गुरुवार, 20 मार्च 2014

ट्रांसपेरेंसी का दौर....

आज के दौर में अगर किसी दफ्तर में किसी कागज़ के लिए इंकार करे तो वह बड़ा बेवक़ूफ़ सा लगता है। सभी सूचना सिर्फ दस रुपया की दूरी पर ही तो है। फिर कोई सूचना के हक़ से पूछे तो इन्हें बुरा लगता है।
आज मैं पहली बार अपने फ़ोन से लिख कर इस पोस्ट को पब्लिश कर रहा हूँ। थोडा मुश्किल तो लग ही रहा है।
आज मैं अपने बेटे के साथ उस के स्कूल गया था। उस का रिजल्ट कार्ड तो दो दिन बाद मिलेगा लेकिन आज स्कूल ने बच्चों को और उनके माँ बाप को उनके पेपर देखने के लिए बुलाया था।
मुझे यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा। कितना खुलापन....किसी को कोई मलाल नहीं कि पता नहीं पेपर ठीक से किसी ने देखे या नहीं। पता नहीं टोटल ठीक हुआ होगा या नहीं। होते थे हमारे मन में भी ऐसे सवाल उठा करते थे।
मुझे ऐसा लगता है ...यह सब सी बी एस ई की पहल से ही हुआ होगा। सभी बच्चे अपने साथ प्रश्न पत्र भी लाये हुए थे। उनके टीचर वहीँ मौजूद थे। कोई भी संदेह दूर करो। पेरेंट्स ने भी बच्चों की परफॉरमेंस को टीचर्स के साथ डिस्कस किया।
यह बहुत अच्छा सिस्टम है।।। सूचना के हक का ही विस्तार लगा मुझे तो। जब कोर्ट कचेरी ने कह दिया क़ि अब बच्चे अपने पर्चों की कॉपी आर टी ई के द्वारा भी ले सकते हैं तो लगता है बोर्ड ने सोचा सब कुछ वैसे ही खोल दो।।।।।। बहुत अच्छा।
आज जब मैं यह नज़ारा देख रहा था तो सत्तर के दशक में अपने डी ऐ वी स्कूल अमृतसर के दिन याद आ रहे थे। एक पोस्टकार्ड नुमा प्रिंटेड कार्ड हर त्रॆमसिक पर्चे के बाद घर जाता था डाक से। उसमे नंबर कोई मॉनिटर नुमा लड़का भरता था। घर से बापू से हस्ताक्षर करवाने के बाद अपने क्लास के मास्टर को वापस ला के देना होता था। इस मैं भी बच्चे कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लिया करते थे।।।
Thanks dear Raghav for pushing to put Nexus4 to proper use......god bless....i dedicate this first post to you.!!   (raghav is my younger and naughty son!)......god bless him always!