शुक्रवार, 2 मई 2008

ऐसा क्यों कि खौफ़नाक सपना टूटने पर भी खुशी न हो !!


अभी ठीक डेढ़ घंटा पहले मैं अपना लैपटाप लेकर अपने बेड-रूम में आया...मुझे कुछ काम करना था....लेकिन आजकल तो इधर यमुनानगर में लिटरली आग बरसने के कारण मेरी कुछ करने की इच्छा नहीं हुई और मैं अपना सारा सामान पास ही में रख कर सो गया। लेकिन अभी पांच मिनट पहले उठ गया हूं....क्योंकि एक बेहद खौफ़नाक सा सपना देख लिया।

हुया कुछ इस तरह से है कि मैं कहीं बाहर से घर आया हूं....जब मेरा खाना-पीना हो गया है तो मैं थोड़ा दूसरे कमरों की तरफ़ जब रूख करता हूं तो पाता हूं कि मेरे पिता जी पीड़ा में हैं....मुझे दिखने में ही लगता है कि वे थोड़े डिस्टर्ब हुये हुये हैं....उन का पैर टेढ़ा हुया हुया है....और पैर पर सूजन के साथ-साथ एक काला सा काटे का निशान सा भी है। मुझे मेरे पिता जी बताते हैं कि मुझे आज काला बड़ा सा सांप काट गया है। उसी समय मेरी पत्नी भी मुझे बताती हैं कि हास्पीटल से मंगवा के सांप के काटे का इंजैक्शन लगा दिया है। लेकिन पता नहीं पिता जी ने फिर से अपनी कुछ तकलीफ़ ब्यां की जिस पर मैंने कहा कि कोई बात नहीं किसी डाक्टर को दिखा आते हैं।

शायद मेरे यह बात कहने में इतना दम नहीं था क्योंकि मेरी मां ने उसी समय मुझे कहा कि हां, हां, चलते हैं ......कोई बात नहीं, डाक्टर के पैसे ही खर्च होंगे ना।

खैर, उसी समय मेरे पास ट्यूशन के लिये एक एक कर के छात्र आने शुरू हो जाते हैं......मेरा सारा ध्यान अपने पिता जी की तरफ ही है कि मैंने अभी उन को डाक्टर के पास लेकर जाना है.....उन बच्चों का यह मेरे साथ ट्यूशन का पहला दिन है......( वैसे मैं भी बहुत हैरान हूं कि यह ट्यूशनों का कैसा चक्कर.......फिर ध्यान आया कि आज खाना खाते वक्त एक सीरियल से दो-तीन मिनट दिखा था जिस में एक औरत 8-10 बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ा रही थी!)…….मैं उन बच्चों के साथ यूं ही एक-एक बात कर ही रहा था कि मेरी मां उस कमरे में किसी बहाने आती हैं......मैं उन ट्यूशन पढ़ने आये हुये बच्चों के साथ बातें करते करते सोचने लगता हूं कि यार बचपन में जब मुझे कहीं सोच लगती थी तब तो मेरी मां और मेरे पिता जी की फर्स्ट तो परायर्टी यही होती थी कि जल्द से जल्द इसे कैसे डाक्टर तक पहुंचा जाये......और यहां मैं इन बच्चों के साथ बातें करने में मसरूफ हूं कि कहीं आज पहले दिन ही मेरा यह टरकाऊ रवैया देख कर इन के माता-पिता कल से इन्हें ट्यूशन भेजना ही ना बंद कर दें !!)…..इसलिये मैंने उन पांच-छःबच्चों को कहा कि आज का दिन तो बस इंट्रो का समझो.....कल से ही महीना शुरू कर लेंगे....आज आप लोग घर जायें।

उन बच्चों को इतना कह कर मैं अपनी कार निकालता हूं और अपनी मां और पिता जी को कार में बिठा कर किसी डाक्टर की तरफ़ निकल पड़ता हूं.....लेकिन गाड़ी चलने पर भी यह मन नहीं बना पा रहा हूं कि किस डाक्टर के पास ले कर जाऊं......क्योंकि मुझे मन ही मन यह लग रहा है कि सांप के कटे का टीका तो शुक्र है लग ही चुका है .....अब वैसे तो सब ठीक ही है, लेकिन मैं अपने मां एवं पिता जी की संतुष्टि के लिये इन्हें डाक्टर के पास ले कर जा रहा हूं...................लेकिन अभी कहीं रास्ते में ही हूं और पसीने से लथ-पथ अपने बिस्तर पर उठ कर बैठ जाता हूं........क्योंकि मेरे बेटे की मस्तियों से मेरी नींद खुलने के बाद सपना भी कहीं टूट कर, बिखर कर रह गया.................लेकिन एक बात तय है कि ऐसा शायद पहली बार हुया है कि एक भयानक सपना टूटने के बाद भी राहत सी महसूस न हुई हो.......खुशी न पहुचीं हो.......इस का कारण यही कि मेरे पिता जी को तो गुजरे हुये 13 साल हो चुके हैं !!

अभी मैंने यह पोस्ट लिखनी ही शुरू की थी कि मेरा बेटा चादर खींच रहा था लेकिन दो-चार मिनटों के बाद ही नींद में खोते खोते उस की टांग हिली और वह उठ कर बैठते बैठते पूछने लगा कि ऐसा क्यों होता है कि मुझे सपना आ रहा था कि हम मनाली के एक मंदिर में गये हैं.....वहां पर ठंडा पानी बह रहा है और जैसे ही वह मेरी टांग के ऊपर गिरता है, मेरी टांग हिल जाती है.......इतना कह कर वह फिर से सो जाता है।

लेकिन मैं अब सोच रहा हूं कि हमारी बड़ों की और इन छोटे छोटे बच्चों की दुनिया भी कितनी अलग है.....हमें सपने भी सांपों के आते हैं और इन के सपनों की दुनिया में भी मंदिर, झरने, कुदरती वादियां........यह सब कुछ है!!.....तभी मुझे ध्यान आता है कि उस बेहद सुंदर गीत का ....जिसे सुन कर इन बच्चों की दुनिया की एक झलक ज़रूर मिलती है.........आप भी ज़रूर सुनिये और अपने बचपन के दिन दोबारा जी लीजिये।