शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007

ये 1.31 पैसे, 1.69पैसे का झंझट....

जब कभी भी कोई बंदा कहीं बूथ से फोन करता है तो बिल कुछ ऐसा ही आता है...1.31पैसे, 1.69पैसे.....इस से तो ग्राहक का ही उल्लू बनता है। दुकानदार अकसर वापिस पैसै लौटाता नहीं है, ऐसे में ग्राहक की स्थिति बड़ी एम्बेरिसिंग हो जातीहै और वह खिसियानी सी हंसी हंस कर दुकान से बाहर निकल जाता है। अब 1.31 पैसे के लिए 2 रूपय़ ग्राहकों से लेना तो एक संभ्रांत लूट नहीं तो और क्या है भला। दुकानदार की कमीशन तो पहले से बिल में लगी ही होती है। मैं अकसर सोचता हूं कि कंपनियां जब ये टैरिफ वगैरह फिक्स करती हैं तो उन्हें क्या इन बातों का ध्यान नहीं रखना चाहिए। बात पचास-साठ पैसे की नहीं है, जब आप इस रकम को करोड़ो से गुणा करते हैं तो पाते हैं कि आम जनता को इतने करोड़ो का चूना लगाया जा रहा है और वह भी बेहद संभ्रात ढ़ंग से। ऐसे ही कई तरह के बिल जब हम भरने जाते हैं तो उस में भी यह चिल्लर का बेङद झंझट होता है। इन बातों के बारे में आप ने भी अगर अभी तक नहीं सोचा तो जरूर सोचिए और लोगों को भी सोचने पर मजबूर कीजिए । आज के जमाने में सब काम राऊंडिंग से होता है, तो फिर इन तमाम जगहों पर चिल्लर का झंझट क्यों।
मैं दो-चार बार एक बड़ी कंपनी की सब्जियों की दुकान पर हो कर आया हूं ...दाद देनी पड़ेगी.....अगर सब्जी का वज़न 613 ग्राम है तो पैसे भी 613ग्राम के ही लगेंगे। आने वाले समय में ऐसे संस्थान जो ग्राहक का ध्यान रखेंगे पल्लवित -पुष्पित होंगे। आप का क्या ख्याल है ?