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सोमवार, 18 अगस्त 2014

नकली पान मसाले का गोरखधंधा ज़ोरों पर

आज की दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण में एक मुख्य खबर दिखी..... जिस का शीर्षक था... बिक गया तो असली पकड़ा गया तो नकली। और यह खबर नकली पान मसाले के बारे में थी।

पान मसाला कारोबारियों के लिए असली-नकली का खेल मुनाफा कमाने का धंधा बन गया है। जब तक बाजारों में बिना किसी रोक टोक पान मसाला बिकता रहता है, किसी कंपनी को इसकी फिक्र नहीं रहती है लेकिन जैसे ही माल पकड़ा जाता है, उसे नकली करार देने की होड़ शुरू हो जाती है।

इस खबर में इस तरह के अन्य केसों का भी उल्लेख किया गया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

आप को यह खबर पढ़ कर कैसा लगा। मुझे तो कुछ ज़्यादा अजीब नहीं लगा। जब कारोबारी किसी भी अन्य चीज़ को नहीं बख्शते.......ऐसे में वे पान मसाले जैसी धड़ा-धड़ बिकने वाली वस्तु को कैसे अपने लालच से अछूता रख सकते हैं।
इस तरह की खबरें मैं पहले भी कईं बार देख चुका हूं।

सोच कर भी लगता है कि जो हानिकारक पदार्थ पहले ही से खाने-चबाने वाले की सेहत को बुरी तरह से खराब कर देने की क्षमता रखती हो, उस में भी मिलावट।

इस मिलावट से तो बस वह ध्यान आ गया कि किसी ने नकली ज़हर खा लिया और उस की जान बच गई।

पान मसाला जैसे पदार्थ इसे इस्तेमाल करने वाली की सेहत को जितना बिगाड़ देते हैं ..अब सोचिए कि अगर उस में भी मिलावट हो तो फिर इसे खाने वाले का क्या होगा।

बहरहाल, यह खबर मैंने आप तक ऐसे ही पहुंचा दी --मन किया.....लेकिन यह मेरे को कोई विशेष खबर लगती नहीं है क्योंकि हर पान मसाला खाने-चबाने वाला अच्छे से जानता है कि वह आग से खेल रहा है, फिर भी खेलता है ...और उस आग में मिलावट है या नहीं, इस तरफ़ देखने की फुर्सत ही किसे है। बस गुटखे-पान मसाले की एक हवस है, वह पूरी होनी चाहिए। 

शनिवार, 16 अगस्त 2014

पानमसाला जिन की जान नहीं भी ले पाता....

कुछ दिन पहले मेरे पास एक आदमी आया --कहने लगा कि उस की बीवी को मुंह में कुछ शिकायत है। मैंने कहा- ठीक है, ले आओ कभी भी। झिझकते हुए कहने लगा कि उसे पानमसाला खाने की लत है और आप उसे मत झिड़कियेगा, आप ने जो कहना होगा बाद में मुझे कह लीजिएगा। वह कमजोर दिल वाली है। मैंने इस तरह की रिक्वेस्ट पहली बार सुन रहा था। मैंने कहा --नहीं, नहीं, तुम चिंता न करो.....मैं तो उसे क्या तुम्हें भी कुछ नहीं कहूंगा। अब कोई क्या खा-पी रहा है, उस पर मेरा कोई कानूनी नियंत्रण थोड़े ही ना है।

बहरहाल, दो तीन दिन पहले वह मेरे पास अपनी बीवी को ले आया--- ३३-३४ साल की उम्र.. मुंह खुल नहीं रहा था, बिल्कुल भी नहीं, बस इतना कि दूध-चाय में बिस्कुट डुबो कर अंदर डाल ले। दुःख होता है इस तरह के मरीज देख कर......वैसे सेहत बिल्कुल ठीक ठाक और इतनी छोटी उम्र में ऐसा लफड़ा।

फिर उसने मेरे सामने अपने पुराने पेपर कर दिए.....जिस से मुझे पता चला कि २००७ में भी उसने कुछ इलाज तो लिया था। वह बताने लगी कि उस समय मेरे मुंह में तीन अंगुली चली जाती थी और अब एक अंगुली भी नहीं जा पाती। मुंह के लगभग ना के बराबर खुलने की बात तो मैं पहले ही कर चुका हूं।

इलाज के नाम पर वही मुंह में घाव के ऊपर लगाने वाली कुछ दवाईयां, गुब्बारे फुलाने वाली एक्सरसाईज़........कुछ नहीं होता वोता इन सब से.......अगर ना तो पानमसाला ही छोड़ा जाए और न ही अगर किसी ढंग की जगह से --मेरे कहने का मतलब है ओरल सर्जन से इस का उपचार न करवाया जाए....कुछ नहीं होता इस तरह के घरेलू उपायों से।

मुझे अफसोस इस बात का हुआ कि सात वर्ष थे इस के पास --- कितना समय नष्ट हो गया, न तो इसने पानमसाला ही छोड़ा और न ही इस ही यह किसी विशेषज्ञ से इलाज करवा पाई। अब तीन दिन पहले उसने पानमसाला छोड़ दिया है।
उस के बाद वह फिर २००९ में भी किसी डाक्टर के पास गई जिसने उसे एक डैंटल कालेज में रेफर किया , लेकिन किसी कारण वश वह वहां पर भी न गई।

ऐसे केस मैं देखता हूं कि मुझे लगता है कि मरीज की गलती तो है ही कि वह यह मसाला-वाला छोड़ नहीं रहा, डाक्टर का भी क्या हुनर कि वह एक इंसान का इतना ब्रेन-वॉश न कर पाए कि उसे मसाले से नफ़रत हो जाए। यहां चिकित्सक भी फेल हुआ..।

मैंने जब पूछा कि कब से खा रही हैं मसाला......तो उसने जो बताया वह संदेश आप सब को भी जानने की ज़रूरत है कि औरतों को किस किस हालात में यह लत लग जाती है ताकि आप औरों को भी सचेत कर सकें।

उसने बताया कि शादी से पहले उसने कभी कुछ इस तरह का नहीं खाया.......२१ वर्ष की उम्र में जब वह पेट से थी और गांव में रहती थी तो उसे थोड़ी बेचैनी होने लगती तो बस उसे पानमसाले की आदत पड़ गई। लेकिन कुछ महीनों के बाद जब उस का पहला बेटा हुआ तो उसने फिर यह खाना बंद कर दिया।

दो साल बाद जब वह फिर से उम्मीद से हुई तो फिर उसे पानमसाले की आदत पड़ गई......लेकिन फिर दूसरा बच्चे होने पर इसे छोड़ दिया। लेकिन तीसरा बच्चा होने पर फिर उस के बाद वह इस आदत को छोड़ न पाई और निरंतर ५-६ पाउच पानमसाले के चबाती रही । ऐसे ही तीन चार साल चबाने के बाद जब मुंह खुलना कम होने लगा तो फिर दंत चिकित्सक के पास पहुंच गई। बाकी की बात तो मैंने पहले आप को सुना ही दी है। अब इस का पूरा इलाज होगा किसी ओरल सर्जन की देख रेख में।

अब पढ़ने वाले यह मत सोच लें कि यह तो ६ पैकेट खाती रही, हम तो चार ही खाते हैं, इस ने तो इतने वर्ष खाए, हम ने तो ३-४ वर्ष ही खाए हैं, इसलिए हम तो सुरक्षित हैं, नहीं ऐसा नहीं है,  आज ही कहीं नोट कर लें कि गुटखा-पानमसाला खाने वाला कोई भी सुरक्षित नहीं है। हां, अगर आप अपनी किस्मत अजमाने के चक्कर में हैं, तो फिर आप को कौन रोक सकता है।

इस पोस्ट से मैं एक बात और रेखांकित करना चाहता हूं कि इस तरह की तकलीफ जैसी की इस औरत में पाई गई (सब-म्यूक्स फाईब्रोसिस) --यह कैंसर की पूर्व-अवस्था है....और ऐसे हर केस में कैंसर बनेगा, यह नहीं है, लेकिन किस में बनेगा, यह पहले से कोई नहीं बता सकता। वैसे भी अगर कैंसर डिवेल्प होने से ऐसे मरीज बच भी जाएं तो क्या इतना लंबा और महंगा इलाज, मुंह में बार बार तरह तरह के टीके लगवाने, मुंह के अंदर चमड़े की तरह जुड़ चुकी मांसपेशियों को खोलने के लिए किए जाने वाले आप्रेशन........क्या हर कोई करवा सकता है, क्या हर एक के पास इतना पैसा है या विशेषज्ञ इतनी आसानी से मिल जाते हैं ? और तौ और खाने पीने की बेइंतहा तकलीफ़, दांत साफ़ न करने का दुःख, आप बस एक क्लपना सी करिए की मुंह न खुलने पर किसी को कैसा लगता होगा, और कौन कौन से काम वह बंदा करने में असमर्थ होगा, आप सोच कर ही कांप उठेंगे। है कि नहीं?

लिखता रहता हूं इस तरह के ज़हर के बारे में क्योंकि रोज़ इस ज़हर से होने वाली तकलीफ़ों से लोगों को तड़फते देखता हूं.........इतना तो आप मेरा ब्लॉग देख पढ़ कर समझ ही चुके होंगे कि इस में आप किसी भी पेज को खोल लें, केवल सच और सच के सिवा कुछ भी नहीं लिखा, मुझे क्या करना है किसी भी बात को बढ़ा चढ़ा कर लिखने से, मैं कौन सा आप से परामर्श फीस ले रहा हूं.  केवल जो सच्चाई है, जो सीखा है उसे आप के साथ साझा करने आ जाता हूं, मानो या ना मानो, जैसी आप की खुशी।

एक बात और ......पिछले सप्ताह एक आदमी आया........पानमसाला उसने १९९५ में छोड़ दिया था जब उस का मुंह खुलना कम हुआ....... ऐसा उसने मेरे को बताया, अब उस के मुंह में गाल के अंदर एक घाव था, मुझे वह घाव अजीब सा लगा, मैंने कहा कि इस का टुकड़ा लेकर टेस्ट करना होगा। कहने लगा कि वह तो उसने करवा लिया है सरकारी कालेज से ...रिपोर्ट लेकर आया तो मुझे बहुत दुःख हुआ.......वह घाव मुंह के कैंसर में बदल चुका था. मैंने उसी दिन उसे मुंबई के टाटा अस्पताल में जाने की सलाह दी, लेकिन वह आज तक लौट कर नहीं आया।

मुझे कईं बार लगता है कि ये तंबाकू, गुटखा, पानमसाला भी एक बहुत बड़े आतंकवाद का हिस्सा है, लगभग हर कोई खाए जा रहा है, इस उम्मीद के साथ कि इस के दुष्परिणाम तो दूसरों में होंगे, उसे तो कुछ नहीं होगा........अगर ऐसा कोई विचार भी मन में आ रहा है या कभी भी आया हो मैं अपने इस विषय पर लिखे अन्य लेखों के लिंक्स यहां लगा रहा हूं........हो सके तो नज़र मार लीजिएगा।

और एक बात...ऐसे केस इक्का-दुक्का नहीं हैं दोस्तो, आते ही रहते हैं, रोज़ ही आते हैं, इसलिए अगर पान-पानमसाला, गुटखा, तंबाकू-- खाने,पीने,चूसने,चबाने,दबाने के बावजूद भी अभी तक बचे हुए हैं तो तुंरत इसे थूक डालिए और किसी अनुभवी दंत चिकित्सक से अपने मुंह की जांच करवाईए........फायदे में रहेंगे। लाख टके की बात बिल्कुल मुफ्त में बता रहा हूं।

चमड़ी को चमड़ा बनने से पहले --- पानमसाले को ...
मुंह न खोल पाना एक गंभीर समस्या 
दो वर्षों में भी अपना काम कर लेता है गुटखा..
मीडिया डाक्टर: गुटखा छोड़ने का एक जानलेवा ...
काश, किसी तरह भी इस लत को लात पड़ जाये
मीडिया डाक्टर: तंबाकू --- एक-दो किस्से ये भी ...

शनिवार, 9 अगस्त 2014

केवल गुटखा-पानमसाला ही तो नहीं है विलेन...

हिंदी की एक अखबार के पहले पन्ने पर एक विज्ञापन देखा --एक पानसाले का..
उस मे लिखे शब्दों पर ध्यान दीजिए..
अच्छा खाईये निश्चिंत रहिये
वो स्वाद जिसमें छुपी हैं अनमोल खुशियां
भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय पान मसाला
साफ---सुरक्षित-- स्वादिष्ट
0%Tobacco   0%Nicotine

ठीक है, ठाक है .. एक कोने में छुपा कर यह भी लिखा है .... पानमसाला चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

अब आप बताएं कि इस तरह का विज्ञापन हो और आप के शहर में हर तरफ़- आप के दोस्त, परिवारजन, अध्यापक, डाक्टर हर तरफ पान मसाला गुटखा चबाने में लगे हों तो फिर कैसे एक स्कूल-कालेज जाने वाला लोंडा इस से बच सकता है।

कितनी खतरनाक बात लिखी है कि पानमसाले में तंबाकू नहीं, निकोटीन नहीं... बहुत से पानमसालों पर यह लिखने लगे हैं.. लेकिन फिर भी क्यों इसे खा कर युवक अपनी ज़िंदगी बरबाद कर लेते हैं। उस का कारण है सुपारी ---और नाना प्रकार के अन्य कैमीकल जो इस में मौजूद रहते हैं और जिन्हें खाने से रोटी खाने के लिए मुंह तक न खुलने की नौबत आ जाती है...इस अवस्था को ओरल-सबम्यूकसफाईब्रोसिस कहते हैं और यह मुंह के कैंसर की पूर्व अवस्था भी है।
अब आप ही बताईए की गुटखा तो विलेन है ही जिस में तंबाकू-वाकू मिला रहता है लेकिन यह पान मसाला भी कितना निर्दोष है?

सब से पहले तो मैं बहुत से मरीज़ों से पूछता हूं कि क्या आप गुटखा-पान मसाला खाते हैं तो जवाब मिलता है कि नहीं, नहीं वह तो हम बिल्कुल नहीं लेते, कभी लिया ही नहीं, या बहुत पहले छोड़ दिया। लेकिन थोड़ी बात और आगे चलने पर कह देते हैं कि बस थोड़ी बहुत बीड़ी से चला लेता हूं। ऐसे किस्से मेरे को बहुत बार सुनने को मिलने लगे हैं.....बहुत बार......और कितने युवक यह कह देते हैं कि और किसी चीज़ का नशा नहीं, बीड़ी सिगरेट नहीं,  बस कभी कभी यह सुपारी वारी ले लेते हैं.......फिर उन की भी क्लास लेने पड़ती है कि ये सब के सब आग के खेल हैं।

आज मेरे पास एक महिला आई..सारे दांत बुरी तरह से घिसे हुए.....ये जो देसी मंजन बिकते हैं न बाज़ार में ये बेइंतहा किस्म के खुरदरे होते हैं....और इन को दांतों पर लगाने से दांत घिस जाते हैं। उसने कहा कि उसने इन्हें कभी इस्तेमाल नहीं किया.... मैं भी हैरान था कि ऐसे कैसे इस के दांत इतने ज़्यादा घिस गये। कहने लगी नीम की दातुन पहले करती थी गांव में. मैंने कहा कि उस से दांत इस तरह खराब नहीं होते। बहरहाल, अभी मैं सोच ही रहा था कि उसने कहा कि एक बात आप से छुपाना नहीं चाहती.......कहने लगी कि मैं गुल मंजन इस्तेमाल करती हूं. बस, फिर मैंने उसे समझा दिया कि क्यों गुल मंजन को छोड़ना ज़रूरी है......और बाकी तो उस का इलाज कर ही दूंगा, घिसे हुए दांत बिल्कुल नये जैसे हो जाते हैं आज कल हमारे पास बहुत से साधन मौजूद हैं।

उस के बाद अगला मरीज़ था, एक दो दांतों में दर्द था, मेरा प्रश्न वही कि गुटखा-पानमसाला लेते हैं, तो कहने लगा कि कभी नहीं यह सब किया. लेकिन कुछ अरसे से दांत में जब दर्द होता है तो तंबाकू-चूना तेज़ सा मिक्स कर के दांत के सामने गाल में दबा लेता हूं. .आराम मिल जाता है।

यहां यह बताना चाहूंगा कि तंबाकू की लत लगने का एक कारण यह भी है कि लोग दांत के दर्द के लिए मुंह में तंबाकू या नसवार (पिसा हुआ तंबाकू) रगड़नी शुरू कर देते हैं......मेरी नानी को भी तो यही हुआ था, दांत में दर्द होता रहता था, पहले डाक्टर वाक्टर ढंग के कहां दिखते थे, नीम हकीम ही दांत उखाड़ देते थे (अभी भी बहुत जगहों पर यही चल रहा है).. सो, मेरी नानी को नसवार मसलने की लत लग गई..... और फिर वह आदत नहीं छूटी......इस तरह की आदत का शिकार लोगों को मसाने में भयंकर रोग होने का रिस्क तो रहता ही है, बस इसी रोग ने हमारी चुस्त-दुरूस्त नानी हम से छीन ली। अफसोस, मुझे उन दिनों पता ही नहीं था कि यह नसवार इतनी खराब चीज है, वह बहुत झिझकते हुए हमें हमारे स्कूल-कालेज के दिनों में बाज़ार से नसवार की डिब्बी लाने को कहती और हम भाग कर हरिये पंसारी से खरीद लाते।

बच के रहो बई इन सब तंबाकू के रूपों से और हां, पानमसाले से भी....... कुछ दिन पहले मेरे पास एक मरीज आया ५० के करीब का रहा होगा, यही पानमसाले से होने वाला रोग था, मुंह नहीं खुल रहा था, घाव तो मुंह के पिछले हिस्से में थे ही, मुंह के अंदर की चमड़ी बिल्कुल सख्त चमड़े जैसी हो चुकी थी.....और साथ ही एक घाव मुझे ठीक नहीं लग रहा था जिस की टेस्टिंग होनी चाहिए और पूरा इलाज होना चाहिए......मैंने उसे समझाया तो बहुत था लेकिन वह वापिस लौट कर ही नहीं आया। यह युवक की बात केवल इसलिए की है कि पानमसाला छोड़ने के वर्षों बाद तक इस ज़हर का दंश झेलना पड़ सकता है, तो क्यों न आज ही, अभी ही से मुंह में रखे पानमसाले को दस गालियां निकाल कर हमेशा के लिए थूक दें।

तंबाकू-गुटखे की बातें लिख लिख कर थक गया हूं. लेकिन फिर भी बातों को दोहराना पड़ता है। हां, एक काम करिएगा, अगर मेरे इन विषयों से संबंधित लेख देखना चाहें तो इस ब्लॉग के दाईं तरफ़ जो सर्च का ऑप्शन है, उस में तंबाकू, गुटखा या पानमसाला लिख कर सर्च करिएगा। ये सब ज़हर आप हमेशा के लिए थूकने के लिए विवश न हो जाएं तो लिखिएगा।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

कहीं आप के पेस्ट मंजन में भी तंबाकू तो नहीं...


देश के कुछ हिस्सों में लोग तंबाकू को जला कर दांतों एवं मसूड़ों पर घिसते हैं ...जिसे मिशरी कहते हैं.
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पता नहीं यह दुल्हन कहां से आ गई इस पाउच पर...
चलिए, इन लोगों को पता तो है कि ये तंबाकू घिस रहे हैं । कुछ दंत मंजन भी तंबाकू से ही तैयार होते हैं यह भी लोग जानते हैं जैसे कि गुल मंजन आदि। लेकिन लोग फिर भी करते हैं। कुछ मंजन इस तरह के हैं जो लोगों में काफ़ी पापुलर हैं और उन में भी तंबाकू की मात्रा मौजूद रहती है। अब ऐसे मंजनों का कोई क्या करे, चिंता का विषय यह भी है कि छोटे छोटे पांच-छः वर्ष के बच्चे भी इन्हें इस्तेमाल करते हैं और जल्द ही इस के आदि -- एडिक्शन हो जाती है।
दो दिन पहले मैं ऐसे ही इधर एक बाज़ार में खड़ा था, सामने एक पनवाड़ी की दुकान थी, वहां पर बहुत ही रंग बिरंगे गुटखे के पैकेट टंगे दिखे। मैंने सुना था कुछ दिन पहले कि अब लखनऊ में नेपाल में तैयार गुटखा बिकने लगा है। मैंने उस पनवाड़ी से पूछा तो उस ने बताया कि नहीं, ऐसा कुछ भी तो नहीं। अचानक देखा कि गुल का पाउच टंगा है, मैंने एक खरीद लिया।
यह पैकेट एक रूपये में बिक रहा है। दुकानदार इस की दांत चमकाने की क्षमता और दांत एक दम फिट रखने की क्षमता पर प्रवचन करने लगा कि आप भी इसे एक बार अजमा कर के तो देखिए।
यह गुल मंजन लोगों में बड़ा पापुलर है। लेकिन मुझे इतना पता था कि यह बड़े से डिब्बे में ही आता है, मेरे कहने पर मेरे मरीज़ अकसर इसे मुझे कईं बार दिखाने के लिए घर से लाये थे। वह तो चिंता की बात है ही--शायद उस से और भी चिंता की बात यह है कि यह पाउच में भी दिखने लगा है।
gul3जब तक मैं अपनी बात रखनी शुरू नहीं करता मेरे मरीज़ तंबाकू वाले मंजनों के तारीफ़ों के कसीदे पढ़ते नहीं थकते...पहले दांतों में दर्द था, पहले मसूड़ों को पायरिया था, पहले दुर्गध आती थी ...लेकिन जब से यह तंबाकू वाले मंजन का इ्स्तेमाल शुरू किया है सब ठीक लगने लगा है। लेकिन नहीं, उन को सोचना गलत है, तंबाकू वाले मंजन केवल तबाही ला सकते हैं और वे यह काम में सफल हो भी रहे हैं।
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इस तस्वीर को अच्छे से देखने के लिए इस पर आप को क्लिक करना होगा.
और इस आर्टीकल को पूरा देखने के लिए यहां पर क्लिक करिए...
मेरे एक मित्र जो डैंटल कालेज में प्रोफैसर हैं --कल वह भी इस तरह के मंजनों के बारे में बहुत चिंतित नज़र आए। एक सब से खौफ़नाक बात जो देखने में आ रही है कि छोटे छोटे बच्चे जब इन का इस्तेमाल करने लगे हैं तो वे सहज ही तंबाकू के व्यसनी बन जाते हैं।
जब मैंने इस तंबाकू वाले गुल को खोला तो इतनी गंदी बास आई कि मुझे उन लोगों के चेहरे याद आ गये जो मुझे यह कह कर चले गये कि इस से मुंह की दुर्गंध आनी बंद हो गई। काश कभी वे फिर से दिखें .....
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इस टैक्सट को अच्छे से पढने के लिए आप को इस पर क्लिक करना होगा....
कहीं आप के पेस्ट मंजन में भी तो तंबाकू नहीं....(इसी लेख का एक अंश)
अगर आप इन तंबाकू वाले मंजनों आदि के बारे में कुछ विस्तार से पढ़ना चाहें कि वे किस तरह से हमें खोखला किए जा रहे हैं तो ऊपर या नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक कर के देखिएगा।
मुझे सब से खौफनाक बात यह लगती है कि कुछ मंजन ऐसे हैं जिन्हें लोग इस्तेमाल तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें पता नहीं है उन में तंबाकू मिला हुआ है. मैं इसी स्टडी की चंद पंक्तियों का एक स्क्रीन-शॉट चिपका रहा हूं, इसे ज़रूर देखें.........ताकि अगर आप भी इस तरह का कोई ब्रेंडेड मंजन वंजन घिस रहे हैं तो आप का भी मोहभंग हो जाए।
वैसे लिंक यहां भी लगा दिया है ....

कितना समय तो तंबाकू ही ले लेता है...


मैं अकसर इस बात पर ध्यान करता हूं कि प्रतिदिन अस्पताल में काम करते हुए हमारा कितना समय तो यह तंबाकू ही खा लेता है।
सरकारी अस्पताल में काम करता हूं और प्रतिदिन कुछ मरीज़ –कुछ तो बहुत ही छोटी उम्र के– ऐसे आ ही जाते हैं जिन के मुंह में तंबाकू, गुटखा, पानमसाला, बीड़ी, सिगरेट आदि से होने वाले कैंसर की पूर्वावस्था दिख जाती है। ऐसे में कैसे मैं अपने आप को इन लोगों के साथ १०-१५ मिनट बिताने से रोक पाऊं। और बिना इतना समय बिताए बात बनती दिखती नहीं।
पहले तो मैं इन लोगों के मुंह के उस हिस्से का फोटो लेता हूं ..फिर उसे उन्हें दिखा कर यह समझाने की कोशिश करता हूं कि तंबाकू ने किस तरह से मुंह के अंदर की चमड़ी को खराब कर दिया है और किस तरह से आगे इसे बदतर होने से बचाया जा सकता है।
उस समय वे लोग बड़े रिसैप्टिव जान पड़ते हैं –हर बात ध्यान से सुनते हैं और लगता है कि आज के बाद ये लोग इन सब पदार्थों का सेवन बंद कर देंगे। हमें बातचीत करते अहसास तो हो ही जाता है कि कौन हमारी बात पर अमल करेगा और कौन यूं ही बस सुन रहा है क्योंकि कोई कह रहा है!
मुझे बहुत बार लगता है कि किसी बंदे की लाइफ़ से तंबाकू को दूर करना अपने आप में एक बड़ा काम है। और सरकारी अस्पतालों के डाक्टर तो इस में विशेष भूमिका निभा सकते हैं।
सरकारी और प्राईव्हेट डाक्टरों में मैंने यहां इसलिए डिफरैंशिएट किया क्योंकि भारत में कम से कम प्रिवेंटिव सलाह का कोई खरीददार तो है नहीं….अर्थात् किसी को इस तरह की बातें बेचना कि आप लोग तंबाकू को छोड़ कर किस तरह से अनेकों बीमारियों से बच सकते हैं, यह सब किसी की कहना… सुनने वाला सोचता होगा कि इस में नया क्या है, घर में सभी तो मेरे को यही बातें कह रहे हैं तंबाकू छोड़ने के लिए और मैं भी कोशिश तो कर ही रहा हूं इतने वर्षों से छोड़ने के लिए!
प्राईव्हेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर से यह उम्मीद करना कि वह किसी मरीज़ को समझाने-बुझाने में १५-२० मिनट लगाए और उसे इस के लिए कम से कम ४००-५०० रूपये की फीस मिले …मुझे तो यह नहीं लगता। कौन देगा इस तरह की सलाह की फीस, बेशक इस तरह का परामर्श बेशकीमती तो है ही, लेकिन फिर भी कोई फोकट में यह सब बांट रहा हो तो मज़बूरी है लेकिन अगर इस सलाह के लिए पैसे-वैसे देने पड़ें तो ना..बाबा ना…हमें नहीं चाहिए यह नसीहत की घुट्टी। अपने आप छोड़ लेंगे, यह लत छोड़ने की कोशिश तो कर ही रहे हैं, कोई बात नहीं…कम ही पीते हैं।
इसलिए यह आशा नहीं करनी चाहिए कि प्राईव्हेट में कोई डाक्टर मुफ़्त में इतना इतना समय हर तंबाकू इस्तेमाल करने वाले के साथ बिताएगा… और वह इस के लिए अपने अन्य मरीज़ों का समय इस्तेमाल करेगा, ऐसा कैसे हो सकता है। अब एक डैंटिस्ट की ही बात कीजिए, अगर वह इस काम में लगा रहेगा, तो उस के अन्य मरीज़ –फिलिंग, आरसीटी, औक क्रॉउन लगवाने वाले मरीज़ों का क्या होगा, भाई उस ने भी अपने परिवार का भरन-पोषण करना है।
सारा दिन तंबाकू एवं अन्य ऐसे उत्पादों के बुरे प्रभावों के प्रति सचेत करते इतना समय निकल जाता है कि कईं बार तो झल्लाहट होने लगती है…..यार सारा कुछ तो इन वस्तुओं की पैकिंग पर लिखा रहता है कि इस के खाने से जान जा सकती है, कैंसर हो सकता है और अब तो इतनी भयानक तस्वीरें भी इन के ऊपर छपने लगी हैं, और सब से ज़्यादा दुःख तब होता है कि जब किसी मरीज़ से पूछो कि तुम्हें पता है कि इसे खाने से क्या होता है…तो वह तुरंत कह देता है ..हां, हां, वह सब तो पैकेट के ऊपर लिखा तो रहता ही है।
पता नहीं कितने लोग हमारी बात सुन कर उसे मानते भी होंगे …. अपने घर में तो हम लोग बदलाव ला नहीं पाए, मैं पिछले २५-३० वर्षों से अपने बड़े भाई को धूम्रपान के लिए मना कर रहा हूं लेकिन उन्होंने भी नहीं छोड़ो…हां, हां, मैंने बहुत कम कर दिए हैं, अब सिर्फ़ चार-पांच सिगरेट ही लेता हूं…..लेकिन ज़हर तो ज़हर है ही!
एक श्रेणी और भी दिखती है जिन्हें तंबाकू आिद के सेवन से कोई भयंकर रोग हो जाता है…बहुत भयंकर, आप समझ सकते हैं मैं क्या कहना चाह रहा हूं …और बड़े गर्व से कहते हैं कि पंद्रह दिन से तंबाकू भी बिल्कुल छोड़ दिया है। लेकिन जब चिड़िया खेत पहले ही चुग कर जा चुकी है तो बाद में पछताने से तो लकीर को पीटने वाली बात ही लगती है। इसलिए शाबाशी तो दूर, उन की इस बात पर कोई मूक प्रतिक्रिया तक देने की इच्छा नहीं होती।
सब से बढ़िया है कि हर प्रकार के तंबाकू प्रोडक्ट से कोसों दूर रहा जाए, यह आग का खतरनाक खेल है, छोटी छोटी उम्र में लोगों को इस से तिल तिल मरते देखा है।
कितनी जगहों पर तो प्रतिबंध लगा है इन सब वस्तुओं की बिक्री पर लेकिन हर जगह धड़ल्ले से बिक रहा है, खुले आम लोग खरीद खरीद कर बीमार–बहुत बीमार हुए जा रहे हैं।

शनिवार, 25 जनवरी 2014

गुटखा छोड़ने का एक जानलेवा उपाय

इस युवक के मुंह की तस्वीर.. 
कल मेरे पास एक २१ वर्ष के लगभग आयु का युवक आया। मुंह में कोई समस्या थी। मुझे लगा कि गुटखा-पान मसाला खूब खाया जा रहा है।

पूछने पर उसने बताया कि मैंने खाया तो खूब बहुत वर्षों तक ..लेकिन पिछले ६-७ वर्षों से सब कुछ छोड़ दिया है। ऐसे लोगों से मिल कर बहुत खुशी होती है जो अपने बल-बूते पर इस ज़हर को ठोकर मार देते हैं। उस के इस प्रयास के लिए मैंने उस की पीठ भी थपथपाई।

ऐसे मरीज़ मेरे पास कम ही आते हैं जो कहें कि इतने वर्षों से गुटखा-पानमसाला छोड़ रखा है। मुझे जिज्ञासा हुई कि इस से पूछें तो सही कि कैसे यह संभव हो पाया।

उस ने बताया कि गुटखा-पानमसाला उसने स्कूल के दिनों से ही खाना शुरू कर दिया था और मैट्रिक तक खूब खाया--लगभग दस पैकेट रोज़। लेकिन एक दिन उसने बताया कि उस के पिता जी को पता चल गया ...बस फिर छूट गया यह सब कुछ।

मैंने ऐसे ही पूछ लिया कि पिता जी ने धुनाई की होगी........कहने लगा ...नहीं, नहीं, उन्होंने मुझे बड़े प्यार से उस दिन समझा दिया कि इस सब से ज़िंदगी खराब हो जायेगी। और बताने लगा कि उस दिन के बाद से पिता जी ने मुझे अपने पास ही सुलाना शुरू कर दिया।

दो-चार मिनट तक ये बातें वह बता रहा था। पता नहीं मुझे कुछ ठीक सा नहीं लगा, उस का मुंह के अंदर की तस्वीर उस की बात से मेल खा नहीं रही थी। मैं भी थोड़े असमंजस की स्थिति में था कि सात वर्ष हो गये हैं गुटखा छोड़े इस को लेकिन मुंह की अंदरूनी सेहत तो अब तक ठीक हो जानी चाहिए।

यह बात बिल्कुल सत्य है कि मुझे कल कोई ऐसा मिला जिसने अपने आत्मबल के कारण गुटखा त्याग दिया था।
लेकिन मैं गलत साबित हुआ। पता नहीं उसे किस बात ने प्रेरित किया कि अचानक कहने लगा कि बस, डाक्टर साहब, मैं कभी कभी बस तंबाकू रख लेता हूं। मेरा माथा ठनका।

पूछने पर उसने बताया कि १४-१५ वर्ष की अवस्था से अर्थात् छः-सात वर्ष से उसने गुटखा तो छोड़ ही रखा है, कभी लिया ही नहीं ...लेकिन अभी कुछ डेढ़ साल के करीब वह इलाहाबाद अपने अंकल के पास गया है जो कि वहां पर एक उच्चाधिकारी हैं....वहां रहकर वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहा है। बस, वहां रहते रहते अन्य साथियों की देखा देखी ...बस, फ्रस्ट्रेशन दूर करने के लिए (जी हां, उस ने इसी शब्द का इस्तेमाल किया था) जैसे दूसरे लड़के लोग तंबाकू चबा लेते थे मैंने भी चबाना शुरू कर दिया है।

और वह एक बात बड़े विश्वास से कह रहा था कि गुटखे छोड़े रखने के लिए ही उसने तंबाकू चबाना शुरू किया है। मुझे लगा कि यह कैसा इलाज है। उसने बताया कि वह जो तंबाकू इस्तेमाल करता है उस में चूना भी मिला रहता है और गुटखे छोड़ने के लिए बहुत बढ़िया है।

गुटखे की आदत से मुक्ति दिलाने का दावा करता यह तंबाकू
मेरे कहने पर उसने वह तंबाकू का पैकेट मुझे जेब से निकाल कर दिखाया। आप इसे देखिए कि किस तरह से ये कंपनियां देश के लोगों को बेवकूफ़ बना कर लूट रही हैं ... धिक्कार है इन सब पर जिस तरह से ये देश की सेहत के साथ खिलवाड़ किये जा रही हैं, आप की जानकारी के लिए इस पैकेट की कुछ तस्वीरें मैं यहां लगा रहा हूं....आप भी देखिए कि किस तरह से पैकिंग पर ही कितना बोल्ड लिखा गया है .. गटुखा छोड़ने का उत्तम उपाय... चूना मिश्रित तंबाकू--- दुर्गंध एवं झंझट से मुक्ति।

उसी तंबाकू के पैकेट पर यह भी लिखा पाया...
इस तरह की बातें किसी पैकेट के ऊपर लिखा पाया जाना कि इस तंबाकू को खाने के बाद मुंह से दुर्गंध नहीं आती है ..इसके सेवन से गुटखे की आदत से अतिशीघ्र मुक्ति मिल सकती है। गंभीर बात यह भी है कि ठीक ठाक पढ़े युवक -यह युवक भी ग्रेजुएट है...अगर इस तरह की बातों में आकर गुटखे को छोड़ कर तंबाकू चबाने लगते हैं तो फिर उस इंसान की कल्पना करिए जो न तो पढ़ना जानता है ...और न ही उस की कोई कोई आवाज़ है, बस हाशिये पर जिये जा रहा है।

गुटखा छोड़ने का जानलेवा उपाय 
हां, उस लड़के को मैंने इतना अच्छा से समझा दिया कि यह बात तो तुम ने पैकेट पर लिखी देख ली कि यह गुटखा छोड़ने का उत्तम उपाय है ...जो कि सरासर कोरा झूठ है... लेकिन तुम ने पैकेट की दूसरी तरफ़ यह कैसे नहीं देखा... तंबाकू जानलेवा है और एक कैंसर से ग्रसित मरीज़ के मुंह की तस्वीर (चाहे वह इतनी क्लियर नहीं है) भी पैकेट पर ही छपी है।  उसे मैंने समझा तो दिया कि ऐसे सब के सब उत्पाद मौत के खेल के सामान हैं ...।

लगता था वह समझ गया है, कहने लगा कि आज के बाद इसे भी नहीं छूयेगा... और बाहर जाते जाते वहीं कूड़दाने में उस पैकेट को फैंक गया। मुझे लगा मेरी पंद्रह मिनट की मेहनत सफ़ल हो गई। अभी आता रहेगा अपने इलाज के लिए मेरे पास...तीन चार बार... देखता हूं कि वह इस ज़हर से हमेशा दूर रह पाए।

इस पोस्ट में स्वास्थ्य से संबंधित ही नहीं ..अन्य सामाजिक संदेश भी है....किस तरह से बाप के प्यार ने, उसे पास सुलाने से उस ने गुटखा तो छोड़ दिया....लेकिन करीबी रिश्तेदार के यहां जाकर फिर वह तंबाकू चबाने लगा......वहां शायद उसे किसी ने रोका नहीं होगा....मतलब आप समझ ही गये हैं।

मैं इस तरह की कंपनियां के ऐसे भ्रामक विज्ञापन देखता हूं , एक तरह से पैकेट में बिकता ज़हर देखता हूं तो मुझे इतना गु्स्सा आता है कि मैं उसे पी कर ही मन ममोस कर रह जाता हूं लेकिन ये मुझे इस तंबाकू-गुटखे-पानमसाले के विरूद्ध जंग को और प्रभावी बनाने के लिए उकसा जाते हैं।

मुझे लगता है कि हम डाक्टरों के संपर्क में आने के बाद भी अगर लोग तंबाकू, गुटखा, पानमसाला नहीं छोड़ पाएं तो फिर कहां जा कर छोड़ पाएंगे, हमें इन के साथ बार बार गहराई से बात करनी ही होगी। ऐसे कैसे हम इन कमबख्त कंपनियां को जीतने देंगे, अपना युवा वर्ग हमारे देश की पूंजी है.......कैसे हम उन्हें इन का शिकार होने देंगे। अगर कोई व्यक्ति मेरे पास कईं बार आ चुका है और वह अभी भी इस तरह की जानलेवा चीज़ों से निजात नहीं पा सका है तो मैं इसे अपनी असफलता मानता हूं.....यह मेरा फेल्योर है....ये दो टके की लालची कंपनियां क्या डाक्टरों से आगे निकल गईं, हमारे पास समझाने बुझाने के बहुत तरीके हैं, और हम लोग पिछले तीस वर्षों से कर ही क्या रहे हैं, बस ज़रूरत है तो उन तरीकों को कारगार ढंग से इस्तेमाल करने की..........इस सोच के साथ कि जैसे इस तरह का हर युवक अपने बेटा जैसे ही है, अगर हम १०-१५ मिनट की तकलीफ़ से बचना चाहेंगे तो इस की सेहत तबाह हो जायेगी। मैं नहीं जानता निकोटीन च्यूईंग गम वम को... मैं ना तो किसी को इसे लेने की सलाह दी है ...इस के कईं कारण हैं, वैसे भी अपने दूसरे हथियार अच्छे से काम कर रहे हैं, मरीज़ अच्छे से बात सुन लेते हैं, मान लेते हैं तो क्यों फिर क्यों इन सब के चक्कर में उन्हें डालें?

बस अपना कर्म किये जा रहे हैं, इन युवाओं की सेहत की रक्षा हो पाने के रूप में फल भी मिल ही रहा है.......मैंने उसे इतना भी कहा कि अगर इस तरह के दांतों के साथ तुम कोई भी कंपीटीशन की परीक्षा देने के बाद इंटरव्यू में जाओगे तो इस का क्या परिणाम क्या हो सकता है, तुम स्वयं सोचना। कुछ बातें साक्षात्कार लेने वाले रिकार्ड नहीं करते लेकिन ये सब बातें उम्मीदवार के मूल्यांकन को प्रभावित अवश्य करती हैं, आप क्या सोचते हैं ...क्या ऐसा होता होगा कि नहीं?

सुबह से लेकर रात सोने तक सारे चैनलों पर आम आदमी पार्टी एवं अन्य पार्टीयों की छोटी छोटी बातें ...कौन कितना खांसता है, कौन खांसने का बहाना करता है, किस ने एक साइज बड़ी कमीज़ डाली है, किस ने मफलर कैसे लपेटा, कौन  दफ्तर से निकल कर महिला आयोग पहुंचा कि नहीं, राखी सावंत कैसे चलाती दिल्ली सरकार..........सारा दिन बार बार वही दिखा दिखा कर...उत्तेजित स्वरों में बड़ी बड़ी बहसें.............इन सब के बीच कुछ कंपनियां किस तरह से ज़हर बेच बेच कर अपना उल्लू सीधा किए जा रही हैं, उन की खबर कौन लेगा?

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

दो वर्षों में भी अपना काम कर लेता है गुटखा..


कल मेरे पास एक १८ वर्षीय युवक आया..देखने में वह लगभग २५ के करीब लग रहा था, मैंने पूछा कि क्या जिम-विम जाते हो, उसने जब हां कहा तो मैंने पूछ लिया कि कहीं बॉडी-बिल्डिंग वाले पावडर तो नहीं लेते। उसने बताया कि नहीं वह सब तो नहीं लेता, लेकिन घर में गाय-भैंसें हैं, इसलिए अच्छा खाते पीते हैं।
बहरहाल उस का वज़न भी काफ़ी ज़्यादा था, इसलिए मैंने उसे संयम से संतुलित आहार लेने की ही सलाह दी। लेकिन अभी उस समस्या के बारे में तो बात हुई नहीं जिस की वजह से वह मेरे पास आया था।
वह मुंह में छालों से परेशान था और उस का मुंह पूरा नहीं खुलता, इस लिए वह परेशान था। मेरे पूछने पर उस ने बताया कि वह गुटखा-पान मसाला पिछले दो वर्षों से खा रहा है, और लगभग १० पाउच तो रोज़ ले ही लेता है लेकिन पिछले ७ दिनों से उसने ये सब खाना बंद कर दिया है क्योंकि मुंह में जो घाव हैं उन की वजह से उन्हें खाने में दिक्कत होने लगी है।
इतने में उस की अम्मी ने कमरे के अंदर झांका तो मैंने उन्हें भी अंदर बुला लिया।
मैंने उस का पूर्ण मुख परीक्षण किया और पाया कि इस १८ वर्ष के युवक को ओरल-सबम्यूक्सफाईब्रोसिस की बीमारी है…यह गुटखे-पानमसाले के सेवन से होती है ..धीरे धीरे मुंह खुलना बंद हो जाता है और मुंह की चमड़ी बिल्कुल चमड़े जैसी सख्त हो जाती है ..और मुंह में घाव होने की वजह से खाने पीने में बेहद परेशानी होती है।
१८ वर्ष की उम्र में इस तरह के मरीज़ हमारे पास कम ही आते हैं……आते तो हैं लेकिन इतनी कम उम्र में यह कम ही आते हैं……ऐसा नहीं है कि यह बीमारी इस उम्र में हो नहीं सकती, ज़रूर हो सकती है और होती है। मैंने इसे १२ वर्षीय एक लड़की में भी देखा था जो राजस्थान से थी और बहुत ही ज़्यादा लाल-मिर्च खाया करती थीं। जी हां, यह बीमारी  उन लोगों में भी होती है जो लोग बहुत ज़्यादा लाल-मिर्च का सेवन करते हैं।
२०-२१ वर्ष के युवकों में तो यह बीमारी मैं पहले कईं बार देख चुका हूं और वे अकसर कहते हैं कि वे पिछले पांच सात वर्षों से गुटखे का सेवन कर रहे हैं। लेकिन शायद यह मेरे लिए यह पहला ही केस था कि उस युवक ने दो वर्ष ही गुटखे का सेवन किया और इस बीमारी के लफड़े में पड़ गया।
मैंने उस से दो तीन बार पूछा कि क्या वह दो वर्षों से गुटखा-पानमसाला खा रहा है, उस ने बताया कि हां, बिल्कुल, दो वर्षों से ही वह इन सब का सेवन कर रहा है। वह इंटर में पढ़ता है। बताने लगा कि दसवीं तक तो स्कूल में बड़ी सख्ती थी, हमारे स्कूल-बैग कि अचानक तलाशी ली जाती थी, इसलिए कक्षा दस तक तो इन के सेवन से बिल्कुल दूर ही रहा। लेकिन ग्याहरवीं कक्षा में जाते जाते इस की लत लग गई।
मैंने उसे बहुत समझाया कि अब इसे नहीं छूना….लगता है समझ तो गया है, वापिस पंद्रह दिन बाद बुलाया है।
दुःख होता है जब हम लोग इतनी छोटी उम्र में युवाओं को इस मर्ज़ का शिकार हुआ पाते हैं…..जैसा कि मैं पहले कईं बार अपने लेखों में लिख चुका हूं कि यह बीमारी कैंसर की पूर्वावस्था है (oral precancerous lesion)……कहने का अभिप्रायः है कि यह कभी भी कैंसर में परिवर्तित हो सकती है।
और धीरे धीरे कितने वर्षों में यह कैंसर पूर्वावस्था पूर्ण रूप से कैंसर में तबदील हो जाएगी और किन लोगों में होगी, यह कुछ नहीं कहा सकता …जैसे कि कल मैंने १८ वर्ष के युवक में इस अवस्था को देखा और कईं बार ३०-३५ वर्ष के युवाओं में यह तकलीफ़ कईं कईं वर्ष के गुटखे सेवन के बाद यह तकलीफ़ होती है, इन के लिए िकसी भी व्यक्ति की इम्यूनिटि (रोग प्रतिरोधक क्षमता), उस ने कितने गुटखे खाए, उस के खान-पान का सामान्य स्तर कैसा है…. बहुत सी बातें हैं जो यह निश्चित करती हैं कि कब कौन कितने समय में इस अजगर की चपेट में आ जाएगा।
इतना पढ़ने के बाद भी अगर किसी का मन गुटखा-पानमसाला मुंह में रखने के लिए ललचाए तो फिर कोई उस को क्या कहे…………..दीवाना और क्या!! जान के भी जो अनजान बने, कोई उस को क्या कहे, दीवाना, है कि नहीं?

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

मुंह न खोल पाना एक गंभीर समस्या...ऐसे भी और वैसे भी!


तीन चार दिन पहले मैं रेल में यात्रा कर रहा था.. एसी डिब्बे में ..लखनऊ से दिल्ली तक तो सब ठीक लगा ..लेकिन दिल्ली से आगे डेढ़ एक घंटे के सफ़र के दौरान अजीब सी बैचेनी होने लगी.. यह मेरे साथ पहली बार नहीं हुआ.. कभी कभी हो ही जाता है…अगर एसी का तापमान ठीक ढंग से सेट न किया जाए, तो अजीब सा लगता है ..आधे सिर में थोड़े थोड़े सिरदर्द से शुरू होता है … और एसिडिटी फिर इतनी बढ़ जाती है कि जब तक उल्टीयां न हो जाएं, चैन नहीं पड़ता।
बस के सफ़र के दौरान तो मोशन-सिकनैस का मैं बचपन से ही शिकार रहा हूं. लेकिन उस के लिए मैंने कुछ सालों से एक जुगाड़ सा कर लिया है.. एवोमीन (Avomine)  की एक गोली बस में चढ़ने से 30-40 मिनट पहले ले लेता हूं। और बस फिर कोई समस्या ही नहीं होती। लेिकन ट्रेन सफ़र के दौरान यह जो दिक्कत हो जाती है ..उस के लिए एक तो यह कईं बार एसी-वेसी का टैम्परेचर कंट्रोल और कईं बार मेरी बाहर कहीं भी न चाय पीने की आदत है।
घर के अलावा मैं चाय केवल वहीं पीता हूं जहां मेरा मन मानता है, वरना कहीं भी नहीं। इसलिए कईं बार चाय की विदड्रायल से भी ऐसा हो ही जाता है।
लेकिन एक बार जब इस तरह से तबीयत नासाज़ होती है तो फिर कईं कईं घंटे लग जाते हैं.. दुरूस्त होने में……..चलिए अपना दुःखड़ा रोना बंद करूं……बोर हो जाएंगे…
असली बात यह है कि उस दिन जब मैं इन उल्टीयों से परेशान था, बार बार मुंह खोल खोल कर अपनी परेशानी से निजात पाने की कोशिश कर रहा था तो मेरा ध्यान मेरी ही उम्र यानि ५०-५१वर्ष के उस बंदे की तरफ़ गया जिस का मुंह खुलना बिल्कुल बंद हो गया था।
वह मुझे मेरे एक परिचित के पास मिला था.. साथ में उस की २०-२१ वर्ष की बेटी.. हाथ में एक्स-रे एवं अन्य रिपोर्टों का थैला उठाया हुआ, साथ में ही उस की पत्नी भी थी… ग्रामीण पृष्टभूमि से …लेकिन अपने पति की तबीयत के बारे में बेहद चिंतित…हर बात ध्यान से सुनती हुई लेकिन बहुत कम बोलने वाले महिला….उस बेटी को भी अपने बापू की सेहत की बेहद चिंता थी।
इस ५० वर्षीय आदमी को हुआ यह कि यह रोज़ाना बहुत से पान-मसाले गुटखे खाया करता था …लगभग २०-२५ वर्ष से यह सब कुछ खा रहे हैं.. लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों से इन का मुंह पूरा नहीं खुल पाता था…इसलिए खाने पीने में दिक्कत होती तो थी लेकिन जैसे तैसे काम चल ही रहा था लेकिन पिछले एक सप्ताह से तो इन का मुंह लगभग खुलना बिल्कुल बंद हो गया है, बस मामूली सा खुलता है ..लेकिन इतना कि उस खुले मुंह में एक ग्लूकोज़ का पतला बिस्कुट भी नहीं जा पाए….और अगर जैसे तैसे दूध-चाय में नरम कर के अंदर धकेल भी दिया जाए तो वह उसे चबा ही न पाए।
बहुत से डाक्टरों को वे इन दिनों दिखा चुके थे .. ईएऩटी स्पैशलिस्ट, जर्नल सर्जन सभी केी पर्चियां उन के पास थीं, दवाईंयां जैसे तैसे वह मुंह में धकेल लिया करता  था…..
उस दिन जब मेरी तबीयत खराब थी तो उस बंदे की हालत का ध्यान आते ही मेरा मन दहल जाता था… जैसा कि मैंने बताया कि वह बस नाम-मात्र ही मुंह खोल पा रहा था लेकिन वह थोड़ा बहुत बोल तो पा ही रहा था ..मैं उस की बात समझ रहा था..
खाने के नाम पर पिछले सात दिनों से थोड़ा बहुत दूध, ज्यूस आदि ……चेहरा बिल्कुल खौफ़जदा पीला पड़ा हुआ.. उस की बेटी ने यह बताया कि इन्हें डर है कि मैं अगर खाऊंगा या खाने की कोशिश भी करूंगा तो मुझे उल्टी जैसा हो जाएगा और फिर उल्टी करने के लिए मेरे से मुंह खोला नहीं जायेगा तो मैं क्या करूंगा। जब मैंने भी इस बात की कल्पना की तो मैं भी कांप उठा, लेकिन मैंने उन्हें ढ़ाढ़स बंधाए रखा कि चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा। 
मेरे परिचित यह जानना चाहते थे कि क्या इन्हें टैटनस या कैंसर आदि तो नहीं है, मैंने समझाया कि नहीं टैटनस नहीं है, यह गुटखे-पानमसाले से होने वाली एक बीमारी है.. इसे सब-म्यूकस फाईब्रोसिस कहते हैं..इस में मुंह धीरे धीरे खुलना बंद हो जाता है … और मुंह की चमड़ी बिल्कुल चमड़े जैसी हो जाती है। इस व्यक्ति  के मुंह के अंदरूनी भाग बिलकुल सूखे चमड़े जैसे सख्त हो चुके थे…..मुंह के अंदर कोई औज़ार आदि डाल कर उसे देखना तक संभव न था। मुंह की इस अवस्था के बारे में मेरे कईं लेख मेरे विभिन्न ब्लॉगों ने सहेज रखे हैं।
मैंने उन सब को अच्छे से समझा दिया कि जगह जगह डाक्टरों के पास जाने की ज़रूरत नहीं है, यहां पर एक सरकारी डैंटल कालेज अस्पताल है, वहां पर एक विभाग होता है..ओरल सर्जरी .. उन के अनुभवी डाक्टरों का रोज़ का काम है इस तरह के मरीज़ों को देखना और उन की मदद करना। वे इस तरह के मरीज़ों के इलाज में सक्षम होते हैं…….वे मुंह के अंदर कुछ टीके आदि लगा कर मुंह को खोलने की कोशिश करते हैं……..फिर आप्रेशन के द्वारा मुंह के अंदर की जकड़न को मिटाने का प्रयास करते हैं। कहने का मतलब एक ओरल सर्जन (डैंटल सर्जन जिन्होंने ओरल सर्जरी में एमडीएस की होती है) ही इस का सब से बेहतर इलाज कर सकता है।
गुटखा इस बंदे ने छोड़ तो दिया है…….लेकिन इतनी देर से, यह देख कर बहुत दुःख हुआ। वैसे तो इसे कैंसर की एक पूर्वअवस्था ही कहते हैं…..(प्री-कैंसर अवस्था) …लेकिन अगर समुचित इलाज हो जाए और गुटखे पानमसाले की लत को हमेशा के लिये लत मार दी जाए तो बहुत से मरीज़ों को अच्छा होते देखा है। वरना अगर डाक्टर की बात माननी नहीं  तो इस तरह की ओरल प्री-कैसर अवस्था भी क्या किसी तरह से कैंसर से कम है?
….  न आदमी खा-पी पाए.. न ही मुंह की सफ़ाई, कुल्ला तक कर नहीं पाए, और हर समय यही टेंशन की अगर उल्टी आने को हो तो क्या होगा, यह सब कुछ सुनना क्या किसी के भी मन में इस भयानक गुटखे-पानमसाले के प्रति नफ़रत पैदा करने के लिए काफ़ी नहीं है।
अगर मेरी कही बात की कुछ भी तासीर है तो अगर इसे पढ़ कर आप में से एक ने भी गुटखे-पानमसाले से हमेशा के लिए तौबा कर ली, तो मेरी मेहनत सफ़ल हो गई, वरना मुझे तो अपना काम करना ही है…..कोई सुने या ना सुने, क्या फ़र्क पड़ता है!
यार यह क्या, पब्लिश का बटन दबाते ही ध्यान आ गया इस पोस्ट के शीर्षक का… ऐसे मुंह नहीं खुलना तो एक गंभीर समस्या है ही, तो फिर वैसे मुंह न खुलना क्या हुआ। वैसे मुंह न खुलने का मतलब यह कि अन्याय, शोषण के प्रति मुंह न खोलना…वह भी एक खतरनाक लक्षण है…..इसी की वजह से ही देश में कईं तथाकथित बाबाओं ने बच्चियों तक का शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक शोषण कर डाला …और जब एक निर्भीक परिवार की बच्ची ने मुंह खोला तो कैसे तहलका मच गया…बाबा भी अंदर, लाडला भी अंदर…….जिस तरह की करतूतों से पर्दाफाश हो रहा है आए दिन उस से तो यही लगता है कि यह खुद को बाबा कहलवाते हैं लेकिन क्या ये मानस भी हैं ?…..इतने ठाठ-बाठ से इतने ऐश्वर्य से ये भोगी बाबा क्या क्या नहीं कर डालते होंगे …ज़ाहिर सी बात है कि जो सामने आता है वह तो आटे में नमक के समान ही होता है……….और यह थी वैसे मुंह खोलने वाली बात………
अब मुझे दे इज़ाज़त….मेरा मुंह भी बार बार खुल रहा है … बड़ी बड़ी जम्हाईयों की वजह से।

सोमवार, 1 अगस्त 2011

कागज़ के पैकेट में भी आ रहा है गुटखा ..

आज अभी अभी मैंने आज की पंजाब केसरी अखबार में देखा कि यमुनानगर (हरियाणा) में एक नशीला पदार्थ खुलेआम बिक रहा है... शीर्षक भी यही था ...खुले में बिक रहा है ज़हर... जब उस समाचार को आगे पढ़ा तो पता चला कि कोई मुनक्का वटी नाम से पुड़िया या पाउच (ध्यान नहीं है क्या लिखा था) .. पान-बीड़ी-सिगरेट की दुकानों में बिक रहा है और स्कूल-कॉलेजों के आस पास जो दुकाने हैं वहां तो इन की बिक्री बहुत ज़्यादा हो रही है।

किसी को कोई पता नहीं कि इस में आखिर है क्या, लेकिन रिपोर्ट में इतना लिखा था कि इसे खाने के बाद एक अजीब सा नशा हो जाता है। पढ़ कर बेहद चिंता हुई .. यही लगा कि बस ऐसे नशों की ही खुलेआम बिकने की कमी थी, बाकी सब कुछ तो पहले ही से मिल रहा है।

यह पढ़ने के बाद मेरे से रहा नहीं गया...मैंने सोचा कि अपने पास ही के एक पनवाड़ी से पता करूं कि आखिर यह है क्या। लेकिन मेरे पूछने पर उस ने बताया कि ऐसा कुछ हमारे यहां तो बिकता नहीं। अभी मैं वहां से हटने ही लगा था कि मेरी नज़र गुटखे के बड़े बडे पैकेटों पर पड़ गई। बड़ा अजीब सा लगा।

मेरे साथ समस्या यह है कि अपने लेख लिख कर स्वयं ही भूल जाता हूं कि लिखा क्या था... कुछ दिन पहले मैंने एक लेख लिखा था कि अब गुटखे आदि प्लास्टिक के पाउच की बजाए कागज़ की पैकिंग में बिका करेंगे.. अच्छा लगा था यह पढ़ कर कि कम से कम लाखों-करोड़ों प्लास्टिक पाउचों की वजह से जो पर्यावरण को नुकसान हो रहा है वह तो कम होगा। और दूसरा यह कि अब शायद गुटखा-यूज़र इसे अपनी पैंट-शर्ट की जेब में रखने से झिझकेंगे .....जब आए दिन दाग़ वाग बीवी घिसने बैठेगी तो कलेश तो होगा ही!!

तो मैंने पनवाड़ी से पूछा कि क्या अब ये गुटखे-वुटखे कागज़ की पैकिंग में आने लगे हैं ...तो उस ने कहा ...हां, हां, अब तो लगभग सभी ब्रांड कागज़ की पैकिंग में ही आने लगे हैं, एक गुटखे का नाम उसने लिया जिस के प्रोडक्ट अभी भी प्लास्टिक पाउच में ही बिकते हैं।

हां, तो मैंने उसे एक पाउच देने के लिये कहा ...उस ने दिया तो आज पहली बार एक गुटखे को कागज़ के पाउच में देख कर बहुत खुशी हुई ... इसलिए इस ऐतिहासिक क्षण की तस्वीर भी यहां टिका रहा हूं।

लेकिन एक बात अजीब सी लगी ... जब उस ने मुझे गुटखे का यह बड़ा सा पैक दिया तो मैंने उसे कहा कि एक रूपये वाला दो ... कहने लगा कि अब एक रूपये वाला नहीं आता ...दो और पांच रूपये वाले पैकेट ही आते हैं। गुटखे का पांच रूपये वाला पैकेट जो आप यहां देख रहे हैं काफ़ी बड़ा है .. लगभग 10 सैंटीमीटर X 8सैंटीमीटर के आकार के पाउच में यह गुटखा रूपी शैतान बंद है.... बस समझने के लिये इतना ही काफी है कि जो छोटे पाउच मिलते हैं, उन चार पाउचों के बराबर की पैकिंग है इन बड़े पैकेटों की।

सोच रहा हूं कि यह बड़ी पैकिंग का कैसे ध्यान आ गया इन निर्माताओं को --- फिर लगा कि कागज की पैकिंग है, और ऊपर लिखा बी है कि Multiple use pack… अर्थात् एक ही पाउच के कंटैंट्स को बार बार खाया जा सकता है। इसी वजह से ....ताकि उन के चहेते ग्राहक को पाउच को फोल्ड कर के जेब में सहेज कर रखने में कोई असुविधा न हो, कोई आलस्य न आए।...

लेकिन फिर ध्यान आ रहा है कि जिस तरह से मैं बहुत से मोटरसाईकिल सवार युवकों को दो दो पाउच पनवाड़ी की दुकान के सामने मुंह में उंडेलते देखता हूं उन्हें तो और भी सुविधा हो जाएगी .....जैसे मोटरसाईकिल की टंकी फुल कर के चलने का अपनी ही मज़ा है, ऐसे में गुटखे को मुंह में अच्छी तरह से ठूंस कर ड्राइविंग का शायद क्रेज़ ही अलग हो। लेकिन जो भी हो, यह बड़े पाउच पहले ही से गंभीर समस्या को और भी क्रिटिकल बना सकते हैं।

यह भी समझ में नहीं आ रहा कि यह बड़े पाउच में यह गुटखा आदि चीज़े बेचना शायद उस नियम को ताक पर रखने की तैयारी हो जिस में कुछ ही महीनों में ऐसे प्रोडक्ट्स पर डरावनी तस्वीरें देखने की सारा देश बाट जोह रहा है................(कहीं हम बाट ही जोहते न रह जाएं!!).

लेकिन वो मुनक्का वटी बात तो पीछे छूट गई ... पीछे नहीं छूटी ... अब अगर पनवाड़ी कह रहा है कि हम ये नहीं बेचते ... तो मैं उस की दुकान की तालाशी लेने से तो रहा ... लेकिन लगाता हूं कि किसी की ड्यूटी उस मुनक्का वटी की एक पुड़िया मेरे सामने पेश करने की। हां, तो उस लेख में यह भी लिखा था कि उस पर यह तो लिखा है कि इस का इस्तेमाल करने से पहले आप किसी वैध की सलाह ले लें ....लेकिन यह लिखा ऐसी जगह है और इतने बारीक अक्षरों में लिखा है कि इसे कोई पढ़ ही न पाता होगा।

वैसे, इस पनवाड़ी ने मेरे से इतनी बातें कर कैसे लीं.... इस का एक राज़ है!!.....मेरा छोटा बेटा इस का पक्का ग्राहक है ...वह अपना सारा जंक फूड –क्रीम बिस्कुट, चाकलेट, चिप्स इसी पनवाड़ी से ही खरीदताLink है......थैंक गॉड, उस ने यह सब अब बहुत ही कम कर दिया है।

अच्छा सोमवार की इस आलस्य भरी सुबह में कलम को यहीं विराम देता हूं।
संबंधित लेखों का पिटारी ........ तंबाकू का कोहराम

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

तंबाकु धुएं वाला नहीं तो भी कोई बात कैसे नहीं....

एक तंबाकू जिसे चबाया जाता है, चूसा जाता है, गाल के अंदर-होठों के अंदर दबा कर रख दिया जाता है, गुटखा चबाया जाता है, खैनी खाई जाती है, मशेरी (powdered tobacco) जिसे दांतों पर घिसा जाता है, नसवार (Snuff) जो नाक से सूंघी जाती है, मसूड़ों पर लगाई जाती है... अकसर तंबाकू के ये वे रूप हैं जिन के साथ धुआं नहीं दिखता.......लेकिन कोई बात नहीं धुआं चाहे उस वक्त न दिखे लेकिन बाद में कभी न कभी तो ये सब वस्तुएं बंदे का धुआं निकाल के ही दम लेती हैं।

इस देश में हथेली में तंबाकू-चूना मसल के, और फिर उस को दाएं हाथ से छांट के जब आपस में थोड़ा थोड़ा बांटा जाता है तो राष्ट्रीय एकता का नज़ारा देखते बनता है ...लेकिन उस एकता का आचार डालें जिस में ज़हर ही बंटे।
हां, तो मुझे भी कईं बार मरीज़ पूछते पूछते झिझक से जाते हैं कि ना ना कोई बीड़ी सिगरेट नहीं, बस थोडा सा तंबाकू दिन में दो-एक बार और वह भी बस थोड़ा पेट की सफ़ाई के लिए।

अब मीडिया में इस धुएं-रहित तंबाकू के मुद्दे भी उछलते रहते हैं इसलिये लोग थोड़ा सा समझने तो लगे हैं कि इस से कैंसर –विशेषकर मुंह का कैंसर – होता है। और लगभग यह भी लोग जानते तो हैं कि इस से दांतों में सड़न होती है, मसूड़ों की बीमारी होती है और मसूड़े दांतों को छोड़ने लगते हैं। लेकिन तीन चीज़ें इस के अलावा जो लोग नहीं जानते उन्हें यहां रेखांकित किया जाना ज़रूरी है ..

1. अगर गर्भवती महिला इस तरह के तंबाकू का सेवन कर रही है तो उस में गर्भवस्था में होने वाली जटिलताओं जैसे कि शरीर में सूजन आ जाना (preeclampsia) , नवजात् शिशु का जन्म के समय वजन कम होना और समय से पहले ही बच्चा पैदा हो जाना(premature babies)

2. ऐसा भी नहीं है कि महिलाओं में तंबाकू अपने बुरे असर दिखाता है... पुरूषों में भी फर्टिलिटि से संबंधित इश्यू हो जाते हैं जैसे कि शुक्राणु का असामान्य हो जाना और शुक्राणुओं की संख्य़ा कम हो जाना।

3. और एक बहुत बड़ा पंगा यह है कि शौक शौक में चबाया जाने वाला तंबाकू वाला पान, खैनी, गुटखा, नसवार (creamy snuff) ...धीरे धीरे फिर यह बंदे को सिगरेट-बीड़ी की तरफ़ ले ही जाता है क्योंकि अगर कोई बिना धुएं वाला तंबाकू ही इस्तेमाल कर रहा है फिर भी उस में निकोटीन होने की वजह से इस की लत लगना तो लाजमी है ही।

हमारे देश में इस धुएंरहित तंबाकू की समस्या बहुत विकराल है। महिलाएं भी गांवों में बिंदास तंबाकू चबाती हैं ...किसी भी रूप में ...चाहे पान में डाल कर, चाहे पावडर-तंबाकू को दांतों पर घिस कर ..या फिर तंबाकू वाली पेस्टें मसूड़ों एवं दांतों पर घिस घिस कर मुंह के कैंसर को बुलावा दे बैठती हैं।

इस हैल्थ-टिप --- Smokeless Tobacco Isn’t a Safe Alternative…जो आप तक अमेरिका की सरकारी संस्था –सैंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल के सौजन्य से प्राप्त हो रही है, इस में लिखा एक एक शब्द आप कह सकते हैं पूर्णतया तथ्यों एवं सत्य पर आधारित होता है.... नो तीर, नो तुक्का, प्लेन सच।

आज कल अमेरिका जैसे देशों में भी स्मोकलैस तंबाकू काफी चलने लगा है... विशेषकर युवा वर्ग और खिलाड़ी इस स्मोक-लैस (धुएं रहित तंबाकू) तंबाकू का सेवन नसवार के रूप में करते हैं......इसलिये वहां पर किसी भी हालत में इस व्यसन को आगे नहीं बढ़ने के लिये सरकार कृत्त-संकल्प है ..........बिल्कुल जैसे हमारे यहां है.....क्या कहा? ..मुझे सुना नहीं .... नहीं, नहीं, आप यह कैसे कह सकते हैं कि हम लोग इस लत को जड़ से उखाड़ फैंकने के लिये कृत्त-संकल्प नहीं हैं, अरे यार, हम लोग कितने कितने वर्ष इन के पैकेटों पर दी जाने वाली डरावनी तस्वीरों पर राजनीति करते हैं !!

तंबाकू से संबंधित लेखों का पिटारा यह है .....तंबाकू का कोहराम

शनिवार, 23 जुलाई 2011

अब तंबाकू की साधारण पैकिंग करेंगी जादू






आस्ट्रेलिया को इस बात की बधाई देनी होगी कि वह पहला ऐसा देश बन गया है जिस ने ऐसा कानून बना दिया है कि सभी तंबाकू प्रोडक्ट्स को बिल्कुल प्लेन पैकिंग (plain packaging) कर के ही बेचा जाए.... कोई ट्रेडमार्क नहीं, मार्केटिंग की और कोई चालाकी भी नहीं होगी अब इन पैकेटों पर।

इस में कोई दो राय हो ही नही सकती कि अगर तंबाकू प्रोड्क्ट्स की पैकेजिंग बिल्कुल प्लेन –साधारण, बिना तड़क-भड़क वाली कर दी जायेगी तो बेशक यह जनता के हित में ही होगा। और अगर पैकिंग ही बिल्कुल सीधी सादी होगी तो उस पैकिंग पर दी जाने वाली सेहत संबंधी चेतावनियों का असर भी ज़्यादा पड़ेगा ...और पैकेट पर ट्रेड-वेड मार्क न होने से यह जो Surrogate Advertising का गंदा खेल चल निकला है उस पर भी काबू पाया जा सकेगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात को जोर से कहना शुरू कर दिया है कि तंबाकू के विरूद्ध छिड़ी जंग में इस की पैकिंग का बहुत महत्व है। और जैसे विभिन्न देश तंबाकू के ऊपर तरह तरह का शिकंजा कस रहे हैं, परचून में बिकने वाले तंबाकू की पैकिंग (retail package) प्रोडक्ट्स और प्रोफिट के बीच एक अहम् लिंक बन चुकी है। इसलिये अन्य देशों से यही गुज़ारिश की जा रही है कि वे भी अपने लोगों की सेहत के लिये प्लेन-पैकेजिंग को ही शुरू करें।

अनुमान है कि भारत में 35 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं। तंबाकू के उत्पादों पर ऩईं ग्राफिकल चेतावनियों का मामला दिसंबर 2011 तक तो ठंडे बस्ते में ही पड़ा हुआ है। काश, इस के साथ कुछ ऐसा पैकिंग को बिल्कुल फीका, नीरस करने का भी कुछ आदेश आ जाए.... कोई बात नहीं, दुआ करने में क्या बुराई है!

बहुत बार ऐसा भी होता है कि पैकिंग जिस रंग में होगी, उस से ही लोग अनुमान लगा लेते हैं कि यह उन की सेहत के लिये कैसा है, जैसे कि सिगरेट पैकेट के ऊपर हल्के रंग होने से उपभोक्ता समझने लग जाते हैं कि यह प्रोडक्ट भी हल्का-फुल्का ही होगा, इसलिए सेहत के लिये भी कुछ खास खराब नहीं होगा।

लेकिन आस्ट्रेलिया ने ऐसा शिकंजा कसा है इन शातिर मार्केटिंग शक्तियों पर कि वहां पर उन्होंने यह भी तय कर दिया है कि कौन से कलर पैकेट की सभी साइड़ों के लिये इस्तेमाल किये जाएंगे और उन की फिनिश कैसी रहेगी। ...... Great job, Australia! … an example that world should follow!! …

भारत में भी इस तरह के पैकिंग नियम बनाये जाने की सख्त ज़रूरत है लेकिन यह ध्यान रहे कि कहीं चबाने वाला तंबाकू इन नियमों की गिरफ्त से न बच पाए क्योंकि वह भी इस देश में एक खतरनाक हत्यारा है।

पैकिंग से दो बातों का ध्यान आ रहा है ... अमृतसर में डीएवी स्कूल हाथी गेट के पास ही एक तंबाकू वाली दुकान थी .. हम लोग पांचवी छठी कक्षा में उस के सामने से गुज़रते थे तो हमारी हालत खराब हो जाय़ा करती थी ... हमें यह भी नहीं पता होता था कि यहां बिकता क्या है, बस बड़े बड़े गोल गोल काले धेले (यह पंजाबी शब्द है, मुझे पता नहीं हिंदी में इसे क्या कहते हैं) दिखा करते थे ..और हमें वहां से गुज़रते वक्त अपने नाक पर रूमाल रखना पड़ता था। बाद में चार पांच साल बाद पता चला कि यहां तो तंबाकू बिकता है ..हम लोग उस दुकान के आगे से ऐसे बच के निकलते थे जैसे वह अफीम बेच रहा हो ....बस, ऐसे ही तंबाकू की जात से ही नफ़रत हो गई। आज सोचता हूं तो समझ में आता है वह तंबाकू हुक्का पीने वाले खरीद कर ले जाते होंगे।

और दूसरी बात, लगभग दस साल पहले जोरहाट आसाम में एक नवलेखक शिविर में शिरकत करने गया .. वहां पर गुटखे के पैकेट सड़कों पर ऐसे बिछे देखे जैसे किसे ने चमकीली चटाई बिछा दी हो ...और पैकिंग बहुत आकर्षक ...मैंने वहां बिकने वाले लगभग 40-50 ब्रांड के गुटखे खरीदे ...उन की पैकिंग पर एक स्टडी की ... प्रकाशित भी हुई थी .... पैकिंग इतनी शातिर, इतनी चमकीली की गुटखे पर लिखी चेतावनी की तरफ़ पहले तो किसी का ध्यान जाए ही नहीं और अगर चला भी जाए तो कोई उसे पढ़ ही न पाए.... किसी किनारे में छुपा कर लिखा हुआ.... और अधिकांश पैकेटों पर इंगलिश में। काश, कोई इनको भी पैकिंग की सही राह दिखाए ......चलिये, आज आस्ट्रेलिया ने पहल तो की है, देखते हैं आगे आगे होता है क्या !!
कभी इधर भी नज़र मारिए ...
तंबाकू का कोहराम

बुधवार, 4 मई 2011

यह कैसा स्मोकिंग बैन हुआ!

आज पता चला कि चीन में जितने स्मोकर हैं उतने किसी देश में भी नहीं.... थोड़ा सा इत्मीनान हुआ कि चलो इस काम में तो हम अभी पीछे हैं। हां, तो खबर थी कि चीन में स्मोकिंग पर बैन तो लग गया है लेकिन स्मोकिंग करने वाले को किसी दंड की बात नहीं कही गई है।

और एक बात, स्मोकिंग को रेस्टरां, होटलों, पब्लिक जगहों पर तो बैन किया गया है (वह भी बिना किसी दंड के!!) लेकिन दफ्तरों में ऐसा कोई बैन नहीं लगाया गया है। बड़ी हैरानी सी हुई यह पढ़ कर ...और अगर बीबीसी साइट पर यह लिखा है तो खबर विश्वसनीय तो है ही।
  
The new rules prohibit smoking in places like restaurants, hotels, railway stations or theatres, but not at the office.    ......BBC Story... China Ban on Smoking in Public Places
यह खबर पढ़ कर इत्मीनान तो आप को भी होगा कि चलिये कुछ भी हो, कुछ स्मोकिंग करने वाले लोग ढीठ किस्म के हों, हट्ठी हों, अड़ियल हो, गुस्सैल हों, और चाहे अक्खड़ ही क्यों न हों, जिन्हें आप अपनी जान की सलामती की परवाह किये बिना स्मोकिंग न करने का मशविरा देने की हिम्मत न जुटा पाते हों, लेकिन एक बढ़िया सा कानून तो है जिस के अंतर्गत ज़ुर्माने आदि का प्रावधान तो है, इस से ज़्यादा जानकारी इस कानून के नुकीले दांतों के बारे में मुझे भी नहीं है।

बीबीसी की इस स्टोरी में यह भी लिखा है कि किस तरह चीन के लोग स्मोकिंग के दुष्परिणामों से अनभिज्ञ हैं, वैसे यह बड़ी ताजुब्ब की बात है कि रेस्टरां, होटल में कोई खाना खा रहा है तो साथ वाले टेबल पर कोई सिगरेट फूंके जा रहा है जिस का धूंआ आप को परेशान कर रहा है। कम से कम मुझे यह सब भारत में तो देखने को नहीं मिलता। और वहां चीन में रेस्टरां वालों का कहना है कि वे किसी को सिगरेट सुलगाने के लिये मना भी नहीं कर सकते क्योंकि लोग बुरा मान जाते हैं।

और एक मजबूरी चीन में यह है कि वहां पर सिगरेटों का सारा धंधा एक सरकारी कंपनी के ही पास है जिससे सरकार को बेशुमार फायदा होता है .....अब समझ में बात आई कि स्मोकिंग का कानून तो बन गया है लेकिन दंड का प्रावधान नहीं है।

लेकिन सोच रहा हूं कि इस खबर से मैं क्यों इतना इतरा रहा हूं ...अगर हमारे यहां पर पब्लिक जगहों पर स्मोकिंग करने पर बैन है और इस के लिये जुर्माने आदि का भी प्रावधान है और शायद कुछ दंड का भी ...देखिये मेरा जी.के कितना खराब है, कि कानून का ठीक से पता ही नहीं है, कुछ लिखा तो होता है अकसर इन सार्वजनिक जगहों पर जहां कुछ बीड़ीबाजों के सिर के ऊपर एक तख्ती सी टंगी तो रहती है कि यहां धूम्रपान करने पर इतने रूपये का जुर्माना लगाया जायेगा और ,...........कुछ ध्यान में आ नहीं रहा। लेकिन इन लोगों को स्मोकिंग करने से रोकने के कुछ अपने अनुभव मैं अपने पुराने लेखों में लिख चुका हूं।

अब मैंने तो स्मोकिंग के विरूद्ध जंग का एक नया रास्ता अपना लिया है, अपने मरीज़ों को तो बीडी-सिगरेट-तंबाकू के खिलाफ़ बताता ही हूं लेकिन उस के मन में यह भी अच्छी तरह से डाल देता हूं कि काम करने वाली जगह पर जो तुम्हारा साथी बीड़ी फूंकता रहता है वह भी तुम्हारे लिये बड़ी नुकसानदायाक है, नुकसान केवल कश खींचने वाले तक ही महदूद नहीं है, यह धुआं जिधर भी जायेगा बीमारी ही पैदा करेगा।

इस लेख को समाप्त करते वक्त उस गीत का ध्यान आ गया .......अल्ला करम करना......