शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

किताबें हमेशा मांग कर पढ़ने वाले ये लोग........

मुझे शिकायत है उन लोगों से जो मांग कर किताबॆं एवं पत्रिकाएं ले तो जाते हैं लेकिन वापिस देने में बेहद तकलीफ़ महसूस करते हैं। मैं स्वयं इस का भुक्त-भोगी हूं। आदमी अपनी रूचि की किताबें कहां कहां से खरीद कर लाता है ताकि फुर्सत में उन के साथ का आनंद ले सके। लेकिन इन मांगने वालों की वजह से बड़ा दुःखी होना पड़ता है। इन महान आत्माओं को स्वयं समझना चाहिए कि किताबें पढ़ कर लौटाने के लिए होती हैं। वैसे अगर किसी में किताब खरीद कर पढ़ने की समर्था है तो उस से अच्छी बात कोई है ही नहीं। किताबें तो हमारा जीवन साथी होती हैं। मैं कुछ दिन पहले बड़े शौक से एक सुप्रसिद्ध लेखक की एक पुस्तक लाया जिस का शीर्षक था....चलो चादं को छू लें। अगले दिन ही मैं उसे पढ़ रहा था तो मेरा कज़िन कहने लगा कि वह उसे पढ़ना चाहता है। मैंने उसे कहा कि यार, मुझे पढ़ लेने दो , एक हफ्ते बाद तुम्हें दे दूंगा। खैर, कहने लगा कि मैं तो फोटो-स्टेट ही करवा लूंगा। और किताब मेरे हाथ से लेकर हिसाब लगाने लग गया कि फोटो-स्टेट करवाने में कितने पैसे लगेंगे। हां, जनाब, उस ने कुछ क्षणों में कैलकुलेट भी कर लिया कि उस के केवल बीस रूपये खर्च होंगे। दो दिन बाद रविवार के दिन वह सुबह सुबह भी आ गया कि भैया मुझे किताब दो ...फोटोस्टेट करवा के अभी आप को वापिस दे कर जाता हूं. मुझे इन प्रेरणात्मक किताबों को भी फोटो-कापी करवा कर पढ़ने वालों से बड़ी चिढ़ है। खैर, आज एक सप्ताह बीतने को है और मेरी चांद को छूने की प्रक्रिया बीच में ही अटकी हुई है, जी हां, अभी मेरे कज़िन ने उस पुस्तक को वापिस नहीं लौटाया है, पता नहीं लौटायेगा भी कि नहीं। खैर, आज मेरा बेटा उस किताब के बारे में जब पूछ रहा था तो मैंने उस हंसी हंसी में यह कह कर जवाब दिया कि यार, तेरे पापा को चांद छूने का तैयारी करते देख राजू( बदला नाम) कैसे पीछे रह जाता, उसे लगा कि यार मुझ में क्या कमी है, मैं ही क्यों न चांद को पहले छू लूं। इसीलिए रविवार सुबह-सुबह ही वह किताब उड़ा कर ले गया ताकि छुट्टी के दिन उस किताब में चांद को छूने के फार्मूले को पढ़ कर वह अगले ही दिन मेरे से पहले चांद को छूने का रोमांच हासिल कर ले। बस इस बात के ठहाकों से ही मैं उस किताब से अलग होने का दुःख भूल सा गया हूं----लेकिन मेरी शिकायत किताबों, पत्रिकाओं की ऐसा उधारी करने वालों से हमेशा बनी रहेगी।
आप के साथ कुछ लाइनें साझी करना चाहता हूं.......
माना कि परिंदों के पर हुया करते हैं,
ख्वाबों में उड़ना कोई गुनाह तो नहीं।......

दिनांक....१२.८.१४...अभी तक वह किताब वापिस नहीं लौटाई गई।