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शनिवार, 10 मई 2008

हिंदी चिट्ठाजगत की सेवा...


कल रात सोने से पहले में दीपक भारतदीप जी के ब्लॉग दीपकबाबू कहिन की एक ताज़ा-तरीन पोस्ट पढ़ रहा था जिस में उन्होंने उड़न तश्तरी ब्लॉग के लेखक श्री समीर लाल जी के अभियान के बारे में लिखा है जिस के अंतर्गत समीर जी हिंदी चिट्ठाजगत की प्रगति के लिये प्रयास कर रहे हैं।
मैं भी पिछले दो तीन दिन से नोटिस तो कर रहा था कि समीर लाल जी की जहां भी टिप्पणीयां दिखती थीं तो साथ में दो-तीन ये लाइनें भी नज़र आती थीं...जिन्हें देख कर यही लगता रहा कि समीर जी बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं, हमें भी तो इस यज्ञ में अपना योगदान देना चाहिये।
समीर जी लिखते हैं कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें ...यही हिंदी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है। वह आगे लिखते हैं कि एक नया चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरू करवायें और हिंदी चिट्ठों की संख्या और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
मैं अपनी ही बात बताता हूं...मुझे इंस्क्रिप्ट हिंदी टाइपिंग तो पिछले पांच-छः साल से आती है लेकिन मुझे यह हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में बिलकुल पता न था ....पता तब लगा जब मेरा 16वर्षीय बेटा कुछ सर्च कर रहा था तो उसे रवि रतलामी जी का हिंदी ब्लॉग दिखा जिस के बारे में उस ने मुझे बतलाया कि हिंदी में भी ब्लॉगिंग शुरु हो चुकी है। फिर एक –दो दिन बाद ही उस ने बताया कि अब नेट पर सीधे ही हिंदी में भी लिखा जा सकता है......और मैंने भी इंस्क्रिप्ट स्टाइल से ट्राई किया तो सफलता मिली और इस तरह से मैंने ब्लॉगिंग की दुनिया में पांव रखा।
अब इस पोस्ट के माध्यम से मैं कुछ सुझाव आप सब बलॉगरवीरों को देना चाहता हूं( यह शब्द ब्लागरवीर मैंने लवली कुमारी जी के ब्लोग से चुराया है, मुझे अच्छा लगा था कि किसी ने हम लोगों को वीर तो कहा !!!)……ऐसा समझता हूं कि देश-विदेश में बहुत से लोग हिंदी चिट्ठाजगत में कूदना तो चाहते हैं लेकिन शायद उन्हें भी मेरी तरह इस के बारे में जानकारी नहीं है।
----सब से पहला सुझाव तो मेरा यही है कि आप सब लोग मिल कर एक दो-तीन पेज का हिंदी चिट्ठों के बारे में एक परिचय सा तैयार करें। आप सब लोग कलम के मंजे हुये खिलाड़ी हैं ....इस काम में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये।
होता हूं है ना कि किसी को हिंदी चिट्ठों के बारे में पूरे विस्तार से बतलाना मुझ जैसे कम-पेशेन्स वाले बंदों के लिये थोड़ा मुश्किल सा काम लगता है । अगर हम लोग दो –तीन पेज का एक डाक्यूमैंट तैयार कर के रखें और इस के प्रिंट-आउट हम अपने पास रखें और जहां भी ज़रूरत हो इसे अपने मित्रों, संबंधियों एवं परिचितों में बांटते चलें ताकि दूसरे लोगों को इस हिंदी चिट्ठाकारी का पता लग सके।
इन दो –तीन पन्नों में पहले तो यही बताया गया हो कि आप कंप्यूटर पर हिंदी बिना हिंदी टाइपिंग सीखे हुये भी लिख सकते हैं......यह यूनिफोंट, कृतिदेव आदि के बारे में भी बताया जाना चाहिये---सीधे सादे शब्दों में और संक्षेप में।
उस के बाद ब्लागिंग के बारे में थोड़ा बतलाया जाना चाहिये और हिंदी में ब्लागिंग के बारे में भी कुछ लिखा जाना चाहिये।
सोच रहा हूं कि कईं धुरंधर लेखक और साहित्यकार हैं जिन्हें कंप्यूटर-नेट से कुछ भी लेना देना नहीं है...इन लोगों के लिये हम इंक-ब्लोगिंग कंसैप्ट की भी बात करनी चाहिये कि शुरूआत तो आप हस्त-लेखन से भी कर सकते हैं।
हमें यह प्रचार-प्रसार खास कर ऐसी जगहों पर करना चाहिये जहां हिंदी के प्रतिभाशाली चाहवान पाये जाने की विशेष उम्मीद होती है जैसे कि विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग, पत्रकारिता संस्थानों के छात्र आदि आदि......देखा जाये तो रास्ते तो बहुत हैं लेकिन बस हमारे मन में हिंदी चिट्ठों की सेवा करने की तमन्ना होनी चाहिये।
यह जो दो-तीन पन्नों का डाक्यूमैंट तैयार हो उस में अगर थोड़ा सा वैब-राइटिंग के कायदों के बारे में भी थोड़ी बात कर ली जाये तो बेहतर होगा।
मुझे तो यह भी लग रहा है कि इस तरह की कोई सामूहिक ब्लाग ही हम लोग क्यों न शुरू करें जिस में हम लोग हर नये आने वाले का स्वागत करें और अपने तजुर्बे उस के साथ बांट कर उसे उत्साहित करें क्योंकि शुरू शुरू में यह हौंसला-अफज़ाई की बहुत ज़्यादा ज़रूरत रहती है।
मुझे लगता है कि ऐसी कुछ चिट्ठे पहले से ही हैं तो जिन में हिंदी ब्लागिंग के विभिन्न पहलुओं की जानकारी हिंदी में दी तो गई है.....लेकिन वे तो हो गई पोथियां.......हमें नये लोगों को इधर खींचने के लिये एक कायदा( छोटी सी पुस्तक जिस हम लोग पहली क्लास में पढ़ते थे जिस में टेबल्स और वर्णमाला रहती थी....कुछ कुछ याद आया???)….भी तो तैयार करना होगा।
हां, अगर हिंदी ब्लागिंग से परिचय करवाने हेतु जो हम दो-तीन पन्ने तैयार करें अगर उस को अंग्रेज़ी वर्ज़न भी साथ हो तो अच्छा होगा....क्योंकि कुछ लोगों को इतने वर्षों बाद हिंदी जगत में वापिस आने में थोड़ी दिक्कत होना स्वाभाविक ही तो है।
जाते जाते मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि ठीक है नेट पर तो सूचनाओं का अंबार है लेकिन हम-आप सब लोग मिल कर जो पिछले कुछ अरसे से इस हिंदी चिट्ठाजगत की चारागाह में चरते चले जा रहे हैं हम क्यों ना मिल जुल कर हिंदी चिट्ठाजगत के बारे में दो-तीन पन्नों तैयार करें और फिर उन के चालीस-पचास प्रिंट आउट निकाल कर अपने पास रखें जिन्हें किसी भी जिज्ञासु को थमा दिया जाये। और हां, इन पन्नों में हिंदी चिट्ठों के ऐग्रीगेटर्ज़ के बारे में बताया जाना ज़रूरी है।
अब यह सुझाव मन में आ रहा था लिख दिया है.....अब गेंद आप सब के पाले में है.....आप क्या कहते हैं ?....लेकिन एक बात तो तय है कि आंकड़े तो बहुत हैं कि इस साल के अंत तक इतने हिंदी ब्लाग हो जायेंगे, अगले साल के अंत तक इतने हो जायेंगे और हिंदी चिट्ठाकार इतनी इतनी कमाई करनी भी शुरू कर देंगे....लेकिन क्या यह हम सब के हाथ-पैर मारे बिना संभव हो जायेगा.......कहीं ये भी कोरे भविष्यवाणी के आंकड़े ही ना बन कर रह जायें............इसलिये कुछ तो सक्रिय भूमिका इस में भी हमें निभानी होगी..........और यह भूमिका क्या होगी...यह हम सब मिल जुल कर तय करेंगे !!!

शुक्रवार, 9 मई 2008

इंक ब्लॉगिंग के साथ प्रयोग...भाग 3


आज की इस पोस्ट में थोड़ी गड़बड़ यह हो गई है कि इंक-ब्लोगिंग के लिये मैं पेज तो बहुत बड़ा इस्तेमाल कर बैठा लेकिन जब पोस्टिंग से पहले स्कैनिंग करने लगा तो पता चला तो कि यह साइज़ तो मेरा स्कैनर लेता ही नहीं है। इसलिये इन दोनों पन्नों की फोटो लेकर ही पोस्ट पर डालनी पड़ी....इसलिये अगर इन को पढ़ने के लिये अगर इन पर क्लिक करने की ज़हमत उठानी पड़े तो तकलीफ सह लीजिये...वैसे मैं आगे से इस का खास ध्यान रखूंगा कि आप को इंक-ब्लागिंग में बार बार क्लिक करने की ज़रूरत न पड़े। बाकी के कुछ अनुभव अगली पोस्टों में डालता हूं।






मंगलवार, 8 अप्रैल 2008

कलम चिट्ठाकारी का असली रूप---हिंदी ब्लोगिंग में पहली बार !





आज सुबह से घर में ही बैठा हुया हूं....पता नहीं क्रियएटिव ज्यूस कुछ ज़्यादा बह रहे हैं...पहले तो इस ब्लाग का यह टेंपलेट बनाने के लिये एक स्लेट पर इस का शीर्षक लिखा....लेकिन फिर ध्यान आया कि इंक-ब्लागिंग की तो बात हो गई...तो चलिये आज मूल रूप से कलम चिट्ठाकारी का ध्यान कर के कुछ लिखा जाये। बस, यह तुच्छ सा प्रयास है। अपने उन महान मास्टरों के नाम जिन्होंने ऐसा लिखने की ट्रेनिंग दी....सब कुछ उन्हीं महान आत्माओं की ही देन है, दोस्तो। अपना तो बस यही है कि अब बड़े होने की वजह से दिमाग चलाना आ गया है, और कुछ नहीं, फ्रैंकली स्पीकिंग !!

जब मैं यह एजवेंचर कर रहा था तो मेरा छठी कक्षा में पढ़ रहा बेटा बहुत रोमांचित हो रहा था....उस ने यह रोशनाई, यह दवात, यह कलम आज पहली बार देखी थी। उस ने भी लिखने की थोड़ी ट्राई की तो है। बस, और क्या लिखूं....कुछ खास नहीं है। बस, उन दिनों की तरफ ही ध्यान जा रहा है जब तख्ती के ऊपर तो इस कलम से लिखना ही पड़ता था...और रोज़ाना नोटबुक पर सुलेख का एक पन्ना भी इसी कलम से ही लिखना होता था...लेकिन समस्या तब एक ही लगती थी कि झटपट लिख कर भी निजात कहां मिलती थी.....जब तक सूखे नहीं कापी को बंद भी कहां कर सकते थे।
बच्चों को अकसर कहता हूं कि उन दिनों की हुई मेहनत रूपी फसल के ही फल आज तक चख रहे हैं। वैसे आप का इस कलम चिट्ठाकारी के बारे में क्या ख्याल है, लिखियेगा। अच्छा लगेगा।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2008

खत के लिये शुक्रिया........इंक ब्लॉगिंग स्टाइल !!



अभी अभी सोचा कि क्यों न पिछली पोस्ट पर टिप्पणीयां करने वाले ब्लागर बंधुओं को एक खत के माध्यम से ही धन्यवाद कह दूं। इसलिये इन बंधुओं के नाम लिखे खत को इस इंक-ब्लागिंग स्टाइल में प्रस्तुत कर रहा हूं।

गुरुवार, 3 अप्रैल 2008

हिंदी ब्लोगिंग में अनूठा प्रयोग.......कलम और की -पैड का संगम !


ज़रा आप भी सोचिये कि अगर हिंदी ब्लोगिंग में अगर कुछ इस तरह के प्रयोग होने लगें कि कलम और की-पैड का संगम हो जाये तो कैसा लगेगा ! वैसे एक छोटा सा प्रयत्न तो मैंने आज कर के गेंद को आप के पाले में फैंका है......

शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

हिंदी बलोगरी के मंजे हुये खिलाडीयों के नाम एक खुला पत्र.....

इस खुले पत्र के माध्यम से मैं हिंदी ब्लोगगिरी के सभी मंजे हुये खिलाडीयों का ध्यान एक बहुत ही विषम सी समस्या की तरफ दिलाना चाह रहा हूं.......नहीं, नहीं , यह भड़ास वाला मामला तो बिल्कुल है ही नहीं।
मेरा तो शिकायत बस यही है कि हिंदी बलोगर्ज़ अकसर किसी के प्रश्नों का जवाब नहीं देते। किसी की ब्लोग पर ,किसी की इ-मेल पर कोई टैक्नीकल बात अच्छी लगे और अगर किसी से किसी प्राइमरी स्कूल के बच्चे जैसी विनम्रता से भी पूछ लो तो भी दूसरी तरफ वाला शायद यही सोचता है कि .....चल हट, खुद ढूंढ ले। अब मुझे लगता है कि इस के बारे में आप मेरे से सहमत नहीं होंगे ...आप शायद कहेंगे कि नहीं, नहीं ,यहां तो सब बहुत ही हैल्पिंग हैं, तुम कुछ भी पूछ कर तो देखो, देखो कितने लोग जवाब देने को तैयार खड़े हैं। ........लेकिन मेरा अनुभव इस मामले में कुछ ठीक तरह का नहीं है। ठीक है, हम सब अच्छे पढ़े लिखे लोग हैं.............इंटरनैट पर बैठे हैं तो यह तो कह ही सकता हूं....कोई बात ढूंढनी होगी तो ढूंढ ही लेंगे...इंटरनैट भरा पड़ा है...सभी विषयों पर ताज़ा तरीन जानकारी से....लेकिन फिर हिंदी बलोगरी में कुछ ऐसी बात है कि आदमी किसी तरह के उम्र के भेदभाव के बिना भी अपने से छोटों को भी कईं बातें पूछ बैठता है, लेकिन अकसर मैं देखता हूं कि जिन से भी यह प्रश्न पूछे जाते हैं उनका वही कंधे झटकाने वाला एटीट्यूड नज़र आता है.......आई डोंट केयर। हैल विद यू । हां, अगर आप को लगता है कि यह हैल्पिग आप के अपने नेटवर्क ( टिप्पणीकारों का म्यूचूयल एडमाईरेशन क्लब)में ही हो रही है तो भी ठीक बात नहीं है, सारे संसार को पता लगने दो , भाई, कि हम लोग एक दूसरे से क्या सीख रहे हैं। इस में आखिर दिक्कत है क्या !
अच्छा एक बात और यह भी कहनी है कि मेरी दूसरी पोस्ट मेरी स्लेट ( http://chopraparveendr.blogspot.com) पर मैंने पिछले दिनों कुछ प्रश्न पूछे थे (देख लेंगे तो बेहतर होगा) कि क्या हम हिंदी बलोगिंग में कुछ याहू, आंसर्ज़ जैसा कुछ शुरू नहीं कर सकते। कोई रिस्पांस नहीं आई। मेरी शिकायत यही है कि कुछ इस तरह के प्लेटफार्म बनाये जायें जिस से कि कोई नया हिंदी बलोगर जो भी इस बलोगरी में कदम रखे , वो अपने आप को खोया हुया सा महसूस न करे। और तो और, अगर हम ऐसा कुछ नहीं भी कर सकते ......तो कम से कम मिल जुल कर एक ऐसा ग्रुप ब्लाग ही शुरू करें जिस में विभिन्न बलोगर्ज़ ( जो भिन्न भिन्न विषयों के अच्छे जानकार हों) हों, और वे उन से पूछे सभी प्रश्नों के जवाब देने की कोशिश करें। लेकिन उस में शर्त यह होनी चाहिए कि किसी भी तरह के उत्पादों को प्रमोट नहीं किया जाये। बिल्कुल सटीक जानकारी प्रश्न पूछने वाले को उपलब्ध करवा दी जाये, बस। या, अगर नहीं भी पता उस के प्रश्न के बारे में कुछ तो कम से कम उसे थोड़ा मार्ग-दर्शन तो दे ही दिया जाये। क्या है ना जब कोई किसी से प्रश्न पूछता है तो बहुत उम्मीद से पूछता है, यह शायद एक डाक्टर से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता।
इस यज्ञ में मेरी आहूति.........मेरी यही आहूति है कि किसी तरह के भी स्वास्थय एवं चिकित्सा विज्ञान से संबंधित विषयों के प्रश्नों के जवाब मैं हिंदी में देने की शत-प्रतिशत कोशिश करूंगा......अगर मुझे उस विषय के बारे में नहीं भी पता तो मैं कहीं से भी ढूढ कर , किसी विशेषज्ञ का साक्षात्कार करने के बाद , बिल्कुल सटीक जानकारी उस तकलीफ के बारे में आप तक पहुंचाऊंगा। यह मेरा प्रोमिस है और मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि अगर आप कोई ऐसी पहल करेंगे तो मैं जब तक भी इस हिंदी बलोगिंग से जुड़ा रहूंगा.............आप में से किसी को भी डिच नहीं करूंगा। हैल्थ-साइंसज़ के हिंदी में प्रचार-प्रसार की सारी जिम्मेदारी आप मेरे ऊपर बिना झिझक डाल सकते हैं।
देखना ,दोस्तो, अगर कुछ इस के बारे में कर सकें तो ........................Please dont feel offended if you find some words a bit harsh......लेकिन मेरी यही बुरी आदत है कि लिखते हुये फिर मैं न तो आव देखता हूं न ही ताव। इसलिए हाथ-जो़ड़ कर पहले से ही क्षमा-याचना कर लेता हूं...........इसी में ही बचाव है।

शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

टिप्पणीयों पर टिप्पणी...

बहुत अच्छा, ठीक है, बहुत बढ़िया,..........हिंदी ब्लोगर्स पार्क में घूमते घूमते पिछले कुछ हफ्तों से कुछ ब्लोग्स देखें हैं और बहुत सी टिप्पणीयां देखी हैं। इन सब को देखने के बाद मेरे मन में कुछ विचार आ रहे है। पता नहीं ये विचार कितने सिल्ली हों, लेकिन मैंने तो अपनी स्लेट पर इन्हें लिखने का फैसला कर लिया है। जो कुछ भी इन टिप्पणीयों के बारे में मेरे मन में है, वह इस तरह से है......
मार्ग-दर्शक टिप्पणीयां....मुझे याद है जब मैंने हिंदी ब्लोगरी में नया नया पांव रखा था, तो मुझे शास्त्री जी की कुछ इस तरह की ही टिप्पणीयां मिलीं......जिन्होंने मेरा मार्ग-दर्शन किया—जैसे कि उन्होंने मुझे फोंट और टेंप्लेट के बारे में बताया। और मैंने उन्हें माना भी, इसलिए मैं चाहे कभी भी कितना भी इस हिंदी ब्लोगरी में पुराना हो जाऊं, मैं हमेशा इन्हें याद रखूंगा कि जब मैं इस पार्क में चलना सीख रहा था तो किसी ने मेरी उंगली पकड़ी थी।
उत्साह-वर्धक टिप्पणीयां.....इस प्रकार की टिप्पणीयां मुझे बहुत से लोगों से मिलीं...विशेषकर ज्ञानचंद पांडेय जी, रेडियोवाणी के यूनुस जी की टिप्पणीयां शुरू शुरू में ब्लोगर्स का हौंसला बहुत बुलंद करती हैं।


.........................................मैं तो फिर एक बार लिखना शुरू करता हूं तो फिर यह भी ध्यान में नहीं रखता कि पढ़ने वालों पर भी थोड़ा रहम करना चाहिए। सो, अब इस तरह की श्रेणीयां लिखना लिखना बंद कर रहा हूं और सीधा अपनी बात पर आता हूं।
भई, मै तो टिप्पणी उस को ही समझता हूं कि जिसे लिखे बिना आप भई बस रह ही न सको । जिस लिखने में हमें कभी आलस्य न आए, .....न इस तरह का बोझ महसूस हो कि यार अब कौन इस टिप्पणी को लिखने के लिए उस फार्म पर अपना यूज़र नेम भरे, कौन यूआरएल भरे.......बस, जब इस तरह का आलस्य मन में आये तो समझना चाहिए कि हम दिल से उस ब्लोगर को कुछ कहना चाह ही नहीं रहे हैं। हम तो बस यही बताना चाह रहे हैं कि भई हमने तो तुम्हारी पोस्ट पढ़ ली है, तुम भी हमारी पढ़ा करो और टिप्पणी दिया करो। वैसे ऐसा करना अपने आप को किसी बंधन में कैद करने जैसा लगता है। मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है कि कुछ दिन पहले ही श्री सुरेश चिपलूणकर जी के ब्लोग पर एक बहुत ही बढ़िया पोस्ट थी जिस पर कुछ बातें कहीं गईं थीं कि अपनी ब्लोग को कैसे पापुलर बनाया जाये...उस में कुछ इस तरह की भी बहुत सुंदर सी बात कही गई थी कि आप चाहे किसी की पोस्ट पढ़ो या नहीं, सीधा पेज खुलने पर टिप्पणी पर क्लिक मारो, और दिन में ऐसी कईं टिप्पणीयां दे मारो । वैसे कईं एक-दो या कुछ शब्दों की टिप्पणीयों से कईं बार कुछ ऐसा ही लगता है।
वैसे मैं तो सोचता हूं कि टिप्पणी वह हो , जो या तो बलोगर की किसी ताकत को निकाल कर बाहर लाये, उसे बताए कि तुम्हारी ब्लोग की या पोस्ट में मुझे ये ये बातें बहुत पसंद हैं, ये ये बातें हमारे मन को छू जाती हैं। या टिप्पणी वह भी है जो कि ब्लोगर को गाइड करें कि वह अपनी कमियों को किस तरह से दूर करे या उस के मन में कुछ शंकाएं हैं तो टिप्पणीकार उन का निवारण ही कर डाले।
मुझे शुरू शुरू में इस कमैंट्स माडरेशन के बारे में कुछ शंकाएं थीं, एक दो पोस्टें भी लिखीं...लेकिन एक बार तरूण जी( निठल्ला चिंतन बलोग ) ने ऐसी एक टिप्पणी भेज कर ऐसी तसल्ली करवा दी कि दोबारा फिर कभी ऐसी शंका उत्पन्न ही नहीं हुई । लेकिन मुझे वह अपराध-बोध हमेशा सताता रहेगा कि जब मेरी तो तसल्ली हो गई, लेकिन मैंने तुरंत उस पोस्ट को और टिप्पणी को डिलीट कर दिया.....यह गिल्टी-कांशिय्सनैस तब और भी बढ़ गई जब मेरा पांचवी कक्षा में पढ़ रहे बेटे ने अगले दिन मुझे यह कहा कि पापा , आप को ऐसा तो नहीं करना चाहिए था। ( हां, वह अपना हमराज़ ही है, नैट पर कुछ भी करते हुए सारा समय साथ ही बंध कर जो बैठा रहता है) मेरे पास उस की बात का कोई जवाब नहीं था, लेकिन मैंने उसे इतना एश्यूर कर दिया कि बेटा, सॉरी, अब कभी आगे से ऐसा नहीं करूंगा।
पिछले कुछ दिनों पहले संजय तिवारी की विस्फोट ब्लोग पर उन की (तरूण )एक और टिप्पणी देख कर मन बहुत खुश हुया जिस में उन्होंने लिखा था कि आप लोग अपनी बलोग को एक डॉयरी की तरह ही क्यों नहीं लिखते हो, वैसे तो ब्लोग का सही मतलब भी तो यह है।
तो, मेरा इतना ही अनुग्रह है कि जब किसी को भी टिप्पणी हम दें तो शब्दों को दिल खोल कर इस्तेमाल करें....न टाइम की परवाह करें, और ना ही किसी और चीज़ की.....बस उस समय तो केवल अपनी बात उस बलोगर तक पहुंचाने की ही हमें फिक्र हो। पता नहीं हमारी उस टिप्पणी ने क्या काम करना होता है। यह तो भई एक वार्तालाप है ,अगर हम दिल से नहीं करेंगे, तो कैसे कुछ असर होगा। नहीं होगा ना, तो फिर आज से टिप्पणी भी पूरे दिल से दिया करेंगे। अच्छा पता सब को बहुत ही जल्दी लग जाता है कि यह टिप्पणी सुपरफिशियल है या मन से निकली आवाज़ है......देखो, भई, कोई भी मांइड तो करे नहीं , लेकिन बहुत ही ब्रीफ सी टिप्पणी पढ़ कर मज़ा नहीं आता। अगर किसी बात की तारीफ करनी है तो खोल कर करें ,ताकि ब्लोगर को अच्छा लगे, और अगर उस को किसी कमियों , खामियों से अवगत करवाना है तो भी पूरे विस्तार से करें ताकि उस को यह आभास भी न हो कि बिना जगह टांग ही खींची जा रही है,......उस को कुछ यूज़फुल टिप्स बताये जायें। मैंने जो कुछ हफ्तों में देखा है वह यही है कि हिंदी बलोग्री में ज्ञान का भरपूर भंडार है....एक से एक विद्वान हैं...इसलिए हमें एक दूसरे से बहुत कुछ सीखना है.......यह कोई अंग्रेजी भाषा की तरह कोई ठंडा सा माध्यम नहीं है, यहां पर सब लोग बहुत गर्मजोशी से मिलते हैं, बाते करते हैं और टिप्पणीयां देते हैं।
लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि हम लोग एक दूसरे को कोई संबोधन करते हुए क्यों झिझकते हैं, डरते हैं या ऐसे ही अंग्रेज़ी बलोगरी की परंपराओं का पालन करना ही अपना धर्म समझ बैठे हैं।यह बात सोचने की है। मैं भी शुरू शुरू में बहुत इस्तेमाल किया करता था...दोस्तो, ..लेकिन अब मैंने भी अपने आप पर कंट्रोल कर लिया है कि मैं ही क्यों यह दोस्तो , दोस्तो पुकारता रहता हूं... मैं इस के द्वारा हिंदी ब्लोगरी की तैयार हो रही नींवों को सारे विश्व में कमज़ोर तो नहीं कर रहा, सो मैंने अब यह दोस्तो, वोस्तो लिखना बंद कर दिया है। वैसे मैं तो भई आप की तरह ही ...वसुधैव कुटुंबकम् ..का ही पक्षधर हूं।
तो चलिए हिंदी बलोगरी की नींवों को बिना किसी तरह की कन्वैंशन्ज़ को फॉलो करते हुए अपने नये ढंग से रखें।

शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

तो आप को भी मीठी-मीठी टिप्पणीयां ही चाहिएं.!!

क्या दोस्तो, यह मैं क्या देख रहा हूं ....मैंने यह नोटिस किया है कि कुछ लोगों को केवल मीठी-मीठी टिप्पणीयां ही चाहिएं...नहीं, नहीं , ऐसा मुझे किसी ने कहा तो नहीं है, लेकिन जो मैं इन ब्लोग्स की टिप्पणीयों वाली विंडोस से आबजर्व कर पाया हूं कि मामला कुछ कुछ ऐसा ही है। या फिर हम साफगोई से डरते हैं, घबराते हैं, भागने की कोशिश करते हैं....यार,यह सब बलागर्स की विशेषताओं में कब से शामिल हो गया, समझ नहीं आ रहा।
दोस्तो, मैं बात कर रहा हूं comment moderation की...यार, अपने कीमती समय खोटी कर के किसी भी ब्लागर को जब बड़ी ही आत्मीयता से कोई कमैंट भेजते हैं तो सबमिट करने पर पाते हैं कि आप की टिप्पणी सेव कर ली गई है, ब्लागर की अपरूवल के बाद प्रकाशित हो जाएगी.....यार, ये ब्लागर्स हैं या भगवान......एक तरह से देखा जाए तो हमारी spontaneity के इलावा हम बलागर्स में है ही क्या, अब अगर उस पर भी कोई अपनी धौंस दिखायेगा तो इन बंदों को चाहे वह कोई भी हो क्या टिप्पणी -विप्पणी देकर अपना टाइम खोटी करना। दोस्त, मैंने तो आज से क्या अभी से फैसला कर लिया है कि ऐसे किसी भी ब्लागर को टिप्पणी नहीं भेजूंगा, जिस ने यह सुविधा आन की होगी.....यार इस से मैं तो बडा़ इंस्लटेडिट महसूस करता हूं।
यह कमेंट माडरेशन वाली सुविधा तो वही बात लगती है कि जैसे किसे ने मेरा मुंह रूमाल से बंद कर दिया हो कि बेटा, रूमाल तभी हटाऊंगा अगर तूं मेरे बारे में अच्छा अच्छा बोलेगा। क्या नाटक है यह ,दोस्तो.. हटा दो ,आज ही अपनी यह कमेंट माडरेशन वाली आपशन....क्या यार हम सब इतना पढ़े लिखे , मैच्यूर लोग हैं, हम लोग आपस मे एक दूसरे की बात सुनने से डर रहे हैं. ....चलिए, मुझे आप जितने मरीज कमैंटस भेजिए, चाहे अनानिमस ही भेजें, मैं सब को स्पोटर्समैन स्पिरिट में लेने के लिए सदैव तत्पर हूं,,,और आप से प्रोमिस करता हूं कि कभी भी यह आपशन आन नहीं करूंगा। मुझे तो दोस्तो ऐसा करना ड्रामेबाजी लगती है। वैसे भी मेरे गुरू जी ने तो हमें यही सिखाया है..........
we unnecessarily worry about what people say about us !!
Actually what we speak about others speaks volumes about us!!

दोस्तो, मेरी बात को कृपया अन्यथा न लें,,,,नया नया ब्लागिया हूं....इस लिए जो बात परेशान कर रही थी, आप के सामने रख दिया क्योंकि डाक्टरी के इलावा जो इस दुनिया से सीखा है कि लेखन वही है जिस लिखे बिना आप बस रह न सकें। ठीक है, ठीक है, तो फिर इस दुनिया के किसी भी बंदे की टिप्पणी से क्यों भागना....इसे भागना ही कहेंगे न कि पहले आप टिप्पणी पढ़ेगे , फिर अपरूव करेंगे कि वह छपेगी कि नहीं.....छोड़ो यारो, Come on...be brave to face even the nastiest comments...................Well, this is my opinion. What's yours, by the way ??

Good night , friends,
Dr Parveen chopra
18.1.08...21:23hrs