गुरुवार, 1 जनवरी 2015

रक्त रोग विशेषज्ञ ने लिखी एनीमिया पर किताब

परसों यहां लखनऊ में यूपी हिंदी संस्थान का ३८वां स्थापना दिवस समारोह था। इस अवसर पर एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन था। मुझे भी उस कार्यक्रम में शिरकत करने का अवसर मिला। हास्य-व्यंग्य की महान् हस्तियां वहां मौजूद थीं।

डा त्रिपाठी की किताब ..एनीमिया- कुछ रोचक जानकारियां का विमोचन 
हास्य-कवि सम्मेलन शुरू होने से पहले उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक का विमोचन भी हुआ... इस किताब का नाम है.. एनीमिया- कुछ रोचक जानकारियां।

इस किताब के लेखक हैं डा ए के त्रिपाठी जो किंग जार्ज मैडीकल यूनिवर्सिटी लखनऊ में क्लीनिकल हिमैटोलॉजी विभाग में प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। इन्हें चिकित्सा व विशेषकर रक्त रोग विज्ञान के क्षेत्र में ३० वर्ष से अधिक का अनुभव है।

मुझे डाक्टरों द्वारा लिखी किताबों में विशेष रूचि रहती है....मैं इस तरह की किताबों को यहां वहां हर जगह ढूंढता रहता हूं। यह तलाश पिछले २५ वर्षों से जारी है...जानकारी हासिल करने के साथ साथ मुझे यह भी उत्सुकता होती है कि देखें तो सही कि अनुभवी चिकित्सकों का अंदाज़े-ब्या कैसा है, क्या आमजन इस लेखन से लाभ उठा पाएगा!

पुस्तक का आवरण 
मैं जब हिंदी की बात करूं तो मुझे बहुत बार निराशा ही हुई......कुछ किताबें मैडीकल विज्ञान से जुड़ी हाथ लगीं तो ऐसे लगा कि कोई पुरातन ग्रंथ पढ़ रहे हों, इतनी भारी भरकम भाषा, कौन समझे इन ग्रंथों को........मान िलया साहब आप को बहुत ज्ञान है लेकिन पढ़ने वाले तक अपनी बात बिल्कुल सरल भाषा में ही पहुंचनी चाहिए, वरना वह दो पन्ने पलट कर तकिये के नीचे किताब को सरका कर सो जाता है। आखिर करे भी तो क्या करे! स्वयं मेरे साथ ऐसा बहुत बार हुआ है.

दूसरी तकलीफ अकसर यह होती है कि कुछ प्रकाशक मैडीकल विज्ञान की किताबें ऐसे लोगों से लिखवा लेते हैं जिन का चिकित्सा विज्ञान को कोई अनुभव होता ही नहीं, इस तरह की किताबों को समझना तो दूर पढ़ना ही मुश्किल लगता है। पहले पन्ने से ही पता चल जाता है कि आगे क्या गुल खिलने वाले हैं।

इसलिए अगर कोई इस तरह की िकताब जिस का कल विमोचन हुआ.... हाथ में लगती है तो बहुत अच्छा लगता है।
दोस्तो, मैं तो एक बात समझता हूं एक मैडीकल कालेज के प्रोफैसर साहब और उन का ३० वर्ष का अनुभव और अगर उन्होंने ५० पन्नों की कोई किताब लिखी है तो मैं यह मानता हूं कि इस तरह के महान् डाक्टर अपने जीवन भर कर अनुभव उन ५० पन्नों में भर देते हैं ... और वह भी इतने बढ़िया ढंग से कि आप उसे बिल्कुल आसानी से पचा लेते हैं।

अगर आप को याद होगा ..अगर आपने मेरी एक पोस्ट देखी होगी......डा आनंद की बच्चों की देखभाल संबंधी गाइड--- मैं इस किताब से और इस के लेखक से बहुत ही ज़्यादा प्रभावित रहा हूं....उन की किताब का भी हम लोगों ने भरपूर प्रयोग किया....ऐसा लगता ही ना था कि किसी किताब को पढ़ रहे हैं, लगता था कि डाक्टर साहब दिल खोल बातचीत के जरिये अपने अनुभव बांट रहे हैं। उस किताब के बारे में मैंने लिखा था कि अब उस का हिंदी संस्करण भी आ गया है।

परसों जब डा त्रिपाठी की एनीमिया पर लिखी इस किताब के बारे में पता चला तो बाहर आते ही वहां लगे स्टाल से मैंने यह पुस्तक खरीदी और अगले ही दिन इसे पढ़ लिया। इस पुस्तक के विमोचन के बाद डा त्रिपाठी ने अपनी लेखिकीय यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि देश में ५०-७० प्रतिशत लोग एनीमिया से ग्रस्त हैं...और अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं कि वे इस बीमारी से ग्रस्त हैं... क्योंिक किसी को इस के बारे में मालूम है कि नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह कितना गंभीर है। यह कहानीनुमा अंदाज़ में लिखा गया है, और सारी जानकारियां अाधुनिक वैज्ञानिक शोध के परिणामों के आधार पर दर्ज की गई हैं।


हां, तो दोस्तो मैं इस किताब से इतना प्रभावित हुआ कि शुरू शुरू में मैंने सोचा कि इस में मौजूद उपलब्ध महत्वपूर्ण जानकारियां एक दो लेखों के जरिये आप तक पहुंचाऊंगा.......लेकिन यह मेरे लिए संभव नहीं था......कारण?...क्योंकि इस प्रोफैसर ने इतनी अच्छी तरह से यह किताब लिखी है कि मैं समझता हूं कि इस का एक एक शब्द हर किसी के लिए केवल पढ़ने लायक ही नहीं, हमेशा याद रखने के िलए भी है--- हर आयुवर्ग में एनीमिया पाया जाता है, उस के क्या कारण हैं, क्या रोकथाम है, उपचार का सही तरीका क्या हाल है, इस किताब में सब कुछ परफैक्ट तरीके से कवर किया है।

मैंने एक तरीका ढूंढा है, अगर आप के मन में किसी तरह के भी एनीमिया के बारे में प्रश्न हैं तो इस लेख के नीचे कमैंट के रूप में लिखिएगा, मैं इसी किताब में दी गई जानकारियों के आधार पर आप तक उस का जवाब पहुंचाने की कोशिश करूंगा। वैसे भी जो अंश मुझे बेहद महत्वपूर्ण लगेंगे (वैसे तो सभी ५० पन्ने ही एक से बढ़ कर एक हैं)... आप तक किसी लेख के माध्यम से पहुंचाने की चेष्टा करूंगा।

डाक्टर साहब की किताब के बारे में एक मेहमान ने यह भी कहा.....
जिन हाथों में नश्तर की उम्मीद थी,
वो कलम भी बखूबी चला लेते हैं।।

एक बात, इस किताब की केवल ५०० कापियां छपी हैं, ज़ाहिर है ये तो यूं ही खप जाएंगी........लेिकन मेरा सुझाव है कि इस तरह की किताब की तो हज़ारों कापियां छपनी चाहिए और इस का दाम १०-२० रूपये रखा जाना चाहिए....वैसे तो हिंदी संस्थान इस तरह की जनोपयोगी किताबों का पुनःमुद्रण करता ही रहता है, फिर भी.......यह देखना होगा कि यह किताब किस तरह से घर घर तक पहुंचे। इस तरह की किताबें कोई आम किताबें नहीं होतीं... ये दिल से लिखी कालजयी कृतियां हैं...जिन को लिखने के लिए लेखक के मन में समुची मानवता के प्रति अगाध प्रेम की भावना का होना लाजमी है......वरना कौन इतना बड़ा चिकित्सक अपने चिकित्सा फील्ड को इतने सुलभ संप्रेषणीय ढंग से डिमिस्टीफाई करना चाहेगा!! इस किताब के लेखक डा ए के त्रिपाठी को बहुत बहुत साधुवाद।

और एक सुझाव यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की किताबों की तरह इस तरह की किताबों पर कापीराइट ही नहीं होना चाहिए, ये तो सारी मानवता के लिए तोहफ़े के समान है। ऐसा होना चाहिए कि इस के कंटेंट का कोई किसी भी रूप में प्रचार प्रसार तो करे लेकिन मूल लेखक को पूरा क्रेडिट देते हुए... ऐसी किताबें विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवादित की जानी चाहिएं।

डा साहब अपने भाषण में बता रहे थे कि भविष्य में भी उन की बहुत कुछ लिखने की योजनाएं हैं......इस के लिए डा त्रिपाठी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।

हां, अभी मैंने इस किताब को पढ़ना शुरू ही किया था कि शकुंतला की तरह मुझे भी एक नईं बात पता चली......आप भी सुनिए... इसी किताब से........
शकुन्तला बोली-- डाक्टर साहब, माफ कीजिएगा, मैं आपका कीमती समय ले रही हूं... लेकिन ऐसा भी क्या है जिससे गुड़ में अधिक आयरन पाया जाता है। डाक्टर साहब बोले... गन्ने के रस को लोहे की बड़ी-बड़ी कड़ाहियों में धीमी आंच में घंटों उबाला जाता है। इस प्रक्रिया से लोहे के बर्तन की दीवारों से लौह तत्व रस में मिल जाता है। अतः गुड़ और भी आयरन युक्त हो जाता है। गुड़ के सेवन बढ़ावा देना चाहिए। आज के बच्चे गुड़ को शायद जानते ही नहीं हैं।                                        (इसी किताब से)  
एक बात तो है कि डाक्टर साहब की किताब के विमोचन से तो पता चला कि इसे पढ़ कर रक्त रोगों के रोकथाम एवं सही उपचार का सही जुगाड़ तो ही जाएगा, लेिकन एक बात माननी पड़ेगी कि उस कार्यक्रम में मौजूद सैंकड़ों श्रोताओं का सौ-दो सौ ग्राम खून तो बिना हींग-फिटकड़ी लगाए सभी हास्य कविओं ने ठहाकों से लोट पोट कर के बढ़ा दिया....समाज में हर आदमी के फन की बहुत ज़रूरत है....हर इंसान के फन को सलाम!!

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