गुरुवार, 17 जनवरी 2008

छाती में जलन --------आधुनिकता की अंधी दौड़ की देन !


कल ऐसे ही बैठे-बैठे मैंने अपने साथ काम करने वाले एक अन्य डाक्टर से मैंने यह पूछा कि उस ने कितनी बार यह एसिडिटि ( छाती में जलन) खत्म करने वाली गोलियां अथवा कैप्सूल खाए हैं। कभी भी नहीं”- उस का यह जवाब सुन के मुझे कोई ज्यादा हैरानी हुई क्योंकि मुझे भी अभी तक शायद 3-4 बार ही ऐसा कैप्सूल खाने की ज़रूरत पडी होगी। सोचने की बात तो बस यही है कि रोज़ाना ऐसे बीसियों मरीज़ फिर क्यों मिलते हैं जिन्हें छाती में जलन पर काबू पाने के लिए यह कैप्सूल एवं गोलियां सुबह-सुबह ही चाहिए होती हैं।

अकसर इन मरीज़ों को यही सलाह दी जाती है कि उन को इस जलन को ठंडा करने के साथ ही साथ इस की जड़, इस की उत्पति की तरफ भी तो देखने की ज़रूरत है ताकि इस समस्या को जड़ ही से खत्म किया जा सके। इन गोलियों, कैप्सूलों एवं पीने वाली दवाईयों ने तो बस छाती में उस दिन दहक रही आग को ही शांत करना है यह तो बिल्कुल एक टैम्परेरी सा ही काम हुया। लेकिन अपने लोगों की इस टैम्परेरी काम चलाने की आदत ने ही इन दवाईयों को बनाने वाली कंपनियों के सितारों बुलंद किए हुए हैं। इन दवाईयों का तो दोस्तो इस्तेमाल कुछ इतना ज्यादा है कि ऐसे लगता कि जैसे कुछ लोगों ने तो इन को अपने आहार का हिस्सा ही बना लिया है भय तो बस यही है कि कहीं आने वाले समय में इन का इस्तेमाल भी इस माडर्न सोसायटी का एक स्टेटस-सिंबल ही बन कर रह जाए।

ऐसे सभी मरीज़ों को जब मिर्ची खाने से रोका जाता है तो वे अकसर यही कर देते हैं कि दाल-सब्जी के स्वाद के लिए थोड़ी मिर्ची तो खानी ही पड़ती है न।---इसी लिए ये छाती में जलन से निजात पाने के लिए आप को कैपसूल-गोलियां भी रोज़ाना खानी ही पड़ती हैं। जी हां, इस मिर्ची का छाती में होने वाली जलन से बहुत गहरा रिश्ता है। कईं लोग तो ऐसा सोचते हैं कि हरी मिर्ची तो छाती में जलन से परेशान रहने वाले मरीज भी खा ही सकते हैं --- बिल्कुल नहीं, अगर कभी-कभार आप ने हरी मिर्च खानी भी है तो वही खाएं जो बिल्कुल भी तीखी हो.....लेकिन, हां, आप काली मिर्च को इस्तेमाल कर सकते हैं।

आप सब ने यह तो नोटिस किया ही होगा कि इस छाती में जलन के लिए पहले लोग अकसर मीठे सोडे ( बेकिंग सोडा) के एक चम्मच को पानी में घोल कर पी लिया करते थे। है तो वह भी एक बिल्कुल डंग-टपाऊ ( temporary relief) फार्मूला बिल्कुल जलती आग बुझाने जैसे। फिर आईं इस एसिड को खत्म करने वाली गोलियां और पीने वाली शीशीयां जिन का इस्तेमाल पूरे जोरों शोरों से हुया। अब तो दोस्तो इस काम के लिए मिलने वाले तरह-तरह के कैप्सूल लोगों को इतने प्यारे हो गये हैं कि अनपढ़ बंदे को भी इन के अंग्रेज़ी नाम अच्छी तरह से याद हैं।

इन दवाईयों ती तरफ मुंह करने से पहले हमें कुछ बातों की तरफ़ ज़रूर ध्यान देना चाहिए। मिर्ची के इस्तेमाल की बात तो हम ने पहले ही कर ली है, लेकिन दिन में बार-बार चाय पीने वालों में, मद्यपान करने वालों में, मैदे (refined flour) का ज्यादा इस्तेमाल करने वालों में, ज्यादा चिकनाई (fats) , जंक-फूड खाने वालों में, ज्यादा मिठाईयां खाने वालों में, रात को ठूस ठूस कर खाना खाने वालों में तथा सारा दिन बैठे रहने वालों में यह छाती में जलन की तकलीफ बहुत ही आम बात है। एक तरह से देखा जाए तो यह हमारी खुद की ही मोल ली बीमारी है। दोस्तो, इस से बचने के लिए मैदे-जैसे सफेद आटे से बनी हुईं रबड़ जैसी चपातियों से भी बचने की जरूरत है।

जो लोग अकसर ज्यादा तनावग्रस्त हैं, उन में भी यह एसिडिटी की समस्या तो अकसर रहती ही है। तनाव को दूर रखने का तो सब से बढ़िया तरीका तो यही है कि रोज सवेरे 30-40मिनट तेज-तेज सैर की जाए। यह तो सारे शरीर को तंदरूस्त रखने के साथ-साथ हमारे मन को भी प्रसन्नचित रखती है। तनाव को दूर रखने के लिए मैडीटेशन का भी बहुत ही ज्यादा रोल है। रात में सोने से पहले कम से कम दो-तीन घंटे पहले खाना खा लेना ज़रूरी है और रात में खाने के बाद भी थोड़ा टहलना ज़रूरी है।

दोस्तो, विवाह-शादियों, पार्टियों में भी अकसर देखा जाता है कि खाने-पीने के सभी स्टालों पर दौड़ सी लगी होती है। बारात के आने से पहले ही भूख को अच्छी तरह से चमकाने के लिए गोल-गप्पे, चाट-पापड़ियां, टिक्कीयां, नूडल, पाव-भाजी, फ्रूट-चाट और फिर कोफते, शाही पनीर, दही-भल्लों एवं दाल-मक्खनी के साथ तीन-चार नान का जश्न मनाने की ललक और इस सब के बाद गुलाब-जामुन, गाजर के हलवे, मूंग के दाल के हलवे और साथ ही साथ एक ही प्लेट में एक साथ डाली गईं आईसक्रीम-जलेबियों की शामत सी जाती है---- आखिर कैसे रह जाए कोई भी स्टाल हमारी नज़र से बच कर ??--- लेकिन बस उस दिन रात में छाती में जलन की तो क्या, शायद उल्टियों की तैयारी पूरी हो गई।

दोस्तो, कभी कभार अगर थोड़ी बहुत बदपरहेज़ी करने की वजह से छाती में जो जलन सी महसूस होती है उस को तुरंत ठीक करने का एक सुपरहिट घरेलू नुस्खा यही है कि फ्रिज में रखे ठंडे दूध के दो-चार घूंट पी लें---उसी समय आराम मिल जाता है। अपने आप ही छाती में जलन के लिए गोलियां-कैप्सूल खाते रहना बिल्कुल उचित नहीं है। अगर आप बार-बार होने वाली छाती की जलन से परेशान हैं तो अपने क्वालीफाइड डाक्टर से मिलें--- अगर वह कोई दवाईयां लेने की सलाह देता है तो वह आप ज़रूर लें और इससे शायद कहीं ज्यादा जरूरी है कि जो भी परहेज बताया गया है, वह भी बात पूरी तरह से मान लें।

डाक्टर के पास इस छाती में जलन वाली तकलीफ के लिए जाने से पहले आप एक बार यह जरूर देख लें कि क्या आप का खाना-पीना ठीक है, जीवन-शैली ठीक है, क्या आप पूरी नींद लेते हैं.....अगर यह सब कुछ ठीक होने के बावजूद भी आप को अकसर छाती में जलन रहती है तो फिर आप को अपने डाक्टर से मिलना ज़रूरी है। वह फिर आप का पूरा निरीक्षण करेगा, क्या पता किसी बंदे के पेट में छोटा-मोटा ज़ख्म (peptic ulcer) ही हो जो जीवन-शैली में किसी भी तरह का परिवर्तन किए बिना इन कैप्सूल-टेबलैट्स से थोड़ा बहुत दब तो जाता हो लेकिन पता नहीं सही सलाह के बिना वह कब फूट पड़े, क्या पता किसी महिला को पित्ते की पथरीयों की वजह से यह शिकायत रहती हो, या फिर क्या पता किसी बंदे में उस के शरीर में शराब से होने वाले दुष्परिणामों का घड़ा ही भर चुका हो जिस की वजह से वह छाती की जलन से परेशान हो। इस सब की एक विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच होनी जरूरी है।

दोस्तो, बहुत सारे लोगों में केवल अपनी जुबान के ऊपर थोड़ा कंट्रोल कर लेने मात्र से ही यह छाती की जलन उड़न-छू हो जाती है। वैसे बात यह है भी सोचने वाली की केवल अपनी जिह्वा के स्वाद के लिए हम इतनी तकलीफ़ सहते रहें....क्या यह ठीक है !!

इस ब्लाग की अगली पोस्टों को किन विषयों को देखना चाहेंगे, अगर हो सके तो बताने का कष्ट करें। धन्यवाद !