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सोमवार, 25 जुलाई 2011

नसबंदी कॉलोनी में ही बच्चों की भरमार की कैसे घपलेबाजी!

अभी अभी अखबार खोली तो देख कर पता चला कि दिल्ली के पास ही लोनी नामक जगह में एक नसबंदी कॉलोनी है जिस में बच्चों का तांता लगा हुआ है। बात पचती नहीं है ना, लेकिन हुआ यूं कि 1986 में डिस्ट्रिक्ट कलैक्टर ने एक स्कीम चलाई कि नसबंदी करवाओ और 50गज का एक घर पाओ। इसी दौर में 5000 लोगों ने नसबंदी तो करवा ली।

रिज़्लट तो इस नसबंदी का यह होना चाहिए था कि वह नसबंदी कॉलोनी का एरिया एक बिल्कुल शांत सा एरिया बन जाना चाहिए था .... लेकिन इस के विपरीत वहां तो कहते हैं बच्चों का तांता लगा रहता है... नंगे-धड़ंगे बच्चे कॉलोनी की गंदगी में खेलते कूदते जैसे कि इस स्कीम शुरु करने वालों को मुंह चिड़ा रहे हों।

कहते हैं कि जिन लोगों को यह घर मिले नसबंदी करवाने के बाद ...उन में से तो कुछ तो इन को बेच कर पतली गली से निकल गये...लेकिन जो अधिकांश लोग इस मुस्लिम बहुल कॉलोनी में हैं, उन में से अधिकतर ने इस स्कीम के तहत् अपनी बीवी की नसबंदी करवा दी और स्वयं फिर से शादी कर ली ...और एक बार फिर से यह सिलसिला चल निकला।

नसबंदी कॉलोनी ---नाम ही में कुछ गड़बड़ सी लगती है ... ऐसे नाम नहीं रखने चाहिए... किसी को कोई अपना पता क्या बताए ? – हो न हो, ऐसी कॉलोनी में रहना ही एक उपहास का कारण बन सकता है। नसबंदी कॉलोनी और एमरजैंसी के दौरान नसंबदी कार्यक्रम के दौरान नसबंदी के किस्से सुनते सुनते एक और किस्से का ध्यान आ गया .... हमारा एक सहकर्मी बता रहा था कि उसे दस नसबंदी करवाने को लक्ष्य दिया गया ... यानि कि उस ने दस लोगों (पुरूष अथवा महिला) को नसबंदी के लिये प्रेरित करना था एक वर्ष में --- कह रहा था कि वह यह टारगेट पूरा नहीं कर पाया और उस के बॉस ने उस की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में यह दर्ज कर दिया कि यह परिवार कल्याण कार्य में रूचि ही नहीं लेता.... उस चिकित्सक को जब रिपोर्ट मिली तो उस ने प्रशासन को इस के विरूद्ध अपील की और निर्णय उस के हक में हो गया और बता रहा था कि बॉस की वह टिप्पणी उस की ए.सी.आर से हटा दी गई।

हैरानगी यह है कि मैं दिल्ली को अच्छी तरह से जानता हूं ... आज से बीस साल पहले बसों में भी खूब घूमा हूं लेकिन किसी बस पर यह लिखा नहीं पड़ा ... नसबंदी कॉलोनी..........चलो, जो भी है, लेकिन इस कालोनी में दुनिया के आगे कम से कम एक उदाहरण तो पेश की किस तरह के परिवार नियोजन कार्यक्रम फेल हो जाते है।
Source : 'Vasectomy Colony' faces population explosion (Times of India, July25' 2011)

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

नसबंदी करवाओ, नैनो पाओ....

आज की टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर देख कर – Get Sterilised in Raj, drive home a Nano- ( पता नहीं यह खबर टाइम्स आफ इंडिया की साइट से कैसे गायब हो गई है, मेरे सामने प्रिंट एडिशन में तो यह बरकरार है....thank God, otherwise my credibility would have been at stake!!) एक बार तो लगा कि यार, यह क्या हो रहा है, जो मामला दो-चार-पांच सौ रूपये के इनाम से सुलट जाया करता था उस के लिये अब नैनो कार देने की नौबत आ गई... यही लगा कि अगर इस तरह से नैनो बांटी जाने लगेंगी तो खजाने खाली हो जाएंगे। लेकिन हमेशा की तरह खबर के शीर्षक की वजह से मैं एक बार फिर से बेवकूफ़ बन गया।

खबर पढ़ी तो माजरा समझ में आया कि यह तो भाई कूपन वूपन वाला मामला है। जैसे आयकर से छूट के लिये हम लोग राष्ट्रीय बचत पत्र खरीदते थे – उस के साथ इस तरह की गाड़ियों आदि के कूपन मिलते थे --- बहुत वर्षों बाद एक ऐसी ही लाटरी में अपनी भी एक चादर निकल गई थी। हां, तो नसबंदी वाली बात पर लौटते हैं ....खबर तफ़सील से पढ़ने पर पता चला कि जो लोग 1जुलाई से 30 सितंबर 2011 तक नसबंदी करवाएंगे, उन्हें एक कूपन दिया जाएगा। और बाद में इनामों के लिये लाटरी निकाली जाएगी ... और इनामों की लिस्ट यह है ...
  • एक नैनो कार
  • पांच मोटरसाइकिल
  • 21इंच के पांच कलर टीवी
  • सात मिक्सर ग्राईंडर
हां, खबर तो सुबह पढ़ी ही थी ...लेकिन आज शाम को जैसे ही बीबीसी की साइट पर आया तो वहां पर भी यही हैड-लाइन देख कर हैरान रह गया India- Rajasthan in 'Cars for sterilisation' drive - यही सोच रहा हूं कि हिंदोस्तान भी किन किन कारणों से अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहा है।
इस के बारे में आप की क्या राय है?
PS... समझ नहीं पा रहा कि टाइम्स की साइट से इसे क्यों हटा दिया गया है जब कि हैडलाइन्स कायम है।