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शनिवार, 22 मई 2010

हार्ट-अटैक के बाद संभोग से इतना खौफ़ज़दा क्यों ?

हार्ट-अटैक के इलाज के बाद जब मरीज़ को हस्पताल से छुट्टी मिलती है तो डाक्टर लोग उससे उस की सैक्स लाइफ के बारे में कुछ भी चर्चा नहीं करते। ना तो मरीज़ ही खुल कर इस तरह की बात पूछने की "हिम्मत" ही जुटा पाते हैं... और इसी चक्कर में होता यह है कि हार्ट-अटैक से बचने पर लोग सैक्स से यह सोच कर दूर भागना शुरू कर देते हैं कि संभोग करना उन के लिये जानलेवा सिद्ध हो सकता है।

अब आप बीबीसी आनलाइन पर प्रकाशित इस रिपोर्ट --- Heart attack survivors 'fear sex' ---को देखेंगे तो आप भी यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि अगर अमेरिका जैसे देश में जहां इस तरह के मुद्दों पर बात करने में इतना खुलापन है ---अगर वहां यह समस्या है तो अपने यहां यह समस्या का कितना विकराल रूप होगा।

इस तरह का अध्ययन अमेरिका में 1700 लोगों पर किया गया --और फिर इन वैज्ञानिकों नें अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की एक मीटिंग में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुये साफ शब्दों में यह कहा है कि हार्ट-अटैक से ठीक हो चुके जिन मरीज़ों के डाक्टर उन के साथ उन की सैक्स लाइफ के बारे में बात नहीं करते, वही लोग हैं जो सैक्स के नाम से भागने लगते हैं।

और देखिये विशेषज्ञों ने कितना देसी फार्मूला बता दिया है कि वे लोग जिन्हें कुछ समय पहले हार्ट अटैक हुआ है और वे अब ठीक महसूस कर रहे हैं तो अगर वे कुछ सीढियां आसानी से चढ़ लेते हैं तो वे पूर्ण आत्मविश्वास के साथ संभोग करना भी शुरू कर सकते हैं।

और यह जो फार्मूला बताया गया है यह बहुत ही सटीक है। यह नहीं कि कोई ऐसा मरीज़ अपने डाक्टर से पूछ बैठे कि वह कितने समय तक सैक्सुयली सक्रिय हो सकता है तो एक डाक्टर कहे दो महीने बाद, कोई कहे छः महीने बाद ---और कोई मरीज़ को आंखे फाड़ फाड़ कर देखते हुये उसे यह आभास करवा दे कि कहीं उस ने ऐसा प्रश्न पूछ कर कोई गुनाह तो नहीं कर दिया------तो सब से बढ़िया जवाब या सुझाव जो आप भी अपने किसी मित्र को देने में ज़रा भी हिचक महसूस नहीं करेंगे ---- अगर सीढ़ियां ठीक ठाक बिना किसी दिक्कत के चढ़ लेते हो तो फिर समझ लो तुम अपने वैवाहिक जीवन को भी खुशी खुशी निबाह पाने में सक्षम है --------और वैसे भी हिंदोस्तानी को तो बस इशारा ही काफी है।

लेकिन कहीं आप यह तो नहीं समझ रहे कि यह मार्गदर्शन केवल पुरूषों के लिये ही है ---ऐसा नहीं है, महिलाओं के लिये भी यही सलाह है। इस बात का ध्यान रखे कि महिलायें भी हार्ट अटैक जैसे आघात से उभरने के बाद तभी सैक्सुयली सक्रिय हो पाने में सक्षम होती हैं जब वे सीढ़ियां आराम से चढ़ना शुरू कर देती हैं। और इस अवस्था तक पहुंचने में हर बंदे को अलग अलग समय लग सकता है।

मुझे इस रिपोर्ट द्वारा यह जान कर बहुत हैरानगी हुई कि वहां पर भी लोग इस तरह के अहम् मामले में बात करते वक्त इतने संकोची हैं और दूसरी बात यह महसूस हुई कि हमारे यहां तो फिर हालात एकदम फटेहाल होंगे ----शायद कुछ लोग एक बार हार्ट अटैक होने पर इसी तरह के डर से अपना आत्मविश्वास डगमगाने की वजह से लंबे समय तक संभोग से दूर ही भागते रहते होंगे। और बात केवल इतनी सी कि न तो उन के चिकित्सक ने उन से इस मुद्दे पर बात करना उचित समझा और दूसरी तरफ़ बेचारा मरीज --- हम हिंदोस्तानी लोग खुले में इस तरह की "गंदी बातें" कैसे पूछें, हम तो अच्छे बच्चे है.........अंदर ही अंदर कुढ़ते रहें, कुठित होते रहे लेकिन .......।

दरअसल जैसा कि इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि सैक्स भी मरीज़ों की ज़िंदगी का एक अहम् भाग है और इसलिये शायद वे यह अपेक्षा भी करते हैं कि डाक्टरों को इस के बारे में भी थोड़ी बात करनी चाहिये। क्या आप को नहीं लगता कि मरीज़ों का ऐसा सोचना एकदम दुरूस्त है।

इस तरह के कुछ मरीज़ों को यह भी डर लगता है कि संभोग में लगने वाली परिश्रम की वजह से कहीं से दूसरे हार्ट अटैक को आमंत्रित न कर बैठें, लेकिन ऐसा बहुत ही बहुत ही कम बार होता है ---आप यही समझें कि यह रिस्क न के ही बराबर है -----क्योंकि रिपोर्ट में शब्द लिखा गया है ---extremely unlikely. अब इस से ज़्यादा गारंटी क्या होगी ?

एक बात और भी है कि हार्ट के किसी रोगी में जैसे कोई भी शारिरिक परिश्रम कईं बार छाती में थोड़ा बहुत भारीपन ला सकता है वैसे ही अगर संभोग के दौरान भी अगर ऐसा महसूस हो तो वह व्यक्ति ऐसी किसी भी अवस्था के समाधान के लिये स्प्रे (यह "वो वाला स्प्रे" नहीं है..... जिस के कईं विज्ञापन रोजाना अखबारों में दिखते हैं) का या जुबान के नीचे रखी जाने वाली उपर्युक्त टेबलैट का इस्तेमाल कर सकता है, जिस से तुरंत राहत मिल जाती है।
और इस रिपोर्ट के अंत में लिखा है ---

"Caressing and being intimate is a good way to start resuming sexual relationships and increase your confidence." अब इस का अनुवाद मैं कैसे करूं, हैरान हूं ---मेरी हिंदी इतनी रिफाइन्ड है नहीं, अच्छी भली संभ्रांत भाषा को कहीं अश्लील न बना दूं -----इसलिये समझने वाले समझ लो।

मुद्दा बहुत गंभीर है--- लेकिन इसे हल्के-फुल्के ढंग से इसलिये पेश किया है ताकि बात सब के मन में बैठ जाये। आप इस पोस्ट में लिखी बातों के प्रचार-प्रसार के लिये या इस में चर्चित न्यूज़-रिपोर्ट के लिंक को बहुत से दूसरे लोगों पर पहुंचाने में क्या मेरा सहयोग कर सकते हैं ?

क्या आप को नहीं लगता कि कईं बार हम लोग कुछ ऐसा पढ़ लेते हैं, देख लेते हैं जिस को आगे शेयर करने से हम अनेकों लोगों की सुस्त पड़ी ज़िंदगी में बहार लाने के लिये अपनी तुच्छ भूमिका निभा सकते हैं ? मैं तो बड़ी शिद्दत से इस बात को महसूस करता हूं।

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

वाह ! क्या सच में यह मशीन सब कुछ भला चंगा कर देगी !!

कुछ दिन पहले सूचना मिली कि शहर में फलां-फलां जगह पर जर्मनी से एक मशीन ला कर स्थापित की गई है जो कि बहुत से रोगों से निजात दिला देगी। कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि जिस के यहां यह जर्मनी वाली मशीन स्थापित की गई है उस ने कुछ दिन के लिये फीस के लिये छूट दे रखी है—लोग रोज़ाना जा कर सिंकवाई करवाये जा रहे हैं।

दो चार दिन पहले रोहतक गया तो वहां पर भी इस जर्मनी वाली मशीन के इश्तिहार जगह जगह लगे हुये थे।
सोच रहा हूं कि क्या इस मशीन से सचमुच ही सब कुछ ठीक हो जायेगा---तो जवाब संतोषजनक मिलता नहीं। लगता है कि पब्लिक को बस उल्लू बनाया जा रहा है –अब रोज़ाना इस इलाज के हर मरीज़ से तीस रूपये लिये जा रहे हैं। इस से कुछ भी तो होने वाला नहीं है। आज मैं अपने एक मरीज़ को कह रहा था कि यार, इस तीस रूपये के तो यार तेरा परिवार फल खा सकता है --- वैसे आम आदमी की क्या कम सिंकाई हो रही है जो मशीन से भी यह काम करवाने की भी ज़रूरत आन पड़ी है, और यह काम तो घर पर भी किया जा सकता है। और जहां तक बड़ी उम्र के साथ और बढ़े हुये वजन की बदौलत घुटने चलते नहीं, जोड़ जाम हो गये हैं, चाल टेढ़ी हो गई है तो उस में यह कमबख्त मशीनें क्या कर लेंगी ----कुछ नहीं कर पायेंगी ---- केवल झूठी आस देती रहेंगी ----कब तक ? ----जब तक जनमानस रोज़ाना तीस रूपये इन जगहों पर जा कर पूजते रहेंगे !

अकसर यह भी सोचता हूं कि हम लोग बहुत ज़्यादा भटक चुके हैं ---इस के बहुत से कारण है। जिस तरह से आज कल टीवी पर हाई-फाई विशेषज्ञों द्वारा राशि फल सुनाया जाता है वह भी अच्छा खासा रोचक प्रोग्राम हो गया है ---- इस काम को भी प्रोड्यूसरों ने अच्छा खासा रोचक बना दिया है। इसे पेश करने वाले लोगों के हाव-भाव, उन के गले में मालाओं की वैरायिटी, डिज़ाइनर कपड़े और बेहद उतावलापन देखते बनता है।

कुछ प्रोग्रामों पर तो तरह तरह के तावीज़, यंत्र-तंत्र धारण करने की गुज़ारिश की जाती है और इन को पेश करने का ढंग भी इतना लुभावना होता है कि आदमी इन को पहनने के लिये मचल ही जाये क्योंकि इस के फायदे बताने वाली बहन जी की बातों में जादू ही कुछ इस किस्म का है कि क्या कहने !!

याद आ रहा है कि अपने पिता जी की अस्थि-विसर्जन के लिये जब हम लोग हरिद्वार गये तो वहां पर हम ने भी 1500 रूपये में एक रूद्राक्ष खरीद कर यही सोचा था कि यार, यह रूद्राक्ष हमें इतनी आसानी से आखिर मिल कैसे गया ---क्योंकि उस बेचने वाले की बातों में बात ही कुछ ऐसी थी कि यह रूद्राक्ष तो बस केवल एक ही बचा है। सरासर हम लोगों को बेवकूफ़ बनाया गया था।

दोस्तो, मैं भी जगह जगह इतनी बार धोखा खा चुका हूं ---- इतनी बार बेवकूफ़ बन चुका हूं कि अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन निकालने का केवल एक ही रास्ता ढूंढ निकाला है कि जनमानस को खूब सचेत किया जाये ----सुना है कि हर आदमी के लिये ऊपर वाले ने कोई न कोई काम बनाया हुआ है --- मेरे लिये तो मुझे लगता है कि जनमानस को जागरूक करना ही मेरे हिस्से आया है। और मुझे पूरा विश्वास है कि यह काम मैं आप सब के आशीर्वाद से अच्छे खासे ढंग से कर लेता हूं।

कईं बार रात को डेढ़-दो बजे आप टी वी लगा कर देखिये --- स्थानीय चैनलों पर प्रादेशिक भाषाओं में विदेशी महिलायें जो फर्राटेदार पंजाबी अथवा हिंदी( सब डब किया हुआ ) बोलती दिखती हैं, वह देश कर कोई भी हैरान हुये बिना रह ही नहीं सकता। वह इतनी तेज़ी तेज़ी से बोल रही होती हैं कि सुनने वाले को लगता है कि अगले कुछ ही घंटों में वह उसे उस की फालतू चर्बी से निजात दिलवा कर एकदम छरहरा कर देंगी ----सब अजीबो गरीब विज्ञापन इसी समय भी दिखते हैं ---किसी विज्ञापन में वक्ष सुडौल करने की रणनीति समझाई जाती है , कहीं पर पेट को बिल्कुल अंदर धंसाने के गुर सिखाये जा रहे होते हैं ---- और यह विज्ञापन इतने कामुक अंदाज़ में पेश किये जाते हैं कि लोग बार बार इन्हें देख कर भी थकते नहीं---- और लोहे को गर्म देख कर तुरंत मेम घोषणा करती है कि अगर तू भी इतना ही बलिष्ठ एवं सुडौल बनता चाहता है तो तुरंत फोन उठा के अपना सौदा बुक करवा ले, और दो हज़ार की छूट वाली स्कीम केवल पहले एक सौ फोन करने वाले दर्शकों के लिये ही है।

मन तो मुसद्दी का भी कर रहा है कि एक मशीन मंगवा कर विलायती कसरत कर ही ली जाये, लेकिन पास ही चटाई पर बेपरवाह घोड़े बेच कर सो रहे सारे परिवार जनों की अंदर धंसी हुई आंखें और गाल देख कर वह डर जाता है ---तुरंत बती बुझा कर वह भी सोने की कोशिश तो करने लगता है लेकिन उस विज्ञापन वाली मेम की मीठी-मीठी (लेकिन महंगी बातें) उसे ढंग से सोने ही नहीं देतीं।

सुबह अखबार वाले की साईकिल की घंटी सुन कर जैसे ही वह दरवाजे की तरफ लपकता है तो अखबार से पहले उस के हाथ में एक पैम्फलेट लगता है ---- जिस पर यह लिखा हुआ है ----

खानदानी ज्योतिषी – ज्योतिष रत्न बहुत सारे सम्मान पत्रों से सम्मानित –विश्वविख्यात ज्योतिषी से आप भी नौकरी, विदेश यात्रा, प्रेम विवाह, शिक्षा, शादी, प्रमोशन, निःसंतान, कोर्ट कचहरी, तलाक, मांगलिक, कालसर्प योग, पितृ-दोष, किया-कराया, शारीरिक कष्ट, वास्तु दोष, ग्रह कलेश आदि समस्त समस्याओं के विधि पूर्वक समाधान हेतु मिलें।
(सोचने से नहीं मिलने से कष्ट दूर होता है)
100 प्रतिशत समाधान की गारंटी निश्चित समय में।
इस इश्तिहार के नीचे तीन सूचनायें भी लिखी हुई हैं ---
तांत्रिक, मौलवी और बंगाली बाबाओं से विश्वास खो चुके व्यक्ति एक बार अवश्य मिलें। फीस श्रद्धानुसार।
जब कहीं न हो काम तो हमसे लें तुरंत समाधान।
नोट – किसी माता बहिन के सन्तान न होती हो या होकर खत्म हो जाती हो तो एक बार अवश्य मिलें।
विशेष प्रावधान – हमारी पूजा का असर तुरन्त होता है।

इस विज्ञापन से चकराये हुये सिर को डेढ़ प्याली कड़क चाय से दुरूस्त करने के बाद जैसे ही वह अपने चहेते पेपर का पन्ना पलटता है तो उसे सेहत से संबंधित विज्ञापनों में इतना अपनापन नज़र आता है कि वह राजनीति दंगल की किसी भी खबर को पढ़ने की बजाह वह वाला विज्ञापन बार बार पढ़ता है जिस में उसे यह आस दिखती है कि उस दवाई के इस्तेमाल से उस की ठिगनी ही रह गई प्यारी बिटिया का कद झट से बढ़ जायेगा, उसे वह विज्ञापन भी बहुत लुभाता है जिस में बताया गया है कि फलां फलां दवाई के इस्तेमाल से उस के स्कूल में पढ़ रहे बेटे की यादाश्त बढ़ सकती है, विज्ञापन तो वह वाला भी काट कर रख के छिपा लेता है जिस में पुरानी से पुरानी कमज़ोरी को दूर करने का वायदा दिलाया गया होता है ------------------लेकिन अफसोस ये सब सरासर झूठे, बेबुनियाद , धोखा देने वाले विज्ञापन ------ भला ऐसे कद बढ़ता है, यादाश्त बढ़ती है या यौवन लौट कर आता है क्या !!

वह असमंज की स्थिति में है ---- बस जैसे तैसे अपने पड़ोस के नीम हकीम के पास अपने परिवार को लेकर पहुंच जाता है। वह उन सब की तकलीफ़ों के लिये एक ही समाधान बताता है कि ताकत के टीके पांच पांच लगवा लो --- सब ठीक हो जायोगे। वह भी कर लिया --- लेकिन कुछ हुआ नहीं ---- लेकिन एक बात ज़रूर हो गई ----उस नीम हकीम के यहां टीके लगवाने से उसके लड़के को हैपेटाइटिस बी ( खतरनाक पीलिया ) हो गया ---- बैठे बिठाये आफ़त हो गई।

उसे लेकर जब बड़े शहर गया तो पांच हज़ार तो टैस्ट पर ही लग गये और उन टैस्टों से यह पता चला कि इस तकलीफ़ के लिये कुछ कर ही नहीं सकते। सब कुछ ऊपर वाले पर ही छोड़ना होगा।

यह जो आपने बातें सुनीं ये आज घर घर में हो रही हैं दोस्तो, जनमानस में स्वास्थ्य जागरूकता की इतनी ज़्यादा कमी है (विभिन्न कारणों की वजह से) कि क्या कहें और ऊपर से आम आदमी को अपने जाल में फंसाने वाले व्यवसायी हर समय घात लगाये बैठे हैं कि कब इस की तबीयत ढीली हो और कब हम इस का खून चूस कर इस की हालत और भी पतली करें ----साला जी कर तो दिखाये !!, बहुत जी लिया है बेटा तूने ....................................
मैं अकसर सोचता हूं कि क्या केवल स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ाने से ही बस लोगों की सेहत ठीक हो जायेगी ------ मुझे तो नहीं ऐसा लगता ---- क्योंकि हम लोगों की हर तकलीफ़ के कईं कईं पहलू हैं। लेकिन मुझे तो अपना काम करना है ----- जागरूकता की अलख जगानी है।

क्योंकि यह मेरा चिट्ठा है इसलिये मैं इमानदारी से कुछ भी लिख सकता हूं -----यह स्वास्थ्य जागरूकता का प्रचार-प्रसार करना ही मेरा मिशन है --- सर्विस कर रहा हूं लेकिन वह भी सोचता हूं कि एक तरह से भविष्य की सैक्यूरिटि के लिये भी कर रहा हूं वरना विचार तो यही बनता है कि किसी ऐसी संस्था के साथ जुड़ जाऊं जिस के साथ मिल कर इस जागरूकता को आगे बढाऊं -----सुबह से शाम तक गांव गांव जा कर लोगों से मिलूं ---- उन की जीवनशैली के बारे में उन से खूब बातें करूं, तंबाकू-शराब, अन्य नशों का सफाया करने में अपना योगदान दूं , और उन्हें प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति अपनाने के लिये प्रेरित करूं----------------लेकिन यह क्या आज की पोस्ट तो एक अच्छा खासा भाषण ही हो गया लगता है। एक बात जो मैं मुझे लगता है कि पत्थरों पर खुदवा देनी चाहिये वह यह है कि ताकत किसी टीके में, कैप्सूल में या टेबलेट में नहीं होती -------------------ताकत है तो सीधे सादे हिंदोस्तानी खाने में, बाकी सब वायदे झूठे हैं, फरेब हैं, झूठी आशा है , सरासर किसी को गुमराह करने के धंधे हैं-----------------जी हां, कुछ लोग इस प्रोफैशन को भी धंधे की तरह ही चला रहे हैं।

शनिवार, 22 दिसंबर 2007

दोस्तो, आओ अब तो इन भ्रांतियों का भांडा फोड़ ही डालें.....

मेरी तरह से आप ने बहुत बार सुना है न कि अगर एकदम फिट रहना है तो सारे दिन में पानी के आठ गिलास पीने ही होंगे। और कितनी बार हम डाक्टरों ने ही इस बात पर मुंडी हिलाई होगी जब कोई यह कहता है कि हम अपने मस्तिष्क का केवल 10फीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाते हैं। लेकिन दोस्तो इन दोनों में से कोई भी बात सच नहीं है। जी हां, इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मैडीसन के वरिष्ट चिकित्सकों के अनुसार ऐसी कई तरह की भ्रांतियां हैं जो हमें विरासत में ही मिल जाती हैं और जिन्हें चिकित्सक भी जाने-अनजाने मानने लगते हैं। इन चिकित्सकों ने अपना यह अध्ययन ब्रिटिश मैडीकल जर्नल में छपवाया है। दिन में जबरदस्ती आठ-गिलास पानी पीने का कोटा पूरा करने वालों के लिए इन का कहना है कि पानी तो हमें नाना प्रकार के खाध्य पदार्थों से भी प्राप्त होता है जैसे कि फल, सब्जियां आदि.....इस लिए जबरदस्ती पानी के गिलास पर गिलाक गटक जाना सुरक्षित नहीं है। दिमाग के 10 फीसदी हिस्से को इस्तेमाल करने के बारे में उन का कहना है कि हमारा मस्तिष्क तो अभी तक दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुया है, अभी तो हम उस की पूरी तरह से खोज ही नहीं कर पाए हैं ! इसलिए इस धारणा को भी वे सिरे से नकार रहे हैं।
दोस्तो, आप को भी याद होगा जब आप के चेहरे पर दाढ़ी ने नई-नई दस्तक दी होगी, तो आप के भी पिता जी ने चेताया होगा कि बेटा,अभी से शेव-वेव के चक्कर में मत पड़ो, दाढ़ी सख्त हो जाएगी। और इस के लिए हम सब को अकसर हेयर-ड्रैसर के यहां जा कर मशीन चलवानी पड़ती थी। लेकिन,दोस्तो, अपने पिता जी की तरह हम भी गलत ही सोच रहे हैं, इन वैज्ञानिकों ने इस धारणा को भी बेबुनियाद बताया है कि जब बालों को शेव करना शुरू कर दें तो वापिस आने वाले बाल खुरदरे और सख्त होते हैं। इस बात के प्रमाण तो बताया जाता है कि आज से 80 साल ही मिल गए थे कि शेव के बाद आने वाले बाल न तो खुरदरे होते हैं और न ही सख्त.
अकसर लोग सोच लेते हैं कि बाल और नाखुन तो मरने के बाद भी बढ़ते रहते हैं (ड्रैकुला इफैक्ट) --- लेकिन ऐसी धारणा भी बिल्कुल गलत है। होता यूं है कि मरणोपरांत चमड़ी सिकुड़ती है जिसकी वजह से ऐसा लगता है कि बाल अथवा नाखुन बढ़ गए हैं। यह हमारे जीवन काल के दौरान भी तो होता है- कैसे हमारे दांत अकसर उम्र के साथ उगते या बड़े होते दिखते हैं.....वास्तव में एक बार मुंह में उगने के बाद वे क्हां और ज्यादा बड़े हो पाएंगे-- यह जो मसूड़ा जब उस से अपनी दूरी बनानी शुरू करता है तो दांतों के बड़े होने का केवल भ्रम ही पैदा करता है।
ऐसी भ्रांतियों की लिस्ट अच्छी खासी है दोस्तो, लेकिन एक और तो जल्दी से गिना ही दूं ----हम में कितने अभी भी यह सोचते हैं कि च्यूंइंग गम को अगर कोई व्यक्ति गल्ती से निगल ले तो वह सात साल तक उस के पेट में ही पड़ी रहती है।
सुन कर तो हमें हंसी आती है लेकिन हम बस यूं ही इन भ्रांतियों, इन मिथकों को , इन धारणाओं को खुद तो मान बैठते ही हैं, और इन के प्रचार-प्रसार में कोई कसर भी कहां छोड़ते हैं!! सच है या नहीं,दोस्तो ??