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शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

कैज़ुएल सैक्स भी एक एट्म बम ही है....

आज के समाचार-पत्र में एक एड्स कंट्रोल सोसायिटी द्वारा कॉन्डोम के इस्तेमाल को प्रमोट करने के लिए जारी किया गया एक विज्ञापन दिखा। विज्ञापन कुछ क्रियएटिव किस्म का लगा, इसलिए आप के सामने उस को रख रहा हूं........इस में एक कॉन्डोम पाठकों से यह कहता दिखाया गया है.....
श्रीमान, एक मिनट ज़रा मेरी बात सुनिए.....

(अगर आप शादीशुदा नहीं हैं)

तो शादी से पहले संभोग से दूर रहें


(अगर आप शादीशुदा हैं, तो)

अपने जीवन साथी के प्रति सदैव वफादार रहें।

(यदि आप अकसर संभोग करते रहते हैं, तो)

मुझे हमेशा अपने साथ रखिए

मेरा नाम कॉन्डोम है

कॉन्डोम (निरोध) का प्रयोग करने में बिल्कुल भी शर्म न करें

क्योंकि....

कॉन्डोम आपको एस.टी.डी/एच.आई.वी / एड्स से बचाता है।

इस समय , मैं केवल आपको
एस.टी.डी/एच.आई.वी / एड्स
से बचा सकता हूं।

मैं अनचाहे गर्भ से भी रक्षा करता हूं

इसमें कोई संदेह नहीं है कि , कॉन्डोम का प्रयोग करने से आपकी सुरक्षा के साथ-साथ आपकी खुशी में भी इजाफा होगा।

एक मात्र अनुरोध

यह मत भूलिए कि ज्यादातर असुरक्षित यौन संबंधों के कारणों से ही एच-आई-व्ही / एड्स फैलता है। एक से ज्यादा व्यक्तियों के साथ संयुक्त संभोग न करें क्योंकि एच.आई.वी संक्रमण 15से 49वर्ष तक की आयु समूह में बड़ी तेज़ी से फैलता है। ................


तो यह तो था आज विज्ञापन जो मुझे सुबह दिखा । अच्छा खासा क्रियएटिव इश्तिहार है, शायद आप को भी कुछ ऐसा ही लगा होगा।
लेकिन मेरे मन में एड्स से संबंधित कुछ मुद्दे कौंध रहे हैं। अब इस विज्ञापन की पहली पंक्ति की तरफ ध्यान करते हैं कि अगर आप शादीशुदा नहीं हैं तो शादी से पहले संभोग से दूर रहें। अकसर सोचता हूं कि क्या मात्र ऐसा नुस्खा थमा देने से ही यह संभव हो जायेगा कि लोग शादी से पहले संभोग से दूर रहने लग जायेंगे। मुझे पता नहीं आप का इस के बारे में क्या ख्याल है ! ….वैसे सब कुछ कहने में कितना आसान सा लगता है....वो कहते हैं न कि जुबान में हड्डी थोड़े ही होती है। लेकिन मीडिया में आये दिन हो रहे बलात्कार, डेट-रेप, छोटी छोटी उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म तो कुछ और ही कह रहा है। ठीक है , ऐसे विज्ञापन लोगों में इस तरह के विवाह-पूर्व संबंधों के प्रति भय पैदा करते हैं और यह खौफ़ पैदा किया भी जाना चाहिए। लेकिन क्या यह काफी है?—मुझे तो नहीं लगता ।

मैं तो ऐसा सोचता हूं कि युवाओं की परवरिश ही कुछ इस तरह से की जानी चाहिए कि उन्हें अपनी ऊर्जा उपयोग करने के सकारात्मक विकल्पों की तरफ प्रेरित किया जाना चाहिए। ज़िंदगी में हर चीज़ का एक समय है....हमारे तो सारे शास्त्र ब्रह्मचर्य के पालन की बातों से भरे पड़े हैं.....हां, वो बात अलग है कि एक तो आजकल इस की कोई परवाह कर नहीं रहा......35-40 साल तक लोग शादी न करवाने में अपनी शान समझने लगे हैं.......लेकिन...... ; एक बात और भी है ना कि सभी तरह के मीडिया में इतनी हद तक अश्लीलता परोसी जा रही है कि युवाओं का बिना बहुत ही उत्तम पारिवारिक संस्कारों की नींव के इस से बच कर रहना बेहद कठिन होता जा रहा है....चाहे वे इसे एक्सपैरीमेंटल कहें , या जस्ट स्टाइल कहें.........कुछ भी कहें , यह स्वीकार्य नहीं है। एक तो सब से बड़ा अजगर एचआईव्ही संक्रमण सारे विश्व के सामने मुंह फाड़े खड़ा है और वैसे भी भावनात्मक स्तर पर भी देखा जाये तो किसी की फीलींग के साथ खिलवाड़ कर के बंदा कभी भी मानसिक तौर पर सही नहीं रह पाता। सो, युवाओं को अपना ध्यान योग में लगाना होगा, खान-पान सादा रखना होगा और लेट-नाइट पार्टियों एवं डेट-वेट के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.....ये सारे लफड़े बस इन्हीं बातों से ही शुरू होते हैं जो शुरू शुरू में मामूली दिखती हैं, लेकिन अभिभावक शायद अपनी कुछ ज़्यादा ही मसरूफीयात की वजह से देखा-अनदेखा कर जाते हैं। सीधी सी बात है कि शादी से पहले सैक्स संबंधों का कोई स्थान नहीं है। शायद इस ब्लोग में या मेरी हैल्थ टिप्स वाली ब्लोग (http://drchopraparveen.blogspot.com) पर मैंने कुछ समय पहले शादी से पूर्व एचआईव्ही टैस्टिंग की बात शुरू की थी, अगर कभी समय हो तो देख लीजिएगा।

चलिए , वापिस उस विज्ञापन की तरफ आते हैं.....उस में एक बात यह लिखी है कि यदि आप अकसर संभोग करते रहते हैं, तो मुझे हमेशा अपने साथ रखिए --- मेरा नाम कॉन्डोम है।

यह पंक्ति पढ़ कर कुछ इस तरह नहीं लगता कि अकसर संभोग करने को गली के नुक्कड़ में खड़े चाट-पापड़ी वाले से चाट खाने के बराबर खड़ा कर दिया गया है। जब इस तरह की बात होती है तो मुझे यह बेहद आपत्तिजनक लगता है ......क्योंकि मैं यह सोचता हूं कि इस तरह की स्टेटमैंट फेयर सैक्स के साथ सर्वथा फेयर नहीं है......This is not some commodity which anybody can choose to relish anywhere provided he has a condom in his pocket……यह कोई वस्तु थोड़े ही है जिसे जब चाहा भोग लिया बस आपकी जेब में एक कॉन्डोम होना ज़रूरी है। ऐसा कह कर क्या हम नारी को अपरोक्ष रूप में अपमानित नहीं कर रहे......आखिर क्यों हम इसे केवल मैकेनिकल क्रिया के रूप में देख रहे हैं......इस के भावनात्मक पहलूओं को हमेशा नज़र-अंदाज़ कर दिया जाता है , यह मेरी समझ में कभी नहीं आया। आप से अनुरोध है कि मेरी इसी ब्लोग पर या हैल्थ टिप्स वाली ब्लोग पर वह वाली पोस्ट भी ज़रूर पढ़े.....नहीं , मैं किसी ऐसी वैसी जगह पर नहीं जाता।

इस में कोई संदेह नहीं है कि कॉन्डोम का सही इस्तेमाल स्त्री एवं पुरूष दोनों को एचआईव्ही संक्रमण से बचाता है। लेकिन हम क्यों नहीं समझते कि क्या जब कोई व्यक्ति किसी तरह के कैज़ुएल सैक्स में , वन-नाइट स्टैंड(रात गई,बात गई) जैसी जगहों में खोया पाता है तो क्या केवल हमारे द्वारा उस के हाथ में एक कॉन्डोम थमाने से ही सब कुछ ठीक ठाक हो जायेगा। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं कि शरीर की अन्य फ्लूएड्स( body fluids) में भी कईं तरह के विषाणु, हैपेटाइटिस बी वायरस इत्यादि अथवा अन्य बीमारियों ( जिनके बारे में अभी तक पता ही नहीं है) के जीवाणु मौज़ूद रहते हैं..........तो कहने का भाव यही है कि संक्रमित व्यक्ति द्वारा मुख से मुख चुंबन के दौरान जो कुछ हो रहा है, वह भी इतना सुरक्षित नहीं है जितना लोग समझने लग गये हैं।

सीधी सी बात है कि हम अपनी संस्कृति की तरफ देखें तो इस में इन विकृतियों के लिए कोई जगह ही नहीं है। ऐसे खेल पल भर के लिए रोमांचक तो हो सकते हैं लेकिन जान-लेवा भी सिद्ध हो सकते हैं। मेरी तरफ आप को भी ध्यान आ रहा होगा कि अगर हमारे पुरातन लोग इन विकृतियों से इतने ही अनछुये से थे, तो ये जो प्राचीन इमारतों पर आकृतियां पत्थरों में खुदी हुई हैं, क्या वे मात्र किसी कलाकार की कल्पना ही हैं। इस के बारे में तो मेरा ज्ञान सीमित है ...मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूं कि शायद तब एड्स और एस.टी.डी जैसे रोग थे नहीं या किसी को इन के बारे में पता नहीं था....शायद जब कोई इस तरह के रोगों से मरता होगा तो तब भी यही कह दिया जाता होगा कि बस लिखवा कर ही इतनी लाया था।

लेकिन कुछ भी हो आज के दौर में यह यौन-विकृतियों ने कुछ इतना भयानक रूप ले लिया है कि इस के बारे में हमें कुछ करना ही होगा...अगर ऐसा नहीं होता तो इस एड्स कंट्रोल सोसायिटी को अपने विज्ञापन में यह लिखवाने की ज़रूरत भी न पड़ती......एक से ज्यादा व्यक्तियों के साथ संयुक्त संभोग न करें क्योंकि ......।

बात पते की केवल इतनी है कि हमारी लाइफ में कैज़ुएल सैक्स का कोई भी स्थान नहीं है। हर प्रकार का संयम बरतने में ही समझदारी है। एक कॉन्डोम लगा कर कोई अपने आप को तीसमार खां न समझे कि अब तो बाल न बांका कर सके, जो जग बैरी होय। यह भी भम्र है.....कभी ऐसी गलती हो जायेगी कि सारी उम्र पछताना पड़ सकता है...तिल तिल मरना पड़ सकता है........क्योंकि यह कॉन्डोम का इस्तेमाल अगर किसी को कैज़ुएल सैक्स के लिए करना पड़ रहा है तो इस का सीधा सादा मतलब है कि उस का सैक्सुयल बिहेवियर हाई-रिस्क है। मुझे उम्मीद है कि पाठक इस कॉन्डोम वाली बात को इस के ट्रयू परस्पैक्टिव में लेगें.....नोट करें कि मैं कॉन्डोम का विऱोध सर्वथा नहीं कर रहा हूं.......जी हां, यह तो सुरक्षा-कवच है ही .......लेकिन मैं तो कैज़ुएल सैक्स का , पैसे देकर खरीदे गये सैक्स का घोर विरोध कर रहा हूं।

आप मेरे विचारों से सहमत हैं कि नहीं , लिखियेगा।

PS….मुझे आभास है कि पोस्ट लंबी हो चुकी है, लेकिन मुझे मेरी इस आदत के लिए क्षमा करें कि जब तक मैं एक बार अपनी बात पूरी तरह से खत्म न कर लूं, मेरे को चैन नहीं पड़ता। सिर-दुखने लग जाता है( हां, आप ठीक सोच रहे हैं कि चाहे पाठकों का दुख जाये) । अच्छा तो आप आशीर्वाद दें कि अपनी बात को कम शब्दों में कहना सीख लूं।
Good evening….have a lots of fun…...and enjoy your weekend !!

शनिवार, 26 जनवरी 2008

“नहीं, डाक्टर, मैं किसी ऐसी वैसी जगह नहीं जाता.....


बस, यूं ही तीन-चार जगह जहां मेरा प्यार बना हुया है, बस वहां ही.....। आप शायद गलत समझ रहे हैं,मैं उन वेश्याओं वगैरह के चक्कर में नहीं हूं।

दोस्तो, हम डाक्टर लोगों को भी नित-प्रतिदिन नये नये अनुभव होते रहते हैं जिन्हें हमें फिर दूसरों के साथ बांटना ही पड़ता है क्योंकि उन अनुभवों में कुछ इस तरह की बातें होती हैं जिन से दूसरों का भी कल्याण हो जाता है...उन में भी स्वास्थ्य के प्रति चेतनता बढ़ती है। लेकिन यकीन मानिए हम जब ऐसी बातों को किसी से साझी करते हैं तो हम उस किसी मरीज़ की गोपनीयता का 101फीसदी ध्यान रखते हैं क्योंकि उस मरीज़ ने भी कितना भरोसा कर के वह बात डाक्टर के साथ शेयर की होती है। अब जो मैं बात आप को बताने जा रहा हूं, उस मरीज़ का नाम अथवा किसी तरह की डिटेल्स मैं किसी के साथ शेयर करने की सोच ही नहीं सकता। लेकिन यह जो बात बता रहा हूं –इस का मतलब किसी तरह से भी यह नहीं है कि डाक्टर मरीज़ों के बारे में किसी तरह के जजमैंटल होते हैं......बिल्कुल नहीं, सो इस बात को केवल कुछ सबक ग्रहण करने के लिए ही सुनिएगा। लेकिन है यह शत-प्रतिशत सच।

कुछ दिन पहले, दोस्तो, मेरे पास लगभग 40वर्ष का युवक आया ( अब युवक ही कहूंगा...क्योंकि 35-40 की उम्र तक तो युवक अब कुंवारे ही रहने लगे हैं).....लेकिन यह युवक शादी-शुदा था। वह जिस तकलीफ़ के लिए आया था, जब मैं उस का निरीक्षण कर ही रहा था तो उस के मुंह में झांकने पर मुझे कुछ इस तरह के इंडीकेटर्स दिखे जो कि स्वस्थ व्यक्ति में नहीं होते, और जो कम इम्यूनिटि( रोग-प्रतिरोधकता क्षमता) की तरफ भी इशारा कर रहे होते हैं। इन इंडीकेटर्स की चर्चा विस्तार से फिर किसी पोस्ट में करेंगे। एक अवस्था जो आजकल के परिपेक्ष्य में संभावित सी जान पड़ रही थी, वह है एच-आई-व्ही इंफैक्शन।

तो, उस की तकलीफ़ के लिए प्रेसक्रिप्शन लिखते हुए मैंने उसे बहुत ही एक कैज़ुएल-वे में यह पूछ लिया कि बाहर किसी से शारीरिक संबंध तो नहीं रखते हो। लेकिन यह क्या, उस ने भी उतने ही कैज़ुएल वे में कह दिया----हां, हां, बिल्कुल !!

मुझे लगा कि उस ने मेरा प्रश्न ठीक से कैच नहीं किया, क्योंकि इतनी जल्दी और इतनी फ्रैंकनैस से हमें इन बातों के जवाब कम ही मिलते हैं। पहले थोड़ा मरीज़ से बातचीत में खुलना पड़ता है ....we have to make the person comfortable before discussing personal issues….otherwise why the hell he would talk with his doctor what he is doing behind closed doors!!

इसलिए मैंने अपना प्रश्न कुछ दूसरे ढंग से पूछा.....नहीं, मैं तो केवल यही पूछना चाह रहा था कि आप ने पिछली बार बाहर किसी के साथ शारीरिक संबंध कितने साल पहले बनाए थे। एक बार फिर मैं उस का जवाब सुन कर दंग रह गया....डाक्टर साहब, कितने साल पहले क्या, मैं तो आज भी यह सब खूब करता हूं।

मैंने उस से आगे कहा कि तुम्हें पता है न कि आज कल कितनी बीमारियां ऐसे असुरक्षित यौन संबंधों से फैलती हैं। खैर, दो-तीन बातें करने के बाद मैंने उसे एच-आई-व्ही टैस्ट करवाने पर राज़ी करवा लिया। लेकिन मैंने उसे इतना भी कह दिया कि इतनी कोई जल्दी भी नहीं है, तुम्हारी 2-4 दिन में जब तबीयत ठीक हो जाएगी, तब यह एच-आई-व्ही के लिए अपने रक्त की जांच भी ज़रूर करवा लेना। वह कुछ चिंतित सा लगा, सो मैंने उसे कहा कि इस में चिंता की तो कोई बात है ही नहीं, बिल्कुल मत सोचो इस के बारे में ज्यादा, लेकिन तुम चूंकि हाई-रिस्क सैक्सुयल बिहेवियर में लिप्त हो , इसलिए यह टैस्ट करवा लेना ही तुम्हारे हित में होगा। और तब मैंने उस मरीज़ को भेज दिया।

दोस्तो, आप सोच रहे होंगे कि उस का टैस्ट उसी समय ही क्यों नहीं करवा लिया गया, नहीं, दोस्तो, अकसर ऐसा नहीं किया जाता,क्योंकि मरीज़ को थोडा मानसिक तौर पर तैयार होने में टाइम तो लगता ही है ..उस में उस की सहमति (informed consent) भी बहुत ज़रूरी है …अब अगर किसी व्यक्ति को जो आप के पास थूक निगलने में दर्द की शिकायत लेकर आया है , उसे आप एचआईव्ही टैस्ट करवाने के लिए कह रहे हैं.....उस का तो सिर ही एकदम से घूम जाता है,और विशेषकर जब वह कोई भी हाई-रिस्क सैक्सुयल एक्टिविटि में लिप्त होने की बात स्वयं स्वीकार रहा हो......That’s why it is very important to make him/her feel relaxed !!.

दोस्तो, मैंने तो तीन –चार दिन के बाद आने की कही थी लेकिन वह तो अगले ही दिन मेरे पास आ गया। बहुत खुश लग रहा था, बताने लगा कि डाक्टर साहब, आप से कल जब मैं मिल कर गया, मेरे तो पैरों के तले से ज़मीन ही खिसक गई, मेरे से तो रहा ही नहीं गया, मैं सीधा पैथोलाजी लैब में गया और जा कर अपना खून HIV जांच के लिए दे दिया। उस ने आगे बताया कि शाम को मुझे जब ठीक ठाक होने की रिपोर्ट मिली तो मुझे चैन आया, मैं तो डाक्टर बहुत घबरा गया था।

अब हमारी अगली बात ज़रा ध्यान से सुनिएगा....पोस्ट लंबी होने की चिंता मेरी पोस्ट में ज्यादा न किया करें...आप को पता ही है कि डाक्टर लोग तो वैसे कितना कम बोलते हैं, और देखिए मैं आपसे बतियाता ही जा रहा हूं।

अच्छा , तो दोस्तो, मैंने उस की ठीक ठाक रिपोर्ट देख कर उसे बधाई दी और कहा यह तो ठीक है , लेकिन जो आप कल बाहर जा कर संबंध (extra-marital relations) बनाने की बात कह रहे थे, उस पर टोटल रोक लगा दें, ताकि हमेशा के लिए आप इस बीमारी से अपना बचाव कर सकें।

अब उस की बोलने की बारी थी----नहीं, डाक्टर साहब, आप गल्त समझ बैठे हैं, मैं इधर-उधर कहीं नहीं जाता...मेरे कहने का मतलब है कि वैश्याओं के पास नहीं जाता, बस कुछ पर्सनल 3-4 जुगाड़ हैं , जो अब विवाहित हैं ,जहां बस प्यार का ही मामला है, एक दम पर्सनल...और कुछ नहीं।

अब मैं उस को यह कैसे कहता कि जिन “जुगाड़ों” को तुम इतना पर्सनल कह कर इतरा रहे हो, उनकी इतनी गारंटी कैसे ले सकते हो। क्या पता यह क्लेम करने वाले और भी कितने हों !!(विचार तो, दोस्तो, एक दो और भी आए लेकिन वे यहां लिखने लायक भी नहीं हैं....क्या है न , डाक्टरों को गुस्सा पीना भी बखूबी आता है...) .....चूंकि डाक्टरों को मरीज़ पर सीधी कोई भी चोट करने से बचना होता है या यूं कहूं कि डैकोरम मेनटेन करना होता है, सो मैंने भी उस दिन उसे समझाने के लिए थोड़ा घुमावदार तरीका ही अपनाया।

मैंने उस बंदे को यह कह कर समझाने की कोशिश की कि देखो, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि ये सब तुम्हारी पर्सनल हैं, लेकिन सोचो, उन के जो पति हैं वे कहां कहां जाते होंगे, तुम इस की क्या गारंटी ले सकते हो ? ….दोस्तो, यकीन मानिए बात उस के मन को लग गई। और, अंत में वह कहने लगा कि अब मेरी तो तौबा, डाक्टर साब, ऐसे संबंधों से। लेकिन अभी भी उस के अंदर का कीड़ा काट रहा था.......जाने से पहले, एक सवाल उस ने यह कर ही दिया कि डाक्टर साब, सैक्स की बात तो मैं मान गया, लेकिन क्या चुंबन करने से भी कोई खतरा होता है। मैंने उसे समझाया कि हां, हां, मुंह से मुंह (mouth-to-mouth kissing) लगा कर किए जाने से भी एचआईव्ही इंफैक्शन का खतरा संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में होता ही है क्योंकि मुंह में अगर कट्स हैं, छाले हैं, कोई घाव है, खरोंच हैं तो बस हो गया एचआईव्ही वायरस के फैलने का प्रबंध। लग तो रहा था कि अब उसे पूरी समझ लग चुकी है कि यह खेल तो आग का खेल है।

जाते जाते मैंने उसे यह भी समझाया कि अब अपना ध्यान इस घर के बाहर जा कर संबंध स्थापित करने से हटाओ....सैर किया करो, प्राणायाम एवं योग किया करो....सात्विक भोजन खाया करो......हां,हां, वही सब घिसी पिटी बातें जो मेरे जैसे सारे डाक्टर सारा दिन गला फाड़-फाड़ कर कहते रहते हैं।

लेकिन इस घटना ने मेरे उस विश्वास को और भी पक्का कर दिया कि अच्छे पढ़े लिखे लोगों में भी एचआईव्ही संक्रमण एवं इन पर्सनल जुगाड़ों के प्रति कितनी गलतफहमी है। इसलिए हम डाक्टरों पर भी यह अवैयरनैस लाने की अभी कितनी बड़ी जिम्मेदारी है।

पोस्ट लंबी है, मैं इस के बारे में कुछ नहीं कर सका---क्योंकि, दोस्तो, मुझे अपनी बात तो पूरी आप के सामने रखनी ही थी।

Wishing you pink of health and lots of lots of happiness..

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

स्वपन दोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!

स्वप्नदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!

दोस्तो, क्या आपने यौवन की दहलीज़ पर पांव रख रहे अपने बेटे की आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी का तूफान देख कर कभी उसे यह कहने की जरूरत महसूस की है कि स्वप्नदोष (वही जिसे इंगलिश में हम लोग Nightfall भी कह दिया करते हैं)कोई दोष-वोष नहीं है, बस तुम इस के बारे में बिलकुल सोचा मत करो, सब कुछ समय के साथ ठीक हो जाएगा। Why don't you tell him that these 'night falls' are so common and almost a natural phenomenon !! उसे क्यों नहीं हम पूरी तरह एक बात समझा देते कि देखो, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा, ऐसा अकसर इस उम्र में होता ही है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था,तो मैं भी इस अवस्था से गुज़र चुका हूं। दोस्तो, अपनी उदाहरण दे कर बताना बेहद जरूरी है----क्योंकि तब आप का बेटा आप से बेहतर रिलेट करने लगता है।

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि हम इतना पढ़े-लिखे हुए लोग भी इस मामले में क्यों चूक जाते हैं। क्यों लेते हैं हम कुछ चीज़ों को ---just taken for granted !!

जी नहीं, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो कि आप ही अपने बेटे को दुनिया में सब से अच्छे ढंग से बता सकते हैं, दूसरा कोई नहीं ----क्योंकि वह आप पर पूरा भरोसा करता है। शायद हमारा समय कुछ और था---हम लोगों की अपने बड़ों के साथ कहां इतनी ओपननैस थी, हम लोग ---शायद आप को भी कुछ कुछ याद होगा--तो बस यह सब बातें सोच सोच कर खुद मन ही मन कईं साल परेशान रहते थे। अकसर युवावस्था की दहलीज पर खड़े ये बच्चे अपने शरीर में होने वाले विभिन्न तरह के बदलाव( night-fall भी उन्हीं में से एक है, शेष के बारे में भी आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन उस बच्चे से भी उस के मानसिक स्तर के अनुसार बात तो कर लीजिए) देख कर बौखला से जाते हैं कि पता नहीं मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है।

और, ये जो खानदानी नीम-हकीम वगैरह जगह जगह बैठे हुए हैं ,ये तो इस समस्या (वैसे तो यह कोई समस्या है ही नहीं,अगर एक बार समझ में आ जाए तो)--चलिए, समस्या कहते ही नहीं, मुद्दा कहते हैं...अब तो ठीक है........वे इस मुद्दे को अपने इश्तिहारों से और भी कंप्लीकेट कर के रखे हुए हैं। इतने अजीब तरह से अपनी मशहूरी करते हैं और अपने कुछ इस तरह के विज्ञापन छपवा कर इतनी strategic जगहों पर इन्हें चिपका देते हैं या बंटवा देते हैं कि टीन-एजर्रस का इन की दिमाग खराब करने वाली भाषा के जाल से बचना मुश्किल हो जाता है। और देर-सवेर यह निर्बोध किशोर इन के चंगुल में फंस जाते हैं। मेरा एक मित्र मुझे बता रहा था कि उस के पास एक व्यक्ति अपने 19-20 साल के बेटे को ले कर आया जो कि इन झोलाछाप नीम-हकीमों के चक्कर में फंस कर अपने योनअंगों की छोटीमोटी इंफैक्शन( और वह भी वास्तविक कम, काल्पनिक ज्यादा) से निजात पाने के लिए70-80 हज़ार रूपये धीरे-धीरे मां-बाप से छुप कर इस क्वैक को दे चुका था---मेरा वह मित्र skin and V.D specialist है, वह कह रहा था कि उसे केवल कुछ दिनों के लिए दवाईयां दीं, थोड़ी साफ-सफाई के बारे में अच्छी तरह से बता दिया जिस से वह बिल्कुल ठीक हो गया।

हां,तो दोस्तो, अपनी बात हो रही थी--स्वपन दोष की.......सीधी सी बात है कि दोस्तो जब कोई मटकी भर जाएगी तो थोड़ी छलकेगी ही न--- वही बात यहां है कि किशोरावस्था के दौरान जब वीर्य की मटकी शरीर में भर जाती है तो वह कभी कभी छलक जाती है......that's all ! और इन बच्चों के लिए यह इतना बडा़ मुद्दा बना रहता है--- इतना बडा़ कि वे अपने कैरियर के हिसाब से इतने महत्वपूर्ण वर्षों में इस छोटी की वजह के कारण कईं बार पूरी तरह अपनी पढ़ाई में कंसैनटरेट ही नहीं कर पाते।

हम कईं बार यह भी समझ लेते हैं कि बच्चे आज कल इतने एडवांस हैं, वे सब बातें जानते ही होंगे। लेकिन शायद नहीं...अपने दोस्तों से तो उन्हें भ्रामक या और भी अधकचरी जानकारी ही मिलेगी जिससे वे और भी उलझ कर रह जाएंगे। इंटरनैट पर सर्च कर के बहुत कुछ इस विषय से संबंधित भ्रांतियां उखाड़ फैंकने के लिए उन को मिल सकता है, लेकिन आप का बेटा तो बस आप के ऊपर ही सारे जहां से ज्यादा विश्वास करता है। इसलिए आप के द्वारा की गई बात बेहद कारगार सिद्ध होगी। आप एक बार इस विषय के बारे में संवाद छेड़ कर तो देखिए.........लेकिन यह सब जल्दी ही कर लीजिए। अभी भी कोई ब्लाक रास्ते में आ रहा है तो कम से कम मेरी इस पोस्टिंग को उसे पढ़वा तो दें, उसे तसल्ली सी हो जाएगी।

मेरा भी एक टीनएज बेटा है, उसे मैं यह बात कईं बार खुले तौर पर समझा चुका हूं....और कुछ कुछ अंतराल के बाद ऐसे ही थोड़ी दोहरा सी देता हूं। कईं बार जब मैं जब उसे चिंता में डूबा देखता हूं , तो उस से पूछता हूं कि क्या उसे ये बातें तो परेशान नहीं कर रहीं----तो वह तुरंत जवाब दे देता है----पापा, उस के बारे में तो आप कोई टेंशन न रखा करो, मैं इन सब बातों को समझता हूं, जानता हूं, मुझे ऐसा वैसा कोई फिक्र नहीं है। दोस्तो, यह बात एक ही बार कहने से नहीं चलेगा, समय समय उस की मानसिक स्थिति के अनुसार इस बात को बड़ी इंफारमल तरीके से दोहरा देना बेहद जरूरी है।

साथ साथ इन बच्चों को यह भी संदेश देना होगा कि सात्विक खाना खाएं, जंक फूड से दूरी बनाए रखें, पान-मसालों, गुटखों को पास न फटकने दें, रात को खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लिया करें, योगाभ्यास(प्राणायाम् भी) एवं ध्यान किया करें और सब से जरूरी प्रार्थना किया करें----इस में बेहद शक्ति है। इस के इलावा कोई और भी समस्या है तो क्वालीफाईड डाक्टर हैं , उन की सलाह लेने में बेहतरी है।
तो क्या मैं यह इत्मीनान कर लूं कि आज शाम को आप अपने बेटे के दिल को थोड़ा टटोलेंगे ?? ....लेकिन प्लीज़ ये बातें करिए अकेले में ही।
So, good luck !!---Just go ahead !!
Posted by Dr.Parveen Chopra at 8:53 AM
1 comments:

pankaj said...

aap ne iss bare me jo jankaridi hai vo bahot achi hai
March 25, 2008 1:17 PM

स्वप्नदोष जब कोई दोष है ही नहीं तो !!


दोस्तो, क्या आपने यौवन की दहलीज़ पर पांव रख रहे अपने बेटे की आंखों में एक अजीब-सी बेचैनी का तूफान देख कर कभी उसे यह कहने की जरूरत महसूस की है कि स्वप्नदोष (वही जिसे इंगलिश में हम लोग Nightfall भी कह दिया करते हैं)कोई दोष-वोष नहीं है, बस तुम इस के बारे में बिलकुल सोचा मत करो, सब कुछ समय के साथ ठीक हो जाएगा। Why don't you tell him that these 'night falls' are so common and almost a natural phenomenon !! उसे क्यों नहीं हम पूरी तरह एक बात समझा देते कि देखो, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा, ऐसा अकसर इस उम्र में होता ही है, जब मैं तुम्हारी उम्र का था,तो मैं भी इस अवस्था से गुज़र चुका हूंदोस्तो, अपनी उदाहरण दे कर बताना बेहद जरूरी है----क्योंकि तब आप का बेटा आप से बेहतर रिलेट करने लगता है

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई कि हम इतना पढ़े-लिखे हुए लोग भी इस मामले में क्यों चूक जाते हैं। क्यों लेते हैं हम कुछ चीज़ों को ---just taken for granted !!

जी नहीं, यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो कि आप ही अपने बेटे को दुनिया में सब से अच्छे ढंग से बता सकते हैं, दूसरा कोई नहीं ----क्योंकि वह आप पर पूरा भरोसा करता है। शायद हमारा समय कुछ और था---हम लोगों की अपने बड़ों के साथ कहां इतनी ओपननैस थी, हम लोग ---शायद आप को भी कुछ कुछ याद होगा--तो बस यह सब बातें सोच सोच कर खुद मन ही मन कईं साल परेशान रहते थे। अकसर युवावस्था की दहलीज पर खड़े ये बच्चे अपने शरीर में होने वाले विभिन्न तरह के बदलाव( night-fall भी उन्हीं में से एक है, शेष के बारे में भी आप और हम अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन उस बच्चे से भी उस के मानसिक स्तर के अनुसार बात तो कर लीजिए) देख कर बौखला से जाते हैं कि पता नहीं मेरे साथ ही यह सब क्यों हो रहा है।

और, ये जो खानदानी नीम-हकीम वगैरह जगह जगह बैठे हुए हैं ,ये तो इस समस्या (वैसे तो यह कोई समस्या है ही नहीं,अगर एक बार समझ में आ जाए तो)--चलिए, समस्या कहते ही नहीं, मुद्दा कहते हैं...अब तो ठीक है........वे इस मुद्दे को अपने इश्तिहारों से और भी कंप्लीकेट कर के रखे हुए हैं। इतने अजीब तरह से अपनी मशहूरी करते हैं और अपने कुछ इस तरह के विज्ञापन छपवा कर इतनी strategic जगहों पर इन्हें चिपका देते हैं या बंटवा देते हैं कि टीन-एजर्रस का इन की दिमाग खराब करने वाली भाषा के जाल से बचना मुश्किल हो जाता है। और देर-सवेर यह निर्बोध किशोर इन के चंगुल में फंस जाते हैं। मेरा एक मित्र मुझे बता रहा था कि उस के पास एक व्यक्ति अपने 19-20 साल के बेटे को ले कर आया जो कि इन झोलाछाप नीम-हकीमों के चक्कर में फंस कर अपने योनअंगों की छोटीमोटी इंफैक्शन( और वह भी वास्तविक कम, काल्पनिक ज्यादा) से निजात पाने के लिए70-80 हज़ार रूपये धीरे-धीरे मां-बाप से छुप कर इस क्वैक को दे चुका था---मेरा वह मित्र skin and V.D specialist है, वह कह रहा था कि उसे केवल कुछ दिनों के लिए दवाईयां दीं, थोड़ी साफ-सफाई के बारे में अच्छी तरह से बता दिया जिस से वह बिल्कुल ठीक हो गया।

हां,तो दोस्तो, अपनी बात हो रही थी--स्वपन दोष की.......सीधी सी बात है कि दोस्तो जब कोई मटकी भर जाएगी तो थोड़ी छलकेगी ही --- वही बात यहां है कि किशोरावस्था के दौरान जब वीर्य की मटकी शरीर में भर जाती है तो वह कभी कभी छलक जाती है......that's all ! और इन बच्चों के लिए यह इतना बडा़ मुद्दा बना रहता है--- इतना बडा़ कि वे अपने कैरियर के हिसाब से इतने महत्वपूर्ण वर्षों में इस छोटी की वजह के कारण कईं बार पूरी तरह अपनी पढ़ाई में कंसैनटरेट ही नहीं कर पाते

हम कईं बार यह भी समझ लेते हैं कि बच्चे आज कल इतने एडवांस हैं, वे सब बातें जानते ही होंगे। लेकिन शायद नहीं...अपने दोस्तों से तो उन्हें भ्रामक या और भी अधकचरी जानकारी ही मिलेगी जिससे वे और भी उलझ कर रह जाएंगे। इंटरनैट पर सर्च कर के बहुत कुछ इस विषय से संबंधित भ्रांतियां उखाड़ फैंकने के लिए उन को मिल सकता है, लेकिन आप का बेटा तो बस आप के ऊपर ही सारे जहां से ज्यादा विश्वास करता है। इसलिए आप के द्वारा की गई बात बेहद कारगार सिद्ध होगी। आप एक बार इस विषय के बारे में संवाद छेड़ कर तो देखिए.........लेकिन यह सब जल्दी ही कर लीजिए। अभी भी कोई ब्लाक रास्ते में आ रहा है तो कम से कम मेरी इस पोस्टिंग को उसे पढ़वा तो दें, उसे तसल्ली सी हो जाएगी।

मेरा भी एक टीनएज बेटा है, उसे मैं यह बात कईं बार खुले तौर पर समझा चुका हूं....और कुछ कुछ अंतराल के बाद ऐसे ही थोड़ी दोहरा सी देता हूं। कईं बार जब मैं जब उसे चिंता में डूबा देखता हूं , तो उस से पूछता हूं कि क्या उसे ये बातें तो परेशान नहीं कर रहीं----तो वह तुरंत जवाब दे देता है----पापा, उस के बारे में तो आप कोई टेंशन न रखा करो, मैं इन सब बातों को समझता हूं, जानता हूं, मुझे ऐसा वैसा कोई फिक्र नहीं है। दोस्तो, यह बात एक ही बार कहने से नहीं चलेगा, समय समय उस की मानसिक स्थिति के अनुसार इस बात को बड़ी इंफारमल तरीके से दोहरा देना बेहद जरूरी है।

साथ साथ इन बच्चों को यह भी संदेश देना होगा कि सात्विक खाना खाएं, जंक फूड से दूरी बनाए रखें, पान-मसालों, गुटखों को पास न फटकने दें, रात को खाना सोने से कम से कम दो घंटे पहले खा लिया करें, योगाभ्यास(प्राणायाम् भी) एवं ध्यान किया करें और सब से जरूरी प्रार्थना किया करें----इस में बेहद शक्ति है। इस के इलावा कोई और भी समस्या है तो क्वालीफाईड डाक्टर हैं , उन की सलाह लेने में बेहतरी है।
तो क्या मैं यह इत्मीनान कर लूं कि आज शाम को आप अपने बेटे के दिल को थोड़ा टटोलेंगे ?? ....लेकिन प्लीज़ ये बातें करिए अकेले में ही।
So, good luck !!---Just go ahead !!

1 comments:

pankaj said...

aap ne iss bare me jo jankaridi hai vo bahot achi hai

गुरुवार, 3 जनवरी 2008

पौरूषता बढ़ाने वाले सप्लीमेंटस से सावधान !!-----मैं नहीं, अमेरिकी एफडीआई यह कह रही है....




अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने लोगों को ऐसे खाद्य़ पदार्थों को खरीदने अथवा खाने से मना किया है जिन की मार्केटिंग ही पौरूषता की कमी के मामले ठीक करने वाले डाइटरी सप्लीमेंटस के रूप में की जा रही है ---इस चेतावनी का कारण यह है कि इन पदार्थों को खाने से कुछ लोगों का ब्लड-प्रेशर खतरनाक लेवल तक गिर सकता है। इन पदार्थों को चीन में बनाया गया है।

चिंता की बात यही है ,दोस्तो, कि चाहे इन की मार्केटिंग डायटरी सप्लीमेंटस के रूप में की जाती है, लेकिन इन में एक्टिव दवाईयां भी होती हैं जिन के बारे में इस की पैकिंग पर कुछ नहीं लिखा होता और वैसे जिन दवाईयों को बिना डाक्टरी नुस्खे के कोई खरीद नहीं सकता। इसलिए एफडीआई के अनुसार ऐसे उत्पाद गैर-कानूनी हैं क्योंकि इन्हें एफडीआई की एपरूवल प्राप्त नही है। आप भी उत्सुक हो रहे होंगे कि ऐसा क्या मिला है इन चीनी खाद्य पदार्थों में कि एफडीआई इतना भड़क गई है। दोस्तो, इन सप्लीमेंटस में सिलडिनाफिल नाम की दवाई मिली हुई है, जी हां, बिलकुल वही जो वियाग्रा में होती है। अब, आप देखें कि वैसे तो वियाग्रा डाक्टरी सलाह से ही लेनी चाहिए----अब अगर इसे दवाई से लैस कुछ खाद्य पदार्थों को अगर लोग कुरमुरे की तरह छकने लगेंगे तो क्या होगा !!---अब जब डाक्टर किसी को यह दवाई दे रहे हैं ,तो उस बंदे के स्वास्थ्य के बारे में सारी खबर उस को रहती है। लेकिन अगर इन से लैस डिब्बों कोलोग डाइटरी सप्लीमेंटस के रूप में ही लेने लगें तो फिर तो .....। वास्तव में खतरा यही है कि ये दवाईयां जिन की सूचना डिब्बे के ऊपर नहीं की गई होती, ये नाईट्रेटस नामक दवाईयों की वर्किंग के साथ कुछ पंगा ले कर इन सप्लीमेंटस को लेने वालों में ब्लड-प्रेशर का स्तर खतरनाक लेवल तक गिरा सकती हैं। डायबिटीज़, हाई ब्लड-प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रोल एवं हृदय रोग वाले मरीज़ सामान्यतयः ये नाइट्रेटस नामक दवाईयां लेते है। थोडी़ बहुत पौरूषता की कमी (इरैक्टाइल डिसफंक्शन) इन मैडीकल अवस्थाओं में आम समस्या है---ऐसे में इन खाद्य़ पदार्थों को खाना कितना जोखिम भरा है, यह अब हम जानते हैं। अब भला अमेरिका यह सब कैसे बरदाशत कर सकता है....

रही अपने यहां की बात, यहां तो,दोस्तो, सब कुछ बिलकुल धड़ल्ले से बिक रहा है......पता ही नहीं, सड़क के किनारे तंबू गाड़ कर नीम हकीम इस पौरूषता को बढ़ावा देने के लिए इस देश के आम बंदे को क्या क्या पुड़ीयों में डाल कर खिलाए जा रहे हैं। अमेरिका वालों को यह तो पता चल गया कि उन के बंदे क्या खा रहे हैं........हमें तो अफसोस इस बात का ही है कि हमें तो यह भी नहीं पता कि हमारे बंदे इन नीम हकीमों एवं खानदानी दवाखानों से क्या क्या ले कर छके जा रहे है। और जब इन को कुछ हो भी जाता होगा....तो हम ही लोग बड़ी लापरवाही की चादर ओड़ कर यही कह कर बात आई-गई कर देते हैं कि इस की लिखी ही इतनी थी।
वैसे , मुझे तो यह भी लगता है कि जब ये चीनी सप्लीमेंटस अमेरिका वाले अपने देश से बाहर निकाल देंगें-----फिर यही सप्लीमेंटस हमारे देश के चाइनों बाज़ारों में ही बड़े धडल्ले से बिकेंगे......................क्या आप को भी ऐसा ही लग रहा है??

बुधवार, 2 जनवरी 2008

शादी से पहले आखिर एचआईव्ही टैस्टिंग क्यों नहीं ??-- प्लीज़, सोचिए !!

दोस्तो, पिछले काफी अरसे से यह विचार परेशान किए जा रहा है कि आखिर शादी से पहले कब हम लोग एचआईव्ही टैस्टिंग के बारे में सोचने लगेंगे। दोस्तो, मुझे खुद नहीं पता जो मैं कह रहा हूं यह कितना प्रैक्टीकल है, लेकिन दोस्तो यह बात मेरी दिल की गहराईयों से निकलती रहती है कि शादी से पहले लड़के एवं लड़की का एच.आई.व्ही टैस्ट तो होना ही चाहिए। दोस्तो, इस बात से तो आप भी सहमत हैं न कि एड्स जैसी भयंकर बीमारी ने विकराल रूप धारण किया हुया है। ऐसे में हम लोगों की इस के बारे में टैस्टिंग की झिझक आखिर कब जाएगी, दोस्तो। नये साल के संबंध में कुछ लोगों के नए-नए सैक्सुअल एडवेंचरस की बातें आप और हम मीडिया में देखते-सुनते रहते हैं। लेकिन इन संबंधों के संभावित खौफनाक नतीजों की चर्चा क्यों नहीं होती???--वैसे एक बात यह भी है न कि इस संबंध में हमारे अपने ही देश में अपने ही लोगों के साथ चर्चा छेड़ने के लिए कोई फिरंगी तो आने से रहा--- यह चर्चा तो हम सब को देर-सवेर छेड़नी ही है, तो क्यों न अभी से छेड़ ली जाए। बाहर के देशों वाले तो दोस्तो इन सब एडवेंचरस को पहले से भुगतने के आदि से जान पड़ते हैं--- मुझे कईं बार लगता है कि हमारे सीधे-सादे लोगों को भी यह रास्ता दिखाने में उन के मीडिया की अच्छी खासी भूमिका रही है। तो फिर करें क्या ??
जी हां, मैं अपनी बात पर ही आ रहा हूं , हम क्यों शादी से पहले एचआईव्ही टैस्ट जरूरी नहीं कर देते---- नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं.....कृपया इसे सरकारी तौर पर अनिवार्य करने की बात मैं बिल्कुल नहीं कर रहा हूं, क्योंकि फिर तो ड्राईविंग लाइसेंस लेने की तरह यह भी इतना आसान हो जाएगा कि कोई भी दलाल यह बिना किसी टैस्ट के ओके रिपोर्ट के साथ दिला दिया करेगा। काश , हमारे समाज में ही इतनी जागरूकता सी आ जाए कि अनपढ़ लोग भी इस संबंध में बातें करनें लगें.......प्लीजृ आमीन कह दीजिए। मुझे तसल्ली हो जायेगी।
दोस्तो, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि आज कल के युवा कुछ पाश्चात्य प्रभाव के कारण ज्यादा उन्मु्क्त से होते जा रहे हैं, लेकिन इस संबंध में हम उन की कितनी लगाम कस सकते हैं,मैं नहीं जानता। लेकिन हम इतना तो कर ही सकते हैं कि विवाह से पूर्व इस टैस्टिंग के द्वारा एक बिल्कुल भोली भाली अल्हड़ सी गुड़िया की अथवा एक सीधे-सादे नौजवान की जिंदगी ही बचा लें। दोस्तो, बात यह बहुत गहरी है,पता नहीं मैंने भावावेश में कैसे लिख दी है, पता नहीं आप सब का क्या रिएक्शन होगा। लेकिन मैंने बीज डालने का अपना काम कर दिया है। और वह भी उस समाज में,दोस्तो, जहां पर अभी तक यौन-शिक्षा के ऊपर ही सहमति नहीं बन पा रही है..........कारण??---कहीं, यह हमारे बच्चों को गंदा न कर दे। ऐसे विचार रखने वालों से क्या आप को घिन्न नहीं आती ??---भई, मुझे तो बहुत ज्यादा आ रही है, तभी तो बेटे को आवाज़ लगा कर नाक ढंकने के लिए एक बड़ा रूमाल (रूमाल से क्या बनेगा, तौलिया ही मंगवा लेता हूं ) मंगवा रहा हूं।
Very Good morning, friends!!