मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

रहें न रहें हम ...महका करेंगे ...

हम लोग चिट्ठी-पत्री वाले उस पुराने ज़माने से हैं जब हमारे अपने सगे-संबंधी या हम लोग खुद कोई हिंदी फिल्म देखते थे तो उस का नशा कुछ दिन तक ऐसा छाया रहता था कि चिट्ठी लिखते वक्त यह भी लिखा जाता था कि मैंने कर्मयोगी फिल्म देखी है, ऐसे ही उधर से जवाब में आता था कि हमने घरौंदा देखी है और उस के फलां फलां बहुत बढ़िया हैं…..


अब इतना जूना-पुराना बंदा अगर किसी म्यूज़िक कंसर्ट में हो कर आए और ब्लॉगिंग के इस दौर में उसे अपने लोगों के साथ शेयर न करे तो यह तो बड़ी नाइंसाफी सी हुई, एक दम शेल्फिश फील आने लगे….इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि जहां भी हो कर आऊं, उस का थोड़ा बहुत नज़ारा तो अपनी डॉयरी में लिख ही दूं….



जी हां, 28 सितंबर को मुंबई के गोरेगांव स्थित नेस्को सेंटर में लता जी के 95 वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में एक संगीत संध्या का प्रोग्राम था. शाम साढ़े छः बजे से रात दस बजे तक का समय दिया गया था, लेकिन मुझे यही लग रहा था कि प्रोग्राम शुरू होने और रंग जमने में सात तो बज ही जाते हैं …


लेकिन रोड से जाना अब मुंबई में अजीब सा ही अनुभव है, इतनी भीड़, जगह जगह ट्रैफिक जॉम….यह सब मेरे वश की बात नहीं है…उस दिन भी शाम पौने छः बजे के करीब टैक्सी बांद्रा से लेकर चल तो पड़ा और यही लगा कि पहुंचने में ज़्यादा से ज़्यादा एक घंटा लग जाएगा…लेकिन वहां पहुंचते पहुंचते पौने आठ बज गए…बस, मुंबई में आजकल ट्रैफिक ऐसा ही है …इसीलिए मेरे जैसे लोग अकसर लोकल ट्रेन में सफर करना ही पसंद करते हैं…. बैठने की जगह मिले न मिले…खड़े खड़े हवा के झोंके तो मिलते हैं….


हां, उस दिन मैंने जो नेस्को सेंटर में नज़ारा देखा, वैसा म्यूज़िकल कंसर्ट मैंने इस से पहले शायद ही कहीं देखा हो….बहुत अच्छी ...व्यवस्था, कोई धक्का-मुक्की नहीं, प्रसाधन की सुविधाएं, खाने-पीने के स्टॉल….और हाल में भी पेय पदार्थ बेचने वाले बीच बीच में आ जा रहे थे…उस से बचपन में रामलीला के दिन याद आ रहे थे ….खुले आकाश के नीचे बैठ कर रामलीला का अंतिम दृश्य देखने तक मजाल था कि हम हिल जाते …रामलीला के दौरान गंडेरियां (गन्ने के छोटे छोटे टुकड़े) चूसते, मूंगफली खाते रहते थे …


चलिए आगे चलते हैं, यहां तो भूमिका ही खत्म होने का नाम नहीं ले रही ….










जैसे ही हाल के अंदर गए, वैसे तो बाहर ही से पता चल गया कि सुरेश वाडेकर अपने फ़न से जनता को लुत्फ़-अंदोज़ कर रहे हैं ….और गाना वही मेरा फेवरेट….मेघा रे मेघा रे …मत परदेस जा रे ….। अकसर यह गीत मैं ट्रेवल करते वक्त सुनता रहता हूं …जब भी यह फिल्म प्यासा सावन का गीत याद आता है…खास कर बारिश के दिनों में ….सुरेश वाडेकर को हम पहले भी कईं प्रोग्रामों के दौरान सुन चुके हैं…जैसे समय बंध जाता है जब उन की बुलंद आवाज़ से लोग मंत्र-मुग्ध से हुए उन को ताकते रहते हैं….सुरेश वाडेकर ने मराठी गीत भी गाए…जिन को लोगों ने बहुत पसंद किया….और वह खालिस मराठी में बोल रहे थे….हम ने तो उन की फिल्मों की कैसेटें खरीद खरीद कर उन का इतना सुना की टेपरिकार्डर का हैड घिस जाता था…बार बार ….प्रेमरोग के गीत अभी भी एवरग्रीन हैं…




शब्बीर कुमार आए उस के बाद …उन्होंने आते ही लता दीदी के बारे में एक बात शेयर की ..कोविड के दौरान उन्होंने लता जी की एक तस्वीर बनाई. वह उन को देने गए मुंबई के पैडर रोड (जसलोक हास्पीटल के सामने) स्थित उन के निवास स्थान पर। लेकिन वॉचमैन ने रोक दिया। शब्बीर कुमार ने कहा कि आप लता जी से बात करवाइए, वॉचमैन ने करवाई तो शब्बीर ने दीदी को कहा कि मैंने पैंसिल से आप की एक तस्वीर बनाई है जो मैं आप को भेंट करना चाहता हूं। लता जी ने कहा कि कोविड की वजह से किसी से मिलती नहीं हूं। खैर, उन्होंने कहा कि आप उस तस्वीर को वॉचमैन को दे दीजिेए, मैं उन से ले लूंगी। शब्बीर ने बताया कि उसने सोचा कि तस्वीर तो लता जी को दूंगा …आज नहीं तो फिर कभी। इसलिए वह तस्वीर वह वापिस ले आया….और कह रहा था कि उस के बाद मौका ही नहीं मिला…आज तक मलाल है कि मैं वो तस्वीर लता जी तक पहुंचा नहीं पाया….इसलिेए उस तस्वीर को वह लेकर आया था, भेंट-स्वरूप। 


शब्बीर ने अपने सुपर डुपर गीत गाए…जब हम जवां होंगे, तुम से मिल कर …कुछ याद आता है, ज़िहाले-मस्किन …सुनाई देती है जो दिल की धड़कन, प्यार किया नहीं जाता हो जाता है ….उन की बुलंद आवाज़ में गाए गीत बहुत पसंद किये जाते हैं….शायद वह भी उन का ही गीत है …मेरा फेवरेट ….ज़िंदगी हर कदम इक नई जंग है….


अनन्या वाडेकर सुरेश वाडेकर की सुपुत्री ने भी गीत गाया ..घर आया मेरा परदेसी …खूब तालियां बजीं। वह भी बहुत अच्छी गायिका है, कल मैंने पहली बार उस का गीत सुना…. उस के बाद ये गीत भी पेश किए गए….आ जाने जां…ओ ज़ालिम आ जा ना…और जिया जले जां जले…रात भर धुआं …..


अब स्टेज पर आए शैलेंद्र सिंह …जी हां, वही मै शायर तो नहीं, मगर ए हसीं जब से देखा तुमको, मुझको शायरी आ गई।…क्या गीत है…स्कूल के दिनों से सुनते आ रहे है…उन्होंने बॉबी फिल्म का ही वह गीत …हम तुम इक कमरे में बंद हों….और झूठ बोले कौवा काटे अपनी मधुर आवाज़ में पेश किया ..एक फिमेल सिंगर के साथ ….तालियों की बरसात होने ही थी।



नितिश मुकेश आए …और उन्होंने लता दीदी के बारे में अपनी यादें साझा कीं…जब 1976 में उस के पिता जी चल बसे तो दीदी ने पूरा सहारा दिया। बता रहे थे कि शायद उन्होंने दीदी के साथ सब से ज़्यादा शो किए हैं। उन्होंने गीत भी गाया…तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूं….और उस के बाद वह गीत जिसने उन को कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचा दिया….ज़िंदगी की न टूटे लड़ी …..



उस के बाद फिर अनन्या वाडेकर ने कुछ गीत गाए …लोगों ने बहुत पसंद किए….नैनों में कजरा छाए, तेरे लिए हम हैं जिए…, हम को मिली हैं आज घडियां नसीब से …दिल ढूंढता है फुर्सत के रात दिन…जाड़ों की गर्म धूप और आंंगने में लेट कर …


उस के बाद लता जी के सुपर डुपर गीत (अजीब लग रहा है यह लिखना भी, उन का तो कौन सा गीत सुपर-डुपर नहीं था)....पेश किए गये…..आएगा आने वाला, साजन की गलियां छोड़ चले, तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है, कुछ दिल ने कहा ….कुछ दिल ने सुना…यह मुलाकात इक बहाना है, तुम्हें देखती हूं तो लगता है ऐसे ….


और फिर लता जी के गीतों की एक मेडली …दिल तो दिल है ..दिल का एतबार क्या कीजे, जा रे उड़ जा रे पंछी, दिल हूम हूम करे, मेघा छाए आधी रात …, चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था …(पाकीज़ा), सुन साहिबा सुन…..


वहां बैठा बैठा मैं यह भी सोच रहा था कि क्या इतनी पब्लिक सिर्फ़ गीत ही सुनने आती है …..हां, वह तो है ही ..साथ ही वह उन सब फ़नकारों के दीदार करने भी आती है जिन्होंने यह जादू किया…..मैं भी इतने म्यूज़िक कंसर्ट देख चुका हूं कि अब कभी कभी बोरियत सी होने लगती है ….लेकिन जिस कलाकार को अभी देखा नहीं या सुना नहीं होता, वहां ज़रूर जाता हूं। नितिन मुकेश को अमीन सयानी की मैय्यत पर देखा था….आज पहली बार उन को सुनने का मौका मिला….


और हां बीच बीच में मराठी गीत भी पेश किए गए..जिन को भी लोगों ने बहुत ज़्यादा पसंद किया….मैं भी समझ नहीं पा रहा था लेकिन आस पास बैठे बड़ी उम्र के लोगों की खुशियां देख कर, उन का उत्साह देख कर मैं भी खुश हो रहा था …भाषा कोई बैरियर थोडे़ ही न है, यह तो जोड़ती है…


उषा मंगेश्कर का जब आगमन हुआ स्टेज पर तो उन का तालियों से स्वागत हुआ ….आप को वह हैलेन पर फिल्माया गीत …मुंगडा…मुंगड़ा …मुंगड़ा ….यह उन्हीं का गाया हुआ ..सुपर…सुपर..सुपर…डुपर डुपर

हिट गीत है





प्रोग्राम के बाद लता जी के 95 वें जन्म दिन के उपलक्ष्य में केक काटा गया….इस साल मो रफी की 100वीं बरसी है, और मुकेश की 101वीं, और उषा मंगेश्कर 90 बरस की हो रही हैं…सब ने एक साथ मिल कर इन सब के लिए केक काटा….वह नज़ारा देखने वाला था जब ऐसे गायक एक फ्रेम में थे…मोहम्मद रफी के साहिबज़ादे शफी मोहम्मद भी पधारे हुए थे ..इस तस्वीर में दिख रहे हैं ....









इस प्रोग्राम में जाना एक बहुत अच्छा अनुभव था…इतना विशाल जनसमूह और इतना बड़ा हाल ….अगर मैं सच में कहूं तो इस तरह के प्रोग्राम को पंजाब की भाषा में अखाड़ा लगाना कहते हैं….पंजाब में इस तरह के अखाड़े लगाने की रीत है …बडे़ बड़े गायकों के गांव-कसबों में अखाड़े लगते हैं…मोहम्मद सदीक-रंजीत कौर, जसविंदर बराड़, गुरदास मान, चमकीला तो आपने देख ही ली होगी ज़रूर …किस किस का नाम लिखूं …किस का न लिखूं….बस, अखाड़े पंजाब के सभ्याचार की जान लगते हैं….बस, फर्क इतना है कि वहां पर कोई टिकट नहीं होती…न कोई व्ही आई पी...न कोई वीवी आई पी...सब एक साथ बैठो, खुशियां मनाओं....





ये खुले मैदानों में लगते हैं, ऊपर आसमां की नीली छत के नीचे, जिसे जहां भी जगह मिलती है, चुपचाप बैठ कर प्रोग्राम का आनंद लेता है …इन अखाड़ों की कैसेटें बाज़ार में बिका करती थीं, मैं इन कैसेटों के पीछे शैदाई था…बहुत सी कलेक्शन थी मेरे पास …और मैं होस्टल में अकसर इन को तेज़ आवाज़ में सुनना पसंद करता था….मेरे होस्टल के साथी मुझे कईं बार टिच्चर भी करते थे कि डाक्टर साहब नूं अखाड़े सुनने बहुत पसंद ने ….मैं उन को उस वक्त क्या बताता, सुनना ही नहीं, मुझे तो इस तरह के गीत गाने भी बहुत पसंद हैं….यह मेरी विश-लिस्ट की एक आइटम है…इन अखाड़ों में पंजाबी लोकगीत गाना ……


चलो जी हुन जांदे जांदे तुहानूं पंजाब की रुह ऐन्नां अखाड़ेयां दा इक ट्रेलर विखा के रूबरू करवाईए....सुनो ते आनंद मानो....