मंगलवार, 7 जून 2016

लखनऊ शहर के बदलते मिजाज...

यह मौसम की बात नहीं है...मौसम तो अब हर जगह एक जैसा ही हो रहा है ...गर्मी में तंग करने वाली उमस-वुमस तो अब हमारे साथ ही जायेगी...इस का कोई क्विक-फिक्स उपाय नहीं है, हम सुधरने वाले हैं नहीं..

मैं तो मिजाज की बात कर रहा था इस शहर की ...कुछ समय पहले हम ने अपने एक साथी से ऐसे ही पूछ लिया कि यहां इस शहर में इतनी वारदातें क्यों होती हैं!...चलिए, वारदातें भी अब लगभग सभी जगहों पर होने ही लगी हैं..लेिकन जिस तरह के वारदातें यहां दिन-दिहाड़े होती हैं उस से यही लगता है कि यहां पर गुंड़ों को किसी का खौफ़ ही नहीं है..

हमें यह जवाब दिया गया कि आप को यू.पी के दूसरे शहरों का नहीं पता... भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्हें लखनऊ पोस्टिंग मिल जाता है ...यहां आने के लिए तो लोग सोर्स लगवा २ के हार जाते हैं...ठीक है, हम मान गये..

दूसरे शहरों से अचानक याद आ गया कि हमें भी बरेली और सुल्तानपुर भिजवाए जाने की पूरी तैयारियां थीं...पूरी फिल्मी स्टोरी है...लेकिन Central Administrative Tribunal (CAT) ने बचा लिया..क्या करेंगे, मजबूरी में CAT की चौखट तक जाना ही पड़ा। कारण यह था जो किसी फाइल में नहीं है, ३-४ साल के मेरे बेटे से badmintom खेलते हुए वह बच्चों वाली छोटी सा प्लास्टिक शटल एक उच्च अधिकारी की बेगम के सिर पर जा लगी ...बस, तब से हमारे बुरे दिनों की शुरूआत हो गई...

मैं भी किधऱ की बात िकधर ले गया...वे किस्से बताने को उम्र पड़ी है!

दरअसल आज कल जगह जगह बोर्ड दिख जाते हैं...लखनऊ बदल रहा है....लखनऊ सुधर रहा है...

मैंने पिछले दो तीन दिनों में अपनी साईकिल यात्राओं के दौरान मैट्रो का काम पूरे ज़ोरों शोरों से होते देखा है ..सोचा कि वे फोटू ही आप से शेयर कर दूं... मैं कितना लिखूंगा?..A picture is worth 1000 words!

यह जो तस्वीर है यह आलमबाग एरिया के मवैया एरिया की फोटो है ..परसों की है ..सुबह सुबह यहां पर खूब तेज़ी से काम चल रहा होता है ...पहले चरण में मैट्रो लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट से चारबाग रेलवे स्टेशन तक चलने वाली है इसी वर्ष के दिसंबर से पहले ... यह मैट्रो स्टेशन चारबाग मैट्रो स्टेशन से एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही है...यहां पर मैट्रो के काम के लिए कुछ न कुछ पंगा ही रहा ...मुश्किल था ... प्रशासनिक नज़र से ...आप इस तस्वीर में देख रहे हैं...एक रेलवे लाइन है पहले से जिस पर से एक गाड़ी गुज़र रही है...अब मैट्रो का ट्रेक उस के ऊपर बनेगा...कुछ ग्रेडिएंट की दिक्कत थी..लेकिन रेलवे के इंजीनियरों को और विशेषकर उस महान शख्शियत श्री धर जी को सलाम...मैं आज सुबह सोच रहा था कि इस तरह के इंसानों को तो ईश्वर को ५० साल की उम्र बोनस में और दे देनी चाहिए...९० साल की उम्र में उन का उत्साह देखने को बनता है ...सादगी से भरा उम्दा जीवन..

कल और आज सुबह की साईकिल यात्रा के दौरान कुछ और तस्वीरें खींची मैट्रो रूट की आप तक हाल चाल पहुंचाने के लिए...


ये जो ऊपर दो तस्वीरें हैं ये कानपुर रोड़ की हैं..अमौसी एयरपोर्ट से दो तीन किलोमीटर पहले की हैं...ज़ोरों शोरों से काम चालू है ..

हां, परसों शाम कथाकारों के एक जमावड़े की तरफ़ जाते हुए अचानक हज़रतगंज एरिया में यह मैट्रो का बोर्ड िदख गया..यहां यह बताना चाहूंगा कि दूसरे चरण में काम चारबाग रेलवे स्टेशन से चलेगा और हज़रतगंज एरिया से होते हुए आगे जायेगी मैट्रो... लेकिन अभी यहां पर आज पहली बार मैंने यह बोर्ड देखा ...पता नहीं क्यों मुझे अचानक बचपन के दिनों में मिलने वाले लालीपॉप का ध्यान आ गया...समझने वाले को इशारा ही काफ़ी है...जो न समझे वो अनाडी है!

एक बात ज़रूर शेयर करना चाहूंगा कि हज़रत एरिया का मतलब जैसे अमृतसर के लिए लारेंस रोड़, दिल्ली की कनाट प्लेस, बंबई का फ्लोरा फाउंटेन एरिया....लखनऊ के लिए यह एरिया वैसा ही है ...यह जिस जगह पर आप इस मैट्रो का बोर्ड देख रहे हैं यह उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के बिल्कुल सामने हैं...इस एरिया में शाम को बेवजह तफरीह करने के लिए एक शब्द भी सुनते हैं......गंजिंग...Ganjing...  यहां तक कि अखबार वालों ने भी यह कंसेप्ट पकड़ कर हर रविवार के दिन गंजिंग फेस्टीवल करना शुरू कर दिया है ...उस दिन यहां ट्रैफिक की नो-एंट्री होती है .. लेकिन खूब धूम-धमाका, संगीत...खाने, मौज-मस्ती का मेला लगता है ...

दरअसल मेरी कोई पोस्ट पेड़ या पानी के मटके डाले िबना पूरी होना ही नहीं चाहती..क्या करूं..मजबूरी है ...
   कुछ दिन पहले शहर के ऐशबाग एरिया में शाम कुछ ऐसी दिखी थी.

इस तरह की तस्वीरें शायद आप को भी इस उमस भरी सुबह में कुछ ठंडक पहुंचा दें...मुझे तो मिल गई!

पता नहीं पिछली बार कब किसी पैदल यात्री को इतनी मस्ती से चलते देखा...पीछे से किसी बाईक के ठुक जाने के डर से बेपरवाह..
लखऩऊ की वी आई पी रोड़ पर आज सुबह से यह देख कर मैंने भी १९ जून की डेट झट से ब्लॉक कर दी...


पैदल चलने वालों के लिए अलग जगह, साईकिल वालों के लिए अलग, क्या करूं ..इतनी खुशी समा नहीं पा रहा हूं..



लगता है अब इस पोस्ट के िलफाफे को बंद करूं...और ड्यूटी पर निकल पड़ूं...बातों का क्या है...बातें ही बातें तो हैं अपने जैसे लोगों के पास...मेरे Nexus5 में हज़ारों फोटू हैं.....और हर फोटो एक दास्तां ब्यां करती है.......लेकिन कितना कुछ ब्यां करें, अब मैं भी बुड़्ढा होने लगा हूं....थक जाता हूं ..लिखते लिखते.. 😊

मेरा बेटा एंटरटेन इंडस्ट्री में हैं...creative head है....और बहुत बार मजाक करता है कि बाप, मुझे फिल्मी बनाने में तेरा बड़ा हाथ है, जब हमारी उम्र के बच्चे पढ़ने में लगे रहते थे तो तू हमें फिल्में दिखाता रहा ..हिंदी-पंजाबी के फिल्मी गीत सुनाता रहा, पंजाबी के लोकगीत सुनाता रहा, भगवंत मान की सीडियां दिखाता रहा ...रिजल्ट (Product)  तेरे सामने हैं ...मैं भी उसे कहता हूं कि मुझे फिल्मी बनाने में मनमोहन देसाई जैसे गजब फिल्म निर्मात्ताओं का हाथ है ... जिन्हें देखते- सुनते मैं अब भी किसी दूसरे ही संसार में खो जाता हूं .. 😊