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गुरुवार, 13 मई 2010

बैनाड्रिल क्रीम खा लेने से हो गई आफ़त

समझ में नहीं आता कि बैनाड्रिल क्रीम को कैसे कोई खा सकता है --- लेकिन कुछ लोगों ने इस तरह की हरकत की होगी या गलती से उन से हो गई होगी जैसा कि इस रिपोर्ट में कहा गया है तभी तो अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने जनता को आगाह किया है कि खारिश-खुजली के लिये बाज़ार में उपलब्ध बैनाड्रिल क्रीम को अगर निगलने की कोशिश की जाएगी तो परिणाम भयंकर निकल सकते हैं। क्योकि बैनाड्रिल नामक दवाई का इस तरह से इ्स्तेमाल करने से बहुत मात्रा में डाइफैनहाइड्रामिन नामक साल्ट शरीर में पहुंच जाता है जिस से बेहोशी, और दिमाग में अजीबो-गरीब विचार आने शूरू हो जाते हैं ---- it can lead to confusion, hallucinations and unconsciousness.

एफ डी आई ने ऐसे केसों को संज्ञान में लेते हुये यह चेतावनी जारी की है ---दरअसल बैनाड्रिल नामक दवाई की टेबलैट्स आदि तो निगलने /खाने (to be taken orally) के लिये होती हैं लेकिन अगर गलती से भी चमड़ी पर लगाई जाने वाली बैनाड्रिल क्रीम को निगल लिया जाये (यह कैसे हो सकता है, मेरी समझ में नहीं आया, क्योंकि अकसर लोग क्रीम कहां "खाते" हैं ---और मुंह के अंदर भी कोई क्रीम आदि लगाने से पहले अच्छी तरह से आश्वस्त हो लेते हैं कि यह मुंह में लगाने के लिये ही है ना----ऐसे में पढ़े-लिखे लोगों द्वारा इस तरह की गलती होना----- बात हजम तो नहीं हो रही, लेकिन हां अगर कोई इस तरह की हरकत जान-बूझ कर करने के लिये तुला हो तो उस के कोई क्या करे।

चलो, दूर देश की बात हो गई --अपने यहां तो और भी विषम समस्यायें हैं---अधिकांश लोग अंग्रेज़ी पढ़ना जानते नहीं हैं लेकिन दवाईयों की सभी स्ट्रिपों, टयूबों की डिब्बीयों एवं बोतलों आदि पर सब कुछ अंग्रेज़ी में ही लिखा रहता है, क्या हुआ अगर कभी कभी हिंदी में लिखे कुछ नाम दिख जाएं।

यह तो बात हम सब लोग मानते ही हैं कि ये नाम केवल अंग्रेज़ी में ही लिखे होने के कारण कईं हादसे तो होते ही हैं----और जितने हादसे हमारे यहां होते होंगे उन में से एक फीसदी भी प्रकाश में नहीं आते होंगे क्योंकि हमारे यहां ऐसा कुछ सिस्टम है ही नहीं कि इस तरह के आंकड़े नेशनल स्तर पर या राज्य स्तर पर इक्ट्ठे किये जाएं। लोगों को भी मजबूरी में सब कुछ चुपचाप भुगतने की हम सब ने लत सी डाल दी है।

कुछ इसी तरह की गलतियां जो अकसर लोग करते हैं इन का उल्लेख भी करना उचित जान पड़ता है।

----डिस्प्रिन की गोली है ---उसे केवल हमें पानी में घोल कर ही लेना हितकर होता है ---लेकिन बहुत बार लोग उसे भी थोड़े से पानी के साथ निगल कर ले लेते हैं --इस से पेट की अंदरूनी झिल्ली (mucous membrane of the stomach) को नुकसान पहुचने का डर रहता है।

और तो और, मैंने देखा है कि कुछ लोग दर्द के लिये ली जाने वाली टैबलेट को पीस कर दांत के दर्द से निजात पाने के लिये मुंह में रख लेते हैं। इस से दांत दर्द तो ठीक होना दूर, बल्कि मुंह में कईं घाव हो जाते हैं जिन्हें ठीक होने में कई कई दिन लग जाते हैं।

---- मैडीकल फील्ड में हैं तो सभी लोगों से मिलना होता है, सब की बातें सुनते हैं तो ही पता चलता है कि कहां क्या चल रहा है। कुछ लोगों में अभी भी यह भ्रांति है कि उन्हें शरीर में जो कमज़ोरी किसी भी तरह से महसूस सी हो रही है, उस के लिये उन्हें या तो दो-तीन ग्लूकोज़ की बोतलें चढ़ा दी जाएं तो वे फिट हो जाएंगे --क्योंकि वे हर साल यह काम करवा लेते हैं। और तो और, कईं तो यह भी कहते हैं कि चढ़ाई चाहे न भी जाएं, अगर वे एक-दो ग्लुकोज़ की बोतलें पी भी लेंगे तो एक दम चकाचक हो जाएंगे। उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि अगर ऐसी ही बात है तो वे बाज़ार से गुलकोज़ पावडर लेकर पानी में घोल कर क्यों नहीं पी लेते ? सच यही है कि ये केवल भ्रांतियां मात्र हैं, सच से कोसों दूर-------ये बोतले केवल क्वालीफाई डाक्टर की सलाह अनुसार ही मरीज़ों को चढाई जाएं तो ठीक है, वरना कोई यूं ही हठ करने लग जाये h उसे कोई क्या कहे ? और फिर लोग कहते हैं कि फलां फलां नीमहकीम ग्लुकोज़ की बोतलें चढ़ा चढ़ा कर चांदी कूटने में लगा हुआ है।

---- कईं बार यह भी देखा है कि कईं लोग कैप्सूल को खोल कर उस में मौजूद पावडर को पानी के साथ ले लेते हैं ------शायद ये लोग समझते होंगे कि कैप्सूल का बाहर का जो खोल है वह केवल खूबसूरती बढ़ाने के लिये है लेकिन वास्तविकता यह है कि इस कैप्सूल में जो दवाई मौजूद होती है उसे अगर हम चाहते हैं कि यह पेट में घुलने की बजाए सीधा आगे जाकर आंत के किसी हिस्से में घुले,तो इस तरह की दवाई को कैप्सूल के रूप में दिया जाता है। यह क्यों किया जाता है ---यह एक लंबा विषय है --दवाई की नेचर (एसिडिक या बेसिक------ अम्लीय अथवा क्षारीय प्रवृत्ति) यह सब तय करती है कि उसे पेट(stomach) में ही अपने काम आरंभ करने देना है या आगे आंतड़ियों में पहुंचा कर उसे डिसइंटिग्रेट (disintegration of the drug which facilitates its absorption) होने देना है।

--- दवाईयों का हर तरह से जो दुरूपयोग हो रहा है, वह हम सब से छिपा नहीं है। खूब धड़ल्ले से ये दर्द की टैबलेट, टीके, खांसी के सिरप, एलर्जी की दवाईयां, नींद की दवाईयां नशे के लिये तो इस्तेमाल हो ही रही हैं. लेकिन खतरनाक बातें इस तरह की भी हैं कि आयोडैक्स जैसी दवाई को नशा करने वाले ब्रैड पर लगा कर खाने लगे हैं।

आठ दस साल पहले जब मैने नवलेखक कार्यशालाओं में जाया करता था तो वहां पर बहुत महान, धुरंधर, लिक्खाड़ हमेशा यही कहा करते थे कि बस कागज-कलम लेकर बैठने की देर होती है----कलम का क्या है,अपने आप दौड़ने लगती है..........यही संदेश मैं अब आगे लोगों को कलम का इस्तेमाल करने की प्रेरणा देते समय इस्तेमाल करता हूं। हां, इस बात का ध्यान आज इस तरह आ गया क्योंकि मैं सुबह से ही यह पचा ही नहीं पा रहा था कि बैनाड्रिल क्रीम को आखिर कोई क्यों खायेगा --------लेकिन अभी लिखते लिखते ध्यान आया कि हो न हो, गलती से किसे न इस तरह की क्रीम को खा लिया हो, यह तो चलिये मान लेते हैं, लेकिन यह सारा नशे का चक्कर भी तो हो सकता है, क्योंकि उन "विकसित" देशों में तो ये सब टैबलेट्स तो डाक्टरी नुख्से पर ही मिलती हैं लेकिन अगर किसी के हाथ इस तरह की क्रीमें लग जाती होंगी तो फिर इन्हें खाकर या मुंह में रगड़ कर काम चला लिया जाता होगा, ऐसा मुझे लगता है कि इस चेतावनी के पीछे यही कारण होगा------- i wish i were wrong !!

बुधवार, 10 मार्च 2010

कद बढ़ाने वाला सिरिप

जिस तरह आजकल लोग बड़े बड़े डिपार्टमैंटल स्टोरों में जा कर सैंकड़ों तरह की अनाप-शनाप कंज्यूमर गुड्स को देख देख कर परेशान हो हो कर कुछ न कुछ खरीदने में लगे रहते हैं, कैमिस्टों की दुकानों के काउंटरों पर जिस तरह से तरह तरह के टॉनिक और ताकत के कैप्सूल बिखरे रहते हैं और दुकान के ठीक बाहर जिस तरह से इस तरह की चीज़ों के विज्ञापन टंगे रहते हैं किसी भी आदमी का धोखा खा जाना कोई मुश्किल काम नहीं है।

मैं कल एक कैमिस्ट से एक दवाई खरीद रहा था -- कैमिस्ट ठीक ठाक ही लगता है-- इतने में एक आदमी अपने लगभग 13साल के बेटे के साथ आया और सिरिप की दो बोतलों को कैमिस्ट को लौटाते हुये कहने लगा कि उस ने जब इस बोतलों के बारे में ठीक से पढ़ा है तो उसे पता चला कि ये कद को लंबा करने के लिये नहीं हैं।

चूंकि उस ने वे बोतलें काउंटर पर ही रखी थीं तो उत्सुकतावश मैंने भी उन्हें देखा --- मैंने देखा कि अढ़ाई सौ रूपये के करीब एक बोतल का दाम था। मैंने देखा कि कैमिस्ट ने उस ग्राहक से ज़रा भी बहस नहीं की। ये दुकानदार भी बड़े प्रैक्टीकल किस्म के लोग होते हैं---ये मार्केटिंग स्किलज़ में मंजे होते हैं। झट से उस ने उस तरह की एक दूसरी शीशी उसे थमा दी।

अब दोष किस का है, मैं चंद लम्हों के लिये यह सोच रहा था। सब से पहले तो इस तरह की बोतलें कैसे किसी को भ्रमित करने वाली घोषणाएं कर सकती हैं कि इस से कद बढ़ जायेगा। चलिये, यह मान भी लिया जाये कि इस तरह की बोतलें मार्कीट में आ ही गईं। अब क्या कैमिस्ट का दोष है कि वह इस तरह के प्रोडक्ट्स बेच रहा है ---लेकिन फिर सोचा कि उस एक के हरिश्चन्द्र बन जाने से क्या होगा----साथ वाले ये सब बेचते रहेंगे तो वह पीछे रह जाएगा। यह भी सोचा कि क्या यह हमारी स्वास्थ्य प्रणाली का दोष है कि एक 40 साल के आदमी को यह समझ नहीं कि कद कोई शीशी पी लेने से नहीं बढ़ता।

तो, फिर दोष सब से ज़्यादा किस का ? सब से ज़्यादा दोष उस ग्राहक का जो इस तरह की शीशी खरीद रहा है--- और शायद इस के लिये उस की आधी-अधूरी शिक्षा ही ज़िम्मेदार है।

यह रात 9 बजे के आसपास की बात है --मैंने उस ग्राहक को मोटरसाइकिल को किक मारते देखा ---मुझे लगा कि वह टल्ली है। मैंने देखा कि उस ग्राहक के परिचित एक सरदार ने थोड़े मज़ाकिया से लहज़े में उसे इतना भी कहा ----की यार, कद वधान लई टॉनिक. लेकिन उस ग्राहक ने पुरज़ोर आवाज़ में कहा कि क्या करें, इस का कद बढ़ ही नहीं रहा है।

लेकिन मेरी बेबसी देखिये मैं सब जानते हुये भी चुप था। मुझे पता है कि इस शीशी से कुछ नहीं होने वाला----और ऐसे ही राह चलते बिना मांगी गई सलाह देना और वह भी किसी अजनबी को और वह भी उसे जो टल्ली लग रहा था और वह भी किसी कैमिस्ट की दुकान पर ही, इन सब के कारण मैं चुपचाप मूक दर्शक बना रहा। इस तरह के मौके पर कुछ कह कर कौन आफ़त मोल ले--- दूसरी तरफ़ से कुछ अनाप-शनाप कोई कह दे तो पंगा-----इसलिये मैं तो इस तरह की परिस्थितियों में चुप ही रहता हूं---पता नहीं सही है या गलत-----लेकिन क्या करें?

यह केवल एक उदाहरण है --सुबह से शाम तक इस तरह की बीसियों बातें सुनते रहते हैं, देखते रहते हैं---किस किस का ज़िक्र करें। हर एक को अपना रास्ता खुद ही ढूंढना पड़ता है।

आज लगभग पूरे चार महीने बाद लिख रहा हूं ----अच्छा लगा कि हिंदी में लिखना भूला नहीं ---वरना पिछले चार महीनों में जिस तरह से मैं अपने फ़िज़ूल के कामों में उलझा रहा, मुझे यह लगने लगा था कि अब कैसे लिखूंगा। चलिये, इसी बहाने यह जान लिया कि यह राईटर्ज़-ब्लॉक नाम का कीड़ा क्या है।

फिज़ूल के काम तो मैंने कह दिया --ऐसे ही हंसी में --लेकिन हम सब लिखने वालों के भी अपने व्यक्तिगत एवं कामकाजी क्षेत्र से जुड़े बीसियों मुद्दे होते हैं जिन पर लिखना या इमानदारी से लिख पाना हर किसी के बस की बात होती भी नहीं और मेरे विचार में इस तरह के विषयों पर नेट पर लाना इतना लाज़मी भी कहां है ?