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बुधवार, 4 मई 2011

हुक्का पार्लर का नशा .... दम मारो दम !

आज एक युवक ने मेरे से पूछा कि यह जो शहर में हुक्का-ज्वाईंट खुला है, उसके बारे में मेरा क्या ख्याल है। मैं बड़ा हैरान हुआ यह सुन कर कि हमारे जैसे छोटे शहर में भी यह खुल गया है, विदेशों में और महानगरों में तो सुना था कि इस तरह के पार्लर खुल गये हैं, लेकिन छोटे छोटे शहरों में भी अब यह सब !!

वह युवक मुझे बता रहा था कि यह ज्वाईंट आजकल कालेज के छात्र-छात्राओं में पापुलर होने लगे हैं। उस ने यह भी बताया कि अकसर ऐसी जगहों पर जाने वालों का कहना है कि इस तरह का “मीठा हुक्का” गुड़गड़ाने से कुछ नहीं होता, इस का कोई नुकसान नहीं है।

कालेज की उम्र होती ही नई नई चीज़ों को ट्राई करने के लिये है ...ऐसे में इस तरह के हुक्का पार्लर खुलना अपने आप में खतरे का संकेत है। और जहां तक हुक्का पीने की बात है, तंबाकू तो है ही जिसे पिये जा रहा है, तो फिर ज़हर तो ज़हर है ही ....इस में कोई दो राय हो ही नहीं सकती।

Planning to bunk classes to gang up at a hookah parlour?

मुझे तो यकीन है कि ऐसे पार्लर खोलने के पीछे युवकों को तंबाकू की लत लगाने की साज़िश है, जिन युवकों की ज़िंदगी तंबाकू के बिना सीधी लाइन पर चल रही है, क्यों उन की ज़िंदगी में ज़हर घोलने का षड़यंत्र रचा जा रहा है। कुछ ही दिन ये हुक्का-वुक्का गुड़गुड़ाने के बाद ऐसा हो ही नहीं सकता कि उन्हीं युवकों के हाथ में सिगरेट न हों, जब कि हमें पता ही है कि सिगरेट की लत लगाने के लिये मज़ाक मज़ाक में केवल एक सिगरेट पिया जाना ही काफ़ी है।

उस युवक ने कहा कि यह जो हुक्का पीने के लिये सभी लोग एक ही पाइप का इस्तेमाल करते हैं, यह भी सेहत के लिये ठीक नहीं होगा, बिल्कुल यह भी सेहत के लिये खतरा है क्योंकि कितनी ही ऐसी बीमारियां हैं जिन के कीटाणु/विषाणु लार में मौजूद रहते हैं।

और इस तरह के पार्लरों को युवकों में लोकप्रिय करना कोई मुश्किल काम थोड़े ही है, इस तरह का धंधा करने वाले सभी तरह के हथकंडे अपनाने से कहां चूकने वाले हैं। इसलिये युवकों को ही इन सब से बच कर रहना होगा।

जब हम लोग पांचवी छठी कक्षा में पढ़ा करते थे तो हमारे स्कूल के पास एक दुकान हुआ करती थी जिस के आगे से निकलना बहुत मुश्किल सा लगा करता था ... भयानक बदबू निकला करती थी उस दुकान से.....धीरे धीरे पता चला कि उस दुकान पर तंबाकू बिका करता था, उन दिनों इतना यह सब पता नहीं होता था कि इस का लोग क्या करते हैं, लेकिन अब ध्यान आता है कि वह सूखे तथा गीले तंबाकू (Tobacco leaves, Moist tobacco) की दुकान थी जहां पत्थरों जैसे दिखने वाले काले जैसे रंग के गीले तंबाकू के बड़े बड़े ढेले पड़े रहते थे। इन्हें हुक्के में इस्तेमाल किया जाता होगा और सूखे तंबाकू की पत्तियों को चूने के साथ रगड़ के चबाया जाता होगा।


इन हुक्का पार्लरों से मन जब जल्दी ही युवकों का मन ऊब सा जाएगा तो शायद इस के आगे की स्टेज यह गीत दिखा रहा है .....


रविवार, 13 मार्च 2011

तंबाकू निषेध को किसी धर्म विशेष से जोड़ने की नासमझी....

अमृतसर से अंबाला आते हुये पंजाब और हरियाणा का बार्डर है शंभु...अनेकों बार ऐसा मंज़र देखा है कि ट्रेन के शंभु क्रॉस करते ही लोग अपने बीढ़ी, सिगरेट के बंडल निकाल लिया करते थे. इस का कारण? …ऐसा भी मैंने कईं बार देखा है कि किसी सिक्ख (सरदार जी) की किसी बीढ़ी सुलगाने की तैयारी कर रहे बंदे की तरफ़ एक टेढ़ी नज़र ही काफ़ी हुआ करती थी....शायद किसी को टोकने की ज़रूरत पड़ती ही न थी। पंजाब की बसों में तो कोई सिगरेट-बीड़ी सुलगाने की सोच ही नहीं सकता था !!

किसी डिब्बे में अगर कोई सरदार जी बैठे हुये हैं तो शंभु तक तो किसी की क्या मजाल कि बीढ़ी सुलगा जाए ... और अगर कोई निहंग सिक्ख है तो धूम्रपान करने वालों की ऐसी की तैसी। लेकिन वह भी शंभु तक ही।
और मैं देखा करता था कि शंभु स्टेशन पर पहुंचते ही लोग अपने अपने बीढ़ी के बंडल, सिगरेट के पैकेट यूं निकाल कर इत्मीनान की सांस लिया करते थे जैसे चंबल के बीहड़ों से बाहर निकल आये हों।

मैं तब भी सोचता था और आज भी वैसा ही सोचता हूं कि यह कैसा सिरफिरापन है. अच्छी से अच्छी बात को धार्मिक कट्टरवाद से जोड़ कर ही क्यों देखा जाता है, यह बात मैं बहुत से लोगों से सांझी करता हूं। हमें तो शुक्रगुज़ार होना चाहिये ऐसी लोगों का , गुरू की ऐसी बढ़िया सिखलाई का जो चार घंटे तक (अमृतसर से शंभु तक का ट्रेन सफ़र) हज़ारों लोगों के फेफड़े सिंकने से बचा लेती थी।

ध्यान आता है कि ऐसा रोकने टोकने का मतलब केवल यही क्यों लिया जाए कि इस से फायदा केवल सरदारों को ही होगा, सब के सब बच जाते हैं इस ज़हर से ..पीने वाले भी, साथ बैठे लोग, माताएं, बहनें और गर्भवती महिलाएं भी ... इस के प्रकोप से बचे रहते हैं। इसलिये आज भी जब कोई सरदार जी किसी बस में या गाड़ी में किसी बीढ़ीबाज़ को टोकता है तो मुझे बेहद खुशी होती है कि किसी ने तो हिम्मत की। और बहुत बार इस का तुरंत असर दिख जाता है... बहुत बार कहा सुनी हो जाती है जैसा कि मेरा अपना अनुभव रहा।

अभी मैं गर्भवती महिलायों की बात कर रहा था ...यह तो हम पिछले कईं दशकों से सुनते आ रहे हैं कि गर्भवती महिलाएं जो धूम्रपान करती हैं उन में कईं तरह की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं ...उन में ही नहीं उन के नवजात् शिशुओं में भी और गर्भावस्था के दौरान उन में कईं तरह की जटिलताएं उत्पन्न होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। दूर-देशों में तो यह समस्या बहुत विकराल है, अपने यहां पर भी है, लेकिन ज़्यादातर महिलाएं बीढ़ी आदि का उपयोग करती हैं इसलिये इन के दुष्परिणामों के बारे में अलग से कुछ कहने की ज़रूरत दिखती नहीं।

लेकिन अब जिस मुख्य समस्या की बात आज मैं करना चाह रहा हूं वह यह है कि जिन गर्भवती महिलाओं को सैकेंड-हैंड तंबाकू का धुआं भी मिल रहा है ... उन में भी शिशु के मृतजात होने का खतरा 23 प्रतिशत और शिशु के शरीर में होने वाली विकृतियों का रिस्क 13 प्रतिशत बढ़ जाता है.....यह किसी एक वैज्ञानिक के आंकड़े नहीं हैं, विश्व भर में पिछले कईं सालों में की गईं 19 स्टडीज़ का निष्कर्ष है यह जो अभी अभी मुझे बीबीसी न्यूज़ पर देखने को मिला है .....Passive Smoking Increases Still-birth risk, study says. 

इसलिये यह कोई अचंभित होने वाली बात नहीं अगर इस न्यूज़-रिपोर्ट में यह कहा गया है कि जो पुरूष पिता बनने वाले हैं उन्हें धूम्रपान से दूर ही रहना चाहिये...बात तो यहां तक हो रही है कि जो पुरुष पिता बनने की तैयारी कर रहे हैं उन के लिये भी तंबाकू से बचे रहने में ही समझदारी है क्योंकि इस से उन के शुक्राणुओं पर असर तो पड़ता ही है और उन की स्मोकिंग की वजह से उन की पत्नी एवं उस के गर्भ में पल रहे शिशु पर होने वाले खतरनाक परिणामों की बात पहले कर ही चुके हैं !!

और जिन गर्भवती महिलाओं के शिशु पर सैकेंड-हैंड स्मोक के बुरे असर की बात हो रही है यह स्मोक घर में स्मोक कर रहे लोगों से भी हो सकता है और अपने कार्यस्थल पर फेफड़े सेंकने वालों से भी हो सकता है और अगर सारे दिन में लगभग दस सिगरेट कोई इन महिलाओं के आसपास मौजूद व्यक्ति पी लेता है तो इन औरतों में तरह तरह की जटिलताएं होने का खतरा खासा बढ़ जाता है।

इस तरह की बातें यहां भारत में कभी होती ही नहीं हैं ....देश में औरत के इस तरह के हितों के बाते में कैसे चर्चा हो और वह भी तब जब उस की भलाई के लिये पुरुष-प्रधान समाज के “मर्दों” को कुछ छोड़ने की बात कही गई हो, आप इस के परिणामों की स्वयं कल्पना कर सकते हैं। पढ़े लिखे लोग तो है ही , ऐसे तबके की कल्पना करिये जो छोटी छोटी झोंपडीनुमा आशियानों में रहते हैं जिस में इस तरह की सैकेंड हैंड स्मोक से आस पास मौज़ूद लोगों को खतरा कईं गुणा बढ़ जाता है।

आज वह दौर आ गया है कि किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अपने पास बैठे किसी भी बीड़ीबाज और सिगरेटधारी को टोकने-रोकने की जिम्मेदारी हम पर बनती है....सरकार क्या क्या करे, कानून बन गया है यह क्या कम है, अब हर बीड़ीबाज़ के आसपास मंडराए रखने के लिये इतने जनता हवलदार कहां से आएं?

जहां से बात शुरू की गई वापिस वहीं पर आता हूं .. अपनी ज़िंदगी के शुरूआती बेहतरीन 28 साल अमृतसर में बिताए ---हर लिहाज़ से बेहतरीन --- इसलिए सिक्ख समुदाय को हमेशा से मैं दूसरे लोगों के लिये तंबाकू आदि चीज़ों से बचे रहने के लिये एक रोल-माडल जैसा दर्जा देता हूं लेकिन मुझे उस समय बेइंतहा मायूसी होती है जब मैं किसी सिक्ख समुदाय से संबंध रखने वाले को तंबाकू का इस्तेमाल करते देखता हूं .. सारा दिन मुझे भी मुंह में ही झांकना होता है, इसलिये कोई ऐसी बात छुपती नहीं..... चाहे बहुत ही कम हैं ऐसे लोग और अकसर क्या कारण बताते हैं ... कि कार्यक्षेत्र पर उपस्थित दूसरे लोगों की देखादेखी शुरू हो गया यह सब और कुछ बताते हैं कि यह शौक पड़ गया प्रवासी श्रमिकों की संगत में रहने से। पिछले कुछ अरसे में मैं तीन ऐसे केस देख चुका हूं सिक्ख धर्म समुदाय से संबंधित लोगों के जिन में तंबाकू की लत से मुंह का कैंसर हो गया ... तीनों में से अब कोई भी नहीं है, एक साल में ही चल बसे.....।

मुझे लगता है कि मुझे टिप्पणी यह भी आ सकती है कि तंबाकू की लत से लताड़े हुये ऐसे चंद सिक्ख तो सिक्ख थे ही नहीं ...गुरू की सिखलाई पर न चलने वाला कैसा गुरसिक्ख !!
तो फिर आज की इस स्टोरी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? – क्या अभी भी यह बताने की ज़रूरत है !!
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तंबाकू का कोहराम 



रविवार, 27 फ़रवरी 2011

तंबाकू कंपनियां पचास वर्षों तक बेचती रहीं सफ़ेद झूठ

मुझे याद है कि सत्तर के दशक में मेरे जो रिश्तेदार उन दिनों 35-40 रूपये का सिगरेट का पैकेट पिया करते थे, सारे परिवार में उन का अच्छा खासा दबदबा हुआ करता था कि इन की इतनी हैसियत है कि ये अपनी सेहत के प्रति जागरूक होते हुये “फोरेन ब्रांड” के सिगरेट पीते हैं... और आज से चालीस साल पहले चालीस रूपये की बहुत कीमत हुआ करती थी।

और मुझे याद है कि कभी कभी इस तरह के पैकेट लाने की अपनी ड्यूटी भी लगा करती थी और अमृतसर में तो ये केवल तब एक-दो महंगे पनवाड़ियों से ही मिला करते थे.. और मैं इन्हें खरीदते वक्त पता नहीं बिना वजह क्यों इतना “व्हीआईपी-सा” महसूस कर लिया करता था।

कल्पना करिये 1970 के दशक की ...रईस लोगों की एक तरह से ब्रेन-वाशिंग हो चुकी थी कि पैसे के बलबूते वे अपनी सेहत की भी रक्षा कर सकते हैं। मुझे अच्छी तरह से याद है कि आम आदमी—बीड़ीबाज या फिर एक रूपये का लोकल ब्रांड  इस तरह के “बहुत कम नुकसानदायक” सिगरेट पीने वालों को हसरत भरी निगाहों से देखा करता था।

आप ने भी पढ़ा –मैंने लिखा है ...बहुत कम नुकसानदायक सिगरेट... क्योंकि उन दिनों इस तरह के विदेशी ब्रांड़ों के सिगरेटों के बारे में ऐसा ही सोचा जाया करता था। और यह बात लोगों के मन में घर कर चुकी थी कि महंगा है तो बिना नुकसान के ही होगा।

किसी की भी बढ़ती संपन्नता का प्रतीक सा माने जाना लगा था इन सिगरेटों को --- मेरे बड़े भाई ने और कज़िन्स ने भी 1980 तक ये सिगरेट ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिये थे। कुछ वर्षों बाद जब चर्चा होती थी कि यही सुनने को मिलता था कि हम तो भई चालू, घटिया किस्म के सिगरेट नहीं पीते, अपना तो यही ब्रांड है। और उस समय मैं भी यही समझने लगा था कि इतना महंगा है (उन दिनों शायद यह 50-60 रूपये का पैकेट मिला करता था) तो ठीक ही होगा।

फिर लगभग बीस वर्ष पहले यह सुनने में आया कि यह जो भ्रम फैलाया जा रहा है कि महंगे विदेशी ब्रांड वाले फिल्टर सिगरेट तरह तरह के विषैले तत्वों को फिल्टर करने के नाकामयाब हैं.... लेकिन तब भी बात लोगों की समझ में कहां आ रही थी?

लेकिन आज मैं यह खबर देख कर दंग रह गया हूं कि पिछले पचास वर्षों के दौरान तंबाकू कंपनियां झूठ ही बोलती रहीं। न्यू-यार्क टाइम्स में आज दिखी इस खबर से यह पता चला कि अमेरिका में एक अदालत ने यह कहा है कि कंपनियों को इस तरह के विज्ञापन समाचार पत्रों में देने होंगे कि वे पचास वर्षों तक यह झूठ बोल कर आमजन की सेहत के साथ खिलवाड ही करती रहीं कि कम टॉर वाला एवं कम निकोटिन वाले सिगरेट(लाइट सिगरेट –light cigarette) कम नुकसानदायक होते हैं और आदमी इन का आदि (addicted) भी नहीं होता।

कोर्ट ने यह भी कहा है कि इन कंपनियों को इस तरह के विज्ञापन भी खरीदने होंगे जिन में यह लिखा गया हो कि यह सब वे इस लिये करते रहे कि धूम्रपान करने वाले लोग इसे छोड़ने के बारे में सोचने की बजाए इस तरह के लाइट-सिगरेटों को अपना लें ताकि कंपनियों की अपनी सेहत, उनका मुनाफ़ा फलता फूलता रहे।

कंपनियों को यह भी कहा गया है कि वे ये भी घोषणा करें कि वे गलत प्रचार करती रहीं कि निकोटिन एडिक्टिव नहीं है ... वास्तविकता यह है कि इस की लत लग जाती है और चौंकने वाली बात यह भी है कि कंपनियां को यह भी घोषणा करनी होगी कि उन्होंने सिगरेटों के साथ कुछ इस तरह से छेड़छाड़ की कि जिससे इन्हें पीने वाले पक्के तौर पर इस व्ययसन का शिकार हो जाएं।

सोच रहा हूं कि आज के बाद स्कूली बच्चों को वह मुहावरा समझाने के लिये इसी उदाहरण को ले लेना चाहिए --- अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत--- लेकिन अगर केवल खेत ही चुग गया होता तो बात और थी, यहां तो कईं कईं सालों तक स्वस्थ शरीर रूपी पकी फसलों को इस झूठ से आग ही लगती रही... लाखों, करोड़ों, शायद अरबों (हिसाब कमज़ोर है मेरा) लोग खा लिये इस ज़हर ने पिछले पचास वर्षों ने ---- तो क्या उन की कब्रों पर भी एक Sorry note रखा जाएगा कि ...We are sorry to hide the truth.

तो आज के बाद किसी भी पाठक को यह नहीं लगना चाहिये कि यह सिगरेट महंगा है, विदेशी है, कम टॉर वाला है , लाइट सिगरेट है... तो यह ठीक ही होगा, नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है, प्रूफ आप के सामने है.. अदालत ने कंपनियों को ही स्वीकार करने को ही कह दिया है। और हां, यह तो आप पहले ही से जानते ही हैं कि बीड़ी भी किसी तरह से भी सिगरेट से कम नुकसानदायक नहीं है, ज़्यादा तो हो सकती है ... .....ओ हो, यार, यह मैं भी किस रेटिंग में पड़ गया कि कम नुकसानदायक, ज़्यादा नुकसानदायक ..... ज़हर तो ज़हर ही है, विदेशों में बने, देश के महानगरों में बने या आदिवासी क्षेत्रों में तैयार हो .......इस का स्वभाव ही है कि इस ने जाने लेने ही लेनी हैं।

Anyway, Choice is yours --- Tobacco or Health……………..you can’t have both!

Source : 
U.S Presses Tobacco Firms to Admit to Falsehoods About Light Cigarettes and Nicotine Addiction. 

किसी भी फ़िक्र को कैसे धुएं में उड़ाया जा सकता है, गाने की बात और है .....लेकिन क्या आप को लगता है कि अगर रियल लाइफ में भी देवानंद ने इस धुएं का ही सहारा लिया होता तो क्या वह अभी 90 वर्ष की आयु में भी इतने एक्टिव दिखते .... 


शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

तंबाकू उत्पादों के प्लास्टिक पाउचों में बिकने पर प्रतिबंध

आज मुझे दा हिंदु में यह खबर पढ़ कर बहुत खुशी हुई .. Plea for postponing ban on tobacco products in plastic pouches rejected. वैसे तो आज छुट्टी का दिन था, बिल्कुल आलसी सी सुबह ...लेकिन यह खबर पढ़ कर इतनी ताज़गी महसूस हुई कि सोच में पढ़ कर अगर खबर से ही इतनी खुशी मिली है तो 1 मार्च से जब यह प्रतिबंध लागू हो जायेगा तब मैं अपनी खुशी को कैसे संभालूंगा !

नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक हैल्थ ने एक विस्त्तृत रिपोर्ट में कहा है कि भारत में मुंह के कैंसर के लगभग 90 प्रतिशत केस तंबाकू के विभिन्न उत्पादों की वजह से होते हैं और खौफ़नाक बात यह भी है कि अब स्कूली बच्चे भी इस लत की चपेट में आ चुके हैं।

अच्छा एक बात है कि आप शायद सोच रहे होंगे कि अब ये सब उत्पाद प्लास्टिक पाउच में नहीं बिकेंगे, इस से भला मैं क्या इतना खुश हूं ... तो जानिए ......

  • -- सब से पहले तो यह है कि जब इतना प्लास्टिक इस तरह के उत्पादों की पैकिंग के लिेये इस्तेमाल नहीं होगा तो अपने आप में यह एक पर्यावरण के संरक्षण के लिये अनुकूल कदम है। इस तरह का नियम बनाने वालों को हार्दिक बधाई। 
  • -- ऐसा मैंने कहीं पढ़ा था कि प्लास्टिक पाउच की वजह से कुछ ऐसे तत्व भी इन उत्पादों में जुड़ जाते हैं जो कि इन के हानिकारक प्रभाव और भी बढ़ा देते हैं। ( अगर पैकेट पर पहले ही से लिखा है कि इस के इस्तेमाल से कैंसर होता है तो फिर किसी तरह के अन्य विष के जोड़ने की  कोई गुंजाइश रहती है क्या? ) 
  • -- इस खबर से खुशी मुझे इसलिये भी हुई है कि मुझे ऐसा लगता है कि अब इस तरह के "ज़हर" ( जो किसी की जान लेने की क्षमता रखते हैं, वे ज़हर नहीं तो और क्या हैं !) ..बड़े पैकेटों में नहीं बिकेंगे... और अगर बिकेंगे तो रोज़ाना क्लेश होंगे क्योंकि कागज के पाउच की वजह से रोज़ाना नईं नईं कमीज़ें खराब हुआ करेंगी और रोज़ाना बहन, मां, बीवी की फटकार कौन सहेगा? शायद इस की वजह से ही यह आदत कुछ कम हो जाए...
  • -- मेरे बहुत से मरीज़ अपनी ओपीडी स्लिप जब तंबाकू के किसी खाली पाउच में से निकाल कर मुझे थमाते हैं तो मुझे लगता था कि वे मुझे चिढ़ा रहे हों कि देखो भाई, हम तो इस तंबाकू ब्रांड के ब्रांड अम्बैसेडर हैं.... अब कहां से वे अपने कागज़, नोट आदि इस तरह के प्लास्टिक के पाउचों में रख पाएंगे.... एक तरह से यह भी एक विज्ञापनबाजी थी जो पब्लिक स्थानों पर बंद हो जायेगी, इसलिये भी मैं बहुत खुश हूं। 
वैसे मैं उन्हें अकसर कह ही दिया करता हूं कि यार, अपने एक फटे पुराने कागज़ की इतनी फिक्र करते हो और जो शरीर रोज़ाना धीरे धीरे तंबाकू की बलि चढ़ता जा रहा है, इस के बारे में कभी सोचा है?

एक समस्या है अभी अभी... रोज़ाना देखता हूं कि कुछ कालजिएट मोटरसाईकिल सवार युवक जो किसी पनवाड़ी की दुकान पर रूकते हैं और बिंदास अंदाज़ में एक नहीं, गुटखे के दो दो पाउच बड़े टशन के अंदाज़ में मुंह में उंडेलते ही बाइक पर किक मारते ही उड़ने लगते हैं, इन को शायद पैकिंग से कोई फर्क नहीं पड़ेगा... प्लास्टिक में हो या कागज़ में, इन्हें तो बस "किक" से मतलब है।

मैं तंबाकू के कोहराम पर कुछ लेख लिख चुका हूं , कभी फुर्सत हो तो एक नज़र मार लीजिए।

वैसे इस खबर से खुशी इस बात की भी है कि इस तंबाकू रूपी कोहराम के तालाब में किसी ने पत्थर मार के रिपल्ज़ (ripples...तरंगे) तो पैदा कीं .... अब देखते हैं इस उथल-पुथल से, इस झनझनाहट से कितना फ़र्क पड़ता है ... कुछ भी हो, एक अच्छी शुरूआत है , एक सराहनीय पहल है... After all, a journey of three thousand miles starts with the first step ! काश, किसी दिन ऐसी ही सुस्ताई सुबह को यह खबर भी मिले कि तंबाकू के सभी उत्पादों पर प्रतिबंध लग गया है... न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी .... क्यों नहीं हो सकता? सारी दुनिया आस पर ही तो टिकी हुई है !!

सोमवार, 31 मई 2010

तंबाकू दिवस पर तंबाकू को पैरों तले रोंदा नहीं?

आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस है और मैं कुछ बातें दिल से करना चाहता हूं। मुझे व्यस्कों को बीड़ी-सिगरेट-तंबाकू का इस्तेमाल करते हुये देख कर कुछ दुःख होता है लेकिन ऐसे छोटे छोटे बच्चों को देख कर तो बहुत ही दुःख होता है जिन के मां-बाप तंबाकू का किसी भी रूप में इस्तेमाल करते हैं। और दुःख स्कूली बच्चों को बीड़ी-सिगरेट पीते देख कर भी बहुत होता है।

वैसे मुझे हार तो नहीं माननी चाहिये लेकिन पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि जो व्यस्क हैं, कुछ वर्षों से तंबाकू का इस्तेमाल कर रहे हैं, डाक्टर लोग उन के लिये ज़्यादा से ज़्यादा क्या कर लेंगे? मेरा अनुभव कहता है कि बहुत कम ही इन लोगों के लिये कुछ किया जा सकता है। इस का कारण यह है कि ये लोग पक चुके हैं, तंबाकू के आदि हो चुक हैं, किसी की सुन के राजी नहीं हैं, और अकसर ये लोग तंबाकू को त्यागने का नाटक तो करते हैं---लेकिन पता नहीं कितने सीरियस होते हैं, मैं आज तक समझ नहीं पाया।
जो व्यस्क लोग तंबाकू के आदि हो चुके हैं, मैं समझता हूं कि वे अपनी च्वाइस से ऐसा कर रहे हैं। वैसे हम लोग तंबाकू की चेतावनियों के बारे में अकसर टिप्पणी तो करते हैं लेकिन समझ में नहीं आता कि क्यों ये लोग डरावनी चेतावनियों का इंतज़ार करते रहते हैं।
सब से ज़्यादा दुःख मुझे छोटे छोटे स्कूली एवं कॉलेज के छात्रों को तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करते हुये होता है। क्योंकि मुझे लगता है कि यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है—ये लोग एक बार इस ज़हर के, इस शैतान के भंवर में फंस गये तो समझो गये। बस, एक बार कुछ ही वर्षों में आदि हुये नहीं कि ढ़ेरों बीमारियां शरीर में घर कर लेती हैं। इसलिये कुछ भी कर के इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि किसी भी तरह से बच्चे इस राक्षस से दूर रहें। और इस के लिये शुरूआत पहले मां बाप को करनी होगी ----तंबाकू के सभी उत्पादों को हमेशा के लिये त्याग कर।
और फिर मुझे यह भी बहुत बुरा लगता है कि जब कोई परिवार कहीं बैठा है या यात्रा कर रहा है तो आदमी बीड़ी पर बीड़ी फूंके जा रहा है और इस से उठने वाले धुयें से उस का बच्चा जिसे उस की बीवी ने गोद में उठाया होता है, वह परेशान होता रहता है। हो सकता है कि उस आदमी को इस का आभास न हो, लेकिन अगर सारा संसार चीख चीख कर कह रहा है कि पैसिव स्मोकिंग के भी बहुत नुकसान हैं तो हैं। इसी तरह से गर्भवती महिलायें भी अपने पतियों के तंबाकू के धुयें का शिकार होती रहती हैं।
मेरा चिट्ठा है, दिल की बात इधर न लिखूंगा तो कहां लिखूंगा----सच में लिख रहा हूं कि मुझे उम्र में बड़े लोगों के तंबाकू की लत में फंसे होने का बहुत कम दुःख होता है ---अब पॉलिटिकली करैक्ट तो लिखना ही है कि दुःख तो होता ही है..... क्योंकि मुझे लगता है कि अकसर इस तरह के लोग किसी की सुनते नहीं, इन्हें बाकी सभी नफ़े-नुकसान तो अच्छे से पता है लेकिन तंबाकू के लिये क्यों ये चाहते हैं कि आसमान से फरिश्ता उतर कर इन की मदद करे। ऐसा कैसा हो सकता है ---सभी अस्पतालों के डाक्टर सारा दिन तंबाकू से होने वाले नुकसान को ठीक करने की हारी हुई जंग लड़ने में व्यस्त रहते हैं। जंग तो उस्ताद हारी हराई ही होती है
हम तो पैसिव स्मोकिंग की बात कर के छुट्टी कर लेते हैं – बस यही सोचते हैं कि कैसे किसी दूसरे को टोकें कि यार, तुम्हारी सिगरेट,बीड़ी से मुझे दिक्कत हो रही है। मैं कल कही पढ़ रहा था कि पैसिव स्मोकिंग से लाखों-करोड़ों लोग मारे जाते हैं ---अर्थात् उन्होंने स्वयं तो कभी तंबाकू का इस्तेमाल किया नही लेकिन उन के आस पास के लोगों की तंबाकू की आदत ने उन की जान ले ली।
सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट-बीड़ी पीना सख्त मना है---शायद कानूनी अपराध है या शायद केवल ज़ुर्माने का ही प्रावधान है ---क्या बसों में, गाड़ियों में , बस अड़्डों पर, रेलवे स्टेशनों पर लोग अब बीड़ी सिगरेट नहीं पीते? मैंने तो बहुत से लोगों को पब्लिक जगहों पर फेफड़े सेंकते देखता हूं। लेकिन मैं कहता किसी से कुछ नहीं हूं ---क्योंकि मैं बिना वजह किसी झगड़े से बचना चाहता हूं। यहां तक कि कॉलेज के बच्चों को भी तंबाकू का इस्तेमाल करते देखते हुये भी इन्हें कुछ कहने से डरता हूं कि कहीं बीच सड़क में पिट गया तो किसी को बता भी नहीं पाऊंगा।
और तंबाकू छुड़वाने के लिये तरह तरह के च्यूईंग गम आदि के मार्केटिंग के लोग मेरे तक भी पहुंचते तो हैं लेकिन मैंने आज तक किसी एक भी मरीज़ को इसे लेने की सलाह नहीं दी। कारण ? –मुझे लगता है कि जिस बंदे को तंबाकू छोड़ने के लिये निकोटिन-च्यूईंग गम आदि का पता है वह मेरी हरी झंडी की तो इंतज़ार कर नहीं रहा। खरीद कर खा ही लेगा अगर इतना व्याकुल होगा तंबाकू को लात मारने के लिये। और मैं ऐसे कैसे अढ़ाई रूपये की बीड़ी मारने वाले को पचास रूपये की निकोटिन च्यूईंग गम चबाने के लिये कह दूं-----यह अपने से नहीं होता।
और एक बात --- कुछ क्लीनिक व्यसन-मुक्ति के लिये भी चल रहे हैं --- जहां पर ड्रग्स एवं दारू आदि से मुक्ति दिलाई जाती है। लेकिन मुझे कभी भी नहीं लगा कि मैं किसी मरीज़ को इन जगहों पर जाने की सलाह दूं ---अगर किसी ने जाना होगा तो चला जायेगा। पिछले 25 सालों में तो मैंने अपने व्यक्तिगत अनुभव में किसी को इस तरह के स्थान पर जा कर तंबाकू को त्याग कर आते तो देखा नहीं ----शायद यह मेरा अल्प अनुभव होगा, शायद यह सब मुमकिन होता होगा।
तो मैंने कैसे केस देखे हैं जहां पर लोग तंबाकू को गाली निकाल कर लात मार देते हैं। जब किसी नज़दीकी सगे-संबंधी को तंबाकू के उपयोग से जुड़ी कोई जटिलता उत्पन्न हो जाती है या फिर तंबाकू का इस्तेमाल करने वाले के सीने में दर्द उठता है और डाक्टर ऐंजियोग्राफी करवाने की सलाह देता है तब मैंने लोगों को तुरंत इस ज़हर को हमेशा के लिये थूकते देखा है। और मैंने यह भी देखा है कि जो समर्पित डाक्टर हैं वे मरीज़ों के मुंह में झांक कर उन्हें तंबाकू से होने वाली तरह तरह की बीमारियों के बारे में आगाह भी करते रहते हैं------------बात तो उस्ताद वही है, कि मरीज़ चाहे खुद छोड़े या कोई छुड़वाये, ये सब दिल से करने वाली बातें है।
मैं जिस हस्पताल में काम करता हूं वहां पर हज़ारों कर्मचारी इलाज के लिये पंजीकृत हैं ---इसलिये मैं उन के मन में पैसिव स्मोकिंग के प्रति ज़हर भरता ही रहता हूं ----बस बातों बातों में उन्हें उकसाता रहता हूं कि अगर साथी सिगरेट-बीड़ी पीता है तो वह तुम्हारी सेहत की भी ऐसी तैसी फेर रहा है, उसे प्यार से रोक दिया करो। वर्क प्लेस पर ही नहीं, मुझे लगता है कि अब वे दिन भी दूर नहीं जब बीवी तंबाकू पीने वाले पति से दूर रहने की फिराक में रहेगी ---उसे बार बार ताने मारेगी, अपने छोटे छोटे बच्चों की सेहत का वास्ता देकर, अपने पेट में बढ़ रहे बच्चे की जान की खातिर इस शैतान का साथ छोड़ने की बात कहेगी और कितना अच्छा हो कि बच्चे ही घर में हड़ताल कर दें कि वे खाना तभी खाएंगे जब बाप बीड़ी पीना बंद करेगा या तो फिर अगर उसे तंबाकू पीना ही है तो घऱ के बाहर ही पी कर आया करे ----क्योंकि उस का मुंह बास मारता है और पैसिव स्मोकिंग से उन के फेफड़े भी जलते हैं। वैसे इस तरह की पैसिव स्मोकिंग के खतरों के बारे में जागरूक करने वाले कुछ पाठ अगर स्कूल-कॉलेज की किताबों में रहेंगे तो कैसा रहेगा ?
चलो यार, बहुत बातें हो गईं –अब खत्म करते हैं लेकिन इसी ताकीद के साथ कि अगर तंबाकू का इस्तेमाल आप कर रहे हैं तो तुरंत छोड़ दें -----इस में कोई आप की मदद नहीं करेगा ---यह काम आप को ही करना होगा—कैसे भी ...किसी भी तरह से ......लेकिन एक बात का विशेष ध्यान रखें कि अगर आप को पता लगे कि आप का बच्चा छुप छुप कर बाथरूम में कभी कभी कश मारने लगा है तो भी इसे एक एमरजैंसी समझ कर इस से निपट लें। वैसे तो मैं बच्चों के साथ किसी तरह की ज़ोर-जबरदस्ती का घोर विरोधी हूं लेकिन इस तंबाकू, सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, दारू, बीयर के बारे में आप कोई भी साधन अपनायें ---क्या कहते हैं -----वह मुझे ठीक से याद भी तो नहीं ---साम, ढंड,भेद ... .........।
क्या आप को नहीं लगता कि 31 मई का दिवस तंबाकू निषेध दिवस तो है ही ---लेकिन जिन परिवारों में लोग इस तरह के व्यसन के आदि हैं क्या उन के लिये यह शोक दिवस नहीं है? ----हर साल यह दिन उन में और एक अंधी खाई के दरमियान के फासले कम करता जा रहा है।
भारत वैसे है ग्रेट देश -----मेरे जैसे लोग बीस-तीस सालों तक माथा पीटते रहते हैं और चंद लोगों को तंबाकू छुड़ाने में शायद सफल हो पाते हैं लेकिन यहां पर जो संत लोग हैं, मैं बहुत हैरान होता हूं कि सतसंग में उन के संपर्क में आने पर हज़ारों लोग तंबाकू, दारू, जुआ छोड़े देते हैं -----क्या कहा? यह अंधविश्वास है, अंध श्रद्धा है, आप इसे नहीं मानते ----------कोई बात नहीं, आप की मर्जी, लेकिन मैं इस तरह के लोग रोज़ देखता हूं जो सतसंग में जाने के बाद (अगर और जानकारी चाहिये तो मुझे ई-मेल करियेगा drparveenchopra@gmail.com ) पूरी तरह से बदल जाते हैं, व्यसन से दूर भागते हैं................बस, इसीलिये भारत तो बस भारत ही है। यहां पर बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें दिमाग से नहीं बल्कि दिल से समझा जा सकता है।
इसलिये बेहतर होगा कि तंबाकू की लत की ऐसी की तैसी करने के लिये न तो किसी कानून की इंतज़ार ही की जाए कि कोई कानून आ कर आप के हाथ से बीड़ी छीन लेगा और न ही सिगरेट के पैकटों पर भयानक चेतावनियों की बाट जोहते रहें ----सियासत करने वालों को जम कर सियासत करने दें ----आप अपना काम करिये -- जलती सिगरेट, सुलगती बीड़ी को अपने जूते के तले हमेशा के लिये रोंध दे और तंबाकू थूक दें...............शाबाश!! यह हुई न बात !!
PS......आज यह पोस्ट लिखते समय इतना ज़्यादा गाली गलौज़ करने की इच्छा हो रही थी कि पता नहीं कैसे काबू कर पाया हूं ---मन ही मन मैंने इस कमबख्त तंबाकू को पंजाबी भाषी में उपलब्ध बीसियों मोटी मोटी गालियां बक दी हैं ----आप मेरे बिना लिखे ही समझ लेना कि वे क्या क्या हो सकती हैं। सच में इस ने सारे संसार की सेहत की ऐसी की तैसी की हुई है और लोग हैं कि इस पर भी सियासत से बाझ नहीं आते। केवल जागरूकता ही इस से बचने का अस्त्र है।

शुक्रवार, 14 मई 2010

तंबाकू प्रोडक्ट्स पर कैसी हो चेतावनी ? ---ज़रा देखिये

बिल्कुल सीधी सी बात है कि वह चेतावनी कैसी जिसे देख कर, पढ़ कर भी आदमी पनवाड़ी से सिगरेट-बीड़ी-गुटखे का पैकेट मांगे--- चेतावनी तो वही सही चेतावनी है कि बंदे को हिला के रख दे--- एक बार तो किसी को भी ऐसा हिला दे कि यार, कहीं तंबाकू के सेवन से मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए-- हाथ में बुझी हुई बीड़ी को बिना दोबारा सुलगाए ही नाली में फैंक दे, पाउच को डस्ट-बिन में दे मारे, गुटखे-तंबाकू-खैनी जैसे ज़हर को तुरंत थूक कर कुल्ला करने के साथ ही हमेशा से इस ज़हर को खाने से तौबा कर ले ---ऐसी चेतावनी हो कि जनमानस नफरत करने लग जाए।

वरना छोटी मोटी चेतावनी को क्या कहे ? --- बस एक वैधानिक जिम्मेदारी पूरी करने के इलावा कुछ भी तो नहीं!! और अगर तंबाकू उत्पादों पर छपी चेतावनियों से भी छेड़-छाड़, चुस्त चालाकी कि कैसे भी इस का सेवन करने वाले की आंखों में यह न पड़े और अगर गलती से पड़ भी जाए तो वह ढंग से इसे पढ़ ही न पाए और पढ़-देख भी ले तो इस का उस पर असर नहीं पड़े।


मैं कल विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट देख रहा था --वहां मैंने देखा कि तंबाकू मुक्त पहल (tobacco-free initiative) के अंतर्गत एक ऐसा पन्ना तैयार किया है जिस में उन्होंने कुछ देशों में तंबाकू के बुरे प्रभावों को दर्शाती तस्वीरें जो उन देशों में इन उत्पादों पर छपती हैं, का विवरण दिया है।


यह पन्ना देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा --- कारण यही था कि मुझे लगा कि इस से इस मुद्दे पर भी पारदर्शिता आयेगी ---हम अपने यहां पर छपने वाली तीन तस्वीरों को देख कर ही न खुश होते रहें कि देखो, दुनिया वालो, हम कितने महान हैं। इसलिये ऐसी कोई भी राय बनाने से पहले ज़रा एक नज़र कुछ देशों में इस काम में इस्तेमाल की जाने वाली तस्वीरों की तरफ़ आप एक नज़र मारना चाहेंगे ?


वैनेज्यूला में इस के व्यसन के बारे में इस तरह की चेतावनी छपती है ---



ब्राज़ील में तंबाकू से चमड़ी पर होने वाले बुरे प्रभाव जैसे झुर्रियां आदि से आगाह करने के लिये इस तसवीर का सहारा लिया जाता है


तंबाकू का इस्तेमाल करने वाले के मुंह से जो गंदी बास आती है उस के लिये यह तस्वीर आप को कैसी लगी




और तंबाकू मौत का सौदागर है इस के लिेये यह फोटोग्राफ कैसा है



और तंबाकू के शरीर पर अन्य क्या क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं क्यों लोग इस तरह से तस्वीर से भांप न लेते होंगे



खून की नाडि़यों को यह कैसे प्रभावित करता है आप भी देखिये

आंख के लिये इतना खतरनाक है तंबाकू


दिल तो समझ लो गया तंबाकू से

फेफड़े की सिंकाई से क्या हो जायेगा, आइये इधर देखें

और मुंह में यह क्या कोहराम मचायेगा, बाप रे बाप



और दिमाग की नस फट गई तो क्या केवल वही फटती है ?

और हाथों-पैरों में तंबाकू की वजह से जब खून का दौरा कम हो जाता है तो बड़े बड़ों की बस हो जाती है






और तंबाकू से आवाज़ को क्या हो जाता है ?



ओ हो, यह क्या पंगा --- अगर तंबाकू बंदे के पौरूष पर ही वार करने लगे तो ....

और अगर मां-बापू भी तंबाकू का इस्तेमाल किये जा रहे हैं तो ..

और अगर गर्भवती महिला तंबाकू के सेवन से गुरेज न करे ंतो



तंबाकू छोड़ने के बारे में यह तसवीर कैसी है

और यह जो दूसरे दर्जा का तंबाकू है इसे इस तरह की तस्वीर से दिखाना कैसा है ?



महिलायों में कैसे यह तंबाकू उत्पात मचाता है, यह तस्वीर बहुत कुछ कह ही रही है


अच्छा तो आपने दूसरे देशों में तो प्रचलित ये सब तसवीरें देख ही लीं जिन से तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करने वाले के मन में दशहत सी बैठने लगती है।

आपने क्या अपने यहां प्रचलित तसवीरें देखी हैं और इन को जारी करने से पहला कितना बवाल मचा था उस के बारे में तो सब जानते ही हैं। आप क्या कह रहे हैं कि आपने इन तस्वीरों को कभी नोटिस नहीं किया ---- नहीं,यार ऐसा मत कहो, इन्हें तो मैंने भी कईं बार गुटखे के पैकेटों पर छपा देखा है। आप को क्या लगता है कि ये जो नीचे तीन तस्वीरें (अगर इन्हें आप तस्वीरें कह सकें तो)हैं जो अपने यहां छपती हैं, तंबाकू के बारे में दशहत पैदा करने में किसी तरह से ऊपर दिखाई गई तस्वीरों के मुकाबले में यह कितनी कारगर होंगी।

वैसे मैंने सुना है कि भारत में भी तंबाकू के प्रोडक्ट्स पर छपने वाली डरावनी किस्म की तसवीरों पर विचार किया जा रहा है...देखते हैं कब यह विचार विमर्श संपन्न होता है। डरावनी क्या, तस्वीरें इतनी खौफ़नाक हों कि लोग इन से दूर भागने लगें। ये जो ऊपर आप ने तस्वीरें देखी हैं ये विभिन्न देशों में इस्तेमाल की जा रही हैं।

आप मेरे इन तीन तस्वीरों के बारे में विचार जान कर क्या करेंगे ---मैं जानता हूं कि बिच्छू कैंसर का सिंबल है, लेकिन कितने लोग यह जानते हैं इसलिेये मुझे तो इस पहली तस्वीर देख कर तो यही लग रहा है कि इस पैकेट के साथ बच्चों का एक प्लास्टिक का बिच्छू खिलौना भी मिलेगा( जैसा मेरी मां बचपन में पेस्ट के साथ लाया करती थीं), अगली में लग रहा है कि कोई हीरो-छाप लड़का जैकेट डलवा कर फोटो खिंचवा रहा है, और तीसरी तस्वीर में मुझे क्यों लगता है कि पान तैयार किया जा रहा है।

पो्सट लिखने में जितनी भी मेहनत लगी, उसे मैं तभी सार्थक मानूंगा अगर इसे देखने के बाद कुछ दोस्त इस व्यसन को छोड़ देंगे ---अब प्लीज़ कोई इसे Moral policing न कहे, बुरा लगता है।




सोमवार, 9 नवंबर 2009

मरीज़ों की प्राइवेसी की परवाह कैसी ?

आज कल मुंह के कैंसर से बचाव के लिये चले एक जागरूकता अभियान के अंतर्गत एक विज्ञापन फिल्म विभिन्न चैनलों पर दिख रही है ---आशा है आपने भी देखी होगी।
लेकिन इस में आखिर ऐसा क्या है जो मुझे ठीक नहीं लग रहा ? --इस का कारण यह है कि इस में मरीज़ों के चेहरों को दिखाया गया है। इस में मरीज़ों की प्राइवेसी की सम्मान नहीं किया गया।
वैसे यह मुंह के कैंसर से बचाव की जागरूकता अभियान के लिये बनाया गया एक बहुत प्रभावपूर्ण विज्ञापन है लेकिन यह मरीज़ों के चेहरे दिखाने वाली बात अजीब सी लगती है।
मुझे ऐसा लगता है कि जिन मरीज़ों के चेहरे इस फिल्म में दिखाये जाते हैं उन के प्रति कभी भी अगर समाज के द्वारा किसी तरह का भी भेदभाव किया जाए तो यह बहुत गड़बड़ हो जायेगी। वैसे तो एक शिष्ट समाज में जब हम लोग एक मरीज़ की बात किसी के साथ किसी दूसरे के साथ शेयर नहीं करते तो ऐसे में कैसे हम मुंह के कैंसर जैसे रोग से लाचार रोगियों की तस्वीरें इतने व्यापक स्तर पर दिखा सकते हैं।
मानता हूं कि इस तरह की तस्वीरें दिखाने से लोगों के मन में तंबाकू आदि के बारे में डर पैदा होगा। लेकिन हमें बीमार आदमियों एवं उन के परिवारजनों के बारे में भी सोचना चाहिये कि नही ?
अगर तस्वीरें दिखानी ही हैं तो हम क्यों नहीं उन की आंखों पर कुछ इस तरह के डाट्स आदि दिखाते जिन से उन की पहचान को गुप्त रखा जा सके। यह बहुत ज़रूरी है।
कईं बार मैं सोचता हूं कि शायद समाज में आम आदमी की प्राइवेसी का ध्यान रखा ही नहीं जाता। मेरे विचार में यह फिल्म बनाने वालों में संवेदनशीलता की घोर कमी की तरफ़ इशारा करती है। इस तरह के विज्ञापन को तुरंत दुरूस्त किये जाने की ज़रूरत है।
यह तो एक विज्ञापन फिल्म की बात है --अकसर हमारी मैडीकल कि किताबों में भी मरीज़ों की फोटो की आंखों पर काली पट्टी सी लगाई जाती है ताकि उन की पहचान न हो सके। मुंह के कैसर से संबंधित मेरी पोस्टों में भी मैंने मरीज़ों की तस्वीरें इस तरह से ली हैं कि उन फोटो के द्वारा उन की पहचान संभव न हो।
देश में कुछ बहुत बड़े प्रतिष्ठित लोग भी मुंह के कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं तो ऐसे में इस तरह की विज्ञापन फिल्म में इन हस्तियों का भी कुछ संदेश जनता तक पहुंचा दिया जाता तो शायद ठीक होता। लेकिन शायद इन हाई-फाई लोगों की प्राईवेसी आम आदमी की प्राइवेसी से ज़्यादा मायने रखती है ?
अब अगह कोई यह दलील दे कि उस विज्ञापन फिल्म में जिन मरीज़ों के चेहरों को दिखाया गया है उन से समुचित कंसैंट (सहमति) ली गई है तो भी यह कैसी कंसैंट है, मेरे विचार में तो इस तरह की कंसैंट के बावजूद भी उन का चेहरा इस तरह से ना दिखाया जाए कि कोई भी उन की शिनाख्त कर सके।

सोमवार, 31 अगस्त 2009

तंबाकू --- एक-दो किस्से ये भी हैं !

मुझे इस बात से बड़ी खीझ होती है कि हिंदी फिल्म का कोई आइटम सांग तो पब्लिक को दो दिन में याद हो जाता है लेकिन हम लोगों की बात ही भूल जाते हैं।

दो दिन पहले मैं ट्रेन में यात्रा कर रहा था --एक महिला अपने शिशु को स्तन-पान करवा रही थी और बिल्कुल साथ ही बैठा उस का पति बीड़ीयां फूंके जा रहा था। ऐसा लगा कि बच्चे को अमृतपान के साथ साथ विषपान भी करवाया जा रहा हो।

कुछ महीने पहले स्टेशन पर बैठे बैठे किसी ने मुझ से किसी गाड़ी के बारे में पूछा। दो-तीन बातें हुईं तो पता चला कि वे दोनों आदमी बिहार में अपने गांव जा रहे थे क्योंकि उन में से एक के लगभग 20-22 वर्ष के भाई की सेहत बहुत खराब है। पूछने पर पता चला कि उसे पिछले लगभग 10 साल से तंबाकू खाने की लत लग गई थी-- इसलिये उसे मुंह का कैंसर हो गया है। डाक्टरों ने जवाब दे दिया है ---घर में पैसा खत्म हो गया है, इसलिये यह बंदा अपना काम-धंधा छो़ड़ कर गांव जा रहा है।

उस दिन जो बात मैंने उस बंदे के मुंह से सुनी शायद मैंने पहले इस की कल्पना भी नहीं की थी। वह आदमी बहुत गुस्से में था ---कह रहा था कि हम घर वाले इसे रोक रोक कर हार गये कि तंबाकू न खाया कर, लेकिन इसने भी हमारी एक न सुनी। बता रहा था कि वह तंबाकू का इस कद्र आदि हो चुका था कि तीन तीन चीज़े एक समय में इस्तेमाल किया करता था ---- मैं उस की बात सुन कर हैरान हो गया कि नीचे वाले होंठ के अंदर उस का भाई गुटखा दबा लिया करता था, गाल के अंदर की तरफ़ तंबाकू -चूने का मिश्रण और साथ में बीड़ी ----अब भला ऐसे में कौन बचाता उसे मुंह के कैंसर से। उस की बात सुन कर मन बहुत दुःखी हुया ।

वैसे तो हम लोग तंबाकू और शराब के सेवन को ही एक किल्लर कंबीनेशन मानते हैं लेकिन यहां तो तंबाकू के तीन तीन उत्पाद एक साथ खाये, पीये और थूके जाते रहे ----- आप के आसपास भी तो नहीं कोई यह सब कर रहा ---देखते रहिये ---- सचेत करते रहिये । और क्या कर सकते हैं ?

बुधवार, 10 जून 2009

तंबाकू चूसना --- पार्टी स्टाईल !!

हम लोग किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों, शायद ही अपने उस्ताद को कभी भूल पाते हैं। मुझे भी अकसर अपने ओरल-सर्जरी के प्रोफैसर डा कपिला जी की याद अकसर आती है। ये हम लोगों को अकसर कहा करते थे कि मरीज़ की बात ध्यान से सुना करो, वह तुम्हें स्वयं ही अपनी बीमारी का डायग्नोसिस बतला रहा है। In his words – “ Listen to the patient carefully, he is giving you the diagnosis !”. अब यह अपने आप में आत्म-अविलोकन करने वाली बात है कि यह काम हम लोग कितनी हद तक उस भावना से कर पाते हैं।

DSC03174
कल भी मेरे पास यह मरीज़ आया जिस के मुंह के अदंर दांतों की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं। यह मेरे पास ऊपर आगे के एक दांत की जड़ निकलवाने आये थे जो कि दांत की सड़न की वजह से टूट चुका था। जब मैं इन के मुंह में इंजैक्शन लगा रहा था तो मुझे लगा कि ऊपर वाले होंठ का अंदरूनी हिस्सा ( oral mucosa) थोड़ा खुरदुरा सा है।

मेरा ध्यान इंजैक्शन देने में पूरी तरह लगा हुआ था इसलिये मैंने इस खुरदरेपन तरफ़ कुछ खास ध्यान देना शायद इसलिये उचित नहीं समझा कि मुझे लगा कि ये Fordyce spots हैं और दूसरा मेरा ध्यान उस खुरदरेपन की तरफ़ उस समय था भी नहीं ---सोच रहा था कि इसे बाद में देखूंगा। ( बाद में किसी दिन इन स्पाट्स के बारे में चर्चा करेंगे )---- लेकिन इस समय केवल यही बता रहा हूं कि ये फारडाइस-स्पाट्स पसीने पैदा करने वाले ग्लैंड्स ( sebaceous glands) होते हैं जो कि सामान्यतः तो हमारी चमड़ी पर ही होते हैं लेकिन कईं बार ये मुंह के अंदर ( oral mucosa), पुरूषों के ग्लैंस-पीनस( glans penis) को कवर कर रही चमड़ी के अंदरूनी भाग ( mucous membrane आदि में भी होते हैं ---- ये बिल्कुल छोटे छोटे दाने से होते हैं और अकसर मरीज़ इन के बारे में चिंतित से हो जाते हैं जब कि चिंता करने वाली कोई बात ही नहीं होती।

हां, तो मैं अपने मरीज़ की बात कर रहा था --- मैंने मरीज़ का दांत निकलवाने से पहले ऐसे ही पूछ लिया कि यह ऊपर खरदुरा सा आप को कभी लगा नहीं ? ----तब उस ने बताया कि यह तो तंबाकू की वजह से है।
कहने लगा कि पिछले पांच साल से तंबाकू-चूने की आदत लग गई है। और मैं ऊपर वाले होंठ के अंदर की तरफ़ भी अकसर तंबाकू दबा कर रखता हूं। मुझे तुरंत सारी बात समझ में आ गई।


दरअसल शायद यह पहला केस मेरी नज़र में आया था जो कि तंबाकू-चूने का मिश्रण ऊपर वाले होंठ के अंदर दबा कर रखता था ( अकसर कभी कहीं पर कोई भद्रपुरूष इस तरह के कैंसर के मिश्रण को गाल के अंदर ऊपर वाली दाढ़ों के साथ लगती जगह पर तो रखते नज़र आ ही जाते हैं ) ...... मुझे बहुत हैरानगी हो रही थी ----उस ने आगे बताना शुरू रखा कि कईं बार उसे ऊपर वाले होंठ के अंदर ही इस तंबाकू ( कैंसर-मिश्रण !!!! ---- Cancer mixture !! --- Cancer cocktail !!!) को रखना पड़ता है क्योंकि जब मैं किसी पार्टी वगैरह में गया होता हूं तो बार बार थूकने के झंझट से निजात मिल जाती है। वह यह भी कह रहा था कि वैसे तो वह नीचे के होंठों के अंदरूनी हिस्से का ही इस काम के लिये इस्तेमाल करता है और इस की वजह से उस नीचे वाले दांतों के बाहर की जगह की क्या हालत हो चुकी है वह आप इस तस्वीर में देख सकते हैं। DSC03179

मैं एक दो मिनट उस की बातें सुनीं-----उस का टूटा दांत निकालने के बाद फिर उस की क्लास ली कि यह सब क्या है और भविष्य में यह किस तरह कैंसर में तबदील हो सकता है। वह मेरी बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था और उस ने कल ही से तंबाकू को मुंह में दबाने से तौबा कर ली ।

उस के जाने के बाद मैं यही सोच रहा था कि मरीज़ की बात ध्यान से सुनने की आदत आज एक बार फिर काम आ गई ---वरना आज एक महत्वपूर्ण डायग्नोसिस मिस हो जाता और वह बंदा अपनी आदत को बिना परवाह के जारी रखता जो कि उसे मुंह के कैंसर की तरफ़ धकेल सकती थी।

शुक्रवार, 1 मई 2009

जुबान के कैंसर का चमत्कारी इलाज

हां, तो मैं दो दिन पहले अपने एक मरीज़ की बात कर रहा था जिसे जुबान (जिह्वा) का कैंसर डायग्नोज़ हुआ है। सारे टैस्ट पूरे हो चुके हैं लेकिन वह अब वह किसी चमत्कारी नीम हकीम के चक्कर में पड़ चुका है।

मैंने उसे बहुत समझाया कि आप सर्जरी करवा लो, जितना जल्दी सर्जरी करवायेंगे उतना ही बेहतर होगा। उस ने मेरे बार बार कहने के बावजूद भी मुझे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। मैं उस की मानसिकता समझ सकता हूं, आदमी सब कुछ ट्राई कर लेना चाहता है , क्या करे जब आदमी बेबस होता है तो यह सब कुछ होना स्वाभाविक ही है।

उस ने मुझे कहा कि मैं देसी दवा किसी सयाने से ला कर खा रहा हूं ---दिल्ली के पास यूपी की एक जगह का उस ने नाम लिया । कहने लगा कि जब मैं उस के पास गया तो उस ने मेरी कोई रिपोर्ट नहीं देखी, मेरा कोई टैस्ट नहीं करवाया, मुझे कहने लगा कि तेरे को जुबान का कैंसर है। यह सब मेरे मरीज़ ने मुझे बताया।

फिर आगे बताने लगा कि वह इंसान इतना नेक दिल है कि किसी से मशविरा देने के कोई पैसे नहीं लेता ---बस दवा के पैसे ही देने होते हैं ---बीस दिन की दवाई के एक हज़ार रूपये ---मैं उस की बातें के ज़रिये उस सयाने की कार्यप्रणाली समझने की कोशिश कर रहा था। फिर मेरा मरीज़ मुझे कहने लगा कि उस ने एक तो कुल्ला करने की दवाई दी है और कुल्ला करने के बाद एक दवाई जुबान पर लगाने को दी है। मरीज़ ने आगे बताया कि दवाई लगाने के बाद ही जुबान से मांस के टुकड़े से निकलने लगते हैं।

आगे मरीज़ ने बताया कि उसे लग रहा है कि उस की जुबान पर जो ज़ख्म है उस का साइज़ भी कम हो गया है। अब मैं उस की हर बात का जवाब हां या ना देने में अपने आप को बहुत असहज अनुभव कर रहा था। क्योंकि मेरी तो केवल एक ही कामना थी और है कि वह जल्दी से जल्दी सर्जरी के लिये राज़ी हो जाये ताकि वह अपनी बाकी की ज़िंदगी को जितना चैन से काट सकता है काट सके।

वह फिर मेरे से पूछने लगा कि डाक्टर साहब यह भी तो हो सकता है कि अगर एक-दो महीने के बाद मैं अपने सारे टैस्ट दोबारा से करवाऊं तो मेरे सारे टैस्ट ही ठीक हो जायेंगे ----अब मैं उस के इस सवाल का क्या जवाब देता ?

वह बंदा मेरे से बातचीत कर रहा था तो फिर अपने आप ही कहने लगा कि डाक्टर साहब, मेरी बेटी ने इंटरनेट पर सारी जानकारी हासिल कर ली है ---- यह तो बिटिया भी कह रही थी कि पापा, आप्रेशन के बिना कोई इलाज इस का नहीं है। मैं यही सोच रहा था कि जब मां-बाप को कोई तकलीफ़ होती है तो आजकल के पढ़े-लिखे बच्चे भी बेचारे जितना उन से हो पाता है सब कुछ करते हैं लेकिन ये कमबख्त कुछ रोग ही इस तरह के होते हैं कि .........!!

वह बंदा बता रहा था कि डाक्टर साहब , जितनी बातें मैंने आज आप से की हैं मैंने पिछले दो महीने में कभी नहीं की हैं। मेरा भी उस के साथ गहराई से बात करने का केवल एक ही मकसद था कि किसी तरह से यह आप्रेशन के लिये राज़ी हो जाये। रूपये-पैसे की तो कोई बात ही नहीं है ---- क्योंकि हमारा विभाग अपना कर्मचारियों की सभी प्रकार की चिकित्सा का प्रबंध करता है।

मैंने उसे इतना ज़रूर कहा कि आप मुझे दो-तीन में एक बार हास्पीटल की तरफ़ आते जाते ज़रूर मिल लिया करें ---- क्योंकि मैं उस बंदे का हौंसला बुलंद ही रखना चाहता ही हूं। मैं उस से बात कर ही रहा था कि मुझे मेरे एक 70-75 वर्षीय मरीज़ का ध्यान आ गया जिस ने कुछ साल पहले जुबान के कैंसर के इलाज के लिये सर्जरी करवाई थी --और वह नियमित रूप से चैक-अप करवाने जाता रहता है और ठीक ठाक है। मैं उसे उस का नाम लिखवा दिया और उस के घर के पते का अंदाज़ा सा दे दिया ---- वह कहने लगा कि बस इतना ही काफ़ी है, वह ढूंढ लेगा। यह मैंने इसलिये किया क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह उस से जब बातें करेगा तो उस का ढाढस बंधेगा।

रही बात उस सयाने द्वारा दी जाने वाली दवाई की ------ जहां तक मेरा ज्ञान है इस तरह के देसी-वेसी इलाज से कुछ होने वाला नहीं है। यही सोच रहा हूं कि किसी को इतनी ज़्यादा उम्मीद की रोशनी दिखा देना भी क्या ठीक है ? यह तकलीफ़ भी ऐसी है कि इस के लिये किसी प्रशिक्षित, स्पैशलिस्ट से ही इलाज करवाने से काम बन सकता है। चमत्कारी दवाईयों से कहां इन केसों में कुछ हो पाता है।

जाते जाते मरीज़ मुझे बता रहा था कि अब वह गुटखा एवं तंबाकू कभी नहीं चबायेगा ---उस ने यह सब छोड़ दिया है --- मैंने उसे तो कहा कि बहुत अच्छा किया है लेकिन मैं दुःखी इस बात पर था कि अब ये सब कुछ छोड़ तो दिया है .....ठीक है , लेकिन ....................!!!!!

बुधवार, 29 अप्रैल 2009

जिह्वा (जुबान) का कैंसर एक कोबरे के समान है...


यह शब्द मेरे उस 48 वर्षीय मरीज़ ने आज मुझ से कहे जिसे जिह्वा का कैंसर है--- पिछले डेढ़ महीने से ही डायग्नोज़ हुया है। बायोप्सी वगैरह हो चुकी है। सी.टी स्कैन सब टैस्ट हो चुके हैं। इस के इलाज के लिये उसे आप्रेशन के लिये कहा गया है जिसमें जुबान का आधा हिस्सा सर्जरी से निकाल दिया जायेगा। और इस के आसपास के क्षतिग्रस्त एरिये की भी कांट-छांट की जायेगी।

इस बंदे को मैं अच्छी तरह से जानता हूं ----बड़ा ही ज़िंदादिल सा इंसान लगता था मुझे । लगता क्या था आज भी बहुत गर्मजोशी से बात कर रहा था लेकिन आज बेचारा दर्द से इतना परेशान था कि कहने लगा कि यह बीमारी तो डाक्टर साहब एक कोबरे के समान है।

इस व्यक्ति को जुबान की दाईं तरफ़ के नीचे दो-तीन महीने से एक जख़्म सा था --- उस के आस पास ही खराब दांतों के नुकीले टुकड़े पड़े हुये थे। उसे उन टुकड़ों को जब भी निकलवाने की सलाह दी जाती थी तो वह हमेशा यही कह कर टाल दिया करता था कि मैंने तो कभी भी दांत डाक्टर से निकलवाया नहीं है, मेरे तो जितने भी दांत निकले हैं अपने आप ही निकले हैं, इसलिये ये टुकड़े भी अपने आप ही निकल जायेंगे।

यह बंदा पिछले कईं सालों से तंबाकू-चूने के मिश्रण को मुंह में रखता रहा है...और रोज़ाना थोड़ी बहुत ड्रिंकिंग का भी शौकीन है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि तंबाकू और शराब तो तरह तरह के कैंसर ( विशेषकर मुंह के कैंसर के लिये) के लिये एक किल्लर कंबीनेशन तो है ही और साथ में मुंह का खराब स्वास्थ्य्। टूटे, फूटे, नुकीले दांत मुंह में पड़े हुये जिन्हें निकलवाया नहीं गया।

आज उस मरीज़ से मिल कर मूड बहुत खराब है। क्या है ---- छोटी सी उम्र में ही बंदा तंबाकू की तबाही का शिकार हो गया। आप का मेरी यह पोस्टें देख कर अनुमान हो ही जाता होगा कि मैं तंबाकू का कितना घोर विरोधी हूं ---क्योंकि हम इस तरह के केस आये दिन देखते रहते हैं और फिर अपने आप को कितना बेबस पाते हैं।

मन में विचार आ रहा है कि कैसे भी हो बच्चों को सिगरेट, बीड़ी , गुटखा पान मसाले से बचा कर रखना चाहिये और जब भी पता चले कि बच्चे या नवयुवक इस तरह के व्यसनों से ग्रस्त हैं और अल्कोहल भी ले रहे हैं तो सभी ढंग अपना कर उन को बचाने की कोशिश करनी चाहिये ।

तंबाकू चबाने वाले, बीडी सिगरेट पीने वाले, गुटखा खाने वाले कब इस तरह के केसों से सीख लेंगे...................यह सोच सोच कर मेरा सिर दुखता है। इसी मरीज़ के बारे में कुछ और बातें अगली पोस्ट में करूंगा।

बुधवार, 18 मार्च 2009

इसे देखने के बाद कोई है जो सिगरेट-बीड़ी की तरफ़ मुंह भी कर जाये .....

पिछले हफ्ते की बात है मैं पानीपत से एक पैसेंजर गाड़ी में रोहतक की तरफ़ जा रहा था ---हरियाणा ज़्यादा तो मैं घूमा नहीं हूं --- लेकिन जिस रास्ते से मेरा वास्ता पड़ता है वह यही है ---- पानीपत से रोहतक और रोहतक से दिल्ली ---- मैंने नोटिस किया है कि इस रूट पर कुछ बहुत ही अक्खड़ किस्म के जाहिल से लोग भी अकसर गाड़ी में मिल जाते हैं ( कृपया मेरी जाहिल शब्द को अन्यथा न लें, आप को तो पता ही है कि मुझे अनपढ़ लोगों से पता नहीं वैसे तो बहुत ही ज़्यादा सहानुभूति है ही , लेकिन जो अनपढ़ है, ऊपर से अक्खड़ हो और साथ ही बदतमीज़ भी हो , तो ऐसे बंदे को तो सहना शायद सब के बश की बात नहीं होती) ....

हां, तो उस पानीपत से रोहतक जा रही पैसेंजर गाड़ी में मेरी सामने वाली सीट पर एक 20-22 वर्ष का युवक बैठा था ---बीड़ी पी रहा था ---- मेरी समस्या यह है कि बीड़ी का धुआं मेरे सिर पर चढ़ता है तो मुझे चक्कर आने शुरू हो जाते हैं, ऐसे में उस का मेरा वार्तालाप क्या आप नहीं सुनना चाहेंगे ?
मैंने कहा ----बीड़ी बंद कर दो भई। धुआं मेरे सिर को चढ़ता है।
नवयुवक ---- ( बहुत ही अक्खड़, बेवकूफ़ी वाले अंदाज़ में ) ---- अकेला मैं ही थोड़ा पी रिहा सू---वो देख घने लोग पीन लाग रहे हैं।
मैंने कहा ----लेकिन मुझे तो इस समय तुम्हारी बीड़ी से तकलीफ़ है।
नवयुवक ----तो फिर किसी दूसरी जा कर बैठ जा ।

और साथ ही उस ने अगला कश खींचना शुरू कर दिया। मैंने चुप रहने में ही समझदारी समझी ---- क्योंकि इस के आगे अगर वार्तालाप चलता तो उन का ग्रुप या तो मेरे को जूतों से पीट देता ---और अगर मैं अपनी बात पर अड़ा रहता तो क्या पता --- रास्ते में ही कहीं गाड़ी से नीचे ही धकेल दिया जाता। वैसे मैं इतनी जल्दी हार मानने वाला तो नहीं था लेकिन मेरी बुजुर्ग मां मेरे साथ थी , इसलिये मैं चुपचाप बैठा उस बेवकूफ़ इंसान के धूम्रपान का बेवकूफ़ सा मूक दर्शक बना रहा। लेकिन मैंने भी मन ही मन में उसे इतनी खौफ़नाक गालियां निकालीं कि क्या बताऊं ?

---- जी हां, बिल्कुल एक औसत हिंदोस्तानी की तरह जिस तरह वह अपने मन की आग जगह जगह मन ही में गालियां निकाल कर शांत सी कर लेता है। चलिये, उस किस्से पर मिट्टी डालते हैं। क्या है ना इस रूट पर बस में , ट्रेन में खूब बीड़ीयां पीने-पिलाने का जश्न खूब चलता है,लेकिन मेरे जैसों को इन बीड़ी-धारियों की सुलगती बीड़ी देखते ही फ * ने लगती है---शायद उस से भी पहले जब कोई भला पुरूष बीड़ी के पैकेट को हाथ में ले कर रगड़ता है ना तो बस मेरा तो सिर तब ही दुःखने लगता है कि अब खैर नहीं। इस रूट पर ---बार बार इस रूट की बात इसलिये कर रहा हूं क्योंकि इस रूट का वाकिफ़ हूं ---भुक्तभोगी हूं --- पता नहीं दूसरे रूटों पर क्या हालात होंगे , कह नहीं सकता।

लेकिन मेरे उस जाहिल-गंवार को एक बार कुछ पूछ लेने का असर यह हुआ कि उस ने दूसरी बीडी नहीं सुलगाई ----लेकिन पहली उस ने पूरे मजे से पी। होता यह है कि कानून का इन बीड़ी पीने वालों को भी पता होता है ---इसलिये मन में यह भी डरे डरे से ही होते हैं लेकिन हम हिंदोस्तानियों का रोना यही है कि हम लोग पता नहीं चुप रहने में ही अपनी सलामती समझते हैं ----काहे की यह सलामती जिस की वजह से रोज़ाना ऐसे लोगों की बीड़ीयों के कारण हज़ारों लोगों के फेफड़े बिना कसूर के सिंकते रहते हैं।

रोहतक-दिल्ली रूट पर मैंने 1991 में कुछ हफ़्तों के लिये डेली पैसेंजरी की थी ---- डिब्बे में घुसते ही ऊपर वाली सीट पर अखबार बिछा कर आंखें बंद कर लिया करता था । इसलिये जब मुझे यह वाली सर्विस छोड़ कर दूसरी सर्विस बंबई जा कर ज्वाइन करने का अवसर मिला तो मैं ना नहीं कर पाया। तुरंत इस्तीफा दे कर बंबई भाग गया ---- शायद मन के किसी कौने में यही खुशी थी कि इस साली, कमबख्त बीड़ी से तो छुटकारा मिलेगा।

बीड़ी की बात हो रही है ---आज सुबह एक 42 वर्ष का व्यक्ति आया जो लगभग पच्चीस साल से एक पैकेट बीड़ी पी रहा था लेकिन दो महीने से बीड़ी पीनी छोड़ दी है। परमात्मा इस का भला करे ----मुझे इस के मुंह के अंदर देख कर बहुत ही दुःख हुआ। यह आया तो इस तकलीफ की वजह से था कि मुंह के अंदर कुछ भी खाया पिया बहुत लगता है , दर्द सा होता है। उस के मुंह के अंदर की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं। इस के बाईं तरफ़ के मुंह के कौने का क्या हाल है, यह आप इस तस्वीर में देख रहे अगर आप को याद होगा कि मैंने अपने एक दूसरे मरीज़ के मुंह की तस्वीर अपनी किसी दूसरी पोस्ट में डाली थी ---- लेकिन इस के मुंह की हालत उस से भी बदतर लग रही थी ।

अनुभव के आधार पर यही लग रहा था कि सब कुछ ठीक नहीं है ---- यही लग रहा था कि यह कुछ भी हो सकता है, शायद यह जख्म कैंसर की पूर्वावस्था की स्टेज पार कर चुका था । इसलिये उसे तो यह सब कुछ बहुत ही हल्के-फुलके ढंग से बताया -----पहली बार ही उस को क्या कहें, देखेंगे अब तुरंत ही उस के इस ज़ख्म की बायोप्सी ( जख्म का टुकड़े लेकर जांच की प्रोसैस को बायोप्सी कहते हैं ) ....का प्रबंध किया जायेगा और उस के बाद उचित इलाज का प्रवंध किया जायेगा।

एक बहुत ही अहम् बात यह है कि उस की दाईं तरफ़ का कौना लगभग ठीक ठाक लग रहा था ----इसलिये उस की बाईं तरफ़ के ज़ख्म का किसी चिंताजनक स्थिति की तरफ़ इशारा करता लगता है।

और आप इस के तालू की अवस्था देखिये ---आप देखिये कि इस 42 वर्षीय व्यक्ति की बीड़ी की आदत ने तंबाकू का क्या हाल कर दिया है ---- इस की भी बायोप्सी करवानी ही होगी क्योंकि वहां पर भी काफ़ी गड़बड़ हो चुकी लगती है।

उस बंदे को तो मैंने जाते जाते बिलकुल सहज सा ही कर दिया ---लेकिन लोहा गर्म देखते हुये मैंने उस के मन में निष्क्रिय धूम्रपान ( passive smoking) के प्रति नफ़रत का बीज भी अच्छी तरह से बो ही दिया ---चूंकि वह स्वयं इस बीड़ी का शिकार हो चुका था ( उस ने मुझे इतना कहा कि डाक्टर साहब, मुझे भी लग तो रहा था कि छःमहीने से मेरे मुंह में कुछ गड़बड़ तो है ) ....मैंने पहले तो उसे समझाया कि पैसिव धूम्रपान होता क्या है ---- जब कोई आप के घर में , आप के कार्य-स्थल पर आप का साथी सिगरेट-बीड़ी के कश मारता है, बस-गाड़ी में कोई बीडी से अपने शरीर को फूंक रहा होता है तो वह एक धीमे ज़हर की तरह ही दूसरे लोगों के शरीर की भी तबाही कर रहा होता है।

इसलिये मैंने उसे कहा कि जहां भी सार्वजनिक स्थान पर, अपने साथ काम करने वाले लोगों को धुआं छोड़ते देखो , तो चुप मत रहो ----- बोलो, उसे बताओ कि आप के धुएं से मेरे को परेशानी है। आप यह काम यहां नहीं कर सकते -----यहां पर यह सब करना कानूनन ज़ुर्म है । ऐसा सब लोग कहने लगेंगे तो इस का प्रभाव होगा ---मेरा जैसा कोई अकेला कहेगा तो उसे बीड़ी-मंडली के द्वारा की जाने वाली जूतों की बरसात के डर से या गाड़ी से नीचे गिराये जाने के डर से अपना मुंह बंद करना पड़ सकता है ----अब सरकार गाड़ी के एक एक डिब्बे में तो घुसने से रही ----कुछ काम तो पब्लिक भी करे ----इन बीड़ी-सिगरेट पीने वालों को बतायो तो सही कि हमें आप की बीड़ी सिगरेट पीने से एतराज़ है ---इसे बंद करें ----वरना धूआं बाहर न निकालें ---इसे अपने फेफड़े अच्छी तरह से झुलसा लेने तो दो -------जब हर बंदा इस तरह की आपत्ति करने लगा तो फिर देखिये इन का क्या हाल होगा !!

वैसे आज सुबह मैं अपने मरीज़ से यह पैसिव स्मोकिंग वाली बात कर रहा था और वह बेहद तन्मयता से सुन कर मुंडी हिला रहा था तो मुझे बहुत ही सुकून मिल रहा था ---यह एक नया आईडिया था जिस पर शायद मैंने अपने मरीज़ों को इतना ज़ोर देने के लिये कभी प्रेरित नहीं किया था ----- क्योंकि मेरा बहुत सारा समय तो उन की स्वयं की बीड़ी सिगरेट छुड़वाने में निकल जाता है ---- लेकिन आज से यह बातें भी सभी मरीज़ों के साथ ज़रूर हुआ करेंगी । और हां, मुझे लग रहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर पैसिव स्मोकिंग के बारे में बहुत कुछ लिख कर इस का मैं इतना प्रचार प्रसार करूंगा कि उस पैसेंजर गाड़ी वाले युवक की ऐसी की तैसी ---- जिस ने मेरे को कहा कि तू जा के किसी दूसरी जगह पर बैठ जा ------ मज़ा तो तब आये जब इन्हीं रूटों पर लोग गाड़ी में बीड़ी सिगरेट सुलगायें तो साथ बैठा दूसरा बंदा उस के मुंह से बीड़ी छीन कर बाहर फैंक दे -----------तो फिर, देर किस बात की है ------ह्ल्ला बोल !!!!!--------------लगे रहो, मुन्ना भाई। मेरे इस सपने को साकार करने के लिये आप में से हरेक का सहयोग चाहिये होगा ----वैसे, अभी तो इस बात की कल्पना कर के कि बस-गाड़ी में सफर कर रहे किसी बंधु की जलती बीड़ी उस के मुंह से छीन कर बाहर फैंके जा रही है ----ऐसा सोचने से ही मन गदगद हो गया है। हम लोगों की खुशीयां भी कितनी छोटी छोटी हैं और कितनी छोटी छोटी बातों से हम खुश हो जाते हैं ----- तो फिर इस सारे समाज को यह छोटी सी खुशी देने से हमें कौन रोक रहा है ?

PS....After writing this post, I just gave it to my son to have a look and I was feeling a bit embarrased about the too much frankness shown in the post. With somewhat I shared with my son that I feel like not posting it. So, I am going to delete it. "Papa, if you are not feeling like opening your heart --- your thoughts in your own blog, then where would you get a better opportunity to do that stuff like that !!" So, after getting his nod and clearance, i am just going ahead and pressing the PUBLISH button.

Good luck !!

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

अगर मुंह में ही ये हालात हैं तो शरीर के अंदर क्या हाल होगा ?

जिस व्यक्ति के मुंह की तस्वीर आप इस दोनों फोटो में देख रहे हैं, इन की उम्र 50 साल की है और ये पिछले 20-25 सालों से धूम्रपान कर रहे हैं। यह मधुमेह की तकलीफ़ से भी परेशान हैं। जब इन्होंने धूम्रपान शुरू किया तो पहला कश यारों-दोस्तों के साथ बैठे बैठे यूं ही मज़ाक में खींचा था ---और इन्होंने भविष्य में दोबारा कश न खींचने की बात कही थी क्योंकि धुऐं से इन को चक्कर सा आने लगा था।

लेकिन उन्हीं यारों दोस्तों के साथ उठते बैठते कब यह मज़ाक एक बदसूरत हकीकत में बदल गया इन्हें भी इस का पता ही नहीं चला। वैसे तो मेरे पास यह दांत की तकलीफ़ के लिये आये थे ----आप देख ही रहे हैं कि तंबाकू के इस्तेमाल ने इन के मुंह में क्या तबाही कर रखी है !!

ऐसे मरीज़ों की दांत की तकलीफ़ को तो मैं बाद में देखता हूं ---पहले उन्हें तंबाकू की विनाश लीला से रू-ब-रू होने का पूरा मौका देता हूं। यह जो आप पहली तस्वीर में देख रहे हैं यह इन के बायें तरफ़ की गाल का अंदरूनी हिस्सा है ---- यह भी ओरल-ल्यूकोप्लेकिया ही है ---अर्थात् मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था । आप दूसरी तस्वीर में दाईं तरफ़ की गाल का भी अंदरूनी हिस्सा देख रहे हैं कि उस तरफ़ भी गड़बड़ शुरू हो चुकी है।

अब यह कौन बताये कि कौन सा ल्यूकोप्लेकिया मुंह के कैंसर में तबदील हो जायेगा और इसे ऐसा करने में कितने साल लगेंगे ------ लेकिन फिर भी इस तरह का जोखिम आखिर कौन लेना चाहेगा ? – जब सरेआम पता है कि मुंह में एक शैतान पल रहा है तो फिर भी क्यों इस को नज़रअंदाज़ किया जाये। ऐसी अवस्था को नज़रअंदाज़ करना एक अच्छा-खासा जोखिम से भरा काम है। इसलिये इस का तुरंत इलाज करवाना ज़रूरी है।

लेकिन इस का इलाज कैसे हो ? ---सब से पहली बात है कि जब भी पता चले कि यह तकलीफ़ है तो उसी क्षण से सिगरेट-बीड़ी के पैकेट पर गालीयों की जबरदस्त बौछार कर के ( जैसे जब-व्ही -मेट --jab we met की नायिका ने अपने पुराने ब्वॉय-फ्रैंड पर की थी !! , अगर हो सके तो उस से भी ज़्यादा ....!! ) बाहर नाली में फैंक दिया जाये। मेरे मरीज़ों को मेरी यह बात समझ में बहुत अच्छी तरह से आ जाती है जब मैं उन्हें यह कहता हूं कि देखो, भई, बहुत पी ली बीड़ीयां अब तक ---- अब इसे कभी तो छोड़ोगे, और अब खासकर जब आप को पता लग चुका है इस तंबाकू ने अपना रंग आप के मुंह में दिखा दिया है -----ऐसे में अगर अब भी इस कैंसर की डंडी ( सिगरेट- बीड़ी / कैंसर स्टिक) का मोह नहीं छूटा तो समझो कि धीरे धीरे आत्महत्या की जा रही है।

सिगरेट बीड़ी छोड़ कर इस ओरल-ल्यूकोप्लेकिया के इलाज की तरफ़ ध्यान दिया जाये – अगर तो आप किसी ऐसे शहर में रहते हैं जहां पर कैंसर हास्पीटल है तो वहां पर कैंसर की रोकथाम वाले विभाग में जाकर इस की ठीक से जांच करवायें, ज़रूरत होगी तो उस जगह से थोड़ा टुकड़ा लेकर बायोप्सी भी की जायेगी और फिर समुचित इलाज भी किया जायेगा। यह बहुत ही ज़रूरी है ----लेकिन इलाज से पहले , प्लीज़, कृपया, मेहरबानी कर के धूम्रपान की आदत को लात मार दें तो ही बात बनेगी।

मैं तंबाकू के विरोध में जगह जगह इतना बोलता हूं कि कईं बार ऊब सा जाता हूं –यहां तक कि इस किस्म के लेख लिख कर भी थकने लगता हूं लेकिन फिर वही ध्यान आता है कि अगर हम लोग ही थक कर, हौंसला हार कर बैठ गये तो यह तंबाकू नामक गुंडे का हौंसला तो और भी बुलंद हो जायेगा।

सोचने की बात यह है कि मुंह में तो यह तंबाकू के विभिन्न उत्पाद जो ऊधम मचा रहे हैं वह तो डाक्टर ने मरीज़ का मुंह खुलवाया और देख लिया लेकिन शरीर के अंदरूनी हिस्सों में जो यह तबायी लगातार मचाये जा रहा है, वह तो अकसर बिना किसी चेतावनी के उग्र रूप में ही प्रकट होती है जैसे कि दिल का कोई भयंकर रोग, श्वास-प्रणाली के रोग, फेफड़े का कैंसर, मूत्राशय का कैंसर -----------आखिर ऐसा कौन सा अंग है जो इस के विनाश से बचा रह पाता है ?

इसलिये केवल और केवल एक ही आशा की किरण है कि हम लोग सभी तरह के तंबाकू उत्पादों से दूर रहें -----यह भी एक खौफ़नाक आतंकवादी ही है जो गोली से नहीं मारता, बल्कि यह धीमा ज़हर है, धीरे धीरे मौत के मुंह में धकेलता है। सोचने की बात यह भी है कि आखिर यह सब जानते हुये भी किस फरिश्ते की इंतज़ार कर रहे हैं जो आकर हमें इस शैतान से निजात दिलायेगा।

तंबाकू या स्वास्थ्य -----------------आप केवल एक को ही चुन सकते हैं !!

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

जब भिखारी भीख में तंबाकू मांगने लगें..... तो समझो मामला गड़बड़ है!!

क्या आप को किसी भिखारी ने तंबाकू दिलाने को कभी कहा है ? मेरे साथ ऐसा ही हुआ कुछ दिन पहले जब मैं पिछले सप्ताह चार-पांच दिन के लिये एक राष्ट्रीय कांफ्रैंस के सिलसिले में नागपुर गया हुआ था। मैं एक दिन सुबह ऐसे ही टहलने निकल गया। रास्ते में एक मंदिर के बाहर बहुत से मांगने वाले बैठे किसी धन्ना सेठ की बाट जोह रहे थे। वहां से कुछ ही दूर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो बीमार लग रहा था –उस की टांग में कोई तकलीफ़ लग रही थी- उस ने मुझे आवाज़ दी ---बाबू, तंबाकू दिला दो। मैं एकदम हैरान था।

यह पहला मौका था जब किसी मांगने वाले ने मेरे से तंबाकू की फरमाईश की थी। मुझे उस की यह फरमाईश सुन कर न तो उस पर गुस्सा आया, ना ही तरस आया ---- वैसे तो मैं उस समय भावशून्य ही हो गया। लेकिन पता नहीं क्या सोच कर मैंने उसे कहा कि बिस्कुट खायोगे (पास में एक किरयाना की दुकान खुली हुई थी ) --- तो उस ने अपना तर्क रखा कि इस समय कहां मिलेंगे बिस्कुट। मैं तुरंत उस दुकान पर गया और वहां से बिस्कुट खरीद कर उसे दिये।

साथ में उस के एक कुत्ता बैठा हुआ था --- मैं समझ गया कि यह इस के दुःख सुख का साथी है, एक पैकेट उस के लिये भी दिया। एक बात का ध्यान आ रहा है कि जितनी शेयरिंग ये मांगने वाले आपस में या अपने पालतु जानवरों के साथ करते हैं, यह काबिले-रश्क होती है। मैं बहुत बार देखा है कि अगर इन के पास ब्रैड के दो पीस हैं तो एक-एक खा लेते हैं। मैं इस बात से बहुत ही ज़्यादा प्रभावित होता हूं ।

खैर, उस मांगने वाले के बारे में सोच कर मैं मिष्रित सी भावनाओं से भरा रहा --- खाने के लाले पड़े हैं, ऊपर से बीमारी, रहने का कोई ठिकाना नहीं लेकिन तंबाकू का ठरक एकदम कायम !! लेकिन यह हल्के-फुल्के अंदाज़ में टालने वाली बात नहीं है। उसी दिन बाद दोपहर तंबाकू के ऊपर एक सैमीनार ने भी यही कहा कि हमें तंबाकू के आदि हो चुके लोगों का कभी भी मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिये --- ये बीमार लोग हैं, ये लोग तंबाकू के आदि हो चुके हैं, इन से प्यार और सहानुभूति से ही पेश आने की ज़रूरत है, तभी ये हमारी बात मानेंगे।

उस दिन तंबाकू एवं पान-मसाला, गुटखे के इस्तेमाल से होने वाले विनाश की दो गाथायें सुन कर मन बहुत ही बेचैन हुआ। वर्धा के सुप्रसिद्ध ओरल-सर्जन ने एक 21 साल के युवक के बारे में बताया जो कि गुटखा इस्तेमाल किया करता था --- उन्होंने बताया कि उसे मुंह का कैंसर हो गया --- पूरे दस घंटे लगा कर उन्होंने उस का आप्रेशन किया ---सारी तस्वीरें उन्होंने दिखाईं---आप्रेशन की और जब हास्पीटल से छुट्टी लेने के बाद वह अपने मां-बाप के साथ खुशी खुशी घर लौट रहा था। लेकिन उन्होंने बताया कि इतना लंबा आप्रेशन करने के बावजूद छःमहीनों के बाद ही उसे दोबारा से मुंह के कैंसर ने धर दबोचा और वह देखते ही देखते मौत के मुंह में चला गया। मुंह के कैंसर के रोगियों के साथ अकसर यही होता है। इस 21 साल के नवयुवक के केस के बारे में सुन कर हम सब लोग आश्चर्य-चकित थे --- ऐसे केस अब इतनी कम उम्र में भी बिल्कुल होने लगे हैं क्योंकि यह गुटखा, पानमसाला, तंबाकू हमारे जीवन में ज़हर घोले जा रहा है।

दूसरा केस यह था कि चार साल का बच्चा जो गुटखे और पानमसाले का आदि हो चुका था उस का मुंह ही खुलना बंद हो चुका था ---- वह ओरल-सबम्यूकसफाईब्रोसिस की तकलीफ़ का शिकार हो चुका था और उस की तस्वीर के नीचे लिखा हुआ था ----मेरा क्या कसूर है ? बात सोचने की भी है कि उस का निःसंदेह कोई कसूर भी तो नहीं है, कसूर सामूहिक तौर पर हम सब का ही है, सारे समाज का ही दोष है कि हम सब मिल कर भी इन विनाशकारी पदार्थों को उस के मुंह तक पहुंचने से रोक न सके !

कुछ दिन पहले मेरे पास एक साठ साल के लगभग उम्र वाला एक मरीज़ आया --- उस से मैंने यह सीखा कि बार बार तंबाकू छोड़ने वाली बात के पीछे पड़े रहना कितना ज़रूरी है। यह मरीज़ पिछले कईं सालों से तंबाकू-चूने का मिश्रण बना कर गाल के अंदर रखा करता था --- इस से उस की गाल का क्या हाल हुआ, यह आप इस तस्वीर में देख सकते हैं। इस अवस्था को ओरल-ल्यूकोप्लेकिया (oral leukoplakia) कहा जाता है और यह कैंसर की पूर्व-अवस्था है।

मैंने पंद्रह-बीस मिनट उस मरीज़ के साथ बिताये ---उसे खूब समझाया बुझाया। नतीज़ा यह निकला कि मरीज़ कह उठा कि डाक्टर साहब, ये सब बातें आपने एक साल पहले भी मेरे से की थीं, लेकिन मैं ही इस आदत को छोड़ नहीं पाया, लेकिन आज से प्रण करता हूं कि इस शैतान को कभी छूऊंगा भी नहीं। और इस के साथ ही उस ने यह तंबाकू का पैकेट मेरी टेबल पर रख दिया जिस की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं--- मैंने पूछा कि चूने वाले डिबिया भी यहीं छोड़ जाओ। उस ने बताया कि सब कुछ इस पैकेट में ही है। उस समय मुझे यह पैकेट देख कर इतनी खुशी हो रही थी जितनी इंटरपोल के अधिकारियों को किसी अंतर्राष्ट्रीय गैंग के खूंखार आतंकवादी को पकड़ते वक्त होती होगी------ वैसे देखा जाये तो यह तंबाकू भी किसी खतरनाक आतंकवादी से कम थोड़े ही है --- इस का काम भी हर तरफ़ विनाश की आग जलाना ही तो है !!

आज वह पांच दिन बाद मेरे पास वापिस लौटा था --- बता रहा था कि यह देखो कि हाथ कितने साफ़ कर लिये हैं ---कुछ दिन पहले उस के हाथों पर तंबाकू की रगड़ के निशान गायब थे , ( काश, शरीर के अंदरूनी हिस्सों में तंबाकू के द्रारा की गई विनाश-लीला भी यूं ही धो दी जा सकती !!) …. वह बता रहा था कि पांच दिन हो गये हैं तंबाकू की तरफ़ देखे हुये भी। मैंने सलाह दी कि अपने कामकाज के वक्त भी ध्यान रखो कि किसी साथी से भी भूल कर तंबाकू की चुटकी मत लेना ---- बता रहा था कि आज सुबह ही उसे एक साथी दे तो रहा था लेकिन उस ने मना कर दिया। मुझे बहुत खुशी हुई उस की ये बातें सुन कर। और मैंने उसे कहा कि थोड़े थोड़े दिनों के बाद मुझे आकर मिल ज़रूर जाया करे और अपने दूसरे साथियों की भी इस शैतान से पीछे छु़ड़वाने में मदद करे।

और मैंने उस की इच्छा शक्ति की बहुत बहुत तारीफ़ की --- यही सोच रहा हूं कि तंबाकू छुड़वाने के लिये पहले तो डाक्टर को थोड़ा टाइम निकालना होता है और दूसरा मरीज़ की इच्छा-शक्ति, आत्मबल होना बहुत ज़रूरी है --- वैसे अगर डाक्टर उस समय यही सोचे कि उस के सामने बैठा हुआ वयोवृद्ध शख्स उस के अपने बच्चे जैसा ही है तो काम आसान इसलिये हो जाता है कि अगर हमारा अपना बच्चा कुछ इस तरह का खाना-चबाना शुरू कर दे तो क्या हम जी-जां लगा कर उस की यह आदत नहीं छुड़वायें---- बेशक छुड़वायेंगे, तो फिर इस बच्चे के साथ इतनी नरमी क्यों----यह भी जब तंबाकू रूपी शैतान को लात मार देगा तो इस का और इस के पूरे परिवार का संसार भी तो हरा-भरा एवं सुनहरा हो जायेगा-------और यकीन मानिये कि डाक्टर के लिये इस से ज़्यादा आत्म-संतुष्टि किसी और काम में है ही नहीं, दोस्तो।

शनिवार, 31 जनवरी 2009

चमड़ी को चमड़ा बनने से पहले --- पानमसाले को तो अभी से ही थूकना होगा !!


हमारा धोबी नत्थू अकसर मुझे जब यह कहता है कि वह तो पिछले 20 साल से ज़र्दे-धूम्रपान का सेवन कर रहा है लेकिन उसे किसी प्रकार की बीमारी नहीं है, यहां तक की कभी कब्ज की शिकायत भी नहीं हुई ----यह सुन कर मुझे यह लगता है कि वह मुझे मुंह चिढ़ा रहा हो कि देखो, हम तो सब कुछ खा पी रहे हैं लेकिन फिर भी हैं एक दम फिट !!

वैसे मुझे वह क्या चिढ़ायेगा ---लेकिन इसे पढ़ कर कहीं आप भी यह मत सोच लें कि ज़र्दा-धूम्रपान उस के लिये घातक नहीं है। ज़र्दा-धूम्रपान से होने वाले नुकसान शुरू शुरू में महसूस नहीं होते हैं –इन का पता तभी चलता है जब कोई लाइलाज बीमारी जकड़ लेती है। लेकिन यह पता नहीं कि किसी व्यक्ति को यह लाइलाज रोग 5 वर्ष ज़र्दा-धूम्रपान के सेवन पर होगा या 50 वर्ष के इस्तेमाल करने के बाद !!

इसे समझने के लिये एक उदाहरण देखिये --- अपने मकान के पिछवाड़े में बार बार भरने वाले बरसात के पानी को यदि आप ना देख पायें तो नींव में जाने वाले इस पानी के खतरे का अहसास आपको नहीं होगा। उसका पता तभी चलेगा जब इससे मकान की दीवार में दरार आ जाए या मकान ही गिर जाए ---लेकिन तब तक अकसर बहुत देर हो चुकी होती है। ज़र्दा-धूम्रपान का इस्तेमाल एक प्रकार से बार-बार पिछवाड़े में भरने वाले पानी के समान है।

आज मेरे पास लगभग बीस वर्ष का युवक आया ----आया तो था वह मुंह में किसी गांठ को दिखाने के लिये ---लेकिन मुझे उस का मुंह देख कर लगा इस ने तो खूब पान-मसाला खाया लगता है। पूछने पर उसने बताया कि डेढ़-दो साल पहले इस पानमसाले के एक पैकेट को रोज़ाना खाना शूरू किया था और पिछले तीन महीने से छोड़ रखा है--- ( लगभग सभी मरीज़ यही कहते हैं कि कुछ दिन पहले ही बिल्कुल छोड़ दिया है !!) –उस नवयुवक के मुंह की चमड़ी बिलकुल चमड़े जैसी बन चुकी थी --- और चमड़ा भी बिलकुल वैसा जैसा पुराना चमड़ा होता है ---अपने जिस शूज़ को आप छःमहीने तक नहीं पहनते जिस तरह से उस का चमड़ा सूख जाता है, बिलकुल वैसी ही लग रही थी उस के मुंह की चमड़ी ---- उस से मुंह पूरा खोले ही नहीं बन पा रहा था । इस अवस्था को कहते हैं ----ओरल सबम्यूकसफाईब्रोसिस (Oral submucous fibrosis)---- यह पानमसाला सादा या ज़र्देवाला खाने से हो सकती है और इसे मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था कहा जाता है (Oral precancerous lesion of the oral cavity) .

कृपया इसे ध्यान से पढ़िये ---- मुंह की कोमल त्वचा (Oral mucous membrane) के साथ तंबाकू, चूना, सुपारी आदि का सतत संसर्ग बड़े भयंकर परिणाम ले आता है । मुंह की त्वचा द्वारा रक्त में घुलता निकोटीन ( nicotine) तो अपने हिस्से का काम करता ही है , लेकिन इन वस्तुओं का सतत संपर्क मुंह की कोमल त्वचा के ऊपर की पर्त को इतना ज़्यादा नुकसान पहुंचाता है कि धीरे धीरे यह कोमल त्वचा अपना मुलायमपन (smoothness), चमकीलापन (luster), और लचक (elasticity) खो देती है।
लार-ग्रंथि (salivary gland) को हानि पहुंचने से लार कम हो जाती है और मुंह सूखा रहता है। स्वाद परखने वाली ग्रंथियां (taste buds) भी कुंठित हो जाती हैं और प्रकृति की जिस अद्भुत रचना से मानव नाना प्रकार के भिन्न भिन्न स्वादों को परख पाता है, वे निक्म्मी हो जाती हैं।

इस के फलस्वरूप मुंह की त्वचा सूखी, खुरदरी, झुर्रीदार बन जाती है और उस की निचली पर्त में भी अनेकानेक परिवर्तन होने लगते हैं। ऐसे मरीज़ों का मुंह खुलना धीरे धीरे बंद हो जाता है जैसा कि मुझे आज मिले इस मरीज़ का हाल था। गरम,ठंडा,तीखा, खट्टा सहन करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है। इसी स्थिति को ही सब-म्यूक्स फाईब्रोसिस (Submucous fibrosis) कहा जाता है और यह मुंह में होने वाले कैंसर की एक खतरे की घंटी के बराबर है। ऐसे व्यक्ति को तुरंत पान-मसाले, गुटखे, ज़र्दे वाली लत छोड़ कर अपने दंत-चिकित्सक से बिना किसी देरी के मिलना चाहिये क्योंकि ऐसे व्यक्तियों में भविष्य में मुंह का कैंसर हो जाने की आशंका होती है। इसीलिये इन सब को ---पानमसाले को भी ----हमेशा के लिये आज ही इसे थूक देने में समझदारी है।

संक्षेप में कहें तो इस तरह के सब पदार्थ केवल लोगों की सेहत के साथ घिनौना खिलवाड़ ही कर रहे हैं ---ध्यान आ रहा है कि पिछले हफ्ते ही एक नवयुवक जिस की उम्र भी लगभग 20-22 की ही होगी के मुंह में देखने पर पाया कि उस के मुंह में ओरल-ल्यूकोप्लेकिया है --- ( यह भी मुंह के कैंसर की एक पूर्व-अवस्था ही है ) लेकिन इस उम्र में मैंने पहले यह अवस्था पहले कभी नहीं देखी थी ---अकसर 35-40 साल के आसपास ही मैंने इस तरह के ल्यूकोप्लेकिया के केस देखे थे ---वह युवक कुछ सालों से ज़र्दे का सेवन करता था। ध्यान इस बात का भी आ रहा है कि कुछ हानिकारक पदार्थ जो इन में पड़े होते हैं उन का हमें पता है लेकिन उन पदार्थों का हमें कैसे पता चलेगा जिन के बारे में तो पैकेट के ऊपर भी कुछ नहीं लिखा होता लेकिन अकसर मीडिया में इन हानिकारक तत्वों की भी पोल खुलती रहती है।

चलो, यार, इधर ब्रेक लगाते हैं ----ताकि इस समय पान मसाला चबा रहे अपने बंधु , इसे थूक कर ( सदा,सदा के लिये !!) , अच्छी तरह कुल्ला करने के बाद तरोताज़ा होकर नेट पर वापिस लौटें और फिलहाल चुपचाप इस सुपरहिट गाने से ही काम चला लिया जाए।

गुरुवार, 15 जनवरी 2009

आखिर बीड़ी के पैकेट पर किसी खौफ़नाक सी तस्वीर की इंतज़ार हो क्यों रही है ?

मेरी विचार में तो वह आदमी सब से ज़्यादा बदकिस्मत है जो तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन करता है अथवा शराब का आदि हो चुका है । जो लोग इन दोनों का सेवन नहीं करते हैं वे भी मरते हैं ---लेकिन मरने मरने में भी अंतर है। यह तो एक किस्म की आत्महत्या है।

आज शाम को उस समय मूड बहुत खराब हुआ जब एक परिचित से मुलाकात हुई जिस से पता चला कि उस के भाई को जो 58 वर्ष का है फेफड़े का कैंसर हो गया है जो कि आखिरी स्टेज में बताया गया है --- सभी डाक्टरों ने जवाब दे दिया है , कह रहे हैं जितनी सेवा-सुश्रुषा कर सकते हो कर लो। उस का भाई बता रहा था कि तीन महीने पहले तक इसे कुछ भी न था, बस कुछ दिन छाती में दर्द हुआ----डाक्टर के पास गया, सारी जांच हुई तो पता चला कि फेफड़े का कैंसर है। वह यह भी बता रहा था कि उस के भाई को कभी बुखार भी नहीं हुआ था -----बस, यह सिगरेट की आदत ही इसे ले डूबी। मुझे भी सुन कर बहुत बुरा लगा --- आज कल 58 साल की उम्र ही क्या होती है। और इन तीन महीनों में वह हड्डियों का ढांचा बन कर रह गया है।

और मैं रोज़ाना लगभग एक-दो मरीज़ ऐसे देख लेता हूं जिन के मुंह में मुझे तंबाकू के द्वारा किये गये विनाश की गाथा देखने को मिलती है । और अधिकांश तौर पर यह मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था ही होती है। मैं हर ऐसे मरीज़ के साथ दस मिनट ज़रूर बिताता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि किसी तरह से अगर यह अभी भी तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन छोड़ दे तो बचाव हो सकता है। और मुझे पता है कि इन में से अधिकांश मरीज़ उस दिन के बाद मेरे पास आना ही छोड़ देते हैं- मुझे यह लिखते हुये बहुत अजीब सा लग रहा है। शायद उन को लगता होगा कि डाक्टर कुछ ज़्यादा ही बकवास कर रहा है !!

कुछ दिन पहले भी मेरे पास जो 17-18 साल का एक लड़का आया था , मैंने उस को भी बहुत ही समझाया था कि इस गुटखे को अभी भी त्याग दे, वरना कुछ भी हो सकता है । लेकिन मैंने उसे बार बार यह भी तो कहा था कि अभी भी बात बिगड़ी नहीं है , सब कुछ नियंत्रण में ही है । लेकिन वह लड़का भी मेरे पास वापिस लौट कर नहीं आया। अब ऐसा कोई व्यवस्था तो है नहीं कि जबरदस्ती किसी मरीज़ का मैं गुटखा छुड़वा सकूं ----कभी भी जब ऐसा मरीज़ आज कल दिखता है तो यह तो मैं समझ ही जाता हूं कि यह तो शायद ही लौट कर आयेगा, इसीलिये मैं उसी दिन उस के साथ 10-20मिनट बिताने बहुत ज़रूरी समझता हूं। मैं तो भई अपनी पूरी जी-जान लगा देता हूं कि किसी तरह से आज के बाद यह तंबाकू के सभी रूपों से दूर ही रहे , आगे उस की किस्मत, इस से ज़्यादा और क्या करें क्योंकि तब तक इस तरह का कोई दूसरा रोगी ओपीडी के कपड़े के बाहर खड़ा दस्तक दे रहा होता है !!

इस लड़के की मैंने बात विशेष रूप से इस लिये की क्योंकि इस के मुंह की जो अवस्था मैंने देखी थी ---- कैंसर की पूर्व-अवस्था जिसे मैडीकल भाषा में ओरल-ल्यूकोप्लेकिया भी कहा जाता है ----- यह मैंने इस से पहले शायद ही कभी इस 17-18 साल की उम्र में किसी के मुंह में देखी थी --- अकसर ऐसे केस 35-40 वर्ष या उस के बाद की अवस्था में ही मेरे द्वारा देखे गये थे। यह केस देख कर तो मैं भी भौचक्का रह गया था -- उम्र 18 साल और बीमारी पचास साल वाली !!

वैसे देखा जाये तो डाक्टर लोग भी क्या कर लेंगे ----अच्छी तरह से समझा-बुझा दिया और क्या करें !! लेकिन एक बात तो तय है कि जितना विनाश इस संसार में यह तंबाकू एवं शराब द्वारा किया जा रहा है शायद ही अन्य किसी दूसरे पदार्थ से इतना कोहराम मच रहा हो।

तंबाकू के मुंह के अंदर होने वाले प्रभाव की तो बात कर ली ---मरीज़ ने भी देख लिया, शायद समझ लिया लेकिन उस विनाश का क्या जो शरीर के अंदरूनी भागों में हो रहा है ---उस का तो ज्वालामुखी बस कभी भी फूट सकता है जैसे मेरे उस परिचित के भाई के साथ हुआ। गले का कैंसर, खाने की नली का कैंसर, पेट का कैंसर, आंतड़ी का कैंसर, मूत्राशय का कैंसर, दिल की बीमारी, दिमाग में रक्त-स्राव, नपुंसकता ---------आखिर कोई तकलीफ़ ऐसी भी है जो इस तंबाकू रूपी शैतान छोड़ देता होगा।

और यह भी हम लोग रोज़ देखते ही हैं कि अगर कोई खुशकिस्मत बंदा कैंसर जैसे रोग से बच भी गया तो तंबाकू एवं शराब से होन वाली तरह तरह की अन्य बीमारियों की गिरफ्त में आ जाता है। फेफड़े खराब हो जाते हैं, सांस फूलने लगती है , पेट में अल्सर हो सकता है ------बस , संक्षेप में तो यही कह दें कि ऐसी कौन सी भयानक बीमारी है जो तंबाकू और शराब के सेवन से नहीं होती !! और ऊपर से हम लोगों की कोई इतनी बढ़िया स्क्रीनिंग तो होती नहीं, जब धमाका होती है बस तभी पता चलता है ।

बात सोचने की यह भी है कि अगर तंबाकू इतना ही बड़ा विलेन है तो फिर क्या हम इसे छोड़ने के लिये क्यों बीड़ी,सिगरेट और गुटखे के बंडलों पर इस के विनाश की खौफ़नाक तस्वीरें देखने के बाद ही इसे छोड़ने का मन बनाने की सोच रहे हैं । आज ही सेहत चिट्ठाजगत के एक लेख पर पढ़ रहा था कि उस कानून को लागू करने में अभी अड़चने हैं -----चलिये, उन अड़चनों की बात छोड़े, वे तो रहेंगी ही ---------लेकिन हम स्वयं सोचें कि क्या इन विनाशकारी वस्तुओं को लात मारने के लिये हमें किसी कानून की ज़रूरत है ..................भई, यह हमारी अपनी सेहत का सवाल है, तो फैसला भी हमें ही करना है।

जो मैं इतने सारी बात कर लेता हूं तो अकसर मेरे मरीज़ यह कहते हैं कि यह कैसे हो पायेगा, यह लत आखिर छूटेगी कैसे ----तो मैं उन्हें यही कहता हूं कि होगा, ज़रूर होगा लेकिन इस के लिये बस केवल आप को 8-10 दिन धैर्य रखना होगा----- थोड़ा बहुत बदन-दर्द हो, सिर दर्द हो तो कोई दर्द निवारक टीकिया से काम चला लो, हो सके तो पांच-छः दिन की छुट्टी ले कर घर बैठ जाओ, टीवी देखो---कुछ भी करो, क्योंकि इन दिनों जब आप इस व्यसन को छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं तो आप के पुराने संगी-साथी आप को जितना नहीं मिलेंगे ,उतना ही बेहतर है।

मुझे बहुत दिक्कत होती है जब मैं इस तंबाकू और शराब से होने वाले कोहराम को अपने इर्द-गिर्द रोज़ाना देखता हूं -----हमें उस एटम-बंब की बजाये इस तरह के अंदरूनी बंबों से डरना चाहिये ---- वह एटम-बंब तो मारेगा तो पता भी नहीं चलेगा---एक ही झटके में सब का सफाया हो जायेगा , लेकिन ये छोटे बंब हमें न ही जीने देते हैं और न ही मरने देते हैं---- मेरे ताऊ जी ने लगभग 60-65 साल की उम्र में सिगरेट पीने छोड़े लेकिन इस के बाद भी जो 18-20 साल वो जिये -----सारी सारी रात खांसते ही जिये और उन के अंत समय तक उन के पलंग के नीचे रेत से भरा हुआ एक तसला पड़ा रहता था जिसमें वो बलगम गिराते रहते थे ----- उन की खांसी की आवाज़ सुन कर डर लगता है , रोज़ ऐसे ही लगता था कि कुछ भी हो सकता है !!

आप ने सुना है कि आज कल तो सैकेंड-हैंड स्मोक के साथ साथ थर्ड-हैंड स्मोक की बातें होने लगी हैं -----अर्थात् यह तो हम सब जानते ही हैं कि धूम्रपान करने वाले आदमी के साथ बैठे व्यक्ति को भी तंबाकू के धुएं से कुछ न कुछ प्रसाद तो मिलता ही था ( सैकेंड-हैंड स्मोक) लेकिन अब तो चटाई, पर्दों , चद्दरों, सोफ़ों पर जो तंबाकू का धुआं टिका रह जाता है उस के दुष्परिणामों की चर्चा होने लगी है( जिसे थर्ड-हैंड स्मोक कहा जाने लगा है ) --- तो ऐसे में कैसे भी हो इस तंबाकू आदि से जितना बचा जा सके बच लिया जाये -----नहीं, नहीं , जितना बचा जा सके नहीं ------------------किसी भी कीमत पर बिलकुल ही बचा जाये। इस के अलावा कोई रास्ता नहीं है ।

जीवन में वैसे ही इतना प्रदूषण है ---- जीवन में वैसे ही इतनी अनिश्चिता है तो फिर ऊपर से ये तंबाकू और शराब जैसे शैतान हम क्यों पाल लेते हैं--------------------------------यह हमारी, हमारी परिवार की, हमारे समाज की और इन सब से ऊपर छोटे छोटे मासूम बच्चों की बदकिस्मती नहीं है तो और क्या है !!

बीड़ी केवल पीने की ही तो चीज़ नहीं है , इसे सुन कर भी तो काम चलाया ही जा सकता है ना ।

शनिवार, 31 मई 2008

आज है विश्व तंबाकू निषेध दिवस....मुझे कौन बतायेगा ये आंकड़े !!


आज सुबह अखबार में एक इश्तिहार देखा है जिस का शीर्षक है....तंबाकू मुक्त युवा। इस के नीचे विभिन्न प्रकार के कानूनों की लिस्ट दी गई थी, जिन को मैं यहां बतलाना ज़रूरी समझता हूं।

तंबाकू बेचने वाली कोई भी दुकान/प्रतिष्ठान को “ अठारह साल से कम आयु वाले व्यक्ति को तंबाकू बेचना एक दंडनीय अपराध है” का चेतावनी बोर्ड अवश्य प्रदर्शित/लगाना होगा। संदेह होने की सूरत में, दुकानदार से आयु का पता लगाने के लिए आयु प्रमाण की मांग कर सकता है।यह पढ़ कर मुझे बहुत हंसी आई। मैं तो केवल इतना पूछना चाह रहा हूं कि क्या कोई मुझे इस से संबंधित आंकड़े बताने का कष्ट करेगा कि इस कानून के अंतर्गत अभी तक देश में कितने बीड़ी-सिगरेट वालों को बुक किया गया है। मुझे ये आंकड़े जानने की बेहद उत्सुकता हो रही है। क्या आप इस संबंध में मेरी मदद कर सकते हैं ? फिलहाल तो अगर किसी पनवाड़ी को भी इस कानून का उल्लंघन करने के लिये इस के अंतर्गत अभी तक नहीं लपेटा गया है तो इस का मतलब तो यही हुया ना कि सारे देश में सभी बीड़ी-सिगरेट वाले इस का सख्ती से पालन कर रहे हैं....लेकिन इस बात को पचाने के लिये मुझे आप को मुझे हाजमोला की दो डिब्बीयां पार्सल करनी होंगी।

दूसरी पंक्ति भी क्या पेट दर्द से बिलख रहे किसी रोते हुये बालक को भी को खिलखिला कर हंसाने में क्या कम है....संदेह होने पर दुकानदार आयु का प्रमाण-पत्र मांग सकता है। चलिये शुक्र है कानून में यह तो नहीं कहा गया कि यह प्रमाण-पत्र दुकानदारों को अगले पांच वर्ष तक संभाल कर रखने होंगे.....इन की कभी भी इलाके का दारोगा जांच कर सकता है। लेकिन दुकानदार को भी इस तरह की शक्तियां दी गईं हैं...शायद उसे इस बात का अभी तक आभास नहीं है, नहीं तो दुकानदार ने अभी तक इस तरह के प्रमाण के आभाव में ज़्यादा मोल लेकर बीड़ी-सिगरेट बेचनी शुरू कर दी होतीं। लेकिन यह पता नहीं कि रोज़ाना इस तरह के उत्पाद खरीदने वाले कैसे इस तरह के उम्र के प्रूफ़ को हमेशा अपने साथ ले कर चलेंगे। तो, आप ही कुछ सुझाव दे दीजिये।

दूसरा नियम कह रहा था ....शैक्षणिक संस्थानों को भी शैक्षणिक संस्थान से सौ गज की परिधि के भीतर क्षेत्र में सिगरेट और अन्य तंबाकू वस्तुओं की बिक्री करना निषेध है तथा एक अपराध है ”..लिखित चेतावनी बोर्ड अवश्य प्रदर्शित/ लगाना होगा।
इस के बारे में काश मुझे कहीं से आंकड़े मिल जायें कि इस नियम के उल्लंघन के लिये कितने लोगों को अब तक इस अपराध के अंतर्गत पकड़ा गया है।

किसी भी सार्वजनिक स्थल में सिगरेट/बीड़ी पीना अथवा किसी भी रूप में तंबाकू का प्रयोग करना अपराध है।अब इस के बारे में मैं क्या कहूं....आप मुझ से ज़्यादा इन सार्वजनिक स्थलों पर घूमते हैं....तो इन जगहों पर धूम्रपान की क्या हालत है, यह तो आप ही बता सकते हैं। मैं तो भई हास्पीटल से घर लौटने के बाद बस घर में ही टिका रहता हूं !!

सभी चेतावनी बोर्डों का न्यूनतम आकार 30X60सैं.मी. होना चाहिए। चेतावनी बोर्ड पर निर्धारित भाषा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना अपराध माना जाएगा। सभी सार्वजनिक कार्यालयों/क्षेत्रों/ होटलों/ रेस्टोरेंटों को “धूम्रपान निषेध क्षेत्र –यहां पर धूम्रपान करना अपराध है ” लिखित दो बोर्ड प्रदर्शित/लगाने होंगे।इतना कुछ पढ़ने के बाद भी क्या मेरे कुछ कहने की गुंजाइश बचती है क्या !! …पता नहीं मुझे इस तरह के बोर्ड अकसर क्यों नहीं दिखते...लगता है कि आंखें फिर से टैस्ट करवा ही लूं।

कोई भी व्यक्ति किसी भी तंबाकू उत्पादन या ब्रांड का विज्ञापन अथवा किसी भी प्रत्य़क्ष या अप्रत्यक्ष विज्ञापन में भाग नहीं ले सकता है। उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 5 वर्ष तक सजा हो सकती है।इस के बारे में तो बस इतना ही जानना चाहता हूं कि जब से यह कानून बना है इस नें कितने उल्लंघन करने वालों को अपनी चपेट में लिया है। ठीक है, अगर किसी को भी सजा नहीं हुई है तो सीधा सीधा मतलब यही हुया ना कि अभी तक किसी भी बंदे ने इस कानून का उल्लंघन नहीं किया है। वाह..भई ...वाह....यह जान कर तो बहुत ही खुशी होगी।

इतने सारे कानूनों की जानकारी के बाद सार्वजनिक स्थल/जगह की परिभाषा दी गई थी....सात-आठ वाक्यों की इस परिभाषा को सुना कर मैं आप को उलझाना नहीं चाहता हूं।
तो, आगे चलते हैं....यह उस अखबार में दिखे इश्तिहार का आखिरी पैराग्राफ है जिस का शीर्षक है....कहां पर व्यक्ति धूम्रपान कर सकता है ?.......सात-आठ पंक्तियां इस के बारे में भी लिखी गई हैं...और सब से आखिरी पंक्ति में लिखा गया है....मगर खुले क्षेत्र में सिगरेट का टुकड़ा फेंकना या तंबाकू थूकना अपराध है।
( आप भी मेरी तरह इसी सोच में पड़ गये कि अगर सिगरेट के टुकड़े फेंकना और तंबाकू थूकना अपराध है तो हर शहर में हज़ारों जेलें चाहियें जहां पर इन अपराधियों को कैदे-बा-मुशक्कत की सजा दे कर बंद किया जा सका। अगर वे भी कम पड़ जायें तो इस अपराध के लिये हाउस-अरैस्ट की व्यवस्था शुरू कर दी जाये.....)।

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस पर एक बहुत अजीब सी बात और भी दिखी ....एक इंश्योरैंस कंपनी का इन्वैस्टमैंट फार्म भर रहा था तो नीचे एक क्लाज़ पर नज़र अटक गई.......
मैं घोषणा करता हूं कि मैंने पिछले 12 महीनों में तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन नहीं किया है.....( धूम्रपान, तंबाकू चबाना आदि के रूप में) ...और भविष्य में भी तंबाकू का इस्तेमाल करने की कोई चाह नहीं रखता हूं। मैं जानता हूं कि अगर मेरी यह तंबाकू वाली घोषणा गलत निकलती है तो मेरा कंपनी के साथ किया गया करार निरस्त हो जायेगा और मेरा इंश्योरेंस कवर खत्म कर दिया जायेगा ”

अच्छा चलिये पोस्ट समाप्त करने से पहले एक विज्ञापन की याद दिलाता हूं....आप को याद है सर्फ वगैरा की किसी एड में दो छोटे छोटे प्यारे से बच्चे दिखते हैं.....जो कीचड़ से अपने कपड़े खराब करते हुये खूब मस्ती करते हैं और बाद में हंसते हुये कहते हैं.........दाग अच्छे हैं!!
तो , उसी तर्ज़ पर मुझे भी तंबाकू के लिये विभिन्न कानूनों को याद करते हुये एक ही बात कहने की इच्छा हो रही है ......कानून अच्छे हैं, लेकिन..................??