मंगलवार, 23 मार्च 2021

गाय माता इस तरह भी अपने बच्चों को पाल रही है...

 


मुझे पुराने पेड़-पौधे बहुत रोमांचित करते हैं ... कहीं भी अगर हम घूम रहे हों और अचानक एक बड़ा सा दरख़्त दिख जाए तो यकीनन उस के पास ज़रूर एक मेले जैसा माहौल भी मिल जाएगा...यह दरख़्तों की बरकत है, इन के नीचे खड़े होते ही, इस की छाया में बैठ कर हमें अपनी तुच्छता का अहसास होने लगता है...और अगर उधर ही पास ही एक-दो गऊएं भी खड़ी हों तो क्या नज़ारा होगा वह ...वाह। बहुत खूब। 

कुछ बरस पहले यहां मुंबई में मैंने देखा कि कुछ चौराहों पर एक या दो गाय बंधी हुई हैं ...साथ में एक महिला या पुरूष फुटपाथ पर बैठा हुआ है...जिस के पास चारा रखा हुआ है ...और भी खाने का कुछ सामान धरा हुआ है। एक दो बार यह मंज़र देखा तो समझ में आ गया ... गऊ माता को खाना खिलाने का पुण्य कमाने का अभिलाषी कोई आदमी या औरत उस दुकानदार के पास आएंगे...उन्हें दस-बीस रूपये जो भी रेट होगा देंगे, चारे की एक दो टहनी उठाएंगे ..और उसे गाय माता को खिला कर, उसे नमस्कार कर अपनी राह पकड़ लेंगे। 

अब मुंबई जैसे महानगरों में लोग गाय माता को खिलाने कहां जाएंगे...कल्पना कीजिए...यहां तो वैसे कभी गाय दिखती ही नहीं ...अगर ये दुकानदार यह सर्विस प्रोवाइड कर रहे हैं तो उस का चार्ज तो देना ही पड़ेगा। अच्छा, एक मज़ेदार बात और भी है ...अकसर ये सर्विस प्रोवाइडर अपने हाथों से कुछ अलग अलग सामग्री के लड्डू भी बना रहे होते हैं..एक तो भूसे के लड्डू होते हैं, वे मैंने बनते देखे हैं...और अगर कोई भगत आदमी कुछ स्पैशल खिलाना चाहता है तो वह इन लड्डूओं के अलग से दाम देकर खिला सकता है...

मुंबई में पैसा कमाना बड़ा मुश्किल है ...मुझे बस यही काम आसान सा दिखा ...दुकानदार की गाय का पेट भी भर गया, दुकानदारी की जेब भी भर गई और घर जा कर उसे दोह भी लिया...

मुंबई के बहुत से इलाकों में मैं इस तरह के दुकानदार देखता हूं ...यह भी आज सुबह की ही तस्वीर है ...एक बहुत बड़े पेड़ के नीचे यह पुण्य कमाने का काम चल रहा था ...आस्था बहुत बड़ी बात है। 

लेकिन यह क्या कुछ महीने पहले मैंने इसे भी एक बैल जैसा कुछ लेकर बाज़ार में घूमते देखा....इस की बॉडी देख कर बड़ा डर लगा उस दिन ...एक तो वाट्सएप पर ऐसे ऐसे वीडियो दिखते हैं कि इन भीमकाय जानवरों से डर तो लगता ही है।

 कुछ तो इन से जुड़ी धार्मिक आस्था होगी ज़रूर जो मुझ अल्पज्ञ की समझ के परे है...खार-बांद्रा जैसे इलाके में देखता हूं एक विशेष किस्म की गाय ...सजी संवरी गाय -- सड़कों पर घुमा कर लोग दान-दक्षिणा का जुगाड़ करते हैं...

मुझे ध्यान यही आया कि गाय माता के पास अपने बच्चों का भरण-पोषण करने के बहुत से तरीके हैं...हैं कि नहीं। बस, बंदा थोड़ा सा मेहनती होना चाहिए। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. क्या खूब लिखा डॉक्टर साहब, आपकी सोच को सलाम, लिखते रहे , आपका ब्लॉग सदा अच्छा लगता है

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    1. सिलावट जी, इस ज़र्रानवाज़ी के लिए तहेदिल से शुक्रिया...

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  2. बहुत सुंदर प्रवीण जी। ये लेख रोचक रहा। पुण्य के अभिलाषी भक्त जन गौ माता का भला करें बस नुक्सान नहीं। सादर आभार और शुभकामनाएं सकारात्मक लेख के लिए🙏🙏

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  3. सर जी, आप सपरिवार सकुशल होंगे, इसी कामना के साथ। आपकी लेखनी वास्तविकता प्रकट करती है वाकई
    ।नतमस्तक हूं मैं।

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