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मंगलवार, 5 मई 2009

पंगा अकल की दाढ़ का - पार्ट 3.



हां, तो अपनी बातें हो रही हैं पंगेबाज अकल की दाढ़ के बारे में। और अब तक हमने जो थोड़ी बहुत बातें की वह इस के बारे में थीं कि 17 से 21-22 वर्ष का युवावर्ग किस तरह से इस अकल दाढ़ की वजह से परेशान रहता है। इस का यह मतलब नहीं कि इस उम्र के आगे इस दाढ़ की समस्या खत्म हो जाती है।

दरअसल हम लोग रोज़ाना बड़ी उम्र के लोगों को भी अकल दाढ़ की वजह से होने वाली विभिन्न परेशानियों के साथ देखते रहते हैं। चलिये, जैसा कि मैंने पीछली दो पोस्टों में कहा कि कुछ लोग बस दर्द-सूजन के ठीक होते ही अकल की दाढ़ को भूल सा जाते हैं।

यह भूलना विभिन्न कारणों से हो सकता है --- सकता है कि उन्होंने अपने दंत-चिकित्सक की सलाह अनुसार अकल की दाढ़ के एरिये का एक्सरे ही करवाया हो। और अगर करवाया भी हो डाक्टरी सलाह के मुताबिक ऐसी अकल की दाढ़ को निकलवाया ही हो जिस तरह की अकल दाढ़ की तस्वीर आप यहां नीचे देख रहे हैं।



ठीक है, कुछ साल बीत गये , बस, किसी बंदे को लगता रहा कि चलो, अब ठीक हैं, क्यों बिना वजह इस अकल की दाढ़ को निकलवाने के झंझट में पड़ें ----गाड़ी चल ही रही है , फिर कभी सोचेंगे। अकसर ऐसी अवस्था को इग्नोर करने के पीछे यही मानसिकता ही काम कर रही होती है।

तो, फिर सालों-साल इस तरह की टेढ़ी पड़ी अकल दाढ़ जिस के ऊपर निकलने की बिल्कुल भी संभावना नहीं होती है, मुंह के अंदर छुप कर पड़ी सी रहती है। शायद बंदे को इस की केवल इतनी परेशानी होती होगी की कभी कभी कुछ खाना-वाना फंसने पर उसे वहां से कैसे भी निकालने की ज़हमत निकालनी पड़ सकती होगी। और यह भी हो सकता है कि बंदे को ऐसे जबड़े के अंदर धंसी अकल दाढ़ की वजह से कोई परेशानी ही होती हो।

लेकिन अगर बंदे को इस से कोई परेशानी नहीं है या थोड़ा बहुत उस अकल दाढ़ एवं उससे अगली दाढ़ के बीच कुछ खाना फंसता है -----बात केवल इतनी ही नहीं है। दरअसल , इस खाने के फंसने से इस अकल की दाढ़ में या इस के अगली दाढ़ में दंत-क्षय लगना शुरू हो जाता है जिसे हम लोग दांतों की सड़न या कैविटि या आम भाषा में दांत को कीड़ा लगना भी कह देते हैं।

अकसर लोग दंत चिकित्सक के पास नियमित जांच के लिये जाते तो हैं नहीं, इसलिये जब यह कैविटी एक बार बननी शुरू हो जाती है तो फिर इलाज होने तक गहरी ही होती जाती है , आगे ही बढ़ती जाती है। यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक कि इस सड़न की वजह से इंफैक्शन किसी दाढ़ की जड़ तक ही पहुंच जाये।

तब एक दिन मरीज़ को भयानक दर्द के साथ जब सूजन सी जाती है और वह डैंटिस्ट के पास जाता है जहां पर उस पर एक्स-रे करने से यह पता चलता है कि इस धंसी हुई अकल दाढ़ की वजह से इस बंदे की तो अगली दाढ़ भी खत्म हो गई अब अगर मरीज़ अकल दाढ़ के आगे पड़ी ( जो पहले अच्छी खासी थी ) का रूट कनॉल ट्रीटमैंट एवं कैपिंग का महंगा इलाज करवा पाता है तो ठीक है , वरना उस दाढ़ को तो उखड़वाने के अलावा कोई चारा नहीं और साथ में टेढी पड़ी हुई अकल की दाढ़ तो जाती ही जाती है। है कि नही यह सब पंगे का काम।

एक दूसरी स्थिति देखिये , इस नीचे दी गई तस्वीर में आप देख रहे हैं कि ऊपर वाले जबड़े में तो अकल की दाढ़ है लेकिन नीच वाले जबडे ( मैंडीबल) में अकल की दाढ़ है ही नहीं ---शायद तो कभी थी ही नहीं ( ऐसा भी होता है !!) और शायद कुछ साल पहले निकलवा दी गई होगी। अब ऐसी स्थिति में होता क्या है कि ऊपर वाली अकल दाढ़ पर नीचे की दाढ़ का अंकुश होने की वजह से वह धीरे धीरे नीचे की तरफ़ सरकनी शुरू कर देती है ---ऐसे केस डैंटिस्ट रोज़ाना देखते हैं।



अब इस ऊपर वाली अकल दाढ़ के सरकने की वजह से उस का उस के अगले दांत से संबंध बिगड़ने लगता है प्रकुति ने दांतो के आपसी संबंध को परफैक्ट तरीके से रखा हुआ है। इस बिगड़े संबंधों की वजह से अब ऊपर वाली अकल दाढ़ एवं उस के अगली स्वस्थ दाढ़ के बीच खाना फँसना शुरू हो जाता है और वही क्रम चल निकलता है जैसे कि मैंने पिछले पैराग्राफों में चर्चा की है। अकसर लोग इस तरह के खाना-वाना फंसने को इतनी गंभीरता से लेते नहीं है जिसकी वजह से एक अच्छी खासी दाढ ( दूसरी दाढ़) इतनी ज़्यादा खराब हो जाती है कि या तो उसे निकलवाना पड़ता है और या फिर रूट कनॉल ट्रीटमैंट और कैप वैप लगवाने वाले महंगे इलाज का विकल्प ही बच जाता है।

अब तो आप को भी थोडा थोड़ा आभास हो चला होगा कि सचमुच यह अकल दाढ़ पंगा भी रियल पंगा है इस के बाकी पंगों के बारे में आगे बाते करते रहेंगे।

अकल की दाढ़ का पंगा --- पार्ट 2.

अच्छा तो कोई मरीज़ अपने पास अकल की दाढ़ की तकलीफ़ के साथ आया हम ने उसे कुछ दवाईयां दे दीं और वह ठीक हो गया। एक बात मैं कल कहनी भूल गया कि मुंह के जिस तरफ़ की अकल की दाढ़ परेशान किये हुये है उस तरफ़ अगर थोड़ी सिकाई भी की जाये तो अच्छा अनुभव होता है।

ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि जो दवाईयां वगैरा लेने से अकल की दाढ़ की तकलीफ़ में बिल्कुल टैंपरेरी सा आराम आता है। अधिकांश केसों में इस तरह का इलाज कोई पक्का इलाज नहीं होता। और अकसर कईं मरीज़ ऐसे दिखते हैं जो कि एक-दो महीने में बार बार इस तरह की अकल दाढ़ में दर्द, सूजन एवं बुखार आदि से परेशान होते हैं।

इसलिये जब कोई भी मरीज़ पहली बार ही किसी अकल दाढ़ की परेशानी के लिये जाता है, वह उसे दर्द-सूजन के लिये दवाईयां आदि तो लेने को कह देता है ....लेकिन साथ ही साथ वह उस दर्द-सूजन का कारण टटोलने में लग जाता है।

ऐसे ही कुछ कारणों की तरफ़ ज़रा देख लें ! बहुत ही कम केस हमारे पास ऐसे आते हैं जिन में यह अकल की दाढ़ पूरी तरह से आ तो चुकी होती है लेकिन उस के आसपास का मसूड़ा थोड़ा टाइट सा होने की वजह से बंदे को दर्द सी हो रही है। या तो कईं बार ऐसा भी होता है कि दांत मुंह में निकलने की अवस्था में तो है लेकिन उस के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से हटी नहीं है----ऐसा अकसर 17 से 21 या यूं कह लें कि 21 से एक-दो साल ऊपर तक ही होता है।

इस अवस्था में दंत चिकित्सक को उस के अनुभव से ही पता चल जाता है कि यह तो बस मामूली से कुछ दिनों की समस्या है ---- यह दाढ़ के ऊपर वाली चमड़ी अपने आप पीछे हट जायेगी और दांत पूरी तरह से दिखना शुरू हो जायेगा। मरीज़ को इस के लिये दर्द-निवारक टेबलेट तो दे दी जाती हैं ( अकसर कोई भी ऐंटीबॉयोटिक इस के लिये नहीं चाहिये होता ) लेकिन उसे कहा यह भी जाता है जितना इन को अवॉयड़ करेंगे उतना ही अच्छा होगा। बस, बार बार दिन में कईं बार नमक वाले गर्म पानी से कुल्ला करने की बात ज़रूर कही जाती है जिस से जबरदस्त राहत महसूस होती है।

हां, तो फिलहाल अपनी बात चल रही है 17 से 21 वर्ष के लोगों में अकल की दाढ़ के आते समय होने वाली समस्याओं की तरफ़। इन में से बहुत से केस ऐसे भी होते हैं जिन के मुंह के अंदर झांकते ही यह पता चल जाता है कि यहां तो भई रियल पंगा है। कारण ? ----या तो अकल की दाढ़ आधी अधूरी सी टेढ़ी-मेढ़ी निकली सी पड़ी है और या तो निकल रही दाढ़ के लिये जबड़े में जगह ही नहीं है। बहुत से केसों में इस अवस्था का अंदेशा मरीज़ के मुंह में देखते ही हो जाता है।

इस तरह के संभावित पंगे वाले केसों में उस अकल की दाढ़ वाले एरिया का एक डैंटल एक्स-रे करवाया जाता है ---- अकल की दाढ़ फंसी हुई तो जबड़े में हमें दिख ही रही है जो कि हमें अनुमान है कि अब ऊपर न आयेगी लेकिन फिर भी यह एक्स-रे एक तो मरीज़ को कंविंस करने के लिये और दूसरा उस दांत को निकालने की ढंग से प्लॉनिंग करने के लिये चाहिये होता है।

अकसर मरीज़ का दर्द-सूजन ठीक ठाक हो जाता है तो वह दंत-चिकित्सक की यह बात सुनी-अनसुनी कर देते हैं कि फलां फलां अकल की दाढ़ को निकलवाने में ही समझदारी है---वरना बार बार सूजन, बार बार वही दर्द-बुखार का झंझट------ जो तो लेते हैं बात मान, उन का तो हो जाता है कल्याण। लेकिन जो विभिन्न कारणों की वजह से अकल की दाढ़ को निकालने में टालमटोली करते रहते हैं उस के क्या परिणाम निकलते हैं इस के बारे में किसी अगली पोस्ट में विस्तार से बातें करेंगे।

सोमवार, 4 मई 2009

अकल की दाढ़ का पंगा

रोजाना मेरे पास अकल की दाढ़ से परेशान चार-पांच मरीज़ आ ही जाते हैं। अकल की दाढ़ जैसा कि आप जानते ही हैं कि सत्रह से इक्कीस वर्ष की उम्र तक मुंह में निकलती है।

इसे अकल की दाढ़ केवल इसलिये कहा जाता है क्योंकि अकसर इसी उम्र में बच्चों को मैच्यूरिटि भी आनी शुरू होती है, इसलिये इसे अकल की दाढ़ के नाम से जाना जाने लगा।

पहले पहले जब मैं किसी को इसे उखड़वाने की सलाह देता था और वह मेरे से यह पूछता था कि इस से हमारी बुद्धि पर भी असर पड़ेगा, तो मुझे लगता था कि बंदा मज़ाक के मूड में है। लेकिन इतने सालों बाद भी जब यही प्रश्न अकसर लोगों द्वारा पूछा जाता है तो मैं समझ गया हूं कि यह भ्रांति लोगों में अच्छी खासी व्यापत है। अकसर लोग यह समझाने पर समझ ही जाते हैं कि इसे उखड़वाने से अकल पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है।

यह जो अकल की दाढ़ का पंगा है ना इस के लिये कई पोस्टें लिखनी होंगी क्योंकि यह पंगा है ही कुछ ऐसा। जैसे जैसे मुझे इस अकल दाढ़ से जुड़ी बेहद महत्वपूर्ण बातों का ध्यान आता जायेगा, बातें चलती रहेंगी।

बात शुरू करते हैं एक बहुत ही आम समस्या से कि जब 17 से 21 वर्ष के आयुवर्ग के लोगों की अकल वाली दाढ़ आनी शुरू होती है तो अकसर उन्हें बहुत दर्द महसूस होता है। सब से पहले मैं इस दर्द का , इस तकलीफ़ का इलाज लिख दूं वरना लोग नाराज़ हो जाते हैं कि डाक्टर,तुम इलाज के बारे में भी बातें किया करो।

तो, जब इस उम्र के लोगों को यह निकलती हुई दाढ़ तंग सा करने लगे तो उन्हें सब से पहले तो नमक वाले गर्म पानी से खूब कुल्ले करने चाहिये, किसी महंगे माउथवाश को बाज़ार से अपने आप ही खरीद कर इस्तेमाल करना की कोई विशेष ज़रूरत होती नहीं है । कोई भी अच्छी दर्द निवारक टेबलेट ( मैं तो आईबूब्रूफन एवं पैरासिटामोल कंबीनेशन वाली टेबलेट ही अकसर अपने मरीज़ों को देता हूं) ---आप अपने दंत चिकित्सक से सलाह कर सकते हैं।

अगर इन में से कुछ मरीज़ ऐसे होते हैं जिन्हें थूक निगलने में भी परेशानी होती है या गले के नीच गांठें सी आ जाती हैं, बुखार सा होता है तो उन्हें ऐंटीबॉयोटिक तीन दिन तक ले ही लेना चाहिये ---मैं अकसर इस काम के लिये अमोक्सीसिलिन कैप्सूल 250 मिलीग्राम दिन में तीन बार तीन दिन तक इस्तेमाल करने की अपने मरीज़ों को सलाह देता हूं लेकिन आप अपने चिकित्सक से कंसल्ट कर के ही कुछ भी लें।

अकसर यह सब करने से मरीज़ के एक्यूट सिंप्टम्ज़ एकदम ठीक हो जाते हैं, आगे क्या करना होता है , अगली पोस्ट में बात करते हैं।

शनिवार, 2 मई 2009

घिसे हुये दांत करते हैं बहुत परेशान

अभी तो आप मेरे दो मरीज़ों के बुरी तरह से घिसे हुये दांतों की तस्वीरें ही देखिये ---ये दोनों महिलायें दो एक दिन पहले आईं थी --- इन की उम्र पैंतालीस के पास की है। दांतों की जब इतनी घिसाई हो जाती है तो इस का इलाज इतना आसान होता नहीं ---- और न ही इतना सस्ता में हो पाता है। इस का इलाज बहुत महंगा होता है जिस के लिये इन दांतों पर कैप्स ( क्राउन) लगाये जाते हैं।

अकसर मैंने तो अपने प्रोफैशन कैरियर में शायद एक दो मरीज़ों को ही इस का इलाज करवाते देखा है। वरना, तो वही दांतों पर ठंडा गर्म लगने से बचाने वाली क्रीमें लगानी शुरू कर दी जाती हैं। लेकिन उन से भी आराम बिल्कुल टैंपरेरी सा ही आता है।

जब मरीज़ दांतों की इस घिसाई की वजह से इतना परेशान हो जाता है कि उस से और दर्द सहा नहीं जाता तो फिर धीरे धीरे इन को निकलवाने का काम शुरू करवा लिया जाता है और बाद में नकली दांतों का सैट लगवा लिया जाता है।

मंगलवार, 17 मार्च 2009

दांत उखड़वाने के बाद क्यों लेते हैं इतनी सारी दवाईयां ?

अगर मेरा यह प्रश्न सुन कर मुझे आप में से कोई पलट कर यही प्रश्न ही पूछ ले कि आप डाक्टर लोग देते हो इसलिये हमें दांत उखड़वाने के बाद इतनी सारी दवाईयां लेनी पड़ती हैं। चलिये, उस की भी बात अभी बाद में करेंगे --- लेकिन मुझे यह बहुत अखरता है कि दांत उखड़वाने के बाद अगर कोई विशेष दो-तीन तरह की दवाईयां किसी को नहीं लिखी जायें तो वह समझता है कि आखिर बिना दवाई के कैसे भरेगा उस के मुंह में मौजूद इतना बड़ा ज़ख्म !!

दोस्तो, ऐसी बात बिल्कुल निराधार है कि आप दवाईयां खायेंगे तो ही वह दांत उखड़वाने की वजह से हुआ जख्म भरेगा। इस समय एक कहावत का ध्यान आ रहा है ---पूत सपूत तो क्या धन संचय, पूत कपूत तो क्या धन संचय !! इसी बात को यहां हम लोग दांत उखड़वाने के बाद लंबी-चौड़ी दवाईयां खाने की फरमाईश के साथ जोड़ कर देखते हैं। अगर किसी क्वालीफाईड डैंटिस्ट ने यह काम किया है तो किसी तरह के डर की कोई बात नहीं , और अगर किसी चलते-फिरते नीम हकीम ने अपना जौहर दिखाने की कोशिश की है , तब भी दवाईयों का कोई फायदा नहीं ---क्योंकि अकसर ये नीम हकीम कुछ इस तरह का नुकसान कर डालते हैं जिस की भरपाई दवाईयां ले लेने से नहीं हो सकती।

एक बिलकुल सीधी सपाट बात है कि अगर तो मरीज़ के मुंह के मुंह का स्वास्थ्य पहले ही से बिलकुल खराब है , पहले ही से बहुत ही इंफैक्शन मौज़ूद है, मरीज़ अगर गुटखे, पान-मसाले एवं बीड़ी-सिगरेट का शौकीन है और अगर दांत को किसी ऐसी वैसी जगह से निकलवाया गया है जहां पर उस नीम-हकीम जिसे हम दंत-चिकित्सक कहते हुये भी डरते हैं, तो समझिये कि उस ने आफ़त मोल ले ली है। दांत उखड़वाने के बाद होने वाले घाव की तो आप चिंता इतनी करें नहीं, यह सब प्रकृत्ति अच्छे से देख ही लेती है। लेकिन चिंता की बात यहां पर यही होती है कि दूषित सिरिंजों, सूईंयों एवं दूषित उपकरणों की वजह से तरह तरह की भयंकर बीमारियों की चपेट में आने की पूरी संभावना बनी रहती है।

दांत उखड़वाना कोई बड़ी बात थोड़े ही है ---- लेकिन किसी बस स्टैंड पर किसी चलते फिरते डैंटिस्ट से इस तरह का काम करवाना खतरे से खाली नहीं है। लोग अकसर बहुत इंप्रैस होते हैं कि हमारे यहां पर बस स्टैंड वाला बंदा तो बस कुछ छिड़कता है और तुरंत ही दांत बाहर निकल आता है। केवल इतना ध्यान देने की ज़रूरत है कि जो पावडर वह छिड़कता है या जिस के लोशन से उस ने रूमाल गीला किया होता है वह आरसैनिक नामक का विषैला तत्व होता है जो मुंह के कुछ हिस्से को बिल्कुल सुन्न कर देता है। कुछ वर्षों के बाद यह कैंसर का रूप ले सकता है।

हां, तो बात हो रही थी दांत उखड़वाने के बाद बहुत सी दवाईयां खाने की। पहले तो मैं अपना अनुभव बताता हूं ----दोस्तो, मेरा अनुभव तो यही है कि इन की कोई विशेष आवश्यकता होती ही नहीं है। मैं अकसर दांत उखाड़ने के बाद मरीज़ों को दो-चार दर्द निवारक टेबलेट लेकर रखने की सलाह अवश्य देता हूं ----इस टेबलेट में आईबूब्रोफन एवं पैरासिटामोल नाम की दवाई होती है ---- इसे मैं अधिकांश मरीज़ों के लिये बेहद सुरक्षित मानता हूं---- एक या दो टेबलेट की ही किसी को ज़रूरत पड़ती है। यह दवाई मैं अपने मरीज़ों के लिये पिछले 25 वर्षों से इस्तेमाल कर रहा हूं और मेरा अनुभव है कि यह पूरी तरह से सुरक्षित है

इस टेबलेट के बाद बहुत सी नईं नईं टेबलेट आई हैं, नये नये साल्ट आ गये हैं , लेकिन मेरा इस कंबीनेशन पर अटूट विश्वास है क्योंकि यह अनुभव मेरे हज़ारों मरीज़ों ने मुझे दिया है। नईं नईं दवाईयों की समस्या यही है कि यह आज निकलती हैं और कुछ अरसे बाद इन से संबंधित कुछ दुष्परिणाम उजागर होने के बाद इन पर एक दो चार अमीर देश तो लगा देते हैं प्रतिबंध लेकिन हम जैसे लकीर के फकीर ही बने रहने की वजह से अपने लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने से भी गुरेज़ नहीं करते। इसलिये, भाई हम तो पुरानी, प्रामाणिक दवाईयों से ही संतुष्ट हैं---- time-tested salts ----ये केवल दर्द-निवारक टेबलेट्स की ही बात नहीं है, मेरा ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों के बारे में भी यही विचार है। इतने वर्षों से दांत की विभिन्न इंफैक्शनज़ के लिये अमोक्सीसिलिन कैप्सूल को ही सब से बेहतर पाता हूं और उसी को अधिकांश केसों में मुंह की इंफैक्शन एवं सूजन के लिये लिखता हूं और उसी से हमेशा वांछित रिज़ल्ट भी मिल ही जाता है। हां, कईं केसों में ( बिल्कुल कम केसों में) नईं नईं दवाईयां भी लिखनी पड़ती हैं, लेकिन इतनी कम बार कि मेरे पास वर्षों से कोई मैडीकल –रिप्रैज़ैंटेटिव ही नहीं आया है।

दांत उखड़वाने के बाद खाई जाने वाली बात तो फिर कहीं पीछे छूट गई --- ऐसा है कि इस के लिये आप को अपने प्रशिक्षित दंत-चिकित्सक की ही बात माननी होती है। मेरा अनुभव तो यही है कि मरीज़ को दो-चार टेबलेट रख लेनी चाहियें ---ज़रूरत पड़ने पर एक दो टेबलेट ले लेनी चाहिये --- अकसर बहुत से केसों में तो एक भी नहीं और किसी किसी केस में दांत उखड़वाने वाले दिन दो एक टेबलेट की ज़रूरत पड़ सकती है। सामान्यतयः दांत उखड़वाने के बाद मैंने तो अनुभव से यही सीखा है कि महंगे महंगे ऐंटिबॉयोटिक्स का कोई रोल ही नहीं है---बिना वजह अपनी सेहत एवं पेट खराब करने वाली बात है। लेकिन एक बात वही दोहरा देता हूं कि इस के बारे में भी अपने डैंटिस्ट की बात तो माननी ही होगी, बस कहीं पर आप को किसी किस्म की दुविधा हो तो मेरे अनुभवों का भी थोड़ा ध्यान कर लिया करें।

कहीं आप यह तो नहीं सोच रहे कि यार, मुंह में घाव कैसे भरेगा बिना दवाईयों के -----ऐसा है कि दांत उखड़वाने के बाद मुंह में हुये घाव का अच्छी तरह से भर जाना एक बिलकुल ही प्राकृतिक नियम है। तो यह प्रक्रिया दवाईयां खाने से तेज़ होने वाली है और ही ना खाने से मंद पड़ने वाली है। केवल हमारा कर्त्तव्य इतना सा होता है कि हम ने उस घाव को भरने के लिये एक उत्तम वातावरण देना होता है ----सिगरेट बीड़ी से घाव में भरने में देरी होती है, इसलिये इन से दूर रहें। जिस दिन दांत निकलवाया है उस के अगले दिन से गुनगुने पानी में थोड़ा नमक या फिटकड़ी डाल कर कुल्ला करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि जख्म में इक्ट्ठी हुई सारी गंदगी इस से निकलती रहती है। और देखते ही देखते दो-चार दिन में जख्म पूरी तरह से अपने आप भर जाता है।

कुछ लोग हमें यह भी पूछते हैं कि ठीक है खाने की तो कोई दवाई नहीं दे रहे हैं, लेकिन जख्म पर कोई लगाने वाली या कोई कुल्ला करने वाली दवाई तो होगी जो कि दांत निकलवाने से हुये ज़ख्म को भरने में मदद करती होगी। इन मरीज़ों के लिये भी अपना यही जवाब होता है कि इस के लिये इस तरह की किसी भी जख्म पर लगाने वाली दवाई की अथवा कुल्ला करने वाले माउथवाश की बिल्कलु ज़रूरत ही नहीं होती।

मेरे ख्याल में मैंने अपनी बात ठीक से आप प्रबुद्ध लोगों के समक्ष रख दी है ----- पोस्ट लंबी होती दिख रही है इसलिये अपनी उंगलियों को यहीं पर विराम देता हूं ---केवल एक यही बात कह कर कि ब्लड-प्रैशर, हार्ट एवं शूगर के मरीज़ भी दांत उखड़वाने के नाम से इतने भयभीत मत हुआ करें ----इन मरीज़ों से संबंधित इस नाचीज़ के अनुभव कुछ यहां पड़े हैं और कुछ यहां भी पड़े हैं।

शुभकामनायें ------ढ़ेरों शुभकामनायें ----इतना आशीर्वाद कि आप के दांत इतने फिट रहें कि आप को कभी इस उखड़वाने के चक्कर में पड़ना ही न पड़े और अगर कभी दांत-उखड़वाने की ज़रूरत पड़ भी जाये तो डैंटिस्ट का क्लीनिक छोड़ने से पहले कभी उस से यह मत पूछें कि क्या आप कोई ऐंटीबॉयोटिक दवाई नहीं दे रहे हैं, मुझे लगता है ऐसा कोई प्रश्न ना पूछने में ही आप की भलाई छुपी है।

बातें ये सब परदे में ही रखने वाली हैं, लीजिये इसी बात पर मुझे अपने बचपन का मेरा बेहद पसंदीदा गाना ध्यान में आ गया ----शायद तब मैं पहली कक्षा में पढ़ता है ---मुझे उस उम्र के जो दो-तीन फिल्मी गाने याद हैं, यह उन में से एक है। तब यह रेडियो पर खूब बजा करता था। मुझे आज भी यह बहुत अच्छा लगता है। मेरी पोस्ट की सीरियस बातों को भूल जाने के लिये आप भी इसे एक बार तो सुन ही लीजिये।