रविवार, 20 सितंबर 2015

विज्ञान से मिलता है ज्ञान, साहित्य से समझ-बूझ

बाबू गुलाब राय जी के सुपुत्र श्री विनोद शंकर गुप्त संबोधन करते हुए
परसों मुझे साहित्यकार बाबू गुलाब राय जी की याद में एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर मिला...हिंदी भवन में आयोजित संगोष्ठी का विषय था...हिन्दी के निबन्ध लेखकों का वर्तमान परिदृश्य में दायित्व। इस कार्यक्रम में बाबू गुलाब राय जी के बेटे एवं बेटी भी उपस्थित थे।

बाबू गुलाब राय जी के महान् व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने-समझने का अवसर मिला। उपस्थित बुद्धिजीवियों ने बाबू जी से जुड़े अपने संस्मरण साझा किए।

डा दाऊ जी गुप्त की अध्यक्षता में यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। उन्होंने कहा कि उन की गुलाब राय जी से एक ही मुलाकात हुई थी इलाहाबाद में...कौन सा साल बता रहे थे ...१९५९ में शायद...बता रहे थे कि उन्होंने गुलाब राय जी से पूछा कि आप इतने महान लेखक कैसे बने। जवाब में उन्होंने कहा कि मैं रोज़ाना सुबह चार से छः बजे लिखने-पढ़ने का काम करता हूं और इस में मैंने कभी खलल नहीं पड़ने दिया। दाऊ जी ने बताया कि उन्हें इस बात से इतनी प्रेरणा मिली कि उन्होंने भी इस बात पर अमल करना शुरू कर दिया....स्मरण रहे कि डा दाऊ जी  विश्व हिन्दी समिति के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और लखनऊ के पूर्व महापौर हैं। उन्होंने एक बात और भी कही कि हम लोग आत्मकथा में कुछ चीज़ बताते नहीं और बाहर के देशों के लोग कुछ छिपाते नहीं।

डा दाऊ जी ने यह भी कहा कि गद्य हमें विचारशक्ति देता है....वैचारिक चिंतन की प्रेरणा प्राप्त होती है  और पद्य हमें अतीत और भविष्य की कल्पनाओं में डाल देता है। गुलाब राय जी पहली-दूसरी कक्षा से पीएचडी तक पढ़ाए जाने वाले साहित्यकार थे..विश्व की जिन १२८ विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है,  वहां बाबू गुलाब राय जी की कृतियां भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं।

यह बाबू गुलाब राय जी की सुपुत्री हैं
जो चंद बातें मुझे इस कार्यक्रम की याद रह गई हैं यहां लिखने का प्रयास कर रहा हूं...डा कालीचरण स्नेही जो की लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हैं...उन्होंने कहा कि पत्रविधा मर गई है...पत्रों में हृदय छलकता है, अपनी बात छलकती है। अब तो हम सब कुछ व्हाट्सएप, ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर ही सिमट गये हैं।

कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि राकेश कुमार मित्तल जो की सेवानिवृत्त चीफ सैक्रेटरी हैं यू पी के और कबीर शांति मिशन के संस्थापक एवं मुख्य संयोजक भी हैं....उन्होंने एक बात यह कही जो कि मेरे भी मन को छू गई ...और मुझे लगा कि यह मेरे ही मन की बात कह रहे हैं....उन्होंने कहा कि मैं साईंस का विद्यार्थी हूं और उस दौरान हम लोग यही समझा करते थे कि जिसने साईंस नहीं पढ़ी वह पढ़ा लिखा है ही नहीं, लेकिन बाद में समझ आई कि विज्ञान आदमी को ज्ञान तो दे देता है लेकिन हयूमैनिटीज़ विषय जो हैं वे मानव को बुद्धिमान...समझदार..विवेकशील बनाते हैं...और इस के लिए साहित्य का अध्ययन करना भी नितांत आवश्यक है। 

उन्होंने कहा कि आज सूचना का भंडार है ...नेट से किसी भी विषय पर सूचना हासिल की जा सकती है....but the big question is how to convert that information into knowledge and subsequently that knowledge into wisdom!

मैं मित्तल साहब की बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखता हूं...उन्होंने कहा कि महांपुरूषों की जीवनियां छोटी छोटी पुस्तिकाओं के रूप में उपलब्ध होना चाहिए...गांधी जी का ज़िक्र करते हुए कह रहे थे कि अकसर लोग कह देते हैं मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ...जब कि इस को कहना चाहिए.....मजबूती का नाम महात्मा गांधी। उन्होंने बताया कि वे यूपी हाउसिंग के कमीशनर थे ..जो कि महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित है....वे अकसर कहा करते थे कि गांधी मार्ग के ऊपर स्थिर न रहिए, उस पर चलिए।

आधुनिक संभ्रांत समाज की वास्तविकता ब्यां करते हुए मित्तल जी ने कहा कि कईं कईं मकान तो हैं लेिकन घर एक भी नहीं.... और बुज़ुर्ग परेशान हैं ...क्योंकि बच्चे सेटल नहीं हैं, अगर सेटल हैं तो ब्याह हो नहीं रहे या वे कर नहीं रहे, अगर ब्याह कर रहे हैं तो टिक नहीं रहे, अगर टिक रहे हैं तो बच्चे हो नहीं रहे, और अगर हो रहे हैं तो वे पल नहीं रहे..

बाबू गुलाब राय को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि बाबू जी कहा करते थे ...If you want to be remembered, write something worth reading or do something worth writing!