शनिवार, 26 जनवरी 2008

सुप्रभात..............आज का विचार..26जनवरी,२००८.

--"जब मैं एक आवाज़ को सुनता हूं तो सोचता हूं कि उस की तुलना किस से करूं। फिर सोचता हूं कि अगर सभी पर्वतों से निकलने वाली नदियों के मधुर संगीत, आकाश पर उन्मुक्त हो कर विचर रहे सभी पंक्षियों की चहक, मधुमक्खियों के छज्जों से टपकते हुए शहद की ध्वनि और बागों में सभी रंग बिरंगी तितलियों के मनलुभावन रंगों को मिला दिया जाए और इन सब को चांदनी में गूंथा जाए तो शायद आशा भोंसले की आवाज़ बन जाए।"-----दोस्तो, ये शब्द जावेद अख्तर द्वारा आशा भोंसले के लिए २००२ में ज़ी-सिन अवार्ड्स के दौरान कहे गये थे और मैंने इन्हें अपनी डायरी में लिख लिया था....क्योंकि मैंने ऐसी जबरदस्त तुलना आज तक ही देखी है, ही सुनी है - इसीलिए आज के विचार में आप के लिए पेश कर रहा हूं
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सीखो
फूलों से नित हंसनी सीखो,
भोरों से नित गाना,
फल की लदी डालियों से नित
सीखो शीश झुकाना।

सीख हवा के झोंकों से लो
कोमल कोमल बहना
दूध तथा पानी से सीखो
मेल जोल से रहना।

सूरज की किरणों से सीखो,
जगना और जगाना,
लता और पेड़ों से सीखो,
सब को गले लगाना।

दीपक से सीखो तुम
अंधकार को हरना,
पृथ्वी से सीखो सब की ही ,
सच्ची सेवा करना।।
( दोस्तो, यह प्रेरणात्मक पंक्तियों मुझे उस कागज़ पर बहुत साल पहले दिख गईं थीं जिस में मैं एक रेहड़ी के पास खड़ा हो कर भुनी हुई शकरकंदी का मज़ा लूट रहा था.....यह किसी छोटे बच्चों की किताब का कोई पन्ना था जो मुझे हिला गया).....
दोस्तो, अभी तो कोई शक करने की गुजाइश ही नहीं रह गई कि क्यों कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।
अच्छा , दोस्तो, गणतंत्र दिवस की ढ़ेरों बधाईआं।