बुधवार, 20 जनवरी 2010

आर टी आई का इस्तेमाल और शुरूआती झिझक..

जिस किसी ने कभी आर टी आई के अंतर्गत कोई सूचना मांगी नहीं है, उसे थोड़ी झिझक होना स्वाभाविक होती है। मैंने तो इतना भी देखा है कि कईं बार लोग इस तरह का अधिकार इस्तेमाल करने के नाम ही से डरते हैं --- पता नहीं क्या हो जायेगा अगर वे इस अधिनियम के तहत कुछ पूछ बैठेंगे---- लेकिन सोचने की बात है कि किसी भी काम को करने की झिझक तो वह काम करने ही से दूर हो पायेगी। किसी तरह की टाइपिंग करवाने के चक्कर में पड़ने की ज़रूरत नहीं, अगर हो सके तो ठीक है, वरना हाथ ही से साफ़-सुथरा लिख कर जानने की शुरूआत तो की ही जा सकती है।

और अब तो बैंक ड्राफ्ट और चैक आदि के अलावा डाक घरों में मिलने वाले पोस्टल-आर्डरों के द्वारा भी आरटीआई की फीस ( दस रूपये ) भरी जा सकती है जिस पर आपने उस पब्लिक अथारिटी ( जिस विभाग अथवा मंत्रालय से आपने सूचना प्राप्त करनी है) के लेखा अधिकारी का नाम लिख देना है ---यानि की  payable  to ----  लेखा अधिकारी, ......विभाग, .......शहर।


मुझे याद है मैंने इस कानून के बारे में पहले पहल पूना की सिंबॉयोसिस इंस्टीच्यूट ऑफ मॉस कम्यूनिकेशन में एक सेमीनार के दौरान मई 2004 में सुना था --- इस से पहले कभी कभी इधर उधर अखबार में इस के बारे में पढ़ लेते थे लेकिन मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस महिला वकील ( जो कि शायद पूणे की कोई आर टी आई एक्टीविस्ट भी थीं) ने इतना बढ़िया तरीके से इस अधिकार के बारे में बताया कि इस के बारे में और भी जानने की उत्सुकता बढ़ गई।

फिर आगे 2005 मे यह कानून आ गया ---मीडिया में खूब चर्चा थी। खैर, टाइम्स ऑफ इंडिया और दा हिंदु में इस के बारे में पढ़ते पढ़ते दो साल बीत गये --- मुझे भी एक मंत्रालय से एक अहम् जानकारी चाहिये थी लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कहां से पता चले, पता नहीं मुझे एक तो लोगों से यह उलाहना बहुत है कि लोग किसी भी ज्ञान को, किसी भी जानकारी को बहुत संकीर्णता के साथ अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं ---इसलिये जो लोग उन के पास उपलब्ध जानकारी को दोनों हाथों से खुले आम लुटाते हैं, वे मुझे बहुत पसंद है। इस देश की परंपरा ही यही रही है, और मैं इस का हमेशा से प्रशंसक रहा हूं।

हां, तो मैं बात कर रहा था कि मुझे किसी मंत्रालय से कुछ जानकारी हासिल करनी थी--- लेकिन बात यह भी थी कि उस जानकारी के लिये आवेदन करने का क्या तरीका है, किसे यह आवेदन भेजना था, मुझे कुछ भी तो पता नही था। फिर दो साल पहले एक दिन अखबार में एक किताब का विज्ञापन देखा --- आर टी आई के ऊपर यह किताब लिखी गई थी, आज तो बाज़ार में बहुत सी किताबें उपलब्ध हैं।

मैंने दिल्ली से वह किताब मंगवाई ---थोड़ा थोड़ा उसे पढ़ा और इतना जान गया कि आवेदन किसे भेजना होता है और किस प्रारूप में --- और अब समझ गया हूं कि प्रारूप इतना महत्वपूर्ण नहीं है, प्रश्नों का कंटैंट अहम् है। लेकिन इस किताब में मुझे यह देख कर बहुत अजीब सा लगता था कि आर टी आई तो अच्छे से इस में दिया ही गया था –साथ ही साथ विभिन्न राज्यों के आर टी आई के नियम इस में दिये गये थे ---- मैं दो साल तक यह देख कर बहुत हैरान सा हो जाता था कि यह कैसा कानून कि हर राज्य में अलग से कानून इंप्लीमैंट हो रहा है। लेकिन इस का जवाब मुझे कुछ दिन पहले मिल गया है जिसे समझने के लिये दो-एक लेखों का सहारा लेना पड़ेगा। अगले एक दो दिनों में यह काम करने की आशा करता हूं।

वैसे मेरी तो यही सलाह है कि जिन्होंने इस आर टी आई एक्ट को अभी तक नहीं पढ़ा है वे इस से संबंधित कोई भी बढ़िया सी किताब खरीद लें ---वैसे तो आजकल नेट पर ही सब कुछ मिल जाता है। ये नीचे लिखी दो साइटें हैं, इस पर इस अधिनियम के बारे में बहुत कुछ मिल जायेगा----थोड़ा थोड़ा देखते रहिये और एक बात तो है ही कोई भी बात प्रयोग करने से ही सीखी जा सकती है। 
सूचना का अधिकार