सोमवार, 17 नवंबर 2014

प्रातःकाल के भ्रमण की तो कोई मांग नहीं...

यह कौन सा डिज़ाईनर है....
क्या नज़ारा है......वाह..
अभी अभी अपने घर के पास ही एक बाग में टहल कर आ रहा हूं...अच्छा लगता है। आज मैंने एक बुज़ुर्ग को बिल्कुल स्कूल की पी.टी की तरह अपने बाजु वाजू हिलाते-ढुलाते देखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा। दो चार दिन पहले की ही बात है कि मैं अपने एक मरीज से उस की दिनचर्या की बात कर रहा था तो उस बुज़ुर्ग ने भी मुझे कहा था कि सुबह टहलता हूं और थोड़ी पी टी कर लेता हूं।

पता नहीं यह क्या है...पर देख कर मज़ा आ गया
उस दिन मुझे भी अपने स्कूल का पी टी पीरियड याद आ गया था... लेिकन सोचने वाली बात है कि क्या वह पी टी केवल अपने पी टी मास्टर की पिटाई से ही बचने के लिए हम किया करते थे....शायद हां, कुछ खास मन नहीं लगता था ना उस दौरान.........लेकिन अब तो उस सब में मन लगाने की बहुत ज़रूरत है।

हां, तो मैंने आज सुबह बुज़ुर्ग को पी टी जैसा करते देखा तो मैंने भी वैसे ही करना शुरू कर दिया....अच्छा लगा।

सुबह बाग में जब जाते हैं तो सब को बहुत खुश पाते हैं....भ्रमण करते करते जब लोगों के ठहाके सुनाई देते हैं तो यही कामना होती है कि ये ठहाके यूं ही गूंजते रहें....कोई हास्य-क्लब में ठहाके लगा रहे होते हैं कुछ लोग इक्ट्ठा हो कर......कुछ यार दोस्त वैसे ही हंसी-ठिठोली करते दिखते हैं।

ऐसे नज़ारे सब को रोज़ाना दिखते रहें..काश!
आज मैं यही सोच रहा था कि जो भी हो ये लोग घर से एक घंटे के लिए बाहर आ गये और बच्चे बन गये.....यही एक बड़ी बात है....हम लोग बच्चे ही तो बनना भूलते जा रहे हैं। सारे दिन में केवल एक घंटे तो अपने आप को देना बनता है कि नहीं।

मैंने एक बात नोटिस की है कि कुछ लोग सैर करते समय गंभीर सी बातें करते सुनाई पड़ते हैं.......मुझे नहीं पता कि यह ठीक है कि नहीं, वैसे हंसी मज़ाक हो और हल्की फुल्की बातें हों तो ठीक है, ज़्यादा गंभीर विषयों को तो शायद बाकी के तेईस घंटों के लिए छोड़ देना चाहिए......यार, पहले आप अच्छे से चार्ज तो हो जाईये।

वैसे भी यह सुबह का समय होता है यह अपने आप के साथ और प्रकृति के साथ समय बिताने का एक बेहतरीन अवसर होता है.....मैं भी कुछ कुछ तस्वीरें खींच लेता हूं......आज मैंने बाग में टहलते हुए जो तस्वीरें खींचीं, यहां ठेल रहा हूं.....कैसी लगीं?

पिछले दिनों मैं एक हृदय रोग विशेषज्ञ को रेडियो पर सुन रहा था ...बता रहे थे कि कुछ लोग सुबह सैर करना इसलिए टालते रहते हैं कि सैर करने वाले बूट नहीं हैं.....वह यही बताना चाह रहे थे कि सुबह की सैर की कोई मांग नही है, शूज़ नहीं हैं तो क्या है, चप्पल तो है, उसे ही पहन कर निकल पड़े.......मैं भी देखता हूं कि बाग में कुछ गृहिणीयां चप्पल डाल कर टहल रही होती हैं....बिल्कुल ठीक है।

एक बात और याद आ रही है कि स्कूल के शुरूआती दिनों में जब प्रातःकाल का भ्रमण विषय पर हमें निबंध लिखना सिखाया जाता है ...उसे जब गर्मी की छुट्टियों में हम उसे रिवाईज़ किया करते थे तो उन दिनों सुबह सुबह पास की ग्राउंड में टहलने भी निकल जाया करते थे......क्या मज़ा आता था.......लेकिन धीरे धीरे हम क्यों यह सब भूलना शुरू कर देते हैं....स्वर्ग सिधार गये अपने मास्टर लोगों की नज़र अभी भी अपने ऊपर है........इसलिए जो भी है, जैसे भी हैं, सुबह का एक घंटा अपने शरीर के लिए रख दें तो कितना अच्छा हो ! Let's stop taking things for granted!!