शनिवार, 12 मार्च 2016

पतंजलि के खाद्य पदार्थ -- कुछ विचार

कल मैं एक बैंक से बाहर निकल रहा था तो सामने पतंजलि के खाद्य पदार्थों की शॉप दिख गई...मुझे आंवला पावडर लेना था, मैं इसे कईं वर्षों से कभी कभी खा लेता हूं...कुछ साल पहले तो रोज़ ही खाता था।

आंवला पावडर नहीं मिला.. ऐसा पहली बार नहीं हुआ ..और इस के बारे में मेरी एक आब्ज़र्वेशन है कि जो सस्ती चीज़ें हैं पतंजलि की वे अकसर नहीं मिलती...मैं मार्केटिंग का बंदा नहीं हूं जो इसके कारण बता पाऊं...

मैं जैसे ही बाहर आने लगा तो मेरी नज़र उस स्टोर के काउंटर पर पड़े एक डिब्बे पर पड़ी...मैंने सोचा पता नहीं अब पतंजलि ने कौन सी नईं मिठाई लांच की है ...पतंजलि की सोन पापड़ी के बारे में तो मैंने आप से कुछ बातें पहले भी शेयर करी थीं...यह रहा वह लिंक


लेकिन जैसे ही ध्यान से उस डिब्बे की तरफ़ देखा तो पता चला कि यह तो पतंजलि ब्रांड गुड़ है। आश्चर्य हुआ...पहली बार मिठाई की डिब्बेनुमा पैकिंग में गुड़ देखा था... वरना तो गुड़ कैसे कैसे बिकता है आप से शेयर किया था इस पोस्ट में ...गुड़ नालों इश्क मिट्ठा। 



मैं नहीं जो भी दो तीन लोग दुकान में उस दौरान आए..वे गुड़ को इतनी उमदा पैकिंग में देख कर खुश तो हुए...लेकिन जब उस की पिछली तरफ़ रेट देखा तो वह खुशी थोड़ी थोड़ी काफूर हो गई..७० रूपये किलो में बिकता है यह गुड़। वैसे मार्कीट में गुड़ ४० रूपये किलो बिकता है .. लेकिन इस पर लिखा है कि यह रासायन मुक्त है और इस में तिल और मूंगफली भी है ...इतने सारे गुण एक साथ पढ़े तो एक डिब्बा खऱीद लिया....तिल और मूंगफली का स्वाद अभी तो खास आया नहीं, जब आयेगा तो आपसे शेयर करूंगा...चलिए, इतना तो है कि कैमीकल रहित है ...अब यह इतना कह रहे हैं तो होगा ही, वैसे मेरी पिछली पोस्ट पर एक महिला ने टिप्पणी करी थी, आप को अभी पढ़वाता हूं..

लगता तो मुझे भी अजीब सा ही है कि पतंजलि के बहुत से उत्पाद तैयार किसी और कंपनी द्वारा किये जाते हैं ...बस उन पर पतंजलि की मोहर इसलिए लग जाती है कि क्योंकि पतंजलि इन की मार्केटिंग करती है ...अब एक औसत हिंदोस्तानी इतने पचड़े में पड़ता नहीं कि पहले लेबल देखे, फिर उसे समझे...और वह भी इंगलिश में लिखा सब कुछ. वैसे यह गुड़ भी मुजफ्फरनगर की किसी कंपनी द्वारा तैयार किया गया है, मार्केटिंग पतंजलि की है।




दूसरा मुद्दा यह है कि इन उत्पादों की कीमत बहुत ज़्यादा है .. ४० रूपये की चीज़ ७० में बिक रही है, ज़्यादा तो है ही ...सब लोग इस तरह की चीज़ों को अफोर्ड नहीं कर पाते, और बहुत से जो अफोर्ड कर भी पाते हैं वे लेंगे नहीं..दाम की वजह से।

मैं पैसे देने लगा तो पास ही पड़े बड़े आकर्षक साबुनों की तरफ़ चला गया... वे भी खरीद लिए..उन के नाम ही इतने लुभावने थे कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी पर्फ्यूम को खरीद रहा होऊं...साबुन देख कर बीवी की यह टिप्पणी है कि यह कैसे मेक इन इंडिया है ...यह कैसा देशी ..एक साबुन ४५ रूपये में।

मैंने पैसे दिये...इतने में वह किसी दूसरे ग्राहक के साथ व्यस्त हो गया.. वह बर्तन साफ़ करने वाली बार लेने आया था... बड़ी जल्दी में था, उस से निपट कर दुकानदार बताने लगा कि यह बहुत बढ़िया बार आया है ...राख और नींबू से तैयार किया हुआ...इसे भी ज़रूर ट्राई करिएगा...और एक बार उसने रख दिया कि वैसे भी उस के पास छुट्टा नहीं है ..लेकिन अभी भी कुछ पैसे बचे थे, उसने झट से एक बिस्कुट का पैकेट मेरी तरफ़ बढ़ा दिया कि यह भी बहुत अच्छा है......मैंने सोचा कि इस बारे में तो हम लोग जो हेमा मालिनी कहेंगी, वही मानेंगे ....और वे कह रही हैं कि ये अच्छे हैं तो अच्छे होंगे ही।

दुकान से बाहर निकलते मैं सोच रहा था कि यह है असली मार्केटिंग पतंजलि की .. मैं २० रूपये का कुछ सामान लेने गया जिस की मुझे ज़रूरत थी, वह तो नहीं मिला ..लेकिन चार चीज़ें जिन की ज़रूरत भी नहीं थी अभी वे सब २०० रूपये में खरीद लाया...फिर ध्यान आया कि पहले श्री लालू यादव रेल के अचानक हुए "कायाकल्प" का राज़ भारत और विदेशों में जाकर प्रबंधन संस्थानों में शेयर किया करते थे ...अब बारी पतंजलि इंड्स्ट्रीज़ के मालिकों की है ... वे जाकर दुनिया को सिखाएं कि मार्केटिंग कैसे की जाती है....वह उदाहरण तो पुरानी हो गई ...गंजे को कंघी बेचने वाला ही सब से बड़ा सेल्समेन है...अब नये युग में ऩईं नईं बातें सीखनी होंगी।

पतंजलि के स्टोर में जाते ही कुछ न कुछ हमेशा ऐसा दिख ही जाता है जो पहले वहां नहीं दिखा होता...इस के लिए भी ये लोग बधाई के पात्र हैं..बासमती चावल, तरह तरह की दालें...कल एक पूछने आया था अरहर की दाल के बारे में...लेकिन यह वहां उपलब्ध नहीं थी।

अब पतंजलि की बातों को विराम देते हैं..थोडी इधर उधर की हो जाएं...माल्या की क्या बात करें, उनके ट्विटर पर जब लिख ही दिया है कि मैं न तो भागा हूं, न ही भगौड़ा हूं, तो बात को यही खत्म करिए...आ जायेंगे जब उन्हें आना होगा... ८०००करोड़ भी कोई रकम है! वैसे भी हमारी यादाश्त में यह सब कुछ दिनों के लिए ही तो रहता है .. जैसे ही कुछ और इस से सनसनीखेज़ मीडिया परोस देगा, माल्या साहब से ध्यान हट जायेगा...वैसे भी वह कह ही रहे हैं कि वे कहीं भागे थोड़े ही न हैं!..




इस बंधु के समोसे की टोकरी 
सब्र रखो यार...सब्र ....जैसे स्वाभिमान इंडिया के जो असली ब्रांड अम्बैसेडर हैं वे रखे रहते हैं....मैं इन्हें देख कर इन के सब्र, संतोष, तृप्ति के बारे में सोच कर दंग रह जाता हूं ...मुझे नहीं पता कि ये लोग अरहर की दाल कभी खरीद पाते होंगे िक नहीं लेकिन इन के चेहरे पर एक अलग ही तरह की खुशी देखता हूं ...स्वाभिमान इंडिया की इन विभूतियों को भी कभी कभी याद कर लिया करें..
िं
ये भी मेक इन इंडिया वाले ही हैं..
मेरे लिए यह भी स्वदेशी भारत का एक बड़ा एम्बेसेडर ही है..तीन रूपये में बेहतरीन गर्मागर्म चाय  की प्याली बेचते हैं ये घूम घूम कर

अब यहीं विराम लेते हैं...एक गाना लगा देते हैं..सुबह सुबह तो रेडियो वाले भी लगा देते हैं...लेकिन इस समय मेरे मन में इस गीत का ध्यान आ रहा है ..बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार मिटाने, काले धन वापसी, पारदर्शिता लाने, स्वदेशी बढ़ाने आदि के लिए चलाये गये अभियानों का हम तहेदिल से स्वागत और सम्मान करते हैं...

टीवी में सरकारी विज्ञापन बार बार मुझे याद दिला रहे हैं कि दिल्ली बदल रही है ...दिल्ली बदल रही है ...मैं तो कहता हूं ....बदल रहा है इंडिया...धीरे धीरे ही सही ... पब्लिक सब जानती है ....