रविवार, 22 फ़रवरी 2009

जब भिखारी भीख में तंबाकू मांगने लगें..... तो समझो मामला गड़बड़ है!!

क्या आप को किसी भिखारी ने तंबाकू दिलाने को कभी कहा है ? मेरे साथ ऐसा ही हुआ कुछ दिन पहले जब मैं पिछले सप्ताह चार-पांच दिन के लिये एक राष्ट्रीय कांफ्रैंस के सिलसिले में नागपुर गया हुआ था। मैं एक दिन सुबह ऐसे ही टहलने निकल गया। रास्ते में एक मंदिर के बाहर बहुत से मांगने वाले बैठे किसी धन्ना सेठ की बाट जोह रहे थे। वहां से कुछ ही दूर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो बीमार लग रहा था –उस की टांग में कोई तकलीफ़ लग रही थी- उस ने मुझे आवाज़ दी ---बाबू, तंबाकू दिला दो। मैं एकदम हैरान था।

यह पहला मौका था जब किसी मांगने वाले ने मेरे से तंबाकू की फरमाईश की थी। मुझे उस की यह फरमाईश सुन कर न तो उस पर गुस्सा आया, ना ही तरस आया ---- वैसे तो मैं उस समय भावशून्य ही हो गया। लेकिन पता नहीं क्या सोच कर मैंने उसे कहा कि बिस्कुट खायोगे (पास में एक किरयाना की दुकान खुली हुई थी ) --- तो उस ने अपना तर्क रखा कि इस समय कहां मिलेंगे बिस्कुट। मैं तुरंत उस दुकान पर गया और वहां से बिस्कुट खरीद कर उसे दिये।

साथ में उस के एक कुत्ता बैठा हुआ था --- मैं समझ गया कि यह इस के दुःख सुख का साथी है, एक पैकेट उस के लिये भी दिया। एक बात का ध्यान आ रहा है कि जितनी शेयरिंग ये मांगने वाले आपस में या अपने पालतु जानवरों के साथ करते हैं, यह काबिले-रश्क होती है। मैं बहुत बार देखा है कि अगर इन के पास ब्रैड के दो पीस हैं तो एक-एक खा लेते हैं। मैं इस बात से बहुत ही ज़्यादा प्रभावित होता हूं ।

खैर, उस मांगने वाले के बारे में सोच कर मैं मिष्रित सी भावनाओं से भरा रहा --- खाने के लाले पड़े हैं, ऊपर से बीमारी, रहने का कोई ठिकाना नहीं लेकिन तंबाकू का ठरक एकदम कायम !! लेकिन यह हल्के-फुल्के अंदाज़ में टालने वाली बात नहीं है। उसी दिन बाद दोपहर तंबाकू के ऊपर एक सैमीनार ने भी यही कहा कि हमें तंबाकू के आदि हो चुके लोगों का कभी भी मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिये --- ये बीमार लोग हैं, ये लोग तंबाकू के आदि हो चुके हैं, इन से प्यार और सहानुभूति से ही पेश आने की ज़रूरत है, तभी ये हमारी बात मानेंगे।

उस दिन तंबाकू एवं पान-मसाला, गुटखे के इस्तेमाल से होने वाले विनाश की दो गाथायें सुन कर मन बहुत ही बेचैन हुआ। वर्धा के सुप्रसिद्ध ओरल-सर्जन ने एक 21 साल के युवक के बारे में बताया जो कि गुटखा इस्तेमाल किया करता था --- उन्होंने बताया कि उसे मुंह का कैंसर हो गया --- पूरे दस घंटे लगा कर उन्होंने उस का आप्रेशन किया ---सारी तस्वीरें उन्होंने दिखाईं---आप्रेशन की और जब हास्पीटल से छुट्टी लेने के बाद वह अपने मां-बाप के साथ खुशी खुशी घर लौट रहा था। लेकिन उन्होंने बताया कि इतना लंबा आप्रेशन करने के बावजूद छःमहीनों के बाद ही उसे दोबारा से मुंह के कैंसर ने धर दबोचा और वह देखते ही देखते मौत के मुंह में चला गया। मुंह के कैंसर के रोगियों के साथ अकसर यही होता है। इस 21 साल के नवयुवक के केस के बारे में सुन कर हम सब लोग आश्चर्य-चकित थे --- ऐसे केस अब इतनी कम उम्र में भी बिल्कुल होने लगे हैं क्योंकि यह गुटखा, पानमसाला, तंबाकू हमारे जीवन में ज़हर घोले जा रहा है।

दूसरा केस यह था कि चार साल का बच्चा जो गुटखे और पानमसाले का आदि हो चुका था उस का मुंह ही खुलना बंद हो चुका था ---- वह ओरल-सबम्यूकसफाईब्रोसिस की तकलीफ़ का शिकार हो चुका था और उस की तस्वीर के नीचे लिखा हुआ था ----मेरा क्या कसूर है ? बात सोचने की भी है कि उस का निःसंदेह कोई कसूर भी तो नहीं है, कसूर सामूहिक तौर पर हम सब का ही है, सारे समाज का ही दोष है कि हम सब मिल कर भी इन विनाशकारी पदार्थों को उस के मुंह तक पहुंचने से रोक न सके !

कुछ दिन पहले मेरे पास एक साठ साल के लगभग उम्र वाला एक मरीज़ आया --- उस से मैंने यह सीखा कि बार बार तंबाकू छोड़ने वाली बात के पीछे पड़े रहना कितना ज़रूरी है। यह मरीज़ पिछले कईं सालों से तंबाकू-चूने का मिश्रण बना कर गाल के अंदर रखा करता था --- इस से उस की गाल का क्या हाल हुआ, यह आप इस तस्वीर में देख सकते हैं। इस अवस्था को ओरल-ल्यूकोप्लेकिया (oral leukoplakia) कहा जाता है और यह कैंसर की पूर्व-अवस्था है।

मैंने पंद्रह-बीस मिनट उस मरीज़ के साथ बिताये ---उसे खूब समझाया बुझाया। नतीज़ा यह निकला कि मरीज़ कह उठा कि डाक्टर साहब, ये सब बातें आपने एक साल पहले भी मेरे से की थीं, लेकिन मैं ही इस आदत को छोड़ नहीं पाया, लेकिन आज से प्रण करता हूं कि इस शैतान को कभी छूऊंगा भी नहीं। और इस के साथ ही उस ने यह तंबाकू का पैकेट मेरी टेबल पर रख दिया जिस की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं--- मैंने पूछा कि चूने वाले डिबिया भी यहीं छोड़ जाओ। उस ने बताया कि सब कुछ इस पैकेट में ही है। उस समय मुझे यह पैकेट देख कर इतनी खुशी हो रही थी जितनी इंटरपोल के अधिकारियों को किसी अंतर्राष्ट्रीय गैंग के खूंखार आतंकवादी को पकड़ते वक्त होती होगी------ वैसे देखा जाये तो यह तंबाकू भी किसी खतरनाक आतंकवादी से कम थोड़े ही है --- इस का काम भी हर तरफ़ विनाश की आग जलाना ही तो है !!

आज वह पांच दिन बाद मेरे पास वापिस लौटा था --- बता रहा था कि यह देखो कि हाथ कितने साफ़ कर लिये हैं ---कुछ दिन पहले उस के हाथों पर तंबाकू की रगड़ के निशान गायब थे , ( काश, शरीर के अंदरूनी हिस्सों में तंबाकू के द्रारा की गई विनाश-लीला भी यूं ही धो दी जा सकती !!) …. वह बता रहा था कि पांच दिन हो गये हैं तंबाकू की तरफ़ देखे हुये भी। मैंने सलाह दी कि अपने कामकाज के वक्त भी ध्यान रखो कि किसी साथी से भी भूल कर तंबाकू की चुटकी मत लेना ---- बता रहा था कि आज सुबह ही उसे एक साथी दे तो रहा था लेकिन उस ने मना कर दिया। मुझे बहुत खुशी हुई उस की ये बातें सुन कर। और मैंने उसे कहा कि थोड़े थोड़े दिनों के बाद मुझे आकर मिल ज़रूर जाया करे और अपने दूसरे साथियों की भी इस शैतान से पीछे छु़ड़वाने में मदद करे।

और मैंने उस की इच्छा शक्ति की बहुत बहुत तारीफ़ की --- यही सोच रहा हूं कि तंबाकू छुड़वाने के लिये पहले तो डाक्टर को थोड़ा टाइम निकालना होता है और दूसरा मरीज़ की इच्छा-शक्ति, आत्मबल होना बहुत ज़रूरी है --- वैसे अगर डाक्टर उस समय यही सोचे कि उस के सामने बैठा हुआ वयोवृद्ध शख्स उस के अपने बच्चे जैसा ही है तो काम आसान इसलिये हो जाता है कि अगर हमारा अपना बच्चा कुछ इस तरह का खाना-चबाना शुरू कर दे तो क्या हम जी-जां लगा कर उस की यह आदत नहीं छुड़वायें---- बेशक छुड़वायेंगे, तो फिर इस बच्चे के साथ इतनी नरमी क्यों----यह भी जब तंबाकू रूपी शैतान को लात मार देगा तो इस का और इस के पूरे परिवार का संसार भी तो हरा-भरा एवं सुनहरा हो जायेगा-------और यकीन मानिये कि डाक्टर के लिये इस से ज़्यादा आत्म-संतुष्टि किसी और काम में है ही नहीं, दोस्तो।