रविवार, 4 अगस्त 2024

लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल का जादू ....लाइव कंसर्ट इन मुंबई

प्रवीण चोपड़ा

पंद्रह दिन पहले लक्ष्मीकांत प्यारे लाल का एक लाइव म्यूज़िक कंसर्ट था ....षणमुखानंद हाल मुबंई में…। उस प्रोग्राम में जाने की बहुत तमन्ना थी …सिर्फ़ फिल्मी गाने सुनने के लिए ही नहीं, वह तो हम एल पी का संगीत पिछले साठ सालों से निरंतर सुनते रहते हैं….वहां जाने की हसरत इसलिए ज़्यादा थी क्योंकि प्यारे लाल जी के दर्शन करने का एक मौका था…पास से …दूर से …कुछ भी …

बचपन से जब भी फिल्में देखते ….उन के पोस्टर अमृतसर के चौकों और गेटों - हाथी गेट, हाल गेट पर लगे देखते तो अधिकतर पोस्टरों पर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल का नाम और साथ में ईस्टमैनकलर भी लिखा दिख जाता….लेकिन उस उम्र में आम खाने से मतलब होता है, गुठलियां कौन गिनता है ….बस, हम इन पोस्टरों को देख कर उस फिल्म को देखने के मंसूबे बनाने लगते ….. देखेंगे …अगर आते इतवार को टिकट मिल गई तो ….और अगर वहां जा कर टिकटें ब्लैक में बिक रही होतीं तो मन ममोस कर लौट आते, क्या करते…..छीना झपटी थोडे न करते…..और यह भी इत्मीनान होता कि अगले कईं हफ्तों तक तो फिल्म यही रहने वाली है, बाद में कभी देख लेंगे जब ब्लैकिए अपनी कमाई कर चुके होंगे …और हकीकत में ऐसा ही होता था ..कुछ हफ्तों के बाद जब आते फिल्म शुरु होने से पहले लगभग आधा एक घटा पहले, लाइन में इत्मीनान से खड़े हो जाते तो पांच रूपए वाली नीचे हाल की टिकट मिल ही जाती …अगर वह कहता कि अब तो बॉलकनी की बची है तो अगर उस वक्त इतने पैसे होते या हिम्मत पड़ती कि चलो, बॉलकनी की ही ले लेते हैं तो भी खऱीद ही लेते ….


इस बात से याद आई कि बचपन हो या जवानी ऐसा कभी नहीं होने दिया कि फिल्म देखने हाल में गए हों और पांच मिनट की भी देर हो गई हो …ऐसा मैंने अपने ब्लॉग में कईं बार लिखा है पहले भी ….क्या है न अगर हाल में पहुंचने पर अंदर लाइफ-ब्वाय का विज्ञापन ही चल रहा होता तो भी खामखां एक टेंशन सी हो जाती कि कुछ तो मिस हो गया…हमें सभी तरह के इश्तिहार देख कर भी मज़ा आता है उन दिनों …हा हा हा हा हा हा ….



लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल म्यूज़िक कंसर्ट के बारे में लिखने में देरी हो गई….क्योंकि यह काम मुझे देर रात या सुबह सुबह या फिर इतवार के दिन ही करने को मिलता है ….बाकी, पिछले कुछ दिनों में वक्त ही नहीं मिला ….



प्रोग्राम की शुरुआत हुई इस खूबसूरत गीत से ...सत्यम् शिवम् सुन्दरम् 



बाली उम्र को सलाम ....कालेज के दिनों जितना ध्यान इस गीत की तरफ दिया, अगर अच्छे से फिजिक्स कैमिस्ट्री पढ़ लेता तो कुछ का कुछ हो चुका होता....लेकिन इस में जो यह जो कहा गया कि इस लिखावट की ज़ेरोज़बर को सलाम....इस की समझ मुझे कुछ साल पहले आई जब मैंने उर्दू पढ़ी...

वक्त ….हां, उस दिन भी हम पहुंच तो गए वक्त से पहले ही हाल में …लेकिन फिर लगा कि अभी तो शुरु होने में वक्त है, चलते हैं, हाल के सामने एक खाने की जगह - मद्रास टाकीज़- में कुछ खा पी लिया जाए….यह बहुत बढ़िया जगह का दक्षिण भारतीय व्यंजनों के लिए और चाय-काफी के लिए भी …साफ सुथरी एकदम। बस, वहां इडली सांभर के साथ काफी की चुस्की लेने में वक्त थोड़ा ज्यादा लग गया…

हसता हुआ नूरानी चेहरा

हाल में जब अंदर आए, अपनी सीट पर बैठे तो यह गीत शुरु होने वाला था ….सत्यम शिवम् सुंदरम….और देखा कि प्यारे लाल जी स्टेज पर विद्यमान हैं….ओ हो …यह मलाल रहा कि प्यारे लाल जी को स्टेज पर डैशिंग एंट्री करते तो देखा नहीं ….कालेज में फ़िज़िक्स-कैमिस्ट्री के एकदम खुश्क से लैक्चर देने के लिए लेक्चरार जितना देर से आते उतनी ही खुशी होती कि चलो, इतना तो वक्त कट गया ….हंसी मज़ाक में ….लेकिन यहां खुद की दो मिनट की देरी से भी दुःख हुआ। 


हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने....


मैंने ऊपर लिखा न कि इस तरह के प्रोग्राम में जाने का ज्यादा लालच उन महान हस्तियों के दर्शन करना होता है, उन को निहारना होता है ….और उस दिन भी यही हुआ….मुझे लगा कि मैं ही नहीं, मेरे जैसे बहुतेरे लोग प्यारे लाल को निहारने ही में लगे हुए थे ….उन का बच्चों जैसा सरलपन, उत्साह, उल्लास देखते ही बन रहा है, बस, उसे ही देखना था हमें तो ….उन के संगीत का जादू भी ऐसा कि हमारी उम्र के बराबर का वक्त बीत गया ….60 साल हो चुके हैं उन को मैदान में उतरे हुए…लेकिन अभी भी उन का जादू बरकरार है ….


छुप गए तारे नज़ारे ....ओए क्या बात हो गई....

प्यारे लाल जी बार बार स्वर्गीय लक्ष्मीकांत जी को याद कर रहे थे ,,,,उन की एक तस्वीर भी स्टेज पर विद्यमान थी….भावुक हो रहे थे प्यारे लाल जी उन का याद करते करते…


इस तरह के महान संगीत के साधकों के ऐसे प्रोग्राम इसलिए भी शानदार होते हैं क्योंकि इन में जो 30 के करीब गीत पेश किए जाते हैं …उन का चुनाव इन्होंने अपने हज़ारों गीतों में से किया होता है ….उन गीतों की लोकप्रियता को देखते हुए ….जो गीत हमेशा के लिए अमर हो चुके हों जैसे ….बहुत मुश्किल होता है इस तरह का सलेक्शन…क्योंकि इस संगीतकार जोड़ी के तो हज़ारों गीतों का पूरे का पूरा भंडार ही गजब का है ….। इस प्रोग्राम के दौरान उन के गीतों से जुड़ी कुछ कहानिायं, किस्से भी सुनने को मिले…..


हम को तुम से हो गया है प्यार क्या करे.....इस गीत में तीनों हीरोईऩ की आवाज़ लता मंगेशकर की थी ..


मॉय नेम इज़ एंथोनी गोनसाल्वज़ ….वाले गीत में यह जो नाम है …एंथोनी गोनसालव्ज़ दरअसल प्यारे लाल जी के गोवा से एक वॉयलिन गुरु थे ..उन्होंने उस का नाम ही गाने में दर्ज करवा दिया … 



प्यारे लाल जी अपनी धर्मपत्नी के साथ पधारे थे ...

प्रोग्राम के दौरान मैंने कुछ व्हीडियो बनाए जिन्हें मैंने यू-ट्यूब पर अपलोड किया …..ज़ाहिर सी बात है इस की कोई इतनी जरूरत थी नहीं क्योंकि वैसे ही इन के गीत तो हमें रटे हुए हैं….और हम दिन भर यहां वहां सुनते रहते हैं, देखते रहते हैं….लेकिन व्हीडियो इस लिए बनाए ताकि इन का उत्साह आप तक पहुंचाया जा सके, संगीत में इन की सक्रियता आप तक पहुंच सके….इन्होंने इंटर्वल से पहले सारा सैशन खड़े हो कर म्यूज़िक कंडक्ट किया …. और बाद में भी …प्रोग्राम के आखिर तक यह सिलसिला चलता रहा। वही बात है अगर हम जो काम कर रहे हैं, उस को एंज्वाय कर रहे हैं तो वह काम तो काम नहीं न लगता, वह एक खेल बन जाता …..और उन की मूवमैंट्स देख कर, उन की भाव-भंगिमाएं देख कर बिल्कुल वैसा ही लग रहा था….सिद्धी प्राप्त की होती है संगीत के ऐसे महान् साधकों ने ….


इक प्यार का नगमा है ...मौजो की रवानी है ...यह गीत प्यारे लाल जी की श्रीमती जी का और उन के घर में 40 बरसों के साथी मिट्ठू तोते का भी है .....बताया गया कि जब भी कोई यह गीत गाता है तो मिट्ठू मियां एक दम खुश हो जाते हैं ...


जब से यह यू-ट्यूब आया है ….कभी कभी कोई व्हीडियो इन के पुराने लाइव प्रोगामों की दिख जाती है जहां पर ये दोनों प्रोग्राम कंडक्ट कर रहे है, और प्यारे लाल जी वॉयलिन बजाते देखे जा सकते हैं….धुंधली सी याद है मुझे जैसे दूरदर्शन के ज़माने में भी किसी खास प्रोग्राम में कलाकारों के इस तरह के लाइव शो प्रसारित किए जाते थे ….क्या आप के पास कोई ऐसी याद है तो लिखिएगा कमैंट में नीचे….बात पूरी हो जाएगी…


प्रोग्राम की समाप्ति की तरफ बढ़ते हुए जब यह गीत पेश किया गया तो जैसे साईंबाबा के मंदिर जैसा माहौल बन गया....सभी लोग भाव-विभोर हो गए....ऐसा है इस गीत का जादू और लक्ष्मी-प्यारे के संगीत का जादू - मैंने भी यह फिल्म 1977 में चेंबूर के बसंत सिनेमा हाल में जुलाई में देखी थी ...जैसा कि उस दौर में होता था ...कम से कम अगले सात दिन तक मनमोहन देसाई के इस शाहकार के इस जादू का नशा छाया रहा था ....अभी भी कौन सा उतर गया है 😂

जैसा कि मैं अकसर इस तरह के कंसर्ट में करता हूं मैंने हर गीत के पहली लाइन गूगल-कीप पर लिख कर एक फेहरिस्त बना ली…..उन में से जो गीत रिकार्ड किए उन को आप के साथ शेयर कर रहा हूं….सब से सब सुपर हिट गीत हैं ….और इस जोड़ी के दो एक गीत यू-ट्यूब से लेकर भी यहां एम्बेड करूंगा….जो मेरे दिल के बहुत करीब हैं….वैसे तो सभी ही हैं ..लेकिन फिर भी ये दोनों गीत बार बार सुनना अच्छा लगता है ….




मेरे लिए यह दिन एक अविस्मरणीय दिन था.....मैंने सोचा कम से कम प्यारे लाल जी के साथ एक फ्रेम में ही फिट हो जाऊं...

यादों की पिटारी में सहेजने के लिए यह कार्ड ...