शनिवार, 10 जनवरी 2015

दांत के खड़्डे में क्या भरवाना ठीक रहता है?

आज जब मैं एक महिला के दांतों की सड़न से ग्रस्त खड्डे वाले दांत भर रहा था तो मुझे विचार आया कि शायद मरीज भी सोचते होंगे कि दांत में क्या भरवाना ठीक रहता है..क्योंकि विकल्प तो बहुत से होते हैं..तरह तरह के डैंटल मेटिरियल हैं...लेकिन सच तो यह है कि यह मरीज के सोचने की बात है ही नहीं।

यह निर्णय केवल और केवल एक प्रशिक्षित दंत चिकित्सक ही करे तो बेहतर ही नहीं, बहुत ही बेहतर होता है। यह मैं इस लिए लिख रहा हूं कि कईं बार कुछ मरीज़ ही आ कर यह कहने लगते हैं कि उन्हें तो सफेद कलर की फिलिंग चाहिए, कुछ कहते हैं लेज़र फिलिंग चाहिए...ऐसे बहुत कुछ। 

लेकिन मेरी सलाह यह है कि कभी भी दंत चिकित्सक के पास जा कर फिलिंग की अपनी च्वाईस नहीं बतानी चाहिए... क्योंकि उसे अच्छे से पता है कि आप के किस दांत के लिए कौन सी फिलिंग लंबे समय तक चलने वाली है!

चलिए, थोड़ा देखते हैं कि दंत चिकित्सक यह निर्णय करने के लिए किन किन बातों को ध्यान में रखता होगा... 
  • मरीज की उम्र 
  • दांत दूध के हैं या पक्के हां?
  • आप के हंसने पर वह दांत का हिस्सा कितना दिखता है?
  • क्या फिलिंग वाली जगह चबाने के लिए काम में आने वाली है?
  • जिस खड़डे में फिलिंग होनी है वह कितना गहरा है..
  • क्या उस खड़डे में पहले भी फिलिंग भरी हुई थी लेकिन उस में यह टिकी नहीं, यह खाली हो गया..
  • आप किस प्रोफैशन में हैं, क्या आप शो-बिज़नेस में हैं?
  • और बड़ी मुनासिब सी बात है कि प्राईव्हेट प्रैक्टिस में यह भी एक सवाल की क्या आप उतनी पेमेंट कर सकते हैं?
ऐसा मानिए कि यह तो बस उदाहरण है... आप के दांत का खड्डा देखते ही उस के मन में बहुत से प्रश्न आ जाते हैं....

टॉिपक मैंने आज कुछ ज़्यादा ही टैक्नीकल सा चुन लिया है, इसलिए चलिए इसी औरत की उदाहरण लेकर बात खत्म करते हैं। 


हां तो जिस औरत के दांतों की मैंने तस्वीर यहां लगाई है, यह पचास वर्ष की है और इस के बहुत से दांतों में सड़न हो गई है और यह सड़न दांत के ऊपरी हिस्से (क्रॉउन) और जड़ (जो मसूड़े में होती है) के जंक्शन पर है.....आप जैसा कि देख रहे हैं कि तसवीर के बाईं तरफ़ जो आप को सफेद सी फिलिंग दिख रही हैं, वे तीनों फिलिंग मैंने आज की है.. अभी और भी दांतों में फिलिंग करनी शेष है। 

जिस बात पर मैं विशेष ज़ोर देना चाहता हूं वह यह है कि देखने में यह फिलिंग इतनी बढ़िया नहीं दिख रही (दांत के साथ कलर मैचिंग के नज़रिये से), है कि नहीं, लेकिन इस उम्र में इस महिला के लिए यही मैटिरियल (ग्लास-ऑयोनोमर सीमेंट) सर्वश्रेष्ठ है...क्योंिक जब यह हंसती है तो दांतों का यह हिस्सा नज़र नहीं आता... और यह मेटिरियल बहुत लंबे समय तक बिल्कुल ठीक ठाक लगा रहता है....इस की विशेषता यह है कि यह दांत में लगे रहते फ्लोराइड नामक तत्व भी बहुत कम मात्रा में रिलीज़ करता रहता है जिस से दांतों में फिर से दंत-क्षय भी नहीं होता। कुछ मरीज़ों में मैंने इस तरह की फिलिंग १९८९ (२५ वर्ष पहले की थीं) और उन के दांतों में अभी भी यह बढ़िया टिकी हुई है.......इस में मेरी कोई महानता नहीं है , यह मेटीरियल ही इतना बढ़िया है। 

और अगर हम इस तरह के एरिया में बिल्कुल दांत के कलर से मैचिंग मेटीरियल (डेंटल कंपोज़िट) लगा दें (मरीज की फरमाईश पर या जैसे भी) तो यह कुछ ही वर्षों में थोड़ा सिकुड़ने लगता है, जिसे से ठँडा-गर्म की शिकायत या फिर से दंत-क्षय लगने लगता है, या दांत काला पड़ने लगता है.. ऐसे में इस फिलिंग को बार बार बदलने की नौबत आ जाती है। इसलिए इस तरह की फिलिंग को इस उम्र के मरीज़ में प्रेफर नहीं किया जाता। 

हां, अगर इसी तरह की फिलिंग -दांत के इसी हिस्से में कम उम्र के युवक-युवती में करनी हो तो इस महिला में इस्तेमाल किए गए इस मेटिरियल को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंिक युवक-युवतियां जब हंसते हैं तो उन के अगले दांतों का काफी हिस्सा नज़र आता है। 

और एक बात.....यह लेज़र-वेज़र फिलिंग कुछ नहीं होती......वही डेंटल कंपोज़िट ही है िजसे एक लाइट से एक दो मिनट में पकाया जाता है, अब कुछ लोगों ने इसे ही लेज़र फिलिंग कह के पुकारना शुरू कर दिया है। 

शायद मेरे जैसे चिकित्सकों के लिए निर्णय कर पाना ज़्यादा आसान होता है लेकिन अगर मैं भी कभी प्राईव्हेट प्रैक्टिस करूंगा या अगर करता तो मुझे भी आखिर मरीज़ की च्वाईस का भी ध्यान करना होता (लेकिन इस के नुकसान मैंने पहले ही गिना दिये हैं) ....वरना कईं बार दंत चिकित्सक को मरीज़ ही खोना पड़ सकता है। अगर आप नहीं भी करेंगे उस की फरमाईश का, तो वह कहीं और से करवा ही लेंगे। बेहतर होगा कि सब कुछ अच्छे से समझा दिया जाए, और अगर फिर भी फरमाईश ही पूरी करनी पड़े तो कर दी जाए।

मुझे लिखते ही लगने लगा है कि ये बातें मेरे लिए तो सामान्य हैं, लेकिन पाठकों के लिए ये बातें बोझिल होती जा रही होंगी, इसलिए इस बात को यही रोक देते हैं, इस उम्मीद के साथ कि जो बात आप तक पहुंचाना चाहता था वह तो पहुंच गई होगी!