बुधवार, 8 जून 2016

दांतों में बढ़ते गैप को लाइटली ना लें..

दांत जो पहले से सटे हों अगर उन में गैप आने लगे या फिर जिन दांतों में शुरू से ही थोड़ा गैप था..लेकिन अब वह गैप बढ़ने लगे तो इसे लाइटली न लिया जाए।

कईं बार केवल यह ही पायरिया जैसे रोग का महत्वपूर्ण लक्षण होता है ..

उदाहरण के लिये देखिए..यह दांतों की तस्वीर एक २८ साल के करीब लडकी की है ..इसे और कोई तकलीफ़ नहीं..लेिकन इस की शिकायत है कि इस के दांतों में पहले बिल्कुल थोड़ा गैप था, लेिकन पिछले कुछ महीनों में यह गैप बढ़ता ही जा रहा है..

इतनी कम उम्र में अगर कोई इस तरह की शिकायत करता है तो पायरिया जैसे रोग का लक्षण हो सकता है ...इस लड़की को और कोई परेशानी नहीं थी...न मसूड़ों से खून बहना, न किसी तरह की सूजन ..कुछ नहीं...ओपीजी एक्स-रे करवाया गया तो इस बात की पुष्टि हुई कि पायरिया रोग ही है ...जिस का समुचित इलाज है ...

यह एक अलग तरह की मसूड़ों और जबड़े की हड्डी की बीमारी होती है जिस में हड्डी नष्ट होने लगती है ...जिस की वजह से दांतों को अपनी जगह से हिलने के लिए जगह मिल जाती है...जैसा कि आप इस एक्स-रे में भी देख सकते हैं..
इसे ओपीजी एक्सरे कहते हैं इस में सभी दांत एक ही फिल्म में आ जाते हैं


इस के मसूड़ों का पूरा इलाज किया जायेगा ..लगभग एक महीना लग जायेगा..उस के बाद भी यह तो सुनिश्चित किया जा सकता है कि आगे से ये गैप बढ़ें नहीं..लेकिन पहले से हो चुके गैप को केवल मसूड़ों के इलाज से ठीक नहीं किया जा सकता..

उस के लिए इन खाली जगहों (गैप) के बीच कुछ ऐसा दांत के कलर का मैटीरियल लगा दिया जाता है ...प्रश्न अब यह आप कर सकते हैं कि अगर यही करना है तो फिर मसूड़ों के इलाज का क्या फायदा! -- हां, उस का फायदा यह कि बीमारी आगे पनपने से रुक जाती है ...

हां, मैंने कहा कि पायरिया के आगे बढ़ने पर दांतों को इधर उधर खिसकने की जगह मिल जाती है जैसे कि ऊपर २८ वर्ष की युवती के दांतों में आपने देखा ..और एक्सरे न कंफर्म भी कर दिया...और ऐसा भी हो सकता है कि दांतों को खिसकने के लिए जगह ही न मिले और वे एक दूसरे के ऊपर चढ़ने लगें..जैसा कि आप इस लगभग ५०-५५ साल की महिला के दांतों की तस्वीरों में देख सकते हैं...इस महिला में वैसे तो पायरिया के सभी लक्षण थे, साथ में उस की शिकायत यह भी थी कि कुछ महीनों से दांतों के ऊपर दांत चढ़ने लगे हैं...

पोस्ट का बस एक छोटा सा उद्देश्य है कि दांतों में होने वाले गैप को लाइटली न लीजिए...तुरंत अपने दंत चिकित्सक से मिलिए ...और समुचित इलाज करवाईए...एक बात और भी है कि नियमित दांतों के परीक्षण के लिए जाते रहें...

लेखन में पैसा-वैसा कुछ है नहीं!

कल मैंने एक लेख लिखा था कि लिखना शुरू कैसे करें?...चलिए, आप ने नहीं देखा, अच्छा ही किया...😊😊

आज मुझे ध्यान आ रहा कि लेखन को एक प्रोफेशन बनाने से पहले अच्छे से सोच-समझ लेना चाहिए..एक हॉबी के तौर पर, एक तफरीह के लिए लिखना ..या आप के पास कुछ ऐसा है जो आप दुनिया से बांटना चाहते हैं...बिल्कुल वही सूर्य की रोशनी वाली बात...तो आप बस लिखते रहिए...ऐसे ही ...लेिकन राशन पानी लेखन से चल पाए...मुझे नहीं लगता, होंगे कोई विरले जो यह काम कर लेते होंगे...उस के लिए लेखन के साथ जुगाड़ू प्रवृत्ति होना भी लाजमी है..

जो बातें शेयर करता हूं ...कोई झूठ वूठ न ही लिखता हूं..न ही ज़रूरत है..लेकिन इतना ध्यान अवश्य करता हूं कि जिस बंदे ने जो बात मेरे को गोपनीय से बताई है मैं कुछ भी हो जाए उस को धोखा नहीं देता, चाहे कुछ भी हो जाए...बस, एक यही अच्छी आदत है ...मरीज़ों की बातें बहुत सी शेयर करता रहता हूं इस ब्लॉग में लेिकन गारंटी है कि अगर कोई मेरी पोस्टों को पढ़ कर किसी को पहचान पाए.....हां, कुछ हट्टे-कट्टे बुज़ुर्गों की फोटो ज़रूर लगा देता हूं क्योंकि उन्हें भी अच्छा लगता है और मुझे भी आप को टहलने के लिए प्रेरित करने के लिए कुछ तो मसाला चाहिए होता है..
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एक ३५-४० के आदमी से मुलाकात हुई...(कहां हुई, कैसे हुई... रहने दें) ..मैंने पूछ लिया कि आप क्या करते हैं...कहने लगा कि मीडिया में हूं...मीडिया में आदमी क्या है, क्या नहीं है, यह किसी से दो बातें कर के पता चल जाता है ...अच्छे से...फिर वह बंदा कहने लगा कि मैं किताबे भी लिखता हूं..मुझे अच्छा लगा..

मेरे कहने पर वह अगली मीटिंग में अपनी एक किताब ले आया...यह किताब क्या थी, चाटुकारिता का एक ग्रंथ था...मुझे कवर देख कर ही बात समझ में आ गई...लेकिन उस पर उस का नाम कहीं नहीं लिखा था..बताने लगा कि जिस आदमी का नाम उस किताब पर है उससे उसे पचास हज़ार रूपये मिले हैं....मुझे इतनी खुशी हुई कि मैं ब्यां नहीं कर सकता...मैंने उस की पीठ थपथपाई ...इसलिए कि अब हिंदी के लेखकों में इतना दम होने लगा कि वे भी इतनी बड़ी रकम पा सकते हैं...

जी हां, वह शख्स गोश्त-राइटर था (Ghost writer) ...भूतलेखक कहते हैं इसे ..अभी फ़ादर कामिल बुल्के की अंगरेजी हिन्दी कोश से देखा है ... इस में क्या होता है किसी रचना को लिखता कोई और है ..लेिकन उस का नाम कहीं नहीं होता, उसे बस अपना मेहनताना लेकर किनारा कर लेना होता है...

बंदा बता रहा था कि उसने सात के करीब किताबें लिख दी हैं इस तरह से ...हर एक के चालीस-पचास हज़ार रूपये मिल जाते हैं....मैं उस की इस उपलब्धि पर बहुत खुश हुआ ...सिर्फ इसलिए कि मैंने अपने नाना जी की गोश्त राइटिंग के बारे में भी सुन रखा है, उन के बारे में भी अभी बताऊंगा...इत्मीनान रखिए...

हां, उस बंदे की किताब में २०० के करीब किसी लीडर की तस्वीरें थीं, टनाटन ग्लॉसी पेपर पर... एक अच्छे पब्लिशिंग हाउस ने किताब प्रकाशित की थी...ज़ाहिर है उस छापने वाले की भी सेवा की गई होगी ...बीच बीच कुछ लिखा था...लिखा क्या था, तारीफ़े के पुल बांधे गये थे..

वह मुझे कहने लगा..कैसी लगी?...मैंने कहा..बहुत अच्छी है.. क्योंकि मैं उस के श्रम की अपने नाना जी के श्रम से तुलना कर रहा था...और मुझे अच्छा लग रहा था कि जैसे इस माई के लाल ने मेरे नाना जी का बदला लिया है दुनिया से ...at times, how irrational thinkers we become so foolishly! Anyway, fact is fact! ...कहने लगा रखेंगे पढ़ने के लिए?....मैंने कहा ..नहीं, देख तो ली है..आप के काम आ जायेगी...मैंने इसलिए नहीं ली किताब की पढ़नी मैंने है नहीं, बिना वजह मैं घर में मौजूद दुनिया के लगभग सभी विषयों पर उपलब्ध सैंकड़ों किताबों में इसे कहां घुसाऊंगा...पहले ही घर में गालीयां पढ़ती रहती हैं ...किताबों के बढ़ते अंबार की वजह से! 

नाना जी, श्री देवी दास जी बसूर 
मेरे नाना जी, स्व. देवी दास जी बसूर, उन्हें विभाजन के बाद Pak-occupied Kashmir (PoK) से अंबाला आ कर रहना पड़ा...शुरू शुरू में १९४७ के बाद कुछ समय के लिए वह जालंधर में एक अखबार में सब-एडीटर रहे ..लिखने पढ़ने का शौक तो था ही ... उर्दू का अखबार था... कुछ अरसे बाद वे लुधियाना में किसी रईस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे ..उस रईस ने उन्हें रहने के लिए जगह भी दे दी थी..लेकिन यह सिलसिला चल नहीं पाया...सारा परिवार अंबाला में था...इसलिए कुछ समय बाद इन्होंने अंबाला में ही ट्यूशनें पढ़ानी शुरू कर दीं... 

हम लोग जाते तो देखते कि वह सुबह और शाम चार -पांच बच्चों को ट्यूशन दिया करते थे.. गणित और इंगलिश के बहुत अच्छे ट्यूटर थे..वे तो कभी नहीं बताते, लेकिन नानी को पूरा पता रहता था कि शहर का कौन सा निकम्मा और नालायक बच्चा कैसे इन के पास आकर अच्छे अंकों में पास हो गया... नानी को उन बच्चों के मां-बाप बताया करते थे...इस चक्कर में अपनी नानी की भी तूती बोलती थी...अच्छी बात है ...

लेकिन उन का एक दोस्त था, नाम नहीं लिखूंगा.....आठवीं ,दसवीं कक्षा में हम लोग हिंदी की किताब पढ़ते तो मेरी मां बता दिया करती कि यह तो तुम्हारे नाना का दोस्त है ...वह बहुत मशहूल लेखक था...फिर हमें धीरे धीरे पता चला कि उस लेखक के लिए मेरे नाना जी गोश्त-राइटिंग करते थे...बिल्कुल यारी दोस्ती में या कभी कुछ थोड़ा बहुत वह दे दिया करता था... नाना जी उर्दू में कहानियां लिखा करते और वह उन्हें हिंदी में अनुवाद कर के अपने नाम से छाप दिया करता ... धीरे धीरे वह बंदा तो बहुत बड़ा आदमी बन गया...

लेकिन अपने नाना जी हमेशा तंगहाली में ही रहे......लिखते हुए थोड़ा असहज लग रहा है...लेिकन उन्होंने जिंदगी पूरी सादगी और ईमानदारी से ..अपने बलबूते पर जी.....बहुत शांत थे... खाना-पीना एक दम सीधा-सादा...सफेद कमीज और पायजामा हमेशा... पढ़ने के शौकीन ..अखबारें और पत्रिकाएं पढ़ते रहना ..ज़्यादा बात नहीं किया करते थे..उन की बैठक में हम लोग जाते तो बस हमें देख कर मुस्कुरा दिया करते ...

क्या आप यकीं करेंगे कि कोई इंसान ८०-८२ साल की उम्र तक ट्यूशनें पढ़ाता रहा हो...हमनें उन्हें कभी बीमार नहीं देखा...लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ट्यूशनें आनी कम हो गईं...मुझे अच्छे से याद है हमारा भी उन से ऐसा लगाव कि उस उम्र में उन के ट्यूशन वाले छात्रों की संख्या कम होते देख कर मुझे बहुत बुरा लगता...कारण आप समझ ही सकते हैं! लेकिन यह मुझे पता है कि पढ़ाते बहुत ही अच्छा थे...इंगलिश और गणित पर मास्टरी, कोई जवाब ही नहीं। 

अच्छा, वापिस उस भूतलेखक की तरफ़ आता हूं...जिसने कुछ पन्ने लिख कर ...५० हज़ार रूपये का जुगाड़ कर लिया.. मुझे खुशी हुई ...मैंने उसे इतना तो कहा ..कि क्या उसे पता है कि ५० हज़ार रूपये में आपने उस व्यापारी का कितना बड़ा काम कर दिया है ... सोचने लगा, फिर कहने लगा कि हां, मैं सब समझता हूं ..इस किताब के बलबूते वह अपने लाखों के काम करवायेगा...क्या करें, अपनी इच्छा अनुसार पैसे मांगे भी तो नहीं जा सकते। 

मैंने फिर भी कहा ...नहीं, यार, कोशिश तो करो...अगली बार यह राशि बढ़ा दो....पता नहीं मुझे क्यों लग रहा था मैं अपने नाना जी को मिलने वाले कम पैसों का बदला ले रहा था...उसे अपनी राशि बढ़ाने के लिए कह कर ...how foolish of me! Isn't it?

I love this song so very much!! ...particularly the lyrics and the geat great Dada Muni..



शहीदों के सरताज.. श्री गुरू अर्जुन देव जी...कोटि कोटि नमन्

आज श्री गुरू अर्जुन देव जी का शहीदी पर्व है...मैंने पेपर में देखा कि एक न्यूज़-रिपोर्ट तो थी कि कहां कहां पर लंगर लगेगा...लेिकन इस महान् शख्शियत के बारे में ..इऩ के साहित्य सृजन के बारे में..श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का संपादन इन के द्वारा कितनी कुशलता से किया गया...इस के बारे में कुछ भी नहीं था..बस, दो पंक्तियां लिखी थी लाहौर में मुगल शासक जहांगीर ने इन्हें किस तरह से शहीद करवा दिया...

बस, इतनी जानकारी से क्या बात बन जायेगी?...मैंने देखा है कि हमारी उम्र के लोगों को ही विभिन्न धर्मों के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है...ऐसे में अगली पीढ़ी से क्या एक्सपेक्ट करें कि वह विभिन्न धर्मों के बारे में जानकारी ग्रहण करे।

यह बहुत ही ज़रूरी है ...मुझे यह शेयर करने में कोई शर्मिंदगी नहीं है कि मुझे स्वयं नहीं पता होता कईं बार अन्य धर्मों के बारे में कि आज फलां फलां त्योहार है, इस मित्र ने फेसबुक पर या अन्य किसी सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट डाली है तो यहां बधाई देनी बनती है ..या क्या कुछ कहना बनता भी है! विशेषकर मुस्लिम पर्वों के बारे में मेरे साथ ऐसा ही होता है ...मैं इन दोस्तों की पोस्टों पर टिपियाते हुए पहले दूसरे लोगों के कमैंट देख लेता हूं, फिर उसी अनुसार अपनी मंगल कामनाएं भेजता हूं..

मैं अकसर सोचता हूं कि हम ऐसे कब तक इतने वाटर-टाईट डिब्बों में अपने आप को कैद कर रखेंगे...हमें एक दूसरे के धर्म के बारे में अच्छे से जानना होगा...वैसे भी ये रब्बी पुरूष किसी एक समुदाय के लिए तो आते नहीं...सारी कायनात का कल्याण करना ही इन का उद्देश्य होता है ...
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सतगुर आउंदा दुनिया उत्ते सारे ही संसार लई...
सतगुर आउंदा दुनिया उत्ते एके दे प्रचार लई...

दुनिया के सभी धर्म जोड़ने की बात करते हैं...बेशक! हमारी जानने की इच्छा कम होती जा रही है ..हम घिसी पिटी फूहड़ सी हिंदी फिल्में, सीरियल बार बार देखते नहीं थकते...लेकिन किसी सत्संग आदि जगह में इस तरह से बैठते हैं जैसे कोई सज़ा मिली हो!
बुल्लेया रब का की पाना..
एधरो पुटना तो ओधर लाना...
हां, आज मेरी बहुत इच्छा हुई कि मैं गुरू साहिबान के बारे में कुछ पढ़ूं...लेकिन कहां पढ़ूं...दोस्त लोग तो बस पोस्टर भेज देते हैं शहीदी दिन के ...लेकिन गूगल कब काम आयेगा...इसे हमें ढंग से इस्तेमाल कर लेना चाहिए...और जिस भाषा में कुछ जानकारी चाहते हैं अगर सर्च उसी लिपि में करेंगे तो बेहतर होगा...

हां, एक बात जैसा कि आप जानते ही हैं कि लगभग हर तरह की जानकारी विकिपीडिया पर तो मिल ही जाती है ...सब से पहले मैंने गुरू साहब के बारे में इस लिंक पर जाकर पढ़ा... गुरू अर्जुन देव जी महाराज (विकिपीडिया लिंक)

 इस के बाद मुझे कुछ और भी जानने की इच्छा थी ..इसलिए मैं दूसरे किसी सर्च रिज़ल्ट पर चला गया और गुरू महाराज के बारे में और भी जानकारी प्राप्त हुई.. गुरू साहब का जीवन परिचय 

हर विषय पर इतनी सामग्री पड़ी है इंटरनेट पर, बस हम लोग ही सुस्त रहते हैं। महान लोगों के जीवन के बारे में पढ़ते रहने से हमें कुछ तो प्रेरणा मिलती ही है..बेशक...सब चीज़ अखबारों से और इलैक्ट्रोनिक मीडिया से ही एक्सपेक्ट नहीं कर सकते! क्या ख्याल है?


अगर आप पंजाबी भाषा समझ लेते हैं तो मेरे कहने पर आप छः मिनट का समय निकाल कर संत सिंह मस्कीन साब की बात ज़रूर सुन लीजिए...

गुरू साहब अर्जुन देव जी की शहादत को हमारा कोटि कोिट नमऩ..

गुरू अर्जुन देव जी साहिब के ऊपर यह एक डाक्यूमेंटरी भी है ..

बचपन से ही ऐसी यादें है कि इस शहीदी दिवस पर हम लोग जगह जगह लगी शबीलों पर जाकर मीठे दूध की छबीलों से प्रसाद लेते,  उबले हुए चने भी मिलते ..क्या कहते हैं इन्हें पंजाबी में..हां, भंगूड़...कईं बार रूह-अफज़ा वाला दूध मिलता..कभी कोई शर्बत ...लेकिन भंगूड़ साथ में ज़रूर बांटे जाते...

गुरू जी को कोटि कोटि नमन ...इस प्रेरणा दिवस के हम सब यह प्रेरणा लें कि जिस एकत्व का पाठ उन्होंने मानवता को पढ़ाया, प्यार, नम्रता का संदेश दिया...हम सब उस पर चल पाएं। 

मैं भी अभी थोड़े समय में गुरूद्वारे जाकर मानवता के कल्याण की अरदास करूंगा और गुरू घर का प्रसाद ग्रहण करूंगा..क्या आप ने प्रसाद ग्रहण किया ?



चलिए, लखनऊ को थोड़ा जानते हैं!



आज सुबह मेरी इच्छा हुई कि साईकिल पर लखनऊ शहर को देखा जाए...ये सब जगहें पहले से देखी हुई हैं..लेिकन वैसे ही इच्छा हुई..कल बड़ा मंगलवार था ...यह यहां एक मेले की तरह होता है ..और सैंकड़ों जगह पर शहर में खाने-पीने के भंडारे लगते हैं...कैंट एरिया से गुज़रना हमेशा अच्छा ही लगता है घने पेड़ों की झुंड की वजह से ...फौजी लोगों से हमें पेड़ों के रख-रखाब की तहज़ीब सीखने की ज़रूरत है।

मीडिया में कुछ आ रहा था इन भंडारों से पहले की इस की वजह से प्लास्टिक कचड़ा बहुत बड़ी मात्रा में इक्ट्ठा हो जाता है ...लेकिन देखने में तो मुझे ऐसा कुछ विशेष दिखा नहीं...बहुत अच्छा लगा..
यह लखनऊ का चारबाग स्टेशन है ..मैं यहां से होते हुए अमीनाबाद के लिए निकला..





चारबाग स्टेशन से नाका चौराहा तक जाते हुए पाया कि बहुत सी जगहों पर ऐसे पत्ते बिक रहे हैं...देखते ही याद आया कि बट पूजन था...शायद उस से से कुछ लिंक हो...लेकिन मेरी फिज़ूल की उत्सुकता कहां ऐसे शांत हो पाती...इस बंदे से पूछ लिया कि ये कौन से पत्ते हैं...उस ने बताया कि यह महुआ के पत्ते हैं..रायबरेली, बछरावां आदि जगहों से लाते हैं..सौ सौ के बंडल हैं..२० रूपये में बिकते हैं...उसी ने ही बताया कि पान को इस में बांध कर दिया जाता है ...आप चाहें तो उसे दो तीन दिन रख लीजिए...सूखेगा नहीं..उस की ताज़गी जस की तस बनी रहती है ..अखबार-वार में तो पान खराब हो जाता है ...

चलिए, अच्छी बात है ..पेड़ों ने लोगों की इस तरह से भी रोज़ी-रोटी का जुगाड़ किया हुआ है...
यह अमीनाबाद का गणेशगंज बाज़ार है ..मैने देखा है िक देश के सभी शहरों के पुराने इलाके सब एक जैसे ही लगते हैं..शांत से...अमृतसर, फिरोजपुर, जगाधरी, दिल्ली, बंबई, त्रिचरापल्ली...सब पुराने इलाके एक जैसे!!



अमीनाबाद के गड़बड़झाला एरिया में यह बाज़ार कैसी सुबह सुबह...बीसियों मजदूरों ने इसे घेर रखा था..पास जाकर देखा तो यह शख्स एक मैजिक पर्स (बटुआ) बेच रहा था...बात केवल इतनी सी थी कि इस में पैसे रखते ही वे अपने आप जकड़े जाते हैं...२०-२० रूपये में बिक रहे थे...उस हाकर की बातों में इतना दम था कि मैं तो उस का वर्णन भी नहीं कर पाऊं...मेरी भी इच्छा तो हुई ..फिर ध्यान आया कि वैसे ही हमारा घर पहले ही से एंटीक चीज़ों की वजह से एक म्यूज़ियम सा बनता जा रहा है ..और पास ही उबले हुए चनों का थोड़ा नाश्ता-पानी भी चल रहा था..




अमीनाबाद के हनुमान जी के मंदिर भी बाहर देखा तो इसी तरह का मंजर ही दिखा..मैंने पहले भी लिखा कि मुझे इस तरह का बॉयोडिग्रेडेबल कचड़ा देख कर अच्छा लगा...लगभग जितना भी आज मैं घूमा वहां पर ९० प्रतिशत कचड़ा पत्तल से तैयार दोनों का ही था...
यह लखनऊ का प्रसिद्ध केसरबाग चौराहा है ...ऐतिहासिक महत्व की एक अहम् जगह...


आज कर गोमती नदी के किनारे एक कारीडोर तैयार हो रहा है ...सैलानियों के टहलने के लिए...जोरों शोरों से काम चल रहा है बहुत सी जगहों पर एक साथ..गोमती के िकनारे, लखनऊ शहर में..





 यहीं गोमती नदी के िकनारे से ही लौटने की इच्छा हुई..लेकिन बड़ा हनुमान मंदिर पास ही में ही था...उधर भी हो आया....लखनऊ का यह मंदिर हमेशा श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहता है..इस की बहुत अधिक मान्यता है ...बोलो बजरंग बली का जय!!


इस मंदिर के पास भी बिल्कुल कचड़ा नहीं दिखा ...इन पत्तल की प्लेटों को देख कर यही लगा कि क्यों लोग भंडारों में या लंगरों में बेकार में थर्मोकोल और घटिया और रिसाईकल्ड प्लेटों का पहाड़ खड़ा कर देते हैं...कईं बार लोकाचार के कारण मजबूरी होती है ..लेिकन मेरी इन जगहों पर कभी भी कुछ खाने की इच्छा नहीं होती...कोफ़त सी होती है ...आिखर दिक्कत है क्या इन प्लेटों में...सस्ती तो होती ही हैं बेशक..लेकिन इन का डिस्पोज़ल कितना बढ़िया से हो जाता है ...ठीक है, कुछ दाल इधर उधर गिर भी जायेगी तो उस के लिए हज़ारों प्लास्टिक की प्लेटों का अंबार लगाने से तो बच जायेगा...बहुत से लंगरों में भी अब स्टील की प्लेटें भी गायब होती जा रही हैं...शायद धोने वोने का चक्कर होता होगा, मेरे जैसों को तो लंगर लेकर वहां से भागने की जल्दी होती है ..लेिकन व्यवस्था करने वालों को तो सब कुछ देखना पड़ता है...हम तो बस नुक्ताचीनी करने में माहिर हैं......जो भी है, प्लेटें दोनें तो भई पत्तल के ही अच्छे लगते हैं..वरना तो सिर ही दुःखता है!


वापिस लौटते समय यह लक्खी दरवाजा दिख गया...देखा तो पहले भी इसे बहुत बार है ...अखबारों में भी इस के बारे में आता रहता है लेिकन यह शिलालेख जो ऊपर है ...इस पर कभी ध्यान नहीं गया...पता है क्यों?....हम जब मोटरकार या दो पहिया वाहन पर होते हैं तो हमें कहां यह सब देखने की फुर्सत होती है...आज सुबह इधर कुछ सन्नाटा था और मैं साईकिल पर था तो िदख गया...वरना तो ... वैसे लक्खी दरवाजे की फोटू कुछ ज़्यादा बढ़िया नहीं आई...रोशनी का चक्कर था..

और यह ऊपर तस्वीर है यह केसरबाग सफेद बारादरी की है ...लखनऊ के सांस्कृतिक आयोजनों की जान...फिल्म निर्मात्ता मुजफ्फर अली भी यहां पर अकसर कुछ प्रोग्राम करते रहते हैं...वैसे भी यहां कुछ न कुछ चलता ही रहता है ...

बस करता हूं अब....बस, जाते जाते यही ध्यान आ रहा कि किसी भी शहर की रूह को महसूस करने के लिए मेरे विचार में एक ही उपाय है ..पैदल नाप लीजिए इन सब जगहों को ...वरना, साईकिल तो है ही...बाकी, तो सब जुबानी जमा-खर्ची है, जितनी भी कर लें....आप सोच रहे होंगे कि अब तू हम से साईकिल चलवाएगा..I never meant that! Just shared my experience which has always been so blissful and invigorating!

इस पोस्ट को सील करते हुए और शहर को सुबह सुबह इतना सा देखने के बार मुझे एक ही प्रार्थना का ध्यान आता है ...जब भी यह गीत बजता है या मैं बजाता हूं तो मैं भी इस अरदास में सच्चे दिल से शामिल हो जाता हूं...एक एक शब्द दिल को छूता है ..प्रहार करता है.....आप भी पूरी तन्मयता से सुनिएगा...