रविवार, 18 जनवरी 2009

डाक्टर-मरीज के बीच बढ़ती दूरी से चांदी कूट रहा है कौन ?

पहले हकीम, वैध जी भी कितने ग्रेट हुआ करते थे --नाड़ी देखी, जुबान देखी और बीमारी ढूंढ ली और मरीज भी जगह जगह जा कर टैस्ट करवाने के झंझट से बचा रहता था ---डाक्टर हूं, फिर भी कह रहा हूं कि आज कल तो किसी को कोई तकलीफ़ हो जाती है तो उस की आफत ही हो जाती है ---हर विशेषज्ञ अपने अपने टैस्ट तो कहता ही है , लेकिन किसी बीमारी के विभिन्न विशेषज्ञों को भी अकसर सभी टैस्ट दोबारा ही चाहिये। मरीज़ की हालत देखने लायक होती है --- मुझे ऐसे लगता है कि वह या उस के परिवार वाले शायद बीमारी से ज़्यादा इस पर खर्च होने वाले पैसे की जुगाड़ में लगे रहते होंगे।

अकसर आप सब भी सुनते ही हैं कि जैसे जैसे ये खर्चीले टैस्ट बाज़ार मे आ गये हैं , लाखों-करोड़ों की मशीनें बड़े बड़े कारपोरेट हास्पीटलों में सज गई हैं तो अब इन पर धूल तो जमने से रही --- ये मरीज़ों के टैस्ट करेंगी तो ही इन का हास्पीटल को फायदा है, वरना ये किस काम की !! वो बात अलग है कि इन मशीनों की वजह से बहुत सी बीमारियां जो पहले पकड़ में ही नहीं आती थीं उन का पता चल जाता है और कुछ बीमारियों का तो बहुत जल्द पता भी चल जाता है --- लेकिन फिर भी यह कौन देख रहा है या यह कौन कंट्रोल कर रहा है कि कहीं इन महंगे टैस्टों का प्रयोग कईं जगह पर बिना वजह भी तो नहीं हो रहा। मैं ही नहीं कहता, आम पब्लिक में भी दिलो-दिमाग में यह बात घर कर चुकी है।

आज की जनता यह भी सोच रही है कि जितने जितने ये बड़े बड़े महंगे टैस्ट आ गये हैं ----डाक्टरों और मरीज़ों के बीच की बढ़ती दूरी का एक कारण यह भी है । अब डाक्टर लोग झट से ये टैस्ट करवाने के लिये लिख देते हैं---एक बात और भी है कि एक सामान्य डाक्टर जिसे किसी बीमारी विशेष का इलाज करने के लिेये कोई अनुभव नहीं है , वह भी ये टैस्ट करवाने के लिये लिख तो देते हैं, लेकिन रिपोर्ट आने पर जब किसी स्पैशिलस्ट के पास भेजते हैं तो वह डाक्टर अकसर उन्हीं टैस्टों को दोबारा करवाने की सलाह दे देते हैं -----------मरीज़ की आफ़त हो गई कि नहीं ?

एक तो यह जब से कंज़्यूमर प्रोटैक्शन बिल आया है इस से भी मुझे तो लगता है कि मरीज़ों की परेशानियां बढ़ी ही हैं ---- हर डाक्टर अपने आप को सुरक्षित रखना चाहता है --ऐसे में महंगे टैस्ट करवाने से पहले शायद कईं बार इतना सोचा भी नहीं जाता । यहां ही क्यों, बहुत से विकसित देशों में भी तो करोड़ों अरबों रूपये इसी बात पर बर्बाद हो रहे हैं कि डाक्टर मुकद्दमेबाजी के चक्कर से बचने के लिये अनाप-शनाप टैस्ट लिखे जा रहे हैं -----इस के बारे में एक विस्तृत्त रिपोर्ट मैं दो दिन पहले ही पढ़ रहा था।

कल मैं 17-18 साल के एक लड़के के मुंह का निरीक्षण कर रहा था --- मेरी नज़र उस की जुबान पर गई तो मुझे अपनी मैडीकल की किताब में दी गई तस्वीर का ध्यान आ गया। जब मैं एमडीएस कर रहा था तो एक बहुत बड़ी किताब पढ़ी थी ----Tongue : In health and disease जुबान - सेहत में और बीमारी में !! उस लड़के के जुबान उस की परफैक्ट सेहत ब्यां कर रही थी ---मैंने पास ही खड़े आपने अटैंडैंट को कहा कि किशन, यह देखो एक स्वस्थ जुबान इस तरह की होती है !

ऐसा क्या था उस की जुबान में --- उस का रंग बिल्कुल नार्मल था , और उस का खुरदरापन उस की सेहत को ब्यां कर रहा था ---यह खुरदरापन जुबान की सतह पर मौज़ूद पैपीली (filiform papillae) की वजह से होता है और यह जुबान की अच्छी सेहत की निशानी हैं ----कुछ बीमारियां है जैसे कि कुछ तरह के अनीमिया ( खून की कमी ) जिन में यह पैपीली खत्म हो जाते हैं और जुबान बिल्कुल सपाट सी दिखने लगती है ।

यह तो एक बात हुई ---- जुबान पर जमी काई( tongue coating), जुबान का रंग, मुंह से आने वाली गंध, मुंह के अंदरूनी हिस्सों का रंग, मसूड़ों का रंग, उन की बनावट, मुंह के अंदर वाली चमड़ी कैसी दिखती है -----ये सब उन बीसियों तरह की चीज़ें हैं जिन को देखने पर मरीज़ की सेहत के बारे में काफ़ी कुछ पता चलता है । कुछ समय से यह चर्चा बहुत गर्म है कि मसूड़ों के रोग ( पायरिया ) आदि से हृदय के रोग होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है , और यह भी तो देखा है कि जिस किसी मरीज़ को बहुत ज़्यादा पायरिया है, दांत हिल रहे हैं तो कईं बार जब उस के रक्त की जांच की जाती है तो पहली बार उसे भी तभी पता चलता है कि उसे मधुमेह है।

धीरे धीरे समझ आने लगती है कि पुराने हकीम लोग, धुरंधर वैध अपने मरीज़ों में झांक कर क्या टटोला करते थे ---- वे जो टटोला करते थे उन्हें मिल भी जाता था --वे मिनट दो नहीं लगाते थे और मरीज़ की सेहत का सारा चिट्ठा खोल कर सामने रख देते थे लेकिन शायद आज कल की तेज़-तर्रार ज़िंदगी में इतना सब कुछ करने की फुर्सत ही किसे है------ अपने आप पता लग जायेगा जो भी है टैस्टों में , क्यों पड़े इन झंझटों में ---- कहीं कहीं ऐसी सोच भी बनती जा रही है।

जो काम आप बार बार करते है उस में हमें महारत भी हासिल होनी शुरू हो जाती है ---- किसी असामान्य मुंह से सामान्य मुंह का भेद करना हम जानना शुरू कर देते हैं ----ध्यान आ रहा अपने एक बहुत ही प्रिय प्रोफैसर का --- डा कपिला साहब----- क्या गजब पढ़ाते थे , बार बार कहा करते थे कि खूब पढ़ा करो --- अपना ज्ञान बढ़ाओ क्योंकि जब आप किसी मरीज़ का चैक अप कर रहे हो तो आप वहीं चीज़े देख पाते हो जिन के बारे में आप को ज्ञान है ----- You see what you know, you dont see what you dont know !! कितनी सही बात है ....वे बार बार यह बात दोहराते थे।

जब हम मुंह की ही बात करें तो हमें मुंह के अंदर झांकने मात्र से ही बहुत प्रकार की बीमारियों का पता चल जाता है और दूसरी बात यह भी है कि बहुत सी मुंह की तकलीफ़ें ऐसी भी हैं जो हमारे सामान्य स्वास्थ्य को भी काफी हद तक प्रभावित करती हैं।

यह जो फिल्मी गीत है ना मुझे बहुत अच्छा लगता था ----लगता था क्या , आज भी लगता है, इस के बोल बहुत कुछ बता रहे हैं --दो दिन पहले टीवी पर भी आ रहा था, इसलिये सोचा कि आप के साथ बैठ कर सुनता हूं -- और भी अच्छा लगेगा।