहुंचने ही नहीं दिया.....आप का क्या ख्याल है ?.....यह मेरा पक्का विश्वास है ...मेरा क्या, साईंसदान आए  दिन सिद्ध कर रहें हैं कि भारतवर्ष की ज्योतिष-विद्या, खगोलविद्य .....नक्षत्र-गृहों का अध्ययन....यह सब प्राचीन काल से चर्मोत्कर्ष पर था ....बेशक मैं भी ऐसा मानता हूं....


लिखते लिखते ऐसे लगने लगा है कि विरोधाभास लग रहा होगा मेरी बातों में .....हां, वह तो मुझे भी लग रहा है ....सवाल यह की क्या मैं आस्तिक हूं या नास्तिक .....

मुझे भी नहीं पता इस का जवाब ....क्यों कि मैं किसी भी तरह के कर्म-कांड में विश्वास नहीं करता ....शायद यह इसलिए हो कि ये बातें मेरी समझ के परे की हैं ...मैं नास्तिक लग सकता हूं ...

लेकिन इतना भी यकीं पक्का है कि जो भी सत्ता इस कायनात को चला रही है उस की इजाज़त के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता .....आप कोशिश कर के देख लीजिए.....हम सब प्रारब्ध से बंधे हैं.... बेकार में एक दूसरे की टांग खींचते रहते हैं, मेंटल गेम्स खेलते हैं, मनूवरिंग करते हैं ........लेकिन होगा वही जो हमारे खाते में लिखा है ....मैं बस इतना ही समझ पाया हूं....

और हां, इस कायनात को चलाने वाली सत्ता पर अकीदा इतना पक्का है कि अगर यह न चाहे तो सिप और लिप के बीच की दूरी भी कोई माई का लाल तय कर के दिखा दे .....सच में वह जुमला ही नहीं, एक सांस बाहर गई लौट कर आएगी कि नहीं, हमारे हाथ में तो यह भी नहीं है......इसलिए हर श्वास के लिए अपने इष्टदेव का भरपूर शुकराना करते रहना चाहिए.....कोशिश करता हूं मैं भी ...लेकिन कभी कभी ......





जब पुरानी यादें उमड़-घुमड़ कर आने लगती हैं तो बहुत कुछ याद आ जाता है.....जैसे जन्मपत्री जब ब्याह-शादी के वक्त अदला-बदली की जाती है तो अकसर सुनने को मिलता था कि लड़के-लड़की के 36 में से 30, 32 या 36 गुण मिलते हैं....पर वही बात है ....पंजाबी में कहते हैं ...या राह पिया जाने, या वाह पिया जाने....

और हां, उस एंटीक शाप में मैंने जो जन्म-पत्री देखी, जितना में जल्दी जल्दी पढ़ पाया थो़डा बहुत ...उसमें यह भी लिखा था कि इस बालक का विदेश जाने का संयोग है, और आगे लिखा है, एक बार नहीं बार बार जाएगा.....मुझे याद आया कि हम लोग भी बचपन में अकसर सुनते थे कि फलां फलां की जन्मपत्री में विदेश यात्रा का संयोग है.....बस, सुनने वाले दंग रह जाते थे .....

और एक बात.....अगर टेवे में किसी लड़की या लड़के मंगलीक होने की बात लिखी होती तो बड़ा झमेला हो जाता ....सारे गली मोहल्ले में वह बात आग की तरह फैल जाती कि फलां फलां की लड़की मंगलीक है ....और जैसे हम उन दिनों सुनते थे कि ऐसी शादी बहुत अशुभ होती है और शादी के बाद दोनों में से एक ......... ..... । लोग इस कल्पना से सहम जाते थे ... 

भगवान भली करे। 

और हां, एक बात और ...कईं बार जन्मपत्री बदलवा के (नईं लिखवा के) भी भिजवा दी जाती थी ....मतलब, सब कुछ चंगा ही चंगा ..शुभ ही शुभ.....यह सब तो मसाला हिंदी फिल्मों में ज़्यादा देखा है, असल ज़िंदगी में तो इतना नहीं देखा। 

इस जन्म-पत्री में और क्या क्या दिखा और क्या क्या पढ़ा, उसे के बारे में लिखने बैठ गया तो एक पोस्ट और लिखनी पड़ेगी। बाद में फिर कभी देखूंगा.....जब दिल ने चाहा वह सब लिखने को .....। लेकिन रोचक जानकारी थी उस में....मैंने पूछा कि इस के कितने दाम हैं....कहने लगा, लिख कर लगा रखा है .....1947 की जन्म-पत्रिका है ....एक हज़ार की है....। मैंने कहा कि इतने दाम में कौन खरीदेगा.....वह कहने लगा, यहां सब कुछ बिक जाता है ....फिल्म वाले ले जाते हैं बहुत कुछ .....किराये पर .....किसी सीन में उस का क्लोज़-अप दिखाने के लिए.....। कहने लगा कि ऐसी चीज़ें दुर्लभ हैं, अब नहीं कहीं दिखने वाली.......।

मैंने सोचा ठीक कह रहा है वैसे तो यह बात ....मैंने उस की जन्म-पत्री की फोटो खींचनी चाही तो कहने लगा कि हमारे सेठ ने इस के लिए मना किया है .....लेेकिन मैंने उस से एक ऐंटीक पेंटिंग खरीदी थी, इसलिए उसने मुझे मजबूरी में शायद दो एक फोटो खींच लेने दी......

क्या करता, मेरी भी मजबूरी थी....बिना फोटो के इस पोस्ट को लिखता तो किसी को लग सकता था कि ऐसे ही बैठे-ठाले लपेट रहा है .....😂

एक बात मुझे लगता है कि मैं दिल से लिखना चाह रहा था और लिख नहीं पाया ...चलिए, उस को भी लिख कर सिर-दर्द से राहत पा लूं......ज्योतिष-विद्या प्रामाणिक है, विज्ञान है, लेकिन जैसे आम लोग डाक्टर के पास जाने में, वकील के पल्ले पड़ने से, पुलिस के झमेले में पड़ने से डरते हैं....वैसे ही वे ज्योतिषी के पास भी जाने से डरते हैं...क्यों डरते हैं, यह आत्मचिंतन का विषय़ है .....जगह जगह पर, फुटपाथ पर, खोमचों में जैसे नीम-हकीम डाक्टर फैले हुए हैं, वैसे ही ज्योतिष की दो किताबें और पिंजरे में तीन तोते रख कर अपने आप को ज्योतिषी कहने वाले भी यहां वहां फैले हुए हैं.....कितने लोग बीमार होने पर ब्रीच-कैंडी, जसलोक या एस्कॉर्ट अस्पताल के डाक्टर के पास जा पाते हैं......मजबूरीयां भी तो बहुत बड़ी हैं.....हाई-फाई, ख्याति-प्राप्त, सुशिक्षित, अपने फ़न के माहिर ज्योतिषाचार्य तक क्या आप पहुंचने की कल्पना भी कर सकते हैं....। 




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