शनिवार, 6 दिसंबर 2014

हिंदु-मुस्लिम भाईचारे के रोशन चिराग...

अभी टाइम्स ऑफ इंडिया देखी तो वहां एक रिपोर्ट दिखी......Paramhans used to bring fruits, I carried roti and achaar. दरअसल मेरी मां ने मेरे से पहले यह इंटरव्यू पढ़ी, इस का सार मेरे से साझा किया और पेपर मुझे थमा दिया।

इस में हाशिम अंसारी साब का इंटरव्यू छपा है... ये साब बाबरी मस्जिद केस लड़ने वाले सब से पुराने शख्स हैं... ६५वर्ष तक कानूनी प्रक्रिया के बाद में अब इन्होंने केस की कमान अपने बेटे के हाथ सौंप दी है।

इस छोटी सी इंटरव्यू में अंसारी साब याद कर रहे हैं कि शुरूआती दौर में यह मामला कितना मामूली सा था... और बता रहे हैं कि ये १९४९ से इस केस की पैरवी कर रहे हैं।

इन्हें याद है कि १९५० में मंदिर की तरफ़ से रामचन्द्र दास परमहंस ने केस की कमान संभाली। फैज़ाबाद के सिविल जज के यहां केस की सुनवाई हुआ करती थी।

अंसारी साब याद कर रहे हैं कि वह और परमहंस एक ही टांगे पर कोर्ट जाया करते थे। सुनवाई के बाद, वे लोग अयोध्या और फैज़ाबाद के बीच जलपा नाले पर एक साथ बैठ कर खाना खाया करते थे। परमहंस कुछ फल लाया करता था और मैं रोटियां और आचार ले आया करता था और मिल कर खाना खाते थे। हम उस समय इस समस्या के शांतिपूर्ण हल की भी चर्चा किया करते। वे यह भी याद कर रहे हैं कि एक समय ऐसा भी आ गया था कि वे दोनों सोचने लगे कि अगर मस्जिद में नमाज और राम चबूतरे पर पूजा की सहमति बन जाती है तो हम केस ही वापिस ले लेंगे। 

लेकिन आगे लिखते हैं कि किस तरह से वोटों की राजनीति में इस समस्या का राजनीतिकरण हुआ और स्थिति बद से बदतर होती चली गई।

बहुत अच्छा लगां, अंसारी मियां का यह लेख देख कर......ऐसे लोग हैं हिंदु-मुस्लिम दोस्ती के प्रकाश-स्तंभ।

वेव-लेंथ की बात देखिए.......मैं यह लिख ही रहा था कि पांच मिनट पहले मेरी मां मेरे को यह कागज़ का टुकड़ा पकड़ा कर गई हैं कि इसे मेरे (उनके) ब्लॉग पर डाल देना (वे भी ब्लॉग लिखती हैं) .......इसलिए उस पेज़ को उसी रूप में यहां डाल रहा हूं....
अंसारी साब के नाम मां का संदेश

सच में हम लोगों की दोस्ती कितनी पुख्ता है, बस वोटों की राजनीति ने सारी गड़बड़ी कर रखी है......कोई बात नहीं, लोग अब बिल्कुल सचेत होने लगे हैं....किसी की बातों में नहीं आते अकसर........

आप इस इंटरव्यू पर यहां देख सकते हैं... Paramhans used to bring fruits, I carried roti and achaar

हो सके तो इसे भी देखिएगा.......बात आस्था की...

योगेन्द्र मुदगिल की ये पंक्तियां ध्यान में आ गईं.....
मस्जिद की मीनारें बोलीं,
मंदिर के कंगूरों से, 
हो सके तो देश बचा लो, 
इन मज़हब के लंगूरों से ।।

नफ़रत की लाठी को तोड़ देने की याद दिलाता यह सुपरहिंट गीत भी सुनिएगा........




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