शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

तंबाकू मुंह में दबाए हुए शख्स के दांत कैसे देखें!


"आप पहले इसे थूक के आइए !"...कल मैंने एक दांत का इलाज करवाने आए एक शख्स को बोला जो मुंह में तंबाकू दबाए डेंटल-चेयर पर बैठ गया था..

"यहीं कुल्ला कर लूं?" ...मैंने मना किया - नहीं, आप बाहर जा कर अच्छे से मुंह धो कर आइए..

लेकिन डाक्टर साहब, जहां मैंने यह रखा हुआ है उधर वाले दांत में तकलीफ़ नहीं है, तकलीफ़ तो ऊपर वाले दांत में है...
यह बात मैं पहली बार किसी मरीज़ के मुंह से सुन रहा था ..और मुझे आभास तो हो गया था कि यह कोई दबंग ही है...वरना, किसी चिकित्सक के पास जाकर इतनी जिरह..

बहरहाल, वह ७०-७२ वर्ष का बुज़ुर्ग बाहर गया, अच्छे से मुंह धो कर आया...

और फिर से अपनी तंबाकू का महिममंडन करने लगा... डाक्टर साहब, इसे तो हम सारा दिन मुंह में रखते हैं, रह ही नहीं पाते, पता ही नहीं कितने बरसों से इसे रख रहे हैं...अपने थैले में से ये पैकेट निकाल के मेरे सामने रख दिया..

आगे बताने लगे कि अभी तो मैं थूक आया हूं ...लेकिन एक बात बताऊं...मेरी बाजू की हड्डी गई थी टूट, उसे जोड़ने के लिए आप्रेशन चला साढ़े तीन घंटे...आप्रेशन से पहले मैंने मुंह में तंबाकू दबा लिया तो हड्डी के डाक्टर ने मुझे हड़का दिया...लेकिन मैंने भी कह दिया कि इस को अगर मैं मुंह में नहीं दबाऊंगा तो आप पांच मिनट भी मेरे ऊपर काम नहीं कर पाएंगे...बताने लगा कि आखिर डाक्टर मान गए..अच्छा, यह बात है तो दबा लो भई।


मैं यही सोच रहा था कि यार बंदा तो यह बडा़ दबंग है ...लेकिन मेरी मजबूरी थी कि मैं तंबाकू मुंह में रहते उस का मुंह कैसे देखूं! .. उस की दबंगई मुझे उस के तंबाकू का ब्रॉंड देख कर ही समझ में आ रही थी..

उस का इलाज होने के बाद जब मैं उस की दवाई लिख रहा था तो वह मुझे सुनाता जा रहा था कि यह पैकेट महज़ १२ रूपये का आता है ..सब कुछ इस में मिक्स है, चूना, खुशबू, गोंद... इस की आप महक तो देखिए....मैंने कहा ..नहीं, यार, अगर मेरा भी इसे चबाने को मन हो गया तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी...

यह पैकेट यह शख्स १५ दिन चलाता है ..सारा दिन इसे होठों के अँदर या गाल के अंदर कहीं भी दबा के रखता है और कहता है कि मैं इसे थूकता नहीं हूं..अंदर ही लेता हूं...मैंने कहा कि पैकेट पर तो लिखा है कि थूकना है ...कहने लगा, कुछ नही ंहोता...मैं इस के बिना नहीं रह सकता...

मैं इस के नुकसान गिनाने लगा तो कहने लगा, मैं इसे नहीं छोड़ पाऊंगा, इस के बिना जी नहीं पाऊंगा...और फिर गंभीर मुद्रा में कहने लगा कि डाक्साब, इस उम्र में अकेलापन बड़ा सालता है, घर में माहौल ऐसा है कि सब के बीच में भी मैं अपने आप को अकेला पाता हूं ...और इसी तंबाकू का सहारा है ...घर के बाहर मुझे अकेलापन नहीं लगता...

हां, तो मैंने इन के मुंह को अच्छे से देखा और इन के दांतों में तो बहुत सी खराबीयां थी हीं ...वे भी तंबाकू के इस्तेमाल से ही जुड़ी हुईं लेेकिन इस के अलावा मुंह के कैंसर या उस की पूर्वावस्था जैसी किसी तकलीफ़ के लक्षण नहीं दिखे .. मैंने समझाया तो बहुत लेकिन वे सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे...

कहने लगे कि और तो और यह तंबाकू इतना बढ़िया है कि राहुल गांधी ने भी आधा पैकेट रख लिया था...उसे मिलने गये थे, मुंह में इसे दबाया हुआ था..जब इन का उससे वार्तालाप चल रहा था तो राहुल ने पूछा कि यह खुशबू कहां से आ रही है, इन्होंने बताया ...राहुल ने कहा कि क्या मैं यह पैकेट देख सकता हूं...राहुल ने देखा .. और इन से पूछ कर आधा पैकेट अपने पास रख लिया...इन्हें इस बात से शायद गर्व महसूस हो रहा था..लेकिन मुझे पता है राहुल ने खाया बिल्कुल न होगा....वह अलग बात है कि मीडिया में उन की रोड-यात्रा के दौरान कुल्फी खाते हुए...दो दिन पहले किसी ग्रामीण के घर दाल-रोटी खाते हुए तस्वीरें हमें दिखती रहती हैं, लेकिन तंबाकू खाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता!

इस शख्स की तंबाकू चबाने-खाने की आदतें ब्यां कर देने के बाद मुझे लगता है कि कुछ बातें क्लियर करनी ज़रूरी है....
अगर इस शख्स के मुंह में तंबाकू से पैदा होने वाली दांतों एवं मसूड़ों से इतर कोई गंभीर जानलेवा बीमारी के लक्षण नहीं भी हैं ..तो भी हम यह नहीं कह सकते कि तंबाकू ने इस के शरीर पर कुछ असर नही ंकिया होगा...तरह तरह की जांचें जब विभिन्न विशेषज्ञ करते हैं तो ही समझ में आती है कि तंबाकू किस अंग में किस तरह से कहर बरपा रहा है ... हां, शायद कुछ हाड-कोर किस्म के बच भी जाते हों...यह भी संभव है ..लेेकिन कौन बचेगा और कौन चपेट में आ जायेगा यह कोई नहीं कह सकता...इसलिए बेहतर यही है कि लोग इस तरह के शौक न ही पालें...फिर लत पड़ते देर नहीं लगती...

हां, एक बात याद आ गई...बहुत साल पहले किसी ने एक विशेषज्ञ से यह पूछा था कि मैंने तो आठ दस ही सिगरेट पी और मेरे फेफड़ों में दिक्कत आ गई , दिल की बीमारी हो गई...लेकिन मेरे ही गांव का मुसद्दी तो पिछले कम से कम ५० सालों से हुक्का, बीड़ी, तंबाकू ..पता नहीं क्या क्या खाए पी जा रहा है, हट्टा-कट्टा है, भला चंगा है...उस विशेषज्ञ ने बड़ी सटीक जवाब दिया था कि देखो भई, यह जो इस तरह के शौक हैं न, इन के शरीर पर होने वाले असर की तुलना आप इस से कर सकते हैं कि ये एक दीवार में पानी के रसाव की वजह से निरंतर सीलन जमा होने जैसी बात है ....यह सीलन तो जमा हो ही रही है ..अब कौन सी दीवार उस सीलन की वजह से गिर जायेगी या कौन सी टिकेगी ...यह कोई नहीं कह सकता.... अगर आप अपना भाग्य अजमाना ही चाहते हैं ...तो वह तो मुद्दा ही अलग है ...

तंबाकू का इस्तेमाल करने वालों में कौन सा अंग कब इस की चपेट में आ जाए...कोई कुछ नहीं कह सकता जब तक धमाका ही न हो जाए...मेरी नानी के दांतों में तकलीफ़ थीं, पहले सब जगह झोलाछाप डाक्टर ही थे, दांत भी उखाड़ देते थे ..टीके भी लगा देते थे, जुलाब की गोलियां भी दे देते थे...दांत उखवाड़ने के बाद सारा दिन सिर कस के लेटे रहना और सारा दिन खून बहते रहना ये आम सी बातें थी...वह भी डरती थीं ...इसलिए उन्होंने इस दर्द से बचने का एक रास्ता निकाल लिया...क्रीमी स्नफ आती थी ...थी क्या, अभी भी आती है ....जिसे नसवार कहते हैं...उन्होंने मुंह में उसे रखना शुरू कर दिया..लत पड़ गई.. हम बच्चों की बेवकूफी देखो कि हमें नानी के मुंह से आती वह महक बहुत भाती .. चुपके चुपके मंगवाया करती थीं वह डिब्बा हम बच्चों से ...लेकिन हर जगह वह साथ ही लेकर चलतीं...

बहरहाल, जब मैं दांतों की एबीसी जान गया तो सब से पहले उन के सारे दांत निकलवाए और जिस डैंटल कालेज में मैं पढ़ाता था, वहां से उन का डैंचर भी लग गया...बहुत बढ़िया...खाने पीने के मजे हो गये..लेकिन नसवार का इस्तेमाल चलता ही रहा, .कुछ सालों बाद लगभग ८० साल की अवस्था रही होगी..अचानक नानी को पेशाब के साथ खून आने लगा ... नहीं थम रहा था, जांच हुई , पेशाब की थैली (ब्लेडर) का कैंसर बताया गया...बहुत इलाज हुआ, आप्रेशन हुआ, रेडियोथेरेपी भी हुई..लेेकिन चंद ही महीनों में वे हमेशा के लिेए रुख्सत हो गईं....RIP, the noble, adorable granny!

और यही पता चला कि तंबाकू का इस्तेमाल करने वालों में ब्लेडर के कैंसर का भी रिस्क बहुत ज्यादा बढ़ जाता है ...क्योंकि इस तरह की चीज़ों का निष्कासन तो यूरिन से ही होता है ..अगर किसी का मुंह बच गया तो ब्लेडर काबू में आ गया....

हां, तो ऊपर मैं दबंग की बात कर रहा था...जो दांत दिखाने आया था लेकिन तंबाकू थूकने के लिए तैयार नहीं था...सड़क पर चलत ेचलते पान-गुटखे-मसाले के छींटे कपड़ों पर कभी कभी पड़ जाते हैं ...इस का कोई समाधान नहीं है, बेकार में अपना ब्लड-प्रेशर बढ़ाने से क्या हासिल, मरीज़ मुंह में कभी कभी मसाला, पान दबा कर आ जाते हैं ेलेकिन बाहर जा कर थूक कर आने के  लिए तुरंत मान भी जाते हैं...लेेकिन सब से डर तब लगता है जब मुंह में यह सब दबाए लोगों से कभी किसी दफ्तर या बाज़ार में बात करनी होती है ....उस समय मुझे उन की सेहत से कहीं ज़्यादा अपनी नई कमीज़ की सेहत की चिंता होती है ..अगर इस के ऊपर छींटे पड़ गये तो फिर यह तो गई! ...बहुत बार भुगत चुका हूं!

पिछले चालीस वर्षों से भी शायद ज्यादा समय से यह गीत जिस तरह से पान चबाने की आदत को ग्लैमराइज़ कर रहा है, इस ने भी हम लोगों की इस आदत को बहुत बढ़ावा दिया होगा...