शुक्रवार, 20 मार्च 2009

क्यों छापते हो यार ऐसी खबरें ? ---आखिर मैडीकल जर्नलिस्ट किस मर्ज़ की दवा हैं ?

अभी अभी हिंदी का एक प्रतिष्ठित अखबार देख रहा था ---जिस के पिछले पन्ने पर एक बहुत बड़ी न्यूज़-आइटम दिखी ---- डायबिटीज के इलाज में कारगर है तंबाकू !! इसी न्यूज़-आइटम से ही कुछ पंक्तियां ले कर यहां लिख रहा हूं ----
- ----मगर शोधकर्त्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने तंबाकू में तमाम फायदे खोज निकाले हैं।
- ---तंबाकू के पौधे में जैनेटिक बदलाव कर कुछ दवाएं तैयार की हैं।
- ----सक्रियता जांचने के लिए पौधों को प्रतिरोधी क्षमता की कमी से जूझ रहे चूहों को खाने के लिए दिया गया।
- -----महत्वपूर्ण बात यह है कि तंबाकू के ट्रांसजैनिक पौधों की पत्तियों को खाया जा सकता है। इसमें मौजूद तत्व बीमारी वाले हिस्से में स्वतः काम करने लगते हैं। इससे पत्तियों से दवा बनाने के झंझट से मुक्ति मिलती है।
- शोधकर्ता दल ने पाया कि इसकी सीमित मात्रा और कुछ एंटीजन की नियमित खुराक से टाइप वन डायबिटिज़ की रोकथाम में मदद मिलती है।

अच्छी खासी लंबी-चौड़ी खबर थी ---तीन कॉलम की ।

अब सोचने की बात यह है कि अगर एसी खबार छपी भी है कि तो इस में आपत्तिजनक है ही क्या !! इस में सब कुछ आपत्तिजनक ही आपत्तिजनक है ---- कारण ? --- यह सारा शोध अभी चूहों पर हो रहा है। पूरा शोध तो हो लेने दो ---आखिर इतनी भी क्या हफड़ा-धफड़ी यह छापने की ऐसी खबर छापने की कि जिस की एक कतरन भीखू पनवाड़ी अपने इलैक्ट्रिक-लाइटर के साथ ही चिपका कर अपनी बीड़ी-सिगरेट की सेल को चार चांद लगा डाले। ऐसी खबरें बेहद एतराज़ –जनक इसलिये भी हैं क्योंकि जब इस तंबाकू के चक्कर में पड़ा कोई व्यक्ति ऐसी खबर देखता है ना तो उसे अपनी आदत को जारी रखने का एक परमिट सा मिल सकता है। वह भला फिर क्यों सुनेगा अपने डाक्टर की ----अकसर लोग अखबार में छपी बातों को ज़्यादा गंभीरता से लेते हैं।

अगर उस तंबाकू का सेवन करने वाले व्यक्ति का कोई सहकर्मी उसे सिगरेट बंद करने को कहेगा तो वह उस की बात को यह कह झटक देगा कि लगता है तू अखबार नहीं पड़ता ---रोज़ाना पढ़ा कर। तंबाकू सेवन करने वाले को ट्रांसजैनिक शब्द से इतना सरोकार नहीं है –उसे तो केवल आज छपी इस न्यूज़-आइटम से ही मतलब है कि डायबिटिज़ के इलाज के लिये कारगर है तंबाकू।

ध्यान यह भी आ रहा है कि अगर ऐसी खबर पढ़ कर डायबिटीज़ से जूझ रहे लोग तंबाकू को थोड़ा आजमाना ही शुरू कर दें तो उन के लिये यह आत्महत्या का जुगाड़ करने वाली ही बात हो गई। सब जानते हैं कि हम सब के लिये और विशेषकर शूगर के मरीज़ों के हृदय , मस्तिष्क एवं रक्त की नाड़ियों के लिये तंबाकू कितना खतरनाक ज़हर है। और भगवान न करे , अगर किसी ने इस पंक्ति को पढ़ कर जीवन में उतार लिया कि इस की नियमित खुराक से डायबिटीज़ की रोकथाम में मदद मिलती है।

ऐसे में क्यों छापते हैं अखबार इस तरह कि खबरें -----जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूं कि लोगों को इन प्रयोगों की अवस्था से कुछ ज़्यादा सरोकार होता नहीं ----एक ले-मैन को हैल्थ संबंधी विषयों का इतना गूढ़ ज्ञान कहां होता है ---वह तो शीर्षक पकड़ता है और उस न्यूज़-रिपोर्ट में लिखी दो-चार पंक्तियां जो उस को सुकून देती हैं, वह तो उन्हीं को हाइ-लाइट कर के अपने पर्स में टिका लेता है ----और शायद अपने फैमिली डाक्टर को कोसने लगता है कि लगता है कि अब उसे भी छोड़ कर कोई और डाक्टर देखना पड़ेगा ----देखिये, साईंस ने कितनी तरक्की कर ली है ---डायबिटीज़ में तंबाकू के फायदे की बात अखबार में हो रही है और वह है कि हर दफ़ा डायबिटीज़ के कारण मेरे शरीर में उत्पन्न जटिलतायों के लिये मेरी सिगरेट को ही कोसता रहता है।

तीन दिन पहले इसी हिंदी के अखबार में एक दूसरी खबर छपी थी जिस का शीर्षक था ---- मोटापे को दूर रखेगी एक गोली – वजन बढ़ने की चिंता छोड़ कर डटकर खा सकेंगे लोग ------- चूहों पर हो रहे ऐसे शोध को इतना महत्व कैसे दे दिया गया , मेरी समझ से बाहर की बात है । यह खबर भी अखबार के अंतिम पृष्ठ पर छपी थी।

दो दिन पहले खबर छपी कि ----पहले ही मिलेगा हार्ट अटैक का संकेत –विध्युतीय सिग्नलों में परिवर्तन होते ही सचेत करेगा एंजिलमेड गार्जियन । इस खबर से कुछ पंक्तियां लेकर यहां लिख रहा हूं ----शोधकर्ताओं का मानना है कि छाती में कॉलर बोन के नीचे लगने वाला एंजिलमेड गार्जियन हार्ट अटैक के कुछ पहले ही संकेत दे देगा, इससे मरीज को अस्पताल तक पहुंचने और उपयुक्त इलाज पाने में आसानी होगी। दिल की सामान्य गति में बदलाव होने पर माचिस की डिब्बी के आकार के इस यंत्र में मोबाइल की तरह कंपन शुरू हो जाएगा। हृदय रोगी के पास मौजूद एक विशेष पेजर में सावधानी बरतने संबंधी संदेश भी पहुंचेगा । ----मालूम हो कि प्रारंभिक दौर में एंजिलमेड गार्जियन का परीक्षण अमेरिका में चल रहा है। ................

इस तरह के समाचारों से आपत्ति यही लगती है कि इस तरह के प्रयोग अभी तो हो ही रहे हैं ----जब ये सभी परीक्षण सफलता पूर्वक पास कर लेंगे तो होनी चाहिये इन की इतनी लंबी चौड़ी चर्चा । पत्रकारिता में एक बात कही जाती है कि खबर वही जो रोमांच पैदा करे -----कुत्ते ने आदमी को काट दिया, यह तो भई कोई खबर नहीं हुई ---इस की न्यूज़-वैल्यू ना के समान है -------------खबर तो वही हुई जब कोई आदमी कुत्ते को काट ले। तो ,अगर मैडीकल खबरों में भी हम रोमांच का तड़का लगाना ही चाहते हैं तो उन्हें मैडीकल खबरों जैसे कॉलम के अंतर्गत केवल दो-चार पंक्तियों में ही डाल देना चाहिये---------ऐसी वैसी खबरों को इतना तूल देने की क्या पड़ी है ?

अकसर अखबारों में इस तरह की खबरों के आसपास ही कुछ इस तरह के विज्ञापन भी बिछे पड़े होते हैं -----
---जब से फलां फलां तेल का इस्तेमाल शुरू किया तो बीवी इज्जत करने लगी।
-----महिलाओं एवं पुरूषों दोनों के लिये डबल धमाका डबल मज़ा --- फलां फलां कैप्सूल के साथ तेल फ्री।
----चूकिं फौजी बनने के लिये ऊंचा कद चाहिये होता है जो कि फलां कैप्सूल से बढ़ जाता है।
-----एक अन्य विज्ञापन में एक 10-11 साल का छोरा कह रहा है कि उसे तो हाइट बढ़ाने की जल्दी है ---इसलिये एक कैप्सूल के इश्तिहार पर उस की फोटो चिपकी हुई है।
----एक अन्य विज्ञापन कह रहा है कि शर्मिंदा होने से पहले इस्तेमाल करें यह वाला तेल ---- पूरे फायदे के लिये शीशी पर इस का नाम खुदा हुआ देख कर ही खरीदें । पुरूषों की ताकत के लिए लोकप्रिय व असरकारक ----शौकीन लोग भी इस्तेमाल करके असर देखें।
----- एक अन्य विज्ञापन कह रहा है कि अभद्र भाषा में ऐरे-गैरे बाज़ारू किसी भी तेल-तिल्ले से जिन्हें सतुष्टि मिल जाती हो वे इस विज्ञापन को नज़रअंदाज़ कर दें क्योंकि यह विज्ञापन भारत से यूरोप को निर्यात होने वाले फलां फलां का है जो सर्वगुण सम्पन्न असली तिल्ला है। पुरूष जननांग का पूर्ण पोषण करने तथा उस में रक्त-प्रवाह की वृद्दि करके उसकी कमज़ोर नसों को सुदृढ़ करने के लिए गुणकारी तेल(तिल्ला)

अब विज्ञापनों के बारे में तो क्या इतनी चर्चा करें -----ये पब्लिक के विवेक पर निर्भर करता है कि वह किसे आजमाना चाहती है और किसे नहीं। ये बहुत ही पेचीदा मसला है। लेकिन जहां पर मैडीकल न्यूज़ का मसला है उस के बारे में तो ज़रूर जल्द से जल्द कुछ होना चाहिये ---- क्या है ना कि मैडीकल एंड हैल्थ रिपोर्टिंग को एक तो वैसे ही हमारे अखबारों में कम जगह मिलती है ---इसलिये मैडीकल न्यूज़ का चुनाव करते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाना बहुत ही ज़रूरी है ----------ये बातें कौन सी हैं, इस की चर्चा शाम को करेंगे ।

वैसे पोस्ट को बंद करते करते यही ध्यान आ रहा है कि हिंदी के अखबारों में पुरूष जननांग के पोषण के लिये इतने सारे विज्ञापन रोज़ाना दिखने के बाद किसी को यह संदेह भी हो सकता है कि क्या सारा हिंदोस्तान ही इतनी दुर्बलता का शिकार है -------------वैसे ऐसा लगता तो नहीं, क्योंकि हमारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या के आंकड़ों को जिस तरह से चार चांद लग रहे हैं वह तो कोई और ही दास्तां ब्यां कर रही है। ( कहीं इस के पोषण को कम करने की ज़रूरत तो नहीं, दोस्तो। )