शुक्रवार, 13 मार्च 2015

स्टिंग करने जैसी बेवकूफी मेरे विचार में कोई नहीं....

अच्छा ही है यार मैेंने पिछले कुछ महीनों से टीवी देखना बंद कर रखा है..वही पुरानी समस्या...खबरिया चैनलों पर खबरें पढ़ने वालों को बेहद उत्तेजित होकर खबरें पढ़ते देख कर मेरा सिर भारी होने लगता था..बार बार जब ऐसा होने लगा तो मैंने सोचा कि छोड़ो यार, टीवी ही छोड़ो...मैं ठीक किया या नहीं, मुझे नहीं पता......लेकिन अब मुझे टीवी के बिना अच्छा लगने लगा है।

यह जो स्टिंग विंग की खबरें हैं न, ये अब बड़ी बात नहीं लगती। कोई बच्चा भी कर ले। हर टुच्चे से टुच्चे फोन में बातचीत को टेप करने की सुविधा तो होती है, बस फोन को जेब में डालना है, और किसी का भी कच्चा चिट्ठा खोल कर उस का जूलूस निकाल दीजिए...

दो दिन से  लोग केजरीवाल के स्टिंग आप्रेशन की बातें किये जा रहे हैं...उसने ऐसा कहा , उसने वैसा कहा....मेरा दृढ़ विचार है कि कहा तो कहा, मैं पार्टीबाजी में नहीं हूं...लेकिन केवल अपने दिल की बात कर रहा हूं कि केजरीवाल ने जो भी कहा क्या कोई और बंदा इस तरह की बातें नहीं करता! अकेले में हम लोग भरोसे के लोगों के साथ पता नहीं क्या क्या बकते रहते हैं......सच में वह बकने की ही श्रेणी में ही आता है। मुझे आप को नहीं पता, लेकिन मैं अपने बारे में तो ऐसा कह ही सकता हूं।

ऐसे में अगर किसी ने बिल्कुल दिल की बातें बिना किसी तकल्लुफ़ के किसी के साथ कर दी और उस ने उस का स्टिंग आप्रेशन कर दिया....इस से बड़ी मूर्खता वाली बात क्या हो सकती है!....मेरा अनुभव यही बताता है कि जिन लोगों का स्टिंग आप्रेशन होता है, उन को कोई कुछ भी तो नहीं उखाड़ पाता.......अगर अस्थायी तौर पर कुछ उखड़ने जैसा लगता भी है तो पब्लिक उस सनसनी को चार दिन में भूल भाल जाती है ....जैसा ही कुछ उस से भी ज़्यादा चटपटा पढ़ने-देखने-सुनने को मिलता है, पुरानी बातें ठंड़े बस्ते में पहुंच जाती हैं।

लेिकन सब से ज़्यादा नुकसान पता है किस को होता है...जो आदमी स्टिंग कर रहा होता है...उस की विश्वसनीयता अगर मानइस में न भी कहें तो सीधे सीधे शून्य तो हो ही जाती है।

एक आदमी को जानता था...पांच छः साल पहले की बात है..वह अपने अधिकारी के साथ जब बात करने जाता तो टेप कर लिया करता.....फिर उसे दूसरों पर धाक जमाने के लिए इस्तेमाल किया करता ... बिल्कुल सच्ची घटना है...मजबूरी है कि मैं उस का नाम नहीं ले सकता.....उस का नतीजा यह निकला कि उस बंदे की अपनी विश्वसनीयता जीरो हो गई...जब वह किसी को भी फोन करे तो लोग उस से बिलकुल काम की ही बात करते, हरेक को लगता वह उस की बातें टेप कर रहा है।

हम लोग बहुत अविश्वास के दौर में जी रहे हैं...हैं कि नहीं?... आज व्हाट्सएप पर सुबह सुबह मैसेज आया ...डाक्टर मित्रों ने आपस में एक दूसरे को चेताया था एक सच्ची घटना का हवाला दे कर....एक मैडीकल रिप्रेज़ेंटेटिव डाक्टर के पास आया..जब वह बाहर गया तो गलती से मोबाइल वहीं भूल गया... डाक्टर ने निगाह डाली तो उसे पता चला कि सारा वार्तालाप उसने फोन में रिकार्ड किया हुआ था....साथ में बताया गया था कि कोई इंदौर में डाक्टर का स्टिंग भी इसी ढंग से ही हुआ था।

आज कल तो वही दौर है कि मैं सोचता हूं कि जिस से भी वार्तालाप कर रहे हैं ...सीधे सीधे या फोन पर...तो उस के पास आपकी हर बात रिकार्ड करने की सुविधा है....इस के लिए कोई बड़ी तकनीक सीखने की ज़रूरत नहीं है... ऐसे में आज के दौर में दिल खोल कोई क्या बात करेगा। हर तरफ खौफ ...कहीं बात का गलत इस्तेमाल न कर लिया जाए।

दोस्तो, मैं कुछ स्टिंग आप्रेशन को छोड़ कर .......शायद जो बहुत ही बड़े स्तर के हों, जहां कोई बहुत बड़ा भ्रष्टाचार हो रहा है, राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में हो .....जो पत्रकार लोग सुनियोजित ढंग से यह सब करते हैं, उन को तो छूट दी जा सकती है.......अपना काम कर रहे हैं..........लेकिन यह जो जना-खना एक दूसरे की बातें टेप कर के, वीडियो फिल्म बना कर या तो ब्लेकमेल करने लगते हैं या फिर किसी मीडिया हाउस को यह तथाकथित स्टिंग सौंप देते हैं, यह सरासर पीठ में छुरा घोंपने जैसा है.......शायद सोये हुए बंदे की पीठ में छुरा घोंपने जैसा। थर्ड क्लास काम तो है ही, विचार उस से भी नीच स्तर का।

दोस्तो, आप अपने दिल पर हाथ कर के देखिए हम सारे दिन में जो जो बोलते हैं, जो जो कहते हैं, अगर उन का भी स्टिंग आप्रेशन होने लगे तो कमबख्त हम सब को चुल्लू भर पानी भी मुहैया न हो.....लेकिन एक बात है कि जब हम लोग अपने पुराने दोस्तो...स्कूल, कालेज एवं अपने परम मित्रों से, रिश्तेदारों से बातें करते हैं तो कितने खुलेपन से करते हैं......क्योंकि हम लोग इन पर अपने से भी ज़्यादा भरोसा करते हैं।

वैसे दोस्तो मैंने तो यह बात मन में बिठा रखी है और यह मैं हर वार्तालाप के समय मन में रखता हूं कि हो सकता है कि इस बंदे ने मोबाइल की रिकार्डिंग ऑन की हो..की हो तो की हो, उखाड़ लो यार जो उखाड़ना हो।

लेकिन मैंने भी २००९ में एक बार फोन रिकार्ड किया था......ऐसे ही २-३ मिनट के लिए.......शाम को सुनते ही इतनी आत्मग्लानि हुई कि तुरंत उसे डिलीट कर के पश्चाताप कर लिया.......मेरे विचार में यह भद्र पुरूषों के शौक नहीं है, यह सब धंधे करने वाली की विश्वसनीयता तो ज़ीरो हो ही जाती है, उसे बेहद टेंशन में भी रहना पड़ता है निरंतर........तो फिर इस खुराफात से पाया क्या.......सिवाए इस के कि पब्लिक को मुफ्त में दो दिन का ऐंटरटेन मिल गया।

आज दोपहर एक खबर दिखी की एक नेता कह रहा है कि केजरीवाल का एक और स्टिंग उस के पास है... उस ने घड़ी के द्वारा किया....और पेनड्राइव में वह स्टिंग बंद है....तू भी ले ले यार, तू भी ले ले बहादुरी पुरस्कार। ऐसे लोगों को तो पत्रकार होना चाहिए.......अब अगर पत्रकारों के काम ये लोग करने लगेंगे तो वे क्या काम करेंगे।  वैसे हो सकता है कि मैं भूल रहा होऊं.........दोस्तो, अगर आप को याद हो कि पिछले दस पंद्रह बरसों में किन किन स्टिंग आप्रेशनों की वजह से किस का क्या क्या उखड़ गया, तो कृपया टिप्पणी के रूप में दर्ज़ कर दीजिएगा।