सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

जुएं मारने वाली कंघीयां....

अभी मैं नेट पर कुछ सर्च कर रहा था तो एक लिंक पर पहुंच गया..कि अपने बच्चों के सिर को जुओं के लिए देखते रहें......यकायक याद आ गई पुरानी यादें जब गली-मोहल्लों में महिलाओं को एक दूसरे के सिर में जुएं खोज खोज कर मारने के मंजर अकसर दिख जाया करते थे......अब भी होता ही होगा यह सब कुछ, शायद हमें ही इस का अनुमान नहीं है क्योंिक हमारा ही पता बदल गया है।

इस काम के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कंघी भी एक अलग किस्म की हुआ करती थी.....पंजाबी में इसे कहते थे....बारीक दंदेयां वाली कंघी......(comb with the fine teeth!)........इसे सिर पर फिराना भी हिम्मत का काम हुआ करता था, बचपन में यह कंघी मेरी मां और बड़ी बहन ने मेरे सिर पर भी कईं बार फेरी थीं......एक दो जूं मिलने पर फिर लेक्चर भी सुनना पड़ता था....

अच्छे से मैं देखा करता था अपने आस पास कि किसी के सिर पर वह जूओं वाली कंघी फिराते फिराते जब कंघी में कोई जूं दिख जाती थी तो वह लम्हा कितना रोमांचक हुआ करता था जैसे कि वीरप्पन पकड़ लिया हो. और फिर उस जूं को अपने बाएं हाथ के अंगूठे पर शिफ्ट कर के दाएं हाथ के अंगूठे से उस का वध करना, महिलाओं को यह बड़ा सुख देता था .....और जूओं के मारे सिर में भी अपने अाप ठंडक पड़ने लगती थी।

कईं बार दो एक जुएं मिलने के बाद जब और जुएं नहीं मिल पाती थीं तो ऐसे ही निकालने वाला यह घोषित कर दिया करता था कि जुआं नहीं ने, लीखां ने......लीखां तो ही जुआं बनदीयां ने.......(जुएं नहीं है और, लीखे हैं.....लीखों ही से तो जुएं बन जाती है)......

जो गली मोहल्लों में औरते के साज-श्रृंगार का सामान साईकिल पर बेचने आया करते थे, उन्होंने भी जूओं वाली कंघी अलग से रखी होती थी....बहुत बिका करती थी ये कंघीयां।

फिर देखा धीरे धीरे जुएं मारने वाली दवाईयां आ गईं......लोग जुएं मारने के लिए इन्हें इस्तेमाल करने लगे। क्या था , एक ऐसी ही दवाई का नाम........Mediker lice killer ---- मुझे अच्छे से याद तो नहीं है, लेकिन शायद यही था......पता नहीं अब यह दवा मिलती है या नहीं, कोई आइडिया नहीं....अकसर जैसे ही हम लोगों का पता बदलता है (आप समझते हैं मैं क्या कहना चाहता हूं) हम पुरानी बातों को ऐसे भूलने का नाटक करते हैं जैसे हमारा इन से कोई वास्ता ही न हो.........ठीक है, यह इंसानी फितरत है।

आप को उस लिंक के बारे में भी बता रहा हूं जिस पर जाकर मुझे यह जुओं वाले दिनों की याद आ गई.......... हा हा हा ...  Health tip:  Check your Child for Head Lice

बात जुओं की हो रही थी तो पता नहीं यह खटमल वाला गीत कहां से याद आ गया.......सही कहते हैं अंग्रेज़-----खाली दिमाग शैतान का घर.......An empty mind is a devil's workshop!

शुक्राणुओं को भी हानि पहुंचाती है दारू

अभी मैं एक विश्वसनीय मैडीकल साइट पर देख रहा था कि दारू पीने की आदत भी किस तरह से स्पर्म (शुक्राणुओं) को हानि पहुंचाती है......आप भी इसे इस लिंक पर जा कर अवश्य देखें......Too much booze may harm your sperm. 

 मैंने इस रिपोर्ट को पूरा पढ़ा और जाना कि किस तरह से ज़्यादा दारू पीने की आदत स्पर्म के साथ साथ कईं तरह के अन्य यौन रोग संक्रमण को बढ़ावा दिये जा रही हैं.......यह लेख जिस का लिंक आप ऊपर देख रहे हैं, यह पठनीय तो है ही , इस में लिखी बातें भी मानने योग्य हैं।

मुझे पता है मैंने ऊपर लिखा है.....ज़्यादा दारू.......अब हर पाठक यही सोचेगा कि यह समस्या तो उन लोगों की है, जो ज़्यादा दारू पीते हैं, हम तो कम ही पीते हैं.......लेकिन ज़्यादा और कम दारू पीने की परिभाषा को जानने के लिए भी आपको इस लेख को देखना चाहिए।

एक बात और........बहुत से लोग अकसर कहते दिखते हैं कि डाक्टर लोग ही तो कहते हैं कि थोड़ी थोड़ी पीना दिल की सेहत के लिए अच्छा होता है। इस के उत्तर में सभी डाक्टर यही कहते हैं कि हम लोग उन्हें नहीं कहते जो लोग नहीं पीते कि आप लोग दिल की ठीक रखने के लिए पीना शुरू कर दें.......बल्कि हम यही कहते हैं जो लोग अंधाधुंध पीने के आदि हो चुके हैं, अगर वे बिल्कुल कम से कम दारू पीने लगेंगे तो उन के लिए यही ठीक रहेगा। अब यह कम दारू कितनी कम है, यह जानने के लिए आप होम-वर्क स्वयं करें या अपने फैमिली डाक्टर से परामर्श कर सकते हैं.....

कुर्बानी पर कुर्बान




बकरीद के बारे में मेरे मन में बहुत प्रश्न उमड़ आते हैं ..इन्हीं दिनों में पिछले कुछ वर्षों से....फिर जिस तरह का मैं इंसान हूं ... जब दूसरे प्रश्न तैयार हो जाते हैं तो पिछलों को तो हटना ही पड़ता है।.....इस बार भी ऐसा ही हुआ कि कुछ दिनों से मैं फिर ऐसे ही प्रश्नों से घिर गया।

यह लिख रहा हूं ...इसलिए नहीं कि मैं किसी एक धर्म से संबंधित हूं...मैं किसी भी धर्म के साथ अपने आप को आइडैंटीफाई करना ही नहीं चाहता, मुझे अपना धर्म कहीं पर लिखते हुए भी बड़ा अजीब लगता है ......बस मेरा दृढ़ विश्वास यही है कि हम सब इंसान बना कर भेजे गये हैं, बस इंसानों जैसा किरदार हो जाए......इतना ही काफ़ी है। मेरा यही धर्म है, यही इबादत है।

हां,  यार, यह जो प्रश्नों की बात हो रही है इन के बारे में कोई पूछे तो पूछे कैसे। बड़ी जिज्ञासा होती है। लखनऊ की एक मस्जिद के बाहर मैंने एक इश्तहार टंगा देखा कि कुर्बानी का हिस्सा १२०० रूपये में।  मैंने सोचा इस का क्या मतलब है, किस से पूछूं। दो चार दिन पहले जब मेरे पास एक बुज़ुर्ग महिला मरीज़ आईं तो मैंने उन से पूछ ही लिया...इस हिस्से के बारे में। उस नेक रूह ने अच्छे से हिस्सों के बारे में बता दिया और कहा कि बड़े सस्ते में हो रहा है। इस के आगे कोई बात नहीं हुई।

हां, अभी अभी लेटा हुआ था...सिर थोड़ा भारी हो रहा था ..तो मैंने आज की हिन्दुस्तान उठा ली.....उस के संपादकीय पन्ने पर एक लेख पर मेरी नज़र गई.......इस समाचार पत्र के संपादकीय पन्ने पर एक स्तंभ आता है...मनसा वाचा कर्मणा........इस में आज सूर्यकांत द्विवेदी जी का लेख ....कुर्बानी पर कुर्बान....दिख गया। इसे पढ़ कर मेरे बहुत से प्रश्न --सारे नहीं........घुल गये।

मैं चाहता था कि इसे आप भी पढ़े अगर कुछ प्रश्न आप के मन में भी उमड़ रहे हैं......... इसलिए उस सारे लेख को हु-ब-हू नकल कर के इस पोस्ट में लिखने के लिए उठा ही था......कि गूगल बाबा का ध्यान आ गया.......बस कुर्बानी पर कुर्बान लिखने भर की देर थी कि सर्च रिजल्ट के पहले नंबर पर यही लेख दिख गया..... अच्छा लगा.......मेरी गुज़ारिश है कि आप भी इसे पढ़िए........मैं भी इसे फिर से दो-तीन बार तो पढूंगा ही ..........यह रहा इस का लिंक ...
कुर्बानी पर कुर्बान ....(हिन्दुस्तान... ०६अक्टूबर २०१४) 

मैं पिछले लगभग ३५ वर्षों से कुर्बानी के इस गीत को सुन रहा हूं ...कभी बोलों पर ध्यान नहीं दिया, अब इस के बोलों पर भी ध्यान देने की, किसी विद्वान के पास बैठ कर इन बातों को समझने की चाहत सी होने लगी है.......