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शनिवार, 30 जुलाई 2011

नहाने वाले पावडर (Bath salts) पर क्यों हो रहा है हंगामा

Bath Salts का अगर हिंदी में अनुवाद करना हो तो यही तो कहेंगे--- नहाने वाले पावडर या फिर बिल्कुल देसी भाषा में नहाने वाले मसाले। सुना तो मैंने इन के बारे में बहुत बार था ...लेकिन कभी विस्त्तृत से इन के बारे में जानने की कोई कोशिश नहीं की। याद आ रहा है कि जहां पर भी इन के बारे में पढ़ा बड़ा नैगेटिव सा पढ़ा जैसे कोई इन्हें इस्तेमाल कर के बहुत बुरा काम कर रहा है। जो भी हो, मेरी सोच यही थी कि ये bath salts कुछ पावडर-वाउडर होंगे जो बाहर देशों में नहाने के समय पानी में डाल लेते होंगे। लेकिन मेरा अनुमान केवल आंशिक रूप तक ही सही था, इस की थोड़ी चर्चा करते हैं।

आज सुबह भी जब मैं न्यू-यार्क टाइम्स देख रहा था तो फिर एक बार कुछ ऐसी खबर दिखी कि बॉथ-साल्ट के ऊपर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। सुबह समय मेरे पास कम था लेकिन मैंने सोचा कि आज तो इन के बारे में जानना ही होगा कि इन के इस्तेमाल का आखिर लफड़ा है क्या। मैंने तभी गूगल बंधु की सहायता से इस के बारे में जानना चाहा।

मैं बहुत खुश हुआ कि मेरा अनुमान सही निकला कि यह तो बस कुछ साल्ट हैं जिन्हें नहाते समय पानी में मिला कर ताज़गी का अहसास हो जाता है, स्फूर्ति सी महसूस होने लगती है। इस के बारे में और पढ़ कर पता चला कि ये समुद्र से प्राप्त होने वाले साल्ट हैं (‌sea salts) हैं....और अगर ये शुद्ध रूप में मिलते हैं तो ताज़गी का अहसास होता है, नहाने वाला हल्कापन महसूस करता है...नहाने समय इस पावडर की केवल एक चुटकी ही काफ़ी है.....और बताया गया था कि अगर इस को किसी तरह से मार्कीट में मॉडीफाई किया जाता है तो इस के बहुत से गुण नष्ट हो जाते हैं।

लेकिन मेरी उत्सुकता बढ़ रही थी ....भला ऐसी छोटी मोटी चीज़ को प्रतिबंधित किये जाने का क्या फितूर है? लेकिन एक दो पन्ने देखने पर सारी बात समझ में आ गई।

हां, तो bath salts (बॉथ-साल्ट) जिन पर प्रतिबंध लगाने की बात की जा रही है उस का इन नहाने वाले बाथ-साल्ट (जो कि समुद्री साल्ट है) से कोई संबंध नहीं है।

बाथ-साल्ट के नाम से दरअसल कुछ नशे मिलते हैं ... और ये पावडर एवं क्रिस्टल रूप में बिकने वाले नशे समुद्री साल्ट (बाथ साल्ट) की तरह दिखते हैं इसीलिये इन्हें बॉथ-साल्ट कह दिया जाता है .....एक बहुत ही भयानक तरह की नशा है..इस नशे को अधिकतर ऑन-लाइन खरीदा जाता है –इस का इंजैक्शन लगाया जाता है, या तो इसे किसी सिगरेट आदि में डाल के पी लिया जाता है(smoking) ..या फिर इसे नसवार की तरह सूंघ कर ही काम चला लिया जाता है।

बाथ-साल्ट नामक नशे में भयानक साल्ट – Mephedrone एवं methylenedioxypyrovalerone (MDPV) होते हैं और इन के इस्तेमाल से नशा इतना गहरा होता है कि आदमी बिल्कुल अजीबो-गरीब हरकतें करना लगता है, उसे यह लगने लगता है कि कोई उसे मार देगा या बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा देगा (paranoid symptoms) ....बिल्कुल अजीबो गरीब हरकतें ....और इन की वजह से इन्हें एमरजैंसी विभागों में लेकर जाना पड़ता है।

तो एक बात अब समझ में आ गई कि यह जो बाथ-साल्ट हैं इन में आदमी के बनाए हुये कैमीकल(रासायन) मौजूद रहते हैं -- Mephedrone एवं methylenedioxypyrovalerone (MDPV) जिन का प्रभाव बिल्कुल ख़त के पत्तों जैसा होता है ...अब यह ख़त के पत्ते किस बला का नाम है, इसे जानने के लिये मेरे इस लेख पर चटका लगाएं।

यह बाथ-साल्ट बहुत महंगे मिलते हैं ... 50 मिलीग्राम (एक ग्राम का बीसवां हिस्सा) 25 से 50 यूएस डालर में मिलता है... पहले यह नशा ब्रिटेन में खूब चलता था लेकिन वहां पर इस पर प्रतिबंध 2010 में लगा दिया गया था .... बस ज़रा ठहरिये ... किसी ऐसी वैसी बात में हम कैसे पीछे रह जाएं ... विशेषज्ञों का कहना है कि इन बाथ-साल्टों की अधिकतर सप्लाई चीन एवं भारत से आती है क्योंकि वहां पर कैमीकल बनाने वाली फैक्टरियों के ऊपर सरकारी निगरानी इतनी पुख्ता नहीं है ... यह मेरी स्टेटमैंट नहीं है ...न्यू-यार्क टाइम्स के इस लेख में ऐसा ही कुछ लिखा है।

बात एक और भी है, अधिकतर सप्लाई चीन और भारत से जाए और यहां के बशिंदे इस से महरूम रह जाएं ....लगता नहीं ना ऐसा हो सकता है ....तो फिर का मतलब यह कि ये सब नशे इस देश में भी इस्तेमाल तो ज़रूर होते होंगे ....किसी दूसरे नाम से .... कभी यह बाथ-साल्ट नाम पहले नहीं सुना.....लेकिन नशा करने वालों को नाम से क्या लेना देना, नाम में रखा ही क्या है। खैर, मेरा काम था आगाह करना और इस बाथ-साल्ट की मिस्ट्री को हल करना..................ये नशीले बाथ-साल्ट नहाने वाले बेकसूर बाथ-साल्ट से बिलकुल अलग हैं, दूर दूर से भी कुछ भी लेना देना नहीं।

सोमवार, 18 जुलाई 2011

ड्रग्स खिलाने-पिलाने-सुंघाने के बाद होने वाले बलात्कार

अकसर हम लोग इलैक्ट्रोनिक मीडिया में देखते ही रहते हैं कि विभिन्न शहरों में सारी सारी रात चलने वाली रेव-पार्टीयों के दौरान पुलिस ने छापा मारा और वहां से ड्रग्स भी मिले। और अकसर ऐसा होता है कि जब ड्रग्स की बात चलती है तो हम यही सोच लेते हैं कि होंगी ये वही ड्रग्स जो इंजैक्शन की मदद से नशा करने वाले लेते हैं ...हम ऐसा सोचते हैं कि नहीं?

एक दिन खबर दिखती है ...और फिर हमेशा के लिये गायब....कारण बताने की क्या ज़रूरत है, सब जानते ही हैं।
लगभग दस दिन पहले मैं मैडलाइऩ-प्लस पर मैडीकल समाचार देख रहा था ... वहां पर एक खबर दिखी की कैटामीन ड्रग के इस्तेमाल से इस का नशा करने वाले लोगों में पेशाब से संबंधित कईं पेचीदगीयां हो जाती हैं... यहां तक की urinary incontinence अर्थात् पेशाब अपने आप निकलने जैसे नौबत भी आ जाती है...पेशाब रोक पाने के ऊपर कंट्रोल सा खत्म हो जाता है।

हां तो मैंने इस खबर को इतना तूल दिया नहीं ...कारण यही कि मुझे यह लगा कि यह तो अमीर देशों के बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं, इस का भारत जैसे देश से कोई इतना लेना देना नहीं ....और मैं आगे कुछ और पढ़ने में व्यस्त हो गया। यहां यह बताना ठीक होगा कि कैटामीन नामक दवाई है जो आप्रेशन के पहले अनसथीसिया (anaesthesia – निश्चेतण) करने के काम आती है। मुझे याद है हम ने भी इस दवाई के प्रभाव में कईं आप्रेशन होते देखे हैं। वही तस्वीर मन में थी कि कौन इस तरह की दवाई (जो कि विशेषज्ञ ही इस्तेमाल करते हैं आप्रेशन के लिये) को दुर्प्रयोग करने का जोखिम लेता होगा।

लेकिन कल ही की बात है कि मैंने जब इन्हीं सब ड्रग्स के नाम टाइम्स ऑफ इंडिया के रविवारीय परिशिष्ट देखते हुये एक आर्टीकल में देखे – A Party Evil तो मुझे बेहद हैरानगी हुई कि अपने देश में भी ये सब दवाईयां कुछ नाइट-क्लबों, पबों आदि में किस बिंदास अंदाज़ में इस्तेमाल की जा रही हैं।

चलिये, इन दवाईयों के नामों के चक्कर में क्या पड़ना, बस इतना ही काफ़ी है कि इस तरह की ड्रग्स को डेट-रेप ड्रग्स कहा जाता है। लड़का-लड़की कहीं बाहर घूमने गये ---नाइट-क्लब, डिस्को, पब आदि में या किसी रेव-पार्टी के दौरान किसी तरह से इस तरह की दवाईयां लड़की की ड्रिंक्स (hard drink or soft drink) में मिला दी जाती हैं ....उस ड्रग के प्रभाव से लड़की बिल्कुल बदहवास सी, बेसुध सी, न बेसुध ना होश में वाली स्थिति... बेहाल सी महसूस करने लगती है, यादाश्त कमज़ोर होने लगती है और फिर जब तक उस दवा का असर रहेगा उस के साथ क्या क्या हुआ उसे कुछ भी ध्यान न होगा ....और अगर कुछ पता भी हो तो वह शर्म की वजह से किसी से कुछ कहेगी भी नहीं। और इस दवाई के प्रभाव में लड़कियां अपने आप को इतना कमज़ोर-बेबस सा हो जाती हैं कि वे चाह कर भी किसी तरह का विरोध नहीं कर पातीं--- और बस शैतान का काम आसान!!

युवा पाठकों को इन सब खतरों से सजग करने के लिये टाइम्स ऑफ इंडिया का यह आर्टीकल बिल्कुल ठीक है। लफड़ा इन दवाईयां का सब से बड़ा यह भी है कि न तो इन का कोई रंग होता है, न ही कुछ इन की गंध ही होती है और न ही इन का कोई स्वाद ही होता है, इसीलिये जब कोई शैतान इन को किसी ड्रिंक्स में मिला कर किसी लड़की को पिला देता है तो उसे इस का पता ही नहीं चल पाता।

एक दो बातें उस आर्टीकल में यह भी लिखी हुई थीं कि लड़कियों को चाहिये कि इस तरफ़ ध्यान दें कि अपनी ड्रिंक्स को ऐसी जगहों पर अकेले मत छोड़ें और अगर वाश-रूम में भी जाएं तो अपनी ड्रिंक को खत्म कर ही लें....और तो और किसे के साथ अपनी ड्रिंक्स शेयर न करें.... और भी एक बात कि अगर ऐसी जगहों पर कोई ऐसा मित्र साथ हो जो ड्रिंक्स न लेता हो तो ठीक है। बात कुछ जमी नहीं ...मुझे भी ठीक लगी नहीं ... इतना अविश्वास हो अगर किसी के ऊपर लेकिन फिर उस के साथ नाइट-लाइफ का अनुभव लेना है तो फिर तो कभी भी कुछ भी हो सकता है क्योंकि शातिर किस्म के लोगों की सोच ऐसे लेख लिखने वालों से फॉस्ट चलती है।

हां, तो कैटामीन से बात शुरू की थी .. अभी हाल ही में मुंबई से साढ़े तीन करोड़ की यह दवाई पकड़ी गई है ... आप्रेशन करने से पहले तो इस का टीका लगाने की एक विशेष विधि/मॉनीटरिंग होती है .. लेकिन इस का खुराफाती इस्तेमाल करने के लिये कैसे भी इस को इंजैक्ट कर दिया जाता है ...यहां तक कि इसे snort –सुंघवा दिया जाता है और असर होने लगता है।

यह लेख लिखते समय यही ध्यान आ रहा है कि हम लोग जा कहां रहे हैं......सब कुछ ज़्यादा ही फॉस्ट नहीं हो गया? ...और इसीलिये हादसे ही हादसे दिखते रहते हैं। यह लेख भी देखने योग्य है कि किस तरह से मौज-मस्ती के लिये इस तरह से किया जाने वाला ड्रग्स का दुरूपयोग एड्स जैसे रोगों को भी आमंत्रण दे सकता है।

रविवार, 10 जुलाई 2011

डोपिंग के कुछ अनछुए पहलू

कुछ दिनों से खूब सुन रहे हैं किस तरह से कुछ खिलाड़ीयों का डोप टैस्ट पॉजीटिव आया है। अफरातफरी में राष्ट्रीय खेल संस्थान के बाहर कैमिस्टों पर छापे मारे गये, प्रतिबंधित दवाईयां पकड़ी गईं ...रिकार्डों में भी गड़बड़ थी, और प्रिंट मीडिया में इस बात का भी खुलासा किया गया कि वहां से बिना डाक्टरी नुस्खा के ही कोई भी दवाई खरीदी जा सकती है।
चलिये थोड़े दिनों की बात है..धूल नीचे बैठ जायेगी...और हमारी यादाश्त वैसी भी कोई विशेष तेज़ तो है नहीं ---अब इस देश का आमजन किस किस तरह के आंकड़े याद रखे ... थोड़ी ही दिनों में वह किसी और घोटाले के चटखारे लेने लगेगा, ऐसे में कहां यह डोपिंग वोपिंग वाली बात किसी को याद ही रहने वाली है।
लेकिन असल मुद्दा यह है कि क्या इस तरह की दवाईयां केवल पटियाला के इस संस्थान के बाहर कैमिस्टों की दुकानों से ही मिलती हैं.... इस बात पर लगता है कि कोई यकीन करेगा ? --- इस देश में कहीं से भी कुछ भी खरीद लो...बस तमाशा देखने के लिये पैसा फैंकने की ज़रूरत है।
दो एक दिन पहले मुझे सायना नेहवाल की एक बात जो मैंने पेपर में देखी, वह मुझे बिल्कुल ठीक लगी। वह कह रही थी कि कुछ खिलाड़ी इतने पढ़े लिखे हैं नहीं ...इस वजह से वे इस सारी बात को अच्छी तरह से समझ ही नहीं पाते। उन्हें इस बात का आभास तक भी शायद नहीं होता होगा कि वे जिन सप्लीमैंट्स को ले रहे हैं उन में किस तरह के प्रतिबंधित साल्ट मिले हुये हैं।
जो भी हो, खिलाडि़यों को इन सब बातों का पूर्ण ज्ञान तो दिया ही जाना चाहिये.... लेकिन डोपिंग के ये कुछ किस्से तो सारे देश के सामने आ जाते हैं लेकिन जो डोपिंग इस देश के हर शहर में, हर गांव में हो रही है उस का कोई क्या करे।
आज का युवा एवं युवतियां सुडौल शरीर के लिये जो तरह तरह के सप्लीमैंट्स कैमिस्टों से खरीद लाते हैं उन में ये सब लफड़े वाली दवाईयां मिली रहती हैं ---और यह धंधा करने वाले इतने बेखौफ़ हैं (यह हर कोई जानता है कि इस बेखौफ़ी के पीछे क्या राज़ है !!) कि अधिकतर सप्लीमैंट फूड्स पर इन साल्टों के बारे में कुछ भी लिखा ही नहीं होता। इसलिये युवा वर्ग अंधेरे में ही ये सब खाता रहता है।
इस सब प्रतिबंधित पदार्थों के बहुत नुकसान हैं ---- कुछ ही दिनों में मांसपेशियां सुडौल हो जाएं केवल यही न देखा जाए... ये दवाईयां ऐसी होती हैं जिन्हें किसी प्रशिक्षित चिकित्सक के नुस्खे के बिना खाना खतरा मोल लेने जैसा है।
ये जिम वाले भी जो पावडर- वाउडर एक्सरसाईज़ करने वालों को थमा देते हैं इन में भी इन्हीं ऐनाबॉलिक स्टीरायड्स की मिलावट तो रहती ही है। मैं इतनी बार अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की साइट पर इस तरह की चेतावनियां पढ़ चुका हूं कि मुझे यही लगने लगा है कि अगर अमेरिका जैसे देश में यह सब बार बार सामने आता रहता है तो हम लोग तो इस के बारे में चुप ही रहें तो बेहतर होगा-- यहां तो कुछ भी बिकता है, बस थोड़ी बहुत इधर-उधर सैटिंग करने की बात है !!
इस पोस्ट के माध्यम से जो बात रेखांकित की जा रही है कि डोपिंग के मामले केवल वही नहीं हैं जो मीडिया हमारे सामने ले आता है -- शायद हज़ारों-लाखों किस्से इन सप्लीमैंट्स के कारण देश में हो रहे होंगे --- शायद कोई मैडल वैडल जीतने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि खिलाड़ियों की सेहत ठीक रहे ... क्योंकि बार बार अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन भी चेता दिया करती है कि प्रतिबंधित दवाईयों का बेरोकटोक इस्तेमाल ख़तरों से खाली नहीं है। और झोलाछाप डाक्टर भी इस तरह के धंधों में तबीयत से चांदी कूटे जा रहे हैं !!

मंगलवार, 1 मार्च 2011

नेपाल में साधु न बेच पाएंगे भांग

नेपाल में साधू कल शिवरात्रि के अवसर पर भांग न बेच पाएंगे... कल शिवरात्रि के अवसर पर हज़ारों साधू नेपाल के सुप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर पर इक्ट्ठा होंगे। भारत से भी बहुत से साधू वहां पहुंच रहे हैं।

साधुओं के द्वारा भांग पर लगी बिक्री के सिलसिले में कुछ साधुओं को तो अंदर कर दिया गया है और कुछ पर नज़र रखी जा रही है।

भांग के पकौड़े शिवरात्रि एवं होली के अवसर पर खूब चलते हैं ---हर बार इन के खाने से कईं हादसे होते हैं जिस कारण बहुत से लोगों को अस्पताल में भरती भी करवाना पड़ता है। तबीयत बिगाड़ने के लिये मैंने सुना है कि एक पकौड़ा ही काफ़ी है।

होली के अवसर पर तो लोग मस्ती में इस तरह की चीज़ें खाते हैं ... कईं बार कुछ यार दोस्त मज़ाक में इस तरह की चीज़ें खिला देते हैं जिस की वजह से अचानक तबीयत बिगड़ जाती है।

आज एक व्यक्ति बता रहा था कि खाते वक्त पता नहीं चलता, आम पकौड़ों की तरह ही होते हैं ये भांग के पकौड़े भी ...लेकिन कुछ समय बाद ही नानी याद आने लगती है, खाने वाले को तो शायद उतनी नहीं, जितनी उस के मित्रों एवं परिवारजनों को।

मैंने तो आज तक कभी भांग के ना ही तो पकौड़े खाये हैं और न ही भांग ही पी है ... बस अपना काम इस गीत को सुन कर ही चलाया है .......आप ने क्या सोचा है ?
Source : Nepal sadhus banned from selling cannabis at temple 







गुरुवार, 13 मई 2010

बैनाड्रिल क्रीम खा लेने से हो गई आफ़त

समझ में नहीं आता कि बैनाड्रिल क्रीम को कैसे कोई खा सकता है --- लेकिन कुछ लोगों ने इस तरह की हरकत की होगी या गलती से उन से हो गई होगी जैसा कि इस रिपोर्ट में कहा गया है तभी तो अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने जनता को आगाह किया है कि खारिश-खुजली के लिये बाज़ार में उपलब्ध बैनाड्रिल क्रीम को अगर निगलने की कोशिश की जाएगी तो परिणाम भयंकर निकल सकते हैं। क्योकि बैनाड्रिल नामक दवाई का इस तरह से इ्स्तेमाल करने से बहुत मात्रा में डाइफैनहाइड्रामिन नामक साल्ट शरीर में पहुंच जाता है जिस से बेहोशी, और दिमाग में अजीबो-गरीब विचार आने शूरू हो जाते हैं ---- it can lead to confusion, hallucinations and unconsciousness.

एफ डी आई ने ऐसे केसों को संज्ञान में लेते हुये यह चेतावनी जारी की है ---दरअसल बैनाड्रिल नामक दवाई की टेबलैट्स आदि तो निगलने /खाने (to be taken orally) के लिये होती हैं लेकिन अगर गलती से भी चमड़ी पर लगाई जाने वाली बैनाड्रिल क्रीम को निगल लिया जाये (यह कैसे हो सकता है, मेरी समझ में नहीं आया, क्योंकि अकसर लोग क्रीम कहां "खाते" हैं ---और मुंह के अंदर भी कोई क्रीम आदि लगाने से पहले अच्छी तरह से आश्वस्त हो लेते हैं कि यह मुंह में लगाने के लिये ही है ना----ऐसे में पढ़े-लिखे लोगों द्वारा इस तरह की गलती होना----- बात हजम तो नहीं हो रही, लेकिन हां अगर कोई इस तरह की हरकत जान-बूझ कर करने के लिये तुला हो तो उस के कोई क्या करे।

चलो, दूर देश की बात हो गई --अपने यहां तो और भी विषम समस्यायें हैं---अधिकांश लोग अंग्रेज़ी पढ़ना जानते नहीं हैं लेकिन दवाईयों की सभी स्ट्रिपों, टयूबों की डिब्बीयों एवं बोतलों आदि पर सब कुछ अंग्रेज़ी में ही लिखा रहता है, क्या हुआ अगर कभी कभी हिंदी में लिखे कुछ नाम दिख जाएं।

यह तो बात हम सब लोग मानते ही हैं कि ये नाम केवल अंग्रेज़ी में ही लिखे होने के कारण कईं हादसे तो होते ही हैं----और जितने हादसे हमारे यहां होते होंगे उन में से एक फीसदी भी प्रकाश में नहीं आते होंगे क्योंकि हमारे यहां ऐसा कुछ सिस्टम है ही नहीं कि इस तरह के आंकड़े नेशनल स्तर पर या राज्य स्तर पर इक्ट्ठे किये जाएं। लोगों को भी मजबूरी में सब कुछ चुपचाप भुगतने की हम सब ने लत सी डाल दी है।

कुछ इसी तरह की गलतियां जो अकसर लोग करते हैं इन का उल्लेख भी करना उचित जान पड़ता है।

----डिस्प्रिन की गोली है ---उसे केवल हमें पानी में घोल कर ही लेना हितकर होता है ---लेकिन बहुत बार लोग उसे भी थोड़े से पानी के साथ निगल कर ले लेते हैं --इस से पेट की अंदरूनी झिल्ली (mucous membrane of the stomach) को नुकसान पहुचने का डर रहता है।

और तो और, मैंने देखा है कि कुछ लोग दर्द के लिये ली जाने वाली टैबलेट को पीस कर दांत के दर्द से निजात पाने के लिये मुंह में रख लेते हैं। इस से दांत दर्द तो ठीक होना दूर, बल्कि मुंह में कईं घाव हो जाते हैं जिन्हें ठीक होने में कई कई दिन लग जाते हैं।

---- मैडीकल फील्ड में हैं तो सभी लोगों से मिलना होता है, सब की बातें सुनते हैं तो ही पता चलता है कि कहां क्या चल रहा है। कुछ लोगों में अभी भी यह भ्रांति है कि उन्हें शरीर में जो कमज़ोरी किसी भी तरह से महसूस सी हो रही है, उस के लिये उन्हें या तो दो-तीन ग्लूकोज़ की बोतलें चढ़ा दी जाएं तो वे फिट हो जाएंगे --क्योंकि वे हर साल यह काम करवा लेते हैं। और तो और, कईं तो यह भी कहते हैं कि चढ़ाई चाहे न भी जाएं, अगर वे एक-दो ग्लुकोज़ की बोतलें पी भी लेंगे तो एक दम चकाचक हो जाएंगे। उन्हें यह समझने की ज़रूरत है कि अगर ऐसी ही बात है तो वे बाज़ार से गुलकोज़ पावडर लेकर पानी में घोल कर क्यों नहीं पी लेते ? सच यही है कि ये केवल भ्रांतियां मात्र हैं, सच से कोसों दूर-------ये बोतले केवल क्वालीफाई डाक्टर की सलाह अनुसार ही मरीज़ों को चढाई जाएं तो ठीक है, वरना कोई यूं ही हठ करने लग जाये h उसे कोई क्या कहे ? और फिर लोग कहते हैं कि फलां फलां नीमहकीम ग्लुकोज़ की बोतलें चढ़ा चढ़ा कर चांदी कूटने में लगा हुआ है।

---- कईं बार यह भी देखा है कि कईं लोग कैप्सूल को खोल कर उस में मौजूद पावडर को पानी के साथ ले लेते हैं ------शायद ये लोग समझते होंगे कि कैप्सूल का बाहर का जो खोल है वह केवल खूबसूरती बढ़ाने के लिये है लेकिन वास्तविकता यह है कि इस कैप्सूल में जो दवाई मौजूद होती है उसे अगर हम चाहते हैं कि यह पेट में घुलने की बजाए सीधा आगे जाकर आंत के किसी हिस्से में घुले,तो इस तरह की दवाई को कैप्सूल के रूप में दिया जाता है। यह क्यों किया जाता है ---यह एक लंबा विषय है --दवाई की नेचर (एसिडिक या बेसिक------ अम्लीय अथवा क्षारीय प्रवृत्ति) यह सब तय करती है कि उसे पेट(stomach) में ही अपने काम आरंभ करने देना है या आगे आंतड़ियों में पहुंचा कर उसे डिसइंटिग्रेट (disintegration of the drug which facilitates its absorption) होने देना है।

--- दवाईयों का हर तरह से जो दुरूपयोग हो रहा है, वह हम सब से छिपा नहीं है। खूब धड़ल्ले से ये दर्द की टैबलेट, टीके, खांसी के सिरप, एलर्जी की दवाईयां, नींद की दवाईयां नशे के लिये तो इस्तेमाल हो ही रही हैं. लेकिन खतरनाक बातें इस तरह की भी हैं कि आयोडैक्स जैसी दवाई को नशा करने वाले ब्रैड पर लगा कर खाने लगे हैं।

आठ दस साल पहले जब मैने नवलेखक कार्यशालाओं में जाया करता था तो वहां पर बहुत महान, धुरंधर, लिक्खाड़ हमेशा यही कहा करते थे कि बस कागज-कलम लेकर बैठने की देर होती है----कलम का क्या है,अपने आप दौड़ने लगती है..........यही संदेश मैं अब आगे लोगों को कलम का इस्तेमाल करने की प्रेरणा देते समय इस्तेमाल करता हूं। हां, इस बात का ध्यान आज इस तरह आ गया क्योंकि मैं सुबह से ही यह पचा ही नहीं पा रहा था कि बैनाड्रिल क्रीम को आखिर कोई क्यों खायेगा --------लेकिन अभी लिखते लिखते ध्यान आया कि हो न हो, गलती से किसे न इस तरह की क्रीम को खा लिया हो, यह तो चलिये मान लेते हैं, लेकिन यह सारा नशे का चक्कर भी तो हो सकता है, क्योंकि उन "विकसित" देशों में तो ये सब टैबलेट्स तो डाक्टरी नुख्से पर ही मिलती हैं लेकिन अगर किसी के हाथ इस तरह की क्रीमें लग जाती होंगी तो फिर इन्हें खाकर या मुंह में रगड़ कर काम चला लिया जाता होगा, ऐसा मुझे लगता है कि इस चेतावनी के पीछे यही कारण होगा------- i wish i were wrong !!